जीजीविषा Aana द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जीजीविषा

जिंदगी उस रेत की तरह जिसे मुट्ठी बंद करके मजबूती के साथ पकड़ो फ़िर भी वो फिसल ही जाती है | जिन्दगी में खुसियाँ तो मायने रखती है लेकिन गम ...गम का हाल क्या बताये जब साथ होता है तो दर्द देता है और जब गम से निजात मिल जाये तो वो जिंदगी में एक सुकून भरा पल दे जाता है | कुछ ऐसी ही कहानी है उत्पल जो एक मध्यमवर्गीय परिवार में पला-बढ़ा और जिंदगी के तमाम उन हसींन पलो को जिया जो खुदा ने उसके लिए बनाये थे |

उत्पल का जनम उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | पिता और माँ का सबसे छोटे पुत्र और उसके चंचल स्वभाव के कारण परिवार में वो सबका चहेता था |

धीरे –धीरे समय अपनी नियमित रूप से बिताता गया | उत्पल ने अपनी ग्रेजुएशन की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया | अब उसने पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए अप्लाई किया | इसी बीच माता –पिता ने उत्पल का विवाह पास के ही एक गाँव में तय कर दिया | कृतिका जो बचपन से भोली थी उसके चंचल आंखे कुछ न कहने पर भी मन के सारे भाव उसके चेहरे पे आ जाते थे | वह अत्यंत सुशील स्वभाव वाली गुणी कन्या थी | उसका गौर रंग उसके मुख के तेज को और मनोहर बनाता था | कृतिका ने इस साल ग्रेजुएशन प्रथम वर्स कि परीक्षा पास की थी |

उत्पल को जब अपने विवाह तय होने कि सुचना मिली वह थोडा चिंतित हुआ | उसे विवाह से ज्यादा अपने स्नाकोत्तर और उसके बाद जीवन में कुछ विशेष करने कि चिंता थी |उसे अपने जीवन कि शिक्षा का मूल्य चुकाना था | इसीलिए उसने निश्चय किया था कि वह भविष्य में एक श्रेष्ठ अध्यापक बनेगा और अपने कर्तव्यों का निर्वाह वह भली-भाति करेगा | इन उलझनों को सुलझाते हुए वह बिस्तर पे करवटे लेता रहा इतने में कब सुबह हुई इसका अंदाजा नही हुआ | अब सुबह के पाँच बज गए थे | उसके मन में कोई बोझ नही था उसके आँखों में कोई चिंता नही थी उसके चेहरे पर एक नयी खुशी थी जीवन में आगे बढ़ने कि अपने कर्तव्यों का वहन करते हुए जीवन में कुछ नया करने की आशा के साथ वह अपने काम में लग गया |

देखते ही देखते विवाह का समय भी नजदीक आ गया , आज ही वह दिन था ,जब विवाह होना सुनिश्चित था | विवाह कि रस्मे हुई ,सब कुछ अत्यंत सहजता से सम्पन्न हुआ | दोनों का जीवन अब एक नये मार्ग पर अग्रसर था | अब विवाह के दो साल बीत गए थे , और उत्पल ने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन में भी अव्वल स्थान प्राप्त किया , और इधर कृतिका ने भी अपना बी.ए. अच्छे नम्बरो से पास किया | अब उत्पल ने अध्यापक बनने के लिए अप्लाई किया और उसने अध्यापक कि परीक्षा उत्तीर्ण कर ली | कुछ महीनो में उसकी जॉइनिंग तारीख भी आ गयी |
अपने जीवन के सपनो को पूरा करने का यह पहला कदम ही था | वह अपनी सफलता को लेकर काफी उत्साहित था, क्यों न हो इसके लिए उसने कितनी कड़ी मेहनत कि थी , कितनी रातो को उसने अथक परिश्रम किया और कितनी ही रातो को उसने जाग के बितायी थी अपने इस सपने को पूरा करने के लिए |

मनुष्य का जीवन कितना ही कठिन क्यू न हो जब परिश्रम से थोडा ही मिलता है तो भी उसे उतनी ही खुशी होती जैसे उसने चाँद को हाथ से छू लिया हो, और ये तो उत्पल कि कितनी रातो और कितने दिनों कि तपस्या का फल था , जो आज उसे मिला था |

