शुक्रिया Rajesh Kamal द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शुक्रिया

प्रस्तावना

आधुनिक मानव विज्ञान के नए-नए आयामों को निरन्तर खंगालता जा रहा है। कभी वह अंतरिक्ष की अनन्त तलाश में निकल पड़ता है तो कभी महासागरों की गहराइयाँ नापने गोता लगाता है। मनुष्य चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न ले, कितने भी आविष्कार क्यों न कर ले, कुछ चीज़ें सिर्फ और सिर्फ प्रकृति ही बना सकती है। उन्ही में से एक है - रक्त!

आपका एक रक्तदान तीन ज़िंदगियाँ बचा सकता है। यह न धर्म देखता है, न उम्र और न ही लैंगिक भेदभाव करता है। अतः आप सभी से अनुरोध है की इस कहानी को पढ़ें और स्वैक्षिक रक्तदान में हिस्सेदार बने।

1

सुबह के आठ बजे हैं। यूँ तो इस वक़्त जीवन के हाथों में चाय का प्याला होता है किन्तु आज ऐसा नहीं है। बॉस ने कल ही ताकीद की थी कि कल दस बजे तक चाईबासा पहुँच जाना। कंपनी के नए विपणन कार्यालय का उद्घाटन होना है। सारे इंतजामात की जिम्मेदारी जीवन के सर डाल बॉस तो निश्चिन्त थे किन्तु जीवन? बेचारा! मरता क्या न करता। सुबह से बॉस दसियों बार फ़ोन कर चुके थे। अपनी बाइक पर बैठ उसने पलट कर देखा। वर्षा दरवाज़े पर खड़ी थी।उसकी मुस्कराहट ने जीवन के अंदर मानो नवजीवन का संचार कर दिया। जाती हुई बाइक की आवाज़ जब तक आती रही, वर्षा दरवाज़े पर ही खड़ी रही।

जीवन को घर से निकले आधा घंटा बीत चुका है और वह कुल-जमा नौ किलोमीटर की दूरी तय कर पाया है। उसने मन-ही-मन हिसाब लगाया। अभी लगभग सैंतालीस किलोमीटर का फासला बचा था। अगर हालात ऐसे ही रहे तो उसे अभी दो से ढ़ाई घंटे और लगेंगे। अचानक उसे लगा जैसे उसके मोबाइल की घंटी बज रही हो। मन-ही-मन वह झल्ला उठा - "ज़रूर बॉस होगा। बेवक़ूफ़! उसे लगता है कि बार-बार फ़ोन करने से काम जल्दी हो जाता है।" उसने बायाँ ब्लिंकर जलाया और गाड़ी सड़क किनारे खड़ी कर दी। उसने फ़ोन जेब से निकाला। वह अभी तक बज रहा था। स्क्रीन पर निगाह डाली तो नाम लिखा था - अरशद।

“हेलो”

“जीवन, यार मैं बड़ी मुसीबत में आ गया हूँ। नादिरा की प्रेगनेंसी में कंप्लीकेसी आ गयी है। उसे जीवन-ज्योति नर्सिंग होम में भर्ती करवाया है। डॉक्टर ने फ़ौरन सिजेरियन को कहा है। ऑपरेशन के लिए खून चाहिए। तू अभी-के-अभी आ जा मेरे भाई।”

अरशद की कातर ध्वनि ने उसके दिमाग में खतरे की घंटी बजा दी। मुझे अभी लौट चलना है, यह फैसला लेने में उसे क्षण भर भी सोचना नहीं पड़ा। उसने अरशद को सांत्वना दी –

“तू फ़िक्र मत कर मेरे भाई। मैं अभी पहुँचता हूँ। तू बस धीरज रख... और हाँ.... अस्पताल का क्या नाम बताया?”

“जीवन-ज्योति नर्सिंग होम”

“हाँ... हाँ... मैं समझ गया। तू पेपर्स रेडी कर। मैं बस पहुँचता हूँ।”

2

जीवन और अरशद जब ब्लड बैंक पहुँचे तो वहाँ ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। अरशद ने स्वागत-कक्ष में बैठी महिला की ओर अपने कदम बढ़ा दिए। उसे अस्पताल के कागज़ सौंप वह माहौल का जायज़ा लेने लगा। खानापूर्ति में लगभग पाँच मिनट लगे होंगे। अब वे दोनों रक्त-दान कक्ष में श्री राव के सामने थे। ब्लड-ग्रुप की जाँच के बाद उन्होंने आगे की कार्रवाई अपने सहकर्मी डॉ एंजेला मुर्मू को सौंप दी। डॉ एंजेला डॉक्टर नहीं, जादूगर थीं। उनकी बातों-बातों में रक्त-थैली कब भर गई, इसका पता न तो जीवन को चला, ना ही अरशद को।

