फुल-रानी Manish Gode द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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फुल-रानी

फुलरानी

“बस... बहुत हो गया सविता..!” मैं लगभग चिल्ला ही पडा था उस पर। कभी भी उँचा न बोलने वाली सविता, आज बेहद आक्रामक मुड में थी। रोते रोते वह बेडरुम में चली गई और अंदर जाकर जोर से दरवाजा बंद कर दिया था उसने। अब मेरे पास ड्रॉईंग-हॉल में सोने के सिवाय कोई दुसरा चारा न था। नींद न आने की वजह से मैंने टी.वी. ऑन किया... आँखे स्क्रीन पर और उँगलीयाँ चैनल सर्फ करने में मग्न थी। सहसा एक गाने के चैनल पर हाथ रुक सा गया... देखा, एक युवती तितली के पिछे स्लो-मोशन में भाग रही थी और वह तितली एक फुल से दुसरे फुल पर जा बैठती थी। आवाज़ म्युटपर होने की वजह से कुछ सुनायी तो नहीं दे रहा था, किंतु वह गाना सुनने लायक होगा, ऐसे लग रहा था। थोडी ही देर में अपने आप आँखें बंद हो गयी और मैं वैसे ही रिमोट हाथ में लिये सो गया।

“सुनो.. उठो ना..” कोई मेरे नाक को सहलाता हुआ बोला। मैंने धीरे से आँखें खोली, तो देखता क्या हुँ, वही तितली मेरे नाक के इर्द-गिर्द फडफडा रही थी... मैं बहुत खुश हुआ... “अरे वाह, ये तो वही तितली हैं... गाने मे की... क्या नाम है तुम्हारा..?” मैंने पुछा।

“फुलरानी...” उसने हँसते हुये कहा। वह बेहद सुँदर दिख रही थी, उसके पँख मनमोहक और कलात्मक थे।

“क्यों झगड रहे थे तुम सविता से..?” फुलरानी ने मुझसे पुछा।

“अरे मैं नही झगड रहा था... उल्टा वही ज़िद पर अडी हुई है..!”

मैंने कहा।

“क्या हुआ, कुछ समझाओगे भी..” उसने आँखें तरेर कर पुछा।

“सविता और मेरे विवाह को सात साल से ऊपर हो चुके हैं, लेकिन हमें अबतक कोई बच्चा नही हो पाया और शायद हो भी नहीं पायेगा, ऐसा डॉक्टर्स का कहना है। लेकिन और थोडा रुक जाते हैं, इस बात को लेकर रुठकर बैठ जाना, कितना उचित है..?” मैंने फुलरानी से सवाल किया।

मैं और सविता, हम दोनो का राजा-रानी जैसा संसार, उसे ना सास-ससुर ना देवरानी ना जेठानी, बस सिर्फ हम दोनो..! अच्छा खासा कमा लेते है दोनो... लेकिन कमी है तो सिर्फ एक बाल-गोपाल की। सात साल से डॉक्टर्स के चक्कर काट रहे है, लेकिन कोई फायदा नही हुआ। फिर एक दिन मैंने ही उसे टटोलना चाहा और पुछा, “सविता, हम एक बच्चा गोद ले लें तो..!”

“बिलकुल नही...!” उसने बात पुरी होने के पहले ही नकार दे दिया। “हमें नही चाहिये किसी और का बच्चा..!!! क्या लोगो को देर से नही होता बच्चा..? मुझे ऐसा-वैसा कुछ भी करने को ना कहो, कह देती हुँ हाँ..!!” उसने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया।

“इससे तो अच्छा है कि मैं तुम्हारी शादी मुक्ता से करा दुँ..” सविता बोल बैठी..!

“अब ये मुक्ता कौन है..?” फुलरानी ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखते हुये पुछा।

“मेरी साली... सविता की छोटी बहन..!” मैने कहा, “वह और उसकी माँ, दोनो पुना मे रहती है। मुक्ता फाईनल ईयर ‘गायनिक’ में पढ रही है। पापा इनके बचपन मे ही स्वर्ग सिधार चुके थे, किंतु अपने पिछे अच्छी खासी प्रॉपर्टी छोड गये थे। सो जीवन व्यापन की कोई चिंता न थी। सविता और मैं एक ही कॉलेज में पढते थे सो जान पहचान और इनके घर आना जाना लगा रहता था। सविता की माँ को शायद मुझसे अच्छा वर ना मिलने की उम्मिद से, उन्होने हमारा रिश्ता पक्का करवा दिया। मैं दो साल के लिये एम.बी.ए. करने हेतु विदेश चला गया और वहाँ से लौटने के बाद मुँबई में स्थित एक एम. एन. सी. में जॉब और सविता, दोनो एक साथ मिल गये। अब हमारे शादी के सात साल होने के बाद भी सविता का अपने बच्चे के लिये राह देखते रहना, कहाँ तक योग्य हैं, और तो और, बच्चा गोद लेने से तो अच्छा है, मुक्ता से शादी करना...! ये बात कितनी योग्य है, तुम ही बताओ..।” मैने निराश होकर फुलरानी से पुछा..!

