Aaina Sach Nahi Bolta - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

आइना सच नही बोलता - 18

कथाकड़ी

आइना सच नही बोलता १८

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

लेखिका अंजू शर्मा

महिलाएं जीवन के हर रंग को भरपूर जीना ही नहीं जानती छोटी छोटी खुशियों के लम्हों को उत्सव में बदल देने की इनकी क्षमता हर उत्सव को विशेष बना देती हैं! ख़ुशी का मौका हो तो उनकी यह उत्सवप्रियता चरम पर पहुँच जाती है! दूर के रिश्तेदार भी आने लगे थे! दीपक की ताई और मौसी ने दिन में खूब रौनक लगा दी थी! ढोलक की थाप पर जच्चा गाई जा रही थीं! गीतों में बार-बार मुन्ने के बाबा, दादी, माँ, बुआ, चाचा के नाम पुकारे जा रहे थे पर जब भी कोई मुन्ने के पापा का नाम पुकारता नंदिनी के कलेजे में हूक सी उठती! सुबह अमिता ने उसे बताया भी था दीपक सारे काम निपटाकर आ रहा है, रात तक पहुँच जायेगा पर मन तो मानता ही नहीं था! बाहर जच्चा गीत की आवाजें गूंज रही थीं और मन की गहराइयों में कहीं आवाज उठ रही थी,

“जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं ये वो तो नहीं.....”

तभी बाहर गाड़ी आकर रुकी और दरवाजे से ढेर सारे तोहफे लिए नंदिनी की छोटी ननद मीतू और उसके पति ने बधाई देते हुए प्रवेश किया! ढोलक एक बार को थम गई! मीतू दूर कलकत्ता में रहती थी और दीपक के विवाह के बाद आज नंदिनी से मिल रही थी! इस बार ढोलक और गीतों की थाप कुछ और ऊँची हो गई इसमें मीतू की आवाज़ जो मिल गई थी!

दीपक के पापा और बड़ी ननद दिन भर दीपक से बात करते रहे! कभी नंदिनी से छुपाकर तो कभी सुनाकर बात करते रहे और जताते रहे कि सब ठीक है! रात में दीपक कब आया नंदिनी को नहीं मालूम! उसके कमरे का दरवाज़ा बंद था और दीपक रात में गेस्ट रूम में जाकर सो गया था! सुबह सूरज निकला भी न था कि अमिता और ननदें उसका हाथ थामकर नंदिनी के पास लेकर आईं! सबके चेहरों पर भावुकता और ख़ुशी की मिली जुली चमक थी पर दीपक के चेहरे पर बेशुमार उलझनें पसरी हुई थीं! अमिता ने जब मुन्ने को उसकी गोद में दिया तो एक पल उसकी आँखें ख़ुशी से झिलमिलाई भी फिर कहीं खो सी गईं! नंदिनी की निगाहें उसके चेहरे पर लगीं थी पर आँखें बार-बार धुंधला जाती थी! सब्र न हुआ तो छलक ही गईं! दीपक ने एक बार उसकी और देखा और सिर झुका लिया! ख़ुशी की जिस तलाश में नंदिनी की निगाहें भटक रही थीं जाने क्यों अब भी उससे महरूम ही रहीं! नंदिनी को लगा दीपक और उसके मध्य बनी दीवार और गहरी और मजबूत हो रही थी और वहां किसी खिड़की का कोई नामों-निशान नहीं था! मीतू बार-बार उसके चेहरे से मुन्ने का चेहरा मिला रही थी! नंदिनी की नजरें दरवाजे पर पड़ी तो देखा समरप्रताप भीगी आँखों से खड़े अपने सुख को निहार रहे थे!

कुछ देर बाद सब नामकरण की तैयारी में लग गए! नंदिनी को मीतू ने बड़े स्नेह से सजाया! शादी के जोड़े के साथ सारे गहने पहनकर नंदिनी ने खुद को निहारा तो उसे विवाह के दिन की याद हो आई! अभी साल भी नहीं हुआ उसके विवाह को कुछ दिन अभी भी बाकी थे! उसे उम्मीद थी एक बार दीपक अकेले में उसके पास जरूर आयेगा पर बाकी उम्मीदों की तरह उसकी ये उम्मीद भी व्यर्थ ही गई! अभी सब तैयार ही हुए थे कि नंदिनी के मायके वाले आ गये! माँ-पापा, भैया-भाभी, भतीजा सब आए थे! दीपक का रवैया कुछ ऐसा रहा कि नंदिनी ने अपनी किसी सहेली को इस ख़ुशी में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया था! सुनीता को भी नहीं!

