ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य विज्ञानं क्या है?
ब्रह्मचर्य के दो अर्थ होते हैं। जो ज़्यादातर लोग जानते हैं वो ये होता है कि संभोग(सेक्स) नहीं करना और ये बड़ी तुच्छ बात है। तुमने तो ब्रह्म को बिल्कुल लंगोटे से बांध दिया है। ब्रह्म को क्या पड़ी है कि तुम सेक्स कर रहे हो या नहीं।
ब्रह्म का वास्तविक अर्थ है, ब्रह्म में आचरण करना। और ब्रह्म माने बंटा-बंटा नहीं रहना, पूरा रहना। ब्रह्म का मतलब है, जो कुछ हो सकते हो, पूरे तरीके से हो जाओ, छोटे नहीं रह जाओ। ‘ब्रह्म’ शब्द आया है ‘वृहद’ से, ‘वृहद’ माने विस्तार, बड़ा होना।
अहंकार तुम्हें छोटा बनाता है, सीमित बनाता है।ब्रह्मचर्य का अर्थ है बड़ा, ब्रह्मचर्य का अर्थ है मन छोटा नहीं है, संकुचित नहीं है, बंटा हुआ नहीं है। मन बहुत बड़ा है, सब समाया हुआ है उसमें। मैंने भी अपने आप को छोटा सा नहीं बना रखा है कि मेरी तो पहचान बस इतनी है कि मैं इसका बेटा हूँ, मैं इस जगह पढ़ता हूँ, मैं इस जगह रहता हूँ, यही हूँ मैं बस। मैं बड़ा हूँ और यही है ब्रह्मचर्य का अर्थ। ब्रह्मचर्य समझ लो अहंकार से विपरीत है।
ब्रह्मचर्य समझ लो अहंकार से मुक्ति है। आज़ादी ही ब्रह्मचर्य है। अतीत और भविष्य से मुक्ति ब्रह्मचर्य है, दूसरों के प्रभावों से मुक्ति ब्रह्मचर्य है।
ब्रह्मचर्य विश्लेषण
ब्रह्मचर्य यौन विचारों और इच्छाओं से पूर्ण स्वतंत्रता है| यह विचार, वचन और कर्म तथा सभी इंद्रियों का नियंत्रण है| सख्त संयम सिर्फ संभोग से नहीं बल्कि कामुक अभिव्यक्तियों से, हस्तमैथुन से, समलैंगिक कृत्यों से और सभी विकृत यौन व्यवहारों से होना चाहिए|
सभी प्राणीयों में आहार, भय, मैथुन और परिग्रह की संज्ञा अर्थात् भाव अनादि काल से इतना प्रबल है कि इन्हीं चार भाव के अनुकूल किसी भी विचार को वह तुरंत स्वीकार कर लेता है| अतएव ब्रह्मचर्य के बारे में किये गये अनुसंधान जितने जल्दी से आचरण में नहीं आते उससे ज्यादा जल्दी से सिर्फ कहेजाने वाले सेक्सोलॉजिस्टों के निष्कर्ष तथा फ़्रोइड जैसे मानसशास्त्रियों के निष्कर्ष स्वीकृत हो पाते हैं| हालॉंकि उनके ये अनुसंधान बिल्कुल तथ्यहीन नहीं है तथापि व केवल सिक्के की एक ही बाजू है | ब्रह्मचर्य के लिये फ़्रोइड की अपनी मान्यता के अनुसार वीर्य तो महान शक्ति है| उसी शक्ति का सदुपयोग करना चाहिये| ब्रह्मचर्य का पालन करके मानसिक व बौद्धिक शक्ति बढानी चाहिये| अतः सिक्के की दूसरी बाजू का भी विचार करना चाहिये
|ब्रह्मचर्य बनाए रखने के वैज्ञानिक कारण
ब्रह्मचर्य का शारीरिक, मानसिक व वाचिक वैसे तीनों प्रकार से पालन न होने पर पुरुष व स्त्री दोनों के शरीर में से सेक्स होर्मोन्स बाहर निकल जाते हैं | ये सेक्स होर्मोन्स ज्यादातर लेसीथीन, फोस्फरस, नाइट्रोजन व आयोडीन जैसे जरूरी तत्त्वों से बने हैं जो जीवन, शरीर और मस्तिष्क के लिए बहुत उपयोगी हैं|
इसके लिये रेमन्ड बर्नार्ड की किताब “Science of Regeneration”देखनी चाहिये| उसमें वे कहते है कि मनुष्य की सभी जातिय वृत्तियों का संपूर्ण नियंत्रण अंतःस्त्रादि ग्रंथियों के द्वारा होता है| अंतःस्त्रावि ग्रंथियों को अंग्रेजी में ऍन्डोक्राइन ग्लेन्ड्स कहते हैं| यही ऍन्डोक्राइन ग्लेन्ड्स जातिय रस उत्पन्न करती है और उसका अन्य ग्रंथियों के ऊपर भी प्रभुत्व रहता है| हमारे खून में स्थित जातिय रसों यानि कि होर्मोन्स की प्रचुरता के आधार पर हमारा यौवन टिका रहता है | जब ये अंतःस्त्रावि ग्रंथियॉं जातिय रस कम उत्पन्न करने लगती हैं तब हमें वृद्धत्व व अशक्ति का अनुभव होने लगता है|
