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जीवन के रंग

10 रुपियो की बेईमानी

यू तो वह बहुत ईमानदार है। यहा तक कि किसी को एक रुपिया भी देना बाकी हो तो जब तक उसे दे नही देती तब तक उसे चैन नही पडता। उसने अपने सारे रिश्ते भी बडी ही ईमानदारी से निभाए हैं। पर न जाने आजकल उसे कया हो गया है ? एक कॉस्मेटिक शॉप मे 10 रुपिये देने बाकी हैं मगर वह देना ही नही चाहती हैं। मुझसे रहा नही गया मैने उससे पूछ ही लिया अब तक कॉस्मेटिक शॉप के बाकी रुपिये दीये कयों नही ? जवाब मे वह चुप थी, मानो किसी गहरी सोच मे हो। फिर वह धीरे से बोली “ भाभी, मैने सुना है कि जो लोग अच्छे होते है भगवान उनको जल्दी अपने पास बुला लेता है। इसलिए उन्होने मेरी माँ को भी जल्दी ही अपने पास बुला लिया। पर मै इतनी जल्दी भगवान के पास नही जाना चाहती, मै अपने बच्चो के साथ जीना चाहती हूं , उन्हे आगे बढते हुए देखना चाहती हूं , उनके सपनो को पूरा करने मे उनकी मदद करना चाहती हूं। जैसे मुझे आज भी मेरी माँ की कमी खलती है, मै नही चाहती कि मेरे बच्चो को भी मेरी कमी खले। इसलिए मै ये 10 रुपियो की बेईमानी कर रही हूं ताकि मै भगवान की नजरो मे अच्छी न रहूं और अपने बच्चो के साथ रह सकूं।” वह एक ही सांस मे बोल गई। उसके इस जवाब से मैं तो उसके भोलेपन की कायल हो गई ।

