असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।।

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इस बार महाशिवरात्री और वेलेन्टाइन-डे लगभग साथ-साथ आ गये। युवा लोगों ने वेलेन्टाइन-डे मनाया। कुछ लड़कियों ने मनाने वालों की धज्जियां उड़ा दी और बुजुर्गों व घरेलू महिलाओं ने शिवरात्री का व्रत किया और रात्रि को बच्चों के सो जाने के बाद व्रत खोला। इधर मौसम में कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात, कभी ठण्डी हवा, कभी ओस, कभी कोहरा और कभी न जाने क्या-क्या चल पड़ा हैं। राजनीति में तूफान और तूफान की राजनीति चलती हैं। कुछ चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते, भटकते हुए भी कुछ नहीं होता। शिक्षा व कैरियर और प्यार के बीच लटकते लड़के-लड़कियां................। मोबाइल, बाइक, गर्ल-फ्रेण्ड और बॉयफ्रेण्ड के बीच भटकता समाज..........। जमाने की हवा ने बड़े-बूढ़ों को नहीं छोड़ा। तीन-तीन बच्चों की मांएं प्रेमियों के साथ भाग रही है और कभी-कभी बूढ़े प्रोफेसर जवान रिसर्च स्कालर को ऐसी रिसर्च करा रहे है कि बच्चे तक शरमा जाते हैं। गठबंधन सरकारों के इस विघटन के युग में पुराने गांवनुमा कस्बे और कस्बेनुमा शहरों की यह दास्तान प्रस्तुत करते हुए दुःख, क्षोभ, संयोग-वियोग सब एक साथ हो रहा हैं।

Full Novel

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 1

(व्यंग्य -उपन्यास) समर्पण अपने लाखों पाठकों को, सादर । सस्नेह।। -यशवन्त कोठारी 1 इस बार महाशिवरात्री और वेलेन्टाइन-डे लगभग आ गये। युवा लोगों ने वेलेन्टाइन-डे मनाया। कुछ लड़कियों ने मनाने वालों की धज्जियां उड़ा दी और बुजुर्गों व घरेलू महिलाओं ने शिवरात्री का व्रत किया और रात्रि को बच्चों के सो जाने के बाद व्रत खोला। इधर मौसम में कभी गर्मी, कभी सर्दी, कभी बरसात, कभी ठण्डी हवा, कभी ओस, कभी कोहरा और कभी न जाने क्या-क्या चल पड़ा हैं। राजनीति में तूफान और तूफान की राजनीति चलती हैं। कुछ चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते, भटकते हुए ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 2

2 जैसा कि अखबारों की दुनिया में होता रहता है, वैसा ही यशोधरा के साथ भी हुआ। अखबार छोटा मगर काम बड़ा था। धीरे-धीरे स्थानीय मीडिया में अखबार की पहचान बनने लगी थी। शुरू-शुरू में अखबार एक ऐसी जगह से छपता था जहां पर कई अखबार एक साथ छपते थे। इन अखबारों में मैटर एक जैसा होता था। शीर्षक, मास्टहेड, अखबार का नाम तथा सम्पादक, प्रकाशक, मुद्रक के नाम बदल जाया करते थे। कुछ अखबार वर्षों से ऐसे ही छप रहे थे। कुछ दैनिक से साप्ताहिक, साप्ताहिक से पाक्षिक एवं पाक्षिक से मासिक होते हुए काल के गाल में ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 3

3 झील के घाट पर एक प्राचीन मन्दिर था। क्यांेकि यहां पर, जल, मन्दिर और सुविधाएंे थी सो श्मशान यहीं पर था। झील मंे वर्षा का पानी आता है। गर्मियांे मंे झील सूखने के कगार पर होती थी तो शहर के भू-माफिया की नजर इस लम्बे चौड़े विशाल भू-भाग पर पड़ती थी। उनकी आंखांे मंे एक विशाल मॉल, शापिंग कॉम्पलैक्स या टाऊनशिप का सपना तैरने लगता था। मगर वर्षा के पानी के साथ-साथ आंखांे के सपने भी बह जाते थे। झील मंे मछलियां पकड़ने का धन्धा भी वर्षा के बाद चल पड़ता था। जो पूरी सर्दी-सर्दी चलता रहता था। ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 4

