समय का पहिया भाग - 5 Madhudeep द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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समय का पहिया भाग - 5

समय का पहिया

भाग . ५

अनुक्रम

१.चिड़िया की आँख कहीं और थी

२.चैटकथा

३.छोटा, बहुत छोटा

४.टोपी

५.ठक.ठक...ठक.ठक

६.तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त!

७.तुम तो सडकों पर नहीं थे

८.दौड़

९.पिंजरे में टाइगर

१० बात बहुत छोटी7सी थी

चिड़िया की आँख कहीं और थी

विनोद मिश्र, शहर के एक चर्चित दैनिक के सवांददाता जब तक पहुँचे, सभागृह खचाखच भर चुका था। नगरसेठ द्वारा हिन्दी दिवस पर प्रदेशभर के साहित्यकारों, शिक्षाविदों, कलाकारों एवं समाज सेवियों का सम्मान किया जा रहा था।

मंच की आदरणीय कुर्सियों पर शहर की नामी गिरामी हस्तियाँ विराजमान थीं। एक राजनैतिक पार्टी के प्रमुख नेता बीच की कुर्सी में अध्यक्ष के रूप में शोभायमान थे। मंच के दोनों ओर तथा सभागृह की दीवारों पर आयोजक के बड़े.बड़े कट आउट सजे थे। विनोद मिश्र ने फटाफट चार पाँच दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लिए तथा इधर.उधर कुर्सी तलाश करने लगे, मगर व्यर्थ। 1खड़े ही रहना होगा1, यह सोचकर दीवार के साथ टिक गए।

मंच पर आसीन कुर्सीयों के भाषण से जब सभागार ऊबने लगा तो उद्घोषक ने पुरस्कार वितरण शुरू करने की घोषणा की।

उद्घोषक एक बार में पाँच.पाँच सम्मान प्राप्तकर्ताओं के नाम पुकार रहा था और वे लाइन लगाकर बारी.बारी से मंच से सम्मान प्राप्त कर रहे थे। मंच की एक कुर्सी शॉल कन्धे पर रखती, दूसरी कुर्सी स्मृति चिन्ह भेंट करती तथा तीसरी कुर्सी सम्मान पत्र सौंपती। इसके बाद आयोजक महोदय से मुस्कुराकर अभिवादन प्राप्त कर वे मंच से नीचे उतर जाते। समय कम था और सम्मान प्राप्तकर्ता अधिक। एक हड़बड़ी सी मची थी। किसी का सम्मान पत्र किसी को तथा किसी अन्य का किसी को। अब वे अपना अपना सम्मान पत्र तलाश करवा रहे थे। उद्घोषक नाम पुकारे जा रहा था...लाइन लम्बी होती जा रही थी.....

इसी बीच सभागृह में एक और उद्घोषणा हुई....1अब शहर के वरिष्ठ तथा प्रतिष्ठित नागरिकों द्वारा आयोजक का सम्मान किया जाएगा तथा शहर की विभिन्न संस्थाएँ उन्हें मानपत्र भेंट करेंगी... शेष सम्मान उसके बाद वितरित किए जाएँगें।1

विस्मयकारी दृश्य था....एक तरफ राज्यभर से आए बुजुर्ग सम्मान प्राप्तकर्ता गिरते.पड़ते मंच से लौट रहे थे तो दूसरी तरफ आयोजक अपनी ढाई इंच की मुस्कान सहित शहर की दर्जनों संस्थाओं से सम्मानित हो रहे थे।

विनोद मिश्र काफी देर तक यह सब देखते रहे। सभागृह में फैली इस अव्यवस्था के कुछ चित्र भी उन्होनें खींचे मगर अधिक देर तक वहाँ ठहर नहीं सके।

वे सभागृह से खिन्न से होकर लौटे और वापिसी के लिए अपनी कार में आ बैठे। यह कैसा सम्मान समारोह था! वे सोच रहे थे।

ढलान से उतरकर कार समतल सड़क पर आई तो उन्होनें कार में लगा रेडियो ऑन कर दिया। समाचारवाचिका का मधुर स्वर उभरा71चुनाव आयोग ने प्रदेश में विधानसभा के चुनाव की घोषणा कर दी है....1

विनोद मिश्र के होठों पर मुस्कुराहट तैर गई।

चैटकथा

रीमा ने दो घण्टे पहले ही फेसबुक पर अपनी नई फोटो पोस्ट की थी। अब तक दो सौ लाइक्स, तीस कमेण्ट्स और तीन शेयर आ चुके हैं। बहुत ही रोमांचित महसूस कर रही है।