आज शादी के बाद उत्पल के तीन साल २ महीने हो गए थे , उत्पल कि पोस्टिंग खलीलाबाद के एक राजकीय विद्यालय में हुई थी , चूकी विद्यालय रहने की जगह से दूर होने के कारण, वह हर रोज सुबह सात बजे ही घर से स्कूल के लिए निकल जाता और शाम को पाच बजे वापस घर आता |अब उत्पल और कृतिका दो नही चार थे | उत्पल के दोनों बच्चें मोनू और अंकित जुड़वाँ थे | शाम को जब उत्पल घर वापस आता तो मोनू और अंकित दौड़ कर पापा से चिपट जाते और चॉकलेट कि ज़िद करते तब उत्पल उन्हें एक – एक चॉकलेट देता और मुस्कुराते हुए वो घर में इधर –उधर दौड़ते हुए खेलते | कृतिका ये सब देखकर मन ही मन आनन्दित होती और उनके इस छोटे से परिवार में आज ढेर सारी खुशियां है|

कहते है सागर को दूर से देखो तो पानी ऊपर ऊपर नजर आता है लेकिन जब पास जाओ तो उसकी गहराई का अंदाजा होता है ज़िन्दगी भी कुछ ऐसी ही अजीब होती है यहाँ सुख है ,तो दुःख भी है और यहाँ होने वाले गम से कोई दूर नही जा सकता | ज़िन्दगी की कठिन से कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए इसके साथ चलना ही सही मायने में जिंदगी है |

उत्पल और कृतिका का छोटा सा परिवार जो एक फूलो कि महकती हुई बगिया सा था कब वहां पतझड़ ने दस्तक दिया किसी को पता नही था | एक दिन सुबह –सुबह उठते हुए उत्पल को अचानक सीने में दर्द उठा और हल्का बुखार भी था, उत्पल ने झट से पैरासिटामाल कि एक गोली ली और अपने काम पर जाने के लिए तैयार था और मोनू व् अंकित जो अब तीन साल के थे विद्यालय जाने को तैयार थे |उत्पल का काम अब थोडा बढ़ भी गया था , उसे सुबह उठ कर ऑफिस जाने से पहले बच्चो को स्कूल ले जाना होता था | मोनू और अंकित व् स्कूल जाने को तैयार थे ,उन्हें स्कूल छोड़ते हुए उत्पल अपने कार्य पर निकल गया |

कुछ दिन और बीतने पर दुबारा सीने में दर्द उठा ,लेकिन यह दर्द पहले से कुछ ज्यादा था और आज भी हल्का बुखार था | आज इस बुखार को लेकर कृतिका भी थोडा परेशान थी | दोनों ने चिकित्सक के पास जाने का फैसला किया | दोनों अस्पताल पहुचे पूरी जांच हुई ,रिपोर्ट में लिखा था ब्लड कैंसर | रिपोर्ट देखकर कृतिका और उत्पल के होश उड़ गए |उन्हें कुछ धक्का सा लगा लेकिन मन में ये आशा थी ,कि मेडिकल साइंस से सब ठीक हो सकता है| दिन तेजी से गुजरते जा रहे थे |

जब सब कुछ शांत और स्थिर होता है तो अचानक से कच शोर होता है जब समुद्र में लहरे ज्यादा शांत होती है ,तो समुद्र में तूफान आने का अंदेशा तभी होता है| सायद कृतिका और उत्पल के जीवन में ये उसी तूफान उसी आंधी कि दस्तक थी , जो उनके सारे सुख और चैन को उड़ाने के लिए आई थी | ज्यो-ज्यो समय बीतता गया त्यों –त्यों दुःख रूपी ये तूफान उनके जीवन में गहराता गया|

