व्यवसाय के गुर - National Story Competition -Jan Rajesh Kumar Srivastav द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

व्यवसाय के गुर - National Story Competition -Jan

व्यवसाय के गुर

राजेश कुमार श्रीवास्तव

अग्रवाल जी अक्सर अपने बड़े बेटे को साथ लेकर खड़गपुर जाया करते थे | खड़गपुर में उनकी ठेकेदारी चलती थी | जिस कारखाने में उनकी ठेकेदारी चलती थी उसकी दुरी स्टेशन से महज एक किलोमीटर होगी | लेकिन वे पैदल ना चलकर रिक्शा किराए पर ले लेते | रिक्सावाला उनसे इस दुरी के लिए दस रुपये मांगता | बिना मोल-भाव किये वे उसे दस रुपये दे देते |

एकदिन किसी कारणबस अग्रवाल जी नहीं आये | उनका बड़ा लड़का अकेले खड़गपुर स्टेशन पहुंचा | रिक्सावाला को उसी कारखाने तक चलने को कहा | रिक्शावाला तैयार हो गया | लडके ने किराया जानना चाहा | रिकसेवाले ने हमेशा की तरह दस रुपये बतलाये | लडके ने इतनी कम दुरी का हवाला देते हुए दस रुपये देने से इंकार कर दिया | मोल-भाव होते-होते आठ रुपये भाड़ा तय हुआ | उसने लौटते समय यह दुरी पैदल ही तय कर डाला | इस तरह कुल दस रुपये बचा डाले | उसने सोचा घर जाकर पिताजी को दस रुपये बचाने की बात सबसे पहले बतलायेगा | पिताजी बहुत खुश होंगे | खूब वाहवाही मिलेगी |

रात को घर पहुँचते ही पिताजी को बतलाया " बापू तुम खड़गपुर में रिकसेवाले को दो रुपये ज्यादा देते हो | मैंने उसे आज आठ रुपये ही दिए | इतनी कम दुरी का आठ रुपये से ज्यादा किराया नहीं हो सकता |"

लडके को उसके आशा के मुताबिक पिताजी से वाह-वाही नहीं मिली |

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले " बेटे तुमने वहां कुछ खाया ?"

" हाँ बापू मैंने नटराज रेस्टोरेंट में रोटी और तड़का खाया"

" कितना खर्च आया "

" साठ रुपये का एक प्लेट तड़का और पांच रुपये करके चार रोटिया | कुल अस्सी रुपये खर्च हुए उस रेस्टोरेंट में |"

" तुमने पानी कौन सा पीया "

" मिनरल वाटर का एक बोतल खरीदा था |"

" कितने का आया |'

" एक लीटर का बोतल था अठारह रुपये लिया |"

" लेकिन एक लीटर के मिनरल वाटर का दाम तो पंद्रह रुपये है |"

" हाँ वो तो है लेकिन उसने एकदम चिल्ड वाटर दिया था इसलिए तीन रुपये ज्यादा लिए |"

पिताजी मुस्कराते हुए जानकारियां ले रहे थे और बेटा आश्चर्यचकित होकर जबाब दे रहा था | वह पिताजी के इन प्रश्नो से हैरान था | वे कभी भी उसके द्वारा किये गए खर्चों के हिसाब नहीं लेते | वे अपने इस बेटे पर बहुत विश्वास करते | ऐसे उनके बेटे भी कभी फिजूलखर्ची नहीं करते |

पिताजी सोफे से उठे और बेटे के कंधे पर हाथ रखते हुए मुस्कुराये |

बेटा कुछ नहीं समझ पा रहा था | कहाँ वह वाह - वाही पाने के आशा में था और मिल रहा था आश्चर्य |

पिताजी-" बेटे तुमने रिक्शेवाले को दो रुपये कम नहीं तीन रुपये अधिक दिए |"

बेटा -" वो कैसे बापू |'

पिताजी -" जिस दुरी के तुमने आठ रुपये दिए उसका वास्तविक किराया पांच रुपये है | यदि तुम पैदल जाने लगते तो रिक्शावाला तुम्हे पांच रुपये में ही पहुंचा देता |"

बेटा-" लेकिन तुम तो हमेशा दस रुपये देते हो |"

पिताजी-" हाँ मैं जान-बुझ कर उसे दस रुपये देता हूँ | बदले में मुझे वह जो सम्मान देता हैं वो इन पांच रुपये से बढ़कर होता है | मेरा सामान उठाकर वह ऑफिस तक पहुंचा देता है | गर्मी, तेज धुप, कड़ाके की सर्दी हो या मूसलाधार बारिश कभी भी मुझे ले जाने से इंकार नहीं करता | ये रिक्सावालें बहुत गरीब होते है | कड़ी मेहनत करके कुछ आय करते है | मोटर गाड़ियों के भरमार हो जाने से अब इनका इस रोजगार से पेट भी नहीं भर पाता | यदि इन्हे इनके मेहनत के बदले कुछ रुपये ज्यादे दे भी दी जाय तो ये सम्मान देकर उसका चुकता कर देते है | लेकिन तूम सोचे जिस रोटी और तड़के के लिए तुमने अस्सी रुपये खर्चे वह तुम्हे बीस रुपये में उपलब्ध हो सकते थे यदि तुम इसे रेस्टोरेंट से ना लेकर किसी फुटपाथी ढाबे से लेते | तुमने वेटर को सेवा के बदले जरूर कुछ टिप्स दिए होगे ?"

बेटा (शर्माते हुए )- ' हाँ मैंने पांच रुपये का एक सिक्का वेटर को दिए थे |"

पिताजी - " हालांकि वह अपनी सेवा के बदले वेतन पाता है फिर भी तुमने उसे पांच रुपये टिप्स में दिए ताकि तुम्हारा स्टेटस बना रहे | तुमने रेस्टोरेंट में बीस रुपये के खाने के बदले तुमने अस्सी रुपये दिए | पंद्रह रुपये के मिनरल वाटर के बदले तुमने अठारह रुपये ख़ुशी-ख़ुशी दिए | और तुम्हारा ये पैसा रेस्टोरेंट के मालिक और मिनरल वाटर बनाने वाले धनवान लोगों के पास चला गया जो इसका उपयोग अपने ऐसों-आराम में करेंगे | फिर भी तुमने उनसे मोल-भाव करने की जरुरत नहीं समझे लेकिन एक रिक्सावाला जो अपने मेहनत की कमाई से किसी तरह अपना और अपने परिवार का पेट पालता है उससे दो रुपये बचाकर खुश होते हो |"

बेटा शर्म से आँखें झुकाये खड़ा था | कहाँ वह पिताजी से शाबासी पाने के इंतजार में था और उसे मिल रहा था उपदेश |

पिताजी -" देखो मेरी बातों को ध्यान से सुनो मैं तुम्हे व्यापार का एक गुर सीखा रहा हूँ | व्यवसाय से होने वाले लाभ का शतप्रतिशत हिस्सेदार तुम स्वयं मत होना | जिस धरती पर तुम व्यवशाय करते हो, जिन लोगों की बदौलत तुम्हारा व्यवशाय चल रहा है और जिस लोग और समाज के बीच तुम व्यवशाय करते हो उसे भी लाभ का हिस्सेदार अवस्य बनाना | इसे अपनाओगे तो कभी भी तुम्हारे व्यवशाय के फलने-फूलने से कोई नहीं रोक सकता |"

बेटा पिताजी के इस गुर को समझ चुका था |

***