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देह के दायरे - 11

देह के दायरे

भाग - ग्यारह

उस दिन के पश्चात् पूजा परीक्षा की तैयारी में लग गयी | कॉलिज में परीक्षा की तैयारी हेतु अवकाश हो चुका था | कॉलिज न जाने के कारण देव बाबू से भेंट भी नहीं हो पाती थी | उसके ह्रदय में कई बार देव बाबू से मिलने की इच्छा बलवती होती मगर वह किसी तरह स्वयं पर नियंत्रण कर पढ़ाई में लग जाती | रेणुका प्रायः उसके घर आती रहती थी और जब भी वह उसके पास आती, देव बाबू को लेकर परिहास किए बिना न रहती |

धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया | परीक्षाएँ समाप्त हो गयीं | परीक्षाओं के मध्य पूजा की भेंट प्रतिदिन ही देव बाबू से होती थी | देव बाबू को आशा थी कि वह प्रथम श्रेणी अवश्य ही ले लेगा और पूजा को भी अपनी सफलता में कोई सन्देह न था |

परीक्षा समाप्त हुए तीन दिन हो चुके थे | इन तीन दिनों में पूजा उत्सुकता से देव बाबू की प्रतीक्षा करती रही थी | परीक्षा के अन्तिम दिन देव बाबू ने कहा था कि वह कल अवश्य ही उसके घर आएगा | दो दिन प्रतीक्षा में कट गए थे | कल रात पूजा ने सोचा था कि वह सुबह रेणुका को साथ लेकर अवश्य ही उससे मिलने जाएगी |

प्रातः काल ही देव बाबू पूजा के घर पहुँच गया | अनेक शंकाओं से घिरा पूजा का मन हर्षित हो उठा | काफी देर तक देव बाबू पूजा के पिताजी से उनके कमरे में बैठा बातें करता रहा | पूजा अपने कमरे में बैठी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी | इस मध्य वह एक बार शर्बत लेकर वहाँ गयी थी परन्तु देव बाबू को एक दृष्टि देखने के सिवाय वह उससे कोई बात नहीं कर पाई थी |

पूजा के पिताजी से बातें करने के बाद देव बाबू पूजा के पास आ गया | पूजा दरवाजे में ही खड़ी उसकी रह देख रही थी |

“नमस्ते देव बाबू...!”

“मैं आज गाँव जा रहा हूँ पूजा |”

“क्यों?” पूजा का मन अनेक शंकाओं से घिर गया |

“माँ अधिक बीमार है पूजा, और अब परीक्षाएँ भी समाप्त हो चुकी हैं |”

“शाम को मिलोगे?”

“नहीं पूजा, मुझे आज दोपहर की गाड़ी से ही जाना होगा | माँ का तार आया है |”

“मुझे भूल न जाना देव!”

“अपने को कोई भूल सकता है क्या?”

“न जाने क्यों, मन डर रहा है |”

“मैं तुम्हें बराबर पत्र लिखूँगा | तुम खुश रहना पूजा |”

“तुम खुश रहने की कहते हो देव, मैं सोच रही हूँ कि समय कैसे व्यतीत होगा |”

“समय कभी नहीं रुकता पूजा | किसी न किसी तरह बीत ही जाता है |”

पूजा की आँखों में आँसू छलक आने को आतुर हो रहे थे |

“आज अन्दर भी नहीं बुलाओगी क्या?” हँसते हुए देव बाबू ने कहा |

“क्या बुलाने की आवश्यकता है?”

