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ज़हर

मिश्राजी आज बड़े खुश थे। उनके लड़के का मेडिकल में एडमिशन हो गया था। लड़के ने बड़ी मेहनत भी की थी। अब मिश्राजी बड़े निश्चिन्त थे। ४ महीने पहले बड़ी लड़की की शादी भी हो गई थी। अब लड़के का भी करियर बन गया था। जब से वो इस नए घर में आये हैं, उनकी जीवन की गाडी पटरी पर आती गई हैं। पुराने घर में १२ साल काटे पर वहाँ सिर्फ माँ बाप की बीमारियां और निधन जैसी दुःख भरी घटनाये ही घटी। पुराना घर ऑफिस से भी दूर था, तो वो घर को ज्यादा समय भी नहीं दे पाते थे। लड़की की शादी के लिए उस घर में कितने लड़के देखने आये पर किसी ने उसे पसंद ही नहीं किया, पर नए घर में सिर्फ ३ लड़के देखने पड़े, खानदान भी अच्छा मिला।

दिल्ली जैसे महानगर में अच्छी जगह और मनचाहा घर मिलना मुश्किल होता है। वो तो भला हो शर्मा जी का जो उन्होंने इतना अच्छा घर वाज़िब किराये पर मिश्रा जी को दे दिया। शर्माजी मिश्राजी के ही दफ्तर में उनके बॉस थे। लेकिन शर्माजी का स्वाभाव बड़ा मिलनसार था और वो मिश्राजी को मित्र की तरह मानते थे। दोनों परिवारों में आना जाना भी था। दोनों की पत्नियों की भी आपस में खूब बनती थी। शर्माजी की २ बेटियां थी, उसमे से १ की दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी, दूसरी पढाई पूरी कर चुकी थी और शर्मा जी उसके लिए लड़का ढूंढ रहे थे। शर्मा जी नौकरी से रिटायर हुए और उन्हें अपना घर किराये पर देकर अपने गाँव में जाकर रहना था। उन्हें मिश्राजी से अच्छा किरायेदार नहीं मिल सकता था। चाहे दोस्ती कितनी भी गहरी हो किरायेदारी की सारी औपचारिकताएं बिलकुल कानूनन पूरी की गई। लेकिन दोस्ती फिर भी वैसे ही बनी रही। शर्मा जी ३ महीने में एकबार अपनी पत्नी के साथ आते, १ दिन मिश्राजी के घर में ही गुजारते और ३ महीने का किराया लेकर, घर का कोई काम करवाना हो तो वो करवा कर चले जाते।

मिश्राजी के मन में कई बार आया की वो इस घर को बेचने के लिए शर्माजी से कहें। लेकिन उन्होंने ये बात कभी कही नहीं क्योंकि मौजूदा भाव के मुताबिक इस घर की कीमत २० लाख के आस पास होती जो मिश्राजी की हैसियत के बाहर था। वो ज्यादा से ज्यादा १२ लाख खर्च कर सकते थे और उन्हें अपने बेटे की पढाई के लिए भी पैसा बचा के रखना था। वो इस घर में किराये से रह कर ही खुश थे। उनके मुताबिक यह घर उनके लिए बड़ा शुभ था

उसी दिन शाम को शर्मा जी और उनकी पत्नी किराया लेने आने वाले थे। मिश्रा जी भी उनका इंतज़ार कर रहे थे की उन्हें लड़के की मेडिकल में एडमिशन की खुश खबर सुनाई जाए। शाम को शर्मा जी आये पर इस बार वो अकेले ही थे। चेहरे से भी बड़े चिंतित लग रहे थे। मिश्रा जी ने उन्हें अपने बेटे की मेडिकल की खबर सुनाई तो वो औपचारिकता निभाते हुए थोड़ा सा हँसे और फिर उदास हो गए। फिर मिश्रा जी ने उनसे पूछ ही लिया।

"शर्मा जी क्या बात है, आप बड़े उदास लग रहे हैं ?"

"हाँ मिश्रा बड़ी मुश्किल में हूँ और तुम्हें भी थोड़ी तकलीफ देने ही आया हूँ" शर्माजी ने कहा।

"हाँ हाँ ज़रूर उसमे तकलीफ कैसी? कहिये क्या हुआ?"

