देह के दायरे
भाग - दो
दीवार में लगी घड़ी ने टनटनाकर ग्यारह बजने की सूचना दी | पूजा पिछ्ले दो घंटो से अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थी | घंटा-भर पूर्व देव बाबू बाहर से लौटे थे और इस समय पास वाले बिस्तर पर निश्चित सो रहे थे |
बिस्तर पर लेटी पूजा अपने स्थिति पर विचार कर रही थी | पिछ्ले तीन मास से उसके पति ने उसे छुआ तक नहीं था | वह जितना अधिक पति से प्रेम करने का प्रयास करती, उनकी घृणा उतनी ही तीव्र रूप से उभरकर प्रकट होती | कितनी ही बार उसने अपने पूरे व्यवहार को स्मरण कर अपना दोष ढूंढने का यत्न किया था | परन्तु कहीं कोई भी सूत्र तो नहीं था जिसे घृणा का आधार माना जा सके |
तीन महीने से लगातार फैलती आ रही इस घृणा ने दोनों को जीवन की नदी के दो किनारों पर लाकर खड़ा कर दिया था | पूजा हाथ बढ़ाकर प्रयास करती थी कि उसका पति उसका हाथ थामकर उसे इस घृणा की नदी से उस पार खिंच ले परन्तु देव बाबू तो जैसे उसे उस नदी में धकेलने को तत्पर थे |
मनुष्य का वर्तमान जब दुःख एवं असन्तोष से भरा हो तो उसे अपने सुखद अतीत की याद बड़ी भली लगती है | पूजा भी देव बाबू से व्यथित हो अपने कॉलिज-जीवन की सुनहरी स्मृतियों में खो गयी |
अपनी सहेली रेणुका को बी. एड. में प्रवेश लेते देख उसकी भी इच्छा अध्यापिका बनने की हुई थी | जब उसने अपनी इस इच्छा तो अपने माता-पिता से समक्ष रखा तो उन्होंने भी कुछ विशेष विरोध नहीं किया | हाँ, उन्होंने एक शर्त अवश्य रखी थी कि बी. एड. की ट्रेनिंग तो वे दिलवा देंगे परन्तु यदि भविष्य में उसके पति ने कहीं नौकरी न करवाने की इच्छा प्रकट की तो उसे उसकी इच्छा का स्वागत करना होगा | उनका कहना था की कई बार पत्नी की नौकरी करने की व्यर्थ की जिद गृहस्थी में जहर घोल देती है | पूजा ने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था | यह सोचकर कि अभी कौन-सा विवाह हो रहा है | भविष्य की भविष्य में सोची जाएगी |
बी. एड. कॉलिज में यह उसका पहला दिन था | वातावरण से, साथियो से एवं प्राध्यापकों से अनजान वह रेणुका के साथ इधर से उधर लड़कियों से परिचय करती घूम रही थी | सह-शिक्षा होने के कारण वातावरण में रंगीनी थी | अधिक भीड़ नहीं...सिर्फ सौ ही छात्र-छात्राएँ, परन्तु अभी तक लगभग आपस में सब अपरिचित | लड़के एक तरफ दो-दो, तीन-तीन के झुण्ड में खड़े बतिया रहे थे, तो लड़कियों के भी कई समूह इधर से उधर अपनी हँसी बिखेर रहे थे | अपरिचिय की भावना ने छात्र और छात्राऑ के मध्य एक रेखा-सी खिंच दी थी | कई छात्र-छात्राऑ के हृदय में उस रेखा को पार करने की इच्छा प्रबल थी परन्तु पहले ही दिन वे आपस में खुलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे |
