अगर आप विश्वास करते हैं कि, आत्माएं होती हैं और वे भटकती हैं तो यह कहानी आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेगी. यदि आप भटकी हुई आत्माओं और बे-बस, मजबूर और अपने प्यार की तलाश में परेशान आत्माओं पर विश्वास नहीं करते हैं तो लेखक के पास आपके लिए किसी भी प्रकार का कोई भी संतुष्ट उत्तर नहीं है. *** जाड़े की दांत किटकिटाती हुई ठंड. बर्फ के समान ओस के कारण सर्द और भीगी रात. चारो तरफ जैसे जमी हुई ओस की धुंध छाई हुई थी. इस समय ठंड से कहीं अधिक पाला पड़ रहा था. इस कारण पाले की बूँदें कट-कट कर वृक्षों की प

Full Novel

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नि:शब्द के शब्द - 1

नि:शब्द के शब्द- धारावाहिक - पहला भाग कहानी शरोवन अगर आप विश्वास करते हैं कि, होती हैं और वे भटकती हैं तो यह कहानी आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करेगी. यदि आप भटकी हुई आत्माओं और बे-बस, मजबूर और अपने प्यार की तलाश में परेशान आत्माओं पर विश्वास नहीं करते हैं तो लेखक के पास आपके लिए किसी भी प्रकार का कोई भी संतुष्ट उत्तर नहीं है. जाड़े की दांत किटकिटाती हुई ठंड. बर्फ के समान ओस के कारण सर्द और भीगी रात. चारो तरफ जैसे जमी हुई ओस की धुंध छाई हुई थी. इस समय ठंड से ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 2

नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक- दूसरा भाग कहानी/शरोवन अब तक आपने पढ़ा है कि, मोहिनी को को झांसा देकर, के परिवार वालों ने निर्ममता से मार कर, अंग्रेजों के पुरातन कब्रिस्थान में वर्षों से पुरानी एक अंग्रेज स्त्री की कब्र में दबा दिया था और पुलिस में उसकी गुमशुदगी रिपोर्ट लिखा कर सारे मामले को दबाने की कोशिश कि जा रही थी. मगर, अपने गम में मारे मोहित को यह सब कुछ नहीं मालुम था. वह तो अपनी मंगेतर मोहिनी के अचानक गायब हो जाने के दुःख में परेशान था. तब उसकी दशा पर परेशान होकर मोहिनी की भटकती ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 3

निशब्द के शब्द -धारावाहिक- तीसरा भाग तीसरा भाग लोटे में खून काफी देर के उपचार के बाद मोहित के को जब होश आया तो उन्होंने अपने चारों तरफ मोहित के पिता, अपने दोनों लड़कों और अन्य साथियों को बैठे हुए विचारमग्न देखा. काफी देर के पश्चात जब वे कुछ सामान्य से हुए तब भी नहीं समझ पाए थे कि उन्हें अचानक से हुआ क्या था? शरीर पर भी किसी चोट और हथियार के निशान तक नहीं थे. सारे बदन पर किसी तिनके तक की कोई भी खरौंच नहीं थी. फिर उनके भाई और मोहित के पिता ने डाक्टर को ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 4

नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक - चतुर्थ भागअभी तक आपने पढ़ा है कि, मोहिनी की आत्मा भटकते हुए अपने मोहित से न केवल मिलती ही है बल्कि उसे सब कुछ बता देती है। मोहित के चाचा के लोग उसे मारने की साजिश करते हैं, पर मोहिनी उसकी रक्षा करती है। आत्माएं कहां रहती हैं? कौन उनकी हिफाजत करता है? मरने के बाद उनका कैसा संसार और आत्मिक जीवन होता है? इन समस्त बातों की जानकारी केवल सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखी गई हैं, किसी भी धर्म विशेष से इसका कोई भी संबंध नहीं है और ना ही ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 5

