हर रचना की एक आधारभूमि होती है। स्थानीयता का सच जब वैश्विक सच में बदल जाता है, रचना काल एवं स्थान की सीमाओं का अतिक्रमण कर जाती है। कोई भी उपन्यासकार हवा में मुक्के नहीं चलाता। उसकी लेखनी समाज के विविध वर्णों, बिम्बों को उभारती हुई एक दिशा पकड़ती है। उसमें अतीत की स्मृतियाँ, वर्तमान की चुनौतियाँ, भविष्य का स्वप्न सन्निहित होता है। अतीत और भविष्य जिस विन्दु पर मिलते हैं, वही वर्तमान है। वर्तमान का विस्तार अतीत एवं भविष्य दोनों को समेटता है। वर्तमान को व्याख्यायित करने के लिए भी अतीत की आवश्यकता होती है। वही तीसरी आँख बन वर्तमान को अर्थ प्रदान करता है।
कोमल की डायरी - 1 - नदिया धीरे बहो
तेरा तुझको सौंपते..............?हर रचना की एक आधारभूमि होती है। स्थानीयता का सच जब वैश्विक सच में बदल जाता है, काल एवं स्थान की सीमाओं का अतिक्रमण कर जाती है। कोई भी उपन्यासकार हवा में मुक्के नहीं चलाता। उसकी लेखनी समाज के विविध वर्णों, बिम्बों को उभारती हुई एक दिशा पकड़ती है। उसमें अतीत की स्मृतियाँ, वर्तमान की चुनौतियाँ, भविष्य का स्वप्न सन्निहित होता है। अतीत और भविष्य जिस विन्दु पर मिलते हैं, वही वर्तमान है। वर्तमान का विस्तार अतीत एवं भविष्य दोनों को समेटता है। वर्तमान को व्याख्यायित करने के ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 2 - शहर एक गांव है
दोशहर एक गांव है इतवार, जनवरी, 2006 आज नित्य की भांति, मैं गांधी की मूर्ति के पास अशोक के पेड़ के निकट बैठा था। एक युवती एवं युवा झोला लटकाए वहीं पहुंच गए। मूर्ति का चित्र खींचा। उस समय वहाँ और कोई नहीं था।दोनों मेरे पास आ गए। अपना नाम सुमित और जयन्ती बताया। सुमित जयन्ती को जेन कहता है। दोनों जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हैं। गोण्डा की धरती के सांस्कृतिक एवं सामाजिक परिवेश का अध्ययन करने आए ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 3 - तीन टूक कौपीन कौ
तीनतीन टूक कौपीन कौ सोमवार, जनवरी, 2006आज फिर सुमित और जयन्ती गाँधीपार्क आए। मैं वहीं टहल रहा था। उन्हें आज वाराही, पसका, राजापुर को देखना था। एक टैक्सी भी उन्होंने कर ली थी। मैं भी उसमें बैठा। गाड़ी बेलसर रोड पर चल पड़ी। झंझरी पार करते ही मैंने गाड़ी रुकवा दी। हम लोग उतर पड़े। उन्हें उपरहर और तरहर का संधिस्थल जिसे 'काँदर' कहा जाता है, दिखाया। उपरहर तरहर से लगभग छः हाथ ऊँचा। उपरहर की मिट्टी लालिमा लिए हुए, पानी पाते ही गल जाती ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 4 - तुझे मृत्यु को देता हूँ
चार तुझे मृत्यु को देता हूँ बुधवार, अठारह जनवरी, 2006कल बहादुर के मुकदमें की पेशी थी। वह सबेरे ही आ गया। मुझे भी कचहरी ले जाना चाहता था। इसीलिए मैं सुमित और जेन के साथ कल न जा सका। वे कल श्रवण पाकर, स्वामी नारायण छपिया और मखोड़ा देखना चाहते थे। मैंने कुछ प्रारम्भिक बातें बताकर उन्हें भेज दिया। बहादुर को कभी-कभी विपक्षियों ने धमकाने की कोशिश की है। इसीलिए उसकी इच्छानुसार कचहरी जाना मुझे आवश्यक लगा। छः घण्टे इधर उधर चहल कदमी करते ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 5 - ओस सी पवित्र मुस्कान
पाँचओस सी पवित्र मुस्कान गुरुवार, उन्नीस जनवरी, 2006आज सुबह ठंडक कुछ अधिक थी। मैं सबेरे उठा तो आसमान साफ था पर थोड़ी ही देर में कुहरा छाने लगा। उगते सूर्य को देखा नहीं जा सका। अखबार वाले गिनकर बताया करते हैं कि प्रदेश में ठंड से कुल कितनी मौतें हुई। उंगलियाँ कनकना रही थीं। रोटी के लिए आटा सान मैंने स्टोव जलाया। तवा रख ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 6 - देवीबख़्श लोहबंका