4 कस्बे के बाजार के बीचांे-बीच के ढीये पर कल्लू मोची बैठता था। उसके पहले उसका बाप भी इसी पर बैठकर अपनी रोजी कमाता था। कल्लू मोची के पास ही गली का आवारा कुत्ता जबरा बैठता था। दोनांे मंे पक्की दोस्ती थी। जबरा कुत्ता कस्बे के सभी कुत्तांे का नेता था और बिरादरी मंे उसकी बड़ी इज्जत थी। हर प्रकार के झगड़े वो ही निपटाता था। कल्लू मोची सुबह घर से चलते समय अपने लिए जो रोटी लाता था उसका एक हिस्सा नियमित रूप से जबरे कुत्ते को देता था। दिन मंे एक बार कल्लू उसे चाय पिलाता था। ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 5

5 हैडमास्टर साहब का काम पूरा हो चुका था। उन्हांेने देखंेगे का भाव चेहरे पर चिपकाया ओर शुक्लाजी ने से बाहर आकर पसीना पांेछा। हैडमास्टर साहब शिक्षा के मामले मंे बहुत कोरे थे। वे तो अपने निजि सम्बन्धों के सहारे जी रहे थे, मैनेजमंेट, पार्टी पोलिटिक्स ट्रस्ट, अध्यापक, छात्र, छात्राआंे आदि की आपसी राजनीति उनके प्रिय शगल थे। विद्यालय मंे किसी प्रिन्सिपल की नियुक्ति की अफवाहों से वे बड़े विचलित थे। इस विचलन को ठीक करने का एक ही रास्ता था। मैनेजमंेट के मुख्य ट्रस्टी को अपनी ओर मिलाये रखना। मुख्य ट्रस्टी शहर के व्यापारी थे। उनके पास कई ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 6

6 वर्षा समाप्त हो चुकी थी। खेतांे मंे धान पक रहे थे। किसान-मजदूर निम्न मध्यवर्गीय समाज के पास काम कमी थी, ऐसी स्थिति मंे धर्म, अध्यात्म, प्राणायाम, योग, कथावाचन आदि कार्यक्रमांे को कराने वाले सक्रिय हो उठते है। धर्म कथाआंे का प्रवचन पारायण शहर मंे शुरू कर दिये गये। हर तरफ माहोल धार्मिक हो गया। ऐसे मंे एक दिन एक धर्मगुरु के आश्रम मंे एक महिला की लाश मिली। सनसनी फैली और फैलती ही चली गयी। जिन परिवारांे से महिलाएंे नियमित उक्त बाबाजी के आश्रम मंे जा रही थी, उन घरांे मंे शान्ति भंग हो गई। उनके दाम्पत्य जीवन ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 7

7 ‘श्रीवास्तवजी आजकल मैं यह क्या सुन रही हूं।’ ‘क्या सुना-जरा मैं भी सुनंू।’ ‘यही कि आप कक्षा मंे को प्रेम कविताएं बहुत रस ले लेकर पढ़ा रहे है। छात्राएंे बेचारी शर्म से गड़ जाती है। ‘ऐसी कोई बात नहीं है, मैडमजी।’ सन्दर्भ विषय के आधार पर मैं अपना लेक्चर तैयार करता हूं। ‘नही, भाई ये छोटा कस्बा है। यहां पर ये सब नहीं चलेगा।’ ‘लेकिन मैडम पढ़ाना मुझे आता है।’ ‘लेकिन आप समझते नही है। माधुरी बोली।’ ‘मैं सब समझ रहा हूं। शायद स्कूल को मेरी आवश्यकता नहीं है।’ ‘नही.......नही, मास्टरजी ऐसी बात नहीं है, बस आप थोड़ा ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 8

8 एक उदास सांझ। सांझ कभी-कभी बहुत उदास होती है। सांझ चाहे गर्मी की हो चाहे सर्दी की या बारिश की हो। उदासी है कि दूर ही नहीं होती। ऐसी ही उदास सांझ ढले मां घर के ओेसारे मंे बैठी हुई थी। पुराने अच्छे दिनांे की याद मंे उसकी आंखांेे मंे आंसू आ गये थे। उसी के मौहल्ले मंे कुछ मांए ऐसी भी थी कि दुःख ही दुःख। उसने सोचा एक मां पांच-पांच बेटों को पालती हैं और पांच बेटे मिलकर मां को नहीं पाल पाते। कैसा निष्ठुर है समय। बेटे अमावस से पूनम तक मां को इधर-उधर करते ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 9

