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मोह की मुक्ति कथा

मोह की मुक्ति कथा

आपने मेरी पिछली कहानी, मुक्ति की मोह कथा पढ़ी तो है ना? पढ़ी होती तो अच्छा होता क्योंकि मोह की मुक्ति कथा उसी का दूसरा पहलू है. नहीं पढ़ी तो भी कोई बात नहीं, मैं संक्षेप कर देता हूँ. ये कहानी ट्विटर पर शुरू हुई थी. इसकी भाषा, व्यवहार सभी कुछ ट्विटर की दुनिया से प्रेरित था. ट्विटर के महासागर में हर समय चलने वाले ब्राउनियन मोशन में टकराने वाले दो ट्विटर हैंडल्स इसके पात्र थे, एक स्त्री और दूसरा पुरुष. कहानी सुनाने की सुविधा के लिए जो स्त्री पात्र था उसका नाम हमने मुक्ति रखा था और जो पुरुष पात्र था उसका नाम मोह रखा था. दोनों कभी परस्पर मिले नहीं. ट्विटर पर उनके बीच कुछ सीधे संदेशों का आदान प्रदान हुआ और दो कहानियां बन गयीं. उन संदेशों ने मुक्ति के जीवन को कैसे प्रभावित किया ये बताती थी मुक्ति की मोह कथा और मोह की मुक्ति कथा बताएगी कि उन संदेशों ने मोह के जीवन में एक नयी कहानी कैसे भरी?

चिंता मत करिए , पढ़ते समय ये कहानी एकदम नयी लगेगी. किसी कहानी का दूसरा हिस्सा या आधा भाग बिलकुल नहीं.

मुक्ति की मोह कथा और मोह की मुक्ति कथा में एक बड़ा अंतर ये है कि मुक्ति की मोह कथा हमने तब से शुरू की थी जब से दोनों ने एक दूसरे को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू किया था. मोह की मुक्ति कथा सुनाता हूँ तब से पीछे चलते हुए जब मोह ने मुक्ति को फॉलो करना बंद कर दिया. इसका मतलब ये था कि अब मुक्ति मोह को कोई सीधा सन्देश नहीं भेज सकती थी और न ही उसकी कोई गतिविधि सीधी मोह को दिखायी देती थी. यूँ कहें कि मोह की तरफ से उस मधुरता का पटाक्षेप हो गया था जो दोनों के बीच यूँ ही कहीं जी रही थी.

इस बेवकूफ ने तो जीना मुश्किल कर दिया है, कुछ भी अनाप -शनाप लिखती रहती है, समझती क्या है अपने आप को,अब ऐसे नहीं चलेगा, अनफॉलो कर देता हूँ – व्हाई शुड आई बिअर आल दिस नॉन सेंस.....अपने आप से बात करते -करते गुस्से में मोह ने मुक्ति को अनफॉलो कर दिया. ऐसा करते समय न तो उसका हाथ कांपा और न ही मन में कोई हलचल हुई, सिवाय एक संतोष की रेखा के कि “चलो, मुसीबत से छुटकारा मिला” . अब चैन से जी पायेगा, थोड़ा सा उस पल को कोसा जब उसने मुक्ति के साथ संदेशों के आदान प्रदान का सिलसिला शुरू किया था और फिर कोई ताज़ी खबर पढ़ने में लग गया. भूल गया कुछ ही देर पहले उसने एक ट्विटर हैंडल को अनफॉलो किया था. इस दुनिया में तो ऐसा ही है. एक क्लिक से दोस्त बनते हैं और एक क्लिक से खो जाते हैं....रिश्ता एक तूफानी लहर जैसी तेजी से बनता है और उससे दोगुनी तेजी से महासागर में वापस विलीन हो जाता है.

घड़ी में रात का कुछ सवा ग्यारह बजा था. मोह कुछ काम कर रहा था, हमेशा की तरह देर रात तक जाग कर काम करने की आदत है उसकी, वर्षों से कर रहा है. अचानक काम से ध्यान हटा और ट्विटर पर चला गया. अब तक पक्का कोई पागलपन वाला डी एम भेज दिया होगा उसने.....पता नहीं क्या चाहती है? चार बार पूंछ चूका हूँ , “व्हाट डू यू वांट?” कभी कोई सीधा जवाब नहीं देती. मन की बड़ बड़ के साथ मोह ने फोन पर फिर नज़र डाली, आज तो कोई डीएम नहीं है सिवाय कुछ ऑटो मेसेजस के. ओह...थैंक गॉड मैंने उसे अनफॉलो कर दिया. लेकिन न जाने क्यों ये संतोष एक बेचैनी से भरा था ....उसके न होने की बेचैनी से.

