आघात उपन्यास पुरुष प्रधन मध्यवर्गीय समाज में स्त्री की स्थिति का यथार्थ चित्रा प्रस्तुत करने का एक प्रयास है, जहाँ प्रत्येक स्तर पर स्त्राी टूट जाने के लिए या सामंजस्य करने के लिए विवश होती है । इस उपन्यास की नायिका उन अधिकंाश मध्यवर्गीय भारतीय स्त्रिायों के जीवन-संघर्ष से परिचित कराती है और उनके कंटकाकीर्ण जीवन की झाँकी दिखाती है, जो शिक्षित-सम्पन्न परिवारों को अंग होते हुए भी जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रहते हैं । इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय स्त्राी का प्रतिनिध्त्वि करती है । परिवार का प्रेम और विश्वास ही उसके सुख का आधर है परन्तु उसकी त्याग-तपस्यापूर्ण उदात्त प्रकृति तथा पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम ही उसके सुखी जीवन में अवरोध् बन जाता है । उसका स्वच्छन्दगामी पति उसकी त्याग-तपस्या और निष्ठा का तिरस्कार करके अन्यत्र विवाहेतर सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और अपने पारिवारिक दायित्वों के प्रति उदासीन हो जाता है । नायिका को पति का स्वच्छन्द-दायित्व-विहीन आचरण स्वीकार्य नहीं है, फिर भी वह अपने वैवाहिक जीवन के पूर्वार्द्ध में सामाजिक संबंधों के महत्त्व और आर्थिक परावलम्बन का अनुभव करके तथा जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने संस्कारगत स्वभाव के कारण पति के साथ सामंजस्य करने के लिए स्वयं को विवश पाती है ।

Full Novel

1

आघात - 1

आघात डॉ. कविता त्यागी यह उपन्यास आघात उपन्यास पुरुष प्रधन मध्यवर्गीय समाज में स्त्री की स्थिति का यथार्थ चित्रा करने का एक प्रयास है, जहाँ प्रत्येक स्तर पर स्त्राी टूट जाने के लिए या सामंजस्य करने के लिए विवश होती है । इस उपन्यास की नायिका उन अधिकंाश मध्यवर्गीय भारतीय स्त्रिायों के जीवन-संघर्ष से परिचित कराती है और उनके कंटकाकीर्ण जीवन की झाँकी दिखाती है, जो शिक्षित-सम्पन्न परिवारों को अंग होते हुए भी जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रहते हैं । इस उपन्यास की नायिका हमारे समाज की शिक्षित, संस्कारयुक्त, कर्मठ और परिवार के प्रति समर्पित परम्परागत भारतीय ...और पढ़े

2

आघात - 2

आघात डॉ. कविता त्यागी 2 एक क्षण तक पूजा सोच ही रही थी कि रणवीर को उसकी बात का क्या उत्तर दे, रणवीर तब तक बस से उतर चुका था । पूजा उस एक क्षण को रणवीर की ओर से भयमुक्त हो गयी, जब रणवीर उसे वहाँ पर दिखाई नहीं दिया था । वह अजीब-से भ्रमजाज में फँस गयी थी औ ...और पढ़े

3

आघात - 3

आघात डॉ. कविता त्यागी 3 चमन कौशिक डी.एन. इन्टर काॅलिज में अध्यापक थे । उनकी आयु लगभग छप्पन वर्ष थी । छल-कपट और द्वेष-भाव से दूर वे भ्रष्टाचार के युग में इमानदारी के प्रतिनिध् िथे । धरती पर इमानदारी और सात्विक-वृत्तियों का अस्तित्व मिटने न देने के प्रयास के योगदान में वे अपने जीवन में धन का संचय नहीं कर पाये थे, इसलिए अपने परिचितों और सम्बन्धियों में से कुछ की दृष्टि में वे मूर्ख थे, कुछ की दृष्टि में सीधे तथा भोले-भाले । परन्तु अपनी दृष्टि में कौशिक जी एक कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे और जो व्यक्ति उन्हें मूर्ख ...और पढ़े

4

आघात - 4

आघात डॉ. कविता त्यागी 4 कौशिक जी अपनी पत्नी की मनोदशा को भली-भाँति अनुभव कर रहे थे । वे क्षणों तक शान्त-गम्भीर मुद्रा में बैठे हुए विचारों की दुनिया में कहीं खो गये । रमा ने उनके कंधे को पकड़कर हिलाया तो अपनी विचार-मग्न स्थिति से बाहर आये और मुस्कुराकर बोले- ‘‘रमा, इस नकारात्मक सोच से शायद तुम अपने जीते-जी मुक्ति नहीं पा सकोगी ! मैं कहता हूँ, सकारात्मक सोचने की आदत डालो ! अब यह सोचो कि तुम्हारी बेटी जाते ही उस घर की मालकिन बन जाएगी ! सही कर रहा हूँ न मैं ?’’ ‘‘आप न सही ...और पढ़े

5

आघात - 5

आघात डॉ. कविता त्यागी 5 कौशिक जी के समक्ष रामनाथ द्वारा अपनी बात खुलकर न कह पाने का और प्रकार की अप्रकृतिस्थ मनोदशा का एक ठोस कारण था । चूँकि रामनाथ जी ने ही पूजा का विवाह रणवीर के साथ करने के लिए कौशिक जी को प्रेरित किया था । रणवीर के विषय में अनेक सकारात्मक और प्रभावोत्पादक बातें, जिनमें से कई बातें वास्तव में नहीं थी, बताकर और कुछ नकारात्मक बातें छिपाकर कौशिक जी को तैयार किया था, इसलिए आज वे रणवीर अथवा उसके परिवार के विषय में कुछ नकारात्मक प्रभाव डालने वाली बात नहीं कहना चाहते थे ...और पढ़े