विवाह की चुनरी ओढकर नंदिनी जब गोद में मुन्ने को लेकर दीपक के बाजू में बैठी तो सम्पूर्णता के अहसास ने उसे सराबोर कर दिया! पूजा के बाद पंडित जी ने ‘द’ अक्षर से नाम बताया तो बड़ी ननद ने मुन्ने को ‘दिवित’ कहकर पुकारा और सबने इस नाम को पसंद कर लिया! कुछ और नाम आते रहे, सबकी पसंद का एक नाम पर अंत में दीपक और नंदिनी ने भी दिवित नाम पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दी तो यह नाम तय हो गया! कुआंपूजन में रिश्तेदारी और मुहल्ले भर की ढेर सारी महिलाएं शामिल हुईं! दिन कैसे बीत रहा था मालूम ही नहीं चल रहा था! एक के बाद एक रस्में निभाई जा रही थीं! दिवित की दादी अमिता हर रस्म को निभाने को प्रतिबद्ध थी कि उनके पोते को सभी देवी-देवताओं और पितरों के आशीर्वाद मिलें! वहीँ दिवित के दादा समरप्रताप ख़ुशी के इस मौके को शानदार और यादगार बनाने के सारे जतन कर रहे थे! सुबह से लोगों का ताँता लगा हुआ था! दिवित के लिए ननिहाल और अन्य रिश्तेदारों, मित्रों, परिचितों द्वारा लाये गए कपड़ों, खिलौने और दूसरे दुनिया भर के तोहफों से नंदिनी का कमरा भर गया था! सुबह से इन औपचारिकताओं को निभाते-निभाते नंदिनी थक गई थी और दिवित भी चिडचिडा होकर रोने लगा था तो अमिता ने कुछ देर आराम करने को कहा!

“क्या आप खुश नहीं? क्या आपको मेरी और दिवित की बिल्कुल याद नहीं आती?”

नंदिनी दीपक से पूछ बैठी जब वह शाम को अपने सूटकेस से कपडे लेने अपने कमरे में आया!

“नहीं, ऐसा कुछ नहीं! तुम तो जानती हो मैं कितना बिज़ी रहता हूँ!”

“कितने बिज़ी दीपक? क्या मुझसे और दिवित से भी अधिक महत्वपूर्ण काम हैं आपके? और हमारा क्या स्थान है आपकी लाइफ में? क्या हमें आपकी कोई जरूरत नहीं? क्या आपको नहीं लगता है कि अब मेरे आपके लिए सबसे महत्वपूर्ण हमारा बच्चा है जिसे दोनों की जरूरत है! मैं अब आपके बिना नहीं रह सकती या तो हमें भी अब साथ ले चलिए या हमेशा के लिए अब यहाँ लौट आइए! हम सब साथ रहेंगे!”

“समझा करो नंदिनी.....मैं.....मैं जल्दी ही आऊंगा! फिर....फिर .....प्लीज़ ट्राई टू अंडरस्टैंड....कम ऑन बी अ सपोर्ट....”

शहर के एक बड़े से फार्महाउस में रात को फंक्शन हुआ! वाकई जैसी तैयारी थी वैसा ही आयोजन भी था! इस फंक्शन मे हजारों की भीड़ थी! पूरा शहर जैसे उमड़कर आ गया था! शहर भर के जाने माने लोग आये थे! मीतू की रनिंग कमेंट्री जारी थी!

“भाभी कौन है जो नहीं आया! वो देखो पापा के साथ, हमारे शहर के एम् पी गजानन माधव जी हैं और वो देखो वो भूतपूर्व विधायक रामेन्द्र सिंह हैं! और वो यहाँ के सबसे बड़े वकील हैं और उनके बराबर में जज साहब खड़े हैं! वो सामने इस शहर के सबसे बड़े बिजिनेसमैन हैं अग्रवाल साहब और उनके साथ शहर की नगरपालिका के अध्यक्ष तोमर साहब हैं!

