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पहला प्यार - उपन्यास
Amit Sharma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
"पहला प्यार" ये वो एहसास होता है जिसे चाहे आप जिन्दगी के जिस मोड़ पर चले जाये, भुला नही सकते। और ये बात मैं अपने छः साल के अनुभव से कह रहा हूँ। आज से एक महीने बाद उस लड़की की शादी है। ये वही लड़की है जिससे मुझे मेरा पहला प्यार हुआ था। मुझे जाना है उसकी शादी में, पर दूल्हा बन कर नही, बल्कि शादी में काम करने और कमी-बेसी को देखने के लिये। अब आप सोच रहे होंगे की अभी कुछ देर पहले मैं कह रहा था कि पहले प्यार को भुलाया नहीं जा सकता। और अभी
"पहला प्यार" ये वो एहसास होता है जिसे चाहे आप जिन्दगी के जिस मोड़ पर चले जाये, भुला नही सकते। और ये बात मैं अपने छः साल के अनुभव से कह रहा हूँ। आज से एक महीने बाद उस ...और पढ़ेकी शादी है। ये वही लड़की है जिससे मुझे मेरा पहला प्यार हुआ था। मुझे जाना है उसकी शादी में, पर दूल्हा बन कर नही, बल्कि शादी में काम करने और कमी-बेसी को देखने के लिये। अब आप सोच रहे होंगे की अभी कुछ देर पहले मैं कह रहा था कि पहले प्यार को भुलाया नहीं जा सकता। और अभी
आज लगभग दस दिन बीत गये थे। पर जैसा मैंने सोचा था ऐसा कुछ नही हुआ। इतने करीब होने के बावजूद महसूस हो रहा था जैसे मिलो की दुरी हो हम दोनों के बीच। पर जिस प्रयास में मैं ...और पढ़ेहोता जा रहा था, उसमें मेरे पापा ने सफलता पाई। भले ही शीतल की और मेरी अभी एक बार भी बात नही हो पाई थी, पर जल्द ही मेरे पिता और शीतल के पिता अच्छे दोस्त बन गये। और ये उनका एहसान ही था कि अब मैंने धीरे धीरे शीतल के घर आना-जाना शुरु कर दिया। अब ऐसा कोई दिन
स्कूल से घर आने के बाद अनगिनत विचार मेरे मन में आने लगे। "शीतल से बिना पूछे ये तस्वीर उसके किताब से निकाल कर मैंने कुछ गलत तो नही कर दी???.. क्या वो इसे ढूंढ रही होगी??.. और ऐसे ...और पढ़ेसवाल मुझे परेसान करने लगे थे।बैचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं छत्त पर गया और शीतल की बालकनी की तरफ देखने लगा। अक्सर वो इस समय वहाँ किताब पढ़ती नजर आती थी। मगर आज मेरे घंटो इंतजार करने के बाद भी वो एक बार भी नजर नही आई।मुझसे अब रहा नही गया और मैं शीतल के घर चला गया।उसके पिता