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भाग-२ अकबर-बीरबल के लतीफे


अकबर-बीरबल के लतीफे

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अनुक्रमणिका

१.स्वप्न

२.कितनी चूड़ियां कितने बाल

३.छेड़-छाड़

४.कंजूस का दृश्य

५.शहजादा और सौदागर पुत्र

६.मुर्गी का अन्डा

७.अंगुली का संकेत

८.अप्सरा और पिशाचनी

९.जूते छिपाए गए

१०.ऊंट की गरजन टेढ़ी क्यों

११.हाँ मिहरबान

१२.आपकी बारी कैसे आती?

१३.बुला कर ला

१४.उतने पांव पसारिये जितनी लम्बी सौर

१५.सिर के बाल मुंडवा दूंगा

१६.उड़द की दाल और बनिये की चतुराई

१७.ईश्वर जो कुछ करता है अच्छाई के लिए ही

१८.देने वाले का हाथ नीचा

१९.बीरबल द्वारा न्याय

२०.बरसात के चार माह

२१.भूल का एहसास

२२.बैंगन का नहीं बल्कि आपका नौकर हूं

२३.बादशाह के पांच प्रश्न

स्वप्न

एक दिन किसी ब्राह्मण ने रात में स्वह्रश्वन देखा कि उसे सौरुपये उधार अपने मित्र से मिले हैं सवेरे जब नींद खुली तो उसकाअच्छा या बुरा फल जानने की इच्छा हुई उसने अपने मित्रों में बैठकरइस बात की चर्चा की धीरे-धीरे खबर बिजली की तरह फैलगई यहांतक कि उस मित्र ने भी इस बात को सुना जिससे कि ब्राह्मण ने स्वप्नमें सौ रुपये लिए थे।

उसका जी लालच में हो गया उसने चाहा कि किसी तरहब्राह्मण से रुपया लेना चाहिए और उसके पास रुपया लेने पहुंचा औरकहने लगा कि जो सौ रुपया उधार लिया था। वह मुझे दे दो।

मुझको जरूरत है इसलिए आज तुम मेरे रुपये दे दो गरीबब्राह्मण ने पहले तो सोचा कि मित्र हंसी मजाक कर रहा है। परन्तुजब वह हाथा पाी करने को तैयार हुआ और बहुत भय आदि दिखायातो ब्राह्मण के भी प्राण सूखने लगे।

बेचारा दिन भर मेहनत करता तब उसको खाने को मिलता था,घर में फूटी कौड़ी भी न थी।

सौ रूपये कहां से देता विवश हिम्मत बांध वो भी मित्र कासामना करने को खड़े हो जए अब तो मित्र के कान खड़े हुए उन्हेंआज्ञा थी कि डरकर ब्राह्मण देवता रुपया दे देगा।

लेकिन जब उसको इस आशा पर पानी फिरता दिखाी दियातो उसने ब्राह्मण को धमकी दे अपने घर का रास्ता लिया।

जाते जाते कह गए कि मैं तुझसे रुपये जरूर बसूल कर लूंगाऔर गवाही में सब मित्रों तथा पड़ौसियों को उपस्थित करूंगा जिसकेसामने तुमने रूपया पाना स्वीकार किया है।

ब्राह्मण देवता करते ही क्या ईश्वर पर उधार रुपया लेने काअभियोग लगा कर दावा कर दिया। न्यायाधीशों ने दोनों तरफ की बातध्यान देकर सुनी।

लेकिन कोई फैसला न कर सके। क्योंकि गवाहों ने स्वह्रश्वन मेंरुपये लेना ब्राह्मण के द्वारा स्वीकार करना बतलाया।

सोच विचार कर न्यायाधीश ने यह मामला बादशाह के पासभेज दिया।

बादशाह ने मामले पर अच्छी तरह गौर किया, वह जानते हुएकि मित्र सरासर दगाबाजी कर रहा है।

बादशाह को निबटाने की कोई तरकीब न सूझी लाचार होबादशाह ने बीरबल को बुलाया। सब मामला समझा दिया कि बेचारेब्राह्मण को दगाबाज मित्र ठगना चाहता है।

इसका ऐसे तरीके से न्याय होना चाहिए दूध का दूध औरपानी का पानी अलग हो जाए।

बीरबल ने आज्ञा मानकर एक बड़ा सा दर्पण मंगवाया उसकेबाद सौ रुपये उन्होंने ऐसी होशियारी से रख दिये कि दर्पण में रुपयोंकी छाया दीख पड़े।

जब रुपये दर्पण में दीखने लगे तब बीरबल दगाबाज मित्र सेबोले कि जिस रुपये की छाया दीखती है उसे तुम ले लो।

मित्र महाशय ने अचम्भा जाहिर करते हुए कहा कि यह कैसेले सकता हूं यह तो केवल रुपये की परछाई है।

मौका पाकर बीरबल बोले कि ब्राह्मण ने भी तो स्वह्रश्वन में तुमसेरुपया पाया था। वह भी तो परछाई थी फिर तुम असली रुपया क्योंचाहते हो महोदय की गर्दन झुक गई कुछ जवाब न बना लाचार होकरखाली हाथ चलने को तैयार हुए तो बीरबल बोले ब्राह्मण को आजपरेशान किया है। उसके कामों में रुपाकवट डाली अतः बिना सजापाये यहां से न जा सकोगे।

बीरबल ने समझा कर उस दगाबाज को जुर्माने की सजा दीजो रकम जुर्माने की मिली वह उन्होंने उस गरीब ब्राह्मण को हरजानेमें दे दी इस तरह गरीब ब्राह्मण हंसी खुशी पर वापस आया।

जिन्होंने इस न्याय की खबर सुनी उन्होंने बीरबल की प्रशंसाकी बादशाह तो बीरबल के इस न्याय से एकदम दंग रह गए।

कितनी चूड़ियां कितने बाल

एक दिन दरबार हाल में बैठे बादशाह अकबर ने बीरबल सेएकाएक यह सवाल कर दिया - क्यों बीरबल - तुम तो अपनी बीवीका हाथ दिन में दो एक बार अवश्य स्पर्श करते होंगे।

जी बादशाह सलामत! बीरबल ने हौले से जवाब दिया।

बादशाह अकबर ने आगे पूछा - क्या ये बता सकते हो कितुमहारी बीवी के हाथ में कितनी चूड़ियां हैं?

बीरबल यह सुनकर असमंजस में पड़ गया। न तो इससे पहलेबादशाह सलामत ने ऐसा सवाल कभी किया ही था और न ही आजतक बीरबल ने बीवी के हाथ की चूड़ियों की कभी गणना की थी।

सच तो यह था कि वे झूठ भी न बोलना चाहते थे। कुछदेर सोच विचार के बाद उन्होंने जवाब दिया - ‘जहांपनाह! असलियततो यह है कि मेरा हाथ तो बीवी के हाथ से दिन में एकाध बार हीस्पर्श करता होगा किन्तु आपका हाथ तो आपकी दाढ़ी में दिन मेंबीसियोंबार लगता है। भला आप ही बताइये कि आपकी दाढ़ी मेंकितने बाल हैं?

बादशाह अकबर बीरबल की बात सुनकर बहुत शर्मिन्दा हुए।

छेड़-छाड़

अकबर बादशाह और बीरबल में अकसर मजाक होता रहताथा। एक दिन वे दोनों एक-दूसरे से छेड़-छाड़ कर रहे थे।

बादशाह ने कहा बीरबल तुम्हारी स्त्री अत्यन्त सुन्दर है।

बीरबल ने कहा - हूं सरकार ! पहले तो मैं भी ऐसा ही समझाकरता था। पर जब से बेगम साहिबा को देखा है, मैं अपनी स्त्री कोही भूल बैठा हूं।