“बस.., इतनी सी बात..! कितने ही उपाय है इस पर..!” फुलरानी बोली, “राह निकलेगी... फोन करो मुक्ता को..” वह मेरे कान के पास आकर बोली।

***

“फोन करो मुक्ता को..!”

“अरे, सुन रहा हुँ बाबा...! अब क्या कान फोडोगी मेरा..” मैने जोर से कहा।

“कर्म तो मेरे फुटे हैं..!!. उठो, चाय पिओ और फोन करो मुक्ता को..!” अचानक फुलरानी का आवाज़ सविता से कैसे बदल गया..? मेरे मन में शंका उठी, आँख खोली तो सामने सविता चाय का कप लिये खडी थी, रिमोट हाथ से निचे फिसल चुका था और टी.वी. अब भी चल रहा था..! अच्छा... तो ये सपना था...! मैं मन ही मन बडबडाता हुआ बाथरुम में घुस गया..!

फोन तो करना ही होगा मुक्ता को... पानी जो सर से उपर बह रहा था..!

पता नहीं, मुक्ता जब वह इस बात को सुनेगी तो उसके दिल पर क्या बितेगी..! भगवान... अब तु ही कोई राह निकाल..! मैं ऑफिस जाने को तैयार हो रहा था..!

ऑफिस पहुँचकर मैने मुक्ता को फोन किया... इंटरकॉम पर थोडी देर इंतजार के बाद मुक्ता का सुमधुर सुर सुनायी दिया, “हाय जीजु... इतने दिनो बाद, आज याद आई आपको मेरी..” वह शायद मेडिकल कॉलेज के ओ.पी.डी. से बोल रही थी, “अरे, तुमसे कुछ बात करनी थी, रविवार को आऊँ क्या पुना, तुमसे मिलने..!” मैंने पुछा।

“बाप रे.., कहीं भाग कर तो नहीं जाना है हमे.., मुझसे ना होगा... मंदा की डिलीवरी नहीं हो पा रही है, शायद सिजेरियन करना होगा इस रविवार को..!” वो मजाक के मुड में थी शायद।

“अरे, मैं भी मुँबई से पुना, दोपहर के पहले नहीं पहुँच पाऊँगा..” मैंने कहा।“ठिक हैं... आईए आप किंतु जाते जाते रात हो जायेगी..” वह चिंतित लग रही थी।“तुम मेरी चिंता ना करो मुक्ता... आय विल मैनेज..!” मैंने उसे निश्चिंत करते हुए कहा।

***

रविवार को पुना जाते वक्त मैंने एक बार मुकदृष्टी से सविता से पुछना चाहा, सच्ची जाऊ पुना मुक्ता से मिलने के लिये...?

“जल्दी जल्दी निकलो, ताकी वापसी के समय देर ना होगी.., और आप दोनो का क्या फैसला है, फाईनल करो इसबार..!” सविता मुझे एक के बाद एक सुचना दिये जा रही थी और मैं निर्विकार मन से कार की तरफ बड रहा था... मन नहीं मान रहा था इस बात को, सविता से प्रेमविवाह करने के बाद वही मुझसे दुसरा विवाह करने को कहे, बडी अजीब कश्मकश में फँसा था मैं..! सिर्फ एक बच्चे के लिये, दुसरा विवाह..! वह भी बीवी के कहने पर..!! इस दुनिया में कितने ही निराधार बच्चे होंगे जिन्हे एक परिवार की जरुरत होगी, एक आसरे की जरुरत होगी..! एक अच्छे स्कुल की और अच्छे वातावरन की जरुरत होगी। पिछले दिनो मैं एक सुंदर अनाथ लडकी के बारे मे पता करके आया था, लेकिन सविता उल्टा मुझ ही पर भडक उठी..!

ऐसे अनेक विचारो की उधेडबुन के बिच पनवेल कब क्रॉस हुआ... पता ही ना चला..! मेरी गाडी अब मेरे विचारों की गती से एक्सप्रेस हाईवे पर दौड रही थी। एक बार मुक्ता से मिलकर उसे इस रिश्ते के लिये ना करने के लिये कहुँगा.., पुछुँगा मेडिकल साईंस ने क्या कोई नया संशोधन नहीं किया क्या इस बारे में..? दिमाग ने अब काम करना बंद कर दिया था..!

