हुक्मउदूली भाग 1 Jaynandan द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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हुक्मउदूली भाग 1

(नाटक)

हुक्मउदूली

भाग 1

जयनंदन

पात्रपरिचय

सोहर मिश्र:एक घाघ नेता

प्रथा:सोहर मिश्र की बेटी

उमा देवी:सोहर मिश्र की पत्नी

मनोहर मिश्र:सोहर मिश्र का भाई

तपोवन कुमार:प्रथा का दोस्त

चौसर मिश्र:मंत्री

अभिराम मिश्र:मंत्री का बेटा

जग्गनमग्गन:अंगरक्षक

गपलू:घर का नौकर

दृश्य 1

(एक बड़ा सा बैठकखाना है जिसमें औसत मध्यमवर्गीय स्तर का सोफा लगा है। मुखिया सोहर मिश्र का एक खास आसन लगा है । उसके सामने लगे दो तीन सामान्य सी गोल बैठकी पर सहमे से गाँव के तीन आदमी बैठे हैं। सोहर मिश्र प्रवेश करते हैं तो बैठे हुए ग्रामीण हाथ जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में उठ जाते हैं। सोहर उन्हें बैठने का इशारा करके अपने खास आसन पर विराजते हुए पूछते हैं।)

सोहर: हाँ बोलिए, कैसे आना हुआ?

ग्रामीण 1: हम बिरहनपुर गाँव से आये हैं मुखिया जी, कल रात हाथी ने मेरे बेटे को कुचल दिया।

सोहर: च च च (अफसोस जताना) बहुत दुख हुआ, क्या नाम है तुम्हारा भाई ?

ग्रामीण 1: रखवाला महतो ।

सोहर: क्या उम्र थी बेटे की ?

ग्रामीण 1: जवान था हुजूर, उसका एक छोटा बच्चा भी है। उसी की कमाई पर पूरा परिवार टिका था।

सोहर: (दूसरे व्यक्ति की ओर इशारा करके) तुम कहां से आये हो भैया ?

ग्रामीण 2: राघोपुर से हुजूर। मेरा नाम लचका दास है। हाथी ने मेरी घरवाली को मार दिया सरकार। (आँख में आँसू भर आना) हम बर्बाद हो गये सरकार।

सोहर : हम समझ सकते हैं आपका दुख, धीरज रखिये...धीरज रखिये। (तीसरे की तरफ इशारा करके) क्या तुम्हारे भी किसी रिश्तेदार को हाथी ने मार दिया ?

ग्रामीण 3: हाँ सरकार, हमारे बहनोई आये हुए थे, रात में पेशाब करने के लिए उठे, हाथी ने उन्हें भी कुचल दिया। मेरी जवान बहन विधवा हो गयी।

सोहर: हे ईश्वर ! यह हाथी तो लगता है साक्षात यमराज बन गया है।

ग्रामीण 3: हुजूर, कुछ उपाय कीजिए, नहीं तो न जाने और भी कितने घरों को यह हाथी तबाह कर देगा।

सोहर: हम आज ही वन मंत्री से मुलाकात करते हैं। आपलोग सभी हमारे आदमी हैं, आप सबके दुख ने मेरी नींद भी उड़ा दी है। आपलोग भरोसा कीजिए, मैं कुछ न कुछ जरूर करवाउंगा।

ग्रामीण 1: वन विभाग एक सप्ताह से हमें आश्वासन दे रहा है और हाथी को ढूंढ़ने की कसरत कर रहा है, मगर उन्हें आज तक हाथी की परछाईं भी नजर नहीं आयी।

ग्रामीण 2: आप हमें आदेश कीजिए मुखिया जी, हम खुद ही इस हाथी से निपट लेने में सक्षम हैं। हम गाँववाले जिस दिन चाहें इसे मार दें ।

सोहर: ना ना मेरे भाई, ऐसा भूल से भी नहीं करने का है, नहीं तो मुश्किल में फंस जायेंगे आपलोग। सीधा मर्डर का मुकदमा लॉज हो जायेगा आपके खिलाफ। हाथी संरक्षित वन्य प्राणी है। इसे आप मार नहीं सकते। लेकिन आपलोग चिन्ता मत कीजिए। कुछ उपाय जरूर होगा और मैं आपलोगों को कुछ न कुछ मुआवजा भी दिलाने की कोशिश करूंगा।

ग्रामीण 2तो अब हमलोग जायें मुखिया जी ?