जीवन जब रक्त-दान कक्ष से बाहर निकला तो देखा कि अरशद बड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा है। उसने अपने हाथ में पकड़ा कागज़ अरशद की ओर बढ़ा दिया –

“ये पेपर्स जल्दी से जमा कर दे। तुझे रिप्लेसमेंट में ब्लड मिल जायेगा।”

अरशद ने एक नज़र उस कागज़ को देखा। उसकी आँखों में मानो छलक उठने को बेताब समंदर उमड़ रहा था। कृतज्ञता ने मानो उसकी ज़ुबान लड़खड़ा दी। हाथों को जोड़ वह धीमे स्वर में सिर्फ इतना ही कह पाया –

“शुक्रिया”

शब्द निकले तो लहरों ने भी सीमाएँ लाँघ दी। आँखों से गंगा-जमुना बह निकली। भावनाओं का समंदर इस कदर उफना कि शरीर और आवाज़, दोनों कांपने लगे।

“शुक्रिया मेरे भाई”

दोस्त के आँसू देख जीवन भी अपने को रोक नहीं पाया। बस एक कदम की ही तो बात थी। दोनों को गले मिला देख ब्लड बैंक के कर्मचारी भी आश्चर्यचकित थे। “खून का रिश्ता” भला इससे अच्छा क्या होता होगा?

3

अस्पताल के प्रसूति-कक्ष के सामने माहौल बड़ा ही अजीब था। जिन्हें खुशखबरी मिल चुकी थी, वे अपने रिश्तेदारों तक उसे अग्रसारित करने में लगे थे। जिन्हें अभी खुशखबरी का इंतज़ार था, वे बरामदे में चहलकदमी कर रहे थे। प्रसूति-कक्ष का दरवाज़ा जरा भी आवाज़ करता तो सारे उस ओर लपकते। अरशद गुमसुम सा एक कोने में खड़ा था। जीवन बरामदे में लगे पोस्टर पढ़ने में व्यस्त था। समय काटने का इससे अच्छा तरीका भला और क्या हो सकता था। जीवन ने देखा कि तमाम सादे पोस्टरों के बीच एक चमकीले लाल रंग का पोस्टर है। उसने नजदीक जा कर देखा। वह रक्तदान से संबंधित एक पोस्टर था जिसमें लिखा था – एक रक्तदान तीन लोगों की ज़िंदगियाँ बचा सकता है।

अचानक प्रसूति-कक्ष का दरवाज़ा खुला और एक नर्स ने बाहर निकल कर आवाज़ दी –

“नादिरा के साथ कौन है?”

अरशद तुरंत हरकत में आया –

“जी... मैं हूँ।”

“मुबारक हो, नादिरा को लड़की हुई है। माँ और बच्चे को दो घंटे बाद पोस्ट-ऑपरेटिव वार्ड में शिफ्ट कर देंगे। फिर आप उनसे मिल सकते हैं। चलिए... यहाँ साइन कीजिए।”

साइन करके अरशद पलटा तो जीवन पीछे ही खड़ा था। उसने अरशद को मुबारकबाद दी। दोनों बाहर निकलते वक़्त उसी पोस्टर के सामने से गुज़रे। उसे देख जीवन थोड़ा ठिठका। अरशद ने पूछा –

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं” जीवन ने कहा।

“बस ये सोच रहा हूँ कि अगर एक रक्तदान तीन ज़िंदगियाँ बचा सकता है तो दो ज़िंदगियाँ तो आज मैंने बचा लीं। अब पता नहीं कि तीसरी ज़िन्दगी किसकी बचेगी।”

दोनों ने एक दुसरे को देखा और मुस्करा दिए। अरशद बोला –

“तू भी न यार...”

