†
“श्रीराम-श्रीराम”!
सेलगाम की एक और सुबह.
धूप खिली हुई थी और वातावरण खुशगवार हो रहा था.
लोगों में सुबह से ही उत्साह उमड़ रहा था. सभी बेसब्री से उस पल का इंतज़ार कर रहे थे जब श्रीराम उन्हें एक बार फिर संबोधित करेगा.
सारी तैयारियां हो गई थीं. लाखों की भीड़ मैदान में थी. जगह-जगह लाउड स्पीकर लगे हुए थे. मंच तैयार था. कुछ ही देर में समाजशक्ति पार्टी के नेता भारी सेक्योरिटी के बीच वहां पहुंच गए और फिर वो भाषण शुरू हुआ जिसके लिए जनता अपने सारे काम छोड़कर वहां एकत्रित हुई थी. श्रीराम माइक के पास पहुंचा. चारों तरफ ‘श्रीराम-श्रीराम’ के नारे गूंजने लगे. श्रीराम ने चारों तरफ देखते हुए हाथ जोड़े और कहा-
“सेलगाम और कर्णाटक की जनता को मेरा प्रणाम!”
लोगों ने कुछ और शोर मचाया. उनके शांत होते ही-
“क्या आप लोगों ने मुझे मिस किया?” श्रीराम ने मुस्कराते हुए पूछा.
जवाब में लोगों ने कहा-‘हां, किया’, ‘बहुत मिस किया’, आदि-आदि.
“मैंने भी आपको बहुत ज्यादा मिस किया. क्योंकि मैं वहां किसी की कैद में था और इधर मेरी जनता को न जाने कौन-कौन लोग गुमराह करने में लग गए. मुझे अपने से ज्यादा आप लोगों की चिंता थी. मुझे पता नहीं था- वो लोग मेरे से क्या चाहते थे, या क्या करने वाले थे, पर आज मैं ठीक समय पर आप लोगों के पास वापस पहुंच गया हूँ और इससे ज्यादा महत्वपूर्ण कोई बात नहीं है.”
सलमा और शोभा भी भीड़ में शामिल होकर उसका भाषण सुन रही थी.
“बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा है.” सलमा फुसफुसाई.
“आखिर नेता है. काम बड़े हो न हो, बातें बड़ी ज़रूर करनी पड़ेंगी. उसे छोड़ो, उसके आस-पास देखो. कोई संदिग्ध लोग तो नहीं दिख रहे?”
“यहां हजारो-लाखों लोगों में किस-किस को देखूं?”
“मुझे जगत तो दिख गया. मंच के नीचे खड़ा है.”
“हां! देखो शायद तुम्हारा राजी भी कही आस-पास हो.”
इधर श्रीराम भाषण दे रहा था और दूसरी तरफ उसके बंगले पर-
इस वक्त घर पर सिर्फ मूर्ति की माँ जया थी जो कि किचन में एक नौकरानी के साथ मौजूद थी.
एक नौकर चारों तरफ देखते हुए अंदर हॉल में प्रविष्ट हो गया. उसके हाथ में एक कपड़ा था जिससे वह साफ़-सफाई करने लगा, पर उसका ध्यान किचन की तरफ था जो कि हॉल के पास था. फिर- बेहद सतर्कता के साथ नौकर ने अपनी जेब से एक बटन के साइज़ का माइक्रोफोन निकाल लिया और उसे किताबों की अलमारी में छिपा दिया.
फिर वह चुपके-चुपके अंदर आ गया. किचन पर नज़र रखते हुए वह दबे पाँव सीढियां चढकर ऊपर पहुंच गया. ऊपर पांच कमरे थे. उसने एक-एक करके पाँचों कमरों में ठीक उसी तरह के माइक्रोफोन छिपा दिए.
उसके बाद वह इत्मीनान से नीचे उतरने लगा, साथ में कपड़े से रेलिंग को साफ़ भी करता चला गया. अभी वह हॉल तक पहुंचा ही था कि-
बाहर से एक बॉडीगार्ड अंदर आता दिखाई दिया. उसे देखकर नौकर सकपका गया, वह जानता था कि वो श्रीराम के बॉडीगार्डस् में से एक है. नौकर ने खुद को संभाला और हॉल में साफ़-सफाई का नाटक करने लगा.