सोहर: अरे ऐसे कैसे जाइयेगा....(ऊंची आवाज में) गपलू...इन तीनों भाइयों को ले जाकर नाश्ता

पानी कराओ। (गपलू दौड़कर आता है) हां, जाइये इसके साथ आपलोग।

(वे तीनों भी चले जाते हैं हाथ जोड़ते हुए)

(सोहर सामने बैठे मनोहर को संबोधित करते हैं)

सोहर: मनोहर।

मनोहर: जी भैया।

सोहर: हाथी ससुर तो साक्षात यमदूत बन गया है। वन विभाग भी ऐसा निकम्मा है कि इनसे दीमक तक नहीं मरती, हाथी क्या मारेंगे ?

मनोहर: आप सीधे वन मंत्री से बात क्यों नहीं कर लेते। आप उनके खास आदमी हैं...सजातीय हैं...आपसे उनकी अच्छी पटरी है।

सोहर: ठीक है...फोन लगाओ...हम उन्हीं से बात कर लेते हैं।

(मनोहर मिश्र टेलीफोन पर नम्बर डायल करते हैं। पास ही में उमा देवी और प्रथा बैठी है।)

मनोहर: हां लीजिये...नंबर लग गया...घंटी बज रही है। (फोन सोहर की ओर बढ़ा देना)

सोहर: हलो, हाँ मंत्री जी से बात करवाइये, हम सोहर मिश्र बोल रहे हैं। हाँ चौसर बाबू। समाचार सब ठीक है। देखिये न, हाथी वाला मामला तो बड़ा जटिल हो गया है। रोज किसी न किसी आदमी को मार दे रहा है। जनता में रोष बढ़ता जा रहा है। सात आठ जन मारे जा चुके हैं। खैरियत कहिए कि अब तक सारे गरीबगुरबा लोग ही चपेट में आये हैं। किसी बबुआन पर यह मुसीबत आ गयी तो बहुत मुश्किल हो जायेगा।

चौसर: हाथी भी नीमर और बरियार का अर्थ बूझता है सोहर बाबू।

सोहर: हा...हा...हा...आप बिल्कुल ठीक कहते हैं। लेकिन अब कुछ उपाय करना पड़ेगा। इलेक्शन नजदीक हैं...दूर रहता तो मटियाया जा सकता था।

चौसर: (फोन पर दूसरी तरफ) सोहर बाबू, यह मामला तो आप खुद ही संभाल सकते हैं। आपको भला कौन नहीं जानता है। डी एफ ओ और डी सी को बोलिये, मेरा हवाला दीजिए, साले सब सैल्यूट लगाकर परेड करेंगे आपके पीछे-पीछे। फिलहाल मैं भी जरा एक मुश्किल में हूं।

सोहर: आप मुश्किल में हैं, क्या हुआ सब ठीक तो है? अभिराम का केस काबू में तो है न !

