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मिलन

बाहर तेज बरसात हो रही थी| धुंध ने सड़क को अपनी पनाह मे ले लिया था| मुश्किल से घर की सीढ़ियाँ दिख रही थी| बादल अपनी गर्जन से संपूर्ण आकाश को भर रहे थे,मानो तूफान आने वाला हो कोई| तूफान तो राजीव के मन में भी उठ रहा था, जो खिड़की के काँच से प्रकृति के इन बदलावों को देख रहा था| खिड़की से एक टक बाहर देखता या बेचैनी से इधर-उधर चहलकदमी करता| उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करे| आज हर रिश्ता फीका लग रा था उसे| दिल पे प्यार के वो एहसास राधिका के लिए बाकी हर एहसास पर हावी हो रहे थे| शायद इतने वक़्त से जो जज़्बात अपने सीने मे समेटे था मानो सब्र का हर बाँध तोड़ कर उसकी आँखों से बह गये थे|

“कभी कभी हम कितने मजबूर हो जाते है, अपनी खुशी देखे या औरों की ये तय कर पाना क्यों इतना मुश्किल हो जाता है|” अपने जेहन मे ये बातें राजीव खुद से कर रहा था| मजबूरी का नाम दे देते है हम जब फ़ैसले लेने की हिम्मत नही होती| शायद वो राधिका को कभी जाने ही नही देता, तो आज उसका प्यार अधूरा ना होता| या शायद राधिका का साथ पाने के लिए अपने माता-पिता से रिश्ता ही क्यूँ ना तोड़ना पड़ता| इसी उधेड़बुन मे अपने माता-पिता को ही चुना था उस वक़्त| राधिका भी तो यही चाहती थी|

पर वक़्त अब और था| बारिश तेज हो गयी थी| हाथ मे सेलफोन था और वो मेसेज जो राधिका ने जाने से पहले किया था,

“मैं बहुत प्यार कल्ती हूँ जानू आपषे, बहुत ज़्यादा| किस हद तक ये शायद खुद भी नही जानती| शायद आज या फिर शायद कल, पता नही कब ये जिंदगी साथ छोड़ दे मेरा, तब तक बस चाहती थी आप ही प्याल कलो मेको| हर दिन, हर पल बस आपका ही चहला हो मेले सामने| आपको बहुत प्याल देना चाहती हूँ| ये कहना चाहती हूँ के जिंदगी ने आपको नही दिया मुझे बल्कि आपने मुझे जिंदगी दी है| और अगर आप ही इसका हिस्सा नही होगे तो किस काम की ये जिंदगी मेरी|

हर उस पल के लिए शुक्रिया कहना चाहती हूँ जब आपने मुझे अपने सीने से लगाया| मुझे ये एहसास दिलाया के मैं कितने खूबसूरत हूँ| आप मुझे बहुत प्याल कलते हो, ढेल सारा| जब भी आँसू आते थे मेली आँखो मे तो आपको कितना दर्द होता था ,सॉरी फॉर दैट| प्याल किया नही था मेको किसी ने ऐसा तो आपको खोना शायद मेरा खोना होगा| आप नही जानते आप कितने अच्छे हो| काश हमेशा के लिए आपको अपना बना पाती, हर एक पल आपके साथ बिता पाती|”

आँसुओं की बूँदो ने राजीव के चेहरे को धो डाला था|

“अब और नही” राजीव ने खुद से कहा| उसने अपना सामान उठाया और दराज़ मे से वो तोहफा निकाला जो उसने राधिका के लिए लिया था| हमेशा से देना चाहता था उसे पर शायद वो सही वक़्त कभी आया ही नही|

बारिश रुकने का नाम ही नही ले रही थी| पर अगर आज नही तो कभी नही| राजीव बैग लेकर कमरे से बाहर निकल आया| सामने माँ खड़ी थी| उन्हे कभी ये रिश्ता मंजूर नही था| जातिवाद ने उसके प्यार को छीन लिया था| पर आज कोई दीवार इतनी उँची नही थी| शायद माँ माना कर देंगी इसलिए वो बिना कुछ कहे ही दरवाज़े की ओर बड़ गया|

“राजीव” माँ ने पुकारा|

पर राजीव पलटा नही, कही वो कमजोर ना पड़ जाए| माँ ने आकर हाथ लिया| उसके माथे को चूम कर कहा ,“खाली हाथ मत लौटना बेटा|” बस माँ के गले लग कर इतना ही कह पाया, “हां माँ खाली हाथ नही लौटूँगा|”

