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खिड़की


खिड़की

चंद्रमोहन प्रधान


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खिड़की

आज पाँच साल पुरानी बात खत्म हो जाएगी। अब नीरज अपना नया खाता फिर खोल सकता है। वह पिछला सब हिसाब साफ कर देगा। न एक पाई उधरए न एक पाई इधर।

२१ फरवरी है आज। आज से पाँच साल पहले उसने यहींए इसी वेटिंग रूम में कुछ देर ठहर कर बनारस वाली गाड़ी पकड़ी थी। ठीक ही कहा गया हैए इतिहास अपने को दुहराता है।

चित्रा से उसकी पहली भेंट भी इसी २१ फरवरी को हुई थी। उन दिनों ये यहाँ कॉलेज के एक ही वर्ष में थे। विषय था दर्शन शास्त्र। एमण् एण् के अंतिम वर्ष तक पहुँचते हुए उन्होंने सारा जीवन एक साथ व्यतीत करने का निर्णय कर लिया था।

नीरज का घर बनारस में था। पिता वहाँ बनारसी साडियों का अच्छाकृखासा कारोबार करते थे। यहाँ पटना में वह मौसाकृमौसी के घर में रहकर पढ़ रहा था। वे उसे बहुत चाहते थे। मैट्रिक बनारस में उसने कर लियाए तो मौसी ने वहीं बुलाकर कालेज में नाम लिखा कर अपने घर में रखा। उसकी मौसरे भाईकृबहनों से अच्छी पटती थी। वहीं से उसने एमण् एण् किया और चित्रा का प्यार भी प्राप्त किया।

समस्या चित्रा के साथ थी। वह कॉलेज में श्ब्यूटी क्वीनश् के नाम से मशहूर थीए लेकिन सौन्दर्य और अहंकार शायद साथकृसाथ पलते हैं। कमकृसेकृकम नीरज ने ऐसी अभिमानी लड़की पहले नहीं देखी थी। वही चित्रा उसकी ओर झुकीए कितने योग्य धनी सहपाठियों के होते उसके प्रति समर्पिता हो गईए उसमें उसे अपने पुरुषत्व के अहं की तृप्ति महसूस हुई थी। चित्रा के वकील पिता अपनी जिद्दी बेटी को खूब पहचानते थेए उन्होंने उसकी पसंद मान ली। वैसे भी नीरज में कोई कभी कमी नहीं थी। सजातीय तो था हीए सुदर्शनए स्वस्थए शिक्षित और अच्छे परिवार काए साथ ही बड़ा शरीफ। स्वभाव का बड़ा शांत। वकील साहब ने सोचा कि ऐसे ठंडे दिमाग का लड़का ही उनकी गर्म मिजाज बेटी को सँभाल सकेगा। तय हुआए एमण् एण् कर लेने के बाद वह बनारस जा कर पिता की अनुमति ले लेगाए फिर विवाह।

नीरज को प्यार के वे दिन भी अच्छी तरह याद है। चित्रा से प्रेम करना तो कुछ ऐसा ही थाए जैसे कोई किसी शेरनी से प्यार करे। वह मूडी थीए जिद्दी भी। कब भड़क पड़ेगीए कुछ ठीक नहीं रहता था। उसकी बात कोई काट देए यह उसे रंच मात्र सहन नहीं होता था। नीरज को प्रायरू लगताए जैसे वह शेर पर सवार है। उतर नहीं सकताए शेर खा जाएगाए और वहाँ बैठे रहना भी बहुत दुष्कर था। उसे बहुत समय चित्रा का मूड सँभालने में लग जाता था। अकसर सोचताए पत्नी के रूप में यह कैसी साबित होगी। लेकिन मन में भरोसा थाए विवाह के बाद बदलेगी जरूर। स्त्रियाँ शादी के बाद बहुत बदल जाती है। वैसे भी उसे अपने प्रेम पर भरोसा था।

खुद चित्रा ने कहा थाए नीरजए मुझे चाहते होए तो मेरी जिद व सनक को भी सहना होगा तुम्हें। मेरी बात कोई काट देए अपनी राय थोपेए मैं नहीं सह सकती।

नीरज खुद वह जानता थाए किन्तु चित्रा उसके मनकृप्राणों में बसी थी। उसने बेतरह प्रेम दर्शाते हुए कहा थाए चित्राए तुम जैसी होए जो कुछ भी होए मुझे मंजूर है। अब इस मामले में कुछ न कहो। फिर वह हँस कर बोला थाए मेरे जैसा आज्ञाकारी नहीं मिलेगा तुम्हें। और चित्रा खुश हो गई थी।

