दिग्विजय की नगर हवेली, जहाँ सूर्यास्त होते से ही बिजली की ऐसी रौशनी फैलती मानो सूर्योदय हो रहा हो। ऐसा लगता कि सूर्य की पहली किरणें सीधे उनकी हवेली पर ही अपनी छटा बिखेर रही हों। केसरी रंग की किरणों से लिपटी हवेली झिलमिल सितारों की भांति जगमगाने लगती। हवेली की सुंदरता ऐसी अद्भुत कि आंखें चुंधियाँ जाएँ। दिग्विजय की इस हवेली का मूल्य करोड़ों में आंका गया था। तीन मंजिला इस खूबसूरत हवेली में कहीं झरोखे थे, तो कहीं पंछियों के बैठने के लिए मुंडेर बनी हुई थी। कहीं गुंबद के आकार की छत थी तो कहीं सपाट छत जो कहती, 'मैं भी यहाँ हूँ, मुझे भी देखो, मैं भी किसी से कम नहीं।'

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सूनी हवेली - भाग - 1

दिग्विजय की नगर हवेली, जहाँ सूर्यास्त होते से ही बिजली की ऐसी रौशनी फैलती मानो सूर्योदय हो रहा हो। लगता कि सूर्य की पहली किरणें सीधे उनकी हवेली पर ही अपनी छटा बिखेर रही हों। केसरी रंग की किरणों से लिपटी हवेली झिलमिल सितारों की भांति जगमगाने लगती। हवेली की सुंदरता ऐसी अद्भुत कि आंखें चुंधियाँ जाएँ। दिग्विजय की इस हवेली का मूल्य करोड़ों में आंका गया था। तीन मंजिला इस खूबसूरत हवेली में कहीं झरोखे थे, तो कहीं पंछियों के बैठने के लिए मुंडेर बनी हुई थी। कहीं गुंबद के आकार की छत थी तो कहीं सपाट छत ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 2

दिग्विजय ने अपने मन में आए विचारों को यशोधरा से साझा करते हुए कहा, " यशोधरा मैं चाहता हूँ हम शहर से किसी पढ़ी-लिखी लड़की को बुलाकर अपने यहाँ रखें, जो हमारे बच्चों को पढ़ा सके। यदि ऐसा हो गया तो हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलेगी और उनकी अंग्रेज़ी भी अच्छी होगी। यहाँ के स्कूल के शिक्षक ख़ुद ठीक तरह से अंग्रेज़ी नहीं बोल सकते तो वह हमारे बच्चों को क्या ही सिखा पाएंगे। तुम क्या कहती हो?" यशोधरा ने कहा, "तुम्हारी बात में दम तो है, परंतु अम्मा और बाबूजी से भी तो पूछना होगा।" दिग्विजय ने ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 3

अनन्या की बातें सुनने के बाद रेवती और घनश्याम ने सुविधाओं और अच्छा वेतन मिलने के कारण उसे हाँ दिया। उनके मुँह से हाँ सुनते ही अनन्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया। घनश्याम ने कहा, "ठीक है कर लो यह नौकरी लेकिन वह गाँव कितना दूर है?" अनन्या ने कहा, " बहुत दूर नहीं है पापा, पास के ही गाँव में यह हवेली है। उस हवेली की बहुत तारीफ सुनी है। बहुत सुंदर हवेली है और उनकी बातचीत से लग रहा है कि लोग भी अच्छे ही होंगे।" "ठीक है बेटा तो फिर जाने की तैयारी शुरू ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 4

अनन्या, वीर नाम के एक अनाथ लड़के से प्यार करती थी, जो बचपन में ही अपने माता पिता को चुका था। वह भी दुनियादारी की ठोकरें खाकर बड़ा हुआ था और अनन्या की ही तरह जल्दी से अमीर बनने के ख़्वाब देखता रहता था। उन दोनों का प्यार साथ में खेलते कूदते बचपन से ही परवान चढ़ रहा था। उनके प्यार के विषय में अनन्या के माता पिता जानते थे। जवानी की दहलीज पार करते वे दोनों मन के साथ ही साथ तन से भी एक हो चुके थे। जब अनन्या ने वीर को उसके ऑफर के विषय में ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 5