घंटी की आवाज सुनकर सभी आपस में बतियाते कॉलिज के हॉल में जाने लगे | सभी अपनी-अपनी बातों में व्यस्त थे | चेहरे खिले हुए, कहीं कुछ फिक्र नहीं...ठहाकों की जिन्दगी |
इसी मध्य प्रिंसिपल महोदय ने हॉल में प्रवेश किया | उनके हॉल में प्रवेश करते ही सभी छात्र-छात्राएँ एक-दुसरे को देखते हुए उनके सम्मान में खड़े हो गए | प्रिंसिपल साहब धीरे-धीरे चलते हुए हॉल के मंच पर जा पहुंचे, जहाँ कई प्राध्यापक पहले ही उपस्थित थे |
“कृपया बैठ जाइए |” माइक के पास आते हुए उन्होंने हाथ से संकेत कर कहा तो सभी ख़ामोशी से बैठ गए | प्रिंसिपल महोदय ने इस ख़ामोशी के मध्य कहना प्रारम्भ किया,
“मैं आप सबका इस कॉलिज में आने पर अभिनन्दन करता हूँ और आशा करता हूँ कि जिस उद्देश्य को लेकर आप इस संस्था में आए हैं...आप सब अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होंगे |”
तालियों की gaगडगडाइट से कुछ व्यवधान पड़ा | तदुपरान्त उन्होंने फिर कहना प्रारम्भ किया,
“हमारी पुरानी परम्परा रही है कि सत्र प्रारम्भ करने से पूर्व प्रत्येक वर्ष कॉलिज में परिचय-दिवस मनाया जाता है | कल आप सब लोग भी सत्र प्रारम्भ करने से पूर्व इसी उत्सव का आयोजन करेंगे | यह सारा कार्यक्रम छात्र-छात्राओं द्वारा ही आयोजित किया जाएगा | कुछ देर बैठकर आप सब इसकी रूप-रेखा बना लें | इस विषय में प्रोफेसर दीवान आपका मार्ग-दर्शन करेंगे | धन्यवाद |”
तालियों का शोर हॉल में उभरा और धीरे-धीरे शान्त हो गया |
प्रिंसिपल महोदय एवं अन्य कई प्राध्यापकगण हॉल से बाहर चले गए | अब मंच पर प्रोफेसर दीवान के साथ सिर्फ दो ही प्राध्यापक रह गए थे |
सबसे पहले उन्होंने छात्र-छात्राओं में से कल के कार्यक्रम का संचालक बनने के लिए निमन्त्रण दिया |
सभी एक-दुसरे के मुँह की तरफ देख रहे थे | सभी अपने-अपने साथियों को संकेत से संचालक पद के लिए उठकर मंच पर जाने के लिए कह रहे थे परन्तु उठने का साहस कोई नहीं कर पा रहा था |
कुछ क्षण बाद...सफेद कुर्ते-पायजामे में, मध्यम कद, गेहूँआ रंग और गठीला शरीर लिए एक छात्र आत्मविश्वास के साथ उठकर मंच पर आ गया | उसी दिन प्रथम बार देखा था पूजा ने देव बाबू को |
“शाबास! बहुत अच्छी बात है | क्या नाम है आपका?” प्रोफेसर दीवान ने पूछा |
“मुझे देव बाबू कहते है...|” आवाज में भी आत्मविश्वास की झलक थी |
प्रोफेसर दीवान ने देव बाबू की पीठ थपथपाते हुए कहा था, “मी. देव बाबू कल के कार्यक्रम के संचालक होंगे | कल का पूर्ण कार्यक्रम किस तरह आयोजित किया जाना है, इसका पूर्ण उत्तरदायित्व इन्हीं पर होगा | अब ये आप सबके मध्य हैं-मैं अब अपने साथियों के साथ मंच छोड़ता हूँ | मि. देव, आप कल के कार्यक्रम की रुपरेखा और टीम तैयार करके मुझसे मिल लें | आवश्यक मार्ग-दर्शन मैं आपको अवश्य दूँगा |”
इतना कहकर प्रोफेसर दीवान भी अपने साथियों के साथ मंच छोड़ गए |
