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परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाएं

परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाएं

आशीष कुमार त्रिवेदी

जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों का आना रोका नहीं जा सकता है। पर हम अपने प्रयासों से उन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने लिए राह निकाल सकते हैं। आवश्यक्ता है अपने पर विश्वास और धैर्य बनाए रखने की।

भारत के सर्वश्रेष्ठ प्राईवेट बैंक ICICI की CEO तथा MD चंदा कोचर ने भी अपनी मेहनत लगन व धैर्य के बल पर परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ लिया।

चंदा कोचर सभी भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। अपनी प्रतिभा के दम चंदा ने कॉरपोरेट सेक्टर में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ते हुए अपने लिए स्थान बनाया।

आर्थिक मंदी के दौर में एक ऐसा दौर आया जब ICICI बैंक के जमाकर्ताओं में बैंक की वित्तीय स्थिति को लेकर संदेह पैदा हो गया। उन दिनों में मीडिया में विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तथा बहसों का दौर चल रहा था। चंदा बैंक के ग्राहकों की चिंता अच्छी तरह समझती थीं। एक व्यक्ति बैंक पर भरोसा कर अपनी गाढ़ी कमाई उसके पास जमा कराता है। यदि बैंक के विषय में वह कोई भी संदेह पैदा करने वाली बात सुनता है तो उसका परेशान होना स्वाभाविक है। अतः चंदा लोगों के भरोसे को कायम रखने के प्रयास में जुट गईं।

उन्होंने ने अपने बैंक की सभी शाखाओं के कर्मचारियों को निर्देश दिए कि जो भी ग्राहक अपना पैसा निकालने आए उसके साथ बहुत नम्रता से पेश आएं। उन्हें बैठाएं। पानी के लिए पूंछे। फिर उन्हें धैर्यपूर्वक समझाएं कि बैंक की स्थिति मज़बूत है। उनका पैसा सुरक्षित है। अतः पैसा निकालने की जल्दी ना करें।

चंदा स्वयं अपने स्तर पर स्टॉकहोल्डर्स, निवेशकों, सरकार तथा जमा कर्ताओं से संवाद स्थापित कर उनकी आशंका को दूर करने का प्रयास करती रहीं।

इसी बीच एक बार वह अपने बेटे का स्क्वॉश मैच देखने के लिए गईं। वहाँ उपस्थित कई लोग उनके पास आए और बैंक के विषय में पूंछाताछ की। वहाँ उनकी उपस्थिति से उन्हें यह एहसास हुआ कि अवश्य सब कुछ सही है तभी तो बैंक की मुख्य अधिकारी चिंता मुक्त होकर मैच देखने आई हैं।

मुश्किलों में हार ना मानने की प्रेरणा उन्हें अपनी माँ से मिली। जब वह केवल तेरह साल की थीं दिल का दौरा पड़ने से उनके पिता की मृत्यु हो गई। पूरे परिवार के लिए यह एक बहुत बड़ा सदमा था। परिवार को पालन की ज़िम्मेदारी चंदा की माँ पर आ गई। अचानक ही सबकुछ बदल गया था। उनकी माँ जो एक गृहणी थीं को अब तीन बच्चों के भविष्य को सुरक्षित बनाना था। जिस मेहनत, लगन व धैर्य से उन्होंने अपने ऊपर आए इस दाइत्व को निभाया उसने चंदा को बहुत प्रभावित किया।

अपनी माँ से मिली इस प्रेरणा को चंदा ने अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रयोग किया।

चंदा कोचर का जन्म 17 नवंबर 1961 को जोधपुर राजस्थान में हुआ था। पिता प्रो. रूपचंद अडवाणी मालवीय रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रधानाचार्य थे। माँ एक गृहणी थीं। चंदा की आरंभिक शिक्षा जयपुर के सेंट ऐंजला सोफ़िया स्कूल से हुई। पिता की मृत्यु के बाद वह मुंबई आ गए। यहाँ जय हिन्द कॉलेज से इन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की। ICWAI से Cost accountancy की पढ़ाई की। प्रबंधन के क्षेत्र में रूचि होने के कारण इन्होंने मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टिट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडी से मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की। चंदा एक असाधारण छात्रा थीं। अतः इन्हें Wockhardt Gold Medal प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त Cost accountancy की पढ़ाई के लिए भी इन्हें J.N.Bose gold medal प्राप्त हुआ।

