क्रिकेट नचा रहा है Prem Janmejay द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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क्रिकेट नचा रहा है


क्रिकेट नचा रहा है

प्रेम जनमेजय



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क्रिकेट नचा रहा है

कभी छछिया भर छाछ पर गोपियां गोपाल को नचाती है। तो कभी जीव को गोपाल नचाते हैं। आजकल गोपाल इतना नहीं नचाना चाहते हैं जितना जीव नाचना चाहता है। नाचने के बहुत सारे मंच जो तैयार हो गए है। जिसे देखो कहीं न कहीं नाचने के लिए भागा जा रहा है। कुछ डर से नाच रहे हैं तो कुछ प्रसन्न मन से नाच रहे हैं। कोई बाजार की सेल देखकर नाच रहा है तो कोई गाड़ी का नया मॉडल देखकर नाच रहा है। एक नाच खत्म करता है तो दूसरे नाच के लिए भाग लेता है। ऐसे ही मेरे एक मित्र मेरे आगे—आगे भागे जा रहे थे। आजकल वो समय तो है नहीं कि आदमी के पास समय ही समय हो। आप न भी रोको तो वो रुक जाए और आपसे बतियाने लगे। आजकल तो लोग या तो फेसबुक पर बतियाते हैं या फिर व्हॉट्‌स एप्प पर । आज का युग तो बेरुखी से गले मिलो युग है। मिलो तो गले लगकर चुम्मी का स्वर निकालों और बिछुड़ो तो भी ऐसा स्वर निकालो। शादी में मिलो तब भी ऐसे मिलो, शवयात्रा में मिलो तब भी ऐसे ही मिलो, बस चेहरे की कुछ मुद्रा बदल लो। बड़े—बड़े लोग ऐसे ही मिलते हैं।

मेरे पास आधुनिक खिलौने नहीं हैं इसलिए मेरे पास समय ही समय है।

हां तो वे आगे—आगे जा रहे थे और मेरी ओर उनकी पीठ थी। कोई प्रगति पथ पर आपके आगे जा रहा हो तो कष्ट होता ही है। पर यदि कोई आपका विरोधी परेशानी के मार्ग पर बढ़ रहा हो तो...? पीठ पीछे बुराई तो हो सकती है पर चेहरे की मुद्रा को देखना हो तो आगे जाकर देखना पड़ता है या फिर पीछे से पुकारना होता है।

मैंनें उन्हें पुकारा. हुजूर... हुजूर सुबह—सुबह कहां भागे जा रहे हैं।

हुजूर ने मुड़कर देखा। हुजूर श्रीमान राधेलाल जी थे और शोकाकुल मुद्रा में चले जा रहे थे।

जैसे बाजार में डालर, रुपया, येन आदि मुद्राओं का मूल्यन अवमूल्यन होता रहता है वैसे ही आम भारतीय नागरिक की मुद्रा का मूल्यन अवमूल्यन होता रहता है। डीए, बोनस, इंक्रीमेंट या प्रोमोशन आदि मिल जाता है तो मुद्रा में तेजी आ जाती है और चेहरे की मुद्रा खिल जाती है, तथा जीवन में वसंत आया जान मन पुष्पित रहता है। ऐसा आदमी दूर से ही प्रसन्नचित्त मुद्रा में दिखाई दे जाता है। दिखाई क्या दे जाता है समझे कि आपके चारों ओर चक्कर लगा लगाकर स्वयं को दिखाता रहता है। पर महंगाई, मंदी, टैक्स आदि की मार पड़ती है तो मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है, जीवन में पतझड़ छा जाता है तथा मुद्रा शोकाकुल हो जाती है।

कभी. कभी आम आदमी की शोकाकुल मुद्रा का उपरोक्त कोई भी कारण नहीं भी होता है। आम आदमी का चेहरा तो मासूम बच्चे की तरह होता है जो जरा.सी बात पर प्रसन्न हो उठता है और जरा सी बात पर शोकाकुल हो जाता है।

ऐसा ही शोकाकुल चेहरा उनका था और वे उस मुद्रा में चले जा रहे थे।

मैंने आर्थिक समाचारों के चौनल में बैठे आर्थिक विश्लेषक जी सा, किसी अमीर के मुकाबले उनकी गिरी मुद्रा को लक्षित करए कहा — क्या बात है, राधेलाल जी, अब तो सरकार ने प्याज के भाव ठीक कर दिए हैं और प्रधानमंत्री तथा कृषिमंत्री महंगाई के कम होने तथा जी डी पी बढ़ने की घोषणा कर रहे है,ं और आप शोकाकुल मुद्रा में हैं? क्या आप पर महंगाई का असर अभी भी है...