इतना कहकर राजीव बस स्टॉप के लिए निकल गया| ये हिम्मत पहले क्यूँ नही आई उसमे| कही राधिका अब प्यार ना करती हो उसे, कही उसने शादी कर ली हो, या वो अब उसे इतनी नफ़रत करने लग गयी हो के उसे देखना भी पसंद ना करे| ऐसे काई सवाल रह रह कर राजीव के मन मे उठ रहे थे| पर अब जो कदम बड़ा लिया था उसे पीछे हटाना नही चाहता था वो|

कोशिश की थी काई बार कॉल करने की पर नंबर स्विच्ड ऑफ आता था| नंबर तो खुद उसने भी बदल दिया था अपना| पर कुछ संख्याएं जिंदगी से जुड़ जाती है| उसने मुश्किल से राधिका की सहेली का नंबर ढूँढा| उसे भी खास पता नही था कुछ| राधिका ज़्यादा बात नही करती थी अब किसी से| उसने ये भी बताया के राधिका ने शादी नही की अभी तक| सहेली के पास भी कोई नंबर उबलबध नही था| हां पर उसने अड्रेस बता दिया|

राजीव ने टिकेट ली और अपनी सीट पर बैठ गया| बारिश अब भी हो रही थी लगातार| शायद ये आसमान उसका रोना रो रा था| आँखें मूंद ली उसने और खो गया उन यादों मे|

एक ही क्लास मे पड़ते थे दोनो| राधिका आम सी दिखने वाली लड़की थी पर उसकी वो प्यारी सी मुस्कान, वो खिलखिलता चेहरा ही मन जीत लेता था| दोस्ती से ही तो शुरूवात हुई थी| अपने दिल की हर बात कहा करता था उसे| अच्छी बुरी, छोटी से छोटी बात, उसे एहसास ही नही हुआ कब वो प्यार करने लगा राधिका से|राधिका को हमेशा से ही लिख कर कहना अच्छा लगता था और राजीव को उन्हे पढ़ना इसलिए जायदातर मेसेज के द्वारा ही बात होती थी| जाने क्या जादू था उसके अल्फाज़ो मे जिनमे राजीव बांधता चला गया| उसे आज भी याद था वो वक़्त जब उसने पहली बार राधिका को सीने से लगाया था| वैसा कभी महसूस नही किया था उसने|

कितना खुश था वो जब राधिका का हाथ थमा था पहली बार उसने| राधिका ने उसे हर कमी के साथ अपनाया था| दोस्तों के साथ रहकर बिगड़ गया था वो, पर राधिका के प्यार ने सब बदल दया था ,बिना किसी बंदिश के, बिना किसी शिकायत के|

उसने कभी माना नही किया किसी बात के लिए राजीव को| उसके पास आने के लिए,प्यार करने के लिए| शायद इसलिए ही उन्होने कुछ हदें पार कर ली थी कुछ हद तक| उसे याद था वो दिन भी जब उसने राधिका को करीब से महसूस किया था और आज भी उसकी साँसों की महक राजीव महसूस कर सकता था|

कुछ देर के लिए बस रुकी| बारिश भी कम हो गयी थी| राजीव ने चाए पीने का फ़ैसला किया| चाए की चुस्की भर ही रहा था की एक भीनी सी खुश्बू ने उसे बाँध लिया| कही तो मीठा बन रहा था| राजीव को भी मीठा बेहद पसंद था और राधिका अक्सर उसके लिए हलवा बनाया करती थी| उसकी मिठास अभी तक जेहन मे थी उसके|

सफ़र फिर शुरू हो गया| उसे याद आया जब भी मिलता था राधिका से कितना रोती थी वह| समझ सकता था उसके भाव पर मजबूर था| उसे याद है राधिका ने एक रिश्ता ठुकरा दिया था उसकी खातिर| वो आख़िरी सेमेस्टर कितना तकलीफ़ देने वाला था कोई समझ नही सकता था|

उसने राधिका से बात करनी कम कर दी थी ये सोच कर के शायद ऐसा करने से दूरियाँ पैदा हो जाएँगी|राधिका ने कितनी ही बार शिकायतें की| उसका गुस्सा, उसकी चिड़चिड़ाहट याद है उसे| राजीव किसी रिश्ते मे नही बांधना चाहता था उस वक़्त| यही बात एक बार राधिका से कह दी थी उसने| उसे कितनी तकलीफ़ हुई होगी वो आज समझ पाया था| राधिका ने धीरे धीरे चीज़ों के साथ समझौता कर लिया| पर कभी शिकायत नही की|

उसे आज भी याद था वो आख़िरी दिन जब राधिका जा रही थी| सारा सामान गाड़ी मे रख दिया था| उनके पास कहने को कुछ नही था| राधिका ने उसकी ओर देखा, वो रोई नही, एक आँसू भी नही| बस हल्की सी मुस्कान देकर गाड़ी मे बैठ गयी| दर्द हुआ था बहुत| पर शायद वही सही था दोनो के लिए| वो आँखें आज भी उसे वैसी ही दिख रही थी, वही सवाल था उनमे| जवाब देने मे देरी तो हो गयी थी उससे|

दो दिन बाद राजीव उसके के घर पहुँचा| दिल जोरों से धड़क रा था| क्या कहेगा वो, कैसे समझाएगा? डोरबेल बजा दी.