चौसर: कहां काबू में है। विपक्ष के लोग रोज हल्ला मचा रहे हैं, प्रेसवाले भी एकदम पीछे पड़ गये हैं। पुलिस कह रही है कि अब ऐक्शन लेना ही होगा। क्या करें कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

सोहर: चौसर बाबू! पुलिस से बचने-बचाने के मामले में आप जानते हैं कि मैं माहिर माना जाता रहा हूं। आपको अपनी यह चिन्ता मुझे बतानी चाहिए थी। अभिराम को आप मेरे पास भेज दीजिए। मेरे घर में रहेगा, पुलिस और विपक्ष वाले को हवा तक नहीं लगेगी।

चौसर: ओह, सोहर बाबू, आपने तो मेरी समस्या ही दूर कर दी। धत तेरे की, क्यों मेरे ध्यान में आपका नाम नहीं आया। बहुत-बहुत धन्यवाद सोहर बाबू। मैं आज ही अभिराम को आपके घर भेज रहा हूं। हाथी वाला मामला आप जैसे भी हो खुद देख लीजिए। हमलोगों के बारे में जनता में गलत संदेश नहीं जाना चाहिए।

सोहर: आप बेफिकर रहिए, आपने कह दिया, मैं सब संभाल लूंगा। प्रणाम। (फोन रख देना)

दृश्य 2

(सोहर बाबू सामने बैठे अपने भाई मनोहर, उमा और प्रथा से मुखातिब हैं।)

सोहर: मनोहर, ड्राइवर को कहो, जीप निकाले, हम डीसी के पास जायेंगे।

मनोहर: पहले फोन से पता तो कर लीजिए कि डीसी हैं भी या नहीं।

सोहर: तुम पता करो।

(मनोहर फोन करने लग जाता है)

सोहर: (उमा देवी को संबोधित करते हुए) सुनती हो, चौसर मिश्र का सुपुत्र अभिराम आ रहा है अपने यहां। पुलिस उसकी तलाश कर रही है। उसे एक-दो सप्ताह यहां रखना होगा। उसके लिए एक कमरा ठीक करवा दो।

उमा: आप उसे गाँववाले घर में क्यों नहीं रखवा देते।

सोहर: अरे मंत्री का बेटा है, कुछ तो खयाल करो। वह सब दिन शहर में ही रहा है। ऊपर से गाँव में तो देख ही रही हो कि हाथियों का उत्पात चल रहा है।

प्रथा: पापा, क्या पुलिस उसे यहां नहीं ढूंढ लेगी?

सोहर: ढूंढ लेगी मतलब क्या? पुलिस को तो हम खुद ही बता देंगे कि वह यहां है और उसे यहां न ढूंढा जाये। पुलिस आखिरकार हमारी मदद के लिए है न कि विपक्ष के लिए।

प्रथा: लेकिन मर्डर तो उसने किया है न पापा। कानूनी कार्रवाई से आखिर वह कब तक बच सकेगा?

सोहर: तुम क्यों इस मगजमारी में फंसती हो। कानून भी आदमी देखकर अपनी कार्रवाई तय करता है।

(फोन पर बात खत्म करने के बाद मनोहर सोहर की तरफ मुखातिब होता है)

मनोहर: डी सी साहेब गाँव विजिट करने गये हैं, जहां हाथी ने उत्पात मचाया है।

सोहर: ठीक है, विजिट करके आने दो तब शाम में मिलते हैं।

उमा: वे विजिट ही करते रहेंगे और हाथी रोज किसी न किसी को कुचलता रहेगा।

प्रथा: पापा, मैं कुछ बोलूं ?

सोहर: हां, तुम क्यों बाकी रहोगी, चलो अपना बहुमूल्य राय दे ही दो।

प्रथा: पापा, मुझे यह समझ में नहीं आता कि आदमी अपनी थोड़ी-सी दुश्मनी के कारण आदमी को मरवा देता है। फिर उस पागल जानवर को क्यों नहीं मारा जा सकता जिसने कई बेगुनाह आदमियों को मार डाला है।

सोहर: प्रथा बेटे, तुम चीजों को एकांगी नजर से देखकर राय बना लेती हो। हाथी एक जानवर है और वह विक्षिप्त भी है, उसे मार देना तो बहुत आसान है। इस तरह हम मारने लगें तो सारे जंगली जानवर खत्म हो जायेंगे। जरूरत है हमें उन्हें बचाने की। सरकार ने इसीलिए ऐसी नीति बनायी है जिससे उन्हें मारना कानूनी अपराध माना जाता है।

