कब्र का रहस्य Shubhanand द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कब्र का रहस्य

एच पी रामास्वामी

सुबह वे लोग तैयार होकर इंस्पेक्टर प्रकाश के साथ भास्कर राव के मर्डर स्पॉट पर पहुँच गए. वह रेलवे ट्रैक था जिसके दोनों तरफ सुनसान इलाका था.

“यहीं ट्रैक्स पर लाश मिली थी.” प्रकाश रेल की पटरियों को घूरते हुए बोला, “उसकी हत्या गोली मारने से कहीं और हुई थी और फिर उसकी लाश यहाँ फेंक दी गई थी. रात को गुजर रही मालगाड़ी के ड्राइवर को एन मौके पर लाश दिखी थी. उसने ब्रेक तो लगा दी पर लाश के टुकड़े-टुकड़े होने से नहीं बचा सका. फिर उसी ने पुलिस को सूचना भिजवाई.”

“उफ़!” उस वीभत्स घटना की कल्पना करते हुए सलमा के मुख से निकला.

“उसके आलावा कोई चश्मदीद गवाह?” राजन ने पूछा.

उसने इंकार में सिर हिलाया. “होता तो शायद हम अब तक अँधेरे में न होते.”

उसके बाद कुछ देर तक वो उस जगह का निरीक्षण करते रहे, परन्तु वहां किसी किस्म का सबूत न मिल सका.

“भास्कर के परिवार में कौन-कौन है?” इक़बाल ने प्रकाश से पूछा.

“उसके माता-पिता और एक बहन.”

“हालाँकि आप उनका बयान ले चुके होंगे, फिर भी हमें उनसे मिलना चाहिए.” कहकर उसने राजन की तरफ देखा.

राजन ने सहमति में सिर हिलाया.

फिर वे लोग प्रकाश की जीप में बैठकर अपने अगले गंतव्य की तरफ बढ़ गए.

शहर में अब काफी चहल-पहल दिखाई दे रही थी. चारों तरफ चुनाव का माहौल दिखाई दे रहा था. जगह-जगह विभिन्न पार्टियों के पोस्टर पर उनके उम्मीदवारों के चेहरे दिखाई दे रहे थे.

कुछ आगे जाने पर वे एक बड़े से पार्क के पास से निकले. वहां बहुत बड़ी राजनीतिक सभा हो रही थी. राजन ने प्रकाश को जीप रोकने के लिए कहा.

“क्या हुआ सर?” प्रकाश ने पूछा- “यहां तो चुनाव प्रचार चल रहा है.”

“कौन-सी पार्टी का है?” राजन ने तत्परता से बाहर झांकते हुए पूछा.

“जनहित पार्टी. एच पी रामास्वामी का नाम तो आपने सुना ही होगा?”

“हां! वो तो काफी पुराने नेता है.”

“जी! इस बार लगता है यहीं सीएम बनेंगे.”

“अच्छा!” राजन गहरी सोच के साथ बोला- “चलो शोभा, देखते हैं.”

“शोभा भाभी को कहाँ बोर करवाने ले जा रहे हो?” इकबाल तपाक से बोला.

राजन बिना कुछ बोले बाहर आ गया. शोभा भी बाहर निकल आई.

“तुम दोनों भास्कर के घर जाकर पूछताछ करो.” राजन सलमा-इक़बाल से बोला, “हम लोग बाद में मिलते हैं.”

“हां-हां ज़रूर! शोभा के साथ अकेले समय बिताने का बहाना चाहिए?” इक़बाल खिड़की से सिर बाहर निकालकर बोला.

“बेकार की बाते मत करो.” राजन शुष्क स्वर में बोला और पार्क की तरफ बढ़ गया. “चलो शोभा.”

“जाओ इंजॉय करो.” सलमा मुस्कराकर शोभा से बोली.

“हां! इधर हम दोनों इंजॉय करते हैं. और हाँ- अपने राजी से ‘शब्बो डार्लिंग’ कहलवाना मत भूलना.”

शोभा हंसते हुए राजन के पीछे चली गई. प्रकाश ने मुस्कराते हुए जीप आगे बढ़ा दी.

राजन और शोभा पार्क में चल रही जनहित पार्टी की सभा में सम्मलित हो गए. वहां सैकड़ों की भीड़ थी. बैठने की कही भी जगह नहीं थी. अधिकतर लोग खड़े थे. वे दोनों भी एक कोने में खड़े हो गए.

