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एद्लू

एद्लु

उसका नाम तो एदल सिंह था लेकिन छोटी जाति का होने के कारण बड़ी जाति के सब लड़के उसे एद्लु कहते थे। एदल सिंह तो राजपूतों का नाम होता है, तेरा नाम कैसे हो सकता है तू एद्लु है और एद्लु ही बन कर रहना, यह संदेश उस छोटी जाति के बच्चे को बड़ी जात वाले लड़कों ने घेर कर सुनाया…

सभी लड़कों ने एदल सिंह को घेर रखा था और अपने स्कूल बैग उसके ऊपर लादे जा रहे थे…

छुट्टी हो चुकी थी, स्कूल के बाहर रास्ते में घर जाते समय बड़ी जात के सभी लड़के एक एक करके अपना बैग एदल सिंह के कंधो और गर्दन मे लटकाए जा रहे थे, उसके दोनों कंधे झुके जा रहे थे एवं गर्दन टेड़ी हुई जा रही थी, लेकिन एद्लु ना कुछ कह रहा था और ना ही कोई विरोध कर रहा था, छोटी जात का था ना, इसलिए वह समझता था कि अगर इन बड़ी जात वालों के सामने किसी भी तरह का विरोध किया तो ये उसे उस स्कूल मे ही नहीं पढ़ने देंगे, उसकी कोई सुनेगा भी नहीं, अतः वह चुपचाप सबके स्कूल बैग लादकर उनके घर पर छोडते हुए जाता था।

एक दिन विभा ने जब यह सब देखा तो उसने ऐतराज करते हुए कहा, “अरे भैय्या, क्या इसकी गर्दन ही तोड़ डालोगे? एदल सिंह तो तुम सब से छोटा है, कमजोर भी है फिर भी तुम क्यो लादे जा रहे हो इसे?” उन लड़कों में से एक बोला, “विभा तुम चुप रहो, तुम तो हमारी जात से हो, फिर भी इस छोटी जात वाले का पक्ष क्यो ले रही हो?”

एद्लु बोला, “विभा दीदी कोई बात नहीं, मैं कर लूँगा, अब तो मुझे इस सब की आदत पड़ गयी है, आप चिंता ना करें।”

एक दिन कब्बड़ी की टीम बनाई जा रही थी, एदल सिंह भी शामिल होने के लिए चला गया तो बड़ी जात के सभी लड़कों ने ऐतराज करते हुए कहा, “गुरु जी, इस एद्लु को तो कब्बड़ी की टीम से अलग ही रखना, हमारे में से तो कोई इसको पकड़ेगा नहीं, यह तो छोटी जात का है।” गुरु जी के लाख समझाने पर भी बड़ी जात वाले लड़के नहीं माने, ऊपर से यह शर्त और रख दी, “अगर एद्लु टीम में शामिल होगा तो हम सब अपना नाम वापस ले लेंगे।” हार कर मास्टर जी को एदल सिंह का नाम टीम से हटाना पड़ा और एदल सिंह मन मसोस कर रह गया....

स्कूल का नल खींच कर एदल सिंह सबको पानी पिलाता लेकिन उसके लिए कोई भी नल खींचने को तैयार नहीं होता, सब के सब यह कहकर भाग जाते कि हम इस छोटी जात वाले के लिए नल नहीं खींचेंगे और बेचारा एदल सिंह किसी तरह खुद ही नल खींच कर पानी पी लिया करता.....

उस दिन तो सभी बड़े लड़कों ने एदल सिंह को रास्ते में ही रोककर लात घूंसों से बहुत मारा था, उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि परीक्षा परिणाम में उसको प्रथम घोषित किया गया था, घोषित क्या वह प्रथम आया था और इसी का परिणाम कि लात घूंसों से उसकी आरती उतारी जा रही थी सभी बड़ी जाति वाले लड़कों ने उसे हिदायत दी कि आगे से ध्यान रखना तेरे नंबर किसी भी बड़ी जात वाले लड़के से ज्यादा नहीं आने चाहिए।

ऐसी सभी कठिनाइयों को पार करते हुए एदल सिंह पढ़ता रहा और आगे बढ़ता रहा मगर ऊंची जात वाले राजपूत लड़के जिनको अपनी जात पर घमंड था, जिन्हे अपनी जमीन जायदाद का गुमान था उनमे से कई लड़के पाँचवी से आगे ही नहीं पढ़ पाये, कुछ आठवीं में लटक गए और बाकी तो दसवीं में जो दो चार गए थे, फेल हो गए। उनके घर वालों ने उनकी शादी कर दी, बच्चे भी हो गए, खेती बाड़ी करने लगे और जो दसवीं में फेल हुए वे सिफ़ारिश या पैसे के ज़ोर पर चपरासी लग गए.....