और उसके न होने की ये बेचैनी मोह को एक -डेढ़ माह पीछे घसीट ले गयी थी.

कुछ अजीब है वो. वो यानि मुक्ति – और उसका ये अजीब होना ही मोह की बेचैनी थी. एक सन्देश में एकदम सहज दोस्त जैसी दिखती थी तो दूसरे में अबूझ पहेली बन जाती थी. कभी लगता कि वो खिड़की से झांकती एक शरारती गिलहरी है जो एक पल में कूदकर मोह के कमरे में आ जाएगी, पर अगले ही पल कोसों दूर खड़ी एक उदास छाया सी हो जाती.

ये ट्विटर पर मोह की मुक्ति से जान पहचान के शुरूआती दिन थे. मुक्ति ने अपनी डीपी में तिरंगा लगाया हुआ था. ट्वीट भी अच्छी राजनैतिक पकड़ वाले और गंभीर ही करती थी. नवम्बर 2016 की राजनैतिक घटनाओं के बीच एक जैसे विचारों के चलते दोनों के बीच सीधे संदेशों का आदान प्रदान होने लगा था.

कब इन संदेशों का आना जाना बढ़ गया और ये व्यक्तिगत होते गए इसका पता शायद न मुक्ति को चला और न मोह को. इन संदेशों से मोह ने मुक्ति को कुछ कुछ जान सा लिया था जैसे वो शाकाहारी है – सच्ची वाली पन्डिताईन और जमकर शाकाहार का प्रचार करती है, उसका शहर कौन सा है ...सिर्फ इतना ही.. हाँ किसी हैंडल के बारे में इतना जानना कोई कम है क्या?. दो सवाल हमेशा मोह के मन में रहते थे ये मुक्ति दिखती कैसी होगी? और उसकी उम्र कितनी होगी? ये दोनों बातें पूछने का कोई भी अवसर वो हाथ से जाने नहीं देता था और इन सवालों के जवाब में मुक्ति का परिहास कभी उसे हंसने पर मजबूर कर देता तो कभी गुस्से से लाल पीला.

अपने बारे में कई बातें मोह ने उसे सिर्फ इस लालच में बता दी थीं कि शायद वो भी बदले में उत्साह से वैसे ही अपने बारे में बताने लगेगी लेकिन ऐसा आसानी से होता नहीं था, वो गिलहरी की तरफ फुदक कर भाग जाती थी. कैसी तो बचकानी बातें करते थे वो,

-बिहार में सब उल्टा पुल्टा ही होता है- कहते कुछ हैं लोग करते कुछ हैं

-अपने यू पी को देखो पहले

-बिहार में बहार है, हत्या और लूटपाट है

-यू पी. में गुंडागर्दी का और भ्रष्टाचार का राज है

- राम और कृष्ण की जन्मस्थली है यू पी

-कहने को हम बहुत कुछ कह सकते हैं लेकिन किसी नारी को दुःख नहीं पहुंचाना चाहते

- कहने को तो हम भी बहुत कुछ कह सकते हैं लेकिन किसी पुरुष को शर्मिंदा नहीं करना चाहते

- यू पी की लड़कियां होती ही लड़ाकी हैं या आपने कोई खास ट्रेनिंग ली है,

- बिहार के लड़के होते ही अड़ियल हैं या आपने कोई विशेष प्रशिक्षण लिया है

- कॉपी कैट

- इसमें कॉपी कैट की क्या बात है?

- क्यों आपने हमारा ही तो नकल किया, मतलब कॉपी

- नक़ल किया नहीं जाता, की जाती है उसका भी जेंडर होता है

- हाँ हाँ वही ..कॉपी

हँसी तैर गयी मोह के अंतर में, ऐसा बचपना तो बचपन में भी नहीं किया.

  • लेट में सी यू, चेहरा तो दिखाओ
  • मेरे देश का ध्वज ही मेरा चेहरा है
  • सन्नाटा पसर जाता कुछ देर, क्योंकि बात बढ़ाने को कुछ बचता नहीं.