नमक

नेहा और आशा वैसे तो दोनो चचेरी बहिने थी, पर इस रिश्ते से कहीं ज्यादा गहरा रिश्ता था उनकी दोस्ती का। कयोंकि दोनो हमउम्र के साथ-साथ सहपाठी भी थी। उन की एक अन्य सहेली और सहपाठिन थी गीता, जो कि उनकी पडोसी भी थी। तीनो साथ-साथ स्कूल जातीं, खेलती , पढाई करती। तीनो का एक भी दिन एक दूसरे के बिना नही गुजरता। वार्षिक परीक्षाएं नजदीक आ रही थी। हर वर्ष की तरह इस बार भी तीनो ने नेहा के घर रहकर साथ पढने की योजना बनाई। आशा और गीता दोनो नेहा के घर आ गयीं। दो ढाई घंटे पढने के बाद नेहा ने सुबह साढे तीन बजे का अलार्म लगाया और तीनो बाते करते-करते सो गयीं। अलार्म बजते ही नेहा ने उसे बंध किया और फिर से सो गई, पर आशा उठ गई और उसने पानी मारकर नेहा और गीता को उठा दिया। चाय पीकर तीनो पढने बैठ गयीं। तीनो मन लगाकर पढने लगीं। सुबह के साढे पांच बज रहे थे, गीता की आंखे नींद से बोझिल हो रही थीं। वो बोली “ मैं सो रही हूं, मुझे एक घंटे बाद उठा देना ” तभी नेहा ने आलस मरोडते हुए कहा “ मेरा कोई भरोसा नही है, शायद मैं तुझसे पहले सो जाऊ “ अब बारी आशा की थी उसने आश्वासन देते हुए कहा “ अच्छा ठीक है, मैं उठा दूगीं एक घंटे बाद ओके “ गीता आश्वस्त होकर सो गई। नेहा और आशा एक दूसरे से पाठ के सवाल जवाब पूछने लगीं। तभी अचानक कुछ अजीब सी आवाज आने लगी। तभी नेहा का ध्यान सोती हुई गीता पर गया। जो कि मुंह खुला रख कर जोर-जोर से खर्राटे ले रही थी। उसके खर्राटो से नेहा और आशा को झुंझलाहट हो रही थी। नेहा ने उसका मुंह बंद करने की कोशिश की, पर बार-बार वो अपना मुंह खोल देती और अपने खतरनाक खर्राटो का कार्यक्रम फिर से शुरू कर देती। तभी नेहा को एक शरारत सूझी उसने आव देखा न ताव किचन से मुट्ठी भर नमक लाके गीता के खुले मुंह मे भर दिया। “अरे ये कया कर दिया”? आशा ने अंचभित होकर पूछा। “तो और कया करती ? कब से खर्राटे बंद ही नही कर रही, अब देखना, आज के बाद खर्राटे भरना ही भूल जाएगी।“ नेहा ने शरारती लहजे मे कहा। नेहा की इस शरारत पर आशा भी मंद-मंद मुस्कराने लगी। “अब तो पढने का मूड भी गया, चलो तालाब पर चलते हैं।” आशा ने सुझाव दिया। “ हां चलो “ नेहा ने हामी भर दी और दोनो तालाब के किनारे जाकर बैठ गयीं। जब सात बजे दोनो घर लौंटी तब नेहा की मां गुस्से मे दरवाजे पर खडी थी। उन दोनो को देखते ही मां का गुस्सा फूट पडा। ये पढाई हो रही है तुम्हारी ? ये कया नया पराक्रम किया है तुम दोनो ने ? गीता के मुंह मे नमक कयों डाला ? देखो बेहोश हो गई है। “चाची, ये बेहोश नही हुई है, सो गई है” आशा ने बडे ही भोलेपन से कहा। “मैं कह रही हूं न कि ये बेहोश हैं” नेहा की मां ने सख्ती से कहा। अभी डॉक्टर देखकर गयें हैं और उन्होने बोला है कि अगर एक घंटे तक होश नही आया तो गीता की जान को खतरा है। मां उदास स्वर मे बोली। अब नेहा और आशा की हालत देखने लायक थी, दोनो गीता के पास जाकर बैठ गयीं और उसे उठाने का प्रयास करने लगीं। तभी मां बोली ऐसा काम करना नही चाहिए जिस से बाद मे पछताने की नौबत आए। “मुझे माफ कर दो मां मै फिर कभी ऐसा कुछ नही करुगी आपसे वादा करती हूं पर अभी कुछ भी करके गीता को होश मे लाओ वर्ना मैं कभी भी अपने आप को माफ नही कर पाऊगी।“ नेहा गिडगिडाते हुए बोली। आशा ने भी हाथ जोडते हुए कहा “ चाची मुझे भी माफ कर दो, आगे से कभी ऐसा नही करेंगे। नेहा ने आशा के स्वर से स्वर मिलाते हुए कहा “ आशा ठीक कह रही है मां, हम गीता के खर्राटे भी बर्दाश्त कर लेंगे पर अब कभी भी गीता के मुंह मे नमक नही डालेगे” “कैसे डालोगे मैं कभी भी मुंह खोलके सोऊगीं ही नही” गीता ने बिस्तर से नीचे कूदते हुए कहा। गीता को ऐसे देख कर नेहा और आशा अंचभित हो गयीं। वो दोनो कभी मंद-मंद मुस्कराती मां को देखती तो कभी कूदती-फांदती गीता को। तभी गीता ने चुटकी लेते हुए कहा “ कयों तुम् दोनो को कया लगा कि शरारत सिर्फ तुम दोनो ही कर सकती हो मैं नही ?” नेहा और आशा दोनो एक साथ बोल उठी “ सॉरी यार हमे माफ कर दे “ तभी गीता फिल्मी अंदाज मे बोली “ बडे-बडे शहेरो मे ऐसी छोटी-छोटी बाते होती रहती हैं, सेनॉरीटा, और वैसे भी किसी ने कया खूब कहा है कि फ्रेन्डशिप मे नो थेन्कयू नो सॉरी” अपने फिल्मी अंदाज पर गीता के साथ-साथ नेहा और आशा भी हंस पडी और तीनो आपस मे लिपट गयीं। तीनो की ऐसी मीठी व नमकीन दोस्ती देख कर मां उनकी दोस्ती को बुरी नजर से बचाने की प्राथना करने लगी।

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