बादशाह एकाएक झेंप गये और उस दिन से फिर उन्होंने ऐसामजाक नहीं किया।

कंजूस का दृश्य

दिल्ली शहर में एक बड़ा ही मक्खी चूस रहता था कठिनपरिश्रम करने पर भी जो कुछ उसे मिलता था उसके थोड़े में अपनापेट भरता तथा बाकी जमा करता था। इस तरह उसके पास कईजवाहरात हो गए थे उसका रहन-सहन ऐसा था कि लोगों को सहसाविश्वास ही नहीं हो सकता था कि इसके पास जवाहरात होंगे। उसकाघर एक मामूली फूंस की झोपड़ी थी। जिसमें एक टूटा फूटा छोटासा एक सन्दूक मुमकिन है बाबा आदम के जमाने की थी। उसी मेंअपने जवाहरों की कथरी गुदरों में छिपाये रक्खे था, दैवयोग से एकदिन उस फूस की झोंपड़ी में आग लग गई। कंजूस यह देखकर दहाड़मारकर रोने लगा। उसका शोर सुनकर उसके अड़ोस पड़ोस के लोगआ गये और आग बुझाने में मदद देने लगे किन्तु वह बुझने के बजायअधिक बढ़ गई। आग की लपटों को बढ़ता देखकर कंजूस और भीजोरों से चिल्ला चिल्ला कर रोने लगा। उसका रोना सुनकर उसके पासही एक स्वर्मकार उसको डांट कर बोला कि ेक कांसे की कढ़ाई केलिए क्यों जान दे रहा है।

कंजूस यह सुनकर बोला - भाई तुम तो कढ़ाई को जलते देखरहे हो किन्तु मैं तो अपने जवाहरात को देख रहा हूं। यह सुनकरस्वर्णकार बोला कि बहु धन कहां छिपा है? कंजूस ने उंगली के इशारेसे उस स्थान को बतला दिया। जहां सन्दूक था। स्वर्मकार के जी मेंलालच समा गया वह बोला कि यदि मैं जवाहरात को बाहर निकाललाया तो अपने मनमानी चीज तुम्हें देकर बाकी रकम ले लूंगा। अधतजसिंह बुध सर्वस जाता यह ख्याल कर कंजूस ने स्वर्णकार कोइजाजत दे दी। करता भी क्या कुछ भी न तो थोड़ा पाना अच्छा है।

स्वर्णकार भी अपनी जान जोखों में डाल लालच वश धधकतीहुई अग्नि में कूद पड़ा और सन्दूक लिे बाहर आया। जब आग शान्तहुई तो सुनार ने कंजूस को केवल सन्दूक देकर बाकी जवाहरात खुदले लिए यह देख कंजूस ने आनाकानी की तो स्वर्मकार बोला कि तुमनेपहले ही मान लिया था जो मैं चाहूं वह तुम्हें दे दूं। कंजूस ने नम्रहोकर कहा कि भाई साहब आपने जान पर खेल कर ऐसा उपकारकिया है, अतएव आप आधा धन ले लो बाकी आधा मुझे स्वीकार

है। स्वर्णकार है स्वर्णकार रपटकर बोला कि मेरे तेरे बीच पहले हीशर्त हो चुकी थी कि मैं जो चाहूं उसे तुझे दे दूं अब चालाकी सेकाम नही चलेगा।

बात दोनों में बढ़ गई कंजूस ने बहुतेरा प्रयास आधा जवाहरातपाने का किया अन्त में लाचार हो बादशाह के यहां नालिस की।

बादशाह ने पेचीदा मामला समझ बीरबल को बुलाया और साथ हालदोनों से बयान करवाया - छोड़ी देर के लिए बीरबल विचार मग्न होगये बाद में बीरबल ने स्वर्णकार से पूछा कि तुम दोनों के बीच क्याशर्त तय हुई थी? स्वर्मकार बोला गरीब परवर! हम दोनों के बीचयह शर्त तय हुई थी कि उस धधकती आग में प्रवेश कर जो जवाहरातवाली सन्दूक को निकाल लायेगा वह जो पसन्द करे दूसरे को देवेबाकी आप लेवे। यह सुनकर बीरबल ने कंजूस से पूछा कि जो बातेस्वर्मकार कहता है क्या यही है? कंजूस ने स्वीकार किया तब बीरबलने कहा फिर तुम क्यों नहीं निपटारा कर लेते। जब शर्त हो चुकी थीतो जो कुछ वह देता है ले लो। कंजूस ने दुखी होकर कहा किआलीजाह! वह तो केवल सन्दुक मुझे देकर सब जवाहरात खुद लेरहा है।

बीरबल ने स्वर्णकार को बुलाकर कहा कि तुम्हें कौन सी चीजपसन्द है। स्वर्णकार बोला हुजूर जवाहरात बीरबल यह सुनकर बोले तोफिर बात इतनी क्यों बढ़ाई। जवाहरात उसे वापिस दे दो। सन्दूक तुमले लो।

स्वर्णकार अवाक सा रह गया बीरबल बोले कि तुम्ही ने तोअपनी शर्त में बतलाया कि जो मैं पसन्द करूंगा वह इन्हें दे दूंगा।सो तुमने जवाहरात पसंद करे हैं एतएव इन्हें दे दो बाकी सन्दूक तुमले लो। स्वर्णकार कुछ न बोल सका। वह जानता था कि बीरबल केन्याय का अस्वीकार करूंगा तो जेल की हवा खानी पड़ेगी ज्यादालालच का यही नतीजा होता है यह सोचता हुआ खाली सन्दूक लेकरस्वर्णकार घर को लैटा। कंजूस को उसके जवाहरात मिल गये, उसेलेकर बीरबल की चतुराई से बड़ा प्रसन्न हुआ क्योंकि उन्होंने दूध औरपानी को बिलकुल अलग - अलग कर दिया था।

शहजादा और सौदागर पुत्र

बादशाह शहजादे और एक सौदागर के पुत्र में बड़ी मित्रता थी।

यहां तक कि दिनों ही साथ-साथ उठते खाते, पहनते, सोते थे।

दोनों प्रायः इधर-उधर की गपशप में अपना समय निकाल देतेथे। उससे उनके मां-बाप बड़े दुःखी और परेशान रहा करते थे।

सौदागर और बादशाह ने उनकी मित्रता कम कराने अथवाबादशाह से कहा कि निश्चय ही वह उन दोनों की मित्रता में कोई विघ्नडाल ही देगा।

एक दिन जब कि दोनों शहजादा और सौदागर का पुत्र बागमें बैठे हुए थे। बीरबल अपने रथ में पहुंचे और शहजादे को संकेतसे बुलाया।

पास आने पर उन्होंने उसके कान में अपना मुंह रखा और कहाजाओ यह कह कर वे चले आये।

उधर सौदागर पुत्र ने शहजादे से पूछा कि बीरबल ने तुमसेक्या कहा था?

शहजादे ने उ्रूद्गार दिया कि उसने तो कुछ भी नहीं कहा वैसेही बुलाया था।

यह सुनकर सौदागर पुत्र ने सोचा अवश्य ही शहजादा हमसेकुछ चिपा रहा है। वरना बीरबल ने जो कुछ भी कहा उसे बता देता।

ऐसे ही दो-तीन दिन बाद बीरबल ने फिर शहजादे को बुलायाऔर उसी तरह बिना कहे वापस भेज दिया।

सौदागर पुत्र के पूछने पर उसने उ्रूद्गार दिया कि आज भी मुझेकुछ नहीं कहा।

अब तो सौदागर पुत्र के हृदय में पूरी तरह से संदेह हो गयाऔर वह शहजादे से काफी खिचाव रखने लगा। शहजादा उसके इसबर्ताव से अप्रसन्न हुआ।

आखिर उन दोनों की मित्रता एकदम टूट गई और अपना करनेलगे। सौदागर और बादशाह को भी इनसे बडी प्रसन्नता हुई औरबीरबल को इनाम दिया।

मुर्गी का अन्डा

अकबर बादशाह को एक दिन बीरबल की हंसी उड़ाने कीइच्छा हुई। एतएव उन्होंने उनके आने से पहले बाजार से मुर्गी के अण्डेमंगवाकर अपने दरबारियों को एक एक ण्डा बांट दिया। केवल बीरबलरह गए।

तदोपरांत वह ज्यों ही दरबार में हाजिर हुए, बादशाह ने कहादीवन जी हमने रात में एक बड़ा अजीब सपना देखा है। उसका तात्पर्ययह निकला है, जो आदमी इस हौज में डुबकी लगाकर एक मुर्गी काअण्डा न निकाल पायेगा, उसे दो बाप का माना जायेगा। मेरा विचारहै, सबकी बारी-बारी से परीक्षा ली जाये। सपने की असलियत काभी पता चल जाएगा।

फिर बादशाह की अनुमति से सब दरबारियों ने हौज में डुबकीमारकर हाथों में मुर्गी का अण्डा लेकर बाहर निकले। जब बीरबल कीबारी आई तो वही होज में डुबकी लगाकर वह खाली हाथ निकलआये, किन्तु उनके मुख से कुकडू कू की आवाज निकल रही थी।

बादशाह ने पूछा - दीवान जी तुम्हारा अण्डा कहां गया? जल्दीसे दिखलाओ?

