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नि:शब्द के शब्द - 26

नि:शब्द के शब्द / धारावाहिक/छ्ब्बीसवां भाग


सोये हुए मानव कंकाल

'बेटी, तुम ठीक तो हो न?'

प्रीस्ट महोदय ने मोहिनी के सिर पर अपना हाथ रखते हुए उससे कहा तो मोहिनी उठकर खड़ी हुई और फफक-फफक कर रो पड़ी. उसे रोते हुए देखकर, प्रीस्ट ने यह समझा कि, वह शायद अपने उस प्रियजन की याद में रो रही है कि, जिसकी कब्र पर वह अगरबत्तियाँ जलाने आई है. सो, उसकी मनोदशा को गौर से समझते हुए उन्होंने उसे तसल्ली दी और कहा कि,

'बेटी ! हम सभी को एक दिन इस नाश्मान संसार से जाना है. और जो यहाँ से चला गया है, वह हमसे भी अच्छी जगह पर है. वह जीजस के पास है और ह्मेशा के लिए सुरक्षित है.'

'?'- तब मोहिनी ने उनसे अपनी आँखों में आये हुए आंसू पौंछते हुए कहा कि,

'जी नहीं. . .फादर साहब, यह बात नहीं है. मेरे रोने का कारण तो कुछ और है.'

'?'- इसका मतलब है कि, तुम यहाँ यह मोमबत्तियां और फूल रखने नहीं आई थी? उन्होंने एक संशय से पूछा.

'हां, आई थी.' मोहिनी बोली.

'किसकी कब्र पर?'

'अपनी ही कब्र पर.'

'?'- प्रीस्ट अचानक ही सकपका-से गये. वे मोहिनी की शक्ल को ध्यान और गम्भीरता से देखते हुए बोले,

मैं कुछ समझा नहीं?' फिर रुक कर आगे उन्होंने कहा कि,

'तुम अपनी ही कब्र पर फूल रखने आई हो? सही कह रही हो न?'

'जी. . .हां. मैंने आपको तब भी बताया था, जब मैं यहाँ पहली बार आई थी. आप विश्वास ही नहीं करते हैं?' मोहिनी ने कहा तो प्रीस्ट ने आगे उससे आश्चर्य से पूछा,

'यह कैसे हो सकता है कि, जो मनुष्य मर चुका है, वह अपनी ही मज़ार पर श्रृद्धा के फूल चढ़ाए? ज़रा बता सकोगी कि, तुम्हारी कब्र कौन-सी है?'

'यह वाली.' मोहिनी ने कैटी जॉर्जजियन की कब्र की ओर हाथ उठाकर इशारा किया तो वे बोले कि,

'यह तो किसी अंग्रेज औरत की बहुत पुरानी कब्र है और उस पर उसका नाम कैटी जॉर्जजियन का लिखा हुआ है?'

'हां, इसी कब्र में मुझे मारकर बे-रहमी से दबा दिया गया था.'

'इस कब्र में?'

'जी हां.'

'किसने मारा था तुम्हें?'

'मोहित के चाचा और उसके दोनों 'कजिन्स' ने.'

'कैसे?'

'कार में, मेरी ही साड़ी से मेरा गला घोंट दिया था, उन कमीनों ने.'

'कहाँ हैं वे अब लोग?'

'तीनों ऊपर नर्क की आग में जाने के लिए, अभी सो रहे हैं.'

'सो रहे हैं. . .? कहाँ ?'

'अब ये तो मैं नहीं जानती हूँ. लेकिन, मैंने तो यही सुना है कि, मरने के बाद शरीर नष्ट हो जाता है और आत्मा सोती रहती है.'

'और कुछ . . .?'

'दूसरे विश्वास के धर्म-ग्रथ यह भी कहते हैं कि, शरीर मरने के बाद पंचतन्त्र में विलीन हो जाता है और आत्मा कभी मरती नहीं है, केवल शरीर बदलकर फिर-से नया जन्म लेती है.'

