रात का अंधेरा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था । आकाश में घने बादल छाए हुए थे । हवा तेज थी और अपने साथ पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को उड़ाती एक विचित्र प्रकार की भयावनी ध्वनि उत्पन्न कर रही थी । सन्नाटा और भी गहरा हो चला था । नीरवता के उस साम्राज्य को कभी-कभी चमगादड़ या उल्लू के चीखते हुए स्वर तोड़ देते । कालिमा की उस फैली हुई चादर के नीचे सृष्टि किसी थके हुए नटखट शिशु की भांति सो रही थी । रजत को अमझरा घाटी आए हुए अभी कुल दो ही दिन हुए थे । वह पुरातत्व विभाग से संबंधित था और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश को मिलाने वाली सीमा रेखा के निकट घने वन में स्थित मंदिरों तथा प्राचीन भग्नावशेषों का अध्ययन करने अकेला ही अमझरा घाटी की सुरम्यता का पान करने आ पहुंचा था । आते समय पथ प्रदर्शक के रूप में एक निकट का ग्रामवासी साथ था जो उसका सामान भी उठाए हुए था और मार्गदर्शन भी वही कर रहा था । घाटी के सौंदर्य ने रजत को पूर्णतया अभिभूत कर लिया था । लंबे राजमार्ग के दोनों ओर चिरौंजी और आम के वृक्ष थे । कहीं कहीं पलाश के वृक्ष तथा कँटीली झाड़ियां थीं । पेड़ों का सिलसिला सड़क के निकट उतना घना न था किंतु जैसे जैसे उनका सड़क से फ़ासला बढ़ता गया था उनकी सघनता में भी वृद्धि होती गई थी ।

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मंदिर के पट - 1

रात का अंधेरा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था । आकाश में घने बादल छाए हुए थे । हवा थी और अपने साथ पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को उड़ाती एक विचित्र प्रकार की भयावनी ध्वनि उत्पन्न कर रही थी । सन्नाटा और भी गहरा हो चला था । नीरवता के उस साम्राज्य को कभी-कभी चमगादड़ या उल्लू के चीखते हुए स्वर तोड़ देते । कालिमा की उस फैली हुई चादर के नीचे सृष्टि किसी थके हुए नटखट शिशु की भांति सो रही थी । रजत को अमझरा घाटी आए हुए अभी कुल दो ही दिन हुए थे । ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 2

खंडहर में प्रवेश करते ही एक विचित्र सी गंध रजत के नसों में घुसी । वह कुछ ठिठक गया फिर दृढ़ता से भीतर प्रविष्ट हो गया । द्वार पार करने पर एक लंबा पतला गलियारा पार करना पड़ा । एक विशाल आँगन में जा कर यह गलियारा खत्म हो गया । आंगन के पूर्व में एक दालान था । शेष तीनों और कमरे बने हुए थे जो अब जर्जर अवस्था में थे । रजत ने आँगन की पश्चिमी दिशा में पड़ने वाले कमरे को खोला । जर्जर, उड़के हुए किवाड़ चरमरा कर खुल गए और वर्षो से बंद रहने ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 3

"अच्छा साहब !"गेंदा सिंह ने लंबा सलाम ठोंका और चला गया । उसके जाने के बाद रजत बैठा नहीं उसने अपने सामान को एक ओर जमाया और साफ़ की हुई फ़र्श पर अपना बिस्तर लगा दिया । आते समय वह अपने साथ कुछ अखरोट बादाम और सूखे मेवे ले आया था । थोड़े से अखरोट जेब में डाल कर वह कमरे से बाहर निकला । द्वार अच्छी तरह बंद करके उसने एक बार पूरे खंडहर का चक्कर लगाया । कहीं कोई खास बात नजर न आयी । पुराने समय के जमींदारों के भवनों के ही समान ही यह भी ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 4

रजत का मन बार-बार मंदिर की ओर खिंचा जा रहा था । वह गेंदा सिंह से कहकर मंदिर की बढ़ गया । मंदिर तक जाने के लिए उसे कुल उन्चास सीढ़ियां तय करनी पड़ीं । मंदिर के पट जो नीचे से देखने पर खुले प्रतीत हो रहे थे वस्तुतः बंद थे । उनका काला रंग कहीं-कहीं से उखड़ गया था । मंदिर की दीवारें पत्थर की थीं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई थी । ऊपर गोल गुंबद और फिर ऊंची लंबी चोटी पर रखा हुआ पीतल का कलश जो धूप में सोने का भ्रम उत्पन्न कर रहा था ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 5

चारों ओर फैला सन्नाटा । गहरा अंधेरा और पल-पल खिसकता समय । बढ़ती भयानकता । आज की रात रजत रोमांचित कर रही थी । यद्यपि एक रात वह इसी खंडहर में सकुशल बिता चुका था किंतु आज उसका हृदय व्यग्र था । गेंदा सिंह बस्ती की ओर जा चुका था । मोमबत्ती जला कर देर से रजत पढ़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन शब्द थे कि सब आपस में गड्डमड्ड हुए जाते थे । कई बार प्रयत्न करके भी वह कुछ न पढ़ सका तो किताब बंद करके रख दी और सोने की चेष्टा करने लगा । पिघलती ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 6