"क्या बताऊँ मिश्रा मेरी लड़की नीतू को पेट का कैंसर हो गया है। बड़ी लड़की भी कम उम्र में हमें छोड़ कर चली गयी थी। और अब कहीं ये भी.... " शर्मा जी की आँखों में आंसू आ गए।

मिश्रा जी ने उन्हें पानी दिया और थोड़ा धाडस बंधाते हुए कहा

"नहीं शर्मा जी ऐसा कुछ नहीं होगा, आप धीरज रखे, कौनसे स्टेज पर है कैंसर ?"

"अभी सेकंड स्टेज है, केमोथेरेपी और दूसरे इलाज शुरू करने वाले हैं, डॉक्टर का कहना है की अगर ठीक से और समय पर इलाज करवाया तो ठीक होने की उम्मीद ज्यादा है।"

"हाँ आप उसे दिल्ली लेकर आईये, इसी घर में रहिये। हम सब आपके साथ हैं, उसका अच्छा इलाज करवाएंगे। "

"उसका इलाज तो उसके मामा के शहर ग्वालियर में हो रहा है, वहां हमारे परिचय के डॉक्टर भी है, पर यहाँ तुम्हे एक दूसरी तक़लीफ़ देने आया हूँ। "

"कहिये किसी दवा की व्यवस्था या किसी और डॉक्टर की जानकारी चाहिए क्या सेकंड ओपिनियन के लिए ?"

"नहीं वो बात नहीं, कैंसर के इलाज के लिए खर्चा बहुत होगा और मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं, मैं यह घर बेचना चाहता हूँ इसलिए तुम्हे ये घर छोड़ना पड़ेगा। मुझे पता है तुम्हे ये घर कितना पसंद है लेकिन मेरी मजबूरी तुम समझ सकते हो। "

मिश्राजी को एकदम झटका लगा। शर्माजी ने उनसे उनकी बड़ी प्रिय चीज़ ही मांग ली थी।

"मिश्रा जी, इतनी जल्दी नहीं है १ महीने में भी अगर आप घर छोड़े तो चलेगा।" शर्मा जी मिश्रा जी के हाव भाव समझते हुए कहने लगे।

मिश्रा जी ने अपने आपको उस वक्त सम्हाला और कहा

"नहीं शर्मा जी, कोई बात नहीं आपकी जरुरत ही ऐसी है। वैसे कितनी कीमत चाहिए आपको इस घर की? १०-१२ लाख तो मैं भी दे सकता हूँ"

"घर की कीमत तो २५ लाख है लेकिन चूँकि मुझे जल्दी में बेचना है तो २० लाख तक तो मिलना ही चाहिए, मिश्रा मै तुमसे मोल भाव नहीं करना चाहता। अगर मुझे १ महीने में कोई और ग्राहक नहीं मिला जो १३ लाख से ऊपर देने को तैयार हो तो मैं घर तुम्हे १२ लाख में दे दूंगा।"

"ठीक है शर्मा जी। आप आपकी बड़ी बेटी के बारे में बता रहे थे, इससे पहले आपने कभी उसका जिक्र नहीं किया।" मिश्रा जी विषय बदलने के लिए बोले।

"क्या कहूं मिश्रा, ९ साल पहले की बात है, १९ साल की थी तब वो। एक दिन बेचारी बीमार पड़ी, साधारण सा बुखार था पर दवाई में मिलावट थी या कोई साइड इफ़ेक्ट हुआ और पूरे शरीर में जहर फ़ैल गया, रात को नींद में ही चल बसी। "

"माफ़ कीजीये शर्मा जी मैंने आपको फिर से वो सब याद दिलाया।"

" कोई बात नहीं मिश्रा। हाँ एक बात और, मेरी बेटी को कैंसर हुआ है ये किसी को बताना नहीं। "

"निश्चिन्त रहिये शर्मा जी"

फिर इधर उधर की थोड़ी और बातें हुयी और शर्माजी वापस चले गए।

उसके बाद मिश्राजी पूरी तरह बैचेन हो गए। क्या किसी तरह ये घर उन्हें नहीं मिल सकता? कानूनन सारी औपचारिकता पूरी की गई है इसलिए घर न छोड़ने का दावा कर नहीं सकते। दूसरे वो शर्मा जी से किसी तरह का झगड़ा भी नहीं चाहते थे। मिश्रा जी का दिमाग चलना शुरू हुआ किसी तरह शर्मा जी को १२ लाख में घर बेचने के लिए तैयार करना पड़ेगा। क्या यह संभव नहीं की इस घर के लिए १३ लाख से ऊपर देने वाला कोई ग्राहक ही न आये ? कुछ भी करके ये करना होगा। लेकिन कैसे?