'ठीक है. जिन लोगों ने तुमको मार डाला था, उनका क्या हुआ? क्या वे पकड़े गये?'

'उन्हें कौन पकड़ता है. केस चला और सब छूट गये थे- सबूतों के अभाव का लाभ लेकर. . .?'

'लेकिन, मैंने उन्हें मार डाला था.' मोहिनी ने कहा तो प्रीस्ट जैसे रोमांच से भर गये. तुरंत ही उन्होंने पूछा,

'तुमने. . .? उन्हें मार दिया था. . .लेकिन, कैसे?'

'उनमें से एक को मैंने तब मार दिया था, जब मैं आत्मा में भटकती फ़िर रही थी और दो को मेरी मित्र इकरा हामिद ने.'

'और वह तुम्हारे यहाँ आकर रोने का कारण . . .?'

'आज ही मुझे खबर मिली है कि, अब मेरा ही प्रेमी, मुझसे विवाह करने के बाद मुझे भी मार डालेगा. इसीलिये रोना आता है. जिस इंसान के लिए मैं 'मनुष्य के पुत्र' और 'शान्ति के राजकुमार' से यह ज़िन्दगी दोबारा भीख में मांगकर इस दुनिया में फिर से आई हूँ, वही मुझे मार डालना चाहता है.' मोहिनी कहते हुए जब फिर से रोने लगी तो प्रीस्ट उससे बोले कि,

'बेटी, धेर्य रखो. मेरे साथ, मेरी कोठी पर आओ. तब बैठकर तुम्हारी समस्या पर विस्तार से बात करेंगे.'

'क्या बात करेंगे? आपने मेरी बातों पर विश्वास पहले भी नहीं किया था और इस बार भी नहीं करेंगे?'

'तुम यह कैसे कहती हो?' प्रीस्ट बोले.

'अगर करते होते तो आप कभी का इस कैटी जॉर्जजियन की कब्र को खुदवाकर देख चुके होते?' मोहिनी बोली तो उन्होंने अपनी परेशानी बताई. वे बोले,

'किसी कब्र को दोबारा खुदवाना, इतना आसान नहीं है. जिलाधीश और पुलिस को सूचित करके, इजाजत लेनी होगी?'

'तो फिर ले लीजिएगा न? जब भी आप यह काम करें तो मुझे सूचित कर दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.'

'लेकिन, एक बात मेरी समझ-से बाहर है?'

'वह क्या?'

'तुम इस कब्र को खुदवाकर, क्या देखना चाहती हो? मेरा मतलब कि, तुम इस बात के लिए इतना अधिक रुचि क्यों ले रही हो?'

'मुझे सचमुच कोई भी रूचि नहीं है, इस कब्र को खुदवाकर देखने की. मुझे मालुम है कि, मेरी सच्चाई आसमान और ज़मीन की दो विभिन्न वे घटनाएँ हैं जिन पर कोई विश्वास ही नहीं करता है. मेरे रूचि केवल इतनी ही है कि, इस कब्र को देखकर लोग मुझ पर और मेरी बात पर विश्वास करें कि, मैं मोहिनी ही हूँ और इस कैटी जॉर्जजियन की सदियों पुरानी कब्र में मेरे बदन को मारकर दफना दिया गया है. आप इसे खुदवाकर देखेंगे तो इसके अंदर मेरी अस्थियाँ जरुर मिलेंगी. और अगर उन्होंने मेरी सोने की अंगूठी उंगली से उतारी नहीं होगी तो आपको मेरी सगाई की वह अंगूठी भी मिल जायेगी जो मुझे मेरे मंगेतर मोहित ने मुझे पहनाई थी.' मोहिनी कहते हुए जब फिर से रुआंसी होने लगी तो प्रीस्ट ने उसे सम्भाला. वे उसे संतोष देते हुए बोले कि,

'धीरज रखो. अब जब तुमने मुझे इस केस में ड़ाल ही दिया है तो मैं तुम्हारी मदद जरुर करूंगा.'