दिग्विजय ने घर के चौकीदार भोला काका को आवाज़ लगाते हुए कहा, "काका, अनन्या जी का सामान तांगे से गेस्ट रूम में रखवा दो।" भोला काका ने कहा, "जी साहब, मैं अभी रखवा देता हूँ।" इसके बाद भोला ने अनन्या की ओर देखा और कहा, "अंदर आइए, मैं आपका कमरा दिखा देता हूँ।" तब अनन्या और दिग्विजय दोनों हवेली में अंदर आए। हवेली में अंदर आते ही सबसे पहले अनन्या की मुलाकात यशोधरा से हुई। यशोधरा भी किसी से कम नहीं थी। रईसी उसके भी चेहरे पर विद्यमान थी। उसे देखते ही अनन्या समझ गई कि यह तो दिग्विजय ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 6

हवेली में सभी से परिचय होने के बाद अनन्या अपने कमरे में गई। गेस्ट रूम में वह सभी सुख-सुविधाएँ थीं, जो उसने कभी अपने घर में नहीं देखी थीं। ऐसी सभी चीजें उसे और भी खुश कर गईं क्योंकि ये सब उसके ऑफर में शामिल भी नहीं थे। उसमें तो सिर्फ़ रहने के लिए कमरा और खाना इतना ही था। उसने सलीके से कमरे में अपना सामान जमाया और फ्रेश होकर तैयार हो गई। उसके बाद सभी के साथ बैठकर रात्रि का भोजन किया। दूसरे दिन से उसने अपना काम शुरू कर दिया। वह रोज़ दो-तीन घंटे बच्चों को ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 7

अनन्या को अपनी योजना सफल करने के लिए यदि फ़िक्र थी तो वह सिर्फ वीर की थी। वह चाहती कि इस काम में वीर पूरे मन से उसके साथ हो। अनन्या ने वीर से पूछा, "तुम मेरा साथ दोगे ना वीर?" "हाँ-हाँ अनन्या मैं तुम्हारे साथ हूँ और क्या फ़र्क़ पड़ता है यार, ज़्यादा से ज़्यादा तुम्हें उसके साथ सोना पड़ेगा तो ठीक है ना कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। तुम अपनी कोशिश में कमी बिल्कुल मत आने देना। उस पर अपना तन भले ही न्यौछावर कर दो बस मन मत करना वह तो केवल मेरा है।" अनन्या ने कहा, ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 8

अनन्या बार-बार दिग्विजय के कमरे के बाहर यहाँ से वहाँ घूम रही थी। दिग्विजय भी ऐसे ही किसी मौके तलाश में था। दोनों का इरादा एक ही था, उनके बदन आग की तरह तप रहे थे। आखिरकार वह उठकर बैठ गया और उसने अनन्या को आवाज़ दी, "अनन्या!" अनन्या ने पहली ही आवाज़ पर जवाब दिया, "जी सर, क्या बात है?" "अनन्या, एक गिलास पानी ला दो।" "लाती हूँ," कहते हुए वह कुछ ही पलों में पानी का गिलास लेकर अंदर आ गई। इस समय उसने काले रंग का पतला-सा गाउन पहना हुआ था। उसे इस तरह आते देखकर ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 9

यशोधरा का नाम सुनते ही दिग्विजय घबराया लेकिन फिर संभलते हुए उसने कहा, "अरे अभी से यह सब मत जितने दिन यह सुख मिले उतने दिन तो भोगो। बाद की बातें बाद में देखेंगे।" कुछ समय इसी तरह बीतने के बाद दिग्विजय ने कहा, "अनन्या अब तुम अपने कमरे में जाओ।" दिग्विजय के होठों का एक बार फिर से चुंबन लेकर अनन्या वहाँ से अपने कमरे में जाने लगी। जाते समय उसके चेहरे पर मुस्कान थी। वह सोच रही थी हवेली की रानी बनने की यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सीढ़ी उसने चढ़ ली है। अब अगली सीढ़ी पर जो ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 10