प्रथा: आप कहते हैं कि मेरी नजर एकांगी है, लेकिन मुझे तो आपकी हर बात में एक अन्तर्विरोध और दोमुंहापन दिखता है।

उमा: प्रथा, बंद भी करो अपना मुंह। कुछ भी उटपटांग बोल देती हो। जरा सी छूट क्या मिल गयी है कि एकदम मुंह लग गयी हो इनके। सबको साहित्य के बटखरे से ही मत तौलने लग जाओ। तुम कहीं जाने के लिए कह रही थी न!

प्रथा: हाँ, मैं जा रही हूं। एक कवि गोष्ठी है, बाबूजी से इसी के बारे में पूछने आयी थी।

सोहर: तुम्हारी यह गोष्ठी तो लगता है अब सप्ताह में ही होने लगी है। प्रथा अब तुम्हें हर ऐरे-गैरे कार्यक्रमों में नहीं चला जाना चाहिए। उम्र और स्टेटस के हिसाब से तुम्हें जरा सेलेक्टिव हो जाना चाहिए।

प्रथा: कविता पर कोई भी कार्यक्रम हो, वह ऐरा-गैरा नहीं हो सकता। देश-दुनिया को बेहतर बनाने के ईमानदार सपने सिर्फ साहित्य में ही देखे जाते हैं, बाउजी।

उमा: अब तुम कविता यहीं मत सुनाना शुरू कर दो। जाओ और जल्दी आना।

दृश्य 3

(एक पार्क का दृश्य। तपोवन एक बेंच पर बैठकर इंतजार कर रहा है। कुछ देर में प्रथा प्रकट होती है।)

तपोवन: आइये...आइये। शुक्र है, आखिरकार तशरीफ लाने की आपने इनायत कर दी...हद है, पिछले एक घंटे से मैं आपका इंतजार कर रहा हूं।

प्रथा: सॉरी बाबा, सॉरी। तुम तो जानते हो...घर से निकलने के पहले भूमिका बांधनी पड़ती है...बहाने गढ़ने पड़ते हैं...आज कविगोष्ठी का बहाना लेकर आ रही हूं।

तपोवन: कविगोष्ठी बहाना कहां हुआ, यह तो सच्चाई है। हम यहां एक-दूसरे को अपनी रचनायें तो सुनायेंगे ही, भले ही इस गोष्ठी में उपस्थिति सिर्फ दो की ही रहेगी।

प्रथा: वाह, इसे कहते हैं तार्किकता। मान गये, यह कला कहानीकारों से अच्छा किसी को नहीं आ सकती।

तपोवन: चलो, अब तुम बिना देर किये अपनी कविता सुनाओ।

प्रथा: अरे पहले मुझे इस पार्क की प्रकृति और तुम्हारे आत्मीय सामीप्य से समरस तो हो जाने दो।

तपोवन: चलो ठीक है, तुम मुझे अपना हाथ दो...मैं तुम्हें अपनी अनुभूति देता हूं। देखो...चिड़ियों का चहचहाना...पेड़ों के साथ हवाओं की अठखेलियां...फूलों और रंगविरंगे पत्तों की नयनाभिराम छंटायें...तितलियों, भंवरों और सामने पेड़ पर गिलहरियों का उन्मुक्त विचरण। उम्मीद है, तुम अब इस आवो-हवा से पूरी तरह समरस हो गयी हो।