उसके दूसरे ही दिन मिश्राजी और उनके बेटे को ज़रूरी काम के लिए १ दिन के लिए गाँव जाना पड़ा। उनकी पत्नी सरोज चूँकि अकेली थी इसलिए उसने अपने पड़ोस में रहने वाली गिरिजा को अपने घर रात को साथ रहने के लिए बुला लिया। मिश्रा जी के बेटे के कमरे में गिरिजा की सोने की व्यवस्था की गयी। रात को सोने से पहले गपशप करते हुए सरोज ने गिरिजा को कहा।

"गिरिजा जब शर्मा जी की बेटी की जहर से मौत हुई तब तू यहीं रहती थी क्या?"

"नहीं मैं तो अभी ३ साल पहले ही आयी हूँ, पर क्या शर्मा की बेटी ने ज़हर खाया था? "

"ज़हर खाया या ज़हर दिया गया ये मुझे भी नहीं पता पर मुझे किसी ने बताया की यहीं उसकी मौत हुई थी। " सरोज ने आँखें बड़ी बड़ी करते हुए कहा।

रात को गपशप करने के बाद दोनों सोने के लिए अलग अलग कमरों में चले गए। रात को २ बजे सरोज के कमरे का दरवाजा खटखटाया। सरोज ने खोला तो बाहर गिरिजा खड़ी थी। सरोज का तीर सही निशाने पर लगा था।

"क्या हुआ गिरिजा ?"

"मैं उस कमरे में नहीं सोऊंगी। " गिरिजा डरती हुई बोली।

"क्यों क्या हुआ?"

"रात को मेरी नींद खुली तो मैंने उस कमरे में किसी के सिसक सिसक के रोने की आवाज सुनी। फिर बत्ती जलाई तो दिवार पर नीले पंजो के ५ निशान थे। वहां शर्मा जी की लड़की का भूत रहता है।"

"क्या बात करती हो गिरिजा हम १ साल से रह रहे हैं यहाँ कोई नहीं है, चलो चल कर देखते हैं।" सरोज ने कहा।

कमरे में जाने पर वहां न आवाजें थी न कोई पंजो के निशान। लेकिन ये देख कर गिरिजा और डर गयी।

"पंजों के निशान अभी यहीं थे मैं सच कहती हूँ" गिरिजा ने कांपती आवाज में कहा।

"अच्छा ठीक है तू आज मेरे कमरे में ही सो जा" कह कर सरोज उसे अपने कमरे में ले गयी.

थोड़ी देर बाद जिस कमरे में गिरिजा सोयी थी वहां से मिश्रा जी का लड़का बाहर निकला और दरवाजा खोल कर घर से बाहर चला गया। उनका लड़का उसी कमरे में छुप के बैठा था। सिसकने की आवाजें और दीवालों पर नीले पंजो का बनना और मिटना ये सब उसी की करतूत थी।

सुबह ये अफवाह जंगल की आग की तरह फ़ैल गई। बात शर्मा जी के घर में उनकी लड़की का भूत है से लेकर शुरू हुई और फिर लोगों ने उस पर और मिर्च मसाला लगाया।

कुछ ने कहा उसका किसी के साथ चक्कर था और शर्मा जी ने उसके साथ शादी को मना किया तो उसने आत्महत्या कर ली। कुछ ने तो यहाँ तक कह दिया की वो गर्भवती थी और समाज के डर से उसे रस्ते से हटाया गया। और अब उसका और उसके अजन्मे बेटे का भूत उस घर पर मंडरा रहा है।

बेचारी निरपराध लड़की जो दवाई से कुप्रभाव से मरी थी उसके चरित्र की धज्जियाँ उड़ गयी।

