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प्रभु मेरे अवगुण

प्रभु मोरे अवगुण ....

पहले जमाने में प्रभु से सीधे संवाद का न जाने कौन सा यंत्र, मन्त्र, तन्त्र था जो डाइरेक्ट 'डीलिंग' और 'डायलिग' का बन्दोबस्त हो जाता था|

”इस रुट की सभी लाइने व्यस्त है”, जैसा वाकया अथवा बोल ,केवल धाकड़ किस्म के अधर्मियों के लिए यदा-कदा सुनने को मिल जाए तो बात अलग होती थी |

मिलावट करने वाला बनिया, सूद में जमीन हड़पने वाला साहूकार, जब शुद्ध देशी घी के दिए, चन्दन की मधुबाला छाप अगरबत्ती और भारी भरकम घंटी या सामूहिक तौर पर फेमली के साथ घंटा बजवा कर, आरती करता था, तो भगवान को गदगद होने का भरपूर माहौल मिल जाता था |

पुराने बिल्डर्स और ठेकेदारों की जमात उस जमाने में भ्रष्टाचार नहीं जानते थे तभी उनकी बनाई इमारतें और पुल के 'पाए'और 'नीव' आज तक हिले नहीं ,इसलिए उन सभी को इस चर्चा में नहीं रखा जा रहा है ।

हाँ तो बात हो रही थी सूदखोर साहूकार और मिलावटी मधुबाला छाप अगरबत्ती जलाने वाले बनियों की ,

इनके लिए प्रभु स्वयं अदृश्य रूप से सधने की स्तिथि में आ जाते थे | वे अनुरागी को बता भी देते थे, वत्स मै तुम्हारी विधी विधान से की गई पूजा पाठ 'सध' गया हूँ। तेरे बिना मागे ही मनोकामनाओं का मै सदैव ख्याल रखूंगा |

भक्त की अपने प्रति आसक्ति की पराकाष्ठा को देख के, खुद को प्रसन्न करने के शार्टकट नुस्खे भी बता देने का रिवाज वे पालते थे ।

वे कभी सपने में या कभी जाग्रत अवस्था में ही, किसी वास्तु दोष या किसी 'बलि' इच्छा की तरफ इशारा करके अंतर्ध्यान हो जाते थे |

इसके बाद, आस्था में सराबोर हुए भक्त का रोल आरंभ होता था । ग्यानी साधू संतों की जमात का बुलावा - जमवाड़ा जजमान के घर होता ।इसमें सेठ- सेठानी, जी जान से, सेठ जी द्वारा प्रभु को दिए वचन को निभाने में लगे नजर आते |

प्रभु के अनेक भक्तगण के वंश को, विरासत सम्हालने वाला वारिस, इसी कर्म-कांडों के मार्फत मिलने के किस्से यदा-कदा आपने भी कहीं सुना होगा ।

वैसे इन लक्ष्मी पुत्रों को, सिवाय अपनी दूकान खोलने-समेटने के अलावा दूसरा कोई काम सूझता भी तो नहीं ?

प्रभु खुशी-खुशी उनके अवगुण चित्त न धरते थे ,,,,?

आजकल इनकम टेक्स रिटर्न जमा करने वाले, कृषि-आय से प्राप्त धन, जिसमे छूट की अनंत सीमा है, लोग बेशुमार रकम पाना दिखा देते हैं । दस- पचास एकड़ जमीन में इतना फायदा बताते हैं कि यदि इनका पूरा कुनबा कमाने लग जाए तो वो बात नहीं होगी । यूँ लगता है कि केवल इनके खेतों को चौबीसों घंटों बिजली मिलती रही, बारिश का समूचा पानी इनके खेतों की फसल को सड़ने की हद तक पलोते रहा ।

पैसो की महिमा है, चंद पैसे "प्रभु मेरे अवगुण" के नाम चित्त न धरने के लिए आई टी अधिकारियों को मिल जाता है । खेल खतम ।

हमारे देश में, आप छोटी- छोटी भूलो,गलतियों के लिए मसलन बिना लाइसेंस फैक्ट्री चलाने, ड्राइविंग करने, सीट बेल्ट न बाँधने, हेलमेट न पहनने, बिना टिकट ट्रेन में चलने के एक्सक्यूस, चित्त न धरने के चढ़ावे के साथ, साधिकार मांग सकते हैं, और ये सब देने के चलन में भी है ।

इधर, आधुनिक आका रूपी 'प्रभुओ' के आचरण में आमूलचूल परिवर्तन का दौर शुरू हो गया है |

वे आपके आचरण को, ‘चित्त में धरने’ के लिए न जाने क्यों खाम्ह्खाह लालायित दीखने लग गए हैं ....? आप जरा चूको तो सही ...|

आपके 'अवगुण की पोटली' कोई छुडा या चुरा ले जाएगा धीरे-धीरे ये आशंका पब्लिक लाइफ में जीने वालों को रात - रात सोने नहीं देती |

अगर आप अच्छे ओहदेदार हैं या आपकी हाई पालिटिकल वेल्यु है तो ऐसी 'पोटलियों' की मार्केट-वेल्यु भी बहुत ज्यादा होती है |