मंच पर कई नेता दिख रहे थे. एक बड़ी-सी कुर्सी पर एक वृद्ध नेता बैठा था, जिसके चेहरे पर असीम तेज़ था. आँखों पर काले फ्रेम का मोटा चश्मा था. उसने सफ़ेद कुर्ता पायजामे के ऊपर कत्थई रंग की सदरी पहनी हुई थी और सिर पर सफ़ेद ही रंग की टोपी थी.

फ़िलहाल माइक पर एक पतला-सा सांवले रंग का युवा नेता जोश के साथ भाषण दे रहा था. अंत मे उसने बेहद आदर के साथ वृद्ध नेता का स्वागत किया-

“अब मैं पूजनीय श्री रामास्वामी जी को मंच पर आकर आपसे दो शब्द कहने के लिए निवेदन करता हूँ.”

चारों तरफ तालियों की गडगडाहट गूँज उठी.

उसके बाद वह वृद्ध नेता जिसका नाम एच पी रामास्वामी था, अपनी कुर्सी से उठा और माइक के सामने आ खड़ा हुआ. उसने दोनों हाथ उठाकर जनता का अभिवादन किया. उसने मुस्कराकर चारों तरफ देखा और फिर जनता एकदम खामोश होकर उत्सुकता से उनकी तरफ देखने लगी.

“मेरे साथियों! हाँ आप सब मेरे साथी हैं. यहां कोई जनता या नेता नहीं है. कोई राजा या प्रजा नहीं है. आप सब मेरे साथी हैं. हमारे प्रदेश को आगे बढ़ाने, विकसित करने, हमारे बच्चों को उज्जवल भविष्य बनाने के साथी. हम सब एक दूसरे के कंधे से कंधा मिलाकर अगर खड़े हो सकते हैं, तो फिर हमारे प्रदेश को देश का सबसे बेहतर प्रदेश बनने से कोई नहीं रोक सकता. अगर हम दिल से एक दूसरे का सम्मान करें, एक दूसरे की तरक्की चाहें और सुख-दुःख में साथ दें तो हमें कोई नहीं रोक सकता और अगर हम ऐसी मानसिकता विकसित कर लें, फिर हमें किसी नेता की ज़रूरत नहीं होगी. आपको मेरी ज़रूरत नहीं होगी. पर मैं हमेशा आपके साथ हूँ. मेरा काम बस ये है कि आपको इस मानसिकता से बहकाने वालों को आप पर राज़ करने से रोक सकूँ. मुझे इस प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की लालसा नहीं है. मैं बस एक बुजुर्ग की तरह आपकी ताकत बनकर आपके साथ रहना चाहता हूँ. भले ही मुझे वो कुर्सी मिले न मिले मैं अपने मिशन पर डटा रहूँगा. क्योंकि ये मेरी भूमि है, ये मेरी माँ है और इस प्रदेश मे बसने वाला हर इंसान मेरे परिवार का हिस्सा है.”

जनता झूम उठी, जोरदार तालियाँ बजने लगीं. लोगों मे गजब का उत्साह था.

“बहुत कमाल का भाषण दे रहे हैं.” शोभा राजन के कान मे बोली.

राजन सिर हिलाते हुए मुस्करा दिया. अचानक राजन की नज़र मंच पर बैठे एक व्यक्ति पर गई जो निरंतर उसी की तरफ देख रहा था.

वह एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था. शरीर भारी-भरकम था. उसने कीमती सूट पहना हुआ था. दाढ़ी बढ़ी हुई थी. उसके पहनावे और सूरत से वह मुस्लिम प्रतीत हुआ. पर राजन को समझ नहीं आया कि वह उसकी तरफ इतने खास ढंग से क्यों देख रहा है. हालाँकि राजन ने उस पर ये जाहिर नहीं होने दिया और नज़र कहीं और रखते हुए चुपके-चुपके उसको भी देखता रहा. वह उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था. हालाँकि काफी देर तक सोचने के बाद भी वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका.

कुछ देर बाद रामास्वामी का भाषण समाप्त हो गया और वहां कुछ और सियासी काम शुरू हो गए.

“चलो, हम चलते हैं.” राजन ने शोभा का हाथ थामकर कहा, फिर भीड़ मे रास्ता बनाते हुए बाहर की तरफ चला आया.

पार्क से बाहर आकर उसने शोभा का हाथ छोडना चाहा तो शोभा ने उसे छोड़ने नहीं दिया.