4हाय सैक्सी!3 फेसबुक पर चैट बॉक्स खुलता है।

4हाय रैम! कैसे हो?3

4बड़ी हॉट फोटो पोस्ट की है!3

4यू लाइक दैट?3

3ओह यस, सुपर्व!3

4थैंक्स ए लॉट।3

4तुम बहुत क्यूट हो।3

4सच, मैं कैसे मान लूँ?3

4मैं तीन महीने से तुमसे चैट कर रहा हूँ।3

4चैट कर रहे हो या चीट कर रहे हो?3

4व्हाट?3

4तुम, तुम ही हो, मैं कैसे मान लूँ?3

4जैसे मैं मानता हूँ कि तुम, तुम ही हो।3

4बहुत स्मार्ट हो।3

4थैंक्स फॉर कॉम्पलीमेण्ट! कब मिल रही हो?3

4फॉर व्हाट, किसलिए?4

4तुम्हें प्रपोज करना है।3

4शिट, कर दिया न चैट का रोमांस खत्म!3

रीमा ने फेसबुक बन्द कर दी है। अब वह अपना मेल बॉक्स खोल रही है।

छोटा, बहुत छोटा

एक सभ्रान्त सी कॉलोनी में बनी रामनिवास मिश्र की छोटी सी कोठी का आज गृह प्रवेश है।

रामनिवास मिश्र ने गरीब परिवार में जन्म अवश्य लिया था मगर उसमें उससे सतत् संघर्ष का माद्दा भी था। दसवीं की परीक्षा पास करते ही उसने कारखाने में काम करना शुरू कर दिया था ताकि शाम के कॉलेज में अपनी पढ़ाई जारी रख सके। जिस दिन भारत सरकार के एक कार्यालय में तृतीय श्रेणी का लिपिक बनकर पहुँचा, उसका सिर ऊँचा था।

अपने छत्तीस साल के सेवाकाल में वह लिपिक से अनुभाग अधिकारी के पद तक तो अवश्य पहुँच गया था मगर एक कसक हमेशा उसके मन में बनी रही थी। काश! वह ढ़ंग की कॉलोनी में अपना एक छोटा सा आशियाना बना सके। जिस निम्न मध्यम वर्ग इलाके में उसका ठिकाना था, उससे वह कभी सन्तुष्ट नहीं रहा। इसे उसका भाग्य ही कहें, उसे अपने सेवाकाल में ही एक सौ बीस मीटर जमीन का टुकड़ा नगर विकास प्राधिकरण के ड्रॉ में मिल गया था। बस, सेवानिवृत होते ही मिले पैसे से उसने उस पर अपने सपनों का महल बना लिया।

आज गर्व और सन्तोष से रामनिवास मिश्र की गर्दन थोड़ी ऊँची है। गृह प्रवेश के समारोह में उसने अपने सगे.सम्बन्धियों के साथ ही आस.पड़ोस के सभी को बुलाया है।

दोपहर ढ़ल रही है....दो बज रहे हैं। शामियाने में गहमागहमी है।

4मिश्रजी, आपने कोठी में कार पार्किंग नहीं बनबाई?4 पड़ोसी सहगल साहब ने लिफाफा देते हुए कोल्ड ड्रिंक का गिलास हाथ में थाम लिया।

4सहगल भाई, जब अपने पास कार ही नहीं है तो फिर कार पार्किंग का क्या करना है!3 मिश्र ने सहजता से कहा।

4क्या....?3 सहगल साहब चौंके तो उनके हाथ की कोल्ड ड्रिंक मिश्रजी के कपड़ों पर छलक गई।

मिश्र को महसूस हो रहा है, वह छोटा, बहुत छोटा हो गया है।

टोपी

4आइए हजूर, ठिठक क्यों रहे हैं!4

4मगर आगे तो घुप्प अँधेरा है। यह हम कहाँ आ गए हैं?3

4अरे! आप अपने शहर को नहीं पहचानते!3

4क्यों मजाक कर रहे हो? यह मेरा शहर तो नहीं है।3

4अरे नहीं हजूर, हम आपको आपके ही शहर में लेकर आए हैं।3

4मेरा शहर तो रोशनी में सराबोर रहता है। यहाँ तो इतना अँधेरा है कि कुछ भी दिखाई नहीं देता।3