उसके तुरंत ही बाद जब ये खबर आयी की शर्माजी अपना घर बेचना चाहते हैं, तब लोगों को भूत की बात का यकीन होने लगा। अचानक क्या हुआ की शर्मा जी को अपना घर बेचना पड़ा। ज़रूर घर में भूत है और इसलिए शर्माजी जल्द से जल्द घर बेचना चाहते हैं। मिश्राजी जो शर्मा जी के बहुत निकट माने जाते थे भूत की बातों का खंडन करते और इसके कारण बात और बढ़ती जाती क्योंकि लोगों को लगता की मिश्राजी शर्माजी का घर बिकवाने के झूठ बोल रहे हैं। शायद घर बिकने के बाद मिश्राजी को कुछ पैसे भी मिलने वाले हों।मिश्राजी इस अफवाह की आग में ऐसे फूंक लगा रहे की लोगों को लगे की वो आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन असल में आग और बढ़ती जा रही थी।

फिर वही हुआ जो मिश्राजी चाहते थे, ३-४ हफ्तों में घर को खरीदने के लिए कोई ज्यादा खरीददार नहीं मिले। जो भी घर में रूचि दिखता उसे सबसे पहले उस घर के भूत के बारे में पता चलता।

फिर भी एक खरीददार जिसे ये भूत की अफवाह पता थी घर का सौदा २२ लाख में करने को राजी हो गया। शर्मा जी का मिश्राजी पर विश्वास था इसलिए उन्होंने उन्हें अपना घर दिखाने की ज़िम्मेदारी दी। मिश्राजी ने भी घर दिखने का सारा इंतज़ाम किया था। जब खरीददार घर देखने आया उस कमरे को बंद ही रखा गया। मिश्राजी ने खरीददार को बाकि का सारा घर दिखाया और घर की तारीफ के बड़े पुल बांधे। आखिर में जब खरीददार ने वो कमरा देखना चाहा, तो मिश्राजी ने बड़ी चालाकी से डरे हुए हाव भाव बनाते हुए कहा "हाँ हाँ क्यों नहीं ज़रूर। "

फिर उनकी पत्नी ने कमरे के ताले की चाबी ढूंढ़ने में काफी समय लगाया जिससे खरीददार को लगा की ये कमरा बंद ही रहता है। फिर कमरे के अंदर जाने के बाद खरीददार ने देखा की ये कमरा अँधियारा ही है, दरवाजे पर निम्बू और मिर्ची लटकी हुई थी। अंदर से भभूति की गंध आ रही थी। जब खरीददार ने कमरे की अलमारी खोली तो उन्हें १ गुड़िया मिली जो पूरी तरह से नीली पड़ी हुई थी। खरीददार कुछ बोले बिना उस कमरे से बाहर आया। मिश्राजी ने बड़ी चतुराई से उन्हें बैठने और चाय पीने को कहा। लेकिन खरीददार डरा हुआ था और तुरंत ही घर के बाहर चला गया।

दूसरे दिन उस खरीददार ने शर्मा जी को कहकर सौदा रद्द कर दिया। शर्माजी उसी शाम आये तब तक कमरा सामान्य कर दिया गया था। उन्होंने मिश्रा जी को सौदा रद्द होने की बाद बताई और उनसे इस अफवाह के बारे में पूछा। इस पर मिश्राजी ने कहा

"शर्मा जी हम तो कह कह के थक गए हैं की यहाँ कोई भूत नहीं। लेकिन पता नहीं लोग कैसी कैसी बातें बना रहे हैं आप कहें तो मैं खुद चलता हूँ उस खरीददार के पास और उसे बताता हूँ की यहाँ कोई भूत नहीं है। "

"मिश्रा, तुमने सच में मेरे लिए बहुत कुछ किया है, लेकिन अब वो खरीददार के पास जाने से फायदा नहीं है, ये अफवाह इतनी जल्दी ठंडी नहीं होगी और मुझे तो पैसों की अभी जरुरत है। मेरा एक काम तुम कर सकते हो? ये घर तुम ही खरीद सकते हो १२ लाख में? "

"नहीं शर्मा जी अभी आप १-२ हफ्ते और रुक के देखिये, और खरीददार मिलेंगे" मिश्राजी ने चतुराई से कहा।

