Bahina Baai ke geet books and stories free download online pdf in Hindi

बहिणा बाई के गीत

प्रस्तावना :

स्व. बहिणाबाई चौधरी की रचनाएँ महाराष्ट्र की अहिराणी (खानदेशी) भाषा में, गाँव की सीधी साधी बोली भाषा में लिखी गयी है। उनकी पहली रचना में बया (चिडीया) के घोंसले का वर्णन किया गया है। दुसरी रचना कबीर के तर्ज पर लिखी कुछ नैतिक उक्तियाँ है। तीसरी रचना में बारिश के मौसम का वर्णन किया गया है। चौथी रचना हमारे किसान भाई और उसके गाँव के तारीफ में लिखी गयी चंद पंक्तियाँ है।

पहले मैं उनकी मूल रचना लिख रहा हुँ, तत्पश्चात उसका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हुँ। मेरा ये अनुवाद, मूल रचना के समान ही, मात्रा पर ज्यादा जोर न देते हुए, आठ वर्णो को लेकर ‘अष्टाक्षरी’ इस छंद प्रकार में लिखी गय़ी है। अतएव मेरा भी यह प्रयास है कि इन कविताओं का अनुवाद अष्टाक्षरी, इस सीधे-साधे चौपायी में ही करू, जहाँ मात्राओं पर नहीं, अक्षरों की गिनती पर जोर दिया गया है। धन्यवाद।

मूल मराठी कविता संग्रह हमें निम्नलिखित संकेतस्थल से साभार प्राप्त हुई है – https://marathi.pratilipi.com/bahinabai-choudhari/kavita-sangrah

  • 1. सुगरणीचा खोपा
  • (मूळ मराठी कविता)

    अरे खोप्यामधी खोपा,

    सुगरणीचा चांगला..!

    देखा पिलांसाठी तिनं,

    झोका झाडाले टांगला..!!

    पिलं निजली खोप्यात,

    जसा झुलता बंगला..!

    तिचा पिलामध्ये जीव,

    जीव झाडाले टांगला..!!

    खोपा इनला इनला,

    जसा गिलक्याचा कोसा..!

    पाखराची कारागिरी,

    जरा देख रे माणसा..!!

    तिची उलीशीच चोच,

    तेच दात, तेच ओठ..!

    तुला देले रे देवान,

    दोन हात दहा बोट..!!

    हिन्दी अनुवाद

    छंद प्रकार : अष्टाक्षरी

  • 2. बया का घोंसला...
  • रे घोंसले में घोंसला,बया का खुब सजीला..!देखो जी बच्चों के लिये,टांगा, पेड पे हिंडोला..!!

    सो रहे बच्चें उसमे,जैसे झुलता बंगला..!उसका सारा मन तो,

    मानो, पेड पर टंगा..!!

    घोंसला बीना हो ऐसा,

    जैसे तुरई का कोसा..!कारागिरी पंछीओं की,बना सको उस जैसा..?

    उसकी इत्ती सी चोंच,वही होंट, वही दाँत..!

    तुझे दी भगवान ने,दस उँगली, दो हात..!!

  • 3. कशाला काय म्हणूं नही?
  • (मूळ मराठी कविता)

    बिना कपाशीनं उले,

    त्याले बोंड म्हनूं नहीं..!

    हरी नामाईना बोले,

    त्याले तोंड म्हनूं नहीं..!!

    नही वार्यानं हाललं,

    त्याले पान म्हनूं नहीं..!

    नहीं ऐके हरिनाम,

    त्याले कान म्हनूं नहीं..!!

    पाटा येहेरीवांचून,

    त्याले मया म्हनूं नहीं..!

    नहीं देवाचं दर्सन,

    त्याले डोया म्हनूं नहीं..!!

    निजवते भुक्या पोटीं,

    तिले रात म्हनूं नही..!

    आंखडला दानासाठीं,

    त्याले हात म्हनूं नहीं..!!

    ज्याच्या मधीं नाही पानी,

    त्याले हाय म्हनूं नहीं..!

    धांवा ऐकून आडला,

    त्याले पाय म्हनूं नहीं..!!

