भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें

(54)
  • 93.4k
  • 6
  • 41.7k

मेरी बात यात्रा मेरे जीवन में एक नया उत्साह, रंग भर देती है। मैंने देश-विदेश की कईं यात्राएँ की हैं। कुछ परिवार के साथ, कुछ बड़े समूह में। मैं जब भी किसी यात्रा से लौट रही होती, तो मेरा मन दुःखी हो जाता था। वहाँ से वापस आने का मन ही नहीं होता था। मेरा मन, उस जगह से कभी नहीं भर पाता था। मैं उस जगह को, उस हरियाली को, प्रकृति को या महलों को कम जी पायी। कुछ छूट गया, कुछ अधूरा रह गया। इस अहसास की साथ मैंने अपने जीवन में कईं सालों तक यात्राएँ की। जब

Full Novel

1

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 1

मेरी बात… यात्रा मेरे जीवन में एक नया उत्साह, रंग भर देती है। मैंने देश-विदेश की कईं यात्राएँ की कुछ परिवार के साथ, कुछ बड़े समूह में। मैं जब भी किसी यात्रा से लौट रही होती, तो मेरा मन दुःखी हो जाता था। वहाँ से वापस आने का मन ही नहीं होता था। मेरा मन, उस जगह से कभी नहीं भर पाता था। मैं उस जगह को, उस हरियाली को, प्रकृति को या महलों को कम जी पायी। कुछ छूट गया, कुछ अधूरा रह गया। इस अहसास की साथ मैंने अपने जीवन में कईं सालों तक यात्राएँ की। जब ...और पढ़े

2

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 2

2 भूटान की राजनीति का केंद्र शोगडू भूटान का राजप्रमुख राजा अर्थात द्रुक ग्यालपो होता है, हालांकि यह पद है लेकिन भूटान के संसद शोगडू के दो तिहाई बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। शोगडू में 154 सीटें होती हैं, जिसमे स्थानीय रूप से चुने गए प्रतिनिधि (105), धार्मिक प्रतिनिधि (12) और राजा द्वारा नामांकित प्रतिनिधि (37) और इन सभी का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है। राजा की कार्यकारी शक्तियाँ शोगडू के माध्यम से चुने गए मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं। मंत्रिपरिषद के सदस्यों का चुनाव राजा करता है और इनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। सरकार ...और पढ़े

3

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 3

3 फूनशोलिंग भूटान गेट: फूनशोलिंग भूटान के चुखा जिले में इंडिया भूटान सीमा पर स्थित है। सीमा के भारतीय जयगांव व् भूटान की तरफ फुंनशोलिंग है। इसलिए इसे भूटान गेट कहते हैं। यहाँ से हम भूटान में प्रवेश करते हैं। यहां लकड़ी से बना एक शानदार गेट है। यह बागडोगरा हवाई अड्डे से 164 km की दूरी पर है। यहाँ इंडिया का पूर्ण-वाणिज्य दूतावास (CGI) स्थापित है। फूनशोलिंग में भारतीय बिना किसी पासपोर्ट या परमिट के रह सकते हहै। फुनशोलिंग से आगे जाने के लिए हमको भूटान सरकार से परमिट लेना पड़ता है। फूनशोलिंग एक साफ़ सुथरा शहर है। ...और पढ़े

4

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 4

4 पारो: पारो जिला भूटान देश के 20 जिलों में एक है। यह जिला भूटान की ऐतिहासिक घाटी में है। इस जिले की सभ्यता तिब्बत से प्रभावित है। इस जिले की उत्तरी सीमा तिब्बत से मिलती है। प्रारम्भ में इस घाटी में आकर बसने वाले तिब्बत मूल के लोग ही हैं। इस जिले की मुख्या भाषा द्ज़ोंग्ख (भूटानी) है और यही भाषा भूटान की राष्ट्रीय भाषा है। पारो नगर एक ऐसा स्थान है जहां पर्यटक सदैव आते रहते हैं। यहां की सांस्कृतिक छवि पर्यटकों को आकर्षित करती है। भूटान का पारो नगर ही एक ऐसा नगर है जहां भूटानी ...और पढ़े