छहदेवीबख़्श लोहबंका शुक्रवार, बीस जनवरी, 2006ठंड आज काफी थी। कोहरा ज़रूर बहुत हल्का था। आठ बजते छँट गया। हल्की पीली धूप शरीर को अच्छी लग रही थी। मैं दस बजे के आसपास गांधीपार्क पहुँचा। सुमित और जेन आ चुके थे। वे भुने हुए मूंगफली के दाने कुटकुटा रहे थे। मेरे हाथ में कुछ दाने देकर जेन ने कहा, 'जैन मंदिर के सिंहद्वार पर अश्वारोही की प्रतिमा! बात कुछ जँच नहीं रही थी।' 'क्या आचार्य आज मुझे बनना पड़ेगा?' मैंने जैसे ही कहा, सुमित ताली बजा कह उठे, ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 7 - फिर आऊँगा
सातफिर आऊँगा इतवार, बाईस जनवरी २००६ठंड अभी कम नहीं हुई। सुबह अच्छी ठंड पड़ती। अनेक वृद्ध ठंडक में चल बसते हैं। आज आसमान बिलकुल साफ था। आज मैं पहले गाँधी पार्क पहुँच गया था। सुमित ने पहुँचते ही पूछ लिया, 'राजा देवी बख्श दांग में कब तक जीवित रहे?'मैंने दो पंक्तियां सुनाई- रानी राजा सिषर पर लोग भोग असथान । तहं तन तजि कैलास गे, शिव के वचन प्रमान। सुमित हंस पड़े। 'यह ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 8 - दौड़ते दौड़ते ही
आठदौड़ते दौड़ते ही सोमवार, तैइस जनवरी पार्क में आज चहलपहल ज्यादा है। शिक्षामित्रों का जमावड़ा है। वे आज प्रदर्शन करते हुए जिलाधिकारी को ज्ञापन देंगे। उनकी यात्रा गांधी मूर्ति के सामने से ही प्रारम्भ होगी। गाँधी की मूर्ति जैसे आज मुस्कराकर कह रही है, 'मैंने कहा था न शिक्षा को स्वावलम्बी बनाओ। कहाँ बनाया आपने? अब तो शिक्षा की समस्या से ही कतरा रहे हो। कब तक चलेगा यह सब ? भागोगे कब तक? इसके सामने खड़ा होना ही पड़ेगा। आज ही क्यों नहीं? कल शायद ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 9 - अब बोलो ?
नौअब बोलो ? मंगलवार, चैबीस जनवरी, २००६ बहादुर जैसे लोग मुझसे मिलते हैं और मैं कुछ कर नहीं पाता। जो दुःखी हैं वे किसी आशा से मुझसे अपना दुःख बताते हैं। अपनी बेचारगी पर दुःखी हूँ मैं। मूक दर्शक बन कर रहना बहुत ठीक है क्या? गांधी की मूर्ति के सामने एक पेड़ के निकट बैठा हूँ सुमित और जेन की प्रतीक्षा में। बारह बज गए। पीड़ितों को संगठित होना होगा। मैं बुदबुदाता हूँ। कौन करेगा यह? जो असहाय हैं उन्हें न इतनी समझ है ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 10 - अभिनय बड़ी चीज़ है।
दसअभिनय बड़ी चीज़ है। बुधवार, पच्चीस २००६जेन और सुमित कल एक गोष्ठी करना चाहते हैं। नगर के चुने हुए नेताओं, विद्वज्जनों, छात्र प्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया। कुछ लोगों के घर मैं स्वयं निमंत्रण देने गया था। एक नेता जी के घर में सुबह पहुँच गया। प्रायः नेताओं के यहाँ भीड़ अधिक रहती है। अभी सन्नाटा था। एक आदमी बाहर झाडू दे रहा था। मैंने उससे नेता जी के बारे में पूछा। उसने कहा, 'बैठक में हैं। चाय पी रहे हैं।' बाहर रखी एक ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 11 - ज़मीनी सचाई
ग्यारह ज़मीनी सचाई गुरुवार, छब्बीस, जनवरी 2006 आज गणतंत्र दिवस है। राष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में भारतीय परिदृश्य का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। अपराह्म सुमित और जेन की गोष्ठी में कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी तथा बसपा से कोई नहीं आया। दो छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष, पाँच अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डिग्री कालेज के एक अध्यापक, सात संभ्रान्त जन जिसमें रमजान भी थे, सम्मिलित हुए। जेन ने प्रबन्धक राधेरमन, अध्यापक श्री निवास, बहादुर, रौताइन और हरखू को भी बुलाया था। राधेरमन और श्री निवास नहीं आ सके। बहादुर, ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 12 - ज़मीनी सचाई