अकसर उसका विचित्र स्वभावए सनक की हद तक जा पहुँचता था। फलाँ पिक्चर नीरज देखना चाहता हैए किन्तु चित्रा वह नहीं देखेगी। नीरज को नीला रंग पसंद हैए किन्तु चित्रा की रूचि के अनुसार ग्रे और भूरे रंग के कपड़े ही पहनेगा। फलाँ वक्त चाय का हैए फलाँ नाश्ते का यह तो तब थाए जब उनका विवाह भी न हुआ थाए किंतु चित्रा अपने घर ही में बैठेकृबैठे उसके रहनकृसहन पर नियंत्रण रखती। नीरज का अपना व्यक्तित्व जैसे कुछ न हो। किंतु वह प्रसन्न थाए चित्रा को वह प्यार करता थाए उसकी ये ज्यादतियाँ भी प्यारी लगती थीं।

चित्रा ने सपरिवार एक दिन पिकनिक का प्रोग्राम बनायाए उन लोगों के साथ नीरज भी आमंत्रित था। वे चले शहर के बाहरए संजय गाँधी उद्यान मेंए जहां अच्छे जू के साथ अन्य जीवों का सुरक्षित पार्क है।

पार्क में नाश्ताकृपानी कर वे जानवरों को देखने चले। चित्रा बहुत प्रसन्न थी उत्सुकता से बाघए शेरए गैंडों आदि को उनकी गहरी खाइयों में बैठे धूप सेंकते देखाए सर्पकृकक्ष में विभिन्न जातियों के साँपों को देखाए लंबेकृचौड़े बाड़ों में हिरनए बंदर आदि देखेए विभिन्न पक्षियों को देखा। बंदरों के कठघरे के आगे बच्चों की भीड़ लगी थी। बंदरों की विभिन्न हरकतों से सब हँसते हुए बेहाल थे। परिवार के बच्चों के साथ चित्रा उनकी हरकतें देखकृदेखकर खिलखिला कर हँसती रही। नीरज बहुत खुश था। उसे लगाए चित्रा भी सामान्य लड़की ही है। वातावरण की एकरसता ने उसे उबा रखा होगा।

बच्चों के साथ चित्रा ने बंदरों को टॉफियाँए मूंगफली आदि देने का प्रयास कियाए किंतु उधर तैनात रक्षकों ने मनाही कर दी। उन्होंने बतायाए कि जानवरों को कुछ बाहरी चीजें खिलाने की अनुमति नहीं है। बच्चे तो मान गएए किंतु चित्रा को अपना अपमान महसूस हुआ। वह अड़ गई। नतीजा हुआ कि रक्षकों ने परिवार वालों की मदद से उसे वहाँ से हटा दिया।

चित्रा का मूड ऐसा खराब हुआए कि वह सीधी बाहर आकर कार में बैठ गई। नीरज को यह बुरा लगाए लेकिन चित्रा के स्वभाव को समझते हुए कर्तव्यवश वह उसके पीछे आया। उसे समझाने की कोशिश कीए किंतु चित्रा यही रट लगाए थीए कि उसका बड़ा अपमान हुआ है।

लेकिनए नीरज ने समझाया थाए बात पर गौर तो करो। चिडियाघरों का यह सख्त नियम है कि बाहरी दर्शक जानवरों को कुछ खिलाएँ नहीं। इसमें उनका पेट बिगड़ सकता है। वे बीमार पड़ जाते हैं।

मेरा ऐसा अपमान कभी नहीं हुआए चित्रा ने मुँह फेरते हुए कहा।

नीरज हँसाए ष्चित्रा रानीए अपमान की तो कोई बात नहीं है इसमें। तुमने बाहर लगा बोर्ड नहीं देखाए जिसमें लिखा हैए कि जानवरों को कुछ न खिलाएँ। रक्षकों ने तो बस अपने कर्तव्य का पालन किया है। तुम्हें उनकी प्रशंसा करनी चाहिए।

जीए माफ कीजिएए वह व्यंगात्मक स्वर में बोली थीए ऐसा विशाल और उदार हृदय आपको ही मुबारक हो।

ष्असल मेंए डियर चित्राए तुम्हें अपनी बात की टेक रखने की आदत है। लेकिन सोचोए ऐसा कैसे चल सकता है। हम समाज में रह कर अपनी कैसे चला सकते हैं। सिनेमाए बस आदि के लिए क्यू में टिकट लेना होता है। रेस्तराँए होटल आदि में भोज के अपने ही नियम होते हैं। सड़क पर चलने के लिए भी अपने तरीके होते हैं। यह कोई अपना घर नहींए जो

