बुलबुला
लेखक :– अजय ओझा
© COPYRIGHTS
This book is copyrighted content of the concerned author as well as Matrubharti.
Matrubharti has exclusive digital publishing rights of this book.
Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.
Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.
बुलबुला
वह टहलते टहलते उब गया तो एक नुकीले पथ्थर परतिरछे ढंग से बैठा । वह थियेटर में 'मेरा नाम जोकर' देखने गया था ।पर न जाने क्युँ इन्टरवल में ही फिल्म आधी छोडकर वह निकल गया ।शायद बचा वक्त गुजारने वह यहां आया होगा । उसकी आँखो में कोईभावनाएँ नहीं दिख रही थीं । या तो उसकी भावशून्यता इतनी सरलनहीं थी कि कोई पहचान सके ।
सागर में किनारे तक एक हलकी–सी लहर आई औरपथ्थरों के बीच बुलबुलों को इधर–उधर बिखेरती चली गई । पथ्थरछोटे व बडे, कुछ धूल व मिट्टी, थोडा किचड़ और सबसे अधिककिनारों पर भीगी रेत । इन पाषाणों के बीच जहाँ जगह मिली वहाँबुलबुले स्थिर होते गये । बुलबुले कुछ छोटे, कुछ बडे, कुछपारदर्शक, कुछ पारभासक, कुछ बिखरे कंकर तो कुछ जैसे मोती कीमाला । कोई फूटे तो छोटी–सी आवाज़ सुनाई दे, न भी सुनाई दे ।तो कोई तो फूटे ही नहीं । मानो बुलेटप्रुफ बुलबुला । इर्दगिर्द चींटियाँऔर छोटे–मोटे कीडो की फौज चकराती रहती ।वह एक नुकीले पथ्थर पर तिरछे ढंग से बैठा था । उसकोक्या सूझा कि हाथ में एक छोटी–सी तीली लेकर लगा बुलबुले कोफोडने । फट् फट् ़ ़ ़ एक ़ ़ ़ दो ़ ़ ़ तीन ़ ़ ़ । फिर रुका, तीलीफैंक दी । वह छोटा बच्चा नहीं था कि बुलबुले के साथ खेलने काउसका जी करे और ना ही उसने बुलबुले को पहली बार देखा था ।
फिर भी वह तीखी नजरों से बुलबुले की ओर देखने लगा ।बचपन में पानी के बरतन में ग्लास रखकर वह बुलबुलेबनाता । कभी स्ट्रो का प्रयोग भी किया होगा । तब से लेकर अबतकअभी अभी इन्टरवल के बाद जो पी थी वो शराब की प्याली में बनेरंगीन बुलबुलों को देखकर भी वह कभी हैरान नहीं हुआ था । शायदवह अपना वजूद इन बुलबुलों में खोजता रहता । और असफल होने परसब कुछ भूल जाता ।
निगाहों की धूल झँझोटकर उसने आसपास देखा । वैसेचींटियाँ अपनी कतारों को कभी छोडती नहीं, पर मकोडे में ऐसारिवाज कहाँ ? एक मकोडा अपनी टोली को छोडकर बुलबुले की ओरआया । उसकी छोटी–सी आँखों कों वह दृश्य भा गया हो ऐसे देखताखडा रहा । कीडे को बुलबुले में शायद अनगिनत सूर्य दिखे होंगे याफिर अपने इतने सारे रंगीन प्रतिबिंब देखकर दंग रह गया हो । वहबुलबुले को कुचलता हुआ, उसमें से आरपार निकलता हुआ आगेबढा। कुछ बुलबुले फूट जाते तो कुछ अपने आपको बनाये रखते । इसतरह एक बडे–से बुलबुले के सामने आकर वह रूका । आसपास कईंछोटेछोटे बुलबुले थे, लेकिन मकोडे को मानो वह बडा बुलबुला पसंद