9 कुलदीपक और झपकलाल हिन्दी के परम श्रद्धेय मठाधीश आचार्य के आवास पर विराजमान थे। आचार्यश्री आलोचक, सम्पादक, प्रोफेसर छात्राआंे मंे कन्हैया थे और छात्रांे मंे गोपियांे के प्रसंग से कक्षा लेते थे। अक्सर वे कक्षा के अलावा सर्वत्र पाये जाते थे। कई कुलपतियांे को भगाने का अनुभव था उनको। ऐसे विकट विरल आचार्य के शानदार कक्ष मंे ढाई आखर फिल्मांे के पर चर्चा चल निकली। आचार्य बोले। ‘आजकल कि फिल्मांे को क्या हो गया है। न कहानी, न गीत, न अभिनय।’ ‘सर इन सब के तालमेल का नाम ही फिल्म है। और मनोरंजन के नाम पर देह-दर्शन ही ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 10

10 ‘तुम नेतागिरी तो छांट़ो मत। काम कराना हो तो पचास का नोट इधर करो।’ और तीन बजे आकर प्रमाण पत्र ले जाओ।’ कल्लू ने अपने मृत पिता का मृत्यु प्रमाण पत्र उसी रोज तीन बजे पचास रूपये मंे प्राप्त कर लिया। सरकार कभी भी छुट्टी पर नहीं रहती और यदि सुविधा शुल्क हो तो अफसर भी लपकर कर कागज निकाल देते है। कल्लू जब प्रमाण पत्र लेकर वापस आया तो जबरा कुत्ता वहां पर एक टांग ऊंची करके पेशाब की धार मार रहा था। शाम को ठीये पर कल्लू ने यह सब जानकारी झबरे की मौजदूगी मंे कुलदीपकजी ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 11

11 सुबह के अखबारांे का पारायण करने के बाद माधुरी, विशाल और नेताजी अपने टाऊनशिप के मिशन पर चले। जब मंत्रीजी के दरबार मंे हाजरी लगा रहे थे तो वहां पर दूषित पेयजल की समस्या छाई हुई थी। नेताजी सीधे मंत्रीजी के कक्ष मंे घुस गये। पीछे-पीछे माधुरी और दबे कदमांे से विशाल। मंत्रीजी ने माधुरी व विशाल के अभिवादन का जवाब देना भी उचित नहीं समझा और नेताजी को लेकर मंत्रणा कक्ष मंे घुस गये। आधे घंटे की बातचीत के बाद नेताजी ने विशाल और माधुरी को भी अन्दर बुला दिया। विशाल ने स्कीम का प्रेजेन्टेशन शुरू किया ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 12

12 दिल्ली का बहादुरशाह जफर मार्ग। भव्य अट्टालिकाएंे। इन भवनांे मंे प्रिंट मीडिया के दफ्तर। इन दफ्तरांें मंे बड़े-बड़े पत्रकार। लेखक। दिल्ली के बुद्धिजीवी। देशभर के बुद्धिजीवी यहां पर चक्कर लगाते रहते है। थोड़ी दूर पर ही दरियागंज, पुरानी दिल्ली। जामामस्जिद। लाल किला। कश्मीरी गेट। दिल्ली के क्या कहने। हर व्यक्ति दिल्ली मंे बसना चाहता है। हर फूल दिल्लीमुखी। दिल्ली को ही ओढ़ना, बिछाना चाहता है। कनाट प्लेस दिल्ली का दिल। चाणक्यपुरी दिल्ली का राजनयिक परिसर। राष्ट्रपति भवन। प्रधानमंत्री कार्यालय। नार्थ ब्लाक। साउथ ब्लाक। केन्द्रीय सचिवालय। पार्टियांे के दफ्तर। पूरे देश की नब्ज पहचानती है दिल्ली। चपरासी की दिल्ली, ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 13