"नहीं मिश्रा मैं पहले ही परेशान हूँ और मुझे लड़की की तरफ ध्यान देना है इसलिए समय भी नहीं है। साथ ही इस घर को बेचते हुए मुझे मेरी लड़की के बारे में जो अफवाहें सुनने को मिली वो फिर से सुनने की मुझे में हिम्मत नहीं। कैसी अच्छी और सभ्य लड़की थी मेरी पर लोग उस पर क्या क्या इल्ज़ाम लगा रहे हैं। तुम मेरा ये काम कर दो घर तुम ही खरीद लो। चाहे तो ११ लाख ही दे देना। अभी तो लड़की का इलाज शुरू हो ही जायेगा, बाद में और पैसा लगा तो मैं मेरा पुश्तैनी मकान भी बेच दूंगा।

" लेकिन शर्मा जी जल्दी में तो मैं ज्यादा से ज्यादा १० लाख रुपये की व्यवस्था कर सकता हूँ वो भी FD तुड़वा कर और रिश्तेदारों से कर्ज़ा लेकर। १२ लाख के लिए मुझे लोन लेना पड़ेगा २-३ हफ्ते तो उसमे में भी लग जायेगा।"

"मिश्रा १० लाख ही दे दो। मुझे पता है तुम्हे FD तुड़वाने और रिश्तेदारों से कर्ज़ा मांगना अच्छा नहीं लगेगा लेकिन मेरे लिए इतना करो। "

"ठीक है मिश्रा जी मैं आपको कल ही पैसे देने की व्यवस्था करता हूँ, जल्द से जल्द कागज़ी कार्यवाही भी पूरी कर लेंगे"

"मिश्रा तुम बहुत अच्छे आदमी हूँ, समझ में नहीं आ रहा हूँ की तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ। मैं, एक बाप एक तरफ अपनी १ बेटी की जान बचाने की कोशिश में हूँ और दूसरी तरफ दूसरी बेटी की इज्जत बचने के लिए जूझ रहा हूँ। तुमने तो मेरे ऊपर बड़ा उपकार किया है।"

"उपकार कैसा शर्मा जी ये तो मेरा फ़र्ज़ था"

शर्मा जी धन्यवाद कह कर चले गए। मिश्राजी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गयी। क्या तिकड़म लगाई थी, २५ लाख का घर और १२ लाख भी नहीं १० लाख में मिलने वाला था। और तो और झूठ भी नहीं बोलना पड़ा, ना कोई झगड़ा करना पड़ा, बस थोड़ा सा नाटक। और तो और शर्मा जी के ऊपर एहसान भी हो गया।

१ हफ्ते के अंदर पैसे का लेन-देन और कागज़ी कार्यवाही पूरी हुई। मिश्राजी को उनका प्यारा, शुभ घर जो २५ लाख का था १० लाख में मिल गया। और ये सब संभव हुआ ज़हर की वजह से। ज़हर जिसने शर्मा जी की बड़ी बेटी की जान ली थी। लेकिन उससे भी ज्यादा यहाँ जो ज़हर, जो विष काम आया वो था मिश्राजी के मन में फैले लालच का ज़हर। उन्हें तो वो ज़हर नशा दे रहा था, विजय का नशा, अपनी चाल सफल होने का नशा, इतने शानदार घर के मालिक होने का नशा। इस नशे में उन्हें ना तो शर्मा जी की बड़ी बेटी के चरित्रहनन का पश्चाताप था और ना ही छोटी बेटी के इलाज में पैसे काम पड़ने का।

मिश्राजी ने घर खरीदा। गृहप्रवेश का शानदार जलसा हुआ जिसमे की उनकी बेटी और उसके ससुराल के लोग भी शामिल हुए। मिश्रा जी ने बड़े रौब के साथ सबकी आवभगत की। मिश्राजी तो मानो जैसे स्वर्ग में जी रहे थे। लड़के का मेडिकल का पहला साल भी शुरू हो गया। उसके दो ही महीने बाद एक रात उनका बेटा उसी कमरे में सो रहा था, की बाहर की खिड़की से एक जहरीला सांप कमरे के अंदर घुसा और धीरे धीरे उनके लड़के की तरफ बढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में लडके का शरीर नीला पड़ना शुरू हुआ और मुँह में से झाग निकलने लगा।

"मैंने नहीं कहा था उस घर में भूत है, पर सरोज और मिश्राजी मानते ही नहीं थे अब देखो उनका लड़का ही ज़हर से मर गया।" गिरिजा दूसरे दिन सबको बता रही थी

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