बॉडीगार्ड हॉल से निकलकर सीढियों की तरफ बढ़ा ही था कि वह अचानक रुक गया और उस नौकर की तरफ पलटा.
नौकर उसे अनदेखा करते हुए टीवी स्टैंड साफ़ करने लगा.
“कौन हो तुम?” बॉडीगार्ड ने पूछा.
“अजी हमें नहीं पहचाना? हम सोमनाथ हैं, बाबू!”
“यहाँ क्या कर रहे हो?”
“क...कमाल करते हो, बाबू! साफ़-सफाई कर रहे हैं, और क्या!”
“मैंने तुम्हें यहाँ पहले कभी नहीं देखा.” कहते हुए बॉडीगार्ड उसके सामने आ खड़ा हुआ.
“कौन है- अशोक?” अचानक पीछे से श्रीराम की माँ जया ने पुकारा.
अशोक नामक बॉडीगार्ड ने पीछे मुडकर देखा ही था कि सोमनाथ बंदर की तरह उछला और उसके सीने पर जोरदार किक जड़ दी.
अचानक हुए इस हमले से अशोक कई फिट दूर जा गिरा. जया के मुख से चीख निकाल गई. किक मारते ही सोमनाथ ने बाहर की तरफ दौड़ लगा. जितनी देर में अशोक संभलता, वह गार्डन पार कर चुका था.
अशोक ने बाहर पहुंचकर गार्ड को सावधान किया- “गार्ड! रोको इस चोर को.”
अशोक की बुलंद आवाज़ ने दूर खड़े गार्ड को सतर्क कर दिया. वह चोर को पकड़ने के लिए तैयार था.
सोमनाथ तेजी से दौड़ता हुआ उसके सामने आया. गार्ड ने उसे दबोच लिया, उसके हाथ जकड़ लिए. सोमनाथ ने इसका फायदा उठाया और हाथों के बल जोर लगाकर एक भरकस ठोकर अपने माथे से गार्ड के चेहरे पर दे मारी. गार्ड के होंठ फट गए और वह एक तरफ जा गिरा. अशोक तेजी से भागते हुए उस तरफ आ रहा था. सोमनाथ गेट से बाहर निकलकर रोड पर एक तरफ भाग निकला, कुछ ही दूरी पर एक पब्लिक बस जा रही थी, वह उसमे भागकर चढ गया.
जबतक अशोक बाहर निकला बस रोड के अंत तक पहुंचकर एक तरफ मुड रही थी. वह उसका नंबर भी नहीं देख सका.
वह हाँफते हुए कुछ पल उस दिशा में देखता रहा, फिर उसने जेब से मोबाइल फोन निकाल लिया.
†
राजन और सीबीआई
कमरे में मद्धम प्रकाश था. जमीन पर दरी बिछी थी और उस पर चार लोग बैठे थे.
उनमें से एक राजन भी था. वह दीवार से टेक लगाकर बैठा कुछ सोच रहा था. उसके पास एक बुजुर्ग बैठा था. सामने दो अन्य लोग थे.
“कुछ भी नहीं पता चला?” राजन ने पूछा.
“नहीं!” बुजुर्ग बोला- “अभी तक रामास्वामी या पार्टी के अन्य सदस्यों के बीच बातचीत से ये बिलकुल भी नहीं पता चलता कि उन्होंने कभी श्रीराम के खिलाफ कोई साजिश की थी, न ही आगे कोई करने का प्लान दिख रहा है.”
“ऐसा कैसे हो सकता है?” राजन निराश स्वर में बोला- “श्रीराम को मारने और उसका डुप्लिकेट बैठाने से और किसे फायदा होगा?”
“कुछ कह नहीं सकते. राजनीति में लोगों के कितने दुश्मन निकल आते हैं, इंसान को खुद पता नहीं चलता.” उसने सूखी मुस्कान के साथ कहा.