बसए चुप रहोए चित्रा गुर्रा उठीए ष्तुम मुझे नादान बच्ची समझ कर नागरिक शास्त्र पढ़ा रहे हो। वह बदमाश मेरा अपमान कर गयाए और तुम देखते रहे। वह न हुआए कि उसे दो झापड़ लगा देते। तुम कायर डरपोक हो। मेरे पास मत आओ

नीरज उस दिन हैरान था। इसे नासमझी कहेए या हद् से बड़ा अहंकार और सनकीपन। वह उसे फिर धैर्य से समझाने लगा थाए ष्चित्राए तुम बात नहीं समझ रही हो। यह कोई बहादुरी दिखाने का मौका नहीं था। सड़क पर यदि कोई तुम्हें घूर कर देख लेए तो उसकी आँख निकाल लूँ लेकिन यह तो चुप रहोए चित्रा चिल्ला उठी थीए कान मत खाओ। तुम जाओ यहाँ सेए तंग मत करो नीरज हताश हो गया था। चित्रा की तेज आवाज सुनकर आसकृपास के लोग उनकी तरफ देखने लगे थे। वह वहाँ से हट कर टीकृस्टॉल की तरफ चल दिया। चित्रा गाड़ी में ही मुँह फुलाए बैठी रही थी।

वापसी में चित्रा नीरज के साथ नहीं बैठीए भाईकृबहनों के साथ पीछे की सीट पर बैठ गई थी। उसकी समझ में नीरज कापुरुष था। उस बार कितने दिनों बाद उसका मूड ठीक हुआ थाए यह नीरज भूला नहीं था।

ऐसी घटनाएँ होती रही थीं। उन दिनों वह मन को समझाता भी रहता थाए कि अभी नासमझ हैए तजुर्बा बढ़ेगाए विवाह के बाद जिम्मेदारियों आएंगी तो खुद समझने लगेगी।

एमण्एण् की परीक्षा देकर नीरज बनारस गयाए और अपने घर वालों को चित्रा के बारे में बताया। उसके पिता चाहते थेए कि वह कारोबार में हाथ बटाएँ। बनारसी साडियों के विदेशों में निर्यात की अच्छी संभावनाएँ होने से वह नीरज को यह जिम्मा देना चाहते थेए नीरज भी रूचि ले रहा था। पिता ने राय दीए अपना कार्यालय वह अलग खोल कर व्यापार शुरू कर देए इसके लिए उन्होंने उसे पूंजी भी देने की बात कही। रही चित्रा की बातए सो घर वाले यही चाहते थे कि नीरज किसी अच्छे घर की मनकृपसंद लड़की से विवाह कर ले। उन लोगों ने किसी खास लड़की को अपनी तरफ से तय नहीं किया था। चित्रा का घरकृपरिवार अच्छा थाए लड़की नीरज को पसंद थी हीए माताकृपिता ने कोई आपत्ति नहीं की।

अगले वर्ष विवाह हो गया। नीरज ने व्यापार भी प्रारंभ कर दिया था। प्रथम मिलन के लिए नीरज के मन में तरहकृतरह की उत्सुकताओं के साथ घबराहट भी उभर रही थी। ऐसे अवसरों में तो पुरूष उत्साहित रहता है और स्त्री संकुचितए घबराई रहती है। किंतु यहाँ मामला चित्रा का जो था।

दो दिनए दो रातें रिश्तेदारों की भीड़ए आगंतुकों की बधाईए दावत आदि में निबट गये। इसके बाद नवदम्पत्ति को फुरसत मिली। नीरज की दोनों बहनों और मौसेरी चचेरी बहनों ने उसका शयनकृकक्ष फूलों से सजा रखा था। चित्रा वहीं सजीकृधजी बैठी थी। दोनों का भोजन और दूध भी वहीं था। कुछ घबराहट के साथ नीरज ने अपने कमरे में कदम रखा।

बहनों ने चित्रा को नववधू के रूप में खुद सजाया था। स्वभाव के विपरीत चित्रा ने चुपचाप सभी रस्में कींए और जो कहा गयाए मानती रही। नीरज ने वह सब देखाए तो उसे लगा कि चित्रा अपना जिद्दी स्वभाव भूल रही हैए अब उसके साथ वह सामंजस्य बैठा लेगा।

