भाग-९ - पंचतंत्र MB (Official) द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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भाग-९ - पंचतंत्र

पंचतंत्र

भाग — 09

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पंचतंत्र

दीपावली क्यों मनाई जाती है?

गांधीजी का देशप्रेम

बापू का राष्ट्रहित

सच्चाई का आईना

शतरंज

दीपावली क्यों मनाई जाती है?

यह बात तो सभी को मालूम है कि, दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है भगवान राम जब असुरराज रावण को मारकर अयोध्या नगरी वापस आए तब नगरवासियों ने अयोध्या को साफ—सुथरा करके रात को दीपकों की ज्योति से दुल्हन की तरह जगमगा दिया था। तब से आज तक यह परंपरा रही है कि, कार्तिक अमावस्या के गहन अंधकार को दूर करने के लिए रोशनी के दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। लेकिन दीपावली मनाने के पीछे एक प्रसिद्ध कथा यह भी है कि— एक बार राजा से ज्योतिषी ने कहा कि, कार्तिक की अमावस्या की आधी रात को तुम्हारा अभाग्य एक सांप के रूप में आएगा। यह सुनकर राजा ने अपनी प्रजा को आज्ञा दी कि, वे अपने घरों को अच्छी तरह से साफ करें और सारा शहर रात भर रोशनी से प्रकाशित किया जाए।

रानी सर्प देवता का गुणगान करती व जागती रही। लेकिन दुर्भाग्य की घड़ी में राजा के बिस्तर के पास जलता हुआ दीप अनायास बुझ गया और सांप ने राजा को डस लिया, परंतु सर्प देवता रानी की स्वर लहरी को सुनकर अत्यंत खुश हुआ और रानी को एक वर मांगने को कहा, रानी ने इस वर से अपने पति का जीवनदान मांगा। सर्प देवता राजा के प्राण वापस लाने के लिए यम के पास गया। राजा का जीवनमंत्र पढ़ा गया तो शून्य नंबर दिखाई दिया। जिसका तात्पर्य हुआ कि राजा पृथ्वी पर अपना जीवन समाप्त कर चुका है। लेकिन सांप ने बड़ी चतुराई से आगे सात नंबर डाल दिया।

जब यम ने पत्र देखा तो कहा, लगता है कि मृत शरीर को अपने जीवन के 70 साल और देखना है। जल्दी से इसे वापस ले जाओ। सो सांप राजा की आत्मा को वापस ले आया। राजा के प्राण वापस आने पर बस उसी दिन से दीपावली का पर्व राजा के पुनर्जीवित होने की खुशी में मनाया जाता है। दक्षिण भारत को छोड़कर पूरे भारत में इस कार्तिक अमावस्या तक वर्षा समाप्त हो जाती है। हो सकता है पूर्वजों ने वर्षा से सीले हुए मकानों की पुताई, रंगाई करके फिर से सजाने के लिए यह उत्सव मनाना शुरू किया हो। इस दिन नवांकुरित गेंहू या ज्वार की पूजा की जाती है। बंगाल में यह दिन महाकाली की विशेष पूजा के रूप में मनाया जाता है। हमारे देश में यह सबसे उल्लास वाला पर्व है।

गांधीजी का देशप्रेम

गांधीजी को बच्चों के साथ हंसने—खेलने में बड़ा आनंद आता था। एक बार वे छोटे बच्चों के विद्यालय गए।

उन्होंने बच्चों से विनोद करना प्रारंभ कर दिया। दूर बैठा एक छोटा विद्यार्थी बीच में कुछ बोल उठा। इस पर शिक्षक ने उसे घूर कर देखा, तो बच्चा सहम कर चुप हो गया। गांधीजी यह सब देख रहे थे। वे उठे और उस बालक के पास जाकर खड़े हो गए।