    कल फिर कोशिश करता हूँ. ये बीच बीच में इस को क्या हो जाता है. इतनी उदास हो जाती है जैसे सदियों से किसी दुःख के साए में हो. लेकिन जब वो दूसरे दिन मिलती तो फिर शरारती गिलहरी हो जाती.

    -आज दिखी नहीं ट्विटर पर पूरे दिन

    - बहुत काम था

    -एक बात पूछूं, सच सच बताओगी?

    - कुछ भी पूछो, पूछने पे कौन सा पहरा है? बताऊँगी ... अगर मेरा मन करेगा

    -ठीक है मत बताओ

    - पहले पूछो तो, तभी तो पता चलेगा कि बताऊँगी या नहीं बताऊँगी

    - तुम करती क्या हो?

    - आजकल तो कृष्ण से झगड़ा करती हूँ बस

    - मतलब

    - हाँ कृष्ण से नाराज़ हूँ, उनसे झगड़ा करती रहती हूँ

    - नहीं बताना है तो मत बताओ, कृष्ण को क्यों बीच में ला रही हो ? हर बात का मजाक बनाती रही हो

    - आई एम सीरियस, मैं कोई मजाक नहीं कर रही

    वही उदास सन्नाटा पसर गया....

    मोह अजीब सी बेचैनी में डूबता उतराता रहता. कुछ तो है जो उसे उदास बनाये रखता है. बार बार कोशिश करता उस दुःख को टटोलने की ....लेकिन वो परतें खुलती नहीं कभी.

    -आज से तुम्हे आंटी कहते हैं

    -क्यों

    - हमारे यहाँ बुजुर्ग महिलाओं को प्यार और सम्मान से आंटी बुलाते हैं

    - हमें पसंद नहीं

    -क्यों,

    मोह को लगा था अब तो वो पक्का अपने बारे में कुछ बताएगी. कम से कम इतना कि मेरी उम्र आंटी कहने लायक नहीं और तभी मोह उससे उसकी उम्र पूछ लेगा. लेकिन मोह को ये कभी समझ में नहीं आया कि उसकी उम्र से मोह को लेना देना क्या था?

    - क्योंकि ये अंग्रेजी शब्द है, हमारी संस्कृति से मेल नहीं खाता

    मोह को गुस्सा आ गया. आंटी कहने पर तो लड़कियां इतनी गुस्सा हो जाती है और ये ..

  • क्यों अंग्रेजी बोलती नहीं हो? पढ़ती नहीं हो? ट्वीट तो सारे अंग्रेजी में ही करती हो.
  • वो बात और है
  • और बात क्या है , हमतो आंटी ही कहेंगे
  • कहते रहो, सुनता कौन है
  • इतना सुनकर तो मोह का अहम सिर पे चढ़ गया.

  • अगर तुम्हे दूसरे का मजाक करना इतना बुरा लगता है तो खुद क्यों दूसरों का मजाक बनाती रहती हो.
  • व्हाट आल नॉन सेन्स यू से - क्या कहती हो, मैं ट्यूब लाइट हूँ, और तुम एल.ई.डी. हो. समझती क्या हो अपने आप को ?किसी भी बात का सीधा उत्तर नहीं देतीं.

    ....फिर झगड़ा बच्चों जैसा. बढ़ता ही गया. बात बंद. अब कभी नहीं.

    लेकिन कुछ भी कहो, मुक्ति में अभिमान जैसा कुछ भी नहीं है, दो दिन बाद ही – सरल सा माफीनामा दिख गया मोह को. आज के समय में सोशल मीडिया पर इतनी सक्रिय, अंग्रेजी बोलने वाली लड़की इतनी सहज हो सकती है, विश्वास नहीं होता . न जाने क्यों प्यार सा उमड़ आया मोह के मन में .....सामने होती तो..........शायद........कुछ सोचने की ज़रुरत नहीं इतनी देर में तो वो गिलहरी की तरह फुदक कर आँगन से बहुत दूर चली जाती. न चाहते हुए भी मोह एक बार फिर हंस पड़ा.

