तेरी पगार कितनी है? - तीन हज़ार! - महीने के? - और नहीं तो क्या, रोज़ के तीन हज़ार कौन देगा रे मुझको? - ऐसा मत बोल, दे भी देगा! उसने कनखियों से लड़की की ओर देखते हुए कहा। लड़की शरमा गई। लड़के ने धीरे से लड़की का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया। लड़की के हाथ न हटाने पर वो उत्साहित हुआ। दोनों टहलते हुए बगीचे के गेट पर साइकिल लेकर देर से खड़े कुल्फी वाले की ओर जाने लगे। वो दोनों आसपास की बस्तियों में ही रहते थे। कभी- कभी इसी तरह छिप- छिपा कर यहां सार्वजनिक गार्डन में चले आते थे और कुछ देर बातें करते हुए घूमते थे।

नए एपिसोड्स : : Every Monday, Wednesday & Friday

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सबा - 1

- तेरी पगार कितनी है? - तीन हज़ार! - महीने के? - और नहीं तो क्या, रोज़ के तीन कौन देगा रे मुझको? - ऐसा मत बोल, दे भी देगा! उसने कनखियों से लड़की की ओर देखते हुए कहा। लड़की शरमा गई। लड़के ने धीरे से लड़की का हाथ अपने हाथ में लेकर दबा दिया। लड़की के हाथ न हटाने पर वो उत्साहित हुआ। दोनों टहलते हुए बगीचे के गेट पर साइकिल लेकर देर से खड़े कुल्फी वाले की ओर जाने लगे। वो दोनों आसपास की बस्तियों में ही रहते थे। कभी- कभी इसी तरह छिप- छिपा कर यहां ...और पढ़े

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सबा - 2

इस मुलाकात में दोनों कुछ खुल गए। एक दूसरे के बारे में जानकारी भी हासिल कर ली। अब जब काम से सुविधा होती, दोनों कुछ दूर के एक पार्क में मिलने का मौक़ा और बहाना ढूंढ लेते। लड़का उस बड़ी सी आलीशान दुकान में चौकीदारी भी करता था और कभी - कभी भीड़ - भाड़ ज़्यादा होने पर भीतरी काउंटरों पर भी बुला लिया जाता था। मोल तोल के लिए। एक दिन दोनों पार्क में हमेशा की तरह टहल रहे थे। सहसा लड़की बोली बोली - तुझे कितनी तनखा मिलती है? - दस हजार। लड़के ने तुरंत कहा। उसकी ...और पढ़े

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सबा - 3

दोनों की घनिष्ठता बढ़ने लगी और अब उनकी यही कोशिश रहती कि जब भी मौक़ा मिले, वो कहीं न मिलने की योजना बनाएं। लड़की ने एक अकेली महिला का खाना बनाने का जो काम लिया था वो इसी तरफ़ था जहां लड़का काम करता था। भोजन बनाने में जैसे लड़की के हाथ- पैरों में कोई जादू असर कर जाता और वो झटपट काम निपटा कर लड़के की दुकान की ओर दौड़ लगा देती। साइकिल तो थी ही। आननफानन में पहुंच जाती। जो लड़का पहले पांच बजे भागने को तैयार रहता था और कभी ज़्यादा काम होने पर बेमन से ...और पढ़े

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सबा - 4

आज लड़का नहीं आया। लड़की पेड़ के नीचे अपनी साइकिल लिए बहुत देर तक खड़ी रही। बार- बार उस की ओर देखती जिससे लड़का आया करता था पर लड़के का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। कभी - कभी कोई आता- जाता अजनबी अकेली लड़की को इस तरह खड़ी देख कर गहरी नज़र से उधर देखने लग जाता तो लड़की झल्ला जाती। वह अपने को किसी तरह व्यस्त बताने के लिए अपनी साइकिल में ही किसी नुक्स को टटोलने लग जाती। लेकिन फ़िर अचानक लड़की को याद आ जाता कि इसी तरह एक दिन साइकिल की चेन उतर जाने से ...और पढ़े