5

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 5

5 1 वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम चाय नाश्ता करके मैं अकेली ही टाइगर नेस्ट के लिए निकल पड़ी। 2 टाइगर टाइगर नेस्ट, यह भूटान के सबसे पवित्र बौद्ध मठों में से एक है। इस बौद्ध मठ को तक्तसांग मठ ( Taktsang Monastery) भी कहा जाता है। पारो घाटी में एक ऊंची पहाड़ी चट्टान पर टंगा सा दिखाई देता यह मठ, अपने आकर्षण व एक कठिन चढ़ाई के बावजूद सबको अपने पास बुलाता है। यह मठ करीब 3120 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाडी की कगार पर बना है। पहाड़ पर चढ़ाई के लिए पचास रुपये में एक लाठी मैंने ली। रास्ते से ...और पढ़े

6

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 6

6 4 राष्ट्रीय संग्रहालय : इस इमारत का निर्माण 17 वीं शताब्दी में रिणपंग जोंग की सुरक्षा हेतु वॉच के रूप में किया गया था। 1967 में इसे भूटान का राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित किया गया। नए भवन में स्थानांतरित राष्ट्रीय संग्रहालय में 4 दीर्घाएं-मुखौटा दीर्घा, थंगक दीर्घा, हेरीटेज दीर्घा एवं नैचुरल हिस्ट्री दीर्घा हैं। गोल आकृति की एक सुंदर इमारत में इसे बनाया गया है। (इस समय इमारत का मरम्मत का कार्य चल रहा था। इसलिए पास ही एक अन्य इमारत में संग्रहालय को स्थानांतरित किया गया था।) मैंने उस इमारत को बाहर के ही देखा। कहते है वो बहुत ...और पढ़े

7

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 7

7 7 बुद्धा डोर्डेंमा ग्रेट बुद्ध डोर्डेंमा: भूटान के चौथे राजा जिग्मे सिंगे वांगचुक की 60 वीं वर्षगांठ के पर विशाल शाक्यमुनि बुद्ध प्रतिमा का निर्माण करवाया गया। यहाँ इस मूर्ति में एक लाख से अधिक छोटी बुद्ध मूर्तियां हैं। जिनमें से प्रत्येक, महान बुद्ध डोर्डेंमा की तरह ही, कांस्य से बनाई गई हैं और सोने की परत उन पर चढ़ी है। ग्रेट बुद्ध डॉर्डेंमा, कुरेंस फोडरंग के खंडहर, शेर वांगचुक के महल, तेरहवीं देसी ड्रुक के खंडहर के बीच स्थित है। इसका निर्माण 2006 में शुरू हुआ था। इसके अक्टूबर 2010 में खत्म होने की योजना बनाई गई थी, ...और पढ़े

8

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 8

8 नम्बर प्लेट का फोटो: 25 9 18 आज मुझे पुनाखा जाना था। पुनाखा की नदी के किनारे बना मुझे बहुत सुंदर लगता था। आज उसे देखने जाना मेरे लिए रोमांचकारी अनुभव था। इस मठ की कुछ तस्वीरें मैंने पहले देखी थीं। तब से इस स्थान को देखने का बहुत मन हो रहा था। आज उस जगह जाना मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी। सोनम मुझे दो दिन से मेरे होमस्टे से आकर ले जाते थे। उन्हें पता था कि मैं अपनी इस यात्रा के बारे में एक पुस्तक लिखने वाली हूँ। तो वो मुझे यहाँ से जुड़ी कई जानकारियाँ ...और पढ़े