नहीं प्रेम भाई, महंगाई की तो अब आदत पड़ गई है। प्याज सस्ता होता है तो टमाटर महंगा हो जाता है। सब्जी सस्ती हो जाती है तो पैट्रोल महंगा हो जाता है। सबकुछ ठीक चल रहा हो तो रिक्शेवाला दाम बढ़ा देता है। उसके बाद दूधवाला, ऑटोवाला, टैक्सीवाला, बसवाला, स्कूलवाला, मकानवाला — कितने वाले हैं जो अपनी. अपनी बारी आने पर कुछ न कुछ बढ़ाते ही रहते हैं। अब इस देश में जब नैतिकता मानवीयता के भाव गिर रहे हों तो साला कुछ तो बढ़ रहा है। ये कहकर वे खिसियानी हंसी भी हंसे।

हर ईमानदार आजकल खिसियानी हंसी ही हंस रहा है।

मैं भी खिसियानी हंसा और बोला. आपने ठीक कहा भाई, कुछ तो बढ़ रहा है। देश प्रगति—पथ पर है और हम एक बड़ी ताकत बन रहे हैं। अर्थव्यवस्था की जी डी पी ही नहीं भ्रष्टाचार, हत्या, बलात्कार, घोटाले आदि की भी जी डी पी धड़ल्ले से बड़ रही है। इन मामले में तो हम आत्म निर्भर होते जा रहे हैं। आजकल तो हर मोहल्लेए हर गांव और शहर में जहां देखो घोटाले ही घोटाले हैं। घोटालों का उत्पादन तो इतना हो गया है कि इनका निर्यात तक किया जा सकता है।

हम दोनों खिसियानी हंसी हंसे। हमारी खिसियानी हंसी प्रतिध्वनित हो हमारे कानों में वापस लौट आई। हमें लगा कि हमारी तरह हंसने वाले और भी हैं।

खिसियानी हंसी हंसने के बाद राधेलाल की मुद्रा फिर शोकाकुल हो गई।

राधेलाल भाई, कहीं ऐसा तो नहीं है कि परमानेंट एकाउंट नंबर की तरह, जैसे हमारे एक भूतपूर्व नेता के चेहरे पर परमानेंटली मुस्कान चिपकी रहती थीए नेताओं के साथ भ्रष्टाचार चिपका रहता है वैसे ही आपकी मुद्रा भी परमानेंटली शोकाकुल हो गई है और आप हंसी भूल ही गए हैं।

अरे नहीं यार, हम हिंदुस्तानी हैंए अधिक देर शोकाकुल नहीं रह सकते।

अरे प्यारे नहीं रह सकते तो इस शोक का राज क्या हैघ्‌ क्या इस उम्र में कोई इश्क लड़ा बैठे हो।

यही समझ लो।

यही समझ लों मतलब

इश्क का कोई मतलब होता हैै? जैसे नेता और देशसेवा, न्यायालय और उसमें बोले गए सच, पुलिस और शिकारी का कोई मतलब नहीं होता वैसे ही इश्क का कोई मतलब नहीं होता, वो तो बेमतलब ही होता है।

पर प्यारे आजकल का इश्क बेमतलब नहीं होता है। आज के इश्क में कैरियर, पे पैकेज और न जाने क्या क्या जुड़ा होता है।

मैं उस इश्क की बात ही कहां कर रहा हूं जो इश्क का नाम ही नहीं जानता। मैं तो सामूहिक इश्क की बात कर रहा हूं।

सामूहिक इश्क, संस्कृति, लिव इन रिलेशनशिप वाले इस युग में सामूहिक इश्क भी अवतरित हो गया है? क्या ये द्रौपदी टाईप इश्क है?

नहीं प्यारे, ये इश्क तो बरसों से रहा है। यह इश्क अधिकांशतः इकतरफा होताकरनेवाले को पता होता है कि वो कर रहा है और वो इसका कष्ट भी सहता है पर जिससे वो करता है उसे इसका अहसास कम ही होता है।

अरे यार तुम तो वित्त मंत्री की तरह पहेलिया बुझाने लगे और बजट—भाषा में बात करने लगे होए साफ—साफ कहो कि चक्कर क्या है?

चक्कर कुछ नहीं, घनचक्कर जी! तुम तो साहित्य की दुनिया में गंभीर मुद्रा बनाए, कागज काले करते रहते हो और फिल्म और क्रिकेट के नाम पर मुहं ऐसे बिचकाते हो जैसे छिपकली छू गई हो। तुम तो संत हो भाई तुम्हें क्रिकेट के इश्क से क्या, और उसके बुखार से क्या?

ओह, तो हुजूर के इस हाल का कारण क्रिकेट का बुखार हैं?