नि:शब्द के शब्द धारावाहिक - पांचवा भाग भटकती हुई आत्माओं की आकाशीय दुनियां मोहिनी अपने ही ख्यालों और सोचों गुम और खोई हुई थी. सोच रही थी कि, पता नहीं कब उसके लिए दूसरा शरीर मिलेगा और कब वह मोहित से फिर से मिल सकेगी? यह तो बिलकुल वही बात हुई थी कि, जैसे किसी मरीज़ के गुर्दों ने अपना काम करना बंद कर दिया हो और वे फेल हो चुके हों; तब वह मरीज कोई दूसरे गुर्दे के प्रत्यारोपण के लिए, इन्तजार कर रहा हो. किसी की आकस्मिक मृत्यु हो और उसका गुर्दा अथवा शरीर, मोहिनी के लिए ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 6

नि:शब्द के शब्द - 6 *** इकरा बनाम मोहिनी मोहिनी और रागनी की मित्रता बनी रही. अब अधिकाँश समय दोनों, एक साथ ही रहतीं. कहीं भी जाती तो साथ ही जातीं. अपनी बातें आपस में एक-दूसरे से साझा करतीं. अपना-अपना दुःख आपस में बांटती. उनकी मित्रता इसी तरह से चलती रही. चलती रही. मगर ऐसा कब तक चलता, दोनों में से कोई भी नहीं जानता था. नीचे दुनियां का हरेक रिवाज़, हरेक कार्य बदल चुका था. लोग अपने स्वार्थ के लिए आपस में ही एक-दूसरे को खाए जाते थे. इंसान की जान की कोई भी कीमत नहीं रही थी. ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 7

नि:शब्द के शब्द - धारावाहिक- सातवां भाग दुष्ट भुतही आत्मा का प्रकोप 'अरे ! तू क्या बोल रही है? कुछ मालुम भी या नहीं?' 'मुझे तो खूब पता है कि, मैं मोहिनी हूँ, लेकिन तू नहीं जानता है कि, तू क्या बोल रहा है?' इकरा बोली तो, उसका पति अवाक-सा उसका चेहरा देखने लगा. फिर काफी देर के बाद वह जैसे बहुत कुछ सोचकर आगे बोला, 'देख इकरा ! ये इतनी सारी भीड़ हमारे मुहल्ले की है. तू मर गई थी, मगर शुक्र हो अल्लाह का कि, उसने तुझे फिर से ज़िन्दगी देकर मेरे पास भेज दिया है. ये ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 8                                     

नि:शब्द के शब्द धारावाहिक/ आठवां भाग भूत और जिन्न का बसेरा दूसरे दिन हामिद जब सुबह घर आया तो अकेला नहीं था. उसके साथ एक निहायत ही अजीब-सा दिखनेवाला कोई दुबला-सूखा-सा, बीमार जैसा आदमी साथ में था. उसके सिर पर सूफी तरीके की सफेद गोल टोपी थी और उसकी किनारी काले रंग की थी. वह काला चोगा पहने हुए था. मुंह पर सफेद काली लम्बी दाढ़ी लहरा रही थी. उसके कंधे से एक लम्बा, गंदा - सा थैला लटक रहा था. इसके साथ ही उसके दोनों हाथों की आठों अंगुलियों में आठ अंगूठियां, न जाने कौन-कौन-से सफेद, नीले, काले ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 9

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक / नौंवा भाग इकरा बनाम मोहिनी सुबह ग्यारह बजे से लेकर शाम के पांच तक हामिद मानो अपने घोड़े-खच्चर सब बेचकर गहरी नींद सोता रहा. इस मध्य सारे घर में सन्नाटा किसी मातम वाले घर के समान पसरा रहा. मोहिनी अभी तक अपने स्थान पर बैठी हुई थी. जब से वह बैठी थी, तब से एक ही बात के बारे में वह लगातार सोच रही थी. जिस बात के लिए वह सोच रही थी वह यही थी कि, जब से वह इस संसार में आई थी, तब से उसे अपने आपको मोहिनी साबित करने ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 10

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक /दसवां भाग *** 'नि:शब्द के शब्द'- 10 इस रोमांचित, अपराधिक और भटकती हुई रूहों आत्माओं की कहानी में अब तक आपने पढ़ा है कि; मोहिनी का विवाह जब उसके प्रेमी मोहित से, जातिय समीकरण के विरोध के बावजूद भी मोहित के परिवार वालों ने करना मंजूर कर लिया तो मोहिनी के साथ-साथ उसके सारे परिवार में खुशियों की लहर दौड़ने लगी. मगर वास्तव में मोहित के परिवार वालों ने मोहिनी और उसके परिवार को धोखा दिया था. वे किसी भी कीमत पर मोहित का विवाह एक छोटी जाति की लड़की से नहीं करना चाहते ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 11