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सबा - 5

लड़की रात भर न सो सकी। रह रह कर यही सोचती रही कि दीदी ने उन्हें कब और कहां लिया। लड़के का नाम उन्होंने कैसे जान लिया जबकि खुद उसने अब तक कभी लड़के से पूछा नहीं। और अब सब कुछ जान लेने के बाद ऐसा क्या हुआ कि दीदी उसे लड़के से मिलने के लिए मना कर रही है। वह दीदी से कुछ पूछ भी न सकी। अगले दिन शाम को जैसे ही लड़का आकर लड़की से मिला, लड़की ने पहला काम यही किया कि उससे उसका नाम पूछा और उसे अपना नाम बताया। लड़के का नाम राजेश ...और पढ़े

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सबा - 6

क्या इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि इश्क सबसे पहले इंसान की नींद उड़ाता है। रात इतनी गहरी हो पर बिजली को नींद ही नहीं आ रही थी। इधर से उधर करवटें बदलती। थोड़ी- थोड़ी देर बाद पानी पीने के लिए उठती। कहते हैं कि आदमी मेहनत करे तो चैन की नींद सोता है। पर बिजली को देखो, तीन- तीन घरों का काम ले लिया, मन लगा कर मेहनत से काम करती है फिर भी नींद का कहीं नामोनिशान नहीं।और तीन ही क्यों, उसके अपने घर का काम कौन करेगा? वो कोई रानी - महारानी थोड़े ही है कि ...और पढ़े

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सबा - 7

बिजली चलती- चलती रुक गई। उसने आंखें तरेर कर राजा की ओर देखा और बोली - फिर तूने क्या मैं क्या कहता, मैं तो चुपचाप बैठा रहा। राजा मासूमियत से बोला।बिजली बिफर पड़ी और लगभग चीख कर बोली - चुपचाप क्यों बैठा रहा? उस हरामखोर का मुंह नौंच लेता। उसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बात कहने की? और तू... तू भी तो कम नहीं, उसने कहा और तूने सुन लिया। जवाब नहीं दे सकता था तू उसे?- क्या जवाब देता? राजा बुदबुदाया।- अच्छा?? अब ये भी मैं ही बताऊं कि क्या जवाब देता तू उसे? तेरे कलेजा नहीं है? ...और पढ़े

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सबा - 8

आज उनकी छुट्टी थी। शायद इसीलिए वो इतनी शांति और आराम से बैठी थीं। वो कोई किताब पढ़ रही जब उन्होंने देखा कि बिजली रसोई से अपना काम ख़त्म करके जाने के लिए उनके पास अनुमति लेने आई तो वो पल भर के लिए क़िताब अपनी आंखों के सामने से हटा कर उससे बोलीं - बैठ!बिजली को थोड़ा अचंभा हुआ। उसे यहां काम करते हुए इतने दिन हो गए थे पर पहले तो उन्होंने कभी बिजली को बैठने के लिए नहीं कहा। कहतीं कैसे, वो तो ख़ुद हमेशा जाने की जल्दी या हड़बड़ी में होती थीं, बिजली से काम ...और पढ़े

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सबा - 9

बिजली और राजा की मुलाकातें दिनोंदिन बढ़ने लगीं। लेकिन कभी - कभी दोनों इस संयोग के याद आने पर ज़रूर हो जाते थे कि ऐसा क्यों होता है कि कभी कोई बिजली को, तो कभी कोई राजा को, एक दूसरे से मिलने से रोकता है। आश्चर्य तो इस बात का था कि ऐसा कहने वाले ये जानते तक न थे कि वे दोनों कब मिलते हैं और कहां मिलते हैं। क्या लोगों को वो बहुत छोटे लगते हैं?आज जब मैडम ने बिजली से पूछा कि उसकी शादी कब होगी तो वो यही सोच कर उनके सामने बैठ गई कि ...और पढ़े