टिंग टॉंग!

दरवाज़ा खुला| एक लड़की थी| उसने हिम्मत जुटा कर सामने देखा पर वो राधिका नही थी| याद आया वो छोटी बेहन है उसकी,निशा| थोड़ी देर गौर से देखने के बाद निशा ने आश्चर्यचकित हो कर कहा, “आप और यहाँ?”

“हां निशा” राजीव ने धीमी सी आवाज़ मे उत्तर दिया| सोफे पर बैठ गया| निशा चाए बना कर लाई| थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया| निशा जानती थी सब उनके बारे मे|

“राधिका यहा नही है,” निशा ने धीरे से कहा| शायद उसने राजीव के सवालों को पढ़ लिया था| उसने बताया राधिका ने शादी नही की क्यूंकी वो आज भी उससे ही प्यार करती है| किसी कंपनी मे जॉब कर रही है| ज़्यादा घर भी नही आती| ना ही किसी से ज़्यादा बात करती है|

“उसकी इस हालत का ज़िम्मेदार सिर्फ़ मैं हूँ,” राजीव कहते हुए रो पड़ा|

निशा ने कंधे पे हाथ रखते हुए संतवाना बंधाने की कोशिश की| राजीव ने राधिका के कमरे मे जाने का आग्रह किया| निशा ने रास्ता दिखाया और किचन मे चली गयी|

कमरे मे प्रवेश करते ही लगा मानो राधिका की महक हो| टेबल पर उसकी तस्वीर थी| भारी मन के साथ धीरे धीरे तस्वीर की ओर बड़ा| उसपे अपनी उंगलियाँ फिराते हुए रो पड़ा, “मुझे माफ़ कर दो”

दराज़ मे डायरी पड़ी थी| कुछ पन्ने जिनपे उसने दर्द भारी कविता लिखी थी| उसकी इन्ही कविताओं ने ही तो राजीव को अपना बना लिया था| वो तोहफे जो राजीव ने दिए थे सब कुछ सॅंजो कर रखा था राधिका ने| डायरी के हर पन्ने पर राजीव का ही ज़िक्र था| हर वो पल जो साथ बिताए थे ,सब| आख़िरी पन्ने ने दिल का दर्द बड़ा दिया जिसमे राधिका ने सब कुछ हारने की बात लिखी थी,के उसकी कहानी पूरी नही हुई| राधिका अक्सर कहा करती थी, “देखना राजीव मेरी प्रेम कहानी सबसे अलग होगी|”

राजीव कोस रहा था खुद को की उसकी वजह से राधिका का जीवन उदासीन हो गया| उसकी कहानी अधूरी रह गयी|

अचानक कदमों की आहट सुनाई दी| निशा थी और उसके पिताजी| हमारा रिश्ता उन्हे भी मंजूर नही था| वो पास आए और राजीव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “जिंदगी एक बार मिलती है बेटा| तुम दोनो ने हमारी खुशी के लिए सब त्याग दिया| समाज मे हमारी नाक उँची रहे इसलिए शायद हमने तुम्हारी खुशियों को ऐहमियत नही दी| समझ गया हूँ मैं और तुम भी|राधिका को ले जाओ बेटा|” इतना कहकर वे रो पड़े| उन से इजाज़त लेकर राधिका के पास चला गया|

दो साल बीट गये थे| जनता नही था क्या कहेगा, कैसे माफी माँगेगा? दरवाज़ा खटखटाया| साँसे थम गयी थी| कुछ देर बाद दरवाज़ा खुला| राधिका स्तब्ध थी, अवाक| शायद अपनी आँखो पर भरोसा करने की कोशिश कर रही थी के जो देख रही है वो सच है|

कदम लड़खड़ा गये उसके| गिरने ही वाली थी के राजीव ने थाम लिया| गले लगा लिया उसे| जो बाँध था वो टूट गया| कुछ कहने की हिम्मत थी| राधिका ने बस इतना ही कहा, “मैं जानती थी तुम आओगे जानू|” राजीव ने उसका चेहरा अपने हाथों मे ले लिया ओर राधिका के नर्म होंठो पर अपने होंठ टिका दिए|

राधिका की कहानी पूरी हो गयी थी| आज मिलन हो गया था दो प्यार करने वालो का|

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