आया हो ऐसे देखता रहा । फिर आगे बढा । इस बार मकोडा इतनासँभलकर चला मानो वह बुलबुले को हिफाजत से बनाये रखना चाहताथा ।़ ़ उसने नजरें घुमाईं ।
कुछ दूरी पर एक बगुला पानी में एक पैर पे खडा था । एकछोटा कंकर लेकर उसने पानी की ओर फैंका, पर पानी तक न पहुँचपाया । फिर भी उसके प्रवाही मन में विभिन्न तरंगे छलकने लगी ।
पढाई करते वक्त मालुम नहीं था कि नौकरी पाने के लिएइतने मुँग दलने पडते है । बुजुर्गों की दुआ और 'डोनेशन' की बदौलतउसे जब नौकरी मिली तब लडकी खोजने की कोई झंझट ही ना थी,क्युं कि मीनाक्षी उसे बहोत प्यार करती थी । उसने मीनाक्षी से'लवमेरेज' करना ठान लिया था, सो बुजुर्गों के खौफ को भी मोललिया, पर मीनाक्षी से शादी करके ही रहा ।एक से दूसरे में, दूसरे से तीसरे तक, निकलते निकलतेमुख्य बुलबुले के प्रवेशदार पर मकोडा आ पहूँचा । धीरे से अंदर प्रवेशकिया । अहा ़ ़ ़ भीतर की दुनिया में उसे मजा आ गया । बुलबुलामानो काँचका मोटा गोला । सब कुछ खूबसूरत लगे और अपनी टीममें रहने की कोई झंझट नहीं । खुशी का मारा मकोडा गोल गोल घूमनेलगा ।
़ ़ ऐसा लगता तो नहीं था कि वह उब गया हो, या फिरअपने चेहरे पर उस तरह के कोई संकेत नहीं आने देता था । पथ्थर परसे एक समुद्री केकडा फिसलकर दूर जा गिरा । पवन से सागर मेंछोटी–बडी लहरें उमडती रहती थीं । कब से तिरछा होकर बैठा था सोअब जरा ढंग से बैठ गया ।
जात इन्सानों की हो या मकोडों की, एक जैसीपरिस्थिति में कायम रह सके तो प्रकृति ने बनाये नियमों क्या मतलब?तो ? घूमने के बाद थोडी ही देर में मकोडा उब गया । करीब से कुछचींटियाँ निकली, सोचा उन्हें बुलाएँ । मकोडे ने एक चींटी कोबुलाया। चींटी ने सुना ही नहीं तो वो शरमिंदा हुआ । फिर इधर–उधरनजरें घूमाने लगा । एक चींटी इसी ओर आ रही थी । वो भीतर आईतो मकोडा तो खुशी से पागल हो गया, झुमने लगा । चींटी भी खुशऔर मकोडा भी खुश । कई जीव–जंतु गुजरे, कुछ देर ये नजारा देखे,फिर चले जाये ।
बगुला अपने नन्हें पैर में कुछ कुछ फाँसकर उड़ गया । वहकुछ देर विचारों में खोया शांति से बैठा रहा । ऐसा लगता था जैसेअब उसकी आँखें हँस पडी हो । तीन दिन की बढी दाढी को उसनेअपने हाथों से सहलाया ।
कुछ देर बाद मकोडा चींटी को खींच रहा था । चींटीभला ऐसी खींचातानी कैसे सहन करें ? लड़ पडे दोनों । चींटी इधरखींचे और मकोडा उधर । खींचातानी में हुआ ये कि मकोडे का एकपैर टूटा । वो आगबबूला हो गया । तनाव बढा तो रूठकर चींटी निकलगई बुलबुले से बाहर । पृष्ठताण के सिद्धांत ने शायद अपना कामकिया, बुलबुला अभी फूटा नहीं । भीतर मकोडा एक बार फिर अकेलाहो गया । फिर वो काच के गोले से आरपार दिखाई दे रहे बडे बडेदृश्यों कों देखने लगा ।