सामने बैठा एक इंसान, जो कि एक युवा जासूस प्रतीत हो रहा था बोल उठा- “आप लोग रूलिंग पार्टी पर शक क्यों नहीं करते?”
“सत्यपाल!” बुजुर्ग बोला- “रूलिंग सरकार एक मिली-जुली यानि कोलिशन सरकार है. उसके अकेले की बिसात नहीं है सरकार बनाना. वो लोग पहले से ही इलेक्शन में कोई दम नहीं रखते. उन्हें श्रीराम को मारकर भी इलेक्शन में कोई फायदा नहीं होने वाला.”
“और फायदा सिर्फ रामास्वामी की पार्टी को होता.” दूसरा जासूस बोला- “पर फ़िलहाल किसे फायदा हो रहा है?”
“श्रीराम को...” राजन ने उसकी तरफ देखा. “तुम कहना क्या चाहते हो, जगत?”
“यहीं कि श्रीराम भी इस साजिश के पीछे हो सकता है. सब ड्रामा था, इलेक्शन में आखिरी मौके पर वापस आकर लोगों के वोट खीचने का.” जगत ने जोश में कहा.
“इस शक को हमने कभी नकारा नहीं...” राजन ने बोलना चाहा पर जगत ने उसकी बात काट दी-
“सीबीआई का यही मानना है. पर आप लोगों को रामास्वामी पर शक करके टाइम वेस्ट करना है, तो मुझे कोई हर्ज नहीं.”
“जगत! हम बिना ठोस सबूत के किसी एक के पीछे ही नहीं पड़ सकते.” राजन बोला.
“पता नहीं हमें सीक्रेट सर्विस के साथ क्यों काम करना पड़ रहा है?” जगत सत्यपाल को घूरते हुए बोला.
“शायद इसीलिए क्योंकि ये मामला बहुत पेचीदा है और राजनीति से जुड़ा है.” अल्ताफ बोला- “इसलिए होम मिनिस्ट्री किसी एक संस्था पर विश्वास नहीं कर सकती.”
“हमें मिलकर काम करना है.” सत्यपाल बोला- “जगत! राजन की बात गलत नहीं है. जबतक हमें किसी एक के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मिल जाता हम दूसरे को नहीं छोड़ सकते.”
जगत चुप रहा. तभी राजन का फोन बजा, मैसेज आया था. पढकर राजन कुछ परेशान हो गया.
“क्या हुआ?” सत्यपाल ने पूछा.
“कर्नल विनोद यानि मेरे पिता के गायब होने की खबर आ गई है.”
“व्हाट?” जगत के मुंह से निकला- “कब? कैसे?”
“पता नहीं!” राजन ने कहा, वह गहरी सोच में पड़ गया.
†
लफंगा
सलमा और शोभा रैली से लौट रही थीं. वहां उन्हें कोई खास बात पता नहीं चली.
भीड़ इतनी थी कि उन्हें मेन रोड तक आते-आते दो घंटे लग गए. सड़क पर भी ट्रैफिक था इसलिए ऑटो की जगह वे पैदल ही गेस्ट हॉउस की तरफ बढ़ गईं.
कुछ देर में वे भीड़-भाड़ वाले इलाके से बाहर थीं.
तभी पीछे से आवाज आई- “अरे गुलाबो!”
सलमा ने मुडकर देखा क्योंकि उसे ये अहसास था कि उसने इस वक्त गुलाबी सलवार सूट पहना हुआ था.
पीछे एक लफंगा-सा दिखने वाला आदमी खड़ा था, पर सलमा के मुड़ते ही वह इधर-उधर देखने लगा.
“चलो-” शोभा सलमा का हाथ पकडकर आगे बढ़ गई.
इस बार पीछे से सीटी बजाई गई.
सलमा का चेहरा क्रोध से लाल हो गया. वह पलटी और फिर उसने अपनी सैंडिल हाथ में ले ली.
“आये-हाय हाथ में सैंडिल होठों पर गुस्सा... मा-कसम क्या लग रही हो.” लफंगा हाथ नाचकर बोला.