चित्रा मुसकराई। वह मधुर स्वर में बोलीए तुम मेरे होए यही काफी है।

नीरज हँसाए ष्सो तो है हीए फिर भी कुछ चित्रा उसकी आँखों में देखती हुई बोलीएष्तो वादा करोए हमेशा मेरी बात मानोगे।

यह कैसी बात है। नीरज असमंजस में बोलाए बात तो मैं तुम्हारी रखता हूँ हीए इसमें भला वादे की क्या जरूरत।

चित्रा ने उसका हाथ दबायाए लेकिन मेरी खुशी के लिए सही नीरज को लगाए जैसे फंदे में फंस रहा हो। पति अपनी प्रियतमा पत्नी को प्यार करता हैए उसकी बातें भी रखता हैए यह सहज और स्वाभाविक है। लेकिन यह तो जैसे वकील की तरह बांड भरवा लेना चाहती है। नीरज प्रतिज्ञा कर लेए तो क्या सारी गलतकृसही बातें मानते रहना पड़ेगा।

क्या व्यर्थ की जिद करती हो ! उसने समझायाए ष्चित्राए बातें तो सभी मानता हूँ तुम्हारी। किंतु मेरी समझ में यदि गलत करती होए तो समझाता भी हूँ।

मेरी खुशी के लिए सहीए चित्रा की मुसकराहट तो बरकरार थीए किंतु नेत्रों में जिद की कड़ाई आने लगी थी। बात बढ़ने देने से रोकने के लिए नीरज ने कह दियाए ठीक हैए तो मैंने वादा किया।

क्या वादाघ् चित्रा ने जिद कीए अपने मुँह से साफकृसाफ तो कहो।

नीरज हँसाए ष्वकील बाप की बेटी ठहरी। खैरए मैं वादा करता हूँए कि तुम्हारी बातें मानूंगा। अब तो खुश हो।

चित्रा का उभरता तनाव गायब हो गया। उसने नीरज के होंठ चूम लिए। अब मैं खुश हूँ। वह बोली।

भोजन की प्लेटों के साथ केसरिया दूध के दो गिलास ढके थे। दूध में मेवों के टुकड़े तैर रहे थे। नीरज ने एक गिलास चित्रा को दियाए एक खुद लेकर चुस्की लेने लगा।

लगता हैए आज की रात बातों में कटेगी। जी भर कर आज बातें करना चाहता हूँ तुमसे।

चित्रा हँसीए आज की ही रात क्याए जिन्दगी भर बातें बनाते रहोए मैं बातों से ऊबती कभी नहीं।

नीरज ने गले में पड़ी मालाएँ उतारकर सिरहाने रख दीं। चित्रा बोलीए वह उधर की खिड़की तो खोलोए घुटनकृसी लग रही है।

उधर गली पड़ती हैए नीरज ने कहाए कोई आताकृजाता झाँककृदेख सकता है।

कोई परवाह नहींए तुम खोल दो।

उसके स्वर में कड़ापन महसूस कर नीरज ने समझायाए देखोए जराकृसी बात वह कुछ नहींए चित्रा ने आदेशकृसा दियाए ष्तुम खिड़की खोल दो

नीरज ने गौरसे देखा। उसे उसमें पुरानी चित्रा की झलक दिखी। उसे अखरा। वह बोलाए क्या बेकार की बात को लेकर नीरजए तुमने मेरी बातें मानने की प्रतिज्ञा की है। चित्रा ने फटकारकृसी लगाई।

नीरज के अहं को चोट लगी। अब वह पति था। पत्नी को उसका भी मन रखना चाहिए। वह कुछ रूखी आवाज में बोलाए बात मानने का यह अर्थ तो नहीं कि मैं तुम्हारी हर उचितकृअनुचित बात मान लूँगा।

हाँए तुम्हें मानना होगा। चित्रा ने तैश में आकर कहा। मैं नहीं मानता।

तुम नहीं मानोगेघ् वह कठोरता से बोली।

तुम्हारी बात पत्नियों जैसी नहीं है। मैं प्रेम सहित किए उचित आग्रह को तो मान लूँगाए किंतु किसी दबाव में नहीं आ सकता।ष् नीरज ने दृढ़ता से कहा।

तो यह बात हैए चित्रा की आँखों से चिनगारीकृसी छूटीए तुमने अपना रंग दिखा ही दिया।

यही उचित तथा सही रंग है। नीरज ने तुर्कीकृबकृतुर्की उत्तर दिया।

नीरजए याद रखोए अभी खिड़की नहीं खोलतेए तो मुझसे कोई नाता अब नहीं रहेगा। फिर मैं कहती हूँए खोल दो।