चंदा कोचर ने अपने कैरियर का आरंभ 1984 में ICICI बैंक में एक मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर किया। अपनी प्रतिभा के बल पर वह ICICI बैंक के CEO व MD के पद तक पहुँच गईं। 1994 में चंदा की पदोन्नति Assistant General Manager के पद पर कर दी गई । अपने अच्छे काम के कारण 1996 में इन्हें Deputy General Manager का पदभार सौंपा गया। इनके कार्यकाल में बैंक ने नई ऊंचाइयों को छुआ। वर्ष 1999 में इन्हें General Manager बना दिया गया। बैंक के प्रतिष्ठित 200 ग्राहकों की ज़िम्मेदारी चंदा को दी गई। यह उनके लिए सम्मान की बात थी।

2000 में कंपनी ने Retail operations की शुरुआत की। चंदा की अगुवाई में इनकी कंपनी Retail sector में सबसे आगे निकल गई। परिणाम स्वरूप कंपनी ने इन्हें Deputy Managing Director बना दिया। इस तरह कदम दर कदम बढ़ती हुई 2009 में वह CEO व MD के पद पर पहुँच गईं।

चंदा कोचर ने अपनी मेहनत व विकासशील विचारों के द्वारा ICICI बैंक को देश का सबसे बड़ा निजी बैंक बनने में सहायता की।

Fortune पत्रिका द्वारा 2014 में चंदा कोचर को विश्व की 50 सबसे शक्तिशाली महिलाओं में स्थान दिया गया है। भारत सरकार द्वारा चंदा को पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

चंदा कोचर जहाँ एक तरफ अपने कैरियर को सफलता पूर्वक संभाल रही हैं वहीं एक पत्नी और माँ के रूप में भी इन्होंने अपने आप को साबित किया है। चंदा आरती तथा अर्जुन दो बच्चों की माँ हैं। अपने काम की जिम्मेदारियों के बीच भी चंदा ने कभी एक अच्छी माँ की भूमिका निभाने में कभी कोई कमी नहीं रखी। जो नैतिक मूल्य इन्हें अपने माता पिता से मिले उन्हें अपने दोनों बच्चों तक पहुँचाया।

चंदा मानती हैं कि उनकी सफलता में उनके पति दीपक कोचर का महत्वपूर्ण योगदान है। दीपक जो Wind energy उद्यमी हैं ने सदैव ही उनका हौंसला बढ़ाया। कभी भी इस बात की शिकायत नहीं की कि वह उन्हें अधिक समय नहीं दे पाती हैं।

चंदा का मानना है कि चाहे स्त्री हो या पुरूष परिवार के विश्वास व सहयोग के बिना सफलता प्राप्त नहीं कर सकता है। वह स्वयं को भाग्यशाली मानती हैं कि उन्हें एक ऐसा परिवार मिला जो सदैव उनके आगे बढ़ने में मददगार साबित हुआ।

पिछले वर्ष भारत सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के फैसले का स्वागत करते हुए इसे एक साहसिक व क्रांतिकारी कदम बताया। भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर भी उनका दृष्टिकोंण बहुत आशावादी है। निवेश बैंकिंग क्षेत्र की वैश्विक कंपनी मार्गन स्टैनली द्वारा प्रकाशित एक साक्षात्कार में चंदा कोचर ने कहा "हम सब चुनौतियों के बारे में ज्यादा बात करते हैं और सकारात्मक पहलुओं को सामान्य बात मान कर उसको भूल जाते हैं।''

कोचर का कहना है कि यदि हम निवेश के माहौल और राजकोषीय स्थिति को मज़बूत करने के बारे में निवेशकों को भरोसा दे सकें तो निवेश आना शुरू हो जाएगा और इससे विनिमय दर, नकदी और इक्विटी प्रवाह की समस्या दूर होगी। इससे एक अच्छा चक्र शुरू होगा लेकिन उक्त दो बातों का होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगले पांच से दस सालों में भारत आसानी से 9 से 10 फीसद की रफ्तार से वृद्धि कर सकता है।

चंदा कोचर ने अपनी सफलता से ना सिर्फ एक उदाहरण प्रस्तुत किया है बल्कि समाज को संदेश भी दिया है। उनकी सफलता उन लोगों के लिए एक संदेश है जो यह मानते हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होती है। उन्होंने दिखा दिया कि एक महिला अपनी मेहनत व प्रतिभा से कुछ भी प्राप्त कर सकती है। वह अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं।

चंदा कोचर मानती हैं कि भाग्य भी तभी साथ देता है जब आप मेहनत करने को तैयार हों।

" सपने देखिए, अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करिए और छोटे छोटे कदम बढ़ाते हुए मंज़िल तक पहुँच जाइए। "

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