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सबा - 10

राजा कुछ बेचैन सा था। दोपहर बाद जब ग्राहकों की भीड़ कुछ कम हुई तब वह कौने वाले शोरूम पहुंच कर एक छोटा सा सुंदर पर्स खरीद भी लाया था और उसे सुंदर सी पैकिंग में भी डलवा लाया था। उसे ये तो नहीं मालूम था कि बिजली के पास इस पर्स में रखने लायक पैसों की बचत कब तक होगी लेकिन वो ये ज़रूर जानता था कि इसे देख कर बिजली बेहद खुश ज़रूर हो जायेगी। जन्मदिन पर प्रेमिका प्रेमी से कुछ पाकर खुश होती ही है। और उसकी इस खुशी से राजा को ये मौक़ा हासिल हो ...और पढ़े

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सबा - 11

और कोई दिन होता तो शायद राजा इस तरह बिजली को यहां आते देख कर उस पर गुस्सा हो कि वो यहां क्यों चली आई।लेकिन आज उसे बिजली के आने से बड़ी राहत महसूस हुई। बिजली भी खाली दुकान में समय ख़त्म हो जाने के बाद भी राजा को चौकीदार की तरह यहां अकेले बैठे देख कर कुछ - कुछ माजरा तो समझ ही गई और कुछ उसे जल्दी- जल्दी राजा ने बता दिया।राजा गिफ्ट को मेज की दराज में रख कर बिजली से छिपाए रहा। तोहफ़ा कोई ऐसे थोड़े ही दिया जाता है कि पाने वाला सामने आ ...और पढ़े

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सबा - 12

बिजली तीन दिन से घर से बाहर नहीं निकली थी। घर में भी वो या तो चुपचाप एक कौने गुमसुम उदास बैठी रहती या फिर तंग सीढ़ियों के सहारे छत पर पहुंच कर रोती रहती। चमकी ने दो- एक बार उसे इस तरह परेशान हाल देख कर कुछ पूछना भी चाहा पर बिजली टाल गई। जब उसने कुछ नहीं बताया तो चमकी ने भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। सोच लिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं होगी। और अपने काम में लग गई।मां को ज़रूर कुछ खड़का सा हुआ कि लड़की काम पर क्यों नहीं जा रही है! लेकिन पूछने ...और पढ़े

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सबा - 13

मैडम धाराप्रवाह बोल रही थीं और बिजली उनके सामने चुपचाप बैठी कौतुक से उनकी बात सुन रही थी। कभी- जब बिजली को मैडम की बात बहुत ही अटपटी या अनहोनी सी लगती तो वह असमंजस में अपनी दोनों हथेलियां अपने गालों पर रख लेती और उछल कर उकड़ूं बैठ जाती। उनकी बात सुनने में उसे ये भी ख्याल नहीं रहता कि उसने अपने पैर कुर्सी की गद्दी पर टिका दिए हैं।मैडम भी उसे ऐसा करते देख कुछ नहीं बोलती थीं। शायद उन्हें लगता होगा कि जाने दो, गंदा करेगी तो क्या, कल खुद ही साफ़ भी करेगी। आखिर थी ...और पढ़े

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सबा - 14

शाम का धुंधलका सा था। बिजली छत के एक कौने में मुंडेर पर सिमटी- सिकुड़ी बैठी थी कि चहकती चमकी ऊपर आई।आते ही शुरू हो गई, बोली - तू अपनी साइकिल में ढंग से साफ - सफाई क्यों नहीं रखती? कभी तो तेल- ग्रीस कुछ लगाया कर। चेन जाम हुई पड़ी है। जंग खाई।- क्या हुआ? बिजली ने उसके इतने सारे उलाहने सुने तो धीमे से बोल पड़ी।चमकी बोली - अरे बीच सड़क पर एकदम से रुक गई साइकिल। मैंने ज़ोर से धकेल कर आगे बढ़ाने की कोशिश की पर टस से मस नहीं हुई, बल्कि चेन और उतर ...और पढ़े