6

आघात - 6

आघात डॉ. कविता त्यागी 6 घर में पूजा के विवाह की तैयारियाँ चल रही थी । विवाह के थोड़े दिन अब शेष बचे थे । कार्य बहुत अधिक थे और समय बहुत कम, इसलिए सभी लोग कार्य करने में व्यस्त थे । विवाह की निर्धारित तिथि से आठ दिन पहले अचानक रमा को ज्ञात हुआ कि चमेली बुआ अपने भाई से मिलने के लिए गाँव में आई हुई हैं । चमेली वृधँधावस्था को प्राप्त कर चुकी कौशिकजी के गाँव की एक लड़की थी, जिसकी ससुराल रणवीर के गाँव में थी । अतः चमेली को पूजा के विवाह समारोह में ...और पढ़े

7

आघात - 7

आघात डॉ. कविता त्यागी 7 पिता के घर से विदा होकर पूजा जब ससुराल के लिए चली, तब वह को लेकर अनेक शंकाओं से त्रस्त थी । उसके मस्तिष्क में उस समय की सभी स्मृतियाँ वर्तमान होकर चलचित्र की भाँति उसकी आँखों में तैर रही थी, जब उसने रणवीर को एक जिद्दी, आवारा और गैर जिम्मेदार युवक मानते हुए अनेक बार उसका तिरस्कार किया था । पूजा को वह भी घटना याद थी, जब रणवीर उसकी इच्छा के विरुद्ध उसके साथ-साथ काॅलिज से घर तक आ पहुँचा था और बहुत विनती करने पर वापिस गया था । उस घटना ...और पढ़े

8

आघात - 8

आघात डॉ. कविता त्यागी 8 प्रातः काल रणवीर की नींद खुली तो उसका सिर भारी था । रात-भर वह में घिरा हुआ वैवाहिक जीवन की सफलता-असफलता की विचार-लहरों पर डूबता-तैरता रहा था । बिस्तर छोड़ने के पश्चात् भी वह जितना प्रयास करता था कि अपने जीवन की अप्रिय घटनाओं को भूल जाए, उतना ही वे घटनाएँ स्मृतियों के रूप में उसकी आँखों में उभर आती थी । दिन-भर उन स्मृतियों ने रणवीर का पीछा नहीं छोड़ा । अन्त में उसने निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा अवसर नहीं दे सकता कि ...और पढ़े

9

आघात - 9

आघात डॉ. कविता त्यागी 9 अगस्त का महीना था । उमस अपने चरम पर थी । शाम के तीन थे । प्रेरणा अपने घर के मुख्य द्वार से सटे हुए अतिथि कक्ष में बैठी हुई स्कूल से मिले हुए गृहकार्य में तन्मय थी, तभी उसका ध्यान दरवाजे की ओर गया, जहाँ पर डाकिया अपनी साइकिल की घंटी बजाते हुए ऊँची आवाज में पुकार रहा था - ‘‘कौशिक जी ! कौशिक जी !’’ कौशिक जी उमस के कारण उत्पन्न चिपचिपाहट से मुक्ति पाने के लिए ठंडे-ठंडे पानी से स्नान का आनन्द उठा रहे थे, इसलिए बाथरूम से ही ऊँचे स्वर ...और पढ़े

10

आघात - 10

आघात डॉ. कविता त्यागी 10 कौशिक जी ने अपनी बेटी के मानसिक द्वन्द्व की स्थिति को तुरन्त भाँप लिया उन्होंने मुस्कराते हुए कहा - ‘‘कुछ कहना चाहती हो, तो कहती क्यों नहीं हो ?’’ ‘‘पिताजी, आपको कहीं जाना तो नही है ?... मतलब, जल्दी तो नहीं जाना है ?’’ ‘‘नही, अभी हम कहीं नहीं जा रहे हैं ! आज हम तुम्हारे साथ बातें करेंगे ! और तब तक करेंगे, जब तक तुम चाहोगी ।’’ ‘‘सच!’’ ‘‘बिल्कुल सच!’’ ‘‘अर्थात, आप आज कहीं बाहर नहीं जाएँगे, सारा दिन घर पर ही रहेंगे?’’ ‘‘हाँ ! बिल्कुल सही समझा है तुमने ! आज ...और पढ़े

11

आघात - 11

आघात डॉ. कविता त्यागी 11 शाम के लगभग तीन बजे पूजा ने मुस्कुराते हुए प्रेरणा से कहा - ‘‘पिन्नु जा, जरा देेखकर तो आ, तेरे जीजा जी जाग चुके हैं या अभी तक सो रहें हैं ?... तूने तो अपने जीजा जी से बातें ही नहीं की हैं ! उनसे नाराज है क्या ?’’ पूजा की बात सुनकर प्रेरणा उठी और बाहर की ओर चल दी, जहाँ मुख्य द्वार से सटे हुए अतिथि कक्ष में रणवीर सो रहा था । प्रेरणा का अुनमान था कि पूजा दीदी माँ से कुछ बातें करना चाहती हैं, इसलिये उसे वहाँ से कहीं ...और पढ़े

12

आघात - 12

आघात डॉ. कविता त्यागी 12 पिता के शब्दों का अवलम्ब ग्रहण करके पूजा कुछ प्रकृतिस्थ हो गयी और ससुराल के लिए तैयार होने लगी । यह जानते हुए भी कि उनकी बेटी ससुराल में कष्टप्रद जीवन जी रही है, माता अपनी बेटी को ससुराल में भेजने के लिए विवश थी । माँ की आँखो से आँसू बहने अभी भी बन्द नहीं हुए थे । ऐसा लग रहा था मानो एक माँ अपने हृदय की पीड़ा को आसुँओं के बहाने बाहर निकालने को प्रयास कर रही थी । उस पीड़ा को, जिसको वह शब्दों में व्यक्त करने की क्षमता नहीं ...और पढ़े