बीरबल ने उ्रूद्गार दिया - हुजूर बादशाह सलामत? तमाम अण्डेदेने वाली मुर्गियों के बीच में मैं ही एक मुर्गा हूं।

उनके आशह को समझकर अब दरबारी सहम गये। जब किवादशाह के होंठों पर मुस्कुराहट खेलने लगी।

अंगुली का संकेत

अकबर बादशाह के दरबार में उच्च घराने का एक बड़ाधनहीन सरदार रहता था। उसकी आजीविका उपार्जन करे के लिए कोईऐसा व्यवसाय ही न था। जिससे उसका खर्च भलीभांति चलता। फिरभी यथा समय दरबार में जाकर अनपे बड़ों के चलाये नियम परम्पराका पालन किया करता था। वह दोनों समय के दरबार में ठीक समयपर उपस्थित हुआ करता था। बड़ी जोड़ तोड़ करके एक जोड़ा वस्त्रइसी कार्य के लिए रख छोड़ा था। दरबार से फुरसत पाने पर घरजाकरचक्की पीसकर अपनी अजीविका चलाता था। सिवा एक जोड़ी चक्कीके उसके पास और कुछ भी धन शेष न रह गया था। ऐसी लाचारीकी दशा में भी सरदार अपने बाप दादों का बनाया नियम यथा शक्तितोड़ता नहीं था।

एक दिन पिसाई का काम बहुत ज्यादा था जिससे कार्यविवशता के कारण लाचार होकर दरबार में उपस्थित न हो सका। तन्मयहोकर चक्की चलाता ही रहा। नित्य के समय पर बादशाह की सवारीनिकली और मियां सरदार के घर के पास से होकर चली। सरदारका घर जन साधारण गृहस्थ की तरह कच्चा और एक मंजिला बनाहुआ था। दीवार में कई जगह दरार फट कर अकस्मात राह चलन्तुोंका ध्यान अपनी तरफ खींचकर गृह स्वामी का उपहास करा रहा था।

मियां सरदार चक्की चलाते चलाते घौसा बजना सुनकर अपने आंगनसे राजा की सवारी देख रहे थे। अचानक राजा की दृष्टि भी सरदारपर जा पड़ी। राजा ने सरदार को पहचान लिया। दूसरे दिन दरबारमें उपस्थित होने पर राजा के मन में मियां सरदार के सम्बन्ध में उनकीवर्तमान स्थिति की विशेष जानकारी प्राह्रश्वत करने की इच्छा हुई, मन कीबात मन ही में दबाकर खामोश रह गये।

कुछ दिनों के बाद एक दिन फिर बादशाहका दरबार बड़ेगमागह के साथ लगा। मियां साहब भी अन्य सरदारों की तरह सजधजकर अपने स्थान पर बैठे हुए थै हिन्दू मुसलमान सभी दरबारीभी योग्यतानुसार अपने स्थानों पर विराजमान थे। इसी बीच राजा आकरसभी के मध्य एक सोने के सिंहासन पर बिराजमान हुए। बारी-बारीसबकी तरफ देखते हुए राजा की दृष्टि उन मियांजी पर पड़ी और भूलीबात फिर से स्मरण हो आई पहली बात पूछने के लिए आज फिरउनका मन चंचल हो उठा, परन्तु विचार विनिमय के सामने किसीदरबारी का पर्दाफाश करना राजा को शोभा नही देता था। मियां दरबारीने उस संकेत का तात्पर्य अपने घर समझकर अपने पेट पर अंगुलीरखते हुए बादशाह को दिखलाया। बादशाह भी सभा लुच्चों से खालीनहीं थी। अच्छी बात पर चाहे उनका ध्यान भले ही न जाता, परन्तुऐसी-ऐसी बातें तो उनकी आंखों पर नाचा करती थीं। कितनों ने मियांऔर बादशाह के उपरोक्त संकेत को देख लिया था। बस उन को लेकरउनके मन में अनेकों प्रकार के संकल्प विकल्प उठने लगे दरबार समाह्रश्वत होते ही एक धृर्त जाकर मियां सरदार जी का घर देख आया।

दूसरे दिन कई दृष्टों की मण्डली बना कर मियां जी के मकान परपहुंचा। जैसा गृहस्थ का धर्म है मियां जी ने सबको बड़े आदर सत्कारके साथ बैठाया। थोड़ी देर के बाद चण्डाल चौकड़ी के मुखिया नेमियां जी से पूछा महाशय जो कल दरबार के समय बादशाह ने आपसेक्या कहा था? वह सांकेतिक बात हम लोगों की समझ में आई, हमउसे जानने के लिए लालचित हैं। मियां सरदार के मन में स्नेदह गोगया उन्होंने अनुमान लगाया कि बादशाह के संकेत करने से इन लोगोंके मन में मेरे सम्बन्ध में सन्देह उत्पन्न हो गया है। इनको उल्लूबनाकर फंसाना चाहिए। उसने उ्रूद्गार दिया बहुत सी बातें कहने योग्यनहीं होती, उनका भेद खुल जाने में बड़ा नुकसान होता है।

चण्डाल चौकड़ी का मुखिया आग्रहपूर्वक जोर देकर पूछने लगातब फिर मियां सरदार जी बोले देखो भाई बादशाह ने आप लोगों कीतरफ इशारा करके मुझसे पूछा था कि लोगों की कोई बात जानते हो।

मैंने उस बात को वहीं रोक अपनी अंगुली पेट पर रख कर समझादिया कि हमारे पेट में है। मियां जी की फेरबदले की बातों ने चण्डालचौकड़ी को घबरा दिया और सबने अनपे भविष्य की भलाई के लिएउन को रिश्वत देने का विचार प्रकट किया, परन्तु मियां जी की गरदनटेढ़ी बनी रही। सब घर से हैयिसत के अनुसार कोई सौ कोई दो सौऔर पांच सौ की गठरी तक ले आए। मियां जी मजे में पालथी मारकरये सब चरित्र देख रहे थे वे सब कपट मूर्ति अपनी अपनी भेंट सरदारके कदमों पर रखकर बोले - सरदारजी कृपा कर हमारी ये बातें अपनेही पेट में रखना, कहीं खुलने न पावें, हम इसी के लिए आप की

यह भेंट दे रहे हैं। मियां जी बड़ी गम्भीरता से बोले - जो आप लोगोंकी यह ही इच्छा है तो मैं ऐसा ही करूंगा। आप लोगों पर ईश्वरप्रसन्न हैं। जो कल के संकेत की बातें समझकर पहले से ही होशियारहो गये।

चाण्डाल चौकड़ी इस प्रकार घूस देकर वहां से विदा हुई।

दूसरे दिन बादशाह स्वयं मियां सरदार के पास गये। मियां जी नेबाअदब सलाम कर बादशाह को एक कुर्सी पर बैठाया फिर घूस मेंमिली रकम उनके सामने रखकर बड़ी कृतज्ञता प्रकट करने लगे।

बादशाह उस गरीब के घर एकाएक इतना काफी द्रव्य देखकर बोले- मियां जी आफ चक्की पीसकर अपनी जीविका चलाते थे तो फिरयह द्रव्य कहां से आया? मियां जी मुस्कराते हुए बोले - पृथ्वीनाथकल आपने दरबार में जो मेरे लिए संकेत किया था, यह सब उसीका फलहै। बादशाह को इतने से सन्तोष न हुआ वे उसके मुख सेऔर भी सारी बातें स्पष्ट सुनना चाहते थे। इसलिए पूछा भाी यह तूकैसी गोल मटोल बातें कर रहा है मेरी समझ में कुछ नहीं आता।

मियां सरदार ने सारा किस्सा कह सुनाया। बादशाह उसकीचालाकी से अति प्रसन्न हुए। और घूस में मिला धन उसको देकरलौट गये। दूसरे दिन वही सरदार दरबार में एक खान पद पर नियुक्तकर लिया गया। दुष्ट दरबारियों का मन एकदम टूट गया। और व फिरकिसी कर्मचारी का छिन्द्रानवेषण करते हुए नहीं सुना।