नहीं।

तुम नहीं खोलोगेघ्

नहींए नहींए नहीं ! नीरज झल्लायाए कितनी बार कहूँए मैं नहीं खोलूँगा।

चित्रा ने उसकी ओर से पीठ फेर ली। वह दीवार की तरफ मुँह फेर कर लेट गयी। नीरज कुछ देर बेवकूफों की तरह बैठा रहाए फिर बत्ती गुल कर सोफे के ऊपर जा लेटा।

सवेरे जगाए तो चित्रा बाथरूम में थी। वह बाहर चला आया। दूसरी रात्रि में भी वही हाल रहा। चित्रा पलंग परए नीरज सोफे के ऊपर। घरवालों को भनक न लगी कि कुछ गड़बड़ी है। अगले दिन चित्रा का भाई आयाए तो वह माँ के घर चली गई। इस बीच दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई। चित्रा का दो दिन के बाद घर जाना निश्चित था हीए किसी को कुछ असामान्य न लगा।

महीने भर बाद नीरज के पिता ने उससे कहाए पटना से वकील साहब का पत्र आया है। आज के चौथे दिन विदाई को सायत बनती हैए तुम जा कर बहू को ले आओ।

नीरज ने सोचा कि अब चित्रा का मूड ठीक हो गया होगा। उसने कई तरह के उपहारए मिठाई आदि के साथ ही एक जोड़ी कीमती बनारसी साडियों को पैक करा कर ससुराल की राह ली।

पहली बार ससुराल में आनेपर दामाद की बड़ी खातिर हुई। अब वह उस घर में दामाद था। घर में आने पर नीरज ने इधरकृउधर देखाए पर उसे कहीं चित्रा की एक झलक भी देखने को नहीं मिली। रात में जब वह सोने के लिए कमरे में पहुँचाए तो वह पलंग पर बैठी थीए कठोर चेहरा बनाए।

नीरज ने हँसी में कहाए ष्देवी जी का गुस्सा तो बरकरार लगता है। भौंहों पर ये धनुषबाण तने हैं।

चित्रा ने संकेत दियाए पहले वह खिड़की खोल दोए बाकी बातें उसके बाद।

नीरज का माथा ठनका। यहाँ भी एक खिड़कीए और वह भी बंद पड़ी है।

चित्रा बोलीए तुम्हारे घर वाली उस खिड़की की यादगार में मैंने यहाँ आकर इसे लगातार बंद रखा है। तुम खोलोगेए तभी यह खुलेगीए और हम लोगों के बीच की वह उलझन वाली गाँठ भी खुलेगी।

नीरज को बुरा लगा। वह बोलाए तुम्हारे जैसी गजब की जिद्दी तोण्ण्ण्

जो होए चित्रा ने बात काट दीए तुम खिड़की खोलोए वरना जाओ यहाँ सेण्ण्ण्

नीरज को भी क्रोध आ गया। उठ खड़ा हुआए मैं नहीं खोलता।

चित्रा मुँह फेर कर लेट गई। नीरज ने देखाए वहाँ सोफासेट की जगह आराम कुर्सी थी। रात भर आराम कुर्सी पर पड़ा वह सिगरेटें फूकता रहा। सवेरा होते ही नश्ताकृपानी कर अपना सूटकेस लिए निकलाए और सीधा स्टेशन चला आया। साड़ी सूटकेस में पैक पड़ी रही।

वह २१ फरवरी का ही दिन थाए आज फिर नीरज २१ फरवरी को यहाँ उसी वेटिंगरूम में हैं। लेकिन इस बार वह चित्रा के लिए नहीं आया था।

तोए पाँच साल पहले वह उस २१ फरवरी को यहाँ से बनारस लौट गया। चित्रा की जिद की बात घर में साफ कह दी। वह बात चित्रा के घरवालों को भी मालूम हो गई थी। उन्होंने उसकी निरर्थक जिद को दूर करने की बहुत चेष्टा कीए किंतु वह तिल भर न डिगी। घर वाले निराश हो कर बैठ गए। चित्रा ने वहीं के एक कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। इधर बनारस में नीरज ने उसकी ओर से ध्यान हटा कर अपने व्यापार में मन लगाया।