13

आघात - 13

आघात डॉ. कविता त्यागी 13 वहाँ से लौटकर तीन-चार दिन तक कौशिक जी का चित्त बहुत ही अशान्त रहा अपनी इस आन्तरिक अशान्ति से उनका व्यवहार भी असामान्य- सा हो गया था । उस समय वे न किसी से कुछ कहना चाहते थे, न कुछ सुनना चाहते थे । यहाँ तक कि खाने-पीने के सम्बन्ध में भी कुछ नहीं कहते थे । जो कुछ, जैसा भी खाने-पीने के लिए दिया जाता था, चुपचाप जीवित रहने भर के लिए खा लेते थे, शेष वापिस छोड़ देते थे । चार-पाँच दिन पश्चात् जब उनका चित्त कुछ शान्त हुआ, तब उन्होंने घर ...और पढ़े

14

आघात - 14

आघात डॉ. कविता त्यागी 14 चार-पाँच महीने पश्चात् एक दिन एक अप्रत्याशित घटना घटी । उस दिन अचानक किसी सूचना के बिना पूजा और रणवीर घर पर आ पहुँचे । पूजा इतनी दुर्बल हो गयी थी कि उसको प्रथम दृष्ट्या पहचानना कठिन था । घर के सभी लोग यह सोचकर प्रसन्न थे कि दुर्बल ही सही, वह आ गयी, यही क्या कम है ! उसे देखकर उन सबको ऐसा लग रहा था कि प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करके उसका जीवित रहना ही हम सबके लिए जहाँ गौरव और प्रसन्नता का विषय है, वहीं स्वयं पूजा के लिए उसकी वीरता ...और पढ़े

15

आघात - 15

आघात डॉ. कविता त्यागी 15 समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा और पूजा के तीन वर्ष सुख-शान्ति से हो गये । वह अपना सारा समय अपने बेटे प्रियांश के कार्यों में व्यस्त रहते हए व्यतीत कर देती थी । इस अन्तराल में पूजा के साथ अपने मायके से पत्रों का आदान-प्रदान होता रहा, किन्तु उनमें सामान्य -औपचारिक कुशल-क्षेम की सूचना के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं होता था । इस समयान्तराल में पूजा अपने मायके में पाँच-छः बार मिलने के लिए भी आयी थी और उसने प्रत्येक बार यह ही बताया था कि अब घर की परिस्थितियाँ अपेक्षाकृत सामान्य ...और पढ़े

16

आघात - 16

आघात डॉ. कविता त्यागी 16 शीघ्र ही ऐसा अवसर मिल गया जब पूजा और प्रेरणा दोनों एकान्त में बैठकर तक बातें कर सकती थी । उसने पूजा से उसकी चिन्ता का कारण जानने के लिए उससे कहा - ‘‘दीदी, आपका स्वास्थ्य ठीक तो है ना ?’’ ‘‘हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ !’’ ‘‘तो फिर आप सारा दिन उदास क्यों रहती हैं ?’’ ‘‘ऐसी तो कोई बात नहीं है !’’ इतना कहते-कहते पूजा अपने मस्तिष्क में उठे विचारों के तूफान में खो गयी । कुछ क्षण तक वह बिल्कुल शान्त बैठी रही । वह निर्णय नहीं कर पा रही थी ...और पढ़े

17

आघात - 17

आघात डॉ. कविता त्यागी 17 पूजा सोचने लगी - माँ की कहानियाँ स्त्री को अबला बनाती हैं और उसको से सामंजस्य करना सिखाती हैं ! वे कहानियाँ स्त्री को अपनी शोचनीय दशा में सुधार करने के लिए संघर्ष करना नहीं सिखाती ! उसकी शोचनीय दशा का सबसे बड़ा कारण उसका आर्थिक परावलम्बन है ! यदि स्त्री आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त कर ले, तो उसकी इस दशा में अवश्य ही कुछ सुधार सम्भव है । विचार-मन्थन की इस अवस्था में उसने निश्चय किया कि अपनी इस विषम परिस्थिति से निकलने के लिए वह सर्वप्रथम आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनने का प्रयास ...और पढ़े

18

आघात - 18

आघात डॉ. कविता त्यागी 18 पूजा को ससुराल गये पाँच महीने बीत चुके थे। इस समयान्तराल में उसने मात्र पत्र अपनी कुशलता की सूचना देने के लिए भेजे थे एक ससुराल पहुंँचने के तत्काल बाद तथा दूसरा उसके एक महीना पश्चात् । इनमें से पहले में तो केवल सकुशल यात्रा पूरी होने भर की सूचना थी, और दूसरे में अपने माता-पिता को सम्बोधित करते हुए लिखा था कि वह अपनी समस्याओं का समाधन स्वयं करने का प्रयास कर रही है । उसे पूर्ण विश्वास है कि वह अपने गृहस्थ-जीवन को सुख-शान्तिमय बनाने में सफलता प्राप्त कर सकती है। अतः ...और पढ़े

