केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 1 “केसरिया बालम पधारो म्हारे देस” बचपन से ही गाते हुए, अंदर ही अंदर, गहरे तक यह गीत रच-बस गया था। इसके तार दिल से जुड़े थे, मीठा लगता था, कानों में शहद घोलता हुआ। उस मिठास से सराबोर मन हिलोरें लेता रहता, सावन के झूलों जैसी ऊँची-ऊँची पेंग लेकर। इस छोर से इस छोर तक। माँसा कहती थीं – “किसी की नज़र न लगे तुम दोनों की जोड़ी पर।” बाबासा मुस्कुराते, अपनी बेटी-कँवरसा पर निगाह डालते, संतोष की साँस लेकर कहते – “थारी माँसा ने बता दे कि धानी तो अमेरिका जा रही है,
Full Novel
केसरिया बालम - 1
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 1 “केसरिया बालम पधारो म्हारे देस” बचपन से ही गाते हुए, अंदर ही अंदर, तक यह गीत रच-बस गया था। इसके तार दिल से जुड़े थे, मीठा लगता था, कानों में शहद घोलता हुआ। उस मिठास से सराबोर मन हिलोरें लेता रहता, सावन के झूलों जैसी ऊँची-ऊँची पेंग लेकर। इस छोर से इस छोर तक। माँसा कहती थीं – “किसी की नज़र न लगे तुम दोनों की जोड़ी पर।” बाबासा मुस्कुराते, अपनी बेटी-कँवरसा पर निगाह डालते, संतोष की साँस लेकर कहते – “थारी माँसा ने बता दे कि धानी तो अमेरिका जा रही है, ...और पढ़े
केसरिया बालम - 2
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 2 बरगद की छाँव तले जिस दिन वह आने वाला था, सब दौड़ रहे इधर से उधर, घर वाले भी, घर के नौकर भी। योजनाबद्ध था सब कुछ, पहले पानी, फिर चाय-नाश्ता, उसके बाद पाँच पकवान भोजन में। उसके आने की तैयारी में घर की सफाई हो रही थी। “घर के चप्पे-चप्पे को साबुन के पानी से धो दो।” “चकाचक कर दो।” घर में काम करने वाले तो खूब सफाई कर ही रहे थे, बाहर से भी लोगों को मदद के लिये बुलवाया गया था। आने वाले का नाम बाली था, बालेंदु प्रसाद। पास ...और पढ़े
केसरिया बालम - 3
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 3 पंखों को छूती हवाएँ एक-एक करके मायका तो छूटना ही था, बचपन का भी छूटना था, आखिर कब तक यह साथ रहता भला! इस नये क्रम की शुरुआत हुई सलोनी से। सलोनी तो साँवली थी पर उसका बाँका गोरा था। काली मूँछें और तीखी नाक, माथे पर घुंघराले बाल। जब पहली बार आया था तो हीरो ही लग रहा था। उस समय तो वे दोनों भी उसके साथ अपने सपनों में डूबने लगी थीं जब सलोनी ने कजरी और धानी से कहा था – “जिसे मैंने देखा नहीं, जिससे कल्पना लोक में ही ...और पढ़े
केसरिया बालम - 4
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 4 इन्द्रधनुषी रंग सगाई के बाद से शादी तक के वे दिन इतने चुलबुले, बेताब करने वाले थे कि लगता युगों-युगों से जानती है वह बाली को। जाने कितना इंतज़ार और करना होगा। कभी तो समय काटे नहीं कटता, कभी ख्यालों में यूँ खोयी रहती कि कब दिन ढला, कब रात हुई, पता ही न चलता। धानी को लगता, मन तो वैसा ही है, आकाश में बहता हुआ। उसकी देह से निकल गया है शायद। शायद बाली का मन भी ऐसे ही निकल कर आ गया हो उसके पास। एक बात निश्चित लगी उसे, ...और पढ़े
केसरिया बालम - 5
