त्याग - Surendra Tandon द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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त्याग -

अमीर लोगों के बच्चे ही ज़्यादातर इंजीनियर, डॉक्टर बनते हैं, क्योंकि उन पर परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं होती बल्कि सभी सहूलियतें मयस्सर रहती हैं। केशव डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था। तीस लाख रूपया घूस देकर ही तो एम.बी.बी.एस में एडमिशन मिला था। माँ बाप दोनों ही सरकारी नौकरी में थे। कमाई वाले विभाग मिले थे, सो जमकर ऊपरी कमाई से लाखों का बैंक बैलेंस था। एक ही बेटा था, लेकिन माँ बाप के प्यार से वंचित अकेला ही घर पर बैठकर पढ़ाई कर रहा था। एक अधेड़ नौकरानी माँ ने कुछ वर्षों से रख ली थी, जो केशव के सारे काम करती थी। माँ बाप के प्यार से वंचित बच्चे अक्सर ज़िद्दी एवं चिड़चिड़े हो जाते हैं, केशव भी ऐसा ही हो गया था। बच्चों के साथ की गई इस लापरवाही के चलते ही माँ बाप से अक्सर वह उनसे दूर चले जाते हैं, और समाज इन बच्चों को कोसता है। केशव दिन भर बूढ़ी अम्मा को झिड़कता रहता "धीरे-धीरे काम करती हो, बड़ी जल्दी थक जाती हो, काम कम आराम ज़्यादा करती हो"। बूढ़ी अम्मा इन बातों का बुरा न मानती थीं, क्योंकि उनके अपने लड़के ने भी तो उनको छोड़ दिया था। इण्टर की पढ़ाई के दौरान ही एक गुर्दे की खराबी के कारण केशव का गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ था। शायद इसी कारण उसमे चिड़चिड़ापन आ गया था। माँ बाप ने कभी इन खर्चों का ज़िक्र केशव से नहीं किया था। केशव जनता था कि उनके माँ बाप के पास कितना पैसा है और वह उससे कुछ भी खरीद सकते हैं। गुर्दा ज़रूर पांच छ: लाख में मिला होगा। आखिरकार वह दिन भी आ गया जब केशव को डॉक्टरी की डिग्री मिल गई, खूब जमकर जश्न हुआ। अब तो केशव माँ से अक्सर बूढ़ी अम्मा की शिकायतें करता रहता, के क्यों इस बीमारी को आप पाले हुए हो और इसे घर पर रखने का क्या तुक है? आप तो घर पर रहती नहीं क्या सोचती हैं? अम्मा के सहारे मेरी ज़िंदगी खुशहाल कर देगीं। माँ अक्सर इन बातों को सुनकर भी अनसुना कर देती थीं। 'बुढ़ापा और गरीबी' अपने आप में एक बीमारी है जो शायद तुम कभी समझ सको केशव! बूढ़ी अम्मा यही मन में बड़बड़ा कर रह जातीं।

एक दिन केशव ने बूढ़ी अम्मा को झुंझलाकर उसी पानी पर धक्का दे दिया जो उनकी गलती से फर्श पर फ़ैल गया था, जब तक वह उसे साफ करतीं तभी केशव आ गया और फिसल गया। कमज़ोर और बूढ़ी अम्मा तो थीं ही, इस ज़ोरदार धक्के से संभल न पायी और जो गिरीं तो फिर न उठीं, क्योंकि हार्ट अटैक से उनकी उसी समय मृत्यु हो गई। काफी देर तक अम्मा में कोई हरकत न देख केशव ने घबड़ाकर माँ को बुलाया और बताया की न जाने किस समय अम्मा फिसल कर गिर गई पता ही नहीं चला, मैं तो अपने कमरे में सो रहा था। आनन-फानन में बूढ़ी अम्मा को अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। माँ ने उनके अंतिम-संस्कार का पूरा इंतज़ाम करवाया, पास पड़ोस में वह देवी बना दी गई। हर व्यक्ति की ज़ुबान पर बस यही चर्चा थी, की इतना बड़ा दिल किसी पैसे वाले का नहीं होता की नौरानी के प्रति इतना प्यार, सम्मान दे वह भी उसको जिसका इस संसार में कोई न हो।

केशव वह बिगड़ैल, ज़िद्दी घमंडी लड़का था जो गलती करके भी अपनी अकड़ नहीं छोड़ते। माँ की इस हरकत पर उन्हें बहुत बुरा भला-कहने लगा तो माँ ने पास बिठाकर समझाया, बेटा आज तू जो ज़िंदा है वह अम्मा के कारण ही है, यदि वह अपना एक गुर्दा तुझे दान न करतीं तो अथाह पैसा रखकर भी हम तुम्हे शायद बचा नहीं पाते। उस गरीब ने इसका एक भी पैसा हमसे नहीं लिया। उल्टे हमें कसम दी की मेरे और आप दोनों के सिवा इस बात का पता केशव तक को भी न हो। जांच आदि में उनका ही गुर्दा तुम्हारी बॉडी एक्सेप्ट कर रही थी।अब बता इस भलाई के बदले क्या हमारा इतना भी फ़र्ज़ नहीं बनता की हम उनका इतना सा अंतिम-काम भी न करें? वह चाहती तो जिंदिगी भर हमारे पैसो पर आराम से रहती, लेकिन वह तो घर का सारा काम करती थीं और तुम्हारा भी पूरा-पूरा ध्यान रखती थीं।

डॉक्टर केशव शादी करके विदेश में बस गये हैं, अपने बीवी बच्चों के साथ मस्त हैं। बूढ़े माँ बाप अपनी बची ज़िन्दगी काट रहे हैं। डॉक्टर साहब कभी-कभार आ जाते थे, किन्तु इधर कुछ वर्षों से वह भी बंद है। अपनी आमदनी और वहाँ से मोटा चंदा इक्कठा करके भारत में "शांति सेवा संस्थान" को भेजते हैं, जो बूढ़ी अम्मा की तरह अकेले हैं, और उनके सर पर किसी का हाथ नहीं है। यह संस्थान बूढ़ी अम्मा के नाम पर है क्योंकि उनका नाम शांति जो था। यही डॉक्टर केशव का शायद प्रायश्चित है, क्योंकि बूढ़ी अम्मा की मृत्यु का कारण सिर्फ वह ही जानते है, उनके माँ बाप तक नहीं।

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