19

आघात - 19

आघात डॉ. कविता त्यागी 19 बेटी की माँ बनने की पूजा की अभिलाषा को रणवीर तथा उसकी सास नकारात्मक से ग्रहण करते हुए पूजा पर आरोप लगाने लगे कि वह विरोध करके उनका अपमान कर रही है। इस आरोप से मुक्त होने के लिए पूजा ने उन्हें अपने मंतव्य से सहमत करने का अथक प्रयास किया, परन्तु उसे सफलता नहीं मिली। दूसरी ओर रणवीर और उसकी माँ ने अपने मित्रों- परिचितों के घर की महिलाओं को बुला-बुलाकर उनके माध्यम से पूजा को अपने विचार-पक्ष से सहमत होने का दुष्प्रयत्न करना आरम्भ कर दिया कि वह व्यर्थ में ही गर्भस्थ ...और पढ़े

20

आघात - 20

आघात डॉ. कविता त्यागी 20 समय का चक्र अपनी गति से आगे बढ़ रहा था। ज्यों-ज्यों पूजा का प्रसव-काल आ रहा था, त्यों-त्यों कौशिक जी की चिन्ता बढ़ती जा रही थी। उनकी चिन्ता का मुख्य कारण था कि अभी तक उन्होंने अपने समाज और निकट सम्बन्धियों में किसी को पूजा के गृह-क्लेश के विषय में कुछ नहीं बताया था और न ही बताना चाहते थे। पूजा का प्रसव-समय निकट आते देखकर कई महीने से मायके में आकर रहती हुई बेटी के विषय में पास-पड़ोसी तथा अन्य निकट-सम्बन्धी अनेक तरह के प्रश्न पूछने लगे थे । समाज के लोग अनुमान ...और पढ़े

21

आघात - 21

आघात डॉ. कविता त्यागी 21 कौशिक जी और रमा अपनी बेटी की स्थिति देखकर अत्यन्त व्याकुल हो गये। उन्होंने देते हुए उसको चुप कराया कि रोना किसी समस्या का समाधन नहीं होता है । उसे समझाया कि वह केवल अपने बच्चे सुधांशु के पालन-पोषण पर ध्यान केन्द्रित करे, अन्य किसी भी बात की चिन्ता न करे, क्योंकि समय में स्वयं इतनी शक्ति है कि वह धीरे-धीरे सभी समस्याओं का समाधन कर देता है । पिता का आश्वासन पाकर पूजा चुप हो गयी और दूसरे कमरे में, जहाँ उसका बेटा सुधांशु सोया हुआ था, चली गयी। यश का अपने पिता ...और पढ़े

22

आघात - 22

आघात डॉ. कविता त्यागी 22 ससुराल पहुँचकर पूजा को पता चला कि रणवीर अपनी माँ की आज्ञा लिए बिना उसको लेने के लिए गया था । माँ को रणवीर का यह निर्णय अच्छा नहीं लगा। अपनी आज्ञा के बिना उन्हें बहू का घर में आना इतना अप्रिय लगा कि इस घटना को वे अपने मान-अपमान से जोड़कर देखने लगी । अपने इस कथित अपमान की उत्तरदायी वे पूजा को ठहरा रही थी । उनके अनुसार पहले कभी उनके बेटे ने माँ की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया था, न ही माँ की अनुमति लिये बिना कभी कोई कार्य किया ...और पढ़े

23

आघात - 23

आघात डॉ. कविता त्यागी 23 पूजा और रणवीर अस्पताल में भर्ती सुधांशु को लेकर चिन्तित थे। वे सभी कार्यों छोड़कर उसके स्वास्थ्य को सर्वाधिक महत्व दे रहे थे। रणवीर की माँ भी अस्पताल में सुधांशु को देखने के लिए आयी थी। माँ को देखते ही रणवीर के चेहरे पर सन्तोष और अपने बेटे की चोट के कारण उत्पन्न हृदय की पीड़ा की रेखाएँ उभर आयी। वह मानो सारी पीड़ा को माँ के आँचल में उडे़ल देना चाहता था, परन्तु, काश ऐसा हो पाता ! रणवीर की माँ ने अनुभव किया कि उसका बेटा अपने बेटे की चोट के बहाने ...और पढ़े

24

आघात - 24

आघात डॉ. कविता त्यागी 24 मई का महीना था । मनाली के होटलों में गर्म प्रदेशों से जाने वाले की भीड़ थी । उन्हीं में से एक होटल में एक युगल अपने जीवन की सभी चिन्ताओं, जिम्मेदारियों और मर्यादाओं से मुक्त होकर आनन्द भोग रहा था । पहाड़ी का ठंडा वातावरण और अपने-अपने परिवार से दूरी उस युगल के आनन्द को कई गुना बढ़ा रहे थे। वह युवक और उसकी साथी युवती, दोनों ही विवाहित थे और उस समय अपने-अपने जीवन-साथी से छिपकर उस ठंडे वातावरण का आनन्द ले रहे थे। यदि उन दोनों से उनके जीवन-साथी के विषय ...और पढ़े

25

आघात - 25

आघात डॉ. कविता त्यागी 25 रात-भर तथा अगले दिन भी पूजा सोचती रही कि वह रणवीर से अपनी शंका करे ? या न करे ? करे तो किस प्रकार करे ? कि साँप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ! दो दिन-रात ऊहापोह में बीत गये । तीसरे दिन रणवीर बहुत सवेरे घर से निकल गया। उसने घर पर नाश्ता भी नहीं किया था और रात में लगभग साढे़ दस बजे घर पर लौटा । उस रात पूजा के धैर्य का बाँध टूट गया । उसे संदेह था कि दिन-भर रणवीर ने वाणी के साथ समय बिताया ...और पढ़े