अप्सरा और पिशाचनी

एक दिन बादशाह को अह्रश्वसरा और पिशाचिनी देखने की बहुतज्यादा इच्छा हुई। बीरबल सभा में आया तो बादशाह ने उन दोनों कोदिखलाने के लिए उसे बाध्य किया। बीरबल - बहुत अच्छा। यहकहकर तत्क्षण अपने घर चला आया और संध्या के समय एक वेश्याके घर जाकर उसे दूसरे दिन बादशाह के पास चलने के लिए समझाबुझाकर ठीक कर लिया। जब सवेरा हुआ तो अपनी स्त्री और वेश्याके लिए हुए बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह को अपनी स्त्री

दिखलाकर बोला - गरीब परवर! यह स्वर्ग की अह्रश्वसरा है। क्योंकिइसकी सेवाओं से मुझे बड़ा आराम पहुंचता है। बादशाह ने पूछा -यह कैसे? अह्रश्वसरायें तो परम सुन्दरी हुआ करती हैं। यह तो एकदमकाली और महादुर्बलहै। शास्त्रों में भी अह्रश्वसराों की सुन्दरता अद्वितीयबतलाी गई है।

बीरबल बोला - पृथ्वीनाथ! सुन्दरता तो गुण की होती है।

चमड़े की नहीं, इस औरत से मुझे स्वर्ग के समान सुख मिलता है।

बीरबल ने उस बाजारू वेश्या को लाकर बादशाह के सामने हाजिरकिया। बादशाह ने कहा। वाह यह तो बड़ी सुन्दर है इसके आभूषणऔर स्वच्छ वस्त्रों से इसकी सुन्दरता और भी बढ़ गई है बीरबल बोला- पृथ्वीनाथ! यह सब केवल फांसने की कुन्जी है। यह पिशाचिनीजिसको लग जाती है उसका सर्वस्व अपहरण करके ही पिन्ड छोड़तीहै। बीरबल के ऐसे उ्रूद्गार से बादशाह बहुत प्रसन्न हुए।

जूते छिपाए गए

राजा दरबार में बैठे थे। इन्हें बीरबल से हंसी करने की सूझी।

अतः एक नौकर से कहकर बीरबल का जूता छिपा दिया और बीरबलको ऐसा काम बतलाया जिसकी वजह से उन्हें सभा भवन के बाहरजाना पड़ा अब वह अपना जूता खोजने लगे। लेकिनवहां तो पहलेसे ही कार्यवाही की जा चुकी थी। जब बीरबल हैरान हो गये। तोराजा ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो मालूम हुआ कि जूता नहींमिल रहा है।

राजा ने हुक्म दिया कि हमारी तरफ से इन्हें जूते दे दिएजायें। राजा का हुक्म पाकर नौकरों ने नया जूता लाकर बीरबल कोपहना दिया। जब जूता पहन चुके तो बीरबल बोले कि इसके बदलेमें आफको ईश्वर परलोक में हजारो जूते दे। मेरी यह मंगल कामनाहै।

बीरबल की यह बात सुनकर अकबर शर्म से नत मस्तक होगये।

ऊंट की गरजन टेढ़ी क्यों

एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल को जाँगीर देने का वायदाकिया लेकिन जब जाँगीर देने का समय आता तो गर्दन फेर ली।

कुछ दिन बाद बादशाह और बीरबल कहीं से गुजर रहे थे उन्हेंएक ऊंट बैठा दिखा। ऊंट को देखकर बादशाह ने बीरबल से पूछा- बीरबल ऊंट की गर्दन टेढ़ी क्यों होती है?

बीरबल - गुस्ताखी माफ जहांपनाह, लेकिन मेरा ख्याल है किइसने भी किसी को जाँगीर देने का बायदा किया होगा लेकिन समयपर गर्दन फेर ली।

बादशाह ने अएपनी बात याद करके बीरबल को जाँगीर दे दी।

हाँ मिहरबान

एक दिन बादशाह बीरबल से बोले, ‘जिन लोगों के नाम केअन्त में या उनकी पदवी के आखिर में ‘वान’ शब्द होता है, वे बड़ेही झगड़ालू होते हैं।

जैसे एक्केवान, गाड़ीवान, पीलवान, और दरबानइत्यादि। बीरबल ने स्वीकृति में कहा, ‘हाँ मिहरबान! बादशाह झेंप गये,क्योंकि बीरबल ने उनकी भी उन सबों की कोटि में ही गणना की।’

आपकी बारी कैसे आती?

बादशाह ने बीरबल से कहा, ‘जो बादशाह होता’ वह सदैव हीशासन करता रहता तो कैसा अच्छा होता?

बीरबल ने तत्काल स्वाभाविक नम्रता पूर्ण उ्रूद्गार दिया,‘जहांपनाह! आफका कहना बिल्कुल उचित है किन्तु यदि ऐसा होतातो भला सोचिये कि आप बादशाह कैसे होते?’ बादशाह बीरबल केव्यंग्य को समझ चुप हो गये।

बुला कर ला

एक दिन बादशाह ने सोते से उठकर हाथ मुंह धोने के बादनौकर से कहा बुला कर ला मगर यह नहीं कहा फलां आदमी कोबुलाकर ला। नौकरों को बादशाह से पूछने का साहस न हुआ औरइधर उधर दौड़ाने लगे।

मगर बुलाकर लावें किसे आखिर वह आदमीदौड़ता हुआ बीरबल के बास गया और सारा हाल कह सुनाया। बीरबलने कहा बादशाह हजामत बनवाना चाहते हैं। वह हजाम को लेकरबादशाह के पास गया। बादशाह ने खुश होकर पूछा कि किसके कहनेसे लाये? नौकर बोला सरकार बीरबल के कहने से लाये। बादशाहने खुश होकर बीरबल की तारीफ की।

उतने पांव पसारिये जितनी लम्बी सौर

एक बार अकबर बादशाह के दरबारियों ने राजा से कहा किआप छोटी-छोटी बातें भी बीरबल से पूछा करते हैं, हम लोगों के रहतेहुए हमारे ही सामने के आए हुए कि आप प्रतिष्ठा करते हैं जिससे हमारेसम्मान को धक्का लगता है।

बादशाह बोले तुम लोगों का ऐसा सोचना गलत है। बीरबलभी बुद्धिमान तथा नीतिकुशल है इसमें उससे मुकाबला कोई नहीं करसकता। यही वजह है कि सब बातें उससे पूछ लेता हूं। दरबारियों कोये बातें उस समय ऐसी लगी जैसे घाव में नमक। पर कहते ही क्या?

सबको चुप देख बादशाह बोले - अच्छा यदि तुम लोगों को इस बातका गर्व है कि हम लोग ज्यादा चतुर हैं तो आज सभी की बुद्धइ कीपरीक्षा होगी। जो उसमें उ्रूद्गाीर्म होगा बीरबल के स्थान को प्राह्रश्वत करेगा।

अपनी-अपनी अक्ल का जिसे घमण्ड था वे यह सुन बड़े प्रसन्न हुए।

यह कह कर बादशाह ने दो हाथों की रजाी मंगवाई। हुक्म पाते हीनौकरों ने रजाई लाकर रख दी। भरी सभा में बादशाह सब दरबारियोंको सम्बोधित कर बोले कि देखो मैं लेट जाता हूं तुम लोग क्रमशः

इस रजाी से हमारा बदन ढकने की कोशिश करो। ध्यान रहे कि शरीरका एक हिस्सा भी खुला न रहने पाये। इसमें तुम सब लोगों में सेजिस किसी को भी सफलता मिलेगी उसे ही बीरपल का पद प्राह्रश्वतहोगा। यह सुनके सभी दरबारी बारी-बारी से रजाी ओढ़ाने का प्रयत्नकरने लगे। किन्तु कोी भी कृतकार्य न हो सका क्योंकि मनुष्य प्रयाः

साढ़े तीन हाथ के होते हैं। बादशाह भी सामान्य डील डौल के न था।

दो हाथ का रजाी से बदन नहीं ढका जा सकता। अपने अपने स्थानसे तो दरबारी बड़े ही प्रसन्न होकर उठते। किन्तु जब प्रयत्न मेंविफलहोते तो निराश होकर अपने-अपने स्थान पर जाकर बैठ जाते।

इस सभा को कोई सदस्य बादशाह के कहने के मुताबित उन्हें ढक नसका। लाचार बादशाह उठ खड़े हुए और बोले कि देखो आप लोगोंकी अपनी बुद्धिमानी।