नीरज के पिता ने वकील साहब को पत्र लिखाए कि जब बहू का यह रूख हैए तो वे नीरज की दूसरी शादी की बात सोच रहे हैं। उधर से उत्तर आया कि उन लोगों ने फिर बहुत समझाया चित्रा कोए किंतु वह बनारस नहीं जाना चाहतीए विवाहकृविच्छेद के लिए तैयार हैए परस्पर सहमति से विवाह विच्छेद करए नीरज की दूसरी शादी कर सकते हैं।

किंतु दूसरी शादी के लिए खुद नीरज तैयार नहीं हुआ। घर वाले मौन हो गए। विवाहित नीरज का जीवन विचित्र एकाकीपन में व्यतीत होने लगा।

पाँच साल गुजर गएए नीरज को व्यापारिक व्यस्तताओं में समय का कुछ पता न लगा। उसने जानकृबूझ कर खुद को व्यस्त बना लिया था। कारोबार बहुत अच्छा चलने लगा था। इस बीच छोटे भाई का विवाह हो गयाए बहू घर आ गई। घर वालों ने मान लियाए नीरज ऐसे ही रहेगा।

अकसर पटना से वकील साहब के पत्र आतेए वह अपनी जिद्दी लड़की के अहंकार के प्रति खेद प्रकट करते लिखतेए कि इस विवाह का कोई अर्थ नहीं रहा। वह खुद कानूनी कार्रवाइयों के लिए राजी हैंए नीरज दूसरा विवाह कर ले। चित्रा ने घर में घोषित कर रखा था कि वह अब जीवन में यों ही अकेली रहेगी। पत्रोत्तर में नीरज लिख देता कि वह विवाहित हैए और दूसरा विवाह उसे नहीं करना।

माँ तो चित्रा की पहले ही चल बसी थीं। तीन साल के बाद वकील साहब का भी निधन हो गया। चित्रा अब बड़े भाईकृभाभी के साथ रहतीए कॉलेज में नौकरी कर रही थी।

नीरज को प्रति वर्ष २१ फरवरी को चित्रा की याद खास तौर से हो आती। उसी दिन उनका प्रथम परिचय कॉलेज में हुआ थाए साल भर बादए उसी दिन वह पाँच साल पहले इसी पटना स्टेशन के वेटिंगरूम में थोड़ी देर ठहर कर बनारस लौटा थाए उपहार की साड़ी उसी प्रकार पैक किएए फिर न आने के लिए। औरए आज फिर पाँच साल बाद वाली २१ फरवरी हैए नीरज यहाँ पटना रेल्वे स्टेशन के वेटिंग रूम में है।

असल में संयोग कुछ ऐसा रहाए कि इस बार एक व्यापारिक सम्मेलन में पटना आना पड़ा था। पिछले पाँच साल से वह पटना नहीं आया था। उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के रेशमी वस्त्रों के विक्रेताए वितरकों आदि का वह सम्मेलन पटना में २० फरवरी को शुरू हुआ। बनारस से वह १९ की रात को पटना चला थाए चलते वक्त न जाने क्या सोच कर उसने उसी प्रकार पैक पड़ी वे साडियाँ भी सूटकेस में पड़ी रहने दींए हालाँकि चित्रा से मिलने का उसका कोई इरादा नहीं था।

२१ का दिन दिनभर पटना के मौर्य होटल में प्रतिनिधियों के आपसी परिचयए निजी बैठकों तथा व्यापारिक करारों में बीता। संध्या को प्रतिनिधियों ने मनोरंजन के अपनेकृअपने भिन्न कार्यक्रम बनाए। कल सवेरे रवानगी थी।

नीरज संध्या के चायकृजलपान के बाद जरा घूमनेकृफिरने का प्रोग्राम बना कर कपड़े बदलने लगाए कि सूटकेस में पैक पड़ी लाल रंग की साडियाँ ध्यान खींचने लगी।

अभिमंत्रितकृसा वह पैक साडियाँ निकाल कर देखने लगा। इनके साथ पटना कीए अपनी ससुराल की और चित्रा की यादें जुड़ी हुई थीं। उसे न जाने क्या प्रेरणा हुईए कि साडियों का पैकेट निकाल कर बैग में रखाए कमरे का ताला बंद कर चाबी नीचे काउंटर पर देए बाहर चला आया।

एक रिक्शे से वह स्टेशन गया। बनारस के लिए ट्रेन के टाइम वगैरह की जानकारी लीए थोड़ी देर के लिए उसी वेटिंग रूम में बैठाए जहाँ पाँच साल हुएए यहाँ से निराश लौटते समय भी बैठा था।