बोले श्बेटा तुम मुझे बुला रहे थे न? बोलो क्या कहना है? घबराना मतश्।

बालक— श्आप कुर्ता क्यों नहीं पहनते? मैं अपनी मां से कहूंगा कि आपके लिए एक कुर्ता सिल दें। आप मेरी मां का सिला हुआ कुर्ता पहनेंगे ना?' गांधीजी— श्जरूर पहनूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त हैं। मैं अकेला नहीं हूं।'' बालक— श्तो आप कितने आदमी हो? मां से मैं दो कुर्ते सिलने को कहूंगाश्। गांधीजी— श्मेरे तो 40 करोड़ भाई—बंद हैं। उन सबके तन कुरते से ढंकें, तभी मैं कुर्ता पहन सकता हूं। तुम्हारी मां 40 करोड़ कुर्ते सी देगी क्या?' बालक के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला। वह सोचने लगा इतने कुर्ते मां कहां से देगी? गांधीजी ने उसके मन—भावो को समझ लिया प्यार से बालक की पीठ थपथपाई और हंसते—हंसते कक्षा से बाहर आ गए।

बापू का राष्ट्रहित

महात्मा गांधी (बापू) ने सारे भारत का जीवन बनाया और अपने जीवन का अधिक भाग जेल के भीतर बिता दिया। बात तब की है, जब बापू पहरे के अधीन थे, संगीनों के साए में, मनुबेन भी साथ थीं। मनुबेन ने जेल अधीक्षक से एक नोटबुक मंगवाई।

बापू ने नोटबुक देखी तो पूछा— श्यह नोटबुक कितनी कीमत की आई?'

मनुबेन ने जेल अधीक्षक से पूछकर कहा— एक रुपए और एक आने की है बापू।

यह सुनते ही बापू ने कहा— श्हमारे पास बहुत—सा कागज है, उसी से काम चला लेती। नोटबुक किसलिए ली? तुम समझती हो कि अपने पास से पैसे नहीं देने पड़ते, अंगरेज सरकार देती है? यह भारी भूल है। यह तो हमारे ही पैसे हैं।''

नोटबुक वापस लौटा दी गई।

फिर बापू ने अपने ही हाथों से— फालतू पड़े खाली कागजों से एक डायरी तैयार की, उसे सलीके से सीकर उस पर जिल्द भी चढ़ा दी। नोटबुक के रूप में यह डायरी मनुबेन को बहुत पसंद आई।

यह सच है, बापू एक—एक पल देश के पैसे का ख्याल रखते थे तथा पैसे को व्यर्थ खर्च नहीं करते थे, बल्कि इस तरह एकत्रित पैसे को वे राष्ट्रहित में लगाते थे।

सच्चाई का आईना

एक दिन सारे कर्मचारी जब अॉफिस पहुंचे तो उन्हें गेट पर एक बड़ा—सा नोटिस लगा दिखा रू— श्इस कंपनी में अभी तक जो व्यक्ति आपको आगे बढ़ने से रोक रहा था कल उसकी मृत्यु हो गई। हम आपको उसे आखिरी बार देखने का मौका दे रहे हैं, कृपया बारी—बारी से मीटिंग हॉल में जाएं और उसे देखने का कष्ट करें।''

जो भी नोटिस पढ़ता उसे पहले तो दुख होता लेकिन फिर जिज्ञासा होती कि आखिर वो कौन था? जिसने उसकी ग्रोथ रोक रखी थी... और वो हॉल की तरफ चल देता...। देखते—देखते हॉल के बाहर काफी भीड़ इकठ्‌ठा हो गई, गार्ड ने सभी को रोक रखा था और उन्हें एक—एक करके अंदर जाने दे रहा था। सबने देखा की अंदर जाने वाला व्यक्ति काफी गंभीर होकर बाहर निकलता, मानो उसके किसी करीबी की मृत्यु हुई हो! इस बार अंदर जाने की बारी एक पुराने कर्मचारी की थी, उसे सब जानते थे। सबको पता था कि उसे हर एक चीज से शिकायत रहती है। कंपनी से, सहकर्मियों से, वेतन से, तरक्की से, हर एक चीज से। पर आज वो थोड़ा खुश लग रहा था, उसे लगा कि चलो जिसकी वजह से उसकी लाइफ में इतनी समस्या थीं वो गुजर गया।

अपनी बारी आते ही वो तेजी से ताबूत के पास पहुंचा और बड़ी जिज्ञासा से उचक कर अंदर झांकने लगा। पर यह क्या... अंदर तो एक बड़ा—सा आईना रखा हुआ था।

