आहट Ambalika Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आहट

आहट

“सोमू बेटा उठो| मेरा प्यार बेटा |”

माँ ने प्यार से सोमू के नन्हे से सिर पर हाथ फेरते हुए कहा |

“मेको सोना है माँ”

“आज सोमू स्कूल जाने वाला है ना | देरी हो गयी तो डाँट पड़ जाएगी |”

सोमू झट से उठ ख़ड़ा हुआ |

“माँ मैं स्कूल जाऊँगा औल बहुत अच्छे से पढ़ुंगा |”

मान खुश थी सोमू की रूचि देखकर| पहले दिन वो स्वयं उसे स्कूल छोड़ कर आई|

“बेटा रास्ता देख लो ठीक से,कल से तुम्हें अकेले स्कूल आना पड़ेगा”,माँ ने कहा|

“मैं अकेले कैसे आऊंगा? मुझे डल लगेगा”, सोमू ने मासूमियत से कहा|

माँ मुस्कुराइ और सोमू का चेहरा अपने हाथों मे लेते हुए कहने लगी, “बेटा जीवन मे आत्मनिर्भर रहना सीखो| मेरा बेटा तो बहादुर है ना|”

“हाँ माँ चलो देरी हो जाएगी”, सोमू ने माँ का हाथ पकड़ते हुए कहा|

माँ स्कूल के बाहर से हाथ हिलाते हुए सोमू को तब तक देखती रही जब तक वह कक्षा के भीतर नही चला गया|

लौट कर अपने कामों मे जुट गयी| शाम को सोमू की खिलखिलाहट ने उनकी निंद्रा तोड़ी|

“माँ माँ मैं आ गया| कहाँ हो आप?”

काम की थकान में आराम करते हुए नींद आ गयी थी, पर सोमू की मीठी आवाज़ ने उन्हे उठा दिया और वे कमरे से बाहर आई| सोमू आकर माँ से लिपट गया|

“देखो माँ मैं अकेले आया| मैं बहादुर हूँ ना?”

“हाँ बेटा”, माँ ने सोमू को गले लगा लिया|

अगले दिन से सोमू अकेले ही जाता | स्कूल के अध्यापक सोमू की तारीफ किया करते|

एक सुबह माँ की तबीयत खराब हो गयी तो पिताजी उन्हे अस्पताल ले गये| माँ को बीमार देख कर सोमू घबरा गया और रोने लगा| माँ ने पिता के पास खड़े सोमू को हाथ से इशारा कर अपने समीप बुलाया| उसने माँ का हाथ पकड़ लिया|

“माँ आपको का हुआ है?”, सिसकियाँ भरते हुए पूछने लगा|

“कुछ नही, ठीक हूँ बेटा| तुम घबराओ मत|” और उन्होने पति की ओर देखते हुए सोमू को संभालने का इशारा किया|

कुछ दिन बाद माँ वापिस घर आ गयी| तबीयत पूरी तरह ठीक तो नही थी पर पहले से बेहतर थी| सोमू को माँ ने स्कूल के लिए ताइयार किया पर उसका मन नही था|

“माँ नही जाना,आपका ध्यान कौन रखेगा?”, सोमू के शब्दों मे प्रेम ओर अपनेपन की लहरें हिलोरें मार रही थी|

“बेटा पिताजी है ना मेरे पास| अगर अच्छे से पढ़ोगे तो मुझे खुशी होगी|”

सोमू मान गया| छोटी छोटी गलियों से गुज़रता सोमू सिर झुकाए बढ रहा था| अचानक भागते हुए कदमों की आहत ने उसे ठिठका दिया| उसने पीछे देखा तो कोई नही था| जैसे ही चलने लगता फिर कदमों की आहत सुनाई देती| वह डर गया और भागने लगा| कदमों की आहट धीरे धीरे कम हुई| स्कूल जा कर ही रुका| हान्फते हान्फते कक्षा मे पहुँचा| ऐसा रोज़ होने लगा था| उसे डर के मारे स्कूल जाने का मन ही नही होता| वह माँ से कुछ कह भी नही सकता था,कहीं माँ ये ना सोच ले के सोमू बहादुर नही|

परंतु एक दिन मित्र से कह ही दिया|

“राजू मुझे बड़ा डर लगता है| अब क्या करूँ? कहीं कोई भूत तो नही?”

“मेरी माँ कहती हैं जब ऐसी आवाज़ें होती है तब भूत हो सकता है”, मित्र ने कहा|

यह सुन कर तो सोमू की हवाइयाँ उड़ गयी|

रात को सोमू माँ की गोद मे सिर रखर लेटा हुआ था| माँ उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर रही थी|

“माँ भूत होते है क्या?”,सोमू ने पूछा|

“नही बेटा और अगर होते भी होंगे तो मेरे सोमू जैसे प्यारे बेटे से वो भी प्यार करेंगे|”

माँ की थपथपाहट से सोमू को नींद आ गयी|

अगले दोपहर पिताजी स्कूल से वापिस ले जाने आए|

“पिताजी क्या हुआ”, सोमू ने पूछा|

परंतु पिताजी खामोश थे| सोमू ने भी फिर चुप रहना ही उचित समझा| बस कदमों की आहत ही शांति भंग कर रही थी|

घर पहुँचे तो भीड़ देख कर परेशान हो गया| भाग कर घर के भीतर पहुँचा| दरवाज़े पर जा कर मानो उसके कदम रुक गये|साँसें थम गयी उसकी| आँखें पानी से थर्रा गयी| माँ ज़मीन पर लेटी थी| मुख पर असीम शांति थी| उसे समझते देर ना लगी के माँ उसे बहुत दूर जा चुकी थी|

पिताजी ने वह शहर छोड़ने का फ़ैसला किया| सोमू का भी आब वहाँ मन नही लगता था| पिताजी ने सोमू को पढ़ने के लिए होस्टल भेज दिया| उसने सारी पढ़ाई घर से दूर रहकर ही की| उसने जीवन मे मां के आदर्शों को हमेश जीवित रखा और एक सफल डॉक्टर बना|

काफ़ी सालों तक बाहर रहने के बाद वो अपने पुराने घर लौटा| पिताजी ने माँ का सारा सामान एक अलग कमरे मे सॅंजो कर रखा था, बिल्कुल वैसे ही जैसे वो रखती थी| माँ के कमरे मे उनकी तस्वीर के पास खड़ा था सोमू| तस्वीर पर उसकी परच्छाई पढ़ रही थी| उसे लगा जैसे माँ उसे ढेरों आशीष दे रही है| उसने दराज़ खोला उसमे उसकी बचपन की तस्वीरें थी और एक डायरी जिस पर धूल ने घर कर लिया था| सोमू कुर्सी पर बैठ गया और खाँसते हुए डायरी की धूल साफ की|

डायरी खोली तो पन्ने पर लिखा था, “आज मन नही हो रहा था के सोमू से एक पल भी दूर रहूं| उसे अपनी बीमारी के बारे मे कैसे बताऊं| हर रोज़ उसके पीछे सुबह ये सोच कर भागती हूँ के कहीं वो पल आख़िरी ना हो|”

आँसुओं की बूंदे पन्ने पर पड़ने लगी| सोमू समझ गया था के वो भूत कौन था| वो आहट किसकी थी| उसने जाना के कुछ आहटें कभी हमारा साथ आयी छोड़ती| उसने डायरी को सीने से लगा लिया|