सोचते सोचते देहु रोड कब आ गया पता ही न चला..!! मैंने बी.जे. मेडिकल कॉलेज की तरफ गाडी मोड दी और गेट के बाहर से ही मुक्ता को फोन किया..! रिंग जा रही थी किंतु वह फोन उठा नही रही थी, शायद बिझी होगी... खुद को समझाता हुआ मैं बैक मिरर मे अपने बालों को ठिक कर रहा था, इतने में कोई पिछे से हाथ हिलाती हुई दिखाई दी। ग्लास निचे करके पिछे देखा तो मुक्ता थी..! “हाय जिजु...” कहते हुए वह फ्रंट सीट पर आ बैठी।

“मुक्ता... कितनी बदल गई हो तुम..!” मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा। जिंस-टॉप और ग़ॉगल लगाकर, बालों की पोनी में बहुत सुंदर लग रही थी। “ये सब अलाऊड है क्या ऑपरेशन थियेटर में..?” मैंने उससे पुछा।

हा-हा-हा... वह हँसने लगी.., “आज छुट्टी ले रखी है मैने... मेरी जगह दुसरे डॉक्टर की ड्युटी लगवायी है... आप जो आने वाले थे। दीदी की खास हिदायत है कि शाम ढलने से पहले, आपको रवाना करें... चलो चलो, कहीं लेकर चलो, बहुत भुख लगी हैं मुझे।” मुक्ता अपने ग़ॉगल को बालों में खोंस कर विनंती करने लगी।

मैंने गाडी ब्लु-नाईल रेस्टॉरंट की तरफ मोड दी..! वह हाथ हिला हिला कर कुछ कह रही थी, लेकिन मेरा ध्यान कहीं और था।

“वेलकम सर, वेलकम मँम..!” दरबान बोला, हम दोनो खाली जगह ढुंढकर एक जगह बैठ गये, “क्या लोगी मुक्ता..” मैने पुछा। मुक्ता के ऑर्डर देने के बाद मैं मुख्य विषय की तरफ आया।

“मुक्ता, मैं सिर्फ एक बच्चा पाने के खातिर तुमसे ये शादी नहीं करना चाहता..!” मैंने एक साँस में अपने मन की बात कह दी।

उसने सिर ऊपर किया और पानी पिते हुए बोली, “जल्दी से आईसक्रिम मँगवाओ..!”

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था..! दोनो बहनें इस विषय को कितने हल्के में ले रही थी..! और मुझे गेंद की तरह इधर से उधर नचा रही थी। उसके खाने के बाद हम बिल देकर गाडी में आ बैठे. मुक्ता मेरी तरफ मुँह करके बोली, “जिजु, मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने को तैयार हुँ..!”

मेरे सिर पर से पसीना टपक रहा था... टप, टप, टप...!

“क्या जिजु, आप भी ना, कितने घबरा रहे हो..! अरे मैं आपके बच्चे को ‘सरोगेट’ करुँगी... मतलब, मैं आपके बीज को अपने कोख में पालुँगी और यथासमय आपको और दीदी को ये बच्चा डिलीवर कर दुँगी..! चलो, अब मुझे वापस कॉलेज के गेट तक छोड दो..!” उसने कहा।

मैं उसकी तरफ देखता ही रह गया..! इतना आसान, लेकिन कितना कठीन मार्ग था ये..! मुझे उसका चेहरा किसी देवी से कम नहीं लग रहा था, नौ माह ये बंदी हमारा बच्चा अपने पेट में लेकर हर जगह घुमती फिरेगी..!!!

“आर यु मँड..?” मैंने उससे पुछा, “तुमसे बाद में कौन शादी करेगा..?”

“उसकी भी मैंने व्यवस्था कर रखी है, डॉ. निरज मुझसे शादी करने वाले हैं... वे एक IVF स्पेशालिस्ट` हैं हमारे हॉस्पिटल में..!”

अब तो सिर्फ उसके पाँव धोकर पिने बाकी रह गये थे..!

“रुको...” मुक्ता चिल्ला पडी..! “जिजु, कॉलेज का गेट तो पिछे ही छुट गया...!!” वह कार से निचे उतरी और मुझे बाय करते हुए गेट की तरफ बढ चली... उडते उडते... इस फुल से उस फुल पर..! सभी को पल्लवित करते हुए... इस फुल के परागकण उस फुल तक पहुँचाते हुए... सभी को आत्मिक आनंद देते हुए..., उस फुलरानी की तरह..!

फुलरानी... हमारे जीवन में खुशीयाँ लानेवाली, सविता की सूनी गोद भरने वाली...! उसे ‘माँ ‘ बनाने वाली, हमारे सपनों को पुरा करने वाली... हमारी... फुलरानी...!!!

  • - मनीष गोडे