आइये ‘सरकार’ को हम बाँट लें
हम लोगो की खूबी है कि हम. मुद्दों को, लोगों को, सिद्धांतों को, सुविधाओं को जाति-धर्म, भाषा, समाज. या लोकतंत्र को अपनी सुविधानुसार, आपस में आपस में बाँट लेते हैं |
बिना बांटे हमें शर्म सी आती है
‘कोई क्या कहेगा’, वाली सोच से घिर जाते हैं |
नहीं बाटने वाली चीजे भी भगवान ने बनाई है वो है ‘उपर की आमदनी’| इस आद्रिश आमदनी को लोग सीधे – सीधे देख तो नहीं पाते, केवल अनुमान लगाते रहते हैं | रहन-सहन में एकाएक बदलाव, हाव-भाव में रईसी झलक, आस-पास के लोगो को चौकन्ना करने के लिए काफी होता है | लोग इंहे देख के बडबडाते रहते हैं, देखो अकेले-अकेले कैसे खा रहा है, डकार; लेने का नाम भी नही लेता है | क्या ज़माना है ?
बैसे, हम खाने पीने के मामले में हेल्दी सीजन का इंतिजार करते हैं | इस मामले में’बसंत-बहार’ से बेहरत ऋतु हमें कोई दूसरा पसंद नहीं |
‘बहार’ हमारे तरफ जनवरी से दस्तक दे डालती है | हमने ‘बहार’ को बाँट लिया है | एक सप्ताह पिकनिक सैर सपाटे का, अगले सप्ताह डागी-वागी शो, फिर फूलो की प्रदर्शिनी बगैरह | आम जन के लिए बहार यहीं तक बहार-इफेक्ट देती है |
आफिस में ‘बहार’ के फुल फ्लेज्ड दिन, मार्च के अंतिम सप्ताह में आते हैं, | पर्चेसिंग का मनमाना बुखार चढा रहता है | पर्चेसिंग का आफिसियल स्टाइल सब जगह प्राय: एक सा ही होता है |
प्राय:एक ही आदमी से तीन-तीन कोटेशन्स मंगवा कर, चाहे वो व्यवसायी गुड – तेल मूगफली बेचता हो, , फ्रिज, केलकुलेटर कागज, पेसिल, फाईल कव्हर, कंप्यूटर, फेक्स, फोटोकापी मशीन सब के आर्डर दे दिए जाते हैं |
खरीदी बाद आने वाले आडिट वालो की आखों के लिए, सुरमे का बंदोबस्त, फाईलो के चप्पे-चप्पे में किया जाता है |
बड़ा बाबू मातहत से पूछ लेता है, फंस तो नहीं रहे ना ? कर दें दस्तखत ?
यही सवाल, अधिकारी, बड़े बाबू से औपचारिकतावश पूछ लेता है ? फंस तो नहीं रहे कहीं ?
कर दें आर्डर पास?
सबको ‘बहार’ आने का, और शुभ-शुभ बिदा हो जाने की बिदाई पार्टी, आर्डर पाने वाला, ‘मान –मनव्वल रेट’ तय हो जाने के बाद गदगद हो के देता है |
इस साल ‘बहार’ आने का जश्न फीका सा रहा |
सबके चहरे लटके हुए से थे |
आचार-संहिता के चलते बड़े-बड़े प्रोजेक्ट और पर्चेस-सेल के डिसीजन पेंडिंग रहे |
चलो कोई बात नहीं..... अब की बार जून-जुलाई की बरसात में ‘आनंदोत्सव’ मनेगा | कोई देखने वाला भी नही रहेगा, सब नई-नई सरकार बनने –बनाने के फेर में लगे रहेंगे ?
वैसे बताए हुए, ‘बहार’ को बांटने का तजुर्बा हमारा कुछ ज्यादा हो गया है | मजा नही आता | या यूँ कहे बहार वाले खेल में अब दम नहीं रहा, सा लगता है |
वही टुटपूंजियागिरी अठ्ठनी लो, चव्वनी आगे खिसका दो | कुछ बड़ा खेला हो जावे तो मजा भी आवे |
हमने ठेके में पुल, सड़क, बाँध बिल्डिंग्स, सब तो बनाए हैं | सरकार ने कहा तो, आदिवासियों से, महीने भर में फटाफट तेंदूपत्ते बिनवा दिये | जंगल में जब जैसा कहा गया, वैसी साफ –सफाई में लगे रहे | खदानों में से सारा माल निकाल के रख दिया |
यहाँ भी बात वही,.. अठन्नी वाली ...| यानी चवन्नी रखो चवन्नी फेको |
सामने वाला, चवन्नी ले के जो आखे ततेरता है, उससे बडी कोफ्त होती है जनाब |
इनको साइड-लाइन करना हमें लगता है, ’टपोरी दुनिया के लोकतंत्र’ के लिए बेहद जरूरी है | समय-समय पे सब को उनकी औकात दिखाते रहने से लेंन-देंन वाली दुनिया के पहिये घूमते रहते हैं वरना....?
हमें इंतिजार है कि कब वोटिग मशीन्स में बंद परिणाम खुले?
दो-चार लोग जो हमारे पे-रोल में हैं अगर जीत गए तो हम सरकार बनने –बनाने में, पर्दे के पीछे वाला रोल निभा सकते हैं |
आप सब को मालुम है, कटपुतली सी एम, आजकल जगह-जगह पाए जाते हैं |
एक, अपने इधर भी बनते, चलते-फिरते, देखने की बरसो की ख्वाहिश है |
इसी ख्वाहिश के चलते हमने पैसा पानी की तरह, अपने’घोडो-गदहों’ पे लगाया-बहाया है |
चुनाव जीते हुए लोग तो, नर-नारायण केटीगरी के हो जाते हैं| हाथ लगाने नही देते |
उनका भाव आसमान छूता है | उनके खरीदे-बेचे जाने तक तो, कोई शपथ ले के राजभवन से वापिस आते मिलता है |
अपनी योजना है कि, कठपुतली सी एम् के भरोसे हम ठेके की दुनिया के बेताज बादशाह हो जायें |
यहा का गणित ही दूसरा है | समझो, ग्यारह कमाओ, एक रखो दस पास आन करो |
इस गणित में भी अलग, अपना मजा है| लेने वाले के ‘दस’ में चूना लगाने की गुंजाइश बनी रहती है, क्यों कि उनको हजार हाथो का परसा खाने को मिलता है | वो परवाह नहीं करते किसने कितना दिया, ....?कितना कम दिया ?
मुझे लगता है अच्छे दिन आने वाले हैं |
इस स्टेज में अगर सरकार एक की बन गई तो खूब मनमानी होगी| यहाँ दो ‘कमिया’ लगाओ | सरकार को बाटो, यही राजनीति है |
अपने गनपत राव या रामखिलावन दोनों में से किसी एक को, सी एम, दूसरे को डेपुटी सी एम बना देगे| काम चल जाएगा ...?
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ये क्या....?
लोग मेरी कालर पकड़ कर जुतिया रहे हैं, लात –घूसो से बचने के लिए मैने हाथ –पैर जो मारे तो पत्नी की पीठ में धमा-धम पड़ा गया | वो हडबडा के उठ बैठी, मुझे झिझोड के जगाया |
बोली; आपको ये आजकल क्या हो गया है | दिन-रात, सोते – जागते पालिटिक्स,,,, ?
ज्यादा टी.वी तो मत देखा करो....|
मैंने चादर खीच के मुह ढक लिया ...|
मेरे देखे सपने का ज्योतिषफल, आप में से अगर कोई बता सके तो मेहरबानी होगी |
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सुशील यादव