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 5 पुनरारोपण अमेरिका, न्यूजर्सी के एडीसन शहर ने दिल खोलकर स्वागत किया उसका। इमीग्रेशन से लेकर घर के दरवाजे तक। लैंड होने के बाद अमेरिका में कदम रखने से पहले एक कड़ी परीक्षा थी। पहले तो वह सकपका गयी थी क्योंकि ऑफिसर ने सवाल ही कुछ ऐसे पूछे और शंकास्पद नज़रों से देखते हुए अंदर आने को कहा। लेकिन बाली की बतायी बातें याद आ गयीं कि “यहाँ कई लोग नकली शादियाँ करके आ जाते हैं। कानूनी रूप से रहने के लिये, शादी का नाटक करके कागजात बनवाना उनका एक तरह से धंधा बन ...और पढ़े
केसरिया बालम - 6
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 6 एक नया कदम आज शाम को जब बाली घर पहुँचा तो वह बेसब्री इंतजार कर रही थी। इतने दिनों की खोज का परिणाम सुकून दे रहा था धानी को। दिन भर से अपने अंदर समेटे उस उत्साह को आवाज दे कर बाली को बताया कि वह इस स्वीटस्पॉट बेकरी को अंदर से देखकर आयी है व जगह काफी अच्छी लगी उसे। वह काम शुरू करना चाहती है। वहाँ मुख्य बेकर की वेकेन्सी है। वह बोलती गयी, एक के बाद एक अपनी बेकिंग योग्यताओं का बखान करती उस दुकान की भव्यता के बारे में ...और पढ़े
केसरिया बालम - 7
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 7 आसमानी ख्वाब, जमीन पर समय की पाबंदी ने बेकरी के हर कर्मी को तई ढाल लिया था। डेज़र्ट के अलावा बेकिंग किए हुए समोसे जो ब्रेड के मटेरियल में नया आकार लेकर आते, बगैर तले हुए, हर पार्टी की शान बढ़ाने लगे। भारतीयता का जामा पहने आलू मसाला जब पाश्चात्य की ‘स्वीटस्पॉट’ बेकरी से निकलता तो नाश्ते का एक ऐसा स्वादिष्ट हिस्सा होता जिसे देखते ही मुँह में पानी आता। यह बात सिद्ध हुई थी कि मशहूर होने के लिये कोई खास ताम-झाम नहीं सिर्फ मेहनत चाहिए। अब केक और पेस्ट्री के साथ ...और पढ़े
केसरिया बालम - 8
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 8 गर्माहट पर पानी के छींटे बेकरी में धानी का काम जम जाने व अच्छी तनख्वाह मिलने से बाली अब निश्चिंत हो गया था कि एक ओर से इतना पैसा आ रहा है तो वह खतरों से खेलने के लिये स्वतंत्र है। कुछ भी हुआ तो धानी की आमदनी तो है ही। उसकी अपनी महत्वाकांक्षाएँ बढ़ती रहीं। अपने व्यवसाय में एक के बाद एक जोखिम ऐसे उठाता रहा जैसे हर खतरे से लड़ लेगा। आगे बढ़ने का जुनून कुछ ऐसा था कि आगे-पीछे सोचने का वक्त ही नहीं था उसके पास। अपने नये परिवार ...और पढ़े
केसरिया बालम - 9
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 9 फूटती कोंपल और तभी प्रकृति ने मदद कर दी। बाली और उसके प्यार जीता-जागता संकेत मिल गया। उसके पेट में बाली के प्यार का बीज अंकुरित हो रहा था। जब बाली को यह खबर मिली तो उछल पड़ा वह। बहुत खुश हुआ। इतना खुश जितना शादी के दिन भी नहीं था। समय एक बार फिर धानी के लिये वैसी ही खुशियों का पैगाम लेकर आया था। बाली का चहकता चेहरा देखकर मन की सारी दुविधाएँ खत्म हो चली थीं। उसे बच्चों से बहुत प्यार था। पगला है बाली भी। उसे प्रेम को आकार ...और पढ़े
केसरिया बालम - 10
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 10 रुख बदलती हवाएँ नन्हीं किलकारियों में खोते हुए धानी को कुछ तो ऐसा होता जो सामान्य नहीं था, कुछ था जो पीछे छूटता नज़र आता। शायद वह बाली का प्यार था जो अब अपने बहाव की गति काफी कम कर चुका था। जितने तेज बहाव की आदी थी धानी, वह कहीं थमता-सा प्रतीत हो रहा था। धानी के खाने-पीने की लापरवाही पर डाँटना, आत्मीयता से बिठाकर खिलाना, चिढ़ाना, छेड़ना, उसकी चिंता करना, प्रशंसा करना जैसे प्रेम के कई रूपों की आदी थी वह। उनमें से एक भी जब सामने न हो तो उसका ...और पढ़े