यशोधरा के पिताजी की तबीयत तो ठीक ही नहीं हो रही थी। इस परिस्थिति में उसने सोचा कि वह दिनों के लिए बच्चों के पास जाकर रह ले। यह सोच कर यशोधरा ने अपनी माँ से कहा, "माँ मैं कुछ दिनों के लिए हवेली वापस जाना चाहती हूँ। यहाँ काफ़ी समय हो गया है, मुझे बच्चों की बहुत याद आ रही है।" माँ ने कहा, "ठीक है बेटा तुम अपने ड्राइवर के साथ कार में चली जाओ।" "माँ आप मुझे फ़ोन करते रहना मुझे पापा की चिंता लगी रहेगी। मैं 10-15 दिन रहकर वापस भी आ जाऊँगी।" दरअसल उसे ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 11

अनन्या और दिग्विजय को तो मदहोशी में यह पता ही नहीं चला कि यशोधरा दरवाज़ा खोलकर कमरे में अंदर चुकी है और उसने सब कुछ देख भी लिया है। अब तक आपस में लिपटे वे दोनों अपने गंतव्य तक पहुँच चुके थे। यह दृश्य देखकर यशोधरा के मुँह से कोई आवाज़ ना निकल पाई। बस वह चक्कर खाकर वहाँ गिर गई। यशोधरा के धड़ाम से गिरने की आवाज़ सुनकर वे दोनों एक दूसरे में लिपटे हुए उस तरफ़ देखने लगे तो उनके होश उड़ गए। सामने यशोधरा नीचे गिरी पड़ी थी। मतलब उसने अंदर आकर सब कुछ देख लिया ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 12

यशोधरा ने परम्परा की बातें सुनकर रोते हुए जवाब दिया, "नहीं अम्मा जबरदस्ती का लादा हुआ रिश्ता मुझे मंजूर "लेकिन बच्चे उनकी क्या गलती है यशोधरा? उन्हें क्यों उनके अधिकारों से दूर कर रही हो।" " अम्मा यहाँ रहकर कैसे संस्कार मिलेंगे उन्हें? उनका यहाँ रहना उनके चरित्र को भी खराब कर देगा। अब मैं उस इंसान के पास कैसे जाऊंगी अम्मा जिसे मैंने अपनी आंखों से किसी और के नग्न शरीर से लिपटा देखा है। उस लड़की से मैं क्या शिकायत करूं जब मेरा ही सिक्का खोटा है।" परम्परा के लाख समझाने के बाद भी यशोधरा अपनी ज़िद ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 13

अनन्या के मुँह से ऐसी अश्लील बातें सुनकर दिग्विजय के माता पिता, भानु प्रताप और परम्परा ने अपने कान कर लिए। परम्परा ने दुखी होते कहा, "यह तो बहुत ही बेशर्म लड़की है, इसे बड़े छोटों का तो कोई लिहाज ही नहीं है। इसे हवेली में बुलाकर हमने बहुत बड़ी भूल करी है।" तब यशोधरा ने परम्परा को समझाते हुए कहा, "जाने दो अम्मा इसके जैसी नीच लड़कियाँ क्या जाने अग्नि के फेरों के समक्ष हुए पवित्र बंधन को। आज यहाँ तो कल कहीं और किसी का बिस्तर गर्म करेगी। दया तो मुझे मेरे इस पति पर आती है ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 14

हवेली छोड़ कर जाने से पहले यशोधरा एक बार फिर से दिग्विजय के कमरे में आई और उससे कहा, जी अब चाहे जो भी हो मुझे कभी भी वापस बुलाने या फिर ढूँढने की कोशिश मत करना। तुम्हारे लिए तो मैं और मेरे तीनों बच्चे मर चुके हैं और यह कभी भी मत भूलना कि जवानी किसी की भी रुकती नहीं। सुंदरता तो केवल क्षण मात्र की साथी होती है। असली साथ होता है विश्वास का, कर्तव्य का और सच्चे निःस्वार्थ प्यार का। देखना तुम्हें इनमें से क्या-क्या हासिल होता है?" दिग्विजय चुपचाप खड़ा रहा। यशोधरा अपनी आंखों से ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 15

अनन्या अब भी हवेली में ही थी। वह खुश थी और अपने स्वार्थ की माला में सफलता के मोती रही थी। आज एक मोती और उसमें जुड़ गया था। वह सोच रही थी चलो एक मुसीबत और टल गई। यह तो सदमे से ही मर गए। उसे ज़्यादा कुछ करना ही नहीं पड़ा। अब तो केवल दिग्विजय की अम्मा ही बाक़ी है। उससे पीछा कैसे छुड़ाऊँ …? खैर वह अकेली अब क्या ही कर पाएगी। अनन्या बेफिक्र थी लेकिन वीर को हमेशा उसकी चिंता लगी रहती थी। बार-बार उसका मन अनन्या को फ़ोन करने का होता रहता था। कई ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 16