प्रथा: हां, अब मैं कविता सुना सकती हूं। लो सुनो

मैं जैसे दुखों के एक जमे हुए ग्लेशियर के भीतर बंद हूं

तुम्हारी आँच मिलती है तो मुझमें स्पंदन जाग उठता है

इस स्पंदन के बिना तुच्छ और निस्सार है सब कुछ

मेरी दुनिया तुम्हीं से शुरू होती है/ तुम्हीं से सार्थक और साकार होती है

तुम होते हो तो एक अनंत, अपरिभाषित और अनिर्वचनीय बोध जागता है

आकाश में उड़ना हो/ खुशबुओं के लोक में विचरना हो/ या ठोस जमीन पर पाँव रखना हो

तुम हो तो सब कुछ संभव है वरना कुछ भी नहीं

तपोवन: मैं देख रहा हूं कि तुम्हारा प्यार ज्यों-ज्यों गाढ़ा होता जा रहा है त्यों-त्यों तुम्हारी कवितायें भी दमदार होती जा रही हैं।

प्रथा: पता नहीं तुम्हारे प्यार का जादू है तपोवन या कि कविताओं का असर कि मेरे भीतर एक निर्भीक और बेलाग दृष्टिकोण उगने लगा है। बाउजी की एकछत्र दबंगता और रौब से भी मुझे डर नहीं लगता। आज तो मैंने उन्हें दोमुंहा तक कह दिया।

तपोवन: उनकी शान के खिलाफ तुम्हारी यह गुस्ताखी, हैरत है। उबल तो पड़े ही होंगे वे।

प्रथा: एकदम नहीं। वे बिल्कुल खामोश रह गये, माँ को भी यह उम्मीद न थी, इसलिए उसे बुरा लग गया और मुझे वह बरजने लगी।

तपोवन: कविता में यही ताकत होती है प्रथा कि वह अभेद्य दुर्ग को भी हिला सकती है, नदी की शांत जलधारा में भी लहर पैदा कर सकती है और फूलों के किसी मुरझाये और उदास सेज को भी रोमांच से भर सकती है।

प्रथा: हाँ तप, बाउजी को जब हमारे प्यार की खबर लगेगी तो निश्चित रूप से उनके अनुशासन के अभेद्य दुर्ग में भूचाल आ जायेगा। उनके हुक्म, रौब और इच्छा के साम्राज्य के विरूद्घ आज तक कोई पत्ता भी नहीं खड़का। मेरी तीनों बड़ी बहनें और लगभग एक दर्जन चचेरी बहनें उनकी मर्जी पर शहीद हो गयीं। किसी ने चूं तक नहीं किया। मेरे व्याह के लिए भी उन्होंने जो खाका बनाकर रखा है, उसके चरमराने पर एक जलजला तो जरूर ही पैदा होगा।

तपोवन: पता नहीं उस जलजले में मेरी दुनिया का कितना भाग प्रभावित होगा ?

प्रथा: वे तो जरूर चाहेंगे कि तुम्हारी दुनिया भी पूरी तरह डंवाडोल होकर अस्तव्यस्त हो जाये। लेकिन तुम्हें साबित करना होगा कि पद, पैसा और हैसियत से बड़ा होता है मूल्य...बड़ा होता है उसूल...बड़ी होती है व्यक्ति की दृढ़ता और कुल मिलाकर उसका प्यार। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम साबित करने में सक्षम होगे और तुम्हारा दृढ़ निश्चय किसी भी आतंक एवं धमकी के समक्ष पराजित नहीं होगा।

तपोवन: तुम अच्छी तरह जानती हो प्रथा कि सरोकारों और मकसदों के लिए जीनेवाले लोग हुकूमत और हुक्मरानों से कभी मात नहीं हुए हैं। यह अकबर, सिकन्दर और अशोक आदि सभी राजाओं के दरबार में साबित हो चुका है, जहां मोहब्बत ने अपना सर बुलंद रखा।

प्रथा: जिस चौसर मिश्र के बेटे के साथ बाउजी ने मेरे स्वयंवर रचाने की कामना कर रखी है, वह मर्डरर कल से मेरे ही घर में आकर रहनेवाला है ताकि विपक्ष के लोगों और पुलिस वालों की निगाह से ओझल रह सके।

