एक रात Sonu Kasana द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक रात

एक रात

सोनु कसाना

हम सब की जिंदगी में कभी ना कभी कई ऐसी घटनाएं होती हैं जो हमारी स्मृति पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं । ऐसी ही एक घटना ।

घर पर बच्चों (जुड़वा) के जन्मदिन की पार्टी की तैयारीयां चल रही थीं । खूब चहल पहल थी । मैं महमानो की आवभगत में लगा हुआ था । सारा काम अच्छे से चल रहा था । महमान आ रहे थे कुछ जरुरी काम होने के चलते वापस भी जा रहे थे । कुछ केक के लिए रुके हुए थे । हम सब ने मिल कर केक काटा । सब ने खाया । चारों और खुशी का माहौल था । जो चंद महमान खाना खाए बिन रह गये थे उन्हे भी खाना खिला दिया गया । अब घर वालें ही रह गये थे । घर वाले खाने लगे तो ये देखा जाने लगा कि कौन - कौन खा चुके कौन - कौन रह गये । हमारा संयुक्त परिवार काफी बड़ा है। तभी हमे याद आया कि अभी सैलेन्द्र भी रह रहा है। सैलेन्द्र हमारा डोमैस्टिक हैल्प है। चारों और सैलेन्द्र की खौज शुरु हुई लेकिन वह नही मिला । अब हमें परेशानी होनी शुरु हो गई । अब खेतों आदि पर खौज शुरु हुई लेकिन वह नही मिला। उसके पास फोन न होने का आज बड़ा कष्ट हुआ। घर वालों के विचार शुरु हो गये,

कोई कहे कंही भाग गया होगा,

किसी ने ज्यादा पैसों का लालच दे दिया हो,

किसी ईंख के खेत में सो न गया हो.

सबका गुस्सा था बनावटी .... वो भी किसी अनहोनी के ड़र से। ...

सैलेन्द्र हमारा डोमैस्टिक हैल्प जरुर है लेकिन है परिवार का सदस्य । हालाकि उसे हमारे साथ जुड़े ज्यादा समय नही हुआ पर फिर भी उसके साथ एक रिस्ता सा जुड़ गया । मेरे हिसाब से भी रिस्ता जुड़ने के लिए बहुत लम्बे समय की जरुरत नही होती क्योंकि घर में जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो हम उसके साथ बंध जाते हैं,

क्योंकि सैलेन्द्र भी बच्चे जैसा निश्छल था तो उससे भी संबंध जुड़ गया था ।

लेकिन अब हमारे सामने समस्या ये थी कि उसे कहां ढूंढें । उससे संबंधित कुछ फोन न. थे जिन पर सम्पर्क किया गया । लेकिन कोई पता नही चला,

जैसे – जैसे समय बीत रहा था समस्या उतनी गहराती जा रही थी,

रात के लग भग 10 बजे बड़े भईया बाईक उठा कर सैलेन्द्र के घर के लिए निकले,.

कभी अभी रास्ते में हो... और उनसे मिल कर कुछ और जानकारी भी मिल सकती थी ।

लेकिन सैलेन्द्र न रास्ते में मिला न घर पर...

सैलेन्द्र के घर पर उसका बड़ा भाई रहता है अपने बेटे के साथ। उसकी पत्नी व बेटा उसके सुसराल में रहते हैं । सैलेन्द्र के बड़े भाई ने बताया कि सैलेन्द्र ऐसे तो कहीं नहीं जा सकता । तो भाई ने कहा कि तो फिर हमें एफ आई आर दर्ज करवानी चाहिए...

सैलेन्द्र के बड़े भाई ने कहा कि अभी तो रात बहुत हो गई है शुबह तक इंतजार कर लेते हैं क्या पता कोई खबर लग जाय।

बड़े भाई ने कहा – ठीक है । शुबह तक इंतजार कर लेते हैं। और वे वापस घर आ गये ।

आ कर हमें सारी बात बताई । सब परेशान थे । शुबह के इंतजार में सब सो गये ।

शुबह हुई तो सैलेन्द्र को सामने पा कर किसी को अपनी आँखों पर यकीन नही हुआ ।

सब उससे अपने – अपने सवाल पुछना चाहते थे ।

कि वह कहां था ?...

क्यों गया था ? ....

किसके साथ गया था ?

और वापस क्यों आया ?

उसने कहा मैं सब बताऊंगा पर पहले मुझे भूख लगी है मैं खाना खाऊंगा ।

उसे पहले चाय फिर खाना दिया गया । उसने खाना खा कर अपना किस्सा सुनाया ।

हम सब बड़े उत्सुक थे जानने को ।

उसने कहा – मैं कल जल्दी काम निपटा कर घर आने के लिए चला कि घर पर आज महमान हैं । लेकिन जैसे ही सड़क पर आया तो एक कार मेरे पास आकर रुकी ।

जिसमें 2 – 3 लड़के सवार थे । उनमें से एक ने कहा – भाई माचिस है क्या ?

मैंने कहा – जी नही मेरे पास नही है । मैं बीड़ी नही पीता...

उनमें से एक दुसरे ने कहा – तुम तो प्रधान जी के नौकर हो ना ?

( हालाकी हम में से कोई प्रधान नही है पर उसने इस शब्द को सम्मान सूचक शब्द की दृष्टि से लिया )

मैंने हां में जवाब दिया तो उन्होने कहा – तो आऔ बैठो हम भी घर ही चल रहे हैं ।

तो मैने कहा – नही मैं चला जाऊंगा ।

तो उन्होने जिद की ।

तो मैने कहा – लेकिन घर तो पीछे है।

वे बोले - कि बैठो ,,, कार अभी घुमा कर घर चलते हैं । तो मैं बैठ गया । मेरे बैठते ही कार तेजी से चल पड़ी । कुछ दूर चलते ही मैंने पूछा – कि घर तो पीछे है। कहां जा रहे हो ?

तो उन्होने धमकी दी – चुप चाप बैठे रहो वरना...

मैंने चुप रहने में ही भलाई जानी।

काफी देर चलने के बाद एक जगह कार रुकी । मुझे धमकी देने के बाद अपने साथ 2 बोतलें लेकर वे तीनो नीचे उतर गये ।

उनके जाने के 2 मिनट बाद ही मैने उतरने का प्रयास किया । एक खिड़की खुल गई । मैं उतर कर पास के एक खेत मे घुस गया । और धीरे – धीरे पीछे के बजाय आगे की और भागा । काफी देर बाद एक सड़क पर पहुंचा । वंहा सामने ही एक चौक्की ( पुलिश चौकी ) थी । मैने सारी बात उन्हे बताई। तो उन्होने कहा कि जंहा तुम इशारा कर रहे हो वंहा तो बहुत बड़ा जंगल है । हम कल शुबह देखेंगे । और मुझे 50 रू देकर एक ट्रक वाले से पता करके मुझे बैठा दिया ।

ट्रक वाले ने मुझे पास के कस्बे में छोड़ा ।

वंहा से मैं पैदल घर आया हूं।

हम सब ने एक साथ कहा – 50 रू दिखाओ। उसने दिखा दिए ।

घटना नाटकीय पर दिलचस्प थी ।

***