अनन्या नहीं चाहती थी कि दिग्विजय इस तरह सो जाए। इसलिए वह उसे जगाने की कोशिश कर रही थी उसकी आंखें खुल ही नहीं रही थीं। दिग्विजय ने सोते हुए कहा, "मेरी जान बहुत नींद आ रही है, कल सुबह बात करते हैं। वैसे यहाँ जो भी है सब कुछ तुम्हारा ही तो है," कहते हुए वह सो गया। अनन्या ने सोचा कोई बात नहीं आज नहीं तो कल या परसों ही सही हवेली तो वह उसके नाम करवा ही लेगी। उसने वीर के हक़ को दिग्विजय के साथ बांटा है। वीर कितना सुलझा हुआ इंसान है, सोचते हुए ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 17

वीर के हाथ से फ़ोन गिरने के बाद यदि रेवती उन दोनों की बातें सुनकर गुस्से में आग बबूला रही थीं तो वहीं अपनी बेटी के लिए घबरा भी रही थीं। वह सोच रही थीं कि यदि हवेली में किसी को भी अनन्या की साज़िश का पता चल गया तो वह उसे छोड़ेंगे नहीं। यही सब सोचते हुए रेवती ने वीर से कहा, "वीर जल्दी से अनन्या को फ़ोन लगा, मेरा मन बहुत घबरा रहा है। तुम दोनों के दिमाग़ को लालच की दीमक ने शायद खोखला कर दिया है। इसीलिए तुमने यह कितनी बड़ी साज़िश रच दी। इतने ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 18

हवेली से जाते समय दिग्विजय को अनन्या की चीखें सुनाई दे रही थीं लेकिन उसकी चीखों को सुनकर उसे भी दुख नहीं हुआ बल्कि एक प्रकार की ख़ुशी का एहसास हो रहा था। उधर अनन्या का शरीर जलता जा रहा था परंतु उसकी मदद करने वाला वहाँ कोई भी ना था। वह चीखती रही, मदद के लिए गुहार लगाती रही परंतु उसकी चीखें केवल दिग्विजय को ही सुनाई दे रही थीं। उधर वीर, रेवती और घनश्याम साथ में बैठकर बात कर रहे थे। वह बार-बार अनन्या को फ़ोन लगा रहे थे लेकिन उसका मोबाइल स्विच ऑफ ही आ रहा ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 19

हवेली से कुछ दूरी पर एक परिवार था जिसका हवेली में आना जाना था लेकिन उन्हें भी इस सब बारे में कुछ नहीं पता था। वीर के पूछने पर कि हवेली के सब लोग कहाँ गए उस घर की महिला ने कहा, “वे लोग ज़्यादा तो कहीं बाहर नहीं जाते हैं। अगर किसी काम से जाना ही पड़े तो हमें बताते हैं। लेकिन इस बार कुछ भी नहीं बताया। हम लोग भी पिछले कुछ समय से यहाँ नहीं थे। इसलिए हमारा भी आना-जाना नहीं हो पाया।” वीर वापस आ गया। उसने कहा, "अंकल कुछ पता नहीं चल रहा है।" ...और पढ़े

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सूनी हवेली - भाग - 20

वीर जिसने अपनी प्रेमिका को ऐसा काम करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया था; वह भी पछता कर केवल मलते रह गया। वह सोच रहा था ऐशो आराम की ज़िन्दगी पाने की ग़लत लालसा ने अपनों के अलावा कितनों का जीवन बर्बाद कर दिया। सब कुछ खोने के बाद उसे होश आया। काश वे दोनों संभल जाते सुधर पाते। वीर को अनन्या के साथ बिताए प्यार भरे लम्हें हर पल याद आते लेकिन वैसे ही लम्हें फिर से कभी हक़ीक़त ना बन पाए। उसके जीवन में निराशा की बदरी ऐसी छाई कि फिर कभी ख़ुशी में ना बदल पाई। ...और पढ़े

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