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सबा - 15

- तू चलेगी?- कहां!- मेरी सहेली के घर।- क्यों, क्या है वहां? बिजली ने कहा।- आज उसकी सगाई है चमकी ने चहकते हुए कहा।- तो मैं चल कर क्या करूंगी, तुम जाओ। सहेली तुम्हारी है। मेरा वहां क्या काम। बिजली ने पल्ला झाड़ते हुए कहा।- काम तो किसी का भी क्या होता है सगाई में। मौज मस्ती करेंगे, खायेंगे - पियेंगे और...- ...और? बिजली ने उत्सुकता से पूछा।- उसके दूल्हे को देखेंगे। चमकी ने मानो कोई रहस्य खोल कर पटाक्षेप कर दिया।बिजली बुझ सी गई। फ़िर मंद स्वर में बोली - दूल्हे को क्या देखना है? एक जैसे होते ...और पढ़े

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सबा - 16

चमकी को इसमें कोई भी परेशानी नहीं हुई। परेशानी क्या होनी थी। पुलिस थाना था भी पास में, और काम करने वाले विक्रम अंकल तो उसकी एक सहेली के पापा ही थे। सब काम फटाफट हो गया।अब तक तो काम निपटाने की भाग - दौड़ में चमकी के मन में कोई खलबली नहीं आई थी पर अब घर में लौट आने के बाद एक डूबी उदासी उसके चारों ओर फैलने लगी।उसने मां को कुछ नहीं बताया था। बापू अभी तक आए नहीं थे। वो जानती थी कि ये खबर ऐसी नहीं है कि जिसे छिपाया जा सके। और ऐसी ...और पढ़े

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सबा - 17

रास्ते भर बिजली कुछ न बोली। वह किसी कठपुतली की तरह साथ चलती रही। उसने अपने चेहरे को इस ढक रखा था कि वो तो उन सबको अच्छी तरह देख पा रही थी लेकिन उनमें से कोई भी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। किसी ने ऐसी कोशिश भी नहीं की। उस बड़ी सी जीप में कुल छः सात लोग थे। लंबा रास्ता था। लगभग दो घंटे का सफ़र करने के बाद जब एक छोटे से गांव के ढाबे पर गाड़ी रुकी तो सब लोग नीचे उतर गए लेकिन बिजली उसी तरह पीछे की सीट पर अकेली बैठी रही ...और पढ़े

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सबा - 18

राजा ने बिजली को अपनी बांहों में लेकर भींच रखा था। बिजली की आंखें बंद थीं और उसे लग था कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सुख थोड़ी देर के लिए उसके साथ है। लेकिन ये गोरखधंधा अब तक उसे समझ में नहीं आया था। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई! उसका दिल कह रहा था कि वह यहां से उड़ कर तुरंत अपनी मैडम के पास पहुंच जाए और इस पहेली के अर्थ उनसे ही जाकर पूछे। शायद तब ज़िंदगी कुछ समझ में आ जाए। लेकिन मैडम के पास पहुंचना तो दूर, अभी तो उसे अपने घर पहुंचना ...और पढ़े

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सबा - 19

राजा बार- बार ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खड़ा होता और फ़िर ध्यान से अपनी शक्ल देख कर थोड़ी तक घूरता रहता। फिर ऊपर से लेकर नीचे तक ख़ुद अपना मुआयना करता हुआ खुद ही झेंपता हुआ शीशे के सामने से हट जाता था। एक तरह से उसका कायापलट ही हो गया था। बोलना उसे कहीं कुछ नहीं था। वैसे भी उसे हिंदी के अलावा कोई और भाषा न बोलनी आती थी न समझ में आती थी। कल रात को फ्लाइट से टकलू के साथ यहां पहुंचने के बाद से अब वह थोड़ी देर के लिए कमरे में अकेला ...और पढ़े