यह देख वह कर्मचारी क्रोधित हो उठा और जोर से चिल्लाने को हुआ, तभी उसे आईने के बगल में एक संदेश लिखा दिखा— इस दुनिया में केवल एक ही व्यक्ति है जो आपकी ग्रोथ... आपकी उन्नति... आपकी तरक्की रोक सकता है और वो आप खुद हैं।

इस पूरे संसार में आप वो अकेले व्यक्ति हैं जो आपकी जिंदगी में क्रांति ला सकते हैं। आपकी जिंदगी तब नहीं बदलती जब आपका बॉस बदलता है, जब आपके दोस्त बदलते हैं, जब आपके पार्टनर बदलते हैं, या जब आपकी कंपनी बदलती है...। जिंदगी तब बदलती है जब आप बदलते हैं, जब आप अपनी सीमित सोच तोड़ते हैं, जब आप इस बात को रियलाइज करते हैं कि अपनी जिंदगी के लिए सिर्फ और सिर्फ आप जिम्मेदार हैं। सबसे अच्छा रिश्ता जो आप बना सकते हैं वो खुद से बनाया रिश्ता है। खुद को देखिए, समझिए। कठिनाइयों से घबराइए नहीं, उन्हें पीछे छोड़िए, विजेता बनिए, खुद का विकस करिए और अपनी उस वास्तविकता का निर्माण करिए जिसका आप करना चाहते हैं !!! दोस्तों, दुनिया एक आईने की तरह है, वो इंसान को उसके सशक्त विचारों का प्रतिबिंब प्रदान करती है। ताबूत में पड़ा आईना दरअसल आपको यह बताता है कि जहां आप अपने विचारों की शक्ति से अपनी दुनिया बदल सकते हैं, वहीं आप जीवित होकर भी एक मृत के समान जी रहे हैं।

शतरंज

एक युवक ने किसी मठ के महंत से कहा— श्मैं साधु बनना चाहता हूं लेकिन मुझे कुछ नहीं आता। मेरे पिता ने मुझे शतरंज खेलना सिखाया था लेकिन शतरंज से मुक्ति तो नहीं मिलती, और जो दूसरी बात मैं जानता हूं वह यह है कि सभी प्रकार के आमोद—प्रमोद के साधन पाप हैं।''

हां, वे पाप हैं लेकिन उनसे मन भी बहलता है। और क्या पता, इस मठ को उनसे भी कुछ लाभ पहुंचे,श् महंत ने कहा।

महंत ने शतरंज का बोर्ड मंगाया और युवक को एक बाजी खेलने के लिए कहा, इससे पहले कि खेल शुरू होता, महंत ने युवक से कहा श्हम दोनों शतरंज की एक बाजी खेलेंगे। यदि मैं हार गया तो मैं इस मठ को हमेशा के लिए छोड़ दूंगा और तुम मेरा स्थान ले लोगे।''

महंत वास्तव में गंभीर था। युवक को यह प्रतीत हुआ कि यह बाजी उसके लिए जिंदगी और मौत का खेल बन गई थी। उसके माथे पर पसीना छलकने लगा। वहां उपस्थित सभी व्यक्तियों के लिए शतरंज का बोर्ड पृथ्वी की धुरी बन गया था।

महंत ने खराब शुरुआत की। युवक ने कठोर चालें चलीं लेकिन उसने क्षण भर के लिए महंत के चेहरे को देखा। फिर जान—बूझकर खराब खेलने लगा। अचानक ही महंत ने बोर्ड को ठोकर मारकर जमीन पर गिरा दिया, श्तुम्हें जितना सिखाया गया था तुम उससे कहीं ज्यादा जानते हो।''

महंत ने युवक से कहा, श्तुमने अपना पूरा ध्यान जीतने पर लगाया और तुम अपने सपनों के लिए लड़ सकते हो। फिर तुम्हारे भीतर करुणा जाग उठी और तुमने एक भले कार्य के लिए त्याग करने का निश्चय कर लिया। इस मठ में तुम्हारा स्वागत है क्योंकि तुम यह जानते हो कि तुम अनुशासन और करुणा में सामंजस्य स्थापित कर सकते हो।''