    ..बातें शुरू हुईं वैसे ही........उपहास, शरारतें और झगड़े

    ..लेकिन मोह बीमार हुआ तो मुक्ति की बेचैनी उसके संदेशों में दिखने लगी. देर रात तक जागकर बात करती रही कि मोह को अकेला न लगे. मोह को आश्चर्य सा हुआ, क्यों? मेरी इतनी चिंता क्यों कर रही है? दुनियाबी मन सरलता को स्वीकार नहीं करता और मानवीय मन पिघलता सा लगता.

    अब उसके संदेशों में न उपहास था न झगड़ा बस एक अनकहा सा अपनापन था जो मोह को बाँध रहा था.

    -बिटवीन टू ऑफ़ अस, आई एम द बॉस एंड यू हैव टू लिसेन मी.

    उन दोनों में मुक्ति ही बॉस है, कुछ दिन पहले की बात होती तो ये सुनकर मोह झगड़ा कर लेता लेकिन आज उसने पूरी मुस्कान के साथ मुक्ति से कहा था,

    - “ सो यू आर माय बॉस, सेल्फ अपोइंटटेड?”

    - यस, सो व्हाट?

    - सो व्हाट क्या...मीन्स...यस बॉस.

    -फनी

    एक संजीदा से रिश्ते की शुरुआत हो रही थी. एक दूसरे के लिए चिंता थी.

    मोह को लगा, अब तो जानना ही चाहिए, क्या है जो मुक्ति को इतना उदास रखता है?

  • एक पर्सनल बात पूछूं
  • पूछो, जवाब मैं तभी दूँगी...............
  • जब तुम कम्फर्टबल हो.........व्हाट पेन्स यू सो मच.
  • पहले सा सन्नाटा.

  • दिस इस पर्सनल, नहीं चाहती हो तो मत बताओ ,लेकिन सुना है किसी को बताने से दुःख कम हो जाता है कंसीडर मी योर फ्रेंड ....कुछ भी शेयर कर सकती हो.....बट दिस इस अप टू यू....
  • न बताने जैसा कुछ भी नहीं है ...............
  • पिघल गयी थी, चट्टान सी लड़की
  • लिखे जा रही थी..लिखे जा रही थी......जैसे कोई शब्दों का बाँध टूट गया था.
  • मोह उसे समझाता जा रहा था बीच-बीच में .....कह भी रहा था ...आई कैन अंडरस्टैंड योर पेन..लेकिन वास्तव में समझ पाया था या नहीं ये उसे खुद भी पता नहीं.
  • जो हो गया उसे भूल जाओ...जीवन में आगे बढ़ो.
  • मोह के भीतर भी कुछ टूटा सा गया था क्या? पता नहीं.

    अगले दिन से वो कुछ ज्यादा ही जुड़ने लगी थी............सन्देश पे सन्देश.

    मोह को मुक्ति नहीं अब मुक्ति के संदेशों से मुक्ति की तलाश होने लगी थी. मोह ने एक झटके से अपने को अलग कर लिया था .....सीधे सीधे मुक्ति को बताकर ...उसे लगा था कि उसने बहुत ईमानदारी बरती है.

    उसे आभास भी नहीं हुआ कि उसके सन्देश ने मुक्ति को चोट पहुंचाई होगी..... मुक्ति ने शियाकत भी करी होगी ..लेकिन मोह तो उसे झटक कर आगे बढ़ गया था. किसी से इतना जुड़कर वो अपने जीवन को बाँध नहीं सकता था.

    लेकिन वो अब तक हर दिन डी एम भेजती रहती थी...

    पहले की तरह,

    कभी शरारती,

    कभी झगड़ने वाले,

    कभी मनुहार वाले,

    कभी बस निष्पाप सी दोस्ती वाले.

    थक गया था मोह उसके पागलपन से. उसको अनफोलो करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था मोह के पास.

    सोचते सोचते मोह की आँखें फिर फोन पर चली गयी थी.....कोई डीएम नहीं था.

    मोह का संतोष अब पूरी तरह बेचैनी में बदल चुका था. कोई बात नहीं सिर्फ डीएम ही नहीं आयेंगे उसके, मोह तो उसको देख ही लेगा......जब चाहेगा तब.

    मोह के चेहरे पर संतोष की एक दूसरी रेखा ने जन्म ले लिया.

    ये जटिल मानव मन की एक जटिल कहानी है जो ट्विटर जैसी जगह पर ही बन सकती है. जहाँ सामने वाला बस एक हैंडल है......

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