तब मोहिनी ने अपने को संभाला. साड़ी के पल्लू से आपनी भीगी आँखें पोंछी और फिर उन सबके सामने ही उसने कैटी की कब्र पर 'रीथ' रखी. फूल भी रख दिए और मोमबत्तियां जलाकर प्रीस्ट से बोली,

'मैं चलती हूँ अब. जब आप बुलायेंगे तो आ जाऊंगी.'

अपने पर्स से उसने अपनी फर्म का परिचय-कार्ड निकालकर प्रीस्ट को दिया और उन्हें नमस्ते कहकर अपनी कर में जाकर बैठ गई.

प्रीस्ट महोदय ने मोहिनी के दिए हुए कार्ड पर लिखा हुआ उसका नाम पढ़ा-

'मोहिनी व्यास- जनरल मैनेजर.'

'इतने अच्छे ओहदे पर काम करती है और बातें. . .? समझ में नहीं आता है कि, विश्वास करूं या फिर टाल जाऊं?' प्रीस्ट ने अपने साथ आये हुए लोगों के मध्य कहा तो नबीदास बोला कि,

'साहब जी, क्यों पड़ते हैं, इन भूतों-प्रेतों के पचड़े में. जानें भी दें. वह अगर यहाँ आती है तो आने दें. हमसे क्या मतलब?'

'नहीं. . .नहीं. कोई तो बात जरुर है, इस लड़की की बातों में. वह आसमानी संसार की वे बातें बताती है, जिन पर केवल हम मसीही लोग ही विश्वास किया करते हैं?' प्रीस्ट बोले तो उनके साथ आई हुई एक महिला ने उनसे पूछा. वह बोली,

'तो फिर क्या सोचा है आपने?'

'मैं, नगर के पुलिस आयुक्त से बात करूंगा और कब्र भी खुदवाकर दिखवाऊंगा. वह मुझे अच्छी तरह से जानता भी है. देखें क्या होता है? समझ में नहीं आता है कि, वह लड़की झूठ क्यों बोलेगी?'

इसके बाद वह क्षणिक समूह की सभा समाप्त हो गई. प्रीस्ट अपने चर्च की तरफ चले गये और बाक़ी के लोग भी जब वहां से चले गये तो नबीदास मन-ही-मन यह सोचता रहा कि, 'जब सब चले गये हैं तो मैं क्यों यहाँ कब्रिस्थान में ठहरूं? इन बलाओं का क्या भरोसा, अगर अब दोनों ही दोबारा आ गईं तो फिर मेरा क्या बनेगा?' वह भी वहां से निकलकर बाहर आ गया.सोचते हुए कि- पहले तो केवल एक ही थी और अब दो. . .?

दूसरी तरफ जब मोहिनी अपने निवास पर अपने घर पहुची तो वहां पर पहले ही से अपने बॉस रोनित की कार, अपने घर के सामने खड़ी देखकर चौंक गई. उसे देखकर वह शीघ्र ही अपनी कार को बंद करके, नीचे उतरी और ड्राइविंग सीट की तरफ आई तो रोनित ने अपनी कार का शीशा नीचे सरकाया. उसे देखकर मोहिनी बोली,

'सर ! आप. . .अचानक से? फोन कर दिया होता. . .मैं खुद ही आ जाती?'

'कोई बात नहीं. मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है.'

यह कहते हुए रोनित कार से नीचे उतरा. तब मोहिनी ने अपना घर खोला. रोनित को घर के अंदर 'लिविंग रूम' में बैठा दिया और तुरंत ही किचिन में चली गई. रोनित को बताये बगैर उसने 'कॉफ़ी मेकर' पर कॉफ़ी बनने के लिए रख दी. पांच मिनट के अंदर ही उसने काली कॉफ़ी दो मग में निकाली और उन्हें लेकर जब अंदर आई तो रोनित उसे देखकर बोला कि,

'बड़ी ही 'प्रोम्प्ट' हें, आप. बड़ी शीघ्र ही कॉफ़ी भी बना ली.'