अँधेरे में मशाल जल उठी हैं। वे इधर उधर देख रहे हैं। उनके चारों तरफ भीड़ की परछाईयाँ गोल गोल घेरा बनाए खड़ी हैंं। वे उस घेरे को तोड़ने का भरसक प्रयास कर रहे हैं मगर उनके हाथों की चेन बहुत ही मजबूत है।

अब उनके हाथ अपने सिर की ओर बढ़ने लगे हैं। वे टोपी को अपने सिर पर से उतारकर जेब में छिपाने की सोच रहे हैं। मगर यह क्या! टोपी उनके सिर पर है ही नहीं।

टोपी अब भीड़ के प्रत्येक सिर पर है।

वे चीख कर उठ बैठते हैं। सामने टेलीविजन पर मुख्य समाचार आ रहा है....प्रदेश के मुख्यमन्त्री चुनाव हार गए हैंं।

ठक.ठक....ठक.ठक

जेठ की तपती सुबह है। अभी दस ही बजे हैं मगर लूएँ चल रहीं हैं। भुवनेश्वर दत्त झुँझला रहे हैं, 1इतना समय भी नहीं मिल पाता कि कार का एयर कण्डीशन ही ठीक करवा लें। भागदौड़...दौड़भाग...भागदौड़..., प्रकाशन का भी यह कैसा व्यवसाय है कि इतनी भागदौड़ के बाद भी ठीक सा जुगाड़ नहीं हो पाता।1

लाल बत्ती पर कार रूक गई है। भुवनेश्वर दत्त की झुँझलाहट और बढ़ रही है। यह लाल बत्ती...उफ...कितनी लम्बी.....तीन मिनट की.... वे बेचैन हो उठे हैं।

4बाबूजी! बाल पैन... दस रूपये के चार....ले लो बाबूजी...3 फटी फ्रॉक पहने, एक दस साल की बच्ची कार की खुली खिड़की पर ठक.ठक कर रही है।

4क्या करूँगा इनका.....!3 वे मुँह दूसरी तरफ घुमा लेते हैं।

4ले लो बाबूजी...रोटी खा लूँगी....भूख लगी है....3 खिड़की पर ठक7ठक बढ़ रही है।

1ओह! भीख माँगने का नया तरीका.....!1 वे व्यंग्य से मुस्कुराते हैं। हरी बत्ती होते ही कार आगे बढ़ जाती है।

मुस्कुराहट में भुवनेश्वर दत्त की झुँझलाहट डूब गई तो उन्होनें कार की स्पीड बड़ा दी, 1साढे़ दस बज रहे हैं....सिन्हा साहब ने तो दस बजे ही मिलने को कहा था....कहीं निकल न जाएँ....आज उनसे बात पक्की कर ही लेनी है....चाहे कुछ भी माँगें....इस बार भरपूर आदेश चाहिए उन्हें....1

कार चीं... की आवाज के साथ सिन्हा साहब की कोठी के सामने रूकी। सिन्हा साहब बाहर लॉन में ही कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। देखकर भुवनेश्वर दत्त को तसल्ली हुई।

4सिन्हा साहब, नमस्कार!3

उत्तर मे सिन्हा साहब ने अखबार सामने रखी मेज पर रख दिया तथा उँगली से भुवनेश्वर दत्त को पास पड़ी कुर्सी पर बैठने का संकेत किया।

4सर! इस बार आपकी विषेश कृपा चाहिए।3 चुप्पी तोड़ते हुए भुवनेश्वर दत्त ने कहा।

सिन्हा साहब की प्रश्न भरी दृष्टि उनकी ओर उठी।

4सर! इस बार बिटिया की शादी तय हो गई है।3

4बहुत खूब भुवनेश्वरजी! सब यही कह रहे हैं....क्या यह कोई नया तरीेका है....?3

सुनकर भुवनेश्वर दत्त सन्न रह गए हैं।

ठक.ठक....ठक.ठक.....कार लाल बत्ती पर खड़ी है....खिड़की पर लगातार ठक.ठक हो रही है।

तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त!