मेरे बदन से तू बलात्कार करेगा? अभी बताती हूँ? अभी शाम का सूरज पूरी तरह से डूब भी नहीं था कि, 'मदार गेट' की इस तवायफों की जुर्म और पाप से सनी गन्दी बस्ती में आकाश में उड़ते हुए तमाम भूखे गिद्धों के समान, गर्म गोश्त के सौदागर आकर टहलने लगे थे. कोठों की खिड़कियों, चकलाघरों के छज्जों और बालकनियों में सज-धज कर बैठने वाली सुंदर-से-सुंदर अपने बदन की नुमाईश लगाने वाली, बहुत-सी मजबूर और काफी कुछ अपनी मर्जी से, अपने जवान बदन को बेचकर पेट की भूख शांत करने वाली वेश्याओं ने घूमना और इठला-इठलाकर नीचे खड़े लोलुप ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 12

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक / बारहवां भाग रोनित, मोहित और मोहिनी अस्पताल का वातावरण. कलवरी मेडीकल होस्पीटल के प्राइवेट कमरे में मोहिनी, घायल अवस्था में लेटी हुई छत को जैसे बे-मकसद ही निहार रही थी. अस्पताल के इस खामोश और शांत कमरे में मोहिनी के अतिरिक्त यदि कोई था तो वह थी स्वास्थ्य मशीनों की विभिन्न प्रकार की आवाजों के साथ उन पर नीले रंग के चमचमाते हुए डिजीटल नंबर और अजीब-सी ध्वनियाँ. उसके बदन की पीठ, सीधे हाथ और दोनों पैरों में जो चोटें आई थीं उसके हिसाब से उन्हें ठीक होने में कम-से-कम पन्द्रह से बीस ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 13

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक तेरहवां भाग *** मैं मोहित हूँ, लेकिन . . .? '?'- मोहित बड़ी देर मोहिनी की सिसकियों को सुनता रहा. मोहिनी भी उसके बदन से लिपट कर रोटी रही. फिर काफी देर की खामोशी के पश्चात मोहित ने अपने हाथ से मोहिनी का सिर धीरे-से ऊपर उठाया. उसके चेहरे, आंसुओं में डूबी उसकी गहरी-गहरी आँखों को ध्यान-से, बहुत गम्भीरता से देखा, फिर उससे कहा कि, 'मैं आपके दुःख, आपके दर्द को बहुत अच्छी तरह समझ ही नहीं रहा हूँ बल्कि हृदय की गहराई से महसूस भी कर रहा हूँ, मगर बड़े अफ़सोस के साथ ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 14

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक / चौदहवां भाग 'हाय मर गया अम्मा' अचानक चलती हुई वायु का एक झोंका और चुपचाप बैठी हुई मोहिनी की बड़ी-बड़ी आँखों में धूल के महीन कण भर कर चलता बना. इस प्रकार कि, मोहिनी को अपनी साड़ी के पल्लू से आँखें साफ़ करनी पड़ गईं. उसने आँखें साफ कीं तो वे तुरंत ही लाल भी हो गईं. बड़ी देर से किसी खेत की मुंडेर पर बैठी हुई मोहिनी काफी देर से पैदल चलते हुए थक गई थी और फिर यहां आकर सुस्ताने के लिए बैठ गई थी। अपने कार्यालय से दो दिन का ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 15

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक *** पन्द्रहवां भाग गन्ने के खेत में लाशें मोहित के पिता बड़ी देर तक सोच-विचारों में, अपने सिर को झुकाए हुए, एक हाथ से सहारा लिए खोये रहे. मोहित भी जैसे एक प्रतिमा बना हुआ कभी वह मोहिनी को चोर नज़रों से देखता तो कभी अपने पिता को विचारों में गुमसुम पाया हुआ देख, जैसे चिंतित हो जाता था. फिर काफी देर के बाद उन्होंने जब अपनी आँखें खोली तो सामने मोहिनी को अपने सिर पर साड़ी का पल्लू डाले हुए, चुपचाप खड़ी देख वे उससे सम्बोधित हुए. वे बोले कि, 'अरे ! बेटी, ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 16