इससे पहले कि सलमा उस पर सैंडिल खींचकर मारती, वह लफंगा सकपकाकर असली आवाज में बोल पड़ा- “अरे, सल्लोजी! ये मैं हूँ.”
“इक्को?” इक़बाल की आवाज़ सुनकर वह चौंकी. उसने दांत पीसे फिर आगे बढकर इक़बाल के कान पकड़ लिए.
“क्या कर रही हो?” इक़बाल चारों तरफ देखते हुए बोला- “कम से कम बीच सड़क पर तो कान मत पकड़ो.”
तभी एक आदमी वहां पहुंच गया. “क्या हुआ बहनजी? ये गुंडा आपको छेड़ रहा है?”
“क्या ख्याल है?” सलमा मुस्कराकर इक़बाल से बोली.
“अरे नहीं! भाईसाब आप आगे बढ़ो. ये देवीजी तो मेरी स्कूल टीचर हैं. मुझे सजा दे रही हैं.”
“क्या?” वह चौंका- “तू स्कूल जाता है?”
“और क्या? बचपन में बाप ने स्कूल भेजा नहीं, अब मैं खुद पैसे कमाकर पढ़ाई कर रहा हूँ. तेरे को क्या तकलीफ है?”
“मैडम!” वह सलमा से मुखातिब हुआ- “ये सही कह रहा है?”
“हां!” कहकर सलमा ने इक़बाल का कान कुछ और मरोड़ दिया. “ये मेरी क्लास का सबसे बड़ा और सबसे बिगड़ा लड़का है.”
इक़बाल कराहने लगा.
“हा-हा!” वह व्यक्ति हंसा- “आप लोगों को देखकर तो मुझे राजा बाबू फिल्म याद आ गई.” फिर वह ‘आ-आ ई, उ-ऊ, ओ’ गाना गुनगुनाता हुआ एक तरफ चला गया.
“देवर जी!” शोभा हंसते हुए बोली- “ये क्या हुलिया बना रखा है? मुझे तो लगा वाकई कोई लफंगा हमारे पीछे पड़ गया है.”
“भाभी, मैं तो सिर्फ चैक कर रहा था कि आप लोग ऐसे लोगों से कैसे मुकाबला करोगी.”
“हो गया चैक?” सलमा गुर्राई.
“हां मैडम जी! मेरा कान छोड़ो... उफ़! लाल कर दिया.”
फिर वह लोग साथ में चल दिए.
“कुछ पता चला?” शोभा ने पूछा.
इक़बाल ने मेध की सारी घटनाएँ संक्षिप्त में बता दी. शोभा और सलमा ने उसकी तारीफ करी.
“इक्को! आजकल तुम्हारा दिमाग बहुत तेज हो गया है.”
“ये तो बस तुम्हारे प्यार और भाभी के आशीर्वाद का नतीजा है.” इक़बाल ने शर्म से बल खाते हुए कहा तो शोभा हंस दी.
“लेकिन ये कर्नल अंकल कहाँ गए?” अचानक इक़बाल ने पूछा.
“ओह!” शोभा बडबडाई- “मैं तो भूल ही गई थी. अभी पवन से अपडेट लेती हूँ.”
फिर उसने चलते-चलते पवन से बात करी.
“क्या हुआ?” बात पूरी होने के बाद सलमा ने पूछा.
“अंकल दो हफ्ते पहले दिल्ली के लिए निकले थे. वे किसी दोस्त से मिलने वाले थे. रेलवे से जानकारी मिली है. उन्होंने ट्रेन से सफर किया था. पर अब उसके बाद क्या हुआ पता नहीं.”
“दिल्ली में जांच करानी पड़ेगी.” इक़बाल बोला.
“पवन अभी दिल्ली में ही है. वो पता लगाने की कोशिश कर रहा है.”
“हम्म! मिस्टर हवा आजकल तेज उड़ रहे हैं. वैसे अंकल और राजन दोनों की ये पुरानी आदत है.”
“हम भी यही बात कर रहे थे.” शोभा बोली- “पर सरोज आंटी का बुरा हाल है.”