दोनों दरवाजे से हटकर कमरे में आ गए | पूजा और अधिक स्वयं पर नियंत्रण न रख सकी और देव बाबू के वक्ष से चिपटकर सिसक उठी |

देव बाबू क्या कहता! चुपचाप उसकी पीठ पर हाथ फिर उसे सांत्वना देता रहा | कुछ देर पश्चात् किसी तरह पूजा ने अपनी रुलाई पर काबू पाया तो देव बाबू ने अपनी उँगली से उसके आँसुओं को पोंछ दिया |

“मैं जा रहा हूँ पूजा |” पूजा को स्वयं से अलग करते हुए देव बाबू ने कहा |

पूजा का मन तो चाह रहा था कि किसी भी तरह वह उसे रोक ले परन्तु यह क्या उसके वश में था! आखिर देव बाबू द्वार की तरफ बढ़ गया | पूजा वहीँ खड़ी स्थिर निगाहों से उसे जाते हुए देखती रही |

देव बाबू चला गया | पूजा प्रतिदिन उसके पत्र की प्रतीक्षा करने लगी | पत्र की प्रतीक्षा में दिन लम्बा होने लगा | रोज डाकिया उनके मकान के सामने से निकल जाता परन्तु उसकी प्रतीक्षा समाप्त न होती |

एक सप्ताह पश्चात् देव बाबू का पत्र आया | यह पत्र पूजा के पिताजी के नाम था | संयोग से उस दिन वे घर पर ही थे | पत्र पढ़ा तो वे कुछ चिन्तित हो गए |

“क्या बात है पिताजी?” अपने पिताजी के मुख पर चिन्ता की लकीरें देखते हुए पूजा ने घबराकर पूछा |

“देव बाबू की माँ का देहान्त हो गया है बेटी |” कहते हुए उन्होंने पत्र पूजा की ओर बढ़ा दिया |

“मुझे आज ही उसके गाँव जाना होगा बेटी | मेरा सामान तैयार कर देना, शायद एक-दो दिन वहाँ ठहरना भी पड़े |” पूजा के पिताजी ने कुछ सोचते हुए कहा |

“अच्छा पिताजी |” कहकर पूजा दुसरे कमरे में जा अपने पिताजी का सामान तैयार करने में लग गयी |

पूजा के पिताजी भी कई दिन तक गाँव से न लौटे | वे यही कहकर गए थे कि अधिक से अधिक दो-तीन दिन में लौट आएँगे परन्तु आज पाँच दिन व्यतीत हो गए थे | घर में सभी को स्वाभाविक चिन्ता हो रही थी |

छठे दिन पूजा के पिताजी देव बाबू के साथ स्कूटर से घर के सामने उतरे | पूजा ने देखा तो मुसकरा उठी मगर उसे गम्भीर होना पड़ा | यह खुशी का उपयुक्त अवसर न था | देव बाबू की माँ का देहान्त हो चुका था | वह उससे मिलने को आतुर तो थी परन्तु अपनी आतुरता प्रकट नहीं कर सकती थी |

स्कूटर से उतरकर पूजा के पिताजी देव बाबू के साथ अपने कमरे में चले गए | पूजा उनका सामान उठाकर अन्दर रखने लगी |

अपने पिताजी के साथ देव बाबू के आने से पूजा चकित थी | संकोच के कारण वह किसीसे इसका मतलब भी नहीं पूछ सकती थी |

देव बाबू पूजा के पिताजी से बातों में व्यस्त था | अपनी माँ को उनके कमरे में जाती देख वह भी दरवाजे के समीप जाकर खड़ी हो गयी |

“पूजा की माँ, यह तो मेरे साथ आ ही नहीं रहा था | बड़ी मुश्किल से समझाकर इसे अपने साथ लाया हूँ |” पूजा के पिताजी कह रहे थे |

“एक-दो दिन में कोई कमरा यहाँ मिल गया तो मैं चला जाऊँगा |” देव बाबू संकोच से कह रहा था | दरवाजे पर खड़ी पूजा को उसका यह कहना अच्छा न लगा |

“क्यों बेटा?” पूजा की माँ ने कहा |

“मैं किसी पर बोझा नहीं बनना चाहता माँजी |”

“अपने बेटे भी कभी बोझ हुआ करते हैं पागल! क्या मैं तेरी माँ नहीं हूँ बेटे?” पूजा की माँ ने स्नेह से कहा |