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक सोलहवां भाग *** दुष्ट-आत्मा का इंतकाम मोहिनी की गिरफ्तारी, थाने में ही तीन-तीन पुलिस की एक रहस्यमयी तरीके से हुई हत्या और इसके साथ ही मोहित के गाँव में उसके दोनों चचेरे भाइयों की गन्ने के खेत में हत्या तथा उसके दूसरे दिन उसके पिता की आत्महत्या; कुल मिलाकर इतने सारे लोगों की एक ही तरीके से हुई हत्याएं होने की खबर मीडिया और अखबारों ने सारे शहर में अचानक से आई हुई बाढ़ के समान फैलाकर रख दी. अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में खबरें छप गई थीं- 'पुलिस थाने में ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 17

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक सत्रहवां भाग गरीब के घर में छुपी हुई माया 'राजा का गाँव.' अंग्रेजों के में, राजा हरिहर सिंह के नाम से बसा हुआ एक पुश्तैनी गाँव. समय के साथ, राजा का वास्तविक नाम तो मिट गया था, पर आज भी इस बड़ी आबादी के गाँव को आस-पास के तमाम इलाकों के गाँव और कसबों में इसे 'राजा का गाँव' नाम से ही जाना जाता है. शाम का समय था. आकाश में सूर्य की डूबती हुई किरणें, नीचे धरती पर आकर, गाँव की पुश्तैनी राजा हरिहर सिंह की खंडर हुई हवेली के ताल में बिखरती ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 18

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक अठारहवां भाग*** दुष्ट-आत्माओं का लश्कर मोहिनी का जीवन, इकरा के बदन का साथ लेकर, में भीगी हुई लकड़ियों के समान सुलगते हुए हर वक्त धुंआ देने लगा. इस तरह कि, वह ढंग से ना तो जी सकी और ना ही दुखी होकर मर ही सकी. अपनी अकेली, तन्हा और परेशान ज़िन्दगी के साथ वह अपनी नौकरी तो कर ही रही थी, रोनित, जो उसका एक प्रकार से बॉस और मालिक भी था, वह भी उसका ख्याल हर तरह से रखता ही था, मगर फिर भी, जब कभी वह अपने जीवन के अतीत के बारे ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 19

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक / उन्नीसवां भाग *** लोग तो मर कर जलते होंगे . . . मोहिनी जीवन रेगिस्थान की गर्म, आँधियों में उड़ती हुई धूल से बने हुए 'सिंकहोल' की गहराइयों में दब कर रह गया. इस प्रकार कि, जितना ही अधिक वह उसमें से बाहर आने के लिए अपने हाथ-पैर मारती थी, उससे भी अधिक वह उसके अंदर धंसती चली जाती थी. उसे मालुम था कि, एक समय था जबकि, वह इसी संसार में कितना अधिक खुश थी. उसका सारा जीवन ज़माने कि मस्त हवाओं का दामन थामकर खुशियों के रेले में उड़ा फिरता था. ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 20

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक बीसवां भाग *** सीवन नदी का मरघट समय का पहिया और आगे बढ़ गया. के निवास से, पैदल कदमों की दूरी पर, पत्थरों से अपना सिर टकरा-टकराकर बहने वाली सीवन नदी इस प्रकार से बह रही थी कि, मानों तीन ताकतवर युवक, शक्कर को पीट-पीटकर, किसी हलवाई की मक्खियों से भरी दूकान में बूरा बना रहे हों और साथ ही उन युवकों के मुखों से निकलनेवाली आवाजें ऐसी प्रतीत होतीं थीं, कि जैसे कोई दलदल से भरे हुए कीचड़ में से निकलने की बार-बार कोशिश कर रहा हो. मुख्य शहर से काफी बाहर, सीवन ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 21