तपोवन: तब तो तुम्हारा इम्तहान कल से ही शुरू होनेवाला है। उसे घर में लाने के पीछे निश्चय ही तुम्हारे बाउजी का एक नहीं कई-कई मतलब होगा।

प्रथा: देखना, मैं उसका एक भी मतलब सफल नहीं होने दूंगी।

दृश्य 4

(सोहर एवं उमा ड्राइंग हॉल में बैठे हैं। नेपथ्य में जीप के आकर रुकने की आवाज आती है। मनोहर आता है।)

मनोहर: चलिये भैया, जीप आ गयी।

उमा: जग्गन-मग्गन जा रहा है न साथ में ?

मनोहर: भाभी...जग्गन-मग्गन के बिना क्या हम भैया को घर से बाहर निकलने देंगे?

उमा: जग्गन कह रहा था कि उसकी बंदूक में कुछ खराबी आ गयी है...बनवा लिया कि नहीं बनवा लिया ?

मनोहर: बंदूक तो भाभी खाली दिखाने का मुखौटा है। इससे भला किसी की सुरक्षा हो सकती है? एके 47 तो जानते हैं हमेशा तैयार रहता है...इससे कम पर हम कोई रिस्क नहीं लेते।

सोहर: ठीक है भाई, अब चलो भी। इनको यह सब रिपोर्ट बाद में दे देना। (फोन की घंटी बजने लगती है) हलो...हां...हां...हां...हां...।

उमा: कौन था ?

सोहर मिश्र: अभिराम था। उसकी कार राजधानी से चल चुकी है, हमलोग चल रहे हैं। डी एफ ओ को लेकर हाथी वाले इलाके का दौरा कर आते हैं। देर रात तक वापस आ जायेंगे। इस बीच अभिराम के आ जाने से उसे बढ़िया से रिसीव कर लेना।

उमा: ठीक है आप जाइये, मैं देख लूंगी।

(उमा को छोडकर सभी बाहर निकल जाते हैं। जीप चलने की आवाज आती है।)

दृश्य 5

(बाहर से एक कार के आकर रूकने की ध्वनि आती है। एक तरफ से अभिराम और दूसरी तरफ से उमा देवी आती है।)

उमा: मैं प्रथा की माँ हूं।

(अभिराम उसके पैर की तरफ अपने बायें हाथ को थोड़ा सा झुका देता है)

उमा: सदा सुखी रहो। (आवाज देकर एक नौकर को बुलाती है) गपलू....।

(गपलू दौड़कर आता है)

उमा: गाड़ी से सामान निकालकर ऊपर के कमरे में ले चलो।

अभिराम: मोबाइल पर अंकल से बात हुई थी। उन्होंने बताया कि वे गांव जा रहे हैं... लगता है अब तक लौटे नहीं दौरे से।

उमा: अब लौटने ही वाले होंगे। कुछ ही देर पहले उन्होंने मोबाइल से तुम्हारे आने के बारे में पूछा था।

अभिराम: घर में यहां और कौन-कौन लोग रहते हैं ?

उमा: यहां तो बस प्रथा के एक चाचा मनोहर बाबू और उनके परिवार के लोग रहते हैं हमारे साथ। बाकी सभी लोग गाँव में ही रहते हैं। इनका तो बड़ा लंबा-चौड़ा परिवार है। कई चाचा...कई चचेरे भाई।

अभिराम: प्रथा कहां है ?

उमा: किसी कविगोष्ठी में गयी है, अब शाम हो चली, वह भी वापस आ ही रही होगी।

(गपलू एक जग में पानी और एक गिलास में ठंढा पेय लाकर रखता है। अभिराम पानी पीकर ठंढा पीने लगता है।

बाहर एक ऑटो के आकर रूकने की ध्वनि आती है। प्रथा बैठकखाने में आती है।)

उमा : प्रथा, मिलो यही है अभिराम।

प्रथा: हाय। (नीरस और शुष्क मुद्रा में)