केसरिया बालम - 11
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 11 अपने नीड़ में सब कुछ समेट कर घर लौटना ऐसा था जैसे एक का अंत करके ये वापसी हुई हो। बेटी की भूमिका पूरी हुई अब पत्नी और माँ के रूप में ही आने वाला कल होगा। बेटी का रूप माँसा-बाबासा के रहने तक ही था। अब वह बीता कल था, बीता कल जो बीत चुका था। आर्या के साथ लौटते हुए मन शांत था। बच्ची ने इतने दिनों में बिल्कुल तकलीफ नहीं दी थी, नये माहौल में घुल-मिल गयी थी। उसके पानी का, दूध का बहुत ध्यान रखा था धानी ने। माँसा ...और पढ़े
केसरिया बालम - 12
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 12 चुप्पियों का बढ़ता शोर धानी महसूस करती कि उसका प्यार जताना अब बाली अच्छा नहीं लगता। वह तो सिर्फ इतना चाहती थी कि अगर कोई परेशानी है तो उसका समीप्य बाली को उनसे बाहर निकालने में मदद करेगा। लेकिन शायद बाली अपनी समस्याओं से जूझते हुए धानी से दूर रहना चाहता था। जितनी दूरी वह बनाता वह उतना ही करीब आना चाहती। बाली को किसी मुश्किल में देख धानी का दिन-ब-दिन गहराता हुआ भाव ऐसा था जो कभी एक प्रेयसी का होता तो कभी एक मित्र का। कभी दिल इतना बड़ा हो जाता ...और पढ़े
केसरिया बालम - 13
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 13 अमावसी अंधेरों में अब कई बार वह देर रात तक घर नहीं आता। उसकी राह तकती सो जाती। घर आता भी तो कभी बाहर सोफे पर ही सो जाता तो कभी अपनी हवस मिटा कर झट सो जाता। आर्या से सुबह खेलकर जाता तो फिर दूसरे दिन सुबह मिलता। कई बार आधी रात में धानी का हाथ पास के खाली तकिए पर जाता तो अचकचा कर उठ जाती कि – “बाली अभी तक नहीं आया।” बाहर जाकर उसे सोफे पर सोया हुआ देखती तो चैन मिलता। उसे ठीक से ओढ़ा कर, प्यार से ...और पढ़े
केसरिया बालम - 14
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 14 अहं से आह तक धीर-धीरे काम कम होता गया, पैसे भी खत्म होते किसी ने सूचित किया कि बाली के पीछे कुछ लोग पड़े हैं जो अपना पैसा वापस चाहते हैं। जिसके तनाव में वह ऐसे काम करने लगा जो उसे नहीं करना चाहिए। पीता तो पहले भी था पर सिर्फ खुशी में। अब जब पीता था तो कमजोरियों को छुपाने के लिये जो पीने के बाद और अधिक सामने आ जाती थीं। पीने के बाद भी जीवन की मजबूरियाँ कहाँ पीछा छोड़ती हैं। वे और अधिक उकसाती हैं। इंसान को लगता है ...और पढ़े
केसरिया बालम - 15
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 15 बदलती नज़रें, बदलता नज़रिया कुछ भी बोलने के लिये शब्दों को तौलना पड़ता धानी को। एक समय था जब बगैर सोचे जो ‘जी’ में आता, बाली से कह देती थी। कैसा जीवन होता जा रहा था, जहाँ से “जी” हट गया था और अब सिर्फ सुनसान “वन” शेष रह गया था, साँय-साँय करता। जब मन हरा-भरा था तो सब अच्छा लगता था। घर की हर चीज जीवंत लगती थी। वही चीजें जो दिल को कभी खुशियाँ देती थीं, अब एक अलग अर्थ के साथ सामने आने लगी थीं। एक बड़ी, प्यारी-सी महंगी तस्वीर ...और पढ़े
केसरिया बालम - 16