“ऐसे ही चलते हैं. हाथों मे हाथ थामकर, अच्छा लग रहा है.” शोभा अपनी बड़ी-बड़ी आँखों मे राजन के लिए प्यार लिए हुए बोली.

“तुम भी न...” राजन उसे देखते हुए बोला, “ठीक है! चलो.”

शोभा खुश हो गई. दोनों सड़क के किनारे-किनारे आगे बढ़ गए.

“अब बताओ-राजी, तुम्हें क्या पता लगा इस चुनाव प्रचार से?”

“हूँ...कुछ खास नहीं. मतलब ऐसा कुछ नहीं जो पहले से न पता हो. रामास्वामी बहुत शक्तिशाली नेता प्रतीत हो रहा है. जनता मे उसके लिए जुनून है. शर्तिया वो मुख्यमंत्री बनने का प्रबल दांवेदार है.”

“वो तो मुझे भी लग रहा है. उसका भाषण भी बहुत प्रभावशाली था.”

“हम्म! तुम्हें क्या लगता है- श्रीराम मूर्ती इसे टक्कर दे सकता था?”

“मैंने कभी उसके बारे मे ज्यादा तो नहीं सुना. पता नहीं...शायद नहीं. पर फ़िलहाल जो रूलिंग पार्टी है- वो मिली जुली सरकार से बनी है. उसे तो ये शर्तिया हरा देंगे.”

“हूँ! यानि जेकेपी?”

“हां!”

“मैं सहमत हूँ. जेकेपी ने पूरे दो साल सरकार चलाई है और जनता उनसे बहुत खुश नहीं हैं. वो इस बार चुनाव मे शायद बुरी तरह से हारे.”

“राजी! फिर सोचने वाली बात ये है कि अगर श्रीराम मूर्ती की वाकई हत्या हुई थी तो किस पार्टी को ज्यादा फायदा हुआ?”

“अभी कुछ कहना तो गेस करना ही होगा. पर फिर भी लगता है कि जनहित पार्टी यानि रामास्वामी को ही ज्यादा फायदा हो.”

कुछ सोचते हुए शोभा बोली- “पर उसकी लोकप्रियता देखकर लगता नहीं कि उसे चुनाव जीतने के लिए किसी को रास्ते से हटाने की ज़रूरत हो.”

राजन ने सोचते हुए सहमति मे सिर हिलाया.

कुछ आगे चलने के बाद उन्होंने सड़क किनारे नारियल पानी पिया. फिर राजन ने एक ऑटो रुकवा लिया.

“अब कहाँ चलना है?” ऑटो में बैठते हुए शोभा ने पूछा.

“तुम बताओ कहाँ चलें?” राजन मूड में बोला.

“क्या बात है- आजकल तुम मुझे बहुत टाइम देने लगे हो.” शोभा उसकी आँखों में झांकते हुए बोली.

“हां! काम के बीच कभी-कभी हमें अपनी जिंदगी भी जीनी चाहिए. कल किसने देखा है?”

“ऐसा क्यों कह रहे हो? पहली बात ठीक है. पर प्लीज़ ऐसा मत बोला करो. मैंने तुम्हारे साथ जो सपने सजोये हैं उन्हें पूरा करे बगैर मैं चैन से मर भी नहीं सकूंगी.”

राजन कुछ पल एकटक उसे देखता रहा, पर बोला नहीं. फिर उसने ऑटोवाले को पुलिस स्टेशन चलने के लिए कहा.

शोभा ने राजन के कंधे पर सिर रखकर आँखे मूँद ली. राजन की बात से उसका दिल बेचैन हो उठा था.

इधर राजन की नज़रें ऑटो के रियर वियु पर थीं. एक सफ़ेद कार निरंतर उनके पीछे चली आ रही थी.

जहाँगीर कब्रिस्तान

शोभा और राजन भास्कर की मर्डर फ़ाइल का अध्ययन कर रहे थे.

सलमा और इक़बाल भी शाम को पुलिस स्टेशन पहुंच गए. उन्होंने बताया कि भास्कर राव के परिवार वालों से कोई खास बात नहीं पता चली. उसे ऐसा कोई खतरा नहीं था जो उसने उन्हें बताया हो. उनका कहना था कि वो अपने काम की बात वैसे भी घर पर किसी से नहीं करता था.

“उसके कमरे की तलाशी ली?” राजन ने पूछा.

“हां! पर कुछ नई बात नहीं पता चली.” इक़बाल ने कहा- “हमें शायद उसके ऑफिस के सामान में कुछ मिल पाए.”