हिन्दुस्तान की तरह ही एक देश। दिल्ली की तरह ही उसकी एक राजधानी। बाबा खड्गसिंह मार्ग पर स्थित कॉफी हाउस की तरह ही बैठकों का एक अड्डा। एक मेज पर छह बुद्धिजीवी सिर से सिर मिलाए गर्मागर्म बहस में उलझे हुए हैं। मैं बराबर की मेज पर अपना कॉफी का प्याला लिए बैठा हूँ।

4देश की अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है...3

4नेताओं ने सारे देश को लूटकर खा लिया है.....3

4दुश्मन हमारे सैनिकों के सिर काट रहा है.....3

4सबसे बड़ा प्रश्न भ्रष्टाचार का है....3

4तुम इतना चुप क्यों हो दोस्त....!3

4मैं कुछ कहना नहीं, करना चाहता हूँ मेरे दोस्त....!4

मेरे प्याले की ठण्डी हो रही कॉफी में उबाल आने लगा है।

तुम तो सड़को पर नहीं थे

1अल्लाह हो अकबर....1

1हर7हर महादेव....1

कस्बे में दो दिन लगातार हुए ताण्डव के बाद अब सड़को पर घोड़ों की टापें और फौजी जूतों की आवाजें ही शेष रह गईं थीं। सब कुछ बन्द था....हर तरह के नारे अब फुसफुसाहटों में बदल गए थे।

आज सुबह दस बजे से कर्फ्यू में चार घण्टे की ढील दी तो दोनों ही सम्प्रदायों के लोग जरूरत की चीजें खरीदने घर से बाहर निकले। सभी की आँखों में भय, विस्मय और आश्चर्य के भावों के साथ ढे़रों प्रश्न तैर रहे थे। यह रामनाथ है, यह प्रभुदयाल है, यह महमूद भाई है और यह अहमद मिस्त्री है। सभी एक दुकान से बच्चों के लिए दूध खरीद रहे हैं और एक दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहे हैं।

4अहमद भाई, तुम तो उस दिन मेरे कारखाने में काम कर रहे थे....3

4रामनाथजी, तुम तोे उस दिन अपने लड़के के पास लखनऊ गए हुए थे...3

4महमूद भाई, तुम तो उस दिन अब्बा के पास हस्पताल में थे....3

4प्रभु भाई, तुम तो उस दिन सड़कों पर नहीं थे....3

4तो....?3

तभी दो पल्सर मोटर साइकिलें विपरीत दिशाओं से आकर वहाँ ठहरीं, उन पर बैठे दो धुर विरोधी पार्टियों के नेता एक दूसरे करे देखकर मुस्कुराए और मोटर साइकिलें विषैला धुआँ छोड़ती हुई फर्राटे से आगे बढ़ गई।

दौड़

4भाई साहब! अब मैं अपनी जिन्दगी के बारे में आपको क्या बताऊँ! चालीस साल पहले जब मैं गाँव से इस शहर में आया तो बिल्कुल खाली हाथ आया था। न किसी से जान पहचान, न सिर छिपाने का कोई ठिकाना। बड़ी मुश्किल से फतेहपुरी की धर्मशाला में दो दिन को छत मिली थी। मैं भी पक्का निश्चय करके आया था कि इस शहर से खाली हाथ कतई नहीं लौटना है, सो अगले दिन ही नया बाजार जा पहुँचा और जुट गया पल्लेदारी में। कमर पर बोरियाँ ढ़ोईं हैं मैने और आज मेरे पास सब कुछ है। नया बाजार में अपनी दुकान है और मॉडल टाउन में अपनी कोठी।3

4बात तो तुम्हारी ठीक है दोस्त! मगर अब भी तुम्हारी जिन्दगी में ठहराव क्यों नहीं है? तुम इतने उखड़े हुए क्यों लग रहें हो?3

4नहीं तो....3

4देखो, जो कुछ तुम जुबान से कह रहे हो, तुम्हारी आँखें उसके खिलाफ बहुत कुछ बयान कर रहीं हैं।3

4हाँ भाई साहब! तुमने मेरी चोरी पकड़ ली है। अब मैं तुम से झूठ नहीं कह पाऊँगा। यह सच है कि आज मेरे पास सब कुछ है मगर उससे भी बड़ा सच यह है कि आज मेरा अपना कोई भी नहीं है।3

4तुम्हारा भरा.पूरा परिवार है!3

4यह सच है मगर यह भी झूठ नहीं है कि मेरा अपना कोई नहीं है।3

4ऐसा कैसे हो सकता है?3

4मैं सबके लिए सब कुछ जुटाने के चक्कर में इस कदर उलझा रहा कि मुझे पता ही नहीं चला कि सब मुझसे दूर चले गए। खैर छोड़ो, तुम नहीं समझोगे!3