अभी चित्रा के यहाँ जाकर पिछले पाँच साल का हिसाब साफ कर देगाए और फिर बनारस लौट कर नए सिरे से वहीं एकाकी जीवन व्यतीत करेगा फिर हमेशा के लिए वह आजाद। बोरिंग रोड पहुँचते बहुत देर न लगी। वह असमंजस में पड़ा था। मन में कभी होताए इधर क्यों आया है। मन कहता थाएष्यहाँ उसकी ससुराल है।ष् मस्तिष्क कहता थाएष्रिश्ते टूट चुके हैं।ष् हृदय की कामना अधिक बलवती थीए जो जोर दे रही थीए कि चित्रा को जरा एक बार देखे तो सही।

ससुराल वालों को पाँच साल बाद आए दामाद को पहचानने में कुछ देर लगी। घर में भाभी और बच्चे थेए भाई साहब कहीं बाहर थे। भाभी ने बड़ी खातिर से नीरज को बैठायाए जलपान करायाए कुशलकृमंगल पूछीए सम्मेलन की बात जानीए और खेद सहित कहाएष्आप को हम क्या कहें। जब अपना ही सोना खोटाए तोण्ण्ण्

नीरज हँसाए अजी भाभी जीए चित्रा को इन्हीं तमाशों में मजा आता हैए चलने दीजिए।

वक्त और उम्र भी तो कोई चीज हैए जिंदगी का कोई अपना सुख भी तो होता है। भाभी ने सखेद कहाए लेकिन आप तो चित्रा बीबी की बचकानी जिद के चलते अकेलेपन की यह तकलीफ भोग रहे हैं। क्या कहेंए वह तो खुद भी अकेली है। अपने को कॉलेज के कामों में उलझा रखा है।

जैसे मैंने खुद को व्यापार मेंण्ण्ण्

वह किसी सहेली के यहाँ जन्मोत्सव में गई हैंए आ रही होंगीए भाभी ने कहाए आप उनके कमरे में चलकर आराम कीजिए।

यहीं रहूँ तो क्या हज है! नीरज ने असमंजस में कहाए लेकिन भाभी मानी नहीं। वह उसे चित्रा के कमरे में ले आई। उसे सोफे पर बैठाते हुए कहाएष्देखिए जरा उस खिड़की को। पाँच साल हो गएए उसे खुलने ही नहीं दिया। इस खिड़की से धूप और हवा अच्छी आती हैए लेकिन बीबी जी की जिद!

नीरज ऐसा लज्जित हुआए जैसे उस खिड़की के बंद रहने में उसी का दोष हो।

आप आज यहीं रहिएए भाभी ने आग्रह कियाए क्या अपना घर रहते हुए भी होटल मेंण्ण्ण्

भाभीए वह तो प्रतिनिधियों के लिए तय है।

जो भी होए आप चित्रा बीबी से मिल तो लीजिए। जरा बैठिएए मैं आती हूँ। रात का भोजन आप को यहीं पर करना है। कहती भाभी लौट गई।

चित्रा के कक्ष में सादगीपूर्ण सजावट थी। एक तरफ बुकशेल्फ में काफी किताबेंए लिखनेकृपढ़ने की मेजए कुर्सी लगी हुईए हैंगरों में कुछ कपड़े टँगे। किसी पढ़ाकू महिला का कमरा लग रहा था। तभी नीरज चौंकाए लिखने की मेज पर तिरछा लगा हुआ एक फोटोग्राफ। वह उत्सुकता दबा न सका। जा कर देखाए उसी का फोटो था। ऐसे लगा था कि पुस्तकों की आड़ में पड़ता था।

अभी भी चित्रा उसे चाहती है पता नहीं। संभवतरू चित्र यों ही रखा रह गया हो। लेकिन लिखने की मेज पर वह खिड़की सारी मुसीबतों की जड़ण्ण्ण्

नीरज को कुतूहल हुआ। पाँच साल से बंद पड़ी हैए भाभी तो कह रही थीं। तब तो यह जाम हो गई होगी। वह उत्सुकता न दबा सका। आगे जा कर खिड़की का हैंडिल पकड़ाए खींच कर खोलाए यों सपाट खुल गईए जैसे रोज ही खुलती रही हो।

वह घबराया। खिड़की उसे नहीं खोलनी थी। चित्रा हमेशा बंद रखती है। उसने चाहाए कि उसे फिर बंद कर देए तभी किसी के आने की आहट से चौंक पड़ा। चित्रा सामने खड़ी थी। विस्मित नेत्रए मुँह खुला वह सब भूल कर उसे निहारने लगा।