    येहेरींतून ये रीती,

    तिले मोट म्हनूं नहीं..!

    केली सोताची भरती,

    त्याले पोट म्हनूं नहीं..!!

    नहीं वळखला कान्हा,

    तीले गाय म्हनूं नहीं..!

    जीले नहीं फुटे पान्हा,

    तिले माय म्हनूं नहीं..!!

    अरे, वाटच्या दोरीले,

    कधीं साप म्हनूं नहीं..!

    इके पोटाच्या पोरीले,

    त्याले बाप म्हनूं नहीं..!!

    दुधावर आली बुरी,

    तिले साय म्हनूं नहीं..!

    जिची माया गेली सरी,

    तिले माय म्हनूं नहीं..!!

    इमानाले इसरला,

    त्याले नेक म्हनूं नहीं..!

    जल्मदात्याले भोंवला,

    त्याले लेक म्हनूं नहीं..!!

    ज्याच्यामधीं नहीं भाव,

    त्याले भक्ती म्हनूं नहीं..!

    त्याच्यामधीं नहीं चेव,

    त्याले शक्ती म्हनूं नहीं..!!

    हिन्दी अनुवाद

    छंद प्रकार : अष्टाक्षरी

  • 4. किसे क्या ना कहें..?
  • बिना कपास जो खिले,

    उसे डोडा कहो नहीं..!

    जो नाम हरी का ना ले,उसे मुख कहो नहीं..!!

    जो हवाओं से ना हिले,उसे पान कहो नहीं..!

    जो नाम हरी ना सुने,उसे कान कहो नहीं..!!

    बिना रहट कुँए के,उसे खेत कहो नहीं..!

    करे ना ईश दर्शन,उसे आँख कहो नहीं..!!

    भुखे पेट सो दे कोई,उसे रात कहो नहीं..!

    थम जाये दान वास्ते,उसे हात कहो नहीं..!!

    जिसमे नही हो पानी,

    उसे हौद कहो नहीं..!

    पुकार सुने जो थमे,

    उसे पाँव कहो नहीं..!!

    कुएँ से निकले रेती,उसे मोठ कहो नहीं..!

    जो खाये खुद के लिये,उसे पेट कहो नहीं..!!

    जान सके ना कान्हा को,उसे गाय कहो नहीं..!

    दिल ना पसीजे जिस्का,उसको माई कहो नहीं..!!

    अरे, रास्ते की डोर को,कभी साँप कहो नहीं..!

    बेचे खुद की बिटीया,उसे बाप कहो नहीं..!!

    दुध पे आये फफुंदी,

    उसे धृत कहो नहीं..!

    जिसमें ममता ना हो ,उसे मात कहो नहीं..!!

    ईमान जो गया भूल,उसे सच्चा कहो नहीं..!जन्मदाता को जो भूल,उसे बच्चा कहो नहीं..!!

    जिसमें ना हो भावना,उसे भक्ती कहो नहीं..!जागृत नहीं हो सका,उसे शक्ती कहो नहीं..!!

  • 5. आला पह्यला पाऊस
  • (मूळ मराठी कविता)

    आला पह्यला पाऊस,

    शिपडली भुई सारी..!

    धरत्रीचा परमय,

    माझं मन गेलं भरी..!!

    आला पाऊस पाऊस,

    आतां सरीवर सरी..!

    शेतं शिवारं भिजले,

    नदी नाले गेले भरी..!!

    आला पाऊस पाऊस,

    आतां धूमधडाख्यानं..!

    घरं लागले गयाले,

    खारी गेली वाहीसन..!!

    आला पाऊस पाऊस,

    आला लल्करी ठोकत..!

    पोरं निंघाले भिजत,

    दारीं चिल्लाया मारत..!!

    आला पाऊस पाऊस,

    गडगडाट करत..!

    धडधड करे छाती,

    पोरं दडाले घरांत..!!

    आतां उगूं दे रे शेतं,

    आला पाऊस पाऊस..!

    वर्हे येऊं दे रे रोपं,

    आतां फिटली हाऊस..!!