13 पेज तीन पर माडल थे। चैनलांे मंे काम करने वाले थे। फैशन था। रेम्प था और स्थानीय चैनलांे एंकर थे। एफ.एम. के जोकी थे, कुल मिलाकर एक ऐसा कोलाज था जिसका कैनवास तो बहुत बड़ा था, मगर रंग फीके थे। विचार नदारद थे। चिन्तन ढूंढ़े नहीं मिलता था। मन्थन की बात करना बेमानी था। अविनाश और उसके जैसे पच्चीसांे लोगांे की ये मजबूरियां थी। हर शहर की तरह इस शहर मंे भी धारावारिक बनाने वाले पैदा हो गये थे। ये लोग अपने फार्म हाऊसांे पर स्क्रीन टेस्ट के नाम पर स्किनटैस्ट करते। झूठा-सच्चा धारावाहिक बनाते। पैसे के बलबूते ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 14

14 व्यवस्था कैसी भी हो। प्रजातन्त्र हो। राजशाही हो। तानाशाही हो। सैनिक शासन हो। स्वेच्छाचारिता हमेशा स्वतन्त्रता पर हावी जाती है। सामान्तवादी संस्कार समाज मंे समान रूप से उपस्थित रहते है। कामरेड हो या कांग्रेसी कामरेड हो या केसरिया कामरेड या रूसी कामरेड या चीनी कामरेड या स्थानीय कामरेड सब व्यवस्था के सामने बौने हो जाते है। सब व्यवस्था रूपी कामधेनु को दुहने मंे लग जाते है। राजनीति मंे किसकी चण्डी मंे किसका हाथ, हमाम मंे सब नंगे। हमाम भी नंगा। स्थानीय नेताजी का भी छोटा, मोटा दरबार उनके दीवान-ए-आम मंे लगता था। दीवाने-आम के पास ही एक छोटे ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 15

15 कोई कुछ नहीं बोला। सन्नाटा बोलता रहा। झिगुंर बोलते रहे। मकड़ियांे ने संगीत के सुर छेड़े। रात थोड़े गहराई। यशोधरा बोली। ‘आज मेरी काम वाली ने बताया कि कल और परसांे की छुट्टी करेंगी। जब पूछा क्यांे तो बताया नया साल है, मैं...मेरे मां-बाप और भाई-बहन सब नया साल मनायेंगे। छुट्टी लंेगे। शहर घूमंेगे, बाहर खाना खायंेगे। और लगातार दो दिन यही करंेगे।’ ‘तो इसमंे नया क्या है।’ झपकलाल बोला। ‘उन्हंे भी अपना जीवन जीने का हक है।’ ‘जीवन जीने का हक !’ ‘क्या तो वे और क्या उनका जीवन।’ ‘फिर एक नई कविता लिखना चाहता हूं बात ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 16

16 ‘जिन्दगी जीने के लिए है और विश्वविद्यालय मंे तो मजे ही मजे। मौजां ही मौजां। याद है अपन विश्वविद्यालय मंे पढ़ते थे तो एक प्रोफेसर ने क्या लिखा था सरस्वती के मन्दिर मंे ध्वज भंग। कैसा मजा आया। पूरी यूनिवरसिटी हिल गई। सबकी जड़ंे हिल गई। सबकी शान्ति भंग हो गई। चांसलर, वाईस चांसलर तक बगले झांकने लगे। ‘फिर वे प्रोफेसर निलम्बित हो गये।’ ‘तो क्या उसके बाद बहाल होकर पूरी पेेंशन, पी.एफ लेकर घर गये।’ ‘लेकिन अब ये सब करने को जी नहीं चाहता।’ ‘इस श्मशानी वैराग्य को छोड़ो महाराज। उठो। धनुष बाण और कलम रूपी हथियार ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 17

17 इन्हीं विकट परिस्थितियों में नेता जी अपने महल नुमा - डाईगं रूम में मालिश वाले का इन्तजार कर थे । वे आज गम्भीर तो थे,मगर आश्वत भी । मालिशिये के आने की आहट से उनकी तन्द्रा टूटी । मालिशिये ने अपना काम ष्शुरू किया । टिकट के आकांक्षी आने लगे । कोठी के बाहर -भीतर धीरे-धीरे मजमा जमने लगा । एक टिकिट के दावेदार ने नेताजी के चरण स्पर्श किये । नेताजी ने कोई नहीं ध्यान दिया । वे बोले बता कैसे आया । ‘ ‘बस वैसे ही । ’ ‘बस वैसे ही तो तू आने वाला नहीं ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 18