जी श्रीमान्‌ और कल भारत जो हार गया उसी से मुद्रा शोकाकुल हुई है। आजकल तो प्रेम भाई न दफतर के काम में मन लगता है और न घर के काम में मन लगता है, न तो टी वी के सामने। प्रेम भाई कही भारत बंगलादेश जैसे कमजोर देश से सारे मैच तो नहीं हार जाएगा? यह कहकर उन्होंने मेरा हाथ थाम लिया और आंखें नम कर लीं। उनके चेहरे की मुद्रा बता रही थी कि वह अवमूल्यन के भय से ग्रसित है ।

प्यारे राधेलाल, खेल वो रहे हैं हार—जीत उनकी हो रही है, ढेर सारा पैसा उनको मिलेगा, तूं क्यो भया उदास?

देश की इज्जत का सवाल है, इसकी चिंता नहीं होगी

तूं तो देश की चिंता करते—करते मर जाएगा और देश के साथ वेश्यावृत्ति करने वाले इसे बेचने से नहीं थकेंगे।

प्रेम जी, ये खेल है, व्यापार नहीं इसमें बेचना और खरीदना क्या?

यही तो बड़ा खेल खेला जा रहा है इन खेलों में आप जैसों की कोमल भावनाओं का सदुपयोग किया जाता है। खेल से बड़ा कोई उद्योग नहीं है और श्रीमान और इसे बड़ा और छोटा आप जैसे पागल लोग बनाते हैं।

प्रेम जी हम तो देश का सोचते हैं और देश के सम्मान पर खुश होते हैं। क्या राष्ट्रप्रेम गलत है?

नहीं राधेलाल जी, राष्ट्रप्रेम तो प्राथमिक होना चाहिए परंतु जो लोग राष्ट्रप्रेम का दुरुपयोग करते हैं उनके प्रति विरोध भी राष्ट्रप्रेम होता है। देश के सम्मान से खुश होना अच्छा है परंतु देश का अपमान करने वालोें के विरुद्ध आक्रोश भी आवश्यक है। कोरी भावुकता देशप्रेम नहीं होती है। देशप्रेम को सीमित कर देना क्या सही है?

आप तो भाषण देने लगे प्रेम जी, क्या कोई चुनाव लड़ने का इरादा है? जाईए प्रेम जी किसी चैनल में ज्वलंत विषय पर जुगाली करने वाले कार्यक्रम की शोभा बढ़ाइ और...

और आपको राष्ट्रप्रेम की जुगाली करने को छोड दें। यही तो वे चाहते हैं...

प्रेम जी छोड़िए नंए बताईए भारत इस बार बंगलादेशा से अपनी इज्जत बचा लेगा नं

आप इतना जोर लगाएंगे तो बचा हीलेगा।

अरे हम तो बहुत जोर लगा रहे हैं। खूब टशन लगाते हैंए टोटकों का इस्तेमाल करते हैं। प्रेम जी जानते हैं जब इंडिया के खिलाड़ी आउट होने लगते हैं या फिर विरोधी टीम के खिलाड़ी आउट नहीं होते हैं तो मैं कुछ देर के लिए टी वी बंद कर देता हूं। जितनी देर टी वी बंद रहता है, बहुत टेंशन रहती है। पर खोलते ही अपने मन की हो जाती है। अभी तो यह टोटका बहुत काम कर रहा है। इंग्लैंड के साथ वाले मैच में जब लगने लगा कि इंडिया गया तो मैंने टी वी बंद कर दिया तो झट जहीर ने दो विकेट ले लिए।

चलिए ये बताईए इस बार दीवाली पर क्या कर रहे हैैंं, आप तो खूब हुड़दंग मचाते हैं, महीने पहले प्रोग्राम बना लेते हैं। इस बार...

प्रेम भाई क्यों जले पर नमक छिड़कते है। उन दिनों तो बड़े इम्पोर्टेन्ट मैच चल रहे होंगें। वो आप जानते हैं कि अमिताभ बच्चन के पिता जी ने कहा है कि दिन को होली रात दिवाली, रोज मनाता पीने वाला। अब इन विश्वकप के दिनों में हम जैसे के लिए मैंनें कहा है कभी दिवाली कभी दिवाला, रोज मनाता क्रिकेटवाला। अपने लिए तो होली, दीवाली, ईद सभी इस क्रिकेट में सिमट गया है। हमारा हाल अच्छा है या बुरा आपको क्रिकेट का बैरोमीटर बना देगा। भारत मैच जीत गया तो बच्चे मिठाई खाते हैैंं, पत्नी प्यार पाती है और हार जाए तो...

मैं समझ गया कुछ को रुपया पैसा नाच नचाता है ए कुछ को चुनाव नाच करवाते हैंए कुछ को भ्रष्टाचार नाच करवाता है और कुछ को पत्नी नचवाती हैए पर हमारे राधेलाल को क्रिकेट नचवा रहा है। यह प्रजातंत्र है यहां नाचने का अधिकार सबका है। हां यह दीगर बात है कि मंच सबके अलग अलग है थाप अलग अलग है और नचवाने वाला भी अलग है।

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