कुछ खास अंतर तो नहीं पड़ाए इस बीच बदन कुछ भर गया है। कितनी सुंदर लग रही है। चेहरे पर आत्मविश्वास हैए लेकिन वही चित्रा है

तु तुण्ण्ण् चित्रा हकलाई।

नीरज ने खिसियानी मुसकराहट के साथ कहाए ष्भाभी यहीं बैठा गई थीं।

चित्रा कुछ सामान्य हुई। वह बोलीए ष्तभी! किसी ने न बतायाए कौन है। भाभी ने हँस कर यही कहा थाए भीतर कोई तुम्हारी प्रतीक्षा में हैं। मैं समझीए कि कोई दोस्त बैठी होगी।

मैं क्या दोस्त नहींए दुश्मन हूँ। नीरज ने वातावरण को हलका करना चाहा।

बैठोए चित्रा बोली। तभी उसकी नजर पड़ी खिड़की की ओर।

अरेए खिड़की तुमने खोल दी है!

नीरज सफाईकृसी देता बोलाए ष्यों ही देख रहा थाए पाँच साल से जाम पड़ी हुई है खुलती है या नहीं।

चित्रा के होठों पर मुसकान आ गईए तोए तुमने खोला इसेघ्

अभी बंद कर देता हूँए नीरज पसीनेकृपसीने हो रहा था।

बिलकुल नहींए चित्रा उसके पास आ बैठीए ष्खुली रहने दो। कैसी अच्छी हवा आ रही है।

नीरज सब भूल कर चित्रा के बदन की सुगंध मे खो गया। वह उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोलाए ताज्जुब हैए बड़ी आसानी से खुल गई।

चित्रा हँसीए ष्बड़ीकृबड़ी बातें अकसर एक बहुत ही नाजुक कमानी पर संतुलित रहती है।

तभी भाभी ने मिठाईकृनमकीन आदि की ट्रे लिए प्रवेश कियाए और दोनों को साथ एक ही सोफे पर बैठ देख चहकीए तो खूब बातें हो रही हैं पूरे पाँच साल की बातें। अरेए वह खिड़की वह कैसे खुलीघ्

नीरज ने सिर झुका लिया। चित्रा बोलीए भाभीए खिड़की ने खुद को इनसे खुलवा लिया है। अब खिड़की खुल गई।

अगले दिनए नीरज चित्रा के साथ बनारस वाली गाड़ी की प्रतीक्षा में वेटिंगरूम में बैठा था। सामान बाहर प्लेटफार्म पर रखा था। चित्रा के भाईकृभाभी भी उन्हें स्टेशन तक पहुँचाने आए थे। वे बड़े खुश थे। पाँच साल बाद सहीए बहन को घर मिलाए अब सब सामान्य रहेगा।

भाई साहब रिजर्वेशन कराने बुकिंग अॉफिस गए थे। भाभी जरा देर के लिए बाथरूम में गईए तो नीरज ने मौका पाकर पूछाए चित्राए मैं अभी भी इस चक्कर में हूँए कि पाँच साल से बंद पड़ी खिड़की ऐसी आसानी से कैसे खुल गई थी।

मदमाती आँखों से उसकी आँखों में देखती चित्रा मुसकराईए ष्मैं उसे रोज एककृदो घंटे के लिए खोल देती थीए तुम्हारी तरफ से।

ओह! नीरज हँसाए तो यह बात थी। आखिर खोली तुम्हीं ने न!

वाहए मैंने क्योंए चित्रा भी हँस कर बालीए तुम्ही ने तो खोली हैए तुम हार गए।

मैं हारा कहाँ! नीरज ने उसका हाथ दबायाए मैं जीत गया हूँ। सच पूछोए तो हम दोनों ने मिलकर खोली। जानती होए कल २१ फरवरी को यहाँ टाइम पूछने आया थाए इसी जगह थोड़ी देर बैठा था। सोचा थाए बोरिंग रोड जाकर पिछले पाँच साल का हिसाब कर दूँगाए और फिर बनारस जा कर अपने एकाकी जीवन की नये सिरे से शुरुआत करूँगा। लेकिनए तुम्हारे यहाँ गयाए तो वही पुराना हिसाब नए खाते में चालू हो गया।

यह हिसाब अब साफ होने वाला नहींएष् चित्रा मुसकराईए ष्यह तो बढ़ता ही रहेगाए चक्रवृद्धि ब्याज की तरह।

भाभी जी बाथरूम से निकल आई। स्टेशन पर गाड़ी के शीघ्र पहुँचने की घोषणा की जा रही थी।

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