अब छ: महीने बीत चुके थे | विद्यालय में उत्पल को अब मास्टर से हेड मास्टर बना दिया गया था | लेकिन उत्पल और कृतिका के जीवन में आये इस तूफान के आगे कोई भी खुशी बहुत छोटी थी | कहते है जब मौत अचानक आती है तो मरने वाले को इसका पता नही होता और वो जब तक जीता है सुकून से जीता है ,लेकिन जब इंसान को पता हो कि वो कुछ ही दिनों का मेहमान है तो आधी मौत तो आ ही गई होती है| लेकिन उत्पल बिना इन कठिनाइयो से घबराए अपने कर्तव्यो पर हमेशा अग्रसर रहा |वह अब भी सुबह उठता अपने कामो को उसी तन्मयता के साथ करता जैसे पहले करता था|कृतिका हर वक़्त उसका पूरा साथ देती | वह सुबह उठती नित्य कर्मो को करने के बाद बच्चो को स्कूल के लिए तैयार करती, उत्पल के लिए फ्रूट्स तैयार करती , उसे समय से दवा देती | अब वह पहले से कही ज्यादा उत्पल का खयाल रखती उसके साथ रूटीन चेक-अप पे जाती उसकि हर छोटी से छोटी जरूरतों का खयाल रखती ,उसे खुद कि भी सुध न थी,उसने अपने जीवन को जैसे तपस्या बना लिया हो |कृतिका इस संघर्स को देख कर उत्पल के मन में जीने कि इच्छा और बढती जाती | उसका ये छोटा सा परिवार उसके जीने की इच्छा को और मजबूत बनाता ,उसे कैंसर से उठे उस असहय्य दर्द से लड़ने कि और ताकत देता | मोनू और अंकित कि छोटी से मुस्कान उसके सारे दर्द भुला देती थी |

अब तीन महीने और बीत चुके थे |उत्पल का अपने जीवन के लिए मृत्यु के साथ उसका संघर्स और कठिन हो गया था| कैंसर अब अंतिम चरण में पहुच चुका था |जीवन और मृत्यु के बीच अब बहुत अकम फासले बचे थे |

आज मंगलवार का दिन था ,उत्पल सुबह उठा आज उसका पूरा शरीर दर्द से बेहाल था | दवाइयों ने भी काम करना बंद कर दिया था | दिमाग ने शरीर का साथ छोड़ दिया था, कुछ भी सोचने या समझने की अब उसमे शक्ति न थी |

दर्द से वह पागल जैसा हो गया था , कृतिका अब भी निरंतर उसकी सेवा में लगी हुई आँखों में अश्रुधारा लिये ,हाथो में दवाइया लिये ,उसे सहलाती हुई पानी का गिलास हाथ में लेकर उसे दवाइया देती है ,अब दरवाजे पर एम्बुलेंस आ चुकी थी ,तभी अंकित भागता हुआ आया और और उत्पल के हाथो को पकड़ लिया , आँखों में मोटे-मोटे आसुओ के साथ पापा –पापा मई हु अंकित ...लेकिन उत्पल का कोई जवाब नही था उसने पहचानने कि शक्ति खो दी थी | छोटे अंकित और मोनू ये सब देख रहे थे और उन्हें कुछ भी नही ज्ञात था कि, क्या हो रहा | तभी दो लोग उत्पल को उठाते हुये बहार लेकर आये, उत्पल का शरीर अब निर्जीव सा जान पड़ता था जो कि सम्हाल में न आने के कारण दरवाजे से निकलते समय धम्म से जमीन पर गिर गया , जैसे-तैसे उसे हॉस्पिटल ले जाया गया | कृतिका अब भी उसके साथ थी उसने चिंता में दो दिन से कुछ नही खाया था | हॉस्पिटल में पहुचने के आधे घंटे बाद जीवन कि जंग लड़ता हुआ उत्पल हमेशा के लिया हार गया |अब उसके सारे सपने धूमिल थे ,अब कोई मृत्यु से जीवन की कोई जंग नही थी |

जिस प्रकार आँधी आती है और अपने साथ बहुत कुछ उड़ा के ले जाती है ,और उसके बाद सब कुछ शांत होता है ,समुद्र में लहरे बहुत ऊची उठने के बाद समद्र का जल फ़िर सामान्य हो जाता है ,अब उत्पल के जाने के बाद चारो ओर सन्नाटा था |कृतिका अचेतन थी | सबके नेत्र आशुओ से भरे थे |

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