इसी बूते पर इतना जोश था अब बुद्धि कहां गई। यदि बीरबलइस वक्त होते तो अवश्य ही अच्छी तरह से इसी रजाी के द्वारा अंगप्रत्यंग ढक दिए होते। यह तो एक मामूली सा काम था। बड़ा कामकैसे आप लोगों से होगा।

बादशाह ने तुरन्त नौकर को बीरबल को लाने का आदेशदिया। बीरबल आए तथा अपने स्थान पर अदब से बैठ गये। बादशाहने उन्हें अनपे पास बुला रजाई हाथ में दे सब बाते बतला दी।

बादशाहलेट गये। बीरबल ने रजाी से ढ़कर देखा कि रजाई छोटी है। तबउन्हों ने राजा को अपने पैर मोड़ने को कहा। पैर मोड़ते ही रजाई सेढक दिया। जब बदन अच्छी तरह ढक गया तो बीरबल ने कहा किउतने पांव पसारिये जितनी लम्पी सौर यानी उतना ही पैर फैलायेजितनी रजाी हो यह सुन राजा ने दरबारियों को सम्बोधित कर कहाकि देखी आपने बीरबल की चतुराई। दरबारी यह बात सुन मन हीमन में बहुत शर्मिन्दा हुए।

सिर के बाल मुंडवा दूंगा

दिल्ली नगर में बड़े सुप्रतिष्ठित और विद्वान, पंडित रहते थेउनके श्रेष्ठाचरण से दरबार में उनका बड़ा मान था। पंडित जी कास्वभाव था कि वह बिना समझे बूझे किसी कार्य में हाथ नहीं डालतेथे और जिसबात को मुख से एक बार कह देते उसकी प्राणपण सेपालन करते। इससे उनका मित्र समुदाय सदा खुश रहता। एक दिनऐसी घटना घटी कि जब पंडित जी चौके में बैठकर भोजन करते समयपरोस कर रखे गए खाने में बाल निकला तो अपनी स्त्री से बोले देखो

आज तो मैं तुम्हारी पहली भूल के कारण तुम्हें क्षमा करता हूं पर फिर ऐसी असावधानी करोगी खाद्य पदार्थ में एक भी बाल निकलेगा तोतुम्हारे सीर के बाल मुंडवा दूंगा। हरि इच्छा बलवान। यद्यपि बेचारीस्त्री अपने स्वामी का जिद्दी स्वभाव समझकर भयभीत रहा करती थीऔर भोजन बनाने या परोसने के समय अपने बालों को खूब हीसम्भाल कर बांधे रहती थी। परन्तु होनी कौन रोक सकता है वह तोहोकर ही रहती है। कुछ दिनोंपरांत एक दिन जब उक्त पंडित जी फिरभोजन करने बैठे तो उनके खाने की सामग्री में एक बाल निकला।

पंडित जी बहुत नाराज हुए और अपनी स्त्री के बाल मुंडवा देने केलिए नाई को बुलवाया। अपने स्वामी को नितान्त क्रोधित देख करस्त्री ने भीतर से किवाड़ बन्द कर लिया। पंडित जी ने हजार डांटफटकार सुनाई परन्तु स्त्री ने किवाड़ नहीं खोला। इतना सब हो जानेपर भी पंडित जी अपनी जिद्द पर तुले ही रहे। स्त्री ने सोचा अबइस प्रकार काम चलना कठिन दिख पड़ता है। कोई उपाय तत्कारकरना चाहिे। उसने एक आदमी को शीघ्र भेजकर अपने भाईयों कोसहायता के लिए बुलवाया।

उसके चार भाई थे अपनी बहन को इस प्रकार अपमानित होतेसुन उन्हें अपनी बहनोई की हठवादिता पर खेद हुआ। उसके उधर काउपाय सोचने लगे। इतने में उनके बड़े भाई की बीरबल से पुरानापरिचय होने का स्मरण हो आया। वह तत्क्षण बहन के उद्धार का उपायपूछने के लिए बीरबल के गर पहुंचा। उस समय बीरबल चारपाई परपड़े पड़े किताब पढ़ रहा था अपने मित्र का सन्देश सुन उसे पासबुला कर उसका कुशल समाचार पूछा। वह अपनी बहिन की दुर्दशाका आद्योपरान्त कारण बतलाकर बोला - मैं आपसे अपनी बहिन केउद्धार की तरकीब पूछने आया हूं। मेरी मदद कजिए।

बीरबल बोला तुम चारों भाई नंगे सिर होकर अपने बहनोई केपास इस ढंग से जाओ मानों कोई मर गया हो तब तक मैं आ पहुँचताहूं। इधर पण्डित जी ने स्त्री के द्वार न खोलने पर क्रुद्ध होकर नौकरोंसे कहा - अभी बढ़ई को बुलवा करदरवाजे तोड़ डालो। इसी बीचवे चारों भी नंग धड़ंग सर खोले आ पहुंचे। इनके आने के थोडीदेर पश्चात्‌ बीरबल भी दाह संस्कार का सामान लिए हुए आया पण्डितजी के एन द्वार पर टिकटिकी बांधने लगा। उधर से स्त्रियों के भाइयोंने पण्डित जी को जबरदस्ती चारों तरफ से कपडे से ढक करकफनियाना प्रारम्भ किया। जब पमअडित जी ने चीक पड़ मचाया तोवे क्रोधित होकर बोले - खबरदार। चुपचाप पड़े रहो। बिना तुम्हेंकफनियाये किसकी मजाल है जो मेरी वहन को हाथ लगाये। वेपण्डित जी को बांध कर बीरबल के पास ले गये। इस नवीन कौतूहलको देखने के लिए वहां पर आदमियों का जमघट सा लग रहा था।

अपने पड़ोसियों के सामने अपनी दुर्दशायें देख रही थी पति को भाईयोंसे गिड़गिड़ाते देख रही थी। पति को भाईयों से गिड़गिड़ाते देख उसेदया आ गाई और उसका पवित्र हृदय धर्मसागर में गोते मारने लगा।स्त्री ने कहा चाहे जो हो मैं पति की ऐसी दुर्दशा अपनी आंखों सेनहीं देख सकती। वह मेरा देवता है उनके क्रोध करने से मेरा सर्वनाशहो जाये। पति की हंसी कराकर कुल्टाएँ भले ही प्रसन्न हो सकती हैंपरन्तु पति परायण नहीं। किवाड़ खोलकर बाहर आई अपने भाईयों सेउसे छोड़ देने का आग्रह करने लगी। भाईयों की बहन के कहने परअसल न करते देख बीरबल स्वयं उनसे क्षमा प्रार्थी हुआ और उसकेपति को छोड़ देने की आज्ञा दी। पण्डित जी छोड़ दिए। अन्त मेंउन्हें अपनी हठधर्मी का बड़ा पश्चा्रूद्गााप हुआ।

इस खास में बीरबल का अभिप्राय था कि पति कीजीवितावस्था में स्त्री का मुण्डन नहीं हो सकता था। पहले पति मरले तो औरत का मुण्डन किया जाए। बीरबल पणअडित जी कोछुड़वाकर उनकी औरत का कष्ट निवारण कर लौट गया। चारों भाईअपनी बहिन के घर महेमानी करने के लिए टिके रहे। धन्य है हमारीउन भारत ललनाओं को जो अपने पर कठिन संकट उठा कर पतिव्रताकी रक्षा करती हैं, ऐ देवियों पति से कष्ट उठाकर भी पति सेवा करनातुम्हरा ही काम है। अपने पति को कष्ट में देख भला तुम कैसे सहनकरती हो। पति को ईश्वर तुल्य मानकर पूजन करने वाली संसारप्रसिद्ध एक मात्र भारत ही हैं।

उड़द की दाल और बनिये की चतुराई

ग्रीष्म ऋतु थी। बादशाह तथा बीरबल महल के ऊपरी हिस्सेमें बैठे यमुना का प्रवाह देख रहे थे। ठण्डी हवा से दोनं का मनप्रफुल्लित हो रहा था। आपस में बातें हो रही थीं। बादशाह ने बीरबलसे पूछा कि आदमियों में सबसे चतुर किस जाति के लोग होते हैं।