'देर ही कितनी लगती है, 'ब्लैक' कॉफ़ी बनाने में. हम दोनों ही 'ब्लैक' कॉफ़ी पीते हैं.'

उसके बाद रोनित ने कॉफ़ी का एक घूँट भरा और फिर अपनी बात पर आया. वह बोला कि,

'मोहिनी जी, मुझे आपकी बहुत चिंता है. इसीलिये मैंने चाहा था कि, आपसे खुद आमने-सामने बात की जाए.'

'कैसी चिंता?' मोहिनी ने पूछा.

'आपकी जान का खतरा है.'

'मैं जानती हूँ.' मोहिनी बोली तो रोनित एक दम ही चौंक गया. उसने एक संशय से मोहिनी को देखा, फिर बोला,

'तो आपको मालुम है?'

'नहीं, मालुम था. लेकिन, आज सुबह ही पता चला है.'

'किसने बताया है आपको?' रोनित ने पूछा.

तब मोहिनी ने आज सुबह कब्रिस्थान में हुई सारी घटना के बारे में उसे बता दिया तो वह बोला कि,

'अब मुझे ज्यादा चिंता आपके लिए नहीं रहेगी, क्योंकि जब आसमान की सारी फौज ही आपकी सुरक्षा के लिए खड़ी हो चुकी है तो . . .? खैर छोड़िये इसे अभी. मुझे अपना काम तो करना ही है. मैं आपको बताने जा रहा था कि, आपके मंगेतर मोहित ने आपको अपने रास्ते से हटाने का 'प्लान' बनाया हुआ है. वह क्यों ऐसा चाहता है, यह तो मैं नहीं जानता हूँ, मगर मुझे आश्चर्य भी है और अफ़सोस भी. वह इंसान जो आपका मंगेतर है, वह क्यों ऐसा करना चाहता है. शायद इसीलिये वह इतना शीघ्र आपसे विवाह के लिए तैयार भी हो गया, ताकि शादी के बाद वह बहुत आसानी से आपको अपने मार्ग से हटा दे.'

रोनित की इस बात पर मोहिनी एक बार फिर से मन-ही-मन घबरा गई. इस प्रकार कि, मजबूरी के हालात देखकर ही उसकी पलकों की कोरें भीगने लगीं. फिर भी वह अपने को सम्भालते हुए बोली कि,

'मैं अभी तक यह नहीं समझ पाई हूँ कि, वह क्यों अब इस प्रकार से सोचने लगा है और इतना नीचे तक गिर चुका है कि, मुझे दोबारा अब खुद ही मार देना चाहता है?'

'मोहिनी जी, यह दुनियां है और इस दुनियां के मनुष्य का नैतिक पतन इतना नीचे तक गिर चुका है कि, जहां पर आकर वह इससे अधिक और नीचे जा ही नहीं सकता है. मैं गारंटी से तो नहीं कह सकता हूँ, लेकिन मेरा अनुमान है कि, मोहित, पहले तो आप पर यह विश्वास ही नहीं करता है कि, आप उसकी मोहिनी हो. वह समझता है कि, या तो आप सरकार की खुफिया विभाग की कोई एजेंट हो, जो उसके किसी कुकृत्य का भंडाफोड़ कर देना चाहती हो. इसीलिये वह बहुत शीघ्रता से मेरे बिजनिस से भी किनारा कर गया है. दूसरा कारण हो सकता है कि, वह यह तो समझ चुका है कि, आप ही केवल वह औरत हो जो उसके बारे में रत्ती-रत्ती भर, हर तरह की बात जानती हो. इसीलिये वह आपको अपने रास्ते से हटाने की सोचता हो?'

'ठीक है, वह मेरे साथ कुछ भी करे, इससे पहले मैं उससे एक बार जरुर ही मिलूंगी.'