18 ‘मेरा क्या हैं मेडम । आपके पीछे -पीछे चल रहा हूॅ । कहीं तो पहुॅच ही जाउूगा । ल्ेकिन पदम पुरस्कारों के लिए उच्च स्तर की सेंिटगं चाहिये । ‘सेटिगं न होगी तो अगले साल फिर कोशिश कर लेंगे । अपने बाप का क्या जाता है? माधुरी के मौन को स्वीकृति समझ अविनाश ने बायोडेटा की प्रति आगे बढ़ा दी । बायोडेटा देखकर माधुरी स्वयं आश्चर्य में पड़ गई । क्या वे वास्तव में प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री, समाजसेवी, कुलपति, दानदाता, महिला हितेपी, राज्यहितकारिणी, ख्यातिप्राप्त ष्शोधकर्ता, लेखक, समाज विज्ञानी थी ।ओर अविनाश के बायोडेटा से भी ऐसी ही ष्शब्दावली ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 19

19 शुक्लाजी व श्री मती शुक्ला टेन से वापस आ रहे थे । मुख्यमंत्री की मिटिंग का गहरा असर । ये बात अलग कि उन्हें मिला कुछ नहीं । वादेां, घोपणाओं से किसका पेट भरता है । टेन में भंयकर भीड़ थी। राजनैतिक रैली के कारण हर ड़िब्बे में बिना टिकट कार्यकर्ता सवार थे । टी. टी. रेलवे पुलिस, स्टेशन कर्मचारी,अधिकारी सब घायब थे । रेली सत्ताधारी पार्टी की थी । सभी का मूक सहयोग था । ष्शहर में भी पुलिस,अर्ध सैनिक बल, अन्य सुरक्षा एजेन्सी सभी मिल कर रैली को सफल बनाने में जुटे थे । टेन में ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 20

20 चारों बच्चों की उपस्थिति बाबू ने पूरी की । डीन एकेडेमिक ने स्वीकार की । बच्चें परीक्षा में । विश्वविधालय में नये सत्र की ष्शुरूआत थी । छात्र चुनाव चाहते थे । प्रशासन सर्वसम्मत्ति से मेधावी छात्र को अध्यक्ष बनाना चाहता था कि रेगिंग के एक मामले में उक्त चारों होनहार छात्रों को पुलिस ढूढने आ पहुॅची । ईमानदारी की पुलिसिया परिभापा भी कुछ काम नहीं आई क्यांेकि मामला एक कन्या की रेगिंग से सम्बधित था । हुआ यो कि माधुरी विश्वविधालय जो कभी टीन-टप्पर की छोटी सी थड़ी हुआ करती थी,अब एक आलीशान सौ एकड ़का परिसर ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 21

21 पुस्तके जीवन है । पुस्तके मशाल है । हर पुस्तक कुछ कहती है । हर पुस्तक जीवन जीने कला सिखाती है । पुस्तक प्रेम जीवन से प्रेम है । जैसे नारे जो सैकड़ो वर्पों से हवा में पुस्तक मेले में तैरते रहते थ्ेा वे सब हवा हो गये । उूपर से चैनल,टी. वी. इन्टरनेट कम्यूटर आदि ने पाठको का समय छीन लिया । चैन छीन लिया । पुस्तको में समोसे,दहीबड़े,और पानी पुरी घुस गई । साहित्य के बजाय कुकरी,फिटनेस,कताई - बुनाई साहित्य, सेक्स,हिन्सा,आदि की पुस्तकेा ने बाजार को ढ़क लिया । सब कुछ बदल गया । पुस्तक क्रान्ति ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 22

22 कभी जहॉं पर कल्लू मोची का ठीया था और सामने हलवाई की दुकान थी ठीक उस दुकान की पर कुछ अतिक्रमण करके कल्लू मोची के नेता पुत्र ने एक छोटा ष्शापिंग मॉल बनाकर फटा फट बेच दिया । नगर पालिका सरकार,शहरी विकास विभाग,जिलाधीश,क्षेत्र के पटवारी,तहसीलदार,थनेदार,बी. डी. ओ.,आदि टापते रह गये ं आंखे बन्द कर के बैठे रहे । कौन क्या कहता । कौन सुनता । जिसकी जमीन थी उसे खरीद लिया गया । काम्पलेक्स में एक ष्शोरूम अताः फरमाया गया । सब जल्दी से ठीक -ठाक निपट गया । कल्लू का ठीया वैसा ही सड़क के इस पार ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 23