“भास्कर के ऑफिस का जो भी ज़रूरी सामान था वो मेरे पास मौजूद है.” प्रकाश ने अपने ऑफिस में रखी अलमारी की तरफ इशारा किया.

इक़बाल और सलमा ने तुरंत अलमारी चैक करी.

उसके सामान से उन्हें एक नोटपैड मिला जिस पर पेन्सिल से कुछ-कुछ लिखा हुआ था.

“कमिश्नर के साथ मीटिंग...” इकबाल पढ़ रहा था- “केन्द्रीय जेल दौरा... कुछ आइडिया ये किसलिए था और कब हुआ था?”

“हां...करीब एक महीने पहले.” प्रकाश सोचते हुए बोला- “मुझे लगता है वो किसी केस के सिलसिले में जेल गया होगा- शायद किसी कैदी से पूछताछ करने.”

“हम्म! आप साथ नहीं थे?”

“नहीं! वो किसी और केस पर काम कर रहा होगा.”

“तो आपने उसके साथ सिर्फ श्रीराम मूर्ती के केस पर काम किया था?” सलमा ने पूछा.

“हां!”

“लगता है इस बार तुम्हें जेल जाना पड़ेगा.” राजन ने इक़बाल से कहा.

“यार, कैसी बातें कर रहे हो?” इक़बाल उछल पड़ा. “मुझ जैसे सीधे-सादे आदमी को क्यों जेल भेजना चाहते हो?”

“मेरा मतलब...”

“हां, अगर सल्लोजी भी मेरे साथ जेल में बंद होने को तैयार है, तो अपुन को कोई शिकवा नहीं.”

“मुझे नहीं जाना.” सलमा नाक सिकोड़ते हुए बोली- “जेल बहुत गंदे होते हैं. वहां मच्छर भी बहुत होते हैं.”

“फिकर नॉट डार्लिंग, हम अपने साथ रूम स्प्रे और बेगोन स्प्रे दोनों ले चलेंगे.”

“फिर भी नहीं जाऊँगी.”

“तुम अपने इक्को को अकेले जेल में बंद होते देख पाओगी?” इक़बाल भावुक-सा चेहरा बनाकर बोला.

“मैं आया करूंगी न तुमसे मिलने, घर का खाना लेकर.”

“ठीक है! तुम साथ न सही अपुन तुम्हारे हाथ के बने खाने से काम चला लेंगे.”

“बकवास नहीं!” राजन ने टोका.

“सल्लो! क्यों इतना बकवास करती हो?” इक़बाल सलमा की तरफ पलट गया.

“मैं? सारी बकवास तुम ही शुरू करते हो.”

“ओके! अपुन चुप हो जायेंगे. पर चुप होने के लिए मुंह और पेट दोनों में खाना भरना पड़ेगा.”

“चलो राजी.” शोभा बोली- “किसी होटल में चलते हैं तभी देवरजी की बकवास बंद होगी.”

फिर वे लोग वहां से चल दिए और डिनर लेने के लिए होटल लीला पहुंचे.

वो एक बेहतरीन जगह थी. डिनर हॉल में मद्धम रौशनी और हल्के-हल्के संगीत ने समां बाँध रखा था. वे लोग एक कोने की टेबल पर जाकर बैठ गए. वेटर को सूप और स्टार्टर्स का ऑर्डर देने के बाद वे बातें करने लगे.

“तो राजन, तुमने उस चुनाव रैली के बारे में नहीं बताया?” इक़बाल बोला.

“रामास्वामी का भाषण सुना था हमने. काफी प्रभावशाली नेता मालूम पड़ता है. जनता में उसके लिए जूनून है.”

“हूँ!” सूप की चुस्की लेकर इक़बाल बोला- “यानि अगर आज श्रीराम मूर्ती जिंदा होता तो भी उससे नहीं जीत पाता?”

“मेरा मानना तो ऐसा ही है. पर श्रीराम का भी बहुत नाम था, खासकर के इस प्रदेश की युवा जनता के बीच. भले ही वो जीतता नहीं, पर इन्हें टक्कर तो दे ही सकता था.”

“मुझे तो ऐसा लग रहा है कि वो दुर्घटना में ही मरा है.” सलमा बोली- “समाजशक्ति पार्टी सिर्फ खिसियाकर उसकी मौत को मर्डर बनाना चाहती है, ताकि उसका ज्यादा नुकसान न हो. यानि भले ही उनकी सरकार न बने पर कुछ सीटें तो वो जीते हीं.”

