ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (भाग-2) Nitin Menaria द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (भाग-2)

ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (यात्रा वृतान्त) ..................

भाग-1 से आगे ...

हम सभी मेला स्थल से शेरे पंजाब रेस्टोरेंट पहूँचे और हमने वहाँ रात्रि भोज किया। हम सभी सदस्य एक-दूसरे को आज पार्टी आपकी तरफ से कहते गये और मजाक भी चलता रहा इसी बीच श्री पुरूषोत्तम जाजु जी ने बिल का पेमेंट कर दिया। फिर हम सभी ने उनसे कहा कि यह अच्छी बात नहीं है तो जाजु जी ने कहा - ’’मैं मारवाड़ से हुँ हमारे यहाँ ऐसा ही चलता है मारवाड़ खातिरदारी में पीछे नहीं रहता।’’ हम पुनः होटल के लिए रवाना हुए। हमने रास्ते में एक केसरिया दूध वाले को देखा जो अपने छः फीट के व्यास वाले कड़ाहे में दूध उबाल रहा था और कुल्हड में गर्म केसरिया दूध बेच रहा था। हमने सर्दी में केसरिया दूध का जायका लिया।

हम पुनः होटल लौट आये थे। अब हम हमारे अपने-अपने कमरों में विश्राम के लिए गये थे तभी हमें नजदीक की दिवारों से मधुर-मधुर स्वर लहरियाँ सुनाई दी। कुछ देर ध्यान से सुनने पर पता चला कि ये तीन सखियों के कमरे से अन्ताक्षरी की धून हैं। इन्हीं धूनों को सूनते-सूनते हमें नींद आ गई और सुबह हो गई। हमारे समुह के दो सदस्य श्री दिनेश दवे जी एवं श्री नीरंजन जी तिवारी भी सुबह आ पहूँचे। उनसे हम सभी ने मुलाकात की। आज हमारे साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन था जिसके लिए हम ग्वालियर मिशन पर थे। समुह के 8 सदस्य जब सभी एकत्र हो गये तो हमारे मिशन की कामयाबी बखुबी दिखाई देने लगी।

मैं पिछली बार दिल्ली की यात्रा में अकेला था लेकिन यहाँ मेरे साथ 8 सदस्यों का समुह था। श्री पुरूषोत्तम जाजु जी से पहली मुलाकात हुई थी। बाकी सदस्यों में श्री भरत मल्होत्रा जी, श्री दिनेश दवे जी, श्रीमती प्रिया वच्छानी जी, श्रीमती एकता सारदा जी एवं श्रीमती मधुर परिहार जी से दूसरी मुलाकात एवं श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) से मेरी तीसरी मुलाकात रही।

संक्षिप्त परिचय के अन्तर्गत श्री दिनेश दवे जी सिधे नागदा, मध्यप्रदेश से, श्री भरत मल्होत्रा जी मुम्बई से, श्रीमती प्रिया वच्छानी जी थाणे, मुम्बई से, श्री पुरूषोतम जाजु जी मुम्बई से परन्तु मुलतः नागौर, राजस्थान से, श्रीमती एकता सारदा जी सुरत, गुजरात से परन्तु मुलतः जैसलमेर, राजस्थान से श्रीमती मधुर परिहार जी जौधपुर, राजस्थान से, श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) भीलवाड़ा, राजस्थान से और मैं स्वयं उदयपुर, राजस्थान से था और हम सभी ग्वालियर मध्यप्रदेश में साहित्यकारों के महाकुम्भ में शामिल होने आये थे।

कार्यक्रम स्थल लक्ष्मीबाई काॅलोनी कम्युनिटि हाॅल पड़ाव था जो हमारे पडाव से नजदीक ही था हम सभी पैदल ही निकल गये। हमने अपने समुह की तस्वीर ली। हमारे समुह की तीनो सखियों ने एक जैसी वेशभुषा पहनी और बाकी सदस्यों ने भी लगभग एक जैसी वेशभुषा पहन रखी थी। हम कार्यक्रम स्थल पहूँचे यहाँ पर बहुत से साहित्यकार पहूँच गये थे।