ग्यारह ज़मीनी सचाई गुरुवार, छब्बीस, जनवरी 2006आज गणतंत्र दिवस है। राष्ट्रपति ने अपने सम्बोधन में भारतीय परिदृश्य का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। अपराह्म सुमित और जेन की गोष्ठी में कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी तथा बसपा से कोई नहीं आया। दो छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष, पाँच अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, डिग्री कालेज के एक अध्यापक, सात संभ्रान्त जन जिसमें रमजान भी थे, सम्मिलित हुए। जेन ने प्रबन्धक राधेरमन, अध्यापक श्री निवास, बहादुर, रौताइन और हरखू को भी बुलाया था। राधेरमन और श्री ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 13 - घोंघे को गुस्सा आता है
बारहघोंघे को गुस्सा आता है शुक्रवार, जनवरी 2006आज ठंड थोड़ी कम है। हवा बहुत धीमी या कहिए नहीं चल रही है। पेड़ों की पत्तियाँ धीरे-धीरे हिलतीं। पाकड़ के पेड़ में पुराने पत्ते सूखने की तैयारी में हैं। आम में कहीं कहीं बौर दिखने लगे। गुलमोहर भी रंग बदल रहा है। अशोक, मौलिसिरी के पेड़ निश्चिन्त हैं। मैं गाँधी पार्क दस बजे पहुँच गया। धूप कुछ कुछ जवान होने का अभिनय कर रही है। जिनके पास जाड़े के वस्त्र नहीं हैं, उन्हें थोड़ी राहत मिली, चेहरे पर ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 14 - पंछी और पिंजरा
तेरहपंछी और पिंजरा शुक्रवार, दस फरवरी आज आया था। 'मृतक संघ' के काम में लगा है। लोग जुड़ रहे हैं। उसमें भी उत्साह का संचार हुआ है। न्याय पाने के लिए कितना संघर्ष करना है? कुछ लोग उसे निरन्तर धमकाते हैं। वे किराए के लोग हैं। कुछ भी कर सकते हैं। इसका कोई निदान ढूँढ़ना होगा। कोई न्याय की गुहार भी न लगा सके ! सत्ताइस जनवरी को ही जेन और सुमित को दिल्ली लौट जाना पड़ा। कुछ ज़रूरी काम था उन्हें। जेन ने चिट्ठी भेजी ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 15 - तुम भी गुनगुनाने लगे
पन्द्रहतुम भी गुनगुनाने लगे मंगलवार, ग्यारह 2006पूरा एक महीना हम लोग चलते रहे, इस गाँव से उस गाँव, इस पुरवे से उस पुरवे। चने के दाने ने बड़ी मदद की। भिगोकर चबाते दिन आराम से कट जाता। एक-दो गिलास मट्ठा पी लिया जाता। किसी सार्थक कार्य में लगने पर भूख प्यास का ध्यान कहाँ रह जाता है? गाँव के लोग आतिथ्य में पटु। कहीं गुड़ कही मट्टे से स्वागत। स्वागत में आत्मीयता। अनौपचारिकता का नाम नहीं। एक छोटे से पुरवे में रहता है भीखी। वह हम ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 16 - प्यास लगी है
सोलहप्यास लगी है दस मई 2006 आज सुमित और जेन दोनों की चिट्ठी आई है। सुमित बहुत परेशान है, अपने से नहीं, जेन से। जब से जेन 'राधेरमन सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता' की निदेशक हो गई है सुमित की नींद हराम हो गई है। आदमी जाने कौन कौन से सपने पाल लेता है? वर्षों साथ पढ़ने के बाद सुमित के मन में जेन के लिए कोई सपना पलता रहा। जेन के राधेरमन की योजना में सम्मिलित हो जाने ...और पढ़े
कोमल की डायरी - 17 - बाघ और खरगोश
सत्रहबाघ और खरगोश शुक्रवार, बारह २००६ रात के दस बज गए हैं। सामने सुमित और जेन की चिट्ठियाँ हैं। मैंने सुमित को लिखा था कि वे बहादुर की लड़ाई के लिए यहाँ आएँ। इससे हम सभी को बल मिलेगा। पर उनकी चिट्ठी में कहीं भी यहाँ आने का कोई संकेत नहीं। ठीक ही है वातानुकूलित कमरे कहाँ मिलेंगे यहाँ बहस करने के लिए? गोल मोल बात से बात कहाँ बनती है? जेन ने कम से कम अपनी कमजोरी को स्वीकार तो किया। सुमित विद्वता ...और पढ़े