“अब तो आप ही मेरे सब कुछ हैं | आपके सिवाय अब मेरा कोई भी तो नहीं है |” भावुकता से देव बाबू ने कहा |

“फिर मकान की चिन्ता क्यों करता है? जब तक भी यहाँ रहे...इसे अपने घर समझकर रह |”

“यह यहीं रहेगा पूजा की माँ | इसे जाने ही कौन देगा? तुम जाकर पूजा से कह दो कि शर्बत बना दे | गर्मी से बुरा हाल हो रहा है |”

अपनी माँ के आने से पूर्व ही पूजा शर्बत बनाने के लिए वहाँ से हट गयी |

अब देव बाबू वहीँ पर रहने लगा था | सारा दिन वह घर से बाहर नौकरी और कमरे की तलाश में भटकता रहता | सुबह-शाम वह पूजा को दिखाई तो अवश्य देता मगर न जाने क्यों अब वह उससे अपने ह्रदय की बात करने से कतराने लगा था | पूजा अवसर की तलाश में रहती थी कि किसी तरह कुछ देर उससे बात कर सके और वह प्रयास करता कि भेंट न हो |

उस रात पूजा दूध का गिलास लेकर उसके कमरे में पहुँच गयी | उसने निश्चय कर लिया था कि आज वह उससे अवश्य ही उसकी उदासी का कारण पूछेगी |

“आजकल बहुत उदास रहते हो देव?”

“हाँ पूजा, न जाने क्यों मैं आजकल अपने मन पर एक बोझ-सा महसूस करता हूँ |”

“माँ चली गयी, इसीका बोझ तुम महसूस कर रहे हो? एक दिन सभी के माँ-बाप जाते हैं देव!”

“वह दुःख तो है ही पूजा, लेकिन...|” कहते-कहते वह रुक गया | उसकी दृष्टि नीचे की ओर झुक गयी |

“और क्या दुःख है देव, क्या मुझसे छिपाओगे?”

“सच कहूँ पूजा, तुम्हार घर में रहना मुझे अच्छा नहीं लगता |”

“देव...|”

“इसे अन्यथा न समझो पूजा | मुझे यहाँ कोई कष्ट नहीं है मगर फिर भी मैं कब तक तुम्हारे घरवालों पर बोझ बना रहूँ | प्रतिदिन मकान की तलाश में निकलता हूँ लेकिन कोई ढंग का मकान मिलता ही नहीं |” देव बाबू के मुख पर चिन्ता की रेखाएँ गहरी हो गयीं |

“तुम बहुत भावुक हो देव, इसलिए ऐसा सोचते हो | तुम्हारे यहाँ रहने से किसीको भी कोई कष्ट नहीं है |”

“हाँ पूजा, लेकिन मैं स्वयं को समझा तो नहीं पाता |”

“अधिक न सोचा करो देव!”

“माँ के चले जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया हूँ पूजा |” भावुकता से देव बाबू ने कहा |

“तुम स्वयं को अकेला क्यों सोचते हो? मैं तुम्हारे साथ हूँ देव |” पूजा उसके और अधिक निकट हो गयी | उसने उसके माथे पर हाथ रखा और धीरे-धिरे बालों को सहलाने लगी |

देव बाबू को बहुत अधिक सुख मिल रहा था | इस सुख से उसकी पलकें मूँदी जा रही थीं |

“पूजा, मेरे नम्बरों की देखकर प्राचार्य ने कहा था कि बीटा, तुम्हें तो निकलते ही नौकरी मिल जाएगी...तुम जैसे होनहार छात्रों के लिए सफलता के द्वार सदा खुले रहते हैं | इन दो महीनों में मैंने कितने ही प्राइवेट स्कूलों में कोशिश की है पूजा, मगर कहीं से कोई जवाब नहीं मिलता | डी. ए. वी. स्कूल के मैनेजर ने इन्टरव्यू के समय पूरा आश्वासन भी दिया था मगर...”