उसने तीन बार सांकल बजने की आवाज बिल्कुल साफ़ साफ़ सुनी थी । अपने अनुभव को झूठा कैसे समझ ? मन की तसल्ली के लिए उसने टार्च का रुख़ कर छत पर जाने वाली सीढ़ियों की ओर कर दिया । अचानक उसे लगा जैसे कोई साया तेजी से सीढ़ियों के ऊपरी मोड़ पर गुम हो गया । टार्च से निकले प्रकाश के दायरे में सीढ़ियों पर पड़ी धूल पर दो छोटे-छोटे मांसल पैरों के निशान पड़े हुए थे । रजत ने उन्हें ध्यान से देखा । उसे लगा जैसे वह इन पद - चिन्हों को पहचानता है आज से ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 7

"साहब ! यह देवी मैया की राजधानी है । मंदिर के पट पिछले दस वर्षों से नहीं खुले हैं लगभग दस वर्ष पहले अचानक ही दिन रात खुले रहने वाले पट आधी रात के समय जोर की आवाज के साथ बंद हो गए और तब से आज तक बंद हैं । राजा जू ने भी बड़ी मिन्नत की लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ । तब से इधर आने से लोग डरते हैं । कुमारी जू पहले यहां रोज पूजा के लिए आया करती थीं ।""कौन कुमारी जू ?""राजा जयसिंह की बेटी रूप कुंवर जू ।" वे ही पट इस ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 8

जब वह मंदिर के सामने पहुंचा वह हाँफ रहा था । कुछ देर तक रुक कर उसने अपनी सांसे कीं और आगे बढ़ने के लिए टार्च का रुख फर्श की ओर किया । एक बार फिर उसे चौंक जाना पड़ा । उसके सामने वही चरण - चिन्ह उपस्थित थे । उसने आंखें मल कर देखा । कहीं यह कोई स्वप्न तो नहीं है ? किंतु वह स्वप्न नहीं हो सकता । वही छोटे-छोटे सुडौल और मांसल पांवों के निशान .... जैसे धीरे-धीरे मस्तानी चाल से कोई सुंदरी अभी-अभी यहां से गुजरी हो । इतनी तेज वर्षा की धारा भी ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 9

रजत की जड़ता भी टूट चुकी थी । पागलों की तरह वह वृक्ष की ओर झपटा किंतु वहां कुछ न था । रजत ने वहां का चप्पा चप्पा छान मारा और अंत में निराश होकर वहीं मंदिर की देहरी पर सिर रख कर बैठ गया । वर्षा कब बंद हु,कब उसे नींद ने धर दबाया इसका उसे एहसास भी न हो सका । नींद टूटने पर उसने स्वयं को उसी कमरे में पाया जहां वह ठहरा हुआ था । गेंदा सिंह उसके पास बैठा था । रजत को आंखें खोलते देख कर उसने चाय का प्याला बढ़ा दिया -"साहब ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 10

रात भीगती गई । एक बज गया । वह प्रतीक्षा करते करते थक कर मुंडेर पर सिर रखे अपनी से बोझिल पलकों को आराम देने लगा । कितनी देर सोया कुछ पता न चला । एक हल्की सी आहट से उसकी आंखें खुल गयीं । उसने देखा - उसके चारों ओर सफेद बादलों का एक टुकड़ा मडरा रहा था । उसने उठने का प्रयत्न किया लेकिन सफल न हो सका । जैसे शरीर अपने स्थान पर जड़ हो गया था । वह अपने हाथ पांव भी नहीं हिला सकता था । थोड़ी देर में बादलों के उस टुकड़े की ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 11

"ओह !" रजत गहरे सोच में डूब गया । उसकी आंखों में रूप कुमार का भोला मुख डोल गया उसकी भोली निश्छल दृष्टि में छिपी आरजू उसका हृदय मसलने लगी । तो क्या रूपकुंवर मर चुकी है ? लेकिन यह कैसे संभव है ? वह मर चुकी है तो रातों को इस तरह भटकती क्यों है ? कहीं उसकी अतृप्त आत्मा का कोई भयानक सफ़र तो नहीं है ? गेंदा सिंह कहता है कि रूपकुंवर को दस वर्षों से न किसी ने देखा न उसकी आवाज सुनी फिर भी वह उसे मृत नहीं मानता । इस हिसाब से तो ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 12

रजत ने उसे बहुत समझाया । भूत-प्रेतों की बातें भी कहीं लेकिन वह अपने निश्चय पर अडिग रहा । समय बीतता रहा । रात गहरी होने लगी । रजत मोमबत्ती जला कर कुछ पढ़ने की कोशिश कर रहा था । पास ही बैठा गेंदा सिंह किसी अनहोनी की प्रतीक्षा में सन्नद्ध था । रजत का मन भटक रहा था । अपने हृदय में आज वह कुछ अधिक ही उतावली, ज्यादा ही बेचैनी का अनुभव कर रहा था । रात के ग्यारह बज गए । उसके लिए बैठे रहना असह्य होता जा रहा था । जब न रहा गया तो ...और पढ़े

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मंदिर के पट - 13

काफी दिन चढ़ने के बाद रजत की मूर्छा टूटी । उसने देखा - गेंदा सिंह का शरीर अब भी की धूल में पड़ा था । मंदिर के पट खुले हुए थे किंतु उसके अंदर रात देखे दृश्य का कोई भी चिन्ह शेष न था । एक बार फिर रजत का सिर चकरा गया ।"तो क्या वह सब स्वप्न था ? रूप कुंवर को किसने मारा ? उसकी लाश कहां गई ? और खून की वह धारा .... उफ़ ! हे भगवान ... क्या था वह सब ?" उसने दोनों हाथों से अपना सिर दबा लिया । कुछ देर बाद ...और पढ़े

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