माईक पर एलाउन्स होने लगा जो साहित्यकार धूप में विटामीन ’’डी’’ का सेवन कर रहे है वह शीघ्र अपना रजिस्ट्रेशन करावें और नाश्ता कर कार्यक्रम हाॅल में पधारे। हम सभी ने इधर-उधर देखा फिर पता चला कि माईक पर हमारे समुह के लिए ही बात चल रही थी। हम सभी आगे बढ़े और हमे हमारे सम्पादक महोदय श्री रमेश जी कटारिया ’’पारस’’ जी के दर्शन हो गये। पारस जी ने हम सभी को पहचान लिया और बारी-बारी से हमारा नाम पुकारते गये और अभिवादन एवं स्वागत किया। हमने उनके साथ एक तस्वीर खिंचाई। अब हम रजिस्ट्रेशन काउन्टर की ओर बढ़े। हमने अपना रजिस्ट्रेशन कराया और हमे एक-एक पैकेट दिया गया। हमने पैकेट देखा तो बड़ा विचित्र लगा इसमें कोई एक रूपता नहीं दिखाई दी। असल में पारस जी के घर आने वाली विभिन्न पत्र-पत्रिकाऐं एवं कुछ किताबें थी जिनमें पारस जी की रचनाऐं प्रकाशित हुई थी।

श्री रमेश जी कटारिया ’’पारस’’ जी से पहली मुलाकात हुई थी। वह कई वर्षो से साहित्यिक क्षैत्र से जुड़े हुए है। उनकी कई पुस्तकें पूर्व में प्रकाशित भी हुई है इसके साथ-साथ उन्होनें पूर्व में भी बहुत सी पुस्तकों का सम्पादन कार्य एवं साहित्यिक गतिविधियों का संचालन व आयोजन किया है। आज इतनी बड़ी हस्ती से मिलकर मन बड़ा प्रसन्न हुआ। हमें जो पैकेट मिला उसमें ’’पारस’’ जी की पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिका के रूप में उनकी अमुल्य निधी हमें प्राप्त हो गई। हमने नाश्ता किया और कार्यक्रम हाॅल में प्रवेष किया।

कार्यक्रम हाॅल में सामने की तरफ मंच था और दिवारों पर रचनाकारों के चित्र लगे बैनर थे। मंच एवं हाॅल बहुत छोटा था। हमारे सम्पादक महोदय जी की तबियत कुछ दिनों से खराब चल रही थी। फिर भी उनसे जैसी व्यवस्था हो सकी उन्होनें पुरा प्रयास किया। कार्यक्रम कुछ ही देर में प्रारम्भ होने वाला था। हमने एक पंक्ति में प्रवेष किया। अधिकतर बुजुर्ग वर्ग दिखाई दे रहा था युवा कवि कम थे।

कुछ ही देर में आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के आने की घोषणा हो गई। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री विवेक नारायण शेजवलकर जी महापौर ग्वालियर थे, मुख्य अतिथि श्रीमती डाॅ स्वतंत्र शर्मा जी कुलपति राजा मानसिंह तोमर संगीत यूनिवर्सिटि, ग्वालियर थी। विशिष्ट अतिथि के रूप में श्रीमती प्रिया वच्छानी जी, श्रीमती एकता शारदा जी, श्रीमती मधुर परिहार जी एवं श्री भरत मल्होत्रा जी थे। ताज्जुब की बात यह रही कि हमारे 8 सदस्यों में से 4 सदस्य इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के पद पर थे जिनका सानिध्य हमें एक दिन पूर्व ही मिल गया था। सभी अतिथि मंच पर आ गये थे लेकिन कार्यक्रम अध्यक्ष नहीं पहूँचे थे।

कार्यक्रम संचालिका श्रीमती आरती खेड़कर ने संचालन प्रारम्भ किया। कार्यक्रम का आगाज सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। उसके पश्चात अतिथियों को मोती की माला पहना कर उनका स्वागत किया गया। नन्हे बच्चों सौम्या, साक्षी, मान्या, मुदित, इरिका कटारिया ने रंगारंग प्रस्तुती देकर सभी साहित्यकारों का समा बांधा। इस कार्यक्रम को देख लगा कि ये कटारिया जी का पारिवारीक कार्यक्रम हो लेकिन वास्तव मे पता चला की परिवार में सभी प्रतिभा के धनी है जिसमें नन्हें बच्चें हो या उनकी पत्नी सभी साहित्यिक क्षेत्र से जुड़े लगे।

संचालिका श्रीमती आरती खेड़कर ने हमें ग्वालियर से भी परिचय कराया और बताया की ग्वालियर साहित्य के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जन्म स्थली है। उन्होंने भी कई कविताऐं लिखी है जो आज भी प्रसिद्ध हैं। ग्वालियर सिंधिया परिवार के राजघराने एवं ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध है। रानी लक्ष्मीबाई जैसी विरांगना के लिए ग्वालियर जाना जाता है।