देव बाबू ने कल के कार्यक्रम के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों हेतु छात्र-छात्राओं से अपना नाम देने को कहा | कुछ लड़के-लड़कियों ने भिन्न-भिन्न कार्यक्रमों के लिए अपने नाम लिखा दिए |
पूजा उस समय चौंकी, जब रेणुका ने खड़े होकर कल के कार्यक्रम में उसका नाम भी लिखा दिया | नाम लिखा जा चुका था | कुछ भी नहीं कर सकती थी पूजा इस समय | उठकर अपना नाम कटवाने के लिए कहती तो छात्र-छात्राएँ उसका उपहास करने से न चुकते |
“तुमने बिना पूछे मेरा नाम क्यों लिखा दिया?” उसने बिगड़ते हुए रेणुका से कहा |
“इतना क्यों बिगड़ती हो पूजा रानी! मैंने कौन-सा शादी के कार्ड में तुम्हारा नाम लिखवा दिया है! एक गाना ही तो सुनाना पड़ेगा |”
“नहीं, मैं नहीं गाऊँगी |”
“भगवान कला के साथ न जाने नखरे क्यों दे देता है!” हँसते हुए रेणुका ने कहा |
“इसमें नखरे की क्या बात है?” तनिक रोष से पूजा ने कहा |
“कोई बात नहीं, अभी पहला ही दिन है कॉलिज में | थोड़ा चैन कर, खोज देंगे किसी नखरा उठाने वाले को भी |” उन्मुक्त हँसी रेणुका ने वातावरण में बिखेर दी |
“रेणुका, बकवास बन्द करो |”
“लो साहब कर दी |” सचमुच ही रेणुका ने होंठ बन्द कर हाथ जोड़ दिए परन्तु शरारत उसके मुख पर नाच रही थी |
रेणुका की इस मुद्रा को देख पूजा भी हँसे बिना न रह सकी |
“रेणु, एक काम करेगी ?” पूजा ने अनुरोध किया |
“बोल...|”
“देख, मेरे नाम पर तुम गाना गा देना |”
“क्यों, गधे इकट्ठे करने हैं क्या ?”
और दोनों ही अपनी हँसी न रोक सकीं | उनकी इस खिलखिलाहट से दूसरे छात्र-छात्राएँ भी उधर ही मुँह उठाए देख रहे थे | पूजा ने देखा तो झोंपकर गर्दन झुका ली परन्तु रेणुका दृष्टियो से बेपरवाह हँसती ही रही |
तभी देव बाबू ने कल के कार्यक्रम में भाग लेने वाले छात्र-छात्राओं को मंच पर आने के लिए कहा | कार्यक्रम में भाग लेने वाले दस-बारह छात्र-छात्राएँ अपने साथियों के साथ मंच की ओर जाने लगे तो रेणुका भी पूजा को उठाकर मंच की ओर ले चली | शेष छात्र-छात्राएँ हॉल से बाहर जा रहे थे |
काफी देर तक कल के कार्यक्रम का अभ्यास किया जाता रहा | पूजा को मीरा का एक भजन सुनाना था | नाम तो रेणुका ने उसका लिखवा दिया था परन्तु झिझक उसका साथ ही नहीं छोड़ रही थी | उस दिन सबसे अधिक अभ्यास उसे ही करना पड़ा था | गले के माधुर्य ने देव बाबू को प्रभावित किया तो उन्होंने भी उसको काफी अभ्यास करवाया था |
पूजा को विश्वास होता जा रहा था की अब वह कल सफलतापूर्वक कार्यक्रम में भाग ले सकेगी | देव बाबू के व्यवहार ने उसे प्रभावित किया था और जब उसकी झिझक समाप्त होती जा रही थी |
“प्रातः आप आठ बजे आ जाइए | एक अन्तिम अभ्यास और कर लिया जाएगा |” देव बाबू ने उस सभी छात्र-छात्राओं से कहा और सभी मंच से उतरकर हॉल से बाहर जाने लगे |
पूजा भी रेणुका को साथ लिए अपने घर की ओर चल पड़ी |