'अवश्य ही मिलिएगा, लेकिन अभी नहीं. अभी आपके जीवन की सुरक्षा अत्यंत जरूरी है.' रोनित बोला तो मोहिनी ने कहा कि,

'तो फिर. . .?'

'आपको, फिलहाल यहाँ से हटना होगा.'

'आपका मतलब?'

'मैं कुछ दिनों के लिए आपको अपने एक 'रिसोर्ट' पर भेजता हूँ. वहां जाकर छुपकर रहिये. किसी को नहीं मालुम होगा कि आप वहां पर हैं. केवल मैं और आप ही जानेगे. जब मोहित की आपके विरुद्ध की जा रही गति-विधियां ठंडी हो जायेंगी, तब आप फिर से यहाँ आ जाइए. रही दफ्तर के काम की, तो आप अपना लैबटॉप साथ लेती जाना, वहां रहकर भी आप इन्टरनेट से आप अपना काम कर सकती हैं.'

'जैसी आपकी योजना.' यह कहकर मोहिनी और रोनित की बात समाप्त हो गई.


एक दिन, रात के अँधेरे में, बहुत संदिग्ध होकर, मोहिनी अपने 'रिसोर्ट' पर चली गई.

अच्छी जगह थी. सुहाना मौसम था. नौका-बिहार करने के लिए बहुत सुंदर, दिल को लुभानेवाली झील का थरथराता हुआ जल था. अकेली मोहिनी, अकेले एक नये शहर में फिर एक बार नितांत अकेली थी. कोई नहीं था उसका यहाँ, सिर्फ न दिखनेवाली मौसमी हवाओं और विधाता की बनाई हुई प्राकृतिक सुन्दरता के.

एक दिन, मोहिनी अपने 'रिसोर्ट' पर अपने निवास के सामने आराम कुर्सी पर पैर फैलाए हुए बैठी थी. झील के जल पर दो नौकाएं थी और वे भी चुपचाप बंधी हुई, झील के थिरकते हुए जल के प्रवाह से हिचकोले ले रहीं थीं. वायु की हल्की-हल्की, मुलायम लहरें, झील के जल से स्नान करके आती हुई उसके दूधिया, गोरे गालों को बार-बार चूम लेती थीं तो वह सहसा ही सिहर जाया करती थी. दूर-दूर तक अकेली झील के किसी भी किनारे पर और आस-पास मनुष्य का एक साया तक नज़र नहीं आता था. केवल दो चौकीदार थे और वे भी दिन में अपने घर चले जाते थे.

मोहिनी, अकेली बैठी हुई अपने नितांत अकेले, तन्हा जीवन के बारे में कभी सोचती, कभी अपने साथ हुई एक-एक घटना को क्रम से दोहराती और कभी सोचते हुए अपनी ऑंखें आंसुओं से भर लेती थी. वह सोचती थी कि, उसका जीवन भी कैसा है? एक दो-राहों के मध्य खड़ा हुआ, नितांत अकेला, बेसहारा और बेबस? सारे जीवन में केवल एक अकेला मोहित ही रह गया था, उसको अपना प्यार बनाने के लिए? उसने मोहित के लिए क्या कुछ नहीं किया? उसे चाहा, अपना बनाया, अपनी धडकनों में बसाया और उसी की खातिर वह आसमान की सियासत से भी नहीं डरी और वापस इस संसार में आ गई; मगर कौन जानता था कि, वही मोहित, उसका मंगेतर आज उसे अपना न जाने कैसा शत्रु समझ बैठा है और उसको अपने मार्ग से सदा के लिए हटाने की योजनायें बना रहा है? ऐसा सोचते ही मोहिनी के बदन का रोम-रोम तक काँप जाता था.

वह अभी बैठी हुई, यही सब सोचे जा रही थी कि तभी उसका फोन जो 'सायलेंट मोड' पर था, उसकी गोद में अचानक से थर-थराने लगा. मोहिनी ने फोन उठाया और नंबर देखकर बात आरम्भ की. बोली,

'हलो?'