23 शुक्ला जी के पुत्र के असामयिक निधन के बाद श्री मती ष्शुक्ला ने सब छोड़ छाड़ दिया था वे एक लम्बी यात्रा पर निकलना चाहती थी, उन्होने एक टेवल एजेन्ट के माध्यम से अपनी यात्रा का प्रारूप हिमालय की तरफ का बनाया । सौभाग्य से टेवल एजेन्ट ने एक अच्छी मिनी बस से यह यात्रा एक महिला समूह के साथ तय कर दी । बस में कुल दस महिलाएॅं थी । बाकी स्टाफ आदि थे । इस यात्रा में श्री मती ष्शुक्ला ने अपनी इच्छाओं पर पुनर्विचार किया । उसे एक पूर्व में पढ़ी पुस्तक भी याद आई, ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 24

24 प्रजातन्त्र, राजनीति, कुर्सी, दल, विपक्ष, मत मतपत्र, मतदाता, तानाशाही, राजशाही, लोकशाही, और ऐसे अनेको ष्शब्द हवा में उछलने गये । जिसे आम आदमी प्रजातन्त्र समझता था वो अन्त में जाकर सामन्तशाही और तानाशाही ही हो जाता था । हर दल में आन्तरिक अनुशासन के नाम पर तानाशाही थी, लोकतन्त्र के नाम पर सामन्तशाही थी । इन्ही विपरीत परिस्थितियों में हमारे कस्बे के नेताजी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे, वे राजनीति के तो माहिर खिलाडी थे मगर इस नई, उभरती हुई युवा पीढी के नये नेता कल्लू - पुत्र से पार पाना आसान नहीं था । उन्हें इन्हीं ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 25

25 विज्ञापन एजेन्सी के कर्ता - धर्ता उर्फ मुख्यकार्यकारी अधीकारी के दादा जी गांव में ब्याज का छोटा मौटा करते थे । आसामी थे । बोरगत थी । दादाजी चल बसे । ब्याज का धन्धा डूब गया । पैसा डूब गया । मा - बेटा जमा पूंजी लेकर ष्शहर आ गये । मां ने कठिनाई से पाल पोस कर बड़ा किया । बेटे ने भी मेहनत की । पहले एक छोटे अखबार में विज्ञापन लाने - ले जाने - देने का काम काज ष्शुरू किया । अपने तेज दिमाग के कारण जल्दी ही इस लधु समाचार के कुख्यात सम्पादक ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 26

26 भेार भई । मुर्गे ने बांग दी । मुद्दे अब कहॉं, मगर मुर्गो की क्या कमी । राजनीति लगाकर साहित्य, संस्कृति, कला, पत्रकारिता, टीवी चैनल सब जगह मुर्गे बांग दे रहे है । राजनीति में मुर्गे मुद्दे तलाश रहे है । बुद्धिजीवी धूरे पर जाकर दाने तलाश रहे है । दाना मिला खाया फिर कूडे के ढेर में दाना तलाशने लग गये । फिर बांग देने लग गये । मुर्गे कभी अकेले बांग नहीं देते । वे मुर्गियों केा भी साथ रखते है । मुर्गियां अण्डे भी देती है और मुर्गे के साथ बांग भी देती है । ...और पढ़े

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असत्यम्। अशिवम्।। असुन्दरम्।।। - 27 - अंतिम भाग

27 माधुरी को सम्पूर्ण प्रकरण की जानकारी थी । मगर इस तरह के हल्के-फुल्के मामलेां की वो जरा भी नही करती थी । वैसे भी संस्था के विभिन्न दैनिक कार्यक्रमों में वो दखल नही देती थी । अनुशासन के नाम पर तानाशाही चलती थी मगर वो मजबूर थी । माधुरी अपना ज्यादा ध्यान विश्वविधालय में लगाती थी । विश्वविधालय तथा इससे सम्बन्धित महाविधालयों की राजनीति ही उसे रास आती थी । नेताजी का सूर्य अस्त हेाने के बाद उसने कल्लूपुत्र को साधने के लिए कल्लू मोची को विश्वविधालय की प्रबन्धन -समिति में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि के रूप में ...और पढ़े

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