9

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 9

9 गालिम और सिंगी की प्रेम कहानी: पुनाखा जोंग से गासा रोड पर एक किलोमीटर आगे नदी के किनारे मंजिला मिट्टी का सात सौ साल पुराना घर दिखाई देता है। ये कहानी है गासी लामा सिंगी और चांगुल बूम गालिम की। गालिम, पुनाखा के एक अमीर किसान की बेटी थी। नदी के किनारे मिट्टी का एक तीन मंजिला घर है। अब भूटान सरकार द्वारा इस घर को हेरिटेज साइट का दर्जा दे दिया गया है। गालिम के घर जैसा तीन मंजिला घर यह अपने समय के बड़े अमीर किसान का घर हुआ करता था। सिंगी, वह तिब्बत सीमा पर ...और पढ़े

10

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 10

10 लद्दाख मेरी यात्रा में आप मेरे साथ अब एक कदम पीछे चलेंगे… लेह लद्दाख की ओर… यही मेरी यात्रा थी। लद्दाख के लिए मुझे दिल्ली से फ्लाइट लेनी थी। इस समय आदित्य नोएडा में ही रह रही थी। मैं एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंच गई थी। मैंने आदित्य के साथ पूरा दिन एंजॉय किया। हमने बर्मीज खाना खाया। चांदनी चौक से मेरे बुटीक के लिए शॉपिंग की थी। सुबह 5:00 बजे मेरा फ्लाइट था। रात में पहनने के लिए मैंने क्या डिसाइड किया यह तो मुझे याद नहीं, मगर मेरी जींस और मेरा टीशर्ट आदिति ने मुझे ...और पढ़े

11

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 11

11 पहला दिन- इन सालों में उम्र का प्रभाव व सावधानी जरूरी थी। फिर मुझे कोई जल्दी भी नहीं आज मैं नाश्ता करके पैदल ही घूमने निकली। सोचा आसपास आगे कोई दर्शनीय स्थल देखने जाना चाहूँगी तो चली जाऊँगी। अपने होटल से पैदल बाहर निकल कर इन पतली सड़कों पर चलना अच्छा लग रहा था। प्रकृति का साथ कितना हसीन हो सकता है। चारों तरफ पर्वत या पेड़ दिख रहें हैं। हम शहरों में रहने वाले लोगों को ये सुकून कितना जरूरी है! ठंडी हवा, गुनगुनी धूप में अकेले चलने का सुखद अहसास मेरे तन-मन को एक नयी ऊर्जा ...और पढ़े

12

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 12

12 तीसरा दिन आज मुझे अकेले ही कुछ और दर्शनीय स्थल देखने जाना था। शिखा लखनऊ वापस जा रही मैं नाश्ता कर रही थी तब श्री ने मुझे कहा कि 'यदि आप चाहो तो मैं मैक्स, जो जर्मनी से आया हुआ है आपके साथ लोकल साइट सीन के लिए जा सकती हूं। वह आपके साथ जाना पसंद करेगा। जिन स्थानों पर मैं जा रही थी वे जगह उसने भी नहीं देखी है।‘ सोलो ट्रेवलर हर रोज कहीं जाएं ये जरूरी नहीं साथ ही वो पैसों की बचत की भी चिंता करते हैं तो जब उन्हें जब जैसा साथ मिलता ...और पढ़े

13

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 13

13 चौथा दिन आज का दिन मुझे आराम करना था। अपने हॉस्टल के बाहर बैठकर किताब पढ़ने की इच्छा उस हॉस्टल में कई किताबें रखीं थीं। जिसमें आने वाले अपनी पसंद की किताब पढ़ते हैं और अपनी कोई पढ़ी हुई किताब वहां छोड़ जाते हैं। किताबों के एक्सचेंज का यह एक खूबसूरत तरीका लगा। आज जर्मनी से आए हुए कुछ लोग भी धूप में बैठे थे। जिनमें एक युवती ड्राइंग कर रही थी और उसके साथी पढ़ रहा था। उस अंब्रेला के नीचे लगी कुर्सियों का भरपूर इस्तेमाल होता था। कोई अपनी कुर्सी उठाकर, एक कोने में बैठकर संगीत ...और पढ़े