फिर पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। जिसमें चार पुस्तकों ’’शब्दकलश’’, ’’दीपशिखा’’, ’’धरोहर’’ एवं ’’कुछ शेर सुनाता हूँ मैं’’ का लोकार्पण किया गया। मेरी रचनाऐं ’’शब्दकलश’’ एवं ’’दीपशिखा’’ सांझा संग्रह में सम्मिलित हुई थी। मंच छोटा होने से हम रचनाकार लोकार्पण के समय मंच पर नहीं जा सके। सभी पुस्तकों का लोकार्पण होने के बाद कार्यक्रम के अध्यक्ष पधार गये जो ग्वालियर के महापौर श्री विवके नारायण शेजलकर जी थे। हमें थोड़ा अजीब लगा जब अध्यक्ष जी आ ही रहे थे तो कुछ देर इन्तजार कर लेना चाहिए था। अध्यक्ष जी का स्वागत किया गया। फिर साहित्यकारों के सम्मान का क्रम प्रारम्भ हुआ।

हमारे समुह के श्रीमती प्रिया वच्छानी जी, श्रीमती एकता शारदा जी, श्रीमती मधुर परिहार जी एवं श्री भरत मल्होत्रा जी को शाॅल ओढ़ाकर एवं सम्मान पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। आप सभी को ’’दीपशिखा सम्मान’’, ’’काव्य शब्दकलश सम्मान’’, ’’साहित्य सरताज’’ एवं ’’साहित्य शिरोमणी’’ से सम्मानित किया गया। महिलाओं के सर पर ताज रख कर उन्हे विशेष सम्मानित किया गया। सभी साहित्यिकारों का सम्मान का क्रम चलता रहा। कुछ ही देर में मेरा नाम भी पुकारा गया। मुझे मोती की माला पहनाई गयी एवं शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। सम्मान पत्र व स्मृति चिन्ह देकर ’’दीपशिखा सम्मान’’, ’’काव्य शब्दकलश सम्मान’’ एवं ’’काव्य साहित्य सरताज’’ उपाधि से सम्मानित किया गया। मुझे बहुत खुशी हुई ये पल मेरे लिए बहुत यादगार पलों में सम्मिलित हो गये। कार्यक्रम में सभी रचनाकारों का सम्मान किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्रीमती डाॅ स्वतंत्र शर्मा जी कुलपति राजा मानसिंह तोमर संगीत यूनिवर्सिटि, ग्वालियर ने अपना परिचय दिया तो हम अभिभुत रह गये। डाॅ स्वतंत्र शर्मा जी कवियत्री महादेवी वर्मा की बचपन की सखी थी और बचपन में ही महादेवी वर्मा जी के लिखे गीत गुनगनाती थी। आज ये राजा मानसिंह तोमर संगीत यूनिवर्सिटी में कुलपति के पद पर आसन्न हैं।

सम्मान समारोह के पश्चात स्वरूची भोजन का आयोजन था जिसमें हम सभी ने शिरकत की और हमारे समुह ने भोजन का आनन्द लिया।

कार्यक्रम स्थल पर श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जी, श्रीमती नीरजा मेहता जी, श्रीमती आभा चन्द्रा जी, श्री रफीक मोहम्मद जी, श्रीमती रश्मि अभया जी, श्री उमेश जी शर्मा से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। साहित्यिक चर्चा के बाद काव्य पाठ प्रारम्भ हुआ। साहित्यिकारों ने गायन एवं काव्य पाठ से दर्शकों को समा बाँधा। सभा स्थल तालियों से गुँज उठा। कार्यक्रम जब समाप्त होने लगा तो विदाई के क्षण में सभी मायुस दिखने लगे। आज वास्तव में साहित्यकारों का महाकुम्भ देखने को मिला।