उनमे से एक मंगल सिंह जो एदल सिंह को ज्यादा परेशान करता था जिला क्लेक्ट्रेट में चपरासी की नौकरी करता था, एदल सिंह सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में पास करते हुए कलेक्टर बन कर उसी कार्यालय में आ गया जहां पर मंगल सिंह चपरासी था.....

आज मंगल सिंह स्वयं को बहुत बौना महसूस कर रहा था लेकिन एदल सिंह के प्रति उसके तेवर अभी भी वैसे ही थे। एदल सिंह के मन में मंगल के प्रति कोई बैर भाव नहीं था लेकिन वह बड़ी सतर्कता से मंगल सिंह के साथ व्यवहार करता था.....

एक दिन जब एदल सिंह के कमरे में कोई न था, एदल सिंह भी अभी नहीं आया था, मंगल सिंह जाकर कलेक्टर वाली कुर्सी पर बैठ गया और स्वयं को कलेक्टर समझने लगा। तभी एदल सिंह अपने कार्यालय पहुंचा तो उसे यह सब देखकर आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि उसको तो इस सब की बहुत पहले से उम्मीद थी....

एदल सिंह ने बड़ी विनम्रता से मंगल सिंह को कुर्सी छोडने को कहा मगर वह तो उसको पहले की ही तरह गालियाँ देने लगा। एदल सिंह ने घंटी बजा कर, दो पुलिस वाले जो बाहर खड़े थे, उनको अंदर बुलाकर मंगल सिंह को वहाँ से ले जाकर हवालात में बंद करने के आदेश दिये, साथ ही नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश कर दिये....

जब मंगल सिंह को लगा कि बात बहुत बिगड़ गयी है तो घर से अपने बीवी बच्चों को बुलाकर एदल सिंह के पैरों में लेटकर गिड्गिड़ाने लगा, “साहब, इस बार क्षमा कर दो, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी।” तब एदल सिंह ने कहा, “मंगल सिंह, यह पद पढ़ कर हासिल किया जाता है इस पद पर पहुँचने के लिए विद्या देवी का बोझ खुद ढोना पड़ता है किसी दूसरे पर लाद कर विद्या नहीं पा सकते....

तुम सोचो कि मैं इस पद पर हूँ तो तुम्हें माफ कर भी दूंगा लेकिन अगर तुम इस पद पर होते और यह गलती मैंने की होती तो शायद अब तक तुम मेरा मुंह काला करके मेरे गले में जूतों का हार डाल कर पूरी कलेक्ट्रेट में मेरा जुलूस निकाल कर अपनी विजय का जश्न मना रहे होते.....

मेरा नाम मेरे माता-पिता ने एदल सिंह रखा और तुमने उसे बिगाड़ कर एद्लु कर दिया लेकिन उससे मेरे जोश, मेरे जज्बे में कोई फर्क नहीं पड़ा, तुम्हारा प्रत्येक अन्याय मुझे हिम्मत देता गया और उसी हिम्मत, उसी ताकत के बल पर मैं आज यहाँ हूँ। जाओ तुम्हें माफ कर किया लेकिन अब तुम यहाँ नहीं दूसरे कार्यालय में काम करोगे जहां तुम्हें तुम्हारी ही जाति का अधिकारी मिलेगा, फिर मैं देखुंगा तुम कैसे अपनी मनमर्जी कर सकोगे”....

और एदल सिंह ने कहा, “मैं छोटी जाति का, तुम बड़ी जाति के, यह सब समय का चक्र है। हमारे पूर्वज भी राजपूत थे जो युद्ध में बंदी बना लिए गए थे और हमे नाम दे दिया छोटी जाति का। अगर इसका प्रमाण चाहिए तो हम दोनों का एक ही गोत्र है “तोमर” अब बताओ क्या फर्क है तुम में और मुझ में। मेरी सलाह मानो और अपने बच्चों को इतना पढ़ाओ कि उनका दिल और दिमाग संकुचित न रहे। जाओ अब अपना स्थानांतरण पत्र लेकर संबंधित कार्यालय में जाओ और खुश रहो।”

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