4नहीं दोस्त, मैं तुम्हारे बारे में बहुत पहले से ही सब कुछ समझता हूँ जानता हूँ। तुम भूल रहे हो, मैंने तुम्हें इस अन्धी दौड़ में दौड़ते हुए कई बार टोका है, मगर तुम दौड़ते हुए इतना आगे निकल गए कि मेरी आवाज तुम तक पहुँच ही नहीं सकी। आज तुम दौड़ते हुए थक गए हो, इसलिए पकड़ में आ गए।3

4मैं नहीं जानता, इस दौड़ का अन्त कहाँ होगा।3

4मगर मैं जानता हूँ।3

4तो बताओ ना।3

4दौड़ना तो तुम्हें होगा ही मेरे दोस्त! मगर अब इस दौड़ की दिशा बदल दो।3

4क्या मतलब?4

4अब तक तुम अपने और अपनों के लिए दौड़ते रहे हो, अब से तुम दूसरों के लिए दौड़ो। देखना, तुम्हारे चारों तरफ फैला अकेलापन कैसे जादू की तरह गायब होता है।3

मैं सिर उठाकर सामने देखता हूँ, मगर सामने की कुर्सी पर तो कोई भी मौजूद नहीं है।

पिंजरे में टाइगर

बंगाल टाइगर को जब सुन्दरवन के जंगलों से पकड़कर चकाचौंध की इस महानगरी मे लाया गया तो सभी के मन मे गहरी उत्सुकता थी कि इसे पालतू कैसे बनाया जा सकेगा! कहाँ जंगल बीहड़ों में गुजारी गई नक्सली जिन्दगी और कहाँ मायानगरी का ग्लैमर।

स्टूडियो में 1तूफान1 के सैट पर सरगोशियाँ हो रहीं थीं।

4दत्ता साहब इतने तजुर्बेकार डायरेक्टर हैं, यह किस जानवर को पकड़ लाए!3

4इण्डस्ट्री में एक से बढ़कर एक हीरो हैं, प्रोड्यूसर तरनेजा का तो अब भी भगवान ही मालिक है!3

भुवन चक्रवर्ती एक कुर्सी पर अधबैठा.सा है। उसके सख्त चेहरे पर दो आँखें दहक रहीं हैं। कभी गर्दन एक तरफ, कभी दूसरी तरफ। वह कसमसा रहा है। वह हक्का बक्का है। वह समझ नहीं पा रहा है कि वह किस माँद में आ फँसा है।

4लाइट...साउण्ड....कैमरा....एक्शन....3 निर्देशक की गूँजती आवाज के साथ वहाँ पसरे सन्नाटे में सभी साँस रोके 1तूफान1 के पहले शॉट को देख रहे हैं।

हिरोइन लहराती सी आगे बढ़ी। टाइगर के पाँव जमीन से चिपक गए। ग्लैमर ने जंगल को अपनी बाँहों में जकड़ लिया। सुन्दरवन की दहकती आँखें उस पर गड़ गईं। मिस वर्ल्ड के लिपस्टिक पुते गुलाबी अधर यकायक खुरदुराहट से जा टकराए।

4ओ.के.....कट....3 के साथ गूँजती हुई तालियाँ तेज रोशनी में नहा गईं।

भुवन चक्रवर्ती अब आराम कुर्सी पर पसरा हुआ है। उसके हाथ में 1चिल्ड बीयर1 का बड़ा सा मग थमा दिया है। स्पॉट ब्याय उसके झुके सिर को तौलिये से पोंछ रहा है।

पूरी यूनिट के चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव हैं। सुन्दरवन का टाइगर मायानगरी के पिंजरे में कैद हो गया है।

बात बहुत छोटी सी थी

4छोटे! सुबह सुबह उठकर माँ को राम.राम कर लिया कर, इससे उन्हें बहुत सुख मिलेगा।3

4मैं उन्हें सुख क्यों दूँ, उन्होंने मुझे क्या दिया है?3

4यह लेने.देने की बात नहीं है भाई! वह माँ है....हमारी माँ....!3

4ये खोखले आर्दश अपने पास रखो! मुझे नसीहत देने की जरूरत नहीं है।3

4अच्छा एक बात बता! नन्हा सुबह उठकर तुझे गुड मार्निंग करता है?3

4क्यों नहीं! वह मेरा बेटा है...मेरा बेटा....!3

4क्या तुम माँ के बेटे नहीं हो?3

बात बहुत छोटी सी थी, शायद छोटे भाई की समझ में आ गई। उसने कमरे में जा कर माँ के पाँव छू लिए।