26

आघात - 26

आघात डॉ. कविता त्यागी 26 अंधेरा हो गया था और बच्चे रोते रोते थक गये थे । सुधंशु तो सोने लगा था। प्रियांश ने चिन्तित स्वर में माँ से पूछा - ‘‘मम्मी जी ! अब हम कहाँ रहेंगे ? हम सारी रात बाहर ही रहेगे ? हम सोएँगे कहाँ ? मम्मी जी, हम खाना कहाँ खायेगें ? बेटे के प्रश्नों से पूजा का हृदय कराह उठा । छोटा-सा बच्चा है और उसका नन्हा मस्तिष्क कितनी चिन्ताओं-प्रश्नों में डूबा है ! जिन्हें इस आयु में पिता के स्नेह और दुलार की आवश्यकता है, वे घर के बाहर खडे़ रो रहे ...और पढ़े

27

आघात - 27

आघात डॉ. कविता त्यागी 27 स्टेशन पर जाकर पूजा एक प्रतीक्षालय के बाहर बैठ गयी, जहाँ ट्रेन आने की में कुछ यात्री बैठे थे, कुछ लेटे थे तथा कुछ सो रहे थे । कुछ यात्री परस्पर बातें कर रहे थे कि उन्हें प्रतीक्षा करते-करते बारह घंटे हो चुके है ! कुछ कह रहे थे कि वे पिछले बीस घंटे से प्रतीक्षा कर रहे है। प्रतीक्षारत यात्रियों में से कुछ ने, जो अभी-अभी एक ट्रेन से उतरकर किसी दूसरी ट्रेन की प्रतीक्षा करने के लिए वहाँ पर आये थे, अपने सामान को खोलकर भोजन का डिब्बा निकाला और भोजन करने ...और पढ़े

28

आघात - 28

आघात डॉ. कविता त्यागी 28 बाहरी रूप से पूजा के घर में सब कुछ सामान्य-सा दिखाई देने लगा थे, - समय पर खाना बनता था, परिवार के सभी सदस्य समय पर खाते थे। दोनों बच्चे स्कूल जाते थे । पति-पत्नी में आवश्यक कार्यों के लिए बातचीत भी होती थी । किन्तु, रणवीर अभी भी नियमित रूप से निश्चित समय पर घर नहीं लौटता था । इसी कारण अभी तक न तो दोनों के बीच पुराना प्रेम लौट सका था और न ही पूजा के चित्त में रणवीर के प्रति पहले जैसा विश्वास लौटा था । पहले जैसा तो क्या, ...और पढ़े

29

आघात - 29

आघात डॉ. कविता त्यागी 29 पूजा और रणवीर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को घसीटते हुए उस मोड़ तक ले थे, जहाँ उनके बेटे प्रियांश और सुधांशु ने किशोर वयः में पदार्पण किया था । माता-पिता के परस्पर तनावपूर्ण सम्बन्ध अब उनके व्यक्तित्व के विकास में ही नहीं, उनकी शैक्षिक उन्नति के मार्ग में भी बाधक बनकर उभर रहे थे । विधि का दुष्चक्र ऐसा चल रहा था कि तनाव कम करने की दिशा में किया गया पूजा का हर प्रयास अपना प्रतिकूल प्रभाव डालकर तनाव को और अधिक बढ़ा देता था । तनाव के परिणामस्वरूप परिवार की आर्थिक दशा ...और पढ़े

30

आघात - 30

आघात डॉ. कविता त्यागी 30 पूजा के चित्त में एक संघर्ष-सा होने लगा । वह कभी स्वंय को उचित करने का प्रयास करने लगी और कभी स्वयं ही स्वयं को अनुचित सिद्ध करने का प्रयास करती हुई रणवीर को निर्दोष मानने लगी । उसके चित्त में बार-बार अनुकूल-प्रतिकूल विचारों का तूफान उठने लगा और बिजली की भाँति कई प्रश्न उसके मस्तिष्क में उभरने लगे - ‘‘क्या यह मेरे हृदय का भ्रम-मात्र है कि रणवीर का वाणी के साथ अवैध सम्बन्ध घनिष्ठता की ओर बढ रहा है ? क्या मैने अपने सन्देह को प्रकट करके कोई व्यावहारिक भूल की है ...और पढ़े

31

आघात - 31

आघात डॉ. कविता त्यागी 31 बच्चों को स्कूल भेजकर पूजा दरवाजा बन्द करके जैसे ही अन्दर आयी, तभी रणवीर फोन आया कि वह एक घंटे में घर पहुँच जाएगा। उसके आने की सूचना मिलने के पश्चात् पूजा ने एक बार पुनः अपना संकल्प दोहराया और स्वस्थ-चित्त से अपने कार्य में व्यस्त हो गयी। रणवीर ने एक घण्टा में घर पहुँचने की सूचना दी थी, किन्तु वह लगभग चालीस मिनट पश्चात् ही घर आ पहुँचा। रणवीर को अभी तक अपनी माँ के वहाँ आने की सूचना नहीं मिली थी, इसलिए वह दरवाजा खुलते ही पूजा के साथ-साथ अपने कमरे की ...और पढ़े

32

आघात - 32

आघात डॉ. कविता त्यागी 32 उस दिन प्रियांश और सुधांशु के विद्यालय का अवकाश था । उन दोनों ने के सकारात्मक व्यवहारों से प्रभावित होकर तथा पूर्व में दिये गये पिता के वचन की याद दिलाकर अपने मम्मी-पापा के साथ छुट्टी मनाने के लिए पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बनाया था । रणवीर ने भी इस कार्यक्रम में कोई आपत्ति नहीं की। अतः पूजा पिकनिक पर जाने की तैयारियों में जुट गयी और बच्चे भी प्रसन्नतापूर्वक तैयार होने लगे। पूजा पिकनिक के लिए सामान व्यवस्थित कर रही थी और रणवीर स्नान कर रहा था, तभी उसके मोबाइल की घंटी ...और पढ़े