14

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 14

14 छ्ठा व सातवां दिन लद्दाख की कईं जगह घूमने के बाद हम बहुत थक गए थे। कल मुझे ही पागोंग झील देखने जाना है। रात को वहीं टेंट में रुकने का इंतजाम मैंने करवा लिया था। अगले दिन में नुब्रा वेली को देखती हुई वापस आऊँगी। पाँच घण्टे के रास्ते को तय करके हम पागोंग झील तक पहुँचे। दूर पर्वतों के बीच में से जब उस झील की एक झलक दिख रही थी तो वो मुझ पर कैसा जादू कर रही थी। कैसे बताऊँ? पर्वतों ने अपनी हथेलियों दोनों हाथ से किसी प्यारे बच्चे की तरह उस झील ...और पढ़े

15

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 15

15 आंठवा अंतिम दिन आज का दिन मुझे सिर्फ अपने हॉस्टल और लेह के रास्तों के साथ बिताना था। में मुझे कई मित्र मिले। इन दो वियतनामी मित्रों में से एक से मेरी दोस्ती अभी तक कायम है। एक दिन ह तीनों साथ में घूमे थे। मून रॉक तक उनके साथ घूमने का अनुभव कुछ अपनी पुरानी मित्रों के साथ घूमने जैसा ही था। रिश्तों की क्या चाहत होती है? प्रेम एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान! यही सब मैंने इन दोनों के साथ महसूस किया। रात के समय जब हमको अपने कमरे में बहुत ठंड लग रही थी ...और पढ़े

16

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 16

16 धर्मशाला धर्मशाला भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का शहर है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा बौद्ध मठों लिए जाना जाता है। बर्फ से ढंका हिमालय। यहाँ की नदियां और यहाँ की मनमोहक वादियां आपका मन मोह लेती है। ये एक बहुत ही छोटा शहर है। वैसे ये दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला हिस्सा लोअर धर्मशाला है जिसे हम धर्मशाला के नाम से जानते हैं। दूसरा हिस्सा अपर धर्मशाला है जिसे हम मैक्लोडगंज के नाम से जानते हैं। धर्मशाला से मैकलोडगंज की दुरी करीब 10 किलोमीटर है। धर्मशाला की ऊंचाई 1,250 मीटर (4,400 फीट) और 2,000 ...और पढ़े

17

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 17

17 दूसरे दिन पालमपुर सुबह अपना नाश्ता करने के बाद मैं पालमपुर के लिए निकली। देवेश जो वहां दो से रह रहे थे। मुझसे रोज सुबह पूछ ही लेते थे कि मैं आज कहां जाने वाली हूं। साथ ही उस जगह से जुड़ी जानकारी मुझे जरूर देते। आज बस मुझे किसी दूसरी तरफ से लेनी थी। साथ ही यदि मुझे कोई जरूरत हो तो देवेश के मित्र वहां हैं, मैं उनसे कोई सहायता ले सकती हूं। उन्होंने मुझे बताया। पालमपुर पहुंच कर पहले मैंने बैजनाथ का शिवा मन्दिर देखा। कल दशहरा था।। मन्दिर में अनुष्ठान हुआ था। साथ ही ...और पढ़े

18

भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 18 - अंतिम भाग

18 नद्दी गांव मेकलोड़गंज से थोड़ा उपर जाने पर यह बर्फीली चोटी हमें दिखाई देती है। यह शिखर हमारे से भी दिखाई देता है। इसे पास से देखकर बहुत अच्छा लगा। यहां भी स्थानीय सामान कीदुकानें, कुछ खाने-पीने की दुकानें थीं। स्थानीय लोगों का यही रोजगार का साधन है। भागसूनाग: यह मैक्लोडगंज से दो किलोमीटर आगे है। यहां एक पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर में पहाड़ों से बहकर पानी आता है। पर्यटक मंदिर के इस शीतल पानी में स्नान करके आनंद का अनुभव करते हैं। भागसूनाग में भी एक अच्छा मार्केट भी मौजूद है। सेंट जॉन चर्च: इस चर्च ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प