"चन्द्रकान्ता" के पहले भाग की कहानी दो दोस्तों, वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह, के बीच बातचीत से शुरू होती है। शाम के समय, ये दोनों एक सुनसान मैदान में बैठे हैं। वीरेन्द्रसिंह, जो नौगढ़ के राजा सुरेन्द्रसिंह का इकलौता बेटा है, अपनी प्रेमिका चन्द्रकान्ता के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है। वह बताता है कि चन्द्रकान्ता भी उससे प्रेम करती है, लेकिन उनके राज्यों के बीच दूरी और चन्द्रकान्ता के पिता के सख्त पहरे ने उनकी मुलाकात में मुश्किलें पैदा की हैं। तेजसिंह, जो वीरेन्द्रसिंह का करीबी दोस्त है, उसे सचेत करता है कि चन्द्रकान्ता के पिता ने महल की सुरक्षा बढ़ा दी है और एक व्यक्ति क्रूरसिंह भी चन्द्रकान्ता पर अधिकार जमाने की कोशिश कर रहा है। तेजसिंह सुझाव देता है कि वह पहले चन्द्रकान्ता की सखी चपला से मिलकर स्थिति का आकलन करे, ताकि किसी भी खतरे से बचा जा सके। कहानी में प्रेम, प्रतिबंध और साहस के तत्व शामिल हैं, जहाँ दोस्ती और प्रेम की परीक्षा होती है।
चंद्रकांता - भाग पहला
Devaki Nandan Khatri
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
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विवरण
चंद्रकांता - भाग पहला कुल तेईस बयानों में फैला हुआ चंद्रकांता नवलकथा का पहला भाग प्रस्तुत है उन्नीसवी शताब्दी मैं देवकीनंदन खत्री द्वारा लिखित बेजोड़ कथा चंद्रकांता चंद्रकान्ता हिन्दी के शुरुआती उपन्यासों में है जिसके लेखक देवकीनन्दन खत्री हैं। इसकी रचना १९ वीं सदी के आखिरी में हुई थी। यह उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था और कहा जाता है कि इसे पढने के लिये कई लोगों ने देवनागरी सीखी थी। यह तिलिस्म और ऐयारी पर आधारित है और इसका नाम नायिका के नाम पर रखा गया है। कथानक : चन्द्रकान्ता को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नवगढ और विजयगढ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ की राजकुमारी चंद्रकांता और नवगढ के राजकुमार विरेन्द्र विक्रम को आपस मे प्रेम है। लेकिन राज परिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ के महाराज नवगढ के राजा को अपने भाई की हत्या का जिम्मेदार मानते है। हांलांकि इसका जिम्मेदार विजयगढ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार विरेन्द्र विक्रम की प्रमुख कथा के साथ साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेन्द्र सिंह तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चन्द्रकांता के परिणय से होता है। उपन्यास का आकर्षण हैं तिलिस्मी और ऐयारी के अनेक चमत्कार जो पाठक को विस्मित तो करते ही हैं, रहस्य निर्मित करते हुए उपन्यास को रोचकता भी प्रदान करते हैं। क्रूर सिंह के षड्यंत्र एवं वीरेन्द्र विक्रम के पराक्रम का वर्णन अत्यधिक रोचक बन जाता हैं।
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