नंदिनी सुनती तो आई थी, आज अहसास भी हो गया कि उसके ससुर समरप्रताप सिंह इस शहर की कितनी बड़ी हस्ती हैं! उनके रसूख की ताब थी कि एक से बढकर एक हस्ती उस फंक्शन में शामिल हुई थी! वे राजनीति में खासा दखल रखते थे और उनकी गहरी रूचि ने उन्हें कई राजनेताओं से जोड़ रखा था! वे दीपक और अपने दामादों को सबसे मिला रहे थे! सब लोग दिवित के लिए बड़े बड़े तोहफे ला रहे थे! अपने आशीष से उसे नवाज़ रहे थे! डी ज़े की तेज स्वरलहरियों पर बड़े और युवा थिरक रहे थे! पार्टी का इंतजाम भी बहुत बड़े पैमाने पर हुआ था! बड़ी सी स्टेज पर नर्तकों का एक दल अपना कार्यक्रम पेश कर रहा था! खाने के लिए भी शहर के सबसे बड़े कैटरर को अनुबंधित किया गया था! मेहमान तारीफें करते नहीं थक रहे थे! हर तरह के कुजीन का प्रबंध था! एक तरफ वेज खाना था और इतनी विविधता थी खाने में कि लोग बराबर आनंद लेते घूम रहे थे और वहीँ बराबर के पंडाल में कोकटेल पार्टी का इंतजाम था पापा के खास दोस्तों के लिए! दावत आधी रात तक चलती रही थी! खूब नाच-गाना हुआ था! पूरे परिवार के लोगों ने इसमें हिस्सा लिया था! इस दिन को यादगार बनाने का पापा का सपना पूरा हो गया था!

काफी लोग तो दावत से लौट गये थे और दूर के रिश्तेदार भी आज लौट रहे थे! नंदिनी के मायके वाले भी उसके सुख के दृश्य संजो रात को ही अपने घर लौट गये थे! शाम होते-होते घर में अब घरवाले और नंदिनी की दोनों ननदें ही बचीं थी! अचानक पापा के कमरे से जोर जोर से आवाजें आने लगीं! नंदिनी ने अनुमान लगाया कि दीपक अपने पिता से जाने की इजाज़त मांग रहा था और उसके रवैये को लेकर दोनों में बहस हो रही थी! नंदिनी से रहा न गया और उसके कदम स्वतः ही आवाज़ की दिशा में बढ़ते चले गए!

“ये तो हद ही हो गई दीपक! आखिर कब तक झूठ बोल-बोलकर बहू को दिलासा दें हम! तुमने शादी को ही नहीं हमें भी मज़ाक बनाकर रख दिया है बहू और उसके घरवालों की नजरों में! तुम.....”

“पापा, आप लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हो! किसी ने मेरे बारे में नहीं सोचा! मेरी ख़ुशी, मेरे सपने, मेरी पसंद-नापसंद, मेरे कमिटमेंट की आपकी नजरों में कोई कीमत नहीं! मैंने हमेशा कहा पर आपने माना ही कब है! क्या आप और माँ नहीं जानते थे मेरी मज़बूरी पर नहीं आपको तो केवल अपनी सोच, अपना फैसला थोपने की आदत है! आप......”

नंदिनी को आया देख दीपक अपनी बात अधूरी छोड़, गुस्से से उसे घूरते हुए सूटकेस उठाकर वहीँ उसके बराबर से बाहर निकल गया और नंदिनी ठगी सी खड़ी रह गई! समरप्रताप उसे रोकते हुए पीछे दौड़े पर वह नहीं रुका! एक पल को नंदिनी को लगा उसके पांव के नीचे कोई जमीन नहीं! डगमगाते क़दमों से वह वहीँ गिर जाती अगर पीछे से आती अमिता और मीतू ने उसे संभाल न लिया होता!

जब होश आया तो नंदिनी बिस्तर में थी! दिवित पालने में सो रहा था और अमिता उसके पास बैठी थीं! उनकी नजरें सामने दीवार पर जमीं थीं! नंदिनी ने उठने की कोशिश की तो अमिता ने इशारे से उसे आराम करने को कहा और खुद उठकर जाने लगीं पर एक कदम भी बढ़ा न सकीं क्योंकि नंदिनी ने उनका हाथ थाम लिया था! नंदिनी की आँखों में प्रश्नों का अंतहीन सैलाब था जिसकी एक लहर उठती थी तो दूसरी तुरंत उसके ढक लेती थी! जिन प्रश्नों से वह जूझती आई थी आज उनके उत्तर जान लेना चाहती थी! अमिता जानती थीं कि एक दिन उन्हें इस स्थिति का सामना करना ही होगी पर उन्होंने हरसंभव कोशिश की थी इसे परे धकेलते रहने की पर आज शायद वो दिन आ ही गया था जब सच्चाई बेनकाब होने को बेक़रार थी!