    येतां पाऊस पाऊस,

    पावसाची लागे झडी..!

    आतां खा रे वडे भजे,

    घरांमधी बसा दडी..!!

    देवा, पाऊस पाऊस,

    तुझ्या डोयांतले आंस..!

    देवा, तुझा रे हारास,

    जीवा, तुझी रे मिरास..!!

    हिन्दी अनुवाद

    छंद प्रकार : अष्टाक्षरी

  • 6. दिख पडी अब वर्षा..!
  • दिख पडी अब वर्षा,

    भीग गई जमीं सारी..!इस धरा के प्यार में,मेरा मन हुआ भारी..!!

    आयी बरखा बरखा,लगी झडी पर झडी..!खेत खलिहान भीगे,

    नदी नाले गये भरी..!!

    आयी बरखा बरखा,

    अब धुमधडाके से..!छत लगी टपकने,छज्जा टपका ऐसे..!!

    आयी बरखा बरखा,

    दे रही है ललकारी..!बच्चे निकले भीगते,द्वार पर चिल्ला चिल्ली..!!

    आयी बरखा बरखा,

    ये गडगडाते हुए..!

    धडधड करे छाती,बच्चे भागे छुपे हुए..!!

    अब उगने दे खेत,

    आ ही गई वर्षा वर्षा..!उपर आने दे रोप,पुरी हुई सारी मंशा..!!

    आयी बरखा बरखा,

    बारिश की लगी झडी..!खाओ रे दाल पकौडी,आओ बैठो छोटी बडी..!!

    हे भगवान ये वर्षा,

    आँसु की बुँदे तुम्हारी..!

    है रंगसाज़ तुम्हारा,हम आपके आभारी..!!

  • 7. राजा शेतकरी
  • (मूळ मराठी कविता)

    जसा बोल्यले कर्रय,

    तसा कामाले करारी..!सभावानं मन मोका,असोद्याचा शेतकरी..!!

    कारामधी रोखठोक,नही उसनउधारी..!दोन देये दोन घेये,असा राजा शेतकरी..!!

    असा राजा शेतकरी,चालला रे आढवनी..!देखा त्याच्या पायाखाले,काटे गेले वाकसनी..!!

    बोरू चाले कुरू कुरू,तश्या पाट्या पेनाशिली..!पोर्‍हं निंघाले शिक्याले,कधीमधी टांगटोली..!!

    हाया समोरची शाया,पोर्हं शायीतून आले..!

    हुंदडत हायाकडे,ढोरं पान्यावर गेले..!!

    अरे असोद्याची शाया,

    पोर्हं शंबर शंबर..!शायामधी भारी शाया,तिचा पह्यला नंबर..!!

    इमानानं शिकाळती,तठी 'आबा' मायबाप..!देती अवघ्याले इद्या,

    भरीभरीसनी माप..!!

    हिन्दी अनुवाद

    छंद प्रकार : अष्टाक्षरी

  • 9. किसान राजा
  • बोल बडे है उसके,

    काम करे वह भारी..!स्वभाव से मनमौजी,किसान जसोदा का जी..!!

    हिसाब में रोख-ठोक,नहीं कोई उधारी जी..!दो आने दे, दो आने ले,ऐसा वो राजा किसान..!!

    ऐसा वो राजा किसान,चला जा रहा वो देखो..!पाँव तले काँटे सारे,दबा जा रहा वो देखो..!!

    खग के समान चले,साथ ले चॉक सलेटी..!बच्चे जा रहे पढने,बात बाते मौज मस्ती..!!

    है सामने वह शाला,लौटे बच्चे घरो घरी..!ढुँढे माँ की गोद प्यारी,

    पानी पी रहे मवेशी..!!

    अरे जसोदा की शाला,बच्चे भर भर कर..!

    शाला में शाला लगता,

    उस्का पहला नंबर..!!

    जी लगाकर पढाते,हमारे सबके ‘आबा’..!देते वे सबको विद्या,वहाँ मन लगा कर..!!

    ***

    मूल रचनाकार :

    स्व. बहिणाबाई चौधरी

    मराठी अनुवादक :

    मनीष गोडे

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