33

आघात - 33

आघात डॉ. कविता त्यागी 33 पूजा की स्वीकृति पाने के पश्चात् रणवीर ने पुनः कहना आरम्भ किया - ‘‘वह जिसके साथ वाणी ने विवाह किया था, करोड़ो की सम्पत्ति का मालिक था। जबकि मैं अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए भी उस समय घरवालों पर निर्भर रहता था। अब मैं आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हूँ और मेरा काम भी अच्छा चल रहा है !’’ ‘‘तुम तो कहते थे कि तुम्हारी कम्पनी घाटे में चल रही है ?’’ ‘‘हाँ, घाटे में चल रही है, पर यह बात किसी बाहर के व्यक्ति को थोड़े ही पता है ! ..... ...और पढ़े

34

आघात - 34

आघात डॉ. कविता त्यागी 34 प्रेरणा जब मेरठ पहुँची, तब तक सूर्य डूब चुका था और थोड़ा-थोड़ा अंधेरा होने था। वह जब घर पर पहुँची, कौशिक जी द्वार पर खड़े थे। किसी पूर्व सूचना के बिना बेटी को घर पर आया हुआ देखकर उन्हें किसी अनिष्ट की शंका होने लगी थी। एक पिता के लिए बेटी की कुशलता को लेकर चिन्तित होना और इस प्रकार उसे अपने घर देखकर शंका उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। वे क्षण-भर तक प्रेरणा को ऐसे ही देखते रहे, मानों उनकी आँखें पहचानने का प्रयास कर रही थी कि वह उनकी बेटी प्रेरणा ही ...और पढ़े

35

आघात - 35

आघात डॉ. कविता त्यागी 35 लगभग एक वर्ष पश्चात् एक दिन अचानक एक अप्रत्याशित घटना ने पूजा के जीवन धारा बदलकर उसके दिशाहीन दाम्पत्य-जीवन को एक नयी दिशा प्रदान कर दी। उस दिन रणवीर को घर से गये हुए एक महीना से अधिक समय बीत चुका था। पूजा ने उससे फोन पर सम्पर्क किया, तो उसने बताया कि वह शहर से बाहर है और अभी वापिस लौटने के विषय में कोई निश्चित समय नहीं बताया जा सकता। उस समय रात के दस बजे थे। दोनों बच्चे सो चुके थे। पूजा अभी तक रणवीर के आने की प्रतीक्षा कर रही ...और पढ़े

36

आघात - 36

आघात डॉ. कविता त्यागी 36 अपने संकल्प को कार्यरूप में परिणत करने के लिए उसने अपनी सहेली नेहा के से एक वकील से सम्पर्क किया। उस वकील के परामर्शानुसार पूजा ने रणवीर के विरुद्ध कोर्ट में गुजारे-भत्ते का केस फाइल कर दिया और तलाक की बहस के लिए निर्धारित तिथि में उपस्थित भी हुई। रणवीर ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि पूजा उसके विरुद्ध कोर्ट में खड़ी हो सकती है और गुजारे-भत्ते की माँग कर सकती है। उसको तो यह भी आशा नहीं थी कि पूजा कोर्ट में उपस्थित होने का साहस भी कर सकती है। उसके ...और पढ़े

37

आघात - 37

आघात डॉ. कविता त्यागी 37 न्यायालय की सहायता से आर्थिक संबल प्राप्त करने के लिए भी उसको आने-जाने तथा को देने के लिए रुपयों की आवश्यकता थी । इसके लिए वह रुपये कहाँ से लाये ? यह भी एक बड़ी समस्या थी । इस समस्या ने उसे विचलित कर दिया। उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं था । पढ़ी-लिखी होने पर भी व्यावसायिक प्रशिक्षण के अभाव में वह जीविकोपार्जन करने मे असमर्थ थी। उसके बच्चे अभी इस योग्य नहीं थे कि वे कुछ जीविकोपार्जन कर सकें । पूजा यह भी सोचती थी कि यदि पेट भरने के लिए ...और पढ़े

38

आघात - 38

आघात डॉ. कविता त्यागी 38 जिस तकनीकी ज्ञान और व्यावसायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता पूजा को आज अनुभव हो रही उसका विकास केवल आर्थिक स्वावलम्बन के उद्देश्य से किया जाता है। पूजा के पिताजी ने या उसकी माँ ने उसके लिए कभी भी स्वावलम्बी होने की आवश्यकता समझी ही नहीं थी। उन्होंने घर की बहू-बेटी के लिए घर के अन्दर रहकर घर-परिवार को सम्भालना ही उसकी आवश्यकता और मान-प्रतिष्ठा का विषय समझ लिया था। उन्होंने बेटी को व्यवसायिक शिक्षा दिलाकर तकनीक कौशल का विकास और कार्यानुभव कराना परिवार की प्रतिष्ठा के लिए घातक समझा था। अपने विचारों को कार्यरूप में ...और पढ़े

39

आघात - 39

आघात डॉ. कविता त्यागी 39 रणवीर के विरुद्ध खडे़ होने पर पूजा को ज्ञात हुआ कि वाणी के अतिरिक्त ने कई अन्य स्त्रियों के साथ अवैध-अनैतिक सम्बन्ध बनाये हुए हैं । किन्तु,आज भी रणवीर पर वाणी का नियन्त्रण अपेक्षाकृत दृढ़ है और वाणी ही वह कटार है, जिसने पूजा और रणवीर के पवित्र-वैवाहिक-बन्धन को मूलतः काटने का प्रयास किया है । वाणी के लिए रणवीर अपनी कमाई का एक बड़ा भाग खर्च करता रहा है और उसके साथ इतनी घनिष्ठता रखता है कि उसके कष्टों को कम करने के लिए सदैव तत्पर रहता है, इसलिए वाणी उस पर पूर्ण ...और पढ़े