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 16 बारूद के ढेर पर घर की आर्थिक-मानसिक दुश्वारियों से बेखबर आर्या धीरे-धीरे बड़ी रही थी। दोनों बड़ों के दुनियावी बदलाव से बेखबर आर्या अब हाईस्कूल में चली गयी थी। नंबर एक शैतान, पूरा घर सिर पर रखती। पापा-मम्मी के साथ खूब बातें करती, स्कूल की, दोस्तों की। बाहर कड़ाके की ठंड और बर्फ के कारण बच्चे घर में बंद हो जाते। मॉनोपाली की तरह कई बॉक्स गेम थे जो सर्दियों में अपने परिवार के साथ घर के अंदर बैठकर बच्चे खेलते। “ममा, आप जल्दी हार जाती हैं।” “पापा तो कभी नहीं हारते।” मासूमियत ...और पढ़े
केसरिया बालम - 17
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 17 एक किनारे की नदी बाली का किसी से फोन पर झगड़ा हो रहा और तैश में आकर वह मारपीट की धमकी दे रहा था। जाहिर था कि यह पैसों के अलावा तो कोई बात हो ही नहीं सकती। उस दिन बाली के तेवर देखकर धानी सिर्फ आशंकित ही नहीं भयभीत भी हो गयी थी। उसे लगने लगा था कि अब शायद हालात और भी खराब हो। उस दिन पहली बार आर्या अपने पापा के लिये डरी थी, पापा से भी डर लगा था। उस झगड़े के बाद घर की खामोशी और भी बढ़ ...और पढ़े
केसरिया बालम - 18
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 18 केसरिया से केस कानून का खेल शुरू हो गया था। जब कानून बोलता तो सब बोलते हैं, अदालत में वकील बोलते हैं, जज बोलते हैं और फैसले बोलते हैं। घर की बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी। कोई नहीं जानता था कि पीड़ित को इससे और अधिक पीड़ा मिल रही थी। न चाहते हुए भी वह सब करना पड़ रहा था जो उसने कभी नहीं चाहा था। बिटिया का क्रोध भी जायज़ था। घरेलू हिंसा से जुड़े कोर्ट में कार्यवाही शुरू हो गयी। बाली को ढूँढ लिया गया था और केस चलने तक ...और पढ़े
केसरिया बालम - 19
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 19 बदली देहरी, बदले पैर बरस पर बरस बीतते रहे। आर्या अब यूनिवर्सिटी की के लिये बाहर चली गयी थी। अब धानी घर में अकेली थी। परिवार के नाम पर बेकरी के सहकर्मियों का बाहरी परिवार था। रेयाज़ तो अब उनके बीच नहीं था, ग्रेग-इज़ी थे। अच्छे और बुरे दिनों के साथी। जब कभी सब एक साथ बैठते तो रेयाज़ को जरूर याद करते। इज़ी की बेली डांसिग को घुटनों के दर्द ने अपने अंदर छुपा लिया था। कुर्सी पर बैठे-बैठे आँखों व हाथों को चलाती संगीत का मजा लेती। अपनी अलग-अलग चिंताओं की ...और पढ़े
केसरिया बालम - 20
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 20 और दौड़ती दुनिया थम गयी समूचा विश्व तेज गति दौड़ रहा था, बेतहाशा। आज यहाँ तो कल वहाँ। हज़ारों मीलों की यात्रा करते उसके पैर जमीन पर टिक नहीं रहे थे। एक पैर अमेरिका में तो दूसरा इटली में, एक स्पेन में तो दूसरा कैनेडा में। इस बात से सब अनजान कि वर्षों से चल रही इस दौड़ को रोकने की योजना नियति ने बना ली थी। महीनों तक घरों में बंद करने की योजना, इंसानों के उड़ते परों को काट देने की योजना। महामारी कोरोना बनाम कोविड19 ने ऐसा जाल बिछाया कि ...और पढ़े
केसरिया बालम - 21 - अंतिम भाग
केसरिया बालम डॉ. हंसा दीप 21 केसरिया भात की खुशबू आज बाली घर आने वाला है। सिर्फ अपनी देह साथ। ऐसी चेतनाविहीन देह जो देह होने का अर्थ भी नहीं जानती। ऐसी देह जहाँ न मन है, न दिमाग। न विचार हैं, न भावना। और ये सब जब न हों तो क्या हम उसे पागल कह दें? वह और कुछ न हो, पर इंसान तो है। उसी इंसान के आगमन के लिये घर तैयार हो रहा है। आर्या फिर से बाली को “पापा” कहने लगी थी। ममा की स्फूर्ति देखने लायक थी। उनमें गजब की ऊर्जा आ गयी थी। ...और पढ़े