“तो उनको यहाँ बुला लो.” इक़बाल झट से बोला.
“यहाँ?”
“अरे! आपकी होने वाली सास हैं. आप ख्याल नहीं रखोगी तो और कौन रखेगा?”
शोभा शरमा गई.
“इक्को ठीक कह रहा है. वो अकेले रहेंगी तो दिल बेचैन होता रहेगा. यहाँ हम लोगों के साथ उन्हें फिर भी कुछ ठीक लगेगा.”
फिर उसके बाद शोभा ने सरोज से बात करी और उन्हें सेलगाम आने के लिए राजी किया.
†
रामास्वामी की साजिश
रामास्वामी इस वक्त अपने बंगले पर था. उसके सामने मेज पर व्हिस्की की बोतल और सोडा के साथ नमकीन वगैरह रखी हुई थी. व्हिस्की के घूँट लेते हुए बार-बार उसकी नज़र दीवार पर टंगी घड़ी पर चली जाती थी.
रात के ठीक ग्यारह बजे उसे गेट पर कार की आवाज सुनाई दी. उसके कुत्ते भौंकने लगे थे.
फिर कुछ ही पलों बाद अल्ताफ शेख उसके कमरे में प्रविष्ट हुआ.
“आओ शेख साब! बैठो!” रामास्वामी ने खड़े होकर उसका स्वागत किया.
“क्या सर! आज अकेले-अकेले?” व्हिस्की के ग्लास को देखकर अल्ताफ मुस्कराया.
“अकेले क्यों? आप ज्वाइन करिये हमें.”
“आप तो जानते ही हैं, मै ड्रिंक नहीं करता. पर मै सिगार के साथ आपको ज्वाइन करूँगा.” कहकर उसने अपनी जेब से कीमती सिगार का बॉक्स निकाला. एक रामास्वामी को दिया और एक खुद लेकर सुलगा लिया. फिर ढेर सारा धुंआ उगलते हुए बोला-
“कहिये- अचानक कैसे याद किया?”
रामास्वामी ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उसने सिगार से कुछ कश लगाये, फिर एक और पैग बनाया. पैग पीते हुए उसके चेहरे पर गभीर भाव उत्पन्न हो गए. उसने पूछा-
“टीवी देखा?”
“टाइम ही नहीं मिला. कोई खास खबर, सर?”
“सिर्फ एक ही खबर है- हर चैनल पर...” कहते हुए उसके चेहरे पर भयानकता छा गई- “उस कल के छोकरे के वापस आने की. जिसे देखो उसके गुणगान गा रहा है. और...और मीडिया ने तो अभी से उसे अगला मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है.”
“ह...हम अपनी रैलियों से उसे करारा जवाब देंगे...”
रामास्वामी ने हाथ उठाया. “कोई फायदा नहीं होगा. इस वक्त हमें कोई पूछ भी नहीं रहा. आखिर....आखिर क्या है उस लौंडे में? पांच साल पुराना है वो राजनीति में और हम...”
“सर! जितनी उसकी उम्र है उससे ज्यादा तो आपका एक्सपीरियंस है.”
अल्ताफ की सांत्वना से भी रामास्वामी के अंदर उठते जलजले पर फर्क नहीं पड़ रहा था.
“...पर सब बेकार है. हमने जो कुछ भी इस प्रदेश और इसकी जनता के लिए किया, सब बेकार है.”
“ऐसा मत कहिये...”
रामास्वामी चुप हो गया. फिर उसने एक सांस में बाकी का पैग समाप्त किया और फिर आगे झुककर धीरे से कहा-
“उसका फिर से एक्सीडेंट हो सकता है, क्या?”
“होने को क्या नहीं हो सकता.” अल्ताफ कुटिल स्वर में बोला.
“सुना है- परसों शाम को वो गुप्त रूप से अपनी बीमार दादी से मिलने पास के शहर में जाने वाला है.”
“इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता.” अल्ताफ की आँखों में चमक आ गई.
“हूँ! और याद रहे ये सिर्फ एक्सीडेंट ही होना चाहिए.”
