छत्रपति शिवाजी Mrityunjaya Dikshit द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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छत्रपति शिवाजी

छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक और उनका कुशल नेतृत्व

मृत्युंजय दीक्षित

महाराष्ट्र केे ही नहीं अपितु पूरे भारत के महानायक वीर छत्रपति शिवाजी महाराज। एक अत्यंत महान कुशल योद्धा और रणनीतिकार थे। वीर माता जीजाबाई के सुपुत्र वीर शिवाजी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब महाराष्ट्र ही नहीं अपितु पूरा भारत मुगल आक्रमणकारियों की बर्बरता से आक्रांत हो रहा था। चारोंं ओर विनाशलीला व युद्ध के बादलोें के दृश्य पैदा हो रहे थे। बर्बर हमलावरों केे आगे भारतीय राजाओं की वीरता जवाब दे रही थी उस समय शिवाजी का जन्म हुआ। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब पूरा भारत निराशा के गर्त में डूबा हुआ था। कहा जाता है कि जिस कालखंड में सेक्लयुर राज्य की कल्पना पश्चिम मंें लोकप्रिय नहीं थी उस समय शिवाजी ने ही हिंदू परम्परा के अनुकूल सम्प्रदाय निरपेक्ष धर्मराज्य की स्थापना की। शिवाजी का जीवन रोमहर्षक तथा प्रेरणास्पद घटनाओं का भडार है।

जिस समय शिवाजी का जन्म हआ था उस समय पूरे भारत की हालत वास्तव में बहुत ही चिंतनीय व दारूण हो चकी थी। चारों तरफ हाहाकार मचा था। एक के बाद एक भारतीय राजा मुगलां के अधीन हुये जा रहे थे। बिना युद्ध किये वे उनके गुलाम होते जा रहे थे।मंदिरों को लूटा जा रहा था, गायों की हत्या हो रही थी , नारी अस्मिता तार— तार हो चुकी थी। ऐसे भयानक समय में शिवनेरी किले में माता जीजाबाई ने वीर पुत्र को जन्म दिया । माता जीजाबाई ने बचपन से ही शिवाजी को कहानियां सुनायीं जिसका असर उनके मन पर पड़ा। शिवाजी की निर्भयता का उदाहरण उनके बचपन से ही मिलने लगा था। उन्होंने बीजापुर में सुल्तान के आगे सिर नहीं झाुकाया। बस यहीं से उनकी विजयगाथा प्रारम्भ होने लग गयी थी ।16 वर्ष की अवस्था तक आते — आते मुगलों के मन में शिवाजी के प्रति भय उत्पन्न होने लग गया था। बीजापुर दरबार से लौटते समय एक बार उन्होनें रास्तें में एक कसार्इ्र जो गायों की हत्या करने के लिये जा रहा था का हाथ काट दिया था। यह उनकी एक और वीरता निर्भयता का अनुपम उदाहरण था।

शिवाजी ने सन 1642 मेें रायरेश्वर मंदिर में कई नवयुवकों ने शिवाजी के साथ स्वराज्य की स्थापना करने का निर्णय लिया। सर्वप्रथम तोरण का दुर्ग जीता । उसे बाद उनका एक के बाद एक विजय अभियान चल निकला। 15 जनवरी 1656 को सम्पूर्ण जावली, रायरी सहित आधा दर्जन किलों पर कब्जा किया। सूपा, कल्याण, दाभेाल , चोल बंदरगाह पर भी नियंत्रण कर लिया। 30 अप्रैल 1657 की रात्रि को जुन्नरनगर पर विजय प्राप्त की। शिवाजी की सफलताओं से घबराकर शिवाजी को आश्वस्ति पत्र भेजा। लेकिन शिवाजी यही नहीं रूके उनका अभियान तेज होता चला गया। बाद में अफजल खां शिवाजी को पकड़ने निकला लेकिन शिवाजी उससे कहीं अधिक चतुर निकलें और अफजल खां मारा गया। इसके बाद शिवाजी के यश की र्कीति पूरे भारत में ही नहीं अपितु यूरोप में भी सुनी गयी। विभिन्न पड़ावों , राजनीति और युद्ध से गुजरते हुए ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया। भारतीय इतिहास में पहली मजबूत नौसेना का निर्माण शिवाजी के कार्यकाल में माना गया है। नौसेना में युद्धपोत भी थे तथा भारी संख्या मेंं जहाज भी थे।

शिवाजी भारत के पहले ऐसे शासक थे जिन्होनें स्वराज्य में सुराज की स्थापना की थी। प्रत्येक क्षेत्र में मौलिक क्रांति की। शिवाजी मानवता के सशक्त संरक्षक थे। वे सभी धर्मो का आदर और सम्मान करते थे। लेकिन हिंदुत्व पर आक्रमण कभी सहन नहीं किया। उनके राज्य में गददारी, किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार, धन का अपव्यय आदि पर उनका कड़ा नियंत्रण था। शिवाजी में परिस्थितियों को समझने का चातुर्य था। शिवाजी के अपने जीवनकाल में भारी यश प्राप्त किया था। इतिहास बताता है कि उन्होनें शून्य से सृष्टि का निर्माण किया। एक छोटी सी जागीर के बल पर बड़े राज्य का मार्ग प्रशस्त किया।

शिवाजी केवल युद्ध में ही निपुण नहीं थे अपितु उन्होनें कुशल शासन तंत्र का भी निर्माण किया। राजस्व ,खेती, उद्योग आदि की उत्तम व्यवस्था ऐजाद की। शिवाजी के शासनकाल में किसी भी प्रकार का तुष्टीकरण नहीं होता था। शिवाजी की दूरदृष्टि व्यापक थी। शिवाजी के शासनकाल में अपराध्यिों को दण्ड अवश्य मिलता था लेकिन साबित हो जाने पर। शिवाजी का राज्याभिषेक होने के बादही सच्चे अर्थो में स्वराज्य की स्थापना हुई थी। हिंदू समाज में गुलामी और निराशा के भाव के साथ जीने की भावना को शिवाजी ने ही समाप्त किया।

शिवाजी का जीवन वीरतापूर्ण ,अतिभव्य और आदर्श जीवन है। नयी पीढ़ी को शिवाजी की जीवनी अवश्य पढ़नी चाहिये। इससे उनके जीवन में एक नयी स्फूर्ति और उत्साह का वातावरण अवश्य पैदा होगा तथा निराशा का भाव छटेगा।

प्रेषकः— मृत्युंजय दीक्षित

123, फतेहगंज

गल्ला मंडी लखनऊ(उप्र)— 226018

फोन नं.— 9198571540