'मैं, फादर थॉमस बोल रहा हूँ. वही थॉमस जिससे आपने कुछ दिन पूर्व कब्रिस्थान के प्राचीर में बात की थी.'

'जी. . .बोलिए?'

'आप जिसे अपनी कब्र कहा करती थीं, उसकी दोबारा खुदाई का काम पूरा हो चुका है और 'फॉरेंसिक' रिपोर्ट भी आ चुकी है.'

'जो, मैंने आपको बताया था, वह सबकुछ, सही-सही सामने आया है?' मोहिनी ने पूछा.

'जी. . .हां, . . .लेकिन. . .?'

'लेकिन क्या?'

'आपकी बात सच निकली है. उस कब्र में दो मानव स्त्रियों के कंकाल मिले हैं. एक स्त्री की उम्र का अनुमान है कि, वह कोई 30-32 वर्ष की रही होगी और दूसरी स्त्री काफी वृद्ध पाई गई है. परेशानी यह है कि, पुलिस ने जिस युवा स्त्री के कंकाल की जो फोटो दिखाई है वह किसी मोहिनी नाम की लड़की की थी और उसकी शक्ल आपसे नहीं मिलती है. पुलिस ने यह भी बताया है कि, काफी समय पहले यह केस बंद भी किया जा चुका है.'

प्रीस्ट महोदय ने बताया तो मोहिनी बोली,

'यह सब तो मैंने आपको पहले भी बताया था. रही बात शक्ल मिलने की, तो वह क्योंकर मिलेगी? मैं ही वही मोहिनी हूँ, जिसका कंकाल आपको मिला है. जब मेरा शरीर इसी कब्र में नष्ट हो गया था तो 'मनुष्य के पुत्र' अर्थात आसमानी राजा ने मुझे दूसरे के शरीर में भेजा है. यही कारण है कि, लोग मुझे पहचानने से इनकार वैसे ही करते हैं जैसे कि, आप भी कर रहे हैं? चलिए, कोई अन्य मेरी बातों पर विश्वास न करे, मगर आपको तो 'मनुष्य के पुत्र' का अनुयायी और फादर होने के नाते आसमान की बातों पर यकीन करना चाहिए?'

'?'- फादर जी, मोहिनी की इस बात पर चुप हो गये.

'मैंने इतनी अधिक ताज्जुब, संशय, आश्चर्य और सवालों से भरी नज़रें अपने चेहरे के प्रति इससे पहले कभी नहीं देखीं होगीं, जैसे कि, आज देखा करती हूँ. मैं अपने बारे में सच्चाई बताती हूँ तो लोग मुझे भूत समझते हैं. कोई भटकी हुई प्रेतात्मा समझकर मुझसे किनारा करते हैं. मुझसे दूर भागते हैं. मानो मैं इंसान न होकर, कोई बला हूँ?' मोहिनी ने आगे कहा तो फादर बोले,

'बेटी ! मैं तुम्हारी परेशानी समझता हूँ. लेकिन, क्या करूं? मैं भी तो औरों के समान एक मनुष्य ही तो हूँ. मैं अगर तुम पर विश्वास करूं भी, फिर भी दूसरों को कैसे समझाऊंगा? तुम्हारी समस्या का वास्तविक हल, मैं समझता हूँ, तो वह केवल परमेश्वर के ही पास है. तुम, प्रार्थना करो, मै भी करूंगा. परमेश्वर तुम्हें शान्ति दे.' प्रीस्ट ने उसे तसल्ली दी.

इसके पश्चात बात समाप्त हो गई तो मोहिनी ने भी अपना फोन बंद कर दिया और दोनों हाथों से अपनी सिर पकडकर, झुकाकर बैठ गई. उसे लगा कि, एक बार फिर से उसने किसी टूटते हुए तारे को आसमान में देख लिया है- आसमान से गिरते हुए तारे को देखना शुभ नहीं होता है. दुनियांवालों का तो यही भ्रम है- विश्वास है.

क्रमश:

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