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक इक्कीसवां भाग अपनी कब्र पर फूल रखने और मोमबत्तियां जलाने आई हूँ *** होटल जितना मनहूस नाम इस होटल का था, उससे भी कहीं अधिक इसके यहाँ की बनी हुई शाकाहारी बिरियानी की विशेष प्लेट भी सारे शहर में मशहूर थी. यह होटल जैसे ही सुबह दस बजे से खुलता था तो फिर रात के बारह बजे तक इसकी भीड़ ही समाप्त नहीं होती थी. इसी कारण, मोहिनी ने भी जब इसकी चर्चा सुनी तो उसने भी आज दोपहर का लंच यहाँ खाने का अपना मन बना लिया था. वह अपनी कार में बैठी ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 22

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक बाईसवां भाग *** आशू मोहिनी का जीवन, अपने अतीत की धूमिल यादों की परतों कभी खुरचने, कभी उन पर अपने आंसू बहाने तो कभी बे-मतलब ही अनजानी राहों की तरफ चलने और भागने का मोहताज हो गया. जब तक वह कार्यालय में रहती, व्यस्त रहती, अपना काम करती. बहुत कम बोलती, अधिकांशत: चुप और खामोश रहती. जितने लोग भी उसकी वास्तविकता को जानते थे, वे सब उसे एक संशय की दृष्टि से ही घेरे नज़र आते थे. इसका सबसे बड़ा कारण था कि, कोई भी उसकी वास्तविकता को नहीं जान सका था. वह कहाँ ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 23

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक तेइसवां भाग *** एक और दीवाना 'आप बंगलोर जा रही हैं?' 'जी हां.' मोहिनी एक छोटा-सा उत्तर दिया तो सोहित ने कहा कि, 'शुक्र है, यह दुनियां बनाने वाले का. आप कुछ तो बोलीं. वरना मैं तो समझा था कि, आपने मुझे पहचाना ही नहीं?' 'इतने साल गुज़र गये, कैसे पहचान लेती?' ?- मोहिनी समझ चुकी थी कि, यह युवक उसे इकरा समझकर ही बात कर रहा है. इसलिए वह उसकी बातें पहले सुन लेना चाहती थी. 'मैं, अपनी मां के बहुत कहने पर लड़की देखने जा रहा हूँ, लेकिन अब उसे पसंद नहीं ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 24

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक चौबीसवां भाग ज़िंदा हैं कितने लोग . . .' मोहिनी के दोस्त बदल गये. बनकर आये हुए लोगों के चेहरे भी तुरंत तब बदल गये, जब उसने अपनी कहानी, अपनी दोनों ही दुनियां की सुना दीं. जो भी उससे मिलता, उसमें रूचि लेता, उसे पसंद भी करता, उसके साथ बैठकर अपने भावी जीवन के सपने देखता, उन सपनों को संवारता और जब यह सारे सपने साकार करने का समय आता तो अमावस्या के छिपे हुए चन्द्रमा के समान जैसे फिर कभी भी अपना मुंह दोबारा दिखाने के लिए नहीं आना चाहता था. उसके जीवन ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 25

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक पच्चीसवां भागमोहिनी के मर्डर की साजिश मनुष्य अगर परमेश्वर की मर्जी के बिना अपनी खुद बसाने लगे तो बनाने वाले का परिश्रम व्यर्थ ही कहलायेगा. यदि ईश्वर ही घर न बनाये तो फिर उसे क्या मनुष्य बना सकता है? यदि मनुष्य की सुरक्षा विधाता न करे तो उसका जीना कठिन हो जाता है. मनुष्य जो दिन-रात कड़ी-से-कड़ी मेहनत करके दुःख की रोटी खाता है, क्या उसे बगैर परमेश्वर की मर्जी के मिल जाया करती है? कोई सुख की रोटी खाता है. कोई दुःख भरी, आंसुओं के साथ अपनी रोटी खा लेता है. कोई रोता ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 26

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक/छ्ब्बीसवां भागसोये हुए मानव कंकाल'बेटी, तुम ठीक तो हो न?'प्रीस्ट महोदय ने मोहिनी के सिर अपना हाथ रखते हुए उससे कहा तो मोहिनी उठकर खड़ी हुई और फफक-फफक कर रो पड़ी. उसे रोते हुए देखकर, प्रीस्ट ने यह समझा कि, वह शायद अपने उस प्रियजन की याद में रो रही है कि, जिसकी कब्र पर वह अगरबत्तियाँ जलाने आई है. सो, उसकी मनोदशा को गौर से समझते हुए उन्होंने उसे तसल्ली दी और कहा कि,'बेटी ! हम सभी को एक दिन इस नाश्मान संसार से जाना है. और जो यहाँ से चला गया है, वह ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 27