़ ़ अच्छा होता अगर मीनाक्षी को मना लिया होता । उसकेमन में विचार सिलवटें बदल रहें थें । अपने पोकेट से पर्स निकालकरखोला । मीनाक्षी की तसवीर को देखने लगा । लवमेरेज के बाद'मेरेज' को छोड़ 'लव' कहाँ चला गया, पता ही ना रहा ? वैसे दोषकिसीका भी नहीं था । जनरल केटेगरी में होने से उसको प्रमोशन्सनहीं मिल पाते थे । 'मौके' के काउन्टर दूसरे सिनियर अफसरों केपास रहते थे, इनमें उसका क्या दोष ? ये सब बात वह मीनाक्षी कोसमझा न सका, और ़ ़ ़पर्स धीरे से वापस रख दिया । चंद बादल आकाश मेंविभिन्न आकार बनाकर बिखर गये । उसकी आँखें बोझिल होने लगीथीं । वह दिल पर हाथ घिसने लगा, मानो दिल सुन्न पड़ गया हो ।ओफिस में लंबे अरसे से खाली पडी रीजर्व जोब किसीलडकी को मिली । देखते ही मन को भा जाए ऐसी लडकी सीमाअपनी कुर्सी उसके करीब खींचकर बैठती, और बातें करने लगती ।
बार बार अलग अलग फाइलें लेकर वह उसके पास मार्गदर्शन लेनेघण्टो तक बैठती । हकीकत जानने के बावजूद भी सीमा उसे चाहनेलगी । सीमाने उसे एक नया जीवन दिया, उडने को पंख दिए ।हलके से हवा के झोंकों ने बुलबुले को थथरा दिया । चंदचींटियों की कतार देख मकोडे की आँख में चमक आ गई । अपनाहौसला बनाये रखकर मकोडे ने उन चींटियों को बारी बारी से बुलाकरदेखा । आखरी चींटी पर निगाहें रूकी । उसके सर पर चावल काआधा दाना था, शायद इसी वजह से वह धीमी थी । पंखोंवाली उडतीचींटी समझकर मकोडे ने उसे बुलाने का इशारा किया । किस्मत नेसाथ दिया, चींटी अपनी कतार का रास्ता छोड़ बुलबुले की ओर आनेलगी । मकोडा खुश हो गया ।
़ ़ उसने फिर एक कंकर फैंका । इस बार पानी में ही जागिरा । पानी की फिर एक लहर पथ्थरों तक आकर उसके पैरों कोभीगोकर लौट गई । उसने दोबारा शादी करने का प्रस्ताव सीमा सेरखा था और सीमा ने खुशीखुशी प्रस्ताव का स्वीकार भी किया था ।
उसे लगा कि सीमा उसके जीवन को नई दिशा और नये उमंग देने हीबनी थी । और दोनों की जोब अच्छी होने से पैसों की कोई समस्यानहीं हो सकती ।
पंखवाली चींटी काच के गोले की ओर धँस रही थी ।पहले सात बार देखी फिल्म 'मेरा नाम जोकर' उसे काफी पसंद थी ।
तो आठवीं बार देखने गया था ।मीनाक्षी की तसवीर काफी धुँधली हो चूकी थी । उसेपर्स में से निकालकर स्वच्छ करने की ईच्छा हुई, पर न कर सका ।लहरों पर उडता कोई शिकारी पंछी पानी से एक मछली चोंच मेंदबाकर ले गया ।इन्टरवल में तीसरी 'रो' में ओफिस के एक सिनियरअफसर के साथ बाहें थामकर बैठी सीमा को उसकी निगाहों ने परखलिया । वह फिल्म आधी छोड़ बाहर भाग आया । वह नहीं समझ पायाकि किस हकीकत से डरकर वह भाग रहा है ।उसे लगा उसके अस्तित्व में कुछ वजूद नहीं है । सिमटीहुईं पीडाएँ उसकी आँखों से छलकने लगीं । उसने एक छोटी–सीतीली हाथ में ली, और तीखी नजरों से उस बुलबुले की ओर देखनेलगा ।
चावल का दाना समेत चींटी बुलबुले मे प्रविष्ट हुई तभी ़ ़ ़