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सबा - 20

नहीं, उन्हें टकलू कहना ठीक नहीं। टकलू तो हिंदी जगत में गंजे आदमी को कहते हैं। वो भी सम्मान नहीं, बल्कि निरादर के भाव से!उनका नाम तो टकासालूलू था। वो सर पर गंजे ज़रूर थे लेकिन शरीर के और किसी भी हिस्से में गंजे नहीं थे। वनमानुष सा बदन था उनका। राजा ये सब अच्छी तरह देख चुका था, रात के अंधेरे में भी, और अब दिन के उजाले में भी। उसने वाशरूम में उनका मोबाइल ले जाकर दिया था। अकेले बैठे - बैठे राजा को एक शरारत भरा ख्याल आया कि उसे उनको टकलू नहीं बल्कि सालू कहना ...और पढ़े

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सबा - 21

महिला आयोग के सदस्य दो भागों में बंट गए। अध्यक्ष और एक सहयोगी का कहना था कि किसी वयस्क पर इतनी निर्ममता से शारीरिक प्रहार नहीं किया जा सकता। अलबत्ता, महिला को इस तरह चोट पहुंचाना ही अपने आप में सही नहीं ठहराया जा सकता। इसे अपराध की श्रेणी में ही रखा जाना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर दो और सदस्यों का कहना था कि ये कोई हमला या आक्रमण नहीं है बल्कि लड़की के माता पिता द्वारा स्वयं ही उत्तेजना में उसे दिया गया दंड है जो कुछ ज्यादा सख्त हो गया है पर इसके पीछे परिवार के संस्कार ...और पढ़े

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सबा - 22

जब घर का ये बावेला थमा तो एक शाम छत पर बैठे- बैठे चमकी ने बिजली को घेर लिया। पास आ बैठी और लगभग पुचकारते हुए ही उससे बोली - अच्छा, जो हुआ सो हुआ। जाने दे। पर अब बता तो सही कि हुआ क्या था? तू नंदिनी के घर से अचानक गायब कैसे हो गई? वो भी मुझे बिना बताए।बिजली पल भर को चुप रही। लेकिन उसे खामोश देख कर चमकी ने भी तेवर बदले। सचमुच रोने लगी। सुबकते - सुबकते ही बोली - चल साल भर बड़ी बहन कोई इतनी बड़ी नहीं होती कि उससे पूछ कर ...और पढ़े

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सबा - 23

देर तक तालियां बजती रहीं। पूरा हॉल मानो श्रोताओं के हर्षोल्लास से गूंज उठा। एक अतिथि तो यहां तक सुने गए कि आजकल के कार्यक्रम होते ही इतने नीरस और उबाऊ हैं कि श्रोताओं का तालियां बजाने का दिल ही नहीं करता। एक- आध ताली बजती भी है तो वो इस खुशी में बजती है कि चलो, बैठे तो सही। शायद यही कारण है कि कार्यक्रमों के संचालकों का तकिया कलाम ही ऐसा बन जाता है - "एक बार ज़ोर से करतल ध्वनि करके उत्साह वर्धन कीजिए"... वो इतनी बार ऐसा कहते हैं कि श्रोताओं को खीज होने लग ...और पढ़े

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सबा - 24

"फीनिक्स" का अनुभव राजा के लिए अनोखा रहा। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की गांव में जिस बात को लेकर दिन भर हल्के - फुल्के मज़ाक करके अपना टाइम यूहीं पास करते रहते हैं उसका इन विकसित देशों में इतना व्यवस्थित और सुविधापूर्ण कारोबार है। यहां लाखों के वारे- न्यारे होते हैं। बचपन से लेकर जवानी तक की इतनी ऊंची कीमत होती है। स्वर्ग जैसा वातावरण। कीमती अल्कोहल के किस्म- किस्म के ब्रांड। खाने को लजीज़ व्यंजन! हां, बस वो करना है जो गांव में करने पर सारा गांव मज़ाक उड़ाता है। राजा को बचपन के ...और पढ़े