अभिराम: हाय, (उसकी खूबसूरती पर मोहित होते हुए एक टक देखने लगना)

प्रथा: ग्लास छलक पड़ेगा, संभाल लीजिए उसे और खुद को भी।

उमा: प्रथा, तुम इसे ऊपर के कमरे में पहुंचा देना। थका हुआ होगा, थोड़ा फ्रेश होकर आराम कर लेगा। मैं जरा रसोई देख लेती हूं।

(उमा देवी चली जाती है)

अभिराम: बाउजी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं, आज मैं एक बार फिर उनकी पसंद का, चयन का कायल हो गया हूं।

प्रथा: काश! मैं भी अपने बाउजी की पसंद की कायल हो पाती !

अभिराम: मतलब मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगा।

प्रथा: चेहरे से तो अच्छे-भले लगते हो।

अभिराम: फिर मुझमें कमी क्या है ?

प्रथा: किसी की अच्छाई सिर्फ उसके चेहरे से परिभाषित नहीं होती। बल्कि एक अच्छा आदमी होने के लिए चेहरे की चिकनाई और सुंदरता का कोई मतलब नहीं होता। अच्छा आदमी वह होता है जिसका चरित्र, आचरण और कर्म अच्छा होता है।

अभिराम: शायद तुम्हारा इशारा मुझ पर हुए पुलिस केस और यहां आकर छुपने की तरफ है। तुम्हारे पिता खुद राजनीति करते हैं, इतना तो तुम्हें समझ में आ जाना चाहिए कि राजनीति में बने रहने के लिए क्या-क्या नहीं करने होते।

प्रथा: अगर राजनीति में बने रहने के लिए मर्डर करना पड़े, रेप करना पड़े तो लानत है ऐसी राजनीति पर। इस राजनीति को फिर सत्ता पर नहीं, इसकी जगह जेल की काल कोठरी में होनी चाहिए।

अभिराम: लेकिन देखो, मैं काल कोठरी में नहीं हूं। तुम्हारे इस आलीशान घर में आ गया हूं...सारी सुविधाओं से परिपूर्ण तुम्हारे पूरे परिवार के आतिथ्य में...तुम्हारे हुस्न की छांव में।

प्रथा: यह इस घर का और मेरा दुर्भाग्य है।

अभिराम: तुमने तो मेरे आते-आते अच्छा स्वागत किया।

प्रथा: इससे अच्छा की मुझसे उम्मीद भी न करना। मुझे राजनीति नहीं करनी है और इस कुत्सित राजनीति का कोई भी बड़ा पद मुझे फैसिनेट नहीं करता।

अभिराम: तुम्हारी इस मुंहफट अदा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। अब तक तो मैंने कोई राय नहीं बनायी थी, लेकिन अब पक्का कर लिया है, शादी तुम्हीं से करनी है।

प्रथा: यह दिवास्वप्न है तुम्हारा...इसे जितना जल्दी भूल जाओगे, उतना सुखी रहोगे।

अभिराम: इसका जवाब......।

प्रथा: इसका जवाब आप बाद में सोचकर देना....फिलहाल लगता है आपके मोबाइल में कोई सिगनल आ रहा है। आवाज शायद आपने बंद कर दी है।

अभिराम: हां, तुम ठीक कह रही हो...स्क्रीन में तुम्हारे पिता जी का ही नंबर आ रहा है, हलो अंकल।

(अभिराम नम्बर देखकर बटन दबाता है और कान से लगा लेता है)

अभिराम: हलो अंकल, कहिए....।

सोहर: (दूसरी तरफ से) तुम ठीक-ठाक तो पहुंच गये, कोई परेशानी तो नहीं हुई ?

अभिराम: बिल्कुल ठीक-ठाक पहुंच गया हूं। कोई परेशानी नहीं हुई।

सोहर: ठीक है, तुम थोड़ा आराम करो, मैं बस कुछ ही देर में पहुंच रहा हूं। फिर बातें करते हैं।