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक सत्ताईसवाँ भाग मोहिनी गायब मोहिनी अचानक से दिखना बंद हो गई तो आरम्भ में ने भी इसको गम्भीरता से नहीं लिया. सबने सोचा था कि, कोई बात हो चुकी होगी? बीमार भी हो सकती है? अवकाश लेकर कहीं घूमने चली गई होगी, मगर जब वह तीन सप्ताहों से भी अधिक समय के लिए गायब हो गई और कार्यालय में नहीं आई तो उसके दफ्तर में चुप-चुप, छिपकर बातें होने लगी. दफ्तर के अधिकाँश लोग उसके बारे में विभिन्न प्रकार की बातें करने लगे. लेकिन, रोनित को तो सब मालुम ही था कि, उसी के ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 28

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिकअट्ठाइसवां भाग कहाँ गए वह दिन मोहिनी के कितने ही दिन इसी उहापोह में व्यतीत गये. रोनित के 'रिसोर्ट' पर रहते हुए अब तक उसे दो महीने से अधिक बीत चुके थे और किसी को भी नहीं मालुम था कि, वह यहाँ पर एकांत में एक गुमनामी की ज़िन्दगी बिता रही है. हांलाकि, रोनित से बात करने के पश्चात मोहित अब जैसे शांत हो चुका था, परन्तु फिर भी रोनित किसी भी तरह का जोखिम मोहिनी के जीवन के लिए नहीं लेना चाहता था. उसने यूँ तो मोहित को काफी-कुछ डरा-धमका दिया था, फिर भी ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 29

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिकउन्तीसवाँ भागखामोशी की आवाज़ '?'- बच्चे ने हां में अपनी गर्दन हिला दी.'रहते कहाँ हो?'उस ने हाथ के इशारे से दूर झोपड़-पट्टी की बनी बस्ती की तरफ इशारा कर दिया.'यहीं, ठहरना तुम. मैं तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ.'कहकर मोहिनी तुरंत अंदर चली गई और फ्रिज खोलकर उसमें रखी हुई खाने की वस्तुओं को ढूँढने लगी. फिर उसे जो कुछ भी मिला, उसे लेकर उसने एक प्लास्टिक बैग में भरा और लेकर के तुरंत ही बाहर आ गई. बाहर आई तो वह बच्चा अभी भी खड़ा हुआ उसी की तरफ देख रहा था.तब मोहिनी ने उसे ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 30

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिकतीसवाँ भागमोहित और मोहिनी रोनित ने अपने 'रिसोर्ट' से लगी हुई बंजर ज़मीन और मोहिनी ने उसमें गरीब, लाचार और बेसहारा बच्चों के लिए एक अनाथालय बनवाया. उसके अंदर बच्चों के रहने के सभी साधन भी धीरे-धीरे लगवाये. सबसे बाहर मुख्य द्वार पर एक पालना लटकवा दिया. इस पालने का कार्य केवल इतना ही था कि, कोई भी अगर किसी बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहता है अथवा किसी को भी कोई लावारिस बच्चा कहीं मिलता है तो वह उसे इस पालने में बगैर किसी की भी अनुमति लिए हुए रख सकता ...और पढ़े

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नि:शब्द के शब्द - 31 (अंतिम भाग)

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिकइकत्तीसवां भागअंतिम भाग *** नि:शब्द के शब्द किसी ने कहा है कि, 'अंत भला तो सब भला, अंत बुरा तो सब बुरा.' होनी को किसने और कब टाला है? जो होना होता है, वह तो होकर ही रहता है. जो भी ऊपरवाला चाहता है वह होकर ही रहता है. कोई कितने भी जतन क्यों न कर ले, ईश्वर की मर्जी, उसके कार्यक्रम और उसकी योजनाओं पर इस दुनियां का कोई भी संत, महात्मा, इंसान और बड़े से ...और पढ़े

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