4

सुबह के दस बज चुके हैं और जीवन बड़ी तेज़ी से अपने नाश्ते को निपटाने में व्यस्त है। हो भी क्यों नहीं? उसे कल ही चाईबासा पहुँच कर सारा इंतज़ाम मुकम्मल करना था किंतु इंसानियत का तकाज़ा कुछ और ही था। जीवन इस बात से प्रसन्न था कि उसने इंसानियत को शर्मसार नहीं होने दिया। वह इस बात से भी खुश था कि बॉस ने भी उसकी बात समझी थी, लेकिन नादिरा और बच्ची से मिल कर लौटने में रात ज्यादा हो गयी। खैर, जैसे-तैसे नाश्ते को ख़त्म कर उसने पत्नी को आवाज़ दी –

“वर्षा... ओ वर्षा!”

किचन में व्यस्त वर्षा के कानों में जैसे ही उसकी आवाज़ पहुंची, उसने प्रत्युत्तर दिया –

“जी... आई”

जीवन ने जब तक अपने हाथ धोये, वर्षा तौलिया लिए पीछे खड़ी रही। हर रोज़ की तरह बैग उठाए वह अपनी मोटरसाइकिल की ओर बढ़ गया। वर्षा भी दरवाज़े पर खड़ी उसे जाते हुए देखते रही। मोटरसाइकिल पर बैठ जब वह पलटा तो पाया कि पत्नी मुस्कुरा रही है। उसे आत्मिक शान्ति की अनुभूति हुई। कोई तो है जो उसके घर से जाने के बाद उसके वापस लौटने की राह तकता है। एक स्वतःस्फूर्त मुस्कान उसके अधरों पर खेलने लगी।

पति को विदा कर वर्षा जब अन्दर आई तो देखा कि घड़ी में साढ़े-दस बज रहे हैं। उसे याद आया कि उसके पसंदीदा धारावाहिक का समय हो चला है। सोफे पर बैठ, धारावाहिक देखते-देखते कब वह लेट गई और लेटे-लेटे कब नींद ने उसे अपनी आगोश में ले लिया, उसे पता भी न चला। अचानक फ़ोन की ध्वनि से उसकी नींद उचट गई। उसने घड़ी की ओर नज़र घुमाई। ये क्या? ये तो ढ़ाई बज गए! फ़ोन अभी भी बज रहा था। उसने फ़ोन उठा लिया –

“हेलो”

“क्या ये मिस्टर जीवन का नंबर है?”

“जी हाँ, मैं उनकी पत्नी। जी कहिए।”

“जी मैं सदर अस्पताल से इंस्पेक्टर संजय चौबे बोल रहा हूँ। उनका एक्सीडेंट हो गया है।”

“क्या?”

“जी हाँ, अच्छा होगा अगर आप तुरंत ही यहाँ चले आयें। उनका काफी खून बह गया है। वार्ड नंबर ३ के बेड नंबर ७ पर उन्हें खून चढ़ाया जा रहा है।”

वर्षा का दिमाग इस खबर से मानो सुन्न हो गया। वह धम्म से सोफे पर बैठ गयी। एक पल को उसे अपने आस-पास की दुनिया आभासी लगने लगी। अनिष्ट की आशंका ने सोचने-समझने की शक्ति को ही मानो क्षीण कर दिया था। आँखों के आगे धुंधली काली चादर यूँ लहरा रही थी मानो साक्षात् काल हो। हिम्मत बटोर कर उसने सामने पड़े ग्लास को उठाया। उसमें अब भी दो-तीन घूँट पानी था। सूखता गला जब तर हो गया तो जैसे दिमाग को भी नया जीवन मिला। उसने तुरंत फ़ोन कर अरशद को बुलाया।

दोनों जब अस्पताल पहुँचे तो देखा कि जीवन को खून चढ़ाया जा चुका है। वह पूरी तरह से होश में था। उसे सही-सलामत देख वर्षा के दिल का सारा डर आँसू बन बह निकला। पति के बगल बैठ उसने जीवन का हाथ अपने दोनों हाथों से कस कर थाम लिया। उसके प्रेम के आवेग को जीवन भी पूरी तरह से महसूस कर पा रहा था। जब उसका एक्सीडेंट हुआ था तो उसे ऐसा लगा था कि अब वह कभी भी अपनी पत्नी को नहीं देख पाएगा। अब जब वर्षा का हाथ उसके हाथ में था, उसे यकीन होने लगा था कि दोनों कभी जुदा नहीं होंगे।

अचानक जीवन की नज़र पीछे खड़े अरशद पर पड़ी। उसने अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ाया तो अरशद ने भी आगे बढ़ कर उसका हाथ थाम लिया। दोनों मुस्कुरा उठे। जीवन ने कहा –

“यार अरशद! आज तीसरी ज़िन्दगी भी बच गयी यार।”