40

आघात - 40

आघात डॉ. कविता त्यागी 40 वाणी के विषय में सोच-सोचकर मुस्कराते हुए रणवीर अपने आॅफिस में लौट गया। उसके के लगभग एक घन्टा पश्चात् उसके लिए आॅफिस के नम्बर पर फोन आया। फोन पर वाणी ने कहा था कि रणवीर का मोबाइल स्विज आॅफ है और साथ ही यह भी पूछा कि वह आॅफिस में है या नहीं ? रणवीर ने अपने आॅफिस कर्मचारी को संकेत से कहा था कि वह फोन करने वाले व्यक्ति को बताये कि रणवीर वहाँ नहीं है ! उसकी आज्ञा का पालन करके कर्मचारी ने वही कहा, जो रणवीर चाहता था । दस-पन्द्रह मिनट ...और पढ़े

41

आघात - 41

आघात डॉ. कविता त्यागी 41 धीरे-धीरे समय बीतता जा रहा था । दो वर्ष हो चुके थे, किन्तु अभी कोर्ट के माध्यम से पूजा को और उसके बच्चों को रणवीर की ओर से गुजारा-भत्ता नहीं मिल पाया था । एक बार न्यायालय के द्वारा इस विषय में निर्णय दिया जा चुका था, किन्तु रणवीर ने उसमें यह आपत्ति करके उस निर्णय को रुकवा दिया था कि निर्णय के दिन वह बहस के समय कोर्ट में उपस्थित नहीं था । पूजा रोज-रोज न्यायालय जाने में कठिनाई का अनुभव करती थी । वह वहाँ जाकर अपने बहुमूल्य समय और धन का ...और पढ़े

42

आघात - 42

आघात डॉ. कविता त्यागी 42 पूजा की चिन्ता का विषय उस समय इतना महत्वपूर्ण था कि उसने अत्यन्त थकी होने पर भी जागकर बच्चों की प्रतीक्षा करना आवश्यक समझा । उसकी चिन्ता का कारण प्रियांश का आई.आई.टी. में प्रवेश कराने के लिए आवश्यक धनराशि का अभाव था । पूजा की प्राथमिकता अब प्रियांश के प्रवेश के लिए धन का प्रबन्ध करना था । वह इस समस्या के समाधन के विषय में निरन्तर विचार-मंथन कर रही थी । दूसरी ओर, थोडी देर तक मस्ती करने के पश्चात् प्रियांश को स्मरण हुआ कि माँ उनसे कुछ कहना चाहती थी, इसीलिए मस्ती ...और पढ़े

43

आघात - 43

आघात डॉ. कविता त्यागी 43 भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान आई.आई.टी. में अध्ययन करते हुए प्रियांश का बी.टेक. का प्रथम वर्ष हो चुका था । प्रथम वर्ष का उसका शैक्षिक-परिणाम उसी प्रकार अच्छा रहा, जैसे पहले से आता रहा था । वह इस वर्ष भी अपने बैच के होनहार विद्यार्थियों में सम्मिलित था । इस एक वर्ष में पूजा अपने गुजारे भत्ते का केस जीत चुकी थी । पूजा द्वारा केस को जीतने पर रणवीर बौखला उठा था । उसने पूजा पर आरोप लगाया कि उसने न्यायधीश को घूस देकर निर्णय अपने पक्ष में कराया था । यद्यपि उसका यह आरोप ...और पढ़े

44

आघात - 44

आघात डॉ. कविता त्यागी 44 इन सात वर्षो में एक ओर, रणवीर और पूजा एक-दूसरे से अलग होने के लड़ते रहे थे, तो दूसरी ओर उनके दोनों बेटे अपनी संघर्ष-यात्रा पूरी करते हुए अपने लक्ष्य के बहुत निकट पहुँच चुके थे। इन वर्षों में प्रियांश की बी. टेक. पूर्ण हो चुकी थी । बी.टेक के अन्तिम वर्ष में अपने संस्थान-परिसर से ही एक प्रसिद्ध बहुदेशीय कम्पनी में उसकी नियुक्ति भी निश्चित हो गयी थी । सुधांशु का भी भौतिकी से बी.एस.सी. ऑनर में अन्तिम वर्ष था । इन दोनों भाइयों को उन्नति की ओर अग्रसर देखकर इनके सगे-सम्बन्धी और ...और पढ़े

45

आघात - 45

आघात डॉ. कविता त्यागी 45 पूजा सोच रही थी - ‘‘मैंने बेटों के प्रति अपने दायित्व का पूर्ण निर्वाह हुए इन्हें सुयोग्य नागरिक बना दिया है ! अब ये जैसा चाहें, अपने विचारों के अनुरुप जीवन जिएँ ! मुझे इनके किसी भी विषय में हस्तक्षेप की सीमा पार नहीं करनी चाहिए ! आज मैं आत्मनिर्भर हूँ ! मुझे अपने लिए किसी की आवश्यकता नहीं है ! न रणवीर की है, बच्चों की ! आज तक विवाह-विच्छेद न हो, इसके लिए प्रयास करने का कारण भी मेरा स्वंय का स्वार्थ नहीं था ! अपने बच्चों के हितार्थ ही तो मैंने ...और पढ़े