“आराम करो बेटा! अभी तुम्हे आराम की सख्त जरूरत हैं!” उन्होंने एक और कोशिश की!

“नहीं माँ!!!!! आज नहीं! आज आपको बताना होगा कि मेरे भाग्य ने मुझे कहाँ लाकर खड़ा कर दिया है!”

“नंदिनी......”

“बोलो माँ! आज आपको सब बताना होगा! किस कमिटमेंट की बात कर रहे थे दीपक? बताइए न! चिंता न कीजिये! मुझे कुछ नहीं होगा! इन सात महीनों ने बहुत मजबूत बनाया है मुझे माँ! मैं हर रोज टूटी हूँ, किरचे किरचे बिखरी हूँ हर रोज! अब और टूटने को कुछ बचा नहीं मुझमें! आपको दिवित की कसम है! बता दीजिये उस सच को जो मेरी किस्मत में पत्थर की लकीर बन चुका है! प्लीज माँ, प्लीज.....”

आंसुओं का एक समुद्र सा आया जिसने पूरे कमरे को अपनी जद में ले लिया! वे दो स्त्रियाँ उसमें डूबीं देर तक रोती रहीं! कुछ संभली तो अमिता ने कहना शुरू किया,

“दीपक और उसके पिता में कभी नहीं बनी! दोनों की सोच इतनी अलग थी कि मानो दोनों दो अलग रास्तों के राही थे! दीपक के पिता को इतने बड़े कारोबार के लिए वारिस चाहिए था और दीपक को छोटे शहर नहीं उड़ान के लिए आकाश की चाहत थी! उसके अच्छे भविष्य के लिए उसे हॉस्टल भेजा था और बाद में पढने के लिए वह विदेश चला गया! कभी आता भी था तो उसे न तो यहाँ की जिन्दगी रास आती थी न यहाँ के लोगों से उसकी सोच मिलती थी! यहाँ के रहन सहन से कभी सामंजस्य बिठा ही नहीं पाया दीपक! पहले मुझसे उसे बड़ा स्नेह था पर शादी के वक्त मैंने उसके निर्णय में उसका साथ नहीं दिया तो हमारे बीच नेह के उस रिश्ते में भी दरार आ गई!

“कैसा निर्णय माँ? बताइए न....क्या चाहते थे दीपक?” अधीरता से धडकते दिल को सँभालते हुए नंदिनी ने पूछा!

“ये जो भाग्य है न नंदिनी यह हमेशा हमसे एक कदम आगे चलता! हम स्त्रियाँ तो हर बार छले जाने को अभिशप्त रहती हैं! जिसे सुख मान बैठती हैं वह दरअसल उसकी ओढ़ी हुई छाया भर होता है! माँ हूँ दीपक की! उसका मन पढ़ा था मैंने पर मैं भी कहाँ कुछ कर पाई! उसके प्रेम की दुनिया अलग थी, हमारी सोच और आकाँक्षाओं से परे! मैं तो समझौता कर भी लेती पर उसके पिता, चौधरी समरप्रताप सिंह, जिनके आगे दुनिया झुकती है, वे पिता कैसे यह मान जाते कि दीपक उनकी मर्जी के खिलाफ अपना साथी चुनने का निर्णय ले! फिर वो भी कुछ झुकते पर विदेशी बहू तो उन्हें बिल्कुल स्वीकार्य नहीं थी! मैं कुछ न कर सकी बस दोनों ध्रुवों पर खड़े पति और बेटे के बीच पेंडुलम बनी असहाय देखती रही कि कब मुझे निर्णय सुनाया जाये तो मैं सिर झुकाकर मान लूँ! इससे अधिक मेरा महत्व ही क्या था, नंदिनी? ”

“विदेशी बहू!!!!!!!!!!!!!!” इसके बाद नंदिनी जैसे पाषाण हो गई|

लेखिका अंजू शर्मा

परिचय

दिल्ली निवासी अंजू शर्मा एक कवियत्री और कहानीकार हैं उनकी एक कविता " चालीस साला ओउराते " बहुत मशहूर रही हैं उनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हैं बोधि प्रकाशन से . देश की सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओ में उनकी कहानियाँ कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं

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