यौन सुख के बारे में सिर्फ कल्पना करने में भी ऊर्जा का उपयोग होता हैं| जिन्होंने अपना ज्यादा वीर्य खो दिया होता है वे आसानी से चिढ़चिढ़े हो जाते हैं| वे जल्दी से उनके मन का संतुलन खो देते हैं| छोटी चीजें उन्हें परेशान कर देती हैं| शारीर और मन स्फूर्ति से काम नहीं कर पाते| शारीरिक और मानसिक सुस्ती, थकान और कमजोरी का अनुभव होता हैं| बुरा स्मृति, समय से पहले बुढ़ापा, नपुंसकता और विभिन्न प्रकार के नेत्र रोग और तंत्रिका रोग इस महत्वपूर्ण तरल पदार्थ के भारी नुकसान के कारण हैं| जो ब्रह्मचर्य के व्रत का पालन नहीं करते वे क्रोध, आलस्य और डर के दास बन जाते हैं| यदि अपने होश नियंत्रण के तहत नहीं होते, आप मूर्ख कार्रवाई करने लगते हैं जो बच्चे भी करने की हिम्मत नहीं कर्नेगे|
आधुनिक विज्ञान युवा कायम रखने के, कायाकल्प आदि के लिए प्रयोग करने में पीछे नहीं हैं, लेकिन ऊर्जा केवल 3-4 साल तक ही रहता है| इसलिए, क्रम में रहने के लिए, युवा ऍन्डोक्राइन ग्रंथियों को सक्रिय रखा जाना चाहिए और रक्त में सेक्स हार्मोन प्रचुर मात्रा में होना चाहिए|
संस्कृत भाषा में ब्रह्म शब्द का अर्थ
संस्कृत भाषा में ब्रह्म शब्द का अर्थ होता है परमात्मा या सृष्टिकर्ता और चर्य का अर्थ है उसकी खोज। यानी आत्मा के शोध का अर्थ है ब्रह्मचर्य। आम भाषा में ब्रह्मचर्य को कुंवारेपन या सेक्स से दूरी रखना माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी माना गया है कि मन, कर्म और विचार से सेक्स से दूर रहना ब्रह्मचर्य है। मेडिकल साइंस ही नहीं बल्कि पुरातन ज्ञान भी नहीं कहता कि ब्रह्मचर्य का मतलब वीर्य इकट्ठा करना है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, कामसूत्र और अष्टांग हृदय में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया है।
मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य का पालन आचार्य
ब्रह्मचर्य व्रत सभी व्रतों से श्रेष्ठ है। मन को साधने से ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन हो सकता है। यदि मन को वश में रखा जाए तो व्यक्ति गृहस्थ जीवन में भी साधना कर सकता है। यह बात आचार्य महाश्रमण ने समदड़ी प्रवास के तीसरे दिन सोमवार को उपस्थित श्रावकों को प्रवचन के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि काम धर्म सम्मत होना चाहिए। काम पर अंकुश रखने से शरीर पृष्ठ होने के साथ-साथ मन भी पवित्र होता है। पति-पत्नी दोनों को काम, धर्म सम्मत करना चाहिए। ब्रह्मचर्य व्रतधारी व्यक्ति को देव-दानव व गंधर्व प्रणाम करते है। उन्होंने काम पर व्याख्या करते हुए कहा कि जीवन में काम व अर्थ पर संयम होना चाहिए। धर्म व शास्त्रों के अनुसार किया गया काम कल्याणकारी है। व्यक्ति को काम को वासना की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए। आचार्य ने कहा कि गृहस्थ जीवन में भी काम पर अंकुश रखकर जीवन को साधना के शिखर तक ले जा सकता है।
कालिंदी व्यास
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