इस अवगुण पोटली में गालिबन यूँ कि,

"बहुत शोर सुनते थे पहलु में दिल का

काटा तो कतरा ऐ खू निकला"

जैसा उत्साह को अधमरा कर देने वाली बात नहीं होती ....।

अपने 'फील्ड' में एक पहुचे हुए 'करियर वाले की पोटली में' दो चार मर्डर की फाइल ,चंद वीडियो क्लिप, आडियो की आवाज, जिसके विरोध में वो मुकदमा लड रहा होता है कि ये आवाज उसकी नहीं है । कुछ नौकरी के लिए चक्कर मार के थकी कन्याओं की लुटी तस्वीरे

,ठेकेदार, बिल्डर की मोबाइल नम्बर की लिस्ट और लेन -देन की छोटी-छोटी डायरियां होती हैं।किसको कब कहाँ फ़ायदा पहुचाया का कोड में लिखा लेखा- जोखा होता है ।

कोइ पहुचा हुआ एक्स मिनिस्टर या अधिकारी हुआ तो विदेश धरती पे छिपाए बैंक खातों के पासवर्ड मिल जाते हैं |

इनसे मुद्दे की बात उगलवाना आर टी आई में एप्लीकेशन देकर जानकारी जमा करने जितना आसान नहीं होता । जानकारी जमा करने वालों को नानी याद आ जाती है ।किस आफिस में किसकी, किसके साथ, कब डील हो रही है ।ये इन्फार्मेशन देने के लिए, कौन उन्हें घास डाल सकता है, जैसे कई प्रश्न घिरे रहते हैं ।

-'जान - जोखम' का पूरा पूरा खतरा रहता है । ये भाई लोग फिल्मो में दिखाए जाने वाले माफियाओं की तरह बेपरवाह और बुद्धू नहीं होते।

-और ये बात भी नहीं होती की फिल्मो की तरह एक के बाद एक, आकर नायक से लड़ें ।सब साथ ही खात्मा करने पर तुल जाते हैं । उनके शूटर हथियार भी बेझिझक चला देने के माहिर होते हैं ।

-'गुनी-जन' के अवगुणों को बटोरने लालायित लोगों की कोई कमी नहीं | विदेशों में इन क्रियाकलापों में आधुनिक उपक्रम और उपकरण, जी जान से बखूबी साथ देने लगा हैं | कई देशों के प्रभु लोग बाकायदा अलकायदा जैसी संस्था को ठेके पर इस काम को उठाऐ रहते हैं | डॉन भाई, हमें अमुक-अमुक का कच्चा चिटठा चाहिए | सुपारी वगैरह बाद में तय कर लेंगे | हमें आगामी इलेक्शन के लिए तैयार करवा दो बस ....|

अपने इधर यही काम मुन्ना या बजरंगी भाई, नाम बदल कर करते हैं |

गुनी जनों के इतने अवगुण जब आम पडौसियों को फूटी आखों सुहाने की हदे पार करने लगती है या जब ये किरकिरी की हद तक चुभने लग जाती हैं तब इनके अवगुणों को चित्त में धरने की मुहीम सरकारी स्तर पर भी होना शुरू हो जाती है ।

गौर करने वाली बात ये है कि इधर के सरकारी प्रभु दिनों-दिन ‘चतुरे’ होते गए हैं डायरेक्ट इन्वाल्व होने में खतरा महसूस करते हैं, सो वे बीच में ट्रायल बतौर मीडिया को घुसेड देते हैं |मीडिया को वे इशारों में समझा देते हैं कि, देखो ये बेपर के उड़ने वालों को जमीन पर पटकना है कुछ इन्तिजाम करो ....|मीडिया वाले इशारों में बात समझने में बरसों से आदी हैं, वे तुरंत प्रायोजित रूप से पेनल बना ,किसी भी ईसू का लाइव डिस्कशन करवा कर,आग- घी दोनों का इन्तिजाम कर माहौल तैयार कर देते हैं |

आप गोमांस ,बलात्कार ठगी ,देशद्रोह इत्यादि पर इनसे घंटों बात करवा लें |जो ये चाहते हैं वही जायज ठहर जाएगा ये उनका दावा होता है |इनका बस चले तो बलात्कारी साधू को साफ बचा ले जाएँ ।ब्रांड वाली बड़ी कम्पनी के माल को जहर की हद तक बता कर मार्केट में किसी संत के प्रोडक्ट को परदे के पीछे से बढ़ावा देने का अपना मकसद पूरा कर लेते हैं ।

जब प्रभुओं को ये मतलब निकलते दिखता है कि फला-फला की बात 'चित्त में धरने' लायक बन गई है तो वे ‘धर’ लेते हैं|उनकी कोशिश ये भी होती है कि उनको कानूनी रूप से भी धर लिया जावे ....?

किसी गुजरे जमाने के महापुरुष ये कहते पाए गए कि ,जुबानी जमा-खर्च से अगर मुल्क बंटने लग जाता, तो सन सैतालिस के बाद न जाने इसकी कितनी सरहद होती ?

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