“बी. एड. किए हुए अभी समय ही कितना हुआ है देव! कुछ समय तो नौकरी मिलने में लगता ही है |”

तभी माँ की आती आवाज को सुनकर पूजा को वहाँ से उठकर जाना पड़ा |

इतने समीप होकर भी वे दोनों आपस में कितने दूर हो गए थे! जब से देव बाबू पूजा के घर आया था तो पूजा उसीके विषय में सोचती रहती थी | उसकी हर छोटी से छोटी सुविधा का ध्यान रखती थी मगर देव बाबू का संकोच उन्हें स्वतन्त्र रूप से मिलने नहीं देता था | पूजा कई बार सोच उठती थी कि इससे अच्छा तो कॉलिज का समय ही था | कम से कम देव बाबू के मुख पर मुसकान तो थिरकती रहती थी | यहाँ आकर तो उनकी वह मुसकान न जाने कहाँ गायब हो गयी थी | पूजा ने मन में बड़ी घुटन-सी रहने लगी थी | रात को देर तक पूजा के कमरे की बिजली जली रहती और वह रोशनी में लेटी न जाने क्या-क्या सोचती रहती |

उस दिन दोपहर को देव बाबू लौटा तो पूजा ने कितने ही दिनों बाद उसके मुख पर मुसकान देखी थी | पूजा की माँ बराबर वाले कमरे में सो रही थी | देव बाबू पूजा पर एक मुसकराती दृष्टि फेंककर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया |

कुछ देर बाद पूजा भी चाय का कप लेकर उसके कमरे में चली गयी | आज वह भी अपने मन में एक खुशी का समाचार छिपाए हुए थी और शीध्र ही देव बाबू को वह समाचार बता देना चाहती थी | देव बाबू की गहराती हुई मुसकान देखकर उसका जोश कुछ ठण्डा पड़ गया | उसने सोचा कि सम्भवतः किसी तरह उसे यह समाचार मिल चुका है जिससे कि वह आज इतना खुश है |

“क्या बात है...आज बहुत खुश हो?” पूजा ने पूछा |

“हाँ पूजा, तुम्हारे शहर में सिर छुपाने को एक कमरा मिल गया है |”

“बस, इतनी-सी बात है?” पूजा ने हँसते हुए कहा |

“मेरे लिए यह लंका जीतने से कम नहीं है पूजा |”

“हमारे पास इससे भी अधिक खुशी का समाचार है |”

“क्या?”

“तुम्हारी नौकरी डी. ए. वी. स्कूल में...|”

“सच पूजा?” अविश्वास और आश्चर्य से उसने कहा |

“देख लो |” कहते हुए पूजा ने आज डाक से आया नियुक्ति-पत्र उसके हाथ में थमा दिया |

“मैं आज बहुत खुश हूँ पूजा |” कहकर देव बाबू पूजा से लिपटने को आगे बढ़ा मगर उसी क्षण पूजा मुसकराकर कमरे से भाग गयी |

पूजा की माँ जाग चुकी थी | पूजा को इस तरह हडबडाकर भागते हुए आते देखा तो उन्होंने पूछा...”क्या बात है पूजा?”

“माँ, मकान में एक कुत्ता आ गया था...बस काट ही लेता!” घबराहट में पूजा कोई उपयुक्त बहाना न सोच यही कह गयी |

“पागल था क्या?”

“हाँ माँ, लगता था, पागल ही हो गया है |” एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरा झूठ बोला पूजा ने |

“मैंने भगा दिया है माँजी |” बराबर वाले कमरे से देव बाबू ने कहा तो सिहर उठी पूजा | तो क्या उन्होंने सब कुछ सुन लिया है, यह सोचकर वह लज्जित हो उठी | मकान में ठहरना उसके लिए कठिन हो रहा था इसलिए वह रेणुका के घर की तरफ भाग गयी |

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