46

आघात - 46

आघात डॉ. कविता त्यागी 46 अपने बयान की प्रतिक्रियास्वरुप रणवीर का व्यवहार पूजा को तनिक भी अस्वाभाविक प्रतीत नहीं रहा था । वह रणवीर के स्वभाव से भली-भाँति परिचित थी और इसी आधर पर वह रणवीर के अगले कदम का अनुमान भी थोड़ा-बहुत लगा सकती थी । इसीलिए वह अपनी ओर से किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया दिये बिना मुस्कराती हुई कोर्ट से बाहर निकल गयी । पूजा को प्रसन्नचित्तवस्था में देखकर अपने मस्तिष्क में संदेह के साथ एक छद्म-योजना लिये हुए रणवीर भी कोर्ट से बाहर निकल आया । कोर्ट से बाहर आते ही रणवीर विवाह-विच्छेद के लिए ...और पढ़े

47

आघात - 47

आघात डॉ. कविता त्यागी 47 पूजा से अपनी आशा के विपरीत उत्तर पाने के बाद रणवीर घर से निकलकर पर आ गया और धीमी गति से चलने लगा । अपनी असफलता से वह अभी पूरी तरह निराश नहीं हुआ था, इसलिए ऐसी किसी नयी युक्ति के विषय में सोचता जा रहा था, जिससे पूजा और अविनाश के बीच बढ़ती हुई घनिष्ठता में कम हो जाए ! रणवीर को पूर्ण विश्वास हो गया था कि अविनाश ही वह व्यक्ति है, जो पूजा को उसके पति से अलग रहकर जीने की शक्ति प्रदान कर रहा है । यदि अनिवाश पूजा से ...और पढ़े

48

आघात - 48

आघात डॉ. कविता त्यागी 48 रणवीर के भावपूर्ण क्षणों का अपनी योजनानुसार दोहन करने में वाणी पहले से ही थी । इसी दक्षता के बल पर आज भी वह अपनी योजना में धीर-धीरेे सफलता प्राप्त कर रही थी । उसी क्रम में उसने रणवीर को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि यदि वह अपनी सम्पत्ति वाणी के नाम वसियत कर दे, तो उसके बेटों को अपने पिता की शक्ति का एहसास हो जाएगा ! जब तक बेटों को यह भ्रम है कि वे अपने पिता की सम्पत्ति के ऐसे उत्तराधिकारी हैं, जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता, ...और पढ़े

49

आघात - 49

आघात डॉ. कविता त्यागी 49 पूजा ने प्रातः काल उठकर घर का दरवाजा खोला, तो देखा, बाहर रणवीर की खड़ी थी । वह सोचने के लिए विवश हो गयी - ‘‘सुबह-सुबह रणवीर यहाँ क्यों आया है ? वह आज फिर कोई नया नाटक करने की तो नहीं सोच रहा हो ? पर अपनी गाड़ी यहाँ खड़ी करके वह कहाँ चला गया ? आस-पास कहीं दिखाई भी नहीं पड़ रहा है !’’ कुछेक मिनट दरवाजे पर खड़ी रहकर वह अपने प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करती रही । परन्तु वह सफलता प्राप्त न कर सकी । अन्त में उस ...और पढ़े

50

आघात - 50

आघात डॉ. कविता त्यागी 50 ब्राहृमण भोज संपन्न हो चुका था । रणवीर की मौत पर सहानुभूति प्रकट करने लिए आये हुए नाते-रिश्तेदार और परिचित लोग उसके बेटों की गिरफ्तारी होने के बाद धीरे-धीरे विदा हो रहे थे, परन्तु, पूजा को कोई सुध-बुध नहीं थी । वह पूर्णतया निश्चल-निष्क्रिय अपने बिस्तर पर लेटी रही । उस अवस्था में पूजा को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह अचेत पड़ी है । निश्चेष्ट अवस्था में पडे़-पडे़ पूजा को वह क्षण स्मरण हो आया, जब वह रणवीर के शव की पहचान करने के लिए गयी थी । वहाँ उसको शव ...और पढ़े

51

आघात - 51

आघात डॉ. कविता त्यागी 51 दरोगा ने पूजा को विश्वास दिलाया कि शीघ्र ही वास्तविक हत्यारा उनकी गिरफ्त में जाएगा, तब उसके बेटों को मुक्त कर दिया जाएगा ! पूजा ने दरोगा से निवेदन किया कि वह अपने बेटे के उस मित्र से भी पूछताछ करने के लिए उनके साथ चलना चाहती है, जिसको उसने अपनी घड़ी दी थी । दरोगा ने पूजा का निवेदन स्वीकार कर लिया और तुरन्त सुधांशु के मित्र से पूछताछ करने के लिए चल दिये । सुधांशु के मित्र ने दरोगा की पूछताछ में पहले तो यही कहा कि घड़ी उसके बैग से चोरी ...और पढ़े

52

आघात - 52 - अंतिम भाग

आघात डॉ. कविता त्यागी 52 पूजा अपने बच्चों को सीने से लगाकर हृदय के भावोद्गार व्यक्त कर रही थी, बाहर से दरवाजे पर दस्तक हुई । माँ के सीने से हटकर प्रियांश को वहीं पर छोड़कर सुधांशु दरवाजे की ओर बढ़ गया । दरवाजा खोलने के बाद बाहर का दृश्य देखकर सुधांशु को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । उसकी आँखों के सामने रणवीर खड़ा था । क्षण-भर के लिए सुधांशु आश्चर्य में डूबा हुआ किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रहा । एक क्षणोपरान्त प्रसन्नता से- उछलता खिलता सुधांशु प्रसन्नतापूर्वक चिल्लाया - ‘‘मम्मी जी ! पापा....पापा जी....आ गये है !’’ ‘‘पापा ...और पढ़े

अन्य रसप्रद विकल्प