बीरबल ने उ्रूद्गार दिया कि जहांपनाह! बनिये सबसे चतुर होते हैं।

बादशाह को बिना प्रत्यक्ष देखे विश्वास न होता था। बीरबल से इसकेलिए प्रमाण मांगा। बीरबल ने तत्काल नौकर को बुलाकर बाजार सेउड़द की दाल मंगवाई। तत्पश्चात्‌ नगर के प्रतिष्ठित सात-आठ बनियोंको बुलवाया। बनिये लोग बीरबलका संदेश सुनकर पहले तो अतिघबराये। किन्तु लाचार हो महल में पहुंचे। बादशाह भी उस समयउपस्थित थे। उस समय बीरबल ने सब बनियों के हाथ में कहा किइस अनाज का नाम बताओ। सब बनिये मन में सोचने लगे कि यहतो है, वस्तु ऐसी जिसे प्रायः सभी लोग जानते हैं। इसकी पैदावारबहुधा सभी जगह होती है। आखिर बीरबल ने हम लोगों से पूछा हैतो इसमें अवश्य कुछ दाल में काला है। इसलिए समझ बुझकर उ्रूद्गारदेने से अच्छा होगा अन्यथा पछतावे के सिवा कुछ न हाथ लगेगा।

बनियों के मुखिया ने हाथ जोड़कर निवेदन किया कि हुजूर! हम सबआपस में इसका निश्चय कर बतलायेंगे। बीरबल ने उनकी प्रार्थनास्वीकार कर ली। बादशाह यह सब चरित्र देख रहे थे।

सब बनियों ने मिलकर आपस में तर्क-वितर्क किया। उन्होंनेसोचा कि यदि यह कहते हैं कि यह दाल उड़द की है तो बादशाहखुश न होंगे, क्योंकि यह तो वह भी जानते ही होंगे। खंडन-मंडन केसिवा अभी बनिये किसी निश्चय पर न पहुंचे। तब बीरबल ने पुनःसम्बोधित कर कहा - क्या अभी तक आप लोगों की एक राय नहींहुई? यह सुन बनियों का मुखिया थोड़ी सी उड़द की दाल हाथ मेंले बोला कि मेरे मालिक वह तो मूंग की दाल है। दूसरे बनिये की

ओर इशारा किया। तो उसने अर्ज की कि जहांपनाह यह अनाज मटरसे तो कुछ छोटा है किन्तु नाम अच्छी तरह याद नहीं आता। तीरसेने तत्काल उ्रूद्गार दिया अलीजहां! यह तो मिर्च मालूम होती है। बादशाहबनियों की इस बे सिर पैर की बातों को सुन बड़े खिजलाए और बोलेकि क्या तुम लोग अपनी बुद्धि को कहीं रख आए हो? यद उड़दकी दाल है। बनियों ने एक स्वर में बादशाह का समर्थन करते हुएकहा कि अन्नदाता आप टीक कह रहे हैं, वही है बिल्कुल वही है।

बीरबल ने पुनः प्रश्न किया कि वही वही क्या करते हो? इस कानाम बतलाइये! बनिये बोले - हजूर वही जिसका नाम अभी-अभीअन्नदाता ने लिया है। बीरबल ने भी अपने बाल धूप में नहीं पकाएथे। बनियों की चाल सारी बातों को सून बोले कि अन्नदाता ने जोकुछ भी कहा उसका मुझे स्मरण नहीं है, आपको बतलाने में क्याआपि्रूद्गा है? बनिये बोले - सरकार हम लोग भी कुछ भूल रहे हैं।

यह सुन बादशाह से चुप न रहा गया। वे बोले मैंने उड़द की दालकहा। बनियों ने एक स्वर से कहा हां, हां, गरीब परवर वही। यहसब होते हुए भी बनियों ने अपने मुख से उड़द की दाल का नामनहीं लिया।

बादशाह ने उनको जाने की इजाजत दे दी। जब बनिये चलेगये तो बीरबल ने बादशाह से कहा कि देा आपने बनियों की चतुराई?

बादशाह बड़े खुश हुए। बीरबल तुम भी क्या हो एक से एक मजेदारबातें दिखाते हो। अब तक मैंने नाम अवश्य सुना था किन्तु आज तुमनेसाक्षात्कार करा दिया।

ईश्वर जो कुछ करता है अच्छाई के लिए ही

बादशाह और बीरबल एक दफा जंगल में शिकार खेलने गयेथे। रास्ते में बादशाह को असावधानी से कोई पैना हथियार उन्हीं कीउंगली में लग गया जिससे बादशाह की उंगली जाती रही। जब बादशाहने बीरबल को यह समाचार सुनाया तो वे अफसोस प्रकट न करकेकहने लगे, ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही करता है। बादशाहनीरस बात सुनकर बहुत अप्रसन्न हुए। जब महल में वापिस आए औरदूसरे दिन दरबार में उपस्थित हुए तो अन्य समझदारों से भी इस बातका जिक्र किया और जो बीरबल से भीतरी द्वेष रखते थे, उन्हें उनकीनिन्दा का अवसर मिला और जो उनसे बन पड़ा नमक मिर्त मिलातेहुए बीरबल की शिकायत करने लगे। बादशाह को उन पर क्रोध पहलेसे ही था इन बढ़ावे की बातों ने उस अग्नि में घी का काम किया।

बीरबल उस समय सभा में उपस्थित न थे बादशाह ने उन्हें पत्र द्वारासूचना दे दी कि अब पुनः दरबार में हाजिर न हो और न हमारे सम्मुखही कभी हों।

बीरबल आत्माभिमानी पुरुष रत्न थे। परमात्मा ने उन्हें बुद्धि दीथी, उसी के बल पर वह किसी की परवाह न करते थे। बादशाह केइस हुक्म को पढ़कर वे जरा भी विचलित न हुए, जो पत्रवाहक बादशाहका पत्र लाया था उसी के हात में एक लाईन लिखकर बादशाह केपास भिजवा दिया। पत्र में बीरबल ने लिखा था कि यह हुक्म सम्भवतः

अच्छाई के लिए ही हुआ है। इस प्रकार महीनों गूजर गये। इधरबीरबल के न रहने से बादशाह के कुछ कार्यों में हजां भी होने लगा।

किन्तु उन्हें बुलाने का हुक्म नहीं दिया। बादशाह का ख्याल था किबीरबल स्वयं आयेंगे, हम क्यों अपनी बात खराब करें? लेकिन जबबादशाह को बीरबल के आने की कोई आशा न रही और समय दिनव दिन बीतने लगा तो उन्होंने को बुलाने के लिए उपाय सोचना शुरूकिया।

संयोगवश बादशाह एक दिन कुछ अन्य दरबारियों को साथलेकर शिकार खेलने जंगल में गये। वहां शिकार के पिछे बादशाहदौड़े। शिकार कभी पास कभी दूर हो जाता उससे बादशाह आशाशउसके पीछे दौड़ते ही गए। जिसे उनके अन्य साथी भी तितर-बितरहो गये। पहाड़ी रास्ते उन्हें मालूम न था, शिकार के पीछे चलते सूर्यास्तहो गया।

तब बादशाह निराश हो लौटे तो विकराल मूर्ति दिखाई पड़ी, जिन्हें देखकर बादशाह को भय उत्पन्न हुआ। धीरे धीरे वे मूर्ति पासआ गई और बादशाह को अपने साथ लेकर एक मकान पे पहुँची जोकिसी देवता का मन्दिर था। बादशाह की समझ में उन दोनों विकरालमूर्तियों का भावार्थ नहीं आया। जब बादशाह वहां पहुंच गये तो उनसेस्नान करने को कहा गया, किन्तु उन्होंने आनाकानी की तो उनकी हत्याकरने की धमकी उन दोनों मूर्तियों ने दी। मरता क्या नहीं करता?