राजन ने हामी भरी, फिर वे लोग खाने में लग गए.

खाने के बाद राजन वाशरूम की तरफ चल दिया. कुछ आगे बढते ही उसकी नज़र हॉल के ऊपर चली गई. वहां रेलिंग के पास उसे वहीं व्यक्ति खड़ा दिखाई दिया जो कि जनहित पार्टी की सभा में उसे घूर रहा था. अधेड़ उम्र का मुस्लमान जिसकी बड़ी-सी दाढ़ी थी. राजन की नज़र उस पर गई तो वो अंजान बनकर दूसरी तरफ देखने लगा. हालाँकि राजन रुका नहीं और तेजी-से वाशरूम की तरफ चलता चला गया.

जब वह वापस आया तो वह व्यक्ति रेलिंग से नदारद था. राजन ने हॉल में एक सरसरी नज़र घुमाई पर वह कहीं दिखाई नहीं दिया.

राजन अपनी सीट पर पहुंच गया.

तभी एक वेटर उसके पास पहुंचा और एक रुमाल उसकी तरफ बढ़ाकर बोला- “सर! आपका रुमाल वाशरूम में गिर गया था.”

राजन ने चौंककर उसे देखा. उसने तो जेब से रुमाल निकाला भी नहीं था. हाथ टिशु पेपर से सुखाये थे. फिर भी उसने रुमाल ले लिया.

शोभा प्यारी-सी मुस्कान के साथ उसे देख रही थी. राजन भी मुस्करा दिया.

इक़बाल सलमा आपस में कुछ तू-तू मैं-मैं कर रहे थे. शोभा का ध्यान उनकी तरफ गया तो राजन ने रुमाल चैक किया. रुमाल की तहों के अंदर कागज़ की एक चिट थी. उस पर लिखा था-

“जहाँगीर कब्रिस्तान- तुम्हारी उल्टी कब्र पर रात 12 बजे मिलो”

राजन को बात समझ नहीं आई, पर उसने पढने के बाद जल्दी-से चिट रुमाल सहित जेब में रख ली.

डिनर के बाद उन लोगों ने बिल अदा किया और वापस गेस्ट हॉउस के लिए रुखसत हो गए.

रात को जब सब सोये हुए थे, राजन उठा. उसने एक नज़र इक़बाल पर डाली जोकि गहरी नींद में था. फिर वह बाहर की तरफ चल दिया.

सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ था. कोई इक्का-दुक्का वाहन कहीं-कहीं दिखाई दे जाता. राजन पैदल ही एक तरफ बढ़ गया. वह तेजी-से चल रहा था. उसकी चाल में बेचैनी-सी थी.

लगभग पन्द्रह मिनट चलने के बाद वह एक कब्रिस्तान के बाहर खड़ा था. उसने सिर घुमाकर चारों तरफ देखा- वहां कोई भी प्राणी नज़र नहीं आया.

फिर वह अंदर प्रविष्ट हो गया. वहां सैकड़ों कब्रें थीं और राजन को उसमे ‘अपनी उल्टी कब्र’ तलाशनी थी. इस बात का मतलब तो राजन को समझ नहीं आया. फिर भी वह ढूढने लगा. गनीमत थी कि उसे उर्दू आती थी, वरना तलाश नामुमकिन हो जाती. हालाँकि कुछ कब्रों पर उर्दू और अंग्रेजी में भी नाम लिखे हुए थे.

‘वैसे कब्र ढूढना इतना ज़रूरी भी नहीं है.’ उसने सोचा- ‘आएगा तो आखिर वो कब्रिस्तान में ही.’

फिर भी चाँद की रौशनी में वह कब्र पे कब्र देखता चला गया. राजन चारों तरफ देखने लगा. अभी-भी कोई नज़र नहीं आया.

रह-रहकर चमगादड़ आवाज़ निकालकर कब्रिस्तान के वातावरण को और भी भयानक बना रहे थे.

राजन हर पल सतर्क था. उसका हाथ अपनी जेब में रखी रिवाल्वर पर जमा हुआ था. उसने घड़ी देखी- बारह बजकर दस मिनट हो चुके थे.

अचानक ही वह चिहुंक उठा. उसको अपनी गर्दन के पीछे चुभन का अहसास हुआ. उसका हाथ वहां पहुंचा तो उसके हाथ में एक सुई आ गई.

सुई को देखते-देखते राजन बेसुध होकर जमीन पर जा गिरा.