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सबा - 25

बिजली को लगभग पैंतीस मिनट का इंतज़ार करना पड़ा। जब मैडम आईं तो उन्होंने बिजली के अभिवादन का भी नहीं दिया और घर का दरवाज़ा खोल कर भीतर दाखिल हो गईं। लेकिन जैसे ही मैडम ने पलट कर बिजली से कहना चाहा कि वो पहले एक कप चाय बनाले, बिजली उनकी तरफ़ कातर दृष्टि से देखती हुई ज़ोर से रो पड़ी। हतप्रभ मैडम समझ गईं कि बिजली की पिछले दिनों अचानक अनुपस्थिति ज़रूर किसी ख़ास परेशानी की वजह से ही है और उनके तेवर तुरंत बदल गए। वो नेपकिन से मुंह पौंछते हुए बस इतना ही कह सकीं - ...और पढ़े

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सबा - 26

नंदिनी की कहानी भी अजीबो- गरीब थी। उसका रिश्ता बहुत छोटी सी उम्र में किसी परिजन के माध्यम से अपरिचित परिवार में तय कर दिया गया था। ये परिवार सुदूर छोर के एक पहाड़ी गांव में बसा हुआ था और अब अपने पैतृक ठिकाने से वर्षों से संपर्क में नहीं था। बताया गया कि लड़का किसी कंपनी में इंटर्नशिप करते हुए विदेश में रहता है और कुछ वर्षों के बाद ही लौट कर आएगा। इसीलिए नंदिनी के घर वालों की यह बात भी मान ली गई थी कि लड़की तीन - चार साल यहीं अपने पीहर में रहते हुए ...और पढ़े

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सबा - 27

ज़िंदगी संयोगों का ही नाम है। जब राजा ने ये सुना कि नंदिनी नाम की इस लड़की की शादी में ही जिस लड़के से तय हुई थी वह अब उससे शादी नहीं करना चाहता। राजा को इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक बात नहीं लगी। कितने ही लड़के ऐसा करते हैं और अब तो लड़कियां भी ऐसा करती हैं। जो लड़कियां पढ़ लिख जाती हैं वो अपना भला- बुरा भी समझने लग जाती हैं और फिर यदि उन्हें उनके घर वालों के द्वारा लिए गए निर्णय में कोई कमी या खोट नज़र आता है तो वो उनकी बात मानने से इंकार ...और पढ़े

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सबा - 28

सालू को दो दिन के लिए कहीं जाना था। यहां आने के बाद से ही उसकी व्यस्तता काफ़ी बढ़ थी। इस व्यस्तता का कारण भी शायद ये दो लोग ही जानते थे। एक तो पिछले कई दिनों से उसके साथ ही घूमने विदेश आया हुआ राजा, और दूसरा ये लड़का कीर्तिमान। और ये कारण यही था कि सालू भारत में "फीनिक्स" की एक ब्रांच खोलने का सपना देख रहा था। उसका जुनून ऐसा था कि यदि उसे कंपनी की ओर से शाखा खोलने की अनुमति नहीं मिली तो वो खुद ही इस कारोबार को वहां शुरू करने का इरादा ...और पढ़े

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सबा - 29

राजा को बड़ा अचंभा हुआ। यही कुछ तो खुद अपने देश में भी हुआ था। हां, बस नाम कुछ सा था। कोई देखी- सुनी नहीं, खुद राजा के अपने गांव में घटी घटना थी। राजा के पिता तब जीवित थे। गांव में उनके पड़ोस में एक परिवार रहता था जिसमें तीन लड़के थे। राजा तो तब बहुत छोटा सा था और उसकी दोस्ती पड़ोस में रहने वाले परिवार के सबसे छोटे लड़के से ही थी। लेकिन गांव की आबो- हवा और रस्मो - रिवाज के चलते करीब रहने वाले परिवार बिल्कुल अपने रिश्तेदारों जैसे ही हुआ करते थे। तो ...और पढ़े