बादशाह ने स्नान करना स्वीकार किया। उन्हें भोजन कराया गया। यद्यपिमारे डर के बादशाह से खाना नहीं खाया गया। जब स्नान भोजन सेनिश्चित हो गया तो उन दोनों विकराल मूर्तियों ने उन्हें नंगा करके देवीकी मूर्ति के सामने खड़ा किया और एक तेज छुरा चमकाते हुए बादशाहसे बोले हम प्रतिदिन एक मनुष्य की बलि देवी को चढ़ाते हैं, आजकोई न मिल सका था, संयोगवशतुम मिल गये। एतएव आज तुम्हींको बलिदान करेंगे।

बादशाह यह सुनते ही अवाक्‌ से रह गए। उनकेशरीर का रहा-सहा खून भी सूख गया। वे कि कर्तव्य विमृढ़ से रहगये देर तक वे चेतनाशून्य हो जमीन पर गिर पड़े रहे। जब चेतनाका कुछ संचार हुआ तो रोने विलोपने लगे। लेकिन वहां कौन सुनताथा।

अन्तर में कलपने के बाद बादशाह बोले कि ईश्वर के लिएमुझको छोड़ दो ऐता अनर्थ मत करो। मैं तुम लोगों का बादशाह हूंपरन्तु इन सब बातों का कुछ भी असर उन राक्षस मूर्तियों पर न पड़ा।

बलि देने की सारी तैयारी हो चुकी थी। केवल छुरा चलाने की देरथी। संयोगवश उन राक्षस मूर्तियों में से एक ने बादशाह के अंगप्रत्येकों पर ध्यान दिया तो उसे एक उंगली कटी दिखाई दी। निराशहोकर उसने अपने दूसरे साथी से कहा कि यह तो खण्डित है। इसकीउंगली कटी है, देवी अप्रसन्न होगी। यह कहकर उसने बादशाह कावध नहीं किया। कपड़े-ल्रूद्गो पहनाकर उन दोनों ने बादशाह को उनकीमांगे बतला दिया। किसी तरह वहां से छुटकारा पाकर वे बेहताशा भागे।

जान बची लाघों पाए। बादशाह अर्धरात्रि के करीब महल में आए।

बिस्तर पर कए किन्तु रात भर नींद नहीं आई सारी रात देवी के म्नदिरकी घटना उनके नेत्रों के सामने झूलती रही। यही सब देखते देखतेसवेरा हो गया। बिस्तर छोड़कर नित्यकर्म से फारिग होने के लिए वेदूसरी जगह चले गये। हाथ मुंह धो स्नान किया। तत्पश्चात्‌ ईश्वरचिंतन में लगे थे। ठीक उसी वक्त उनको बीरबल की बात का स्मरणहो आया। उसकी समस्त रोमावलियां खड़ी हो गई। उनके जी मेंविचारा कि बीरबल ने सच ही कहा था ईश्वरजो कुछ करता है अच्छाईके लिए ही यदि उंगली उस दिन शिकार खेलते वक्त नष्ट न हो गईहोती तो निःसंदेह मेरी जान आज रात में चली गई होती। मैंने उसब्राह्मण की बात की अवहेलना की, जिसका यही नतीजा हुआ कि कलपरेशानी उठानी पड़ी। अपनी दुर्बुद्धि पर बादशाह को बड़ा पश्चा्रूद्गाापहुआ उन्होंने स्वयं बीरबल के घर जाने की ठानी उन्होंने प्रथम एकगुह्रश्वतचर को भेजा जिसने यह पता लगाया और आकार बादशाह से बोलेकि बीरबल घर परही हैं।

बादशाह बीरबल के यहां पहुंचे। बीरबल ने उन्हें देखसत्कारपूर्वक उच्चासन पर बैठाया। तदन्न्तर कुशल प्रश्न पूछ बादशाहने गदगद कण्ठ से बीरबल को गले से लगा लिया और बोले मेरेअएपराध को भूल जाओ। मैंने तुम पर बड़ा अत्याचार किया है। जबतक तुम हृदय से मुझे क्षमा प्रदान न करोगे मुझे सन्तोष न होगा।

बीरबल नम्रतापूर्वक बोले कि बेचैनी का कारण है मैं तो सदा आपकाही ताबेदार हूं जो आज्ञा हो करने को हर वक्त प्रस्तुत हूं। आपकी उनबातों का मुझे तनिक भी मलाल नहीं। मैंने आपका नमक खाया है औरखाता हूं। उसका मैं इस बुरी तरह बदला न चुकाऊंगा। जब तक दमरहेगा तन मन से आपकी ही भलाी का प्रयत्न करूंगा। बादशाह यहसुन और भी दयार्द हो गए पिछली रात का सारा हाल बीरबल कोउन्होंने बतला दिया और कहा कि तुमने जो बात कही थी आज वहसत्य प्रमाणित हुई। तत्पश्चात्‌ बीरबल से उन्होंने पूछा कि जब मैंनेतुमको सभा में न उपस्थित होने का आदेश दिया था तो तुमने पुनःवही दुहराई थी कि ईश्वर जो करता है अच्छाई के लिए ही, तो मेरेलिए तो यह बात बिल्कुल घट गई किन्तु तुमने जो अपने लिए कहाथा वह भी समझाओ कि कैसे तुम्हारे लिए अच्छा हुआ।

बीरबल बोले कि जब आप आखेट को गए थे यदि मैं साथहोता तो अवश्य ही जाता और वही नहीं आपके पीछे जहां जाते वहांतक जाता और यदि कल का संयोग उत्पन्न हुआ होता तो आपइसलिए बच जाते, क्योंकि आप खण्डित थे किन्तु मैं पूर्ण की वजहसे बेमौत मारा जाता। इस तरह मेरी तो जान बच गई। बादशाह बीरबलकी होशियारी की बात सुन कर बहुत ही प्रसन्न हुए और उनको अपनेसाथ ही दरबार में लाए यह सम्मान देख तब उनसे द्वेष रखने वालेअन्य दरबारी और भी जल गए, किन्तु कर ही क्या सकते थे।

इस प्रकार बादशाह और बीरबल का परस्पर फिर हास्य विनोदहोने लगा और दोनों का हृदय फिर उसी प्रकार जुड़ गया, देखने सेयह मालूम होता था जैसे कभी यह अलग हुए भी न हों।

बादशाह ने यह स्वीकार किया ईश्वर जो कुछ करता है अच्छाईके लिए ही।

देने वाले का हाथ नीचा

एक दफा राजा अकबर बीरबल से बोले देने वाले का हाथहमेश ऊंचा ही रहता है और लेने वाले का हाथ सदैव इसके विपरीतयानि नीचा रहता है, ऐसा देखा जाता है।

बीरबल बोले कभी इसके विपरीत भी होता है, यानि देने वालेका हाथ नीचा और लेने वाले का हाथ ऊंचा होता है।

बादशाह यह सुनकर चकित होकर बोले - यह कब होता है।

बीरबल ने तुरन्त जवाब दिया कि हुलास लेते समय देने वालेका हाथ नीचा और लेने वाले का हाथ ऊंचा होता है।

बादशाह यह उ्रूद्गार सुनकर बहुत प्रसन्न हुए।

बीरबल द्वारा न्याय

एक बार दो पड़ोसियों में आम के पेड़ को लेकर झगड़ा होगया। उनमें से एक ने जिसका नाम अमित था, बादशाह के यहां जाकरफरियाद की कि राजेश नामक मेरा पड़ोसी मेरे लगाये हुए आम केपेड़ पर दखल करना चाहता है। सात वर्षों से मैंने उसकी देखभालअनेक परेशनियां झेलकर की है। इसलिए हुजूर के यहां बड़ी उम्मीदसे आया हूं कि मेरा न्याय किया जाए। इस मामले के निबटारे काहुक्म बीरबल को मिला। बीरबल ने दोनों पड़ोसियों को बुलवाया औरउनकी पातें सुनीं . अमित ने पूर्व कथा कह सुनाई। बीरबल ने उसेजाने का आदेश दिया। फिर राजेश से पूछा क्या यह आम का पेड़तुम्हारा है? राजेश ने नम्रता पूर्वक उ्रूद्गार दिया, हां हुजूर, वह मेरा हीहै। सात साल में मैंने उसकी हिफाजत की, आज जब उसमें फल लगेतो अमित उसे हथियो की कोशिश कर रहा है। उसकी बात सुनबीरबल बोले, क्या उस पेड़ की कोई चौकसी भी करता है? राजेशने उ्रूद्गार दिया कि मैं तथा अमित की राय से एक चौकीदार उसकीचौकसी करता है। यह सुनकर बीरबल ने चौकीदार को बुलाया औरराजेश को जाने की आज्ञा दे दी। फैसला कल पर टाल दिया गया।