“आप फ़िक्र न करें.”
“मुझे हमेशा से पार्टी में सबसे ज्यादा भरोसा तुम पर रहा है.”
“ये मेरी खुशकिस्मती है सर!”
“तो इसी बात पर एक और पैग हो जाए.” रामास्वामी ने हंसते हुए कहा और बोतल की शराब ग्लास में उडेलने लगा.
†
राजन की वापसी
सरोज सेलगाम पहुंच गई थी और वह इस वक्त शोभा-सलमा और इक़बाल के साथ गेस्ट हाउस में थी.
“मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा.” सरोज विचलित थी. “एक तो पता नहीं ये कहाँ गायब हैं और यहाँ तुम लोग भी सही से नहीं बता रहे कि राजन कहाँ है.”
“आंटी आप परेशान न हो.” इक़बाल बोला- “राजन दुश्मनों की बैंड बजाने ही निकला हुआ है. जल्द ही वापस आ जायेगा.”
“पर वो अकेला ही क्यों गया? तुम लोगों में से किसी को क्यों नहीं ले गया? कही तुम लोग मुझसे कुछ छिपा तो नहीं...”
“नहीं मम्मी!” अचानक दरवाजे से आवाज आई- “ये लोग सच कह रहे हैं.”
दरवाजे पर राजन को देखकर सभी हैरान रह गए.
वह वाकई राजन ही था. उसने काली जैकेट और जींस पहन रखी थी. चेहरे पर चिर-परिचित मुस्कान थी.
“राजन!” माँ के जैसे ह्रदय से चीख निकल पड़ी. सरोज दौडकर राजन के पास पहुंची. “मेरे बच्चे कहाँ था तू?”
बाकी लोग भी उसके पास पहुंचे. शोभा अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे देख रही थी. उसका मन कर रहा था कि उससे लिपट जाए. पर अपनी भावनाओं को समेटकर वह दूर खड़ी रही. उसके खूबसूरत नेत्रो में आँसू उमड़ आये थे. राजन ने सरोज को सँभालते हुए शोभा पर निगाह डाली तो शोभा ने चेहरा पलट लिया और फिर दूसरे कमरे में चली गई.
इतने दिनों से उठते-बैठते जागते-सोते उसे सिर्फ राजन की फ़िक्र रहती थी. आज उसे सामने देखकर जैसे उसके सब्र का बाँध टूट पड़ा. कमरे में पहुंचकर वह बैड के एक कोने में बैठ गई और फिर फफक-फफककर रोने लगी.
कुछ मिनटों बाद राजन कमरे में पहुंचा. उसने शोभा को इस अवस्था में देखा और उसके बगल में आकर बैठ गया. शोभा ने उसकी तरफ देखा. उसका चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था.
राजन ने उसके गाल से आँसू पोंछने की कोशिश की तो शोभा ने उसका हाथ हटा दिया.
“क्या हुआ? तुम मुझे देखकर अंदर क्यों आ गईं?”
शोभा ने जवाब नहीं दिया. उसी तरह बैठी रही.
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद राजन बोला- “सॉरी! मुझे पता है तुम नाराज़ हो, बल्कि सभी नाराज़ हैं मुझसे. पर मैं जब पूरी बात बताऊंगा तब तुम्हारा गुस्सा खत्म हो जायेगा.”
“नहीं! क्या ज़रूरत है कुछ बताने की? मैं आखिर क्या लगती हूँ तुम्हारी? सिर्फ एक दोस्त या कलीग!”
“ऐसा क्यों बोल रही हो?”
शोभा ने जवाब नहीं दिया.
“केस में ऐसा मोड़ आ गया था कि न चाहते हुए भी मुझे अंडर ग्राउंड होना पड़ा. और...”
“नहीं राजी! मुझे नहीं सुनना. जिस दिन तुम मुझे इस लायक समझोगे कि अपनी हर बात मेरे साथ शेयर कर सको तभी मैं मानूंगी कि मैं तुम्हारी कुछ लगती हूँ.”
राजन उसे देखता रहा. फिर रुष्ट होकर बाहर चला गया.