हमारे समुह के सदस्य होटल लौट आये। हमनें होटल में कुछ देर विश्राम किया। हम पाँच सदस्य आज के कार्यक्रम के फोटो लेने के लिए बाजार में स्टुडियो के लिए निकले। कुछ देर आॅटो में चले ही थे कि हमारे आॅटो ने एक बाईक सवार को टक्कर मार दी। हम कुछ घबरा गये क्योंकि अनजान शहर में थे। आॅटो वाले ने कहा कि दूसरे बाईक सवार ने इसे टक्कर मारी है फिर भी हमने आॅटो रूकवाकर उस बाईक सवार को उठाया और उसे सड़क के बिच से सुरक्षित किनारे पर ले आये। वह होश में था और उसकी मदद को कई लोग आ गये। उसे मामुली चोट आयी थी। उसने कहा मैं ठीक हूँ। फिर हमने चैन की सांस ली और हम बाजार में चले गये। बाजार में स्टुडियों को ढूंढने में बहुत परेशानी हुई क्योंकि जो बाजार बताया था वहाँ सभी दूकाने स्टूडियो की थी। हम आगे बढ़ते गये और हँसी मजाक में पुरे बाजार में घुमें अंत में हमें वह स्टूडियों मिल गया जहाँ से हमें अपने फोटो लेने थे। हमने फोटो लिए और आॅटो कर पूनः अपने ट्यूरिस्ट होटल लौट आये।

सांझ ढलने पर हमे शेरे पंजाब रेस्टोरेंट की याद आ ही गई क्योंकि रात्रि भोज का समय हो चला था। हम सभी सदस्य रात्रि भोज पर जाने के लिए तैयार हो कर निकल पड़े। आज शेरे पंजाब रेस्टोरेंट में हमें तीसरी मंजिल पर जगह मिली। हमने मजाक में कहा कि रोज एक-एक मंजिल ऊपर बढ़ रहे है और ये आखरी मंजिल है। वाकई में आज यहाँ अन्तिम दिवस और अन्तिम रात्रि भी थी कल सभी को अपने घर लौटना था। हमने भोजन का आर्डर दिया और बड़े आनन्द से भोजन किया। सेल्फी लेकर इसे यादगार बनाया।

भोजन उपरान्त एक विशेष पार्टी का आयोजन था जिसे श्रीमती प्रिया वच्छानी जी ने पूर्व में नहीं बताया था। हमारे समूह के सदस्य श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) के बिते दिन के जन्मदिवस की खुशी में केक आर्डर दे दिया गया था। हमने श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) को केक खिलाकर उन्हें जन्मदिवस की बधाई दी। आज के सम्पुर्ण दिवस को हमने यादों में समेटकर यादगार बना दिया था। हम विश्राम स्थल हमारे पडाव पर लौट आये। कल सभी सदस्यों को बिछड़ना था हम सभी ने ढेर सारी बाते की और दिन भर के कार्यक्रम की चर्चा की। चर्चा के पश्चात रात्रि विश्राम किया।

अगले दिन 4 जनवरी 2016 को भौर हो गई और सभी के जाने का समय प्रारम्भ होने लगा। सबसे पहले श्री दिनेश दवे जी को सिधे नागदा के लिए रेलगाड़ी से निकलना था। उन्हें दो रेल बदलकर पहूँचना था उनकी रेल 9&00 बजे की होने से वह लगभग 8&30 बजे हमसे मुलाकात कर प्रस्थान कर गये। श्रीमती प्रिया वच्छानी जी, श्रीमती एकता शारदा जी, श्री भरत मल्होत्रा जी एवं श्री पुरूषोत्तम जाजु जी की मुम्बई जाने वाली रेलगाड़ी 10&00 बजे होने से वह भी 9&30 बजे रेल्वे स्टेशन निकल गये हमने उनके जाते समय समुह की तस्वीर ली। समूह के बिछड़ने पर आँखों से अश्रु छलक पड़े।

अब हम 3 सदस्य श्रीमती मधुर जी परिहार, श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) एवं मैं ही शेष रह गये थे हमारी रेलगाड़ी दोपहर 3&45 पर थी। हम तीनों ने आॅटो लिया और नगर के पर्यटन स्थल भ्रमण को निकले। वैसे ग्वालियर में ग्वालियर किला, जय विलास पैसेल, सास बहु मन्दिर, गुरूद्वारा, गोपचल पर्वत, सुर्य मन्दिर, रानी लक्ष्मी बाई की समाधी, तेली का मन्दिर, तिगरा डेम, ग़ौस का मकबरा, तानसेन का मकबरा, गुर्जरी महल, माधव नेश्नल पार्क, सिंध्यिा जी की छतरिया आदि कई प्रसिद्ध स्थल थे। हमने समय के अनुरूप और नजदीक स्थल जाने का निर्णय लिया ताकि कम समय में भ्रमण हो सके।

आगे के भाग के लिए भाग-3 पढ़िऐ।

पाठको का हार्दिक आभार।

नितिन मेनारिया

उदयपुर