राजेश घर चला आया। चौकीदार से बीरबल ने कहा कि तुमकिसकी तरफ से रखवाली करते हो? चौकीदार ने उ्रूद्गार दिया कि मेंदोनों की तरफ से देखरेख करता हूं। एतएव मैं यह नहीं कह सकताकि पेड़ वास्तव में किसका है। बीरबल ने चौकीदार को वहीं रहनेका हुक्म दिया और खुद इस मामले पर विचार करने लगे। जब शामहो चली तो बीरबल ने चौकीदार से कहा कि तुम बारी-बारी से राजेशतथा अमित के घर जाना और कहना कि आम के पेड़ के पास हथियारबन्द डाकू खड़े हैं और आम के फल तोड़ने को तैयार हैं जाकर उसकीरक्षा करो। तत्पश्चात्‌ बीरबल ने चौकीदार के साथ अपने नौकरों कोकर दिया तथा उन्हें समझा दिया कि तुम दोनों छिपकर राजेश तथाअमित की बात सुनना और उनमें जो बातचीत हो, मुझे आकरबतलाना। आज्ञा पाकर दोनों कर्मचारी तथा चौकीदार चले, चौकीदार नेबीरबल की कही बात उसकी स्त्री से बता दी। और फिर राजेश केघर की ओर चला। संयोग वश राजेश भी उस समय घर पर नहींथा एतएव उसकी स्त्री को ही बीरबल द्वारा बतलाई बात बताकरचौकीदार ने अपने घर का रास्ता लिया, बीरबल ने जिन दो नौकरोंको भेजा था, उनमें से एक तो रजेश के तथा दूसरा अमित के मकानके पास ही छिपकर बैठ गया। जब रात हो गई तो अमित घर आया,अमित बोला कि इस अंधेरी रात में बिना खाये पिये शत्रुओं का सामनाकरने कौन जाए? चाहे आम रहें चाहे जहन्नुम में जायें। मैंने तो यहसोचा था कि यदि तरकीब लग गई तो आम का पेड़ हाथ आ जायेगा,नहीं तो न सही! मेरा उसमें लगा ही क्या है? मैंने तो राजेशको परेशानकरने के लिए यह खेल रचा था।

अमित की बात को बाहर खड़ा हुआ नौकर सुन रहा था। घूमफिर कर उधर राजेश भी अपने घर पहुँचा। स्त्री द्वारा आम तोड़े जानेकी खबर मिली तो वह बिना किसी विलम्ब के आम के बाग की ओरशत्रुओं का मुकाबला करने चला। उसकी स्त्री ने जब भोजन कर लेनेको कहा तो वह बात काटकर बोला कि भोजन तो वहां से वापसआकर भी कर करता हूं, लेकिन यदि इस मौके पर अभी न जाऊंगातो आज साल भर की मेहनत मिट्टी में मिल जायेगी।

बारबल का दूसरा दूत सारी बातें सुन रहा था। जब राजेश कंधपर लट्‌ठ रखकर बाग की और बढ़ा तो नौकर भी अपने दूसरे साथीके साथ महल लौट आया।

दूतों ने बीरबल से दोनों की बातें कह सुनायी। जब दूसरे दिनवादी तथा प्रतिवादी उपस्थित हुए तो बीरबल ने दोनों को कहा किआम का पेड़ तुम दोनों का है। मेरे पास अब तक जो सबूत आयेहैं उससे यहां पता चलता है इसलिए इस पेड़ पर दोनों का ही समानअधिकार है। पेड़ पर लगे फल आधे-आधे तुम दोनों को ही बांट दियेजाएंगे। अब रह गया पेड़ तो वह काट डाला जायेगा और इसकीआधी-आधी लकड़ी तुम दोनों को बांट दी जायेगी।

अमित इस न्याय से बहुत खुश हुआ। बीरबल ने जब अमितसे पूछा तो उसने स्वीकृति में सिर हिलाकर कहा कि आप जो कुछभी आज्ञा देंगे मुझे शिरोधार्य होगी। राजेश न्याय सुनकर एकदम स्तब्धरह गया। उसने गिड़-गिड़ाकर बीरबल से प्रार्थना की, दीवान जी! वहपेड़ आप भले ही अमित को दे दें, लेकिन उसे कटवाने का हुक्मन दें। यह मुझसे न देखा जा सकेगा। राजेश का कण्ठ भर आया।बीरबल को विश्वास हो गया कि यह पेड़ निश्चय ही राजेश का है।

उन्होंने नौकर से अमित को सजा देने को कहा अमित समझ गया किअसलियत छुप नहीं सकती। उसने बीरबल से दया की भीख मांगी। राजेश को आम का पेड़ मिला। उसने बीरबल से अमित को क्षमा करनेको कहा।

बरसात के चार माह

अकबर ने सुन रखा था कि बीरबल गणित में काफी योग्यहै। इसलिए एक बार उसकी परीक्षा लेने के लिए बादशाह ने पूछा“अच्छा बीरबल, बताो बारह में से चार गए तो शेष क्या बचा?”

‘राख!’ बीरबल ने तत्काल जवाब दिया।

अकबर यह सुनकर अचम्भे में पड़ गया। पूछा, यह कैसे?

बीरबल ने अपने जवाब में बताया, जहांपनाह, एक साल बारह माह काहोता है। अगर उन बारह महीने में से बरसात के चार माह निकालदिए जाए तो राख के अलावा क्या बचेगा?

भूल का एहसास

एक दिन की बात है बादशाह ने बीरबल से मजाक में कहामुझे पता चला है कि तुम्हारी बीवी वेगम खुबसूरत है। यह सब हैक्या?

बीरबल ने जवाब में कहा, हुजूर, मैं अपनी बीवी को बेहदखूबसूरत माना करता था, पर जिस दिन से हम साहिबा के दर्शन किएहैं, तब से मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया वाकई आपकी बीवीअधिक खुबसूरत है।

बादशाह यह जवाब सुनकर शर्मिन्दा हो गए।

बैंगन का नहीं बल्कि आपका नौकर हूं

बैंगन की सब्जी की बादशाह प्रशंसा कर रहे थे। बीरबल भी बादशाह की हां में हां मिलाते जाते थे, साथ ही अएपनी तरफ से भी दो चार शब्द उनकी प्रशंसा में कह गये।सहसा एक दिन बादशाह के जी में आया कि देख बीरबल अपनी बात की कहां तक निभाते हैं यह सोचकर बादशाह बैंगन की निन्दा करने लगे।

संयोगवश उस दिन भी बीरबल ने बादशाह की बात का समर्थन किया तथा उसके दुर्गूण आदि भी बताये। बादशाह को यह सुन बहुत ताज्जुब हुआ और बोले, तुम्हारी बात का यकीन नहीं, कभी प्रशंसा करते हो, कभी निन्दा करते हो।

जब मैंने एक दिन बैंगन की तारीफ की थी तो तुमने भी सराहना की थी और आज दिन बैंगन की तारीफ की थी तो तुमने भी सराहना की थी और आज निन्दा भी की, ऐसा क्यों? बीरबल ने नम्रतापूर्वक उ्रूद्गार दिया, मैं बैंगन का नहीं बालक आपका नौकर हूं। बादशाह इस उ्रूद्गार से खुश हुए।

बादशाह के पांच प्रश्न

बादशाह अकबर दरबार में पधारे थे। सभासद भी मौजूद थे।

इसी बीच बादशाह के ध्यान में पांच प्रश्न आये। उन्होंने अपने सभासदों से वे प्रश्न पूछे। बीरबल उस समय मौजूद न थे। वे पांच प्रश्न इस प्रकार थे।

(१) फूल किसका अच्छा? (२) दूध किसका अच्छा? (३) मिठास किसकी अच्छी? (४) प्रूद्गाा किसका अच्छा? (५) राजा कौन अच्छा?

बादशाह के इन सवालों का सुनकर सभासदों में मत-भेद उत्पन्न हो गया। किसी ने गुलाब को अच्छा बताया तो किसी ने कमल को। इसी तरह दूध के लिए भी किसी ने गाय तो किसी ने भैंस व बकरी आदि के दूधों को अच्छा बतलाया। मिठास में किसी ने गन्ने को किसी ने चीनी को बतलाया। प्रूद्गो में किसी ने केले को तो किसी ने नीम को गुणकारी बतलाया। (राजा कौन अच्छा है) के उ्रूद्गार में एक चापलूस सभासद ने कहा कि बादशाह अकबर अच्छे! बस, फिर क्या था, इसका सभी ने एक स्वर में समर्थन किया।

बादशाह को इन लोगों की स्वामिभक्ति पर प्रसन्नता तो अवश्य हुई किन्तु अनपे सवालों का यथोचित उ्रूद्गार न पाने से उन्हें सन्तोष नहीं हुआ। वे बीरबल की प्रतीक्षा में थे, क्योंकि वे जानने थे कि प्रश्नों का सही उ्रूद्गार दे सकने में वे ही समर्थ हो सकेंगे। तभी बीरबल आ पहूँचे और बादशाह की बगल में अपने स्थान पर बैठे

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