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सबा - 30

- ये कैसे हो सकता है? बिजली लगभग चिल्ला पड़ी। - कैसे हुआ, ये कहानी तो सिर्फ़ तुम बता हो, मैं तो बस इतना कह सकती हूं कि ऐसा हो गया है। अभी भी वक्त है अगर तुम संभालना चाहो। न चाहो तो ये भी तुम्हारी प्रॉब्लम है। - मगर... - अगर मगर तुम जानो। हां, अगर किसी मदद की ज़रूरत पड़े तो मुझे बता देना। कह कर गुस्से में लगभग पैर पटकती हुई डॉक्टर भीतर अपने चैंबर की ओर चली गईं। वे अभी भी इस बात को लेकर अपमानित सा महसूस कर रही थीं कि उन्होंने किसी पेशेंट ...और पढ़े

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सबा - 31

राजा को बड़ा अजीब सा लगा। यदि वो अपने देश में होता तो शायद अपने दोस्तों के साथ मिल खूब हंसता। गांव में होता तब तो हालत खराब ही हो जाती। लेकिन वो अपने घर - गांव से बहुत दूर, समंदर पार एक ऐसे देश में था जहां उसे जानने वाला दो लोगों के सिवा कोई न था। और यहां तो सालू भी नहीं था। कीर्तिमान को देख कर राजा यकायक ये तय नहीं कर पा रहा था कि वह उसके हुलिए पर हंसे या उसकी वेदना से द्रवित होकर उसे गले से लगा ले। कीर्तिमान इस वक्त बहुत ...और पढ़े

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सबा - 32

राजा लौट आया। विदेश से लौटने के बाद उसने अपने मैनेजर साहब से कुछ दिन गांव में ही रहने अनुमति मांगी। ऐसी अनुमति न मिलने का कोई कारण नहीं था। लेकिन अब राजा वो न रहा था जो अपने गांव में रहने के दिनों में था। उसके मानस रंध्र खुल गए थे। उसके सोच के गलियारों के पलस्तर उखड़ गए थे। वह जब भी सुबह - शाम यार दोस्तों के संग घूमने- फिरने के ख्याल से घर से निकलता तो ढेरों मंसूबे बांधता हुआ निकलता, दोस्तों को ये बताएगा, वो बताएगा, लेकिन उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह ...और पढ़े

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सबा - 33

मंत्रीजी एकाएक उठ कर भीतर चले गए। उनका चेहरा अपमान और गुस्से से तमतमाया हुआ था। बाउंसर्स को बुलाने ज़रूरत नहीं पड़ी। ऊंची आवाज़ में बहस सुन कर गेट पर खड़ा गार्ड ख़ुद भीतर चला आया। क्या हुआ, जब तक वो कुछ समझ पाता तब तक भीतर के कमरे पड़ा पर्दा हटा कर राज्य के असरदार मंत्रीजी भीतर जा चुके थे। गार्ड ने तो केवल पर्दा हिलता हुआ देखा। फिर उसने कुछ त्यौरियां चढ़ा कर उस मेहमान की तरफ़ घूरते हुए देखा जिससे बात करते हुए मंत्री महोदय नाराज़ हो गए थे और अधूरी बात बीच में ही छोड़ ...और पढ़े

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सबा - 34

मंत्रीजी के वापस लौट कर आते ही पीछे पीछे एक सेवक बड़ी सी ट्रे में तीन चार प्लेटें लेकर हुआ जो फलों और मेवे से भरी थीं। पनीर पकौड़ों की प्लेट से गर्म भाप भी उड़ रही थी। चाय अभी सुनहरे प्यालों में नहीं बल्कि केतली में ही थी ताकि नाश्ते के दौरान कहीं ठंडी न हो जाए। सालू हैरान था कि ये शानदार आवभगत किसके लिए थी? लेकिन जब मंत्रिजी ने सामने बैठते हुए एक भुना काजू मुंह में डाला तो सालू को लगा कि नाश्ता उसी के लिए आया है। कमरे में न तो कोई और है ...और पढ़े

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