ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (भाग-1) Nitin Menaria द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (भाग-1)

ग्वालियर साहित्यिक यात्रा (यात्रा वृतान्त) .................. 4

ग्वालियर साहित्यिक यात्रा शीर्षक से मैं यहाँ एक यात्रा वृतान्त प्रस्तुत कर रहा हूँ। वैसे यह मैं चौथा यात्रा वृतान्त लिख रहा हूँ इससे पूर्व मैंने ’’मेरी साहित्यिक यात्रा’’ (झुन्झूनु शहर), ’’मेरा दिल्ली का सफर’’ (दिल्ली शहर), एवं ’’मेरी पहली रेल यात्रा’’ (दिल्ली से उदयपुर) नामक यात्रा वृतान्त लिखें है। जब पाठको ने मेरे पूर्व के यात्रा वृतान्त को सराहा तभी मैंने एक मानस बना लिया था की जब भी मैं एक साहित्यिक यात्रा पर जाउगाँ उसका यात्रा वृतान्त अवश्य लिखूगाँ। निकट भविष्य में एक यात्रा वृतान्त पर पुस्तक प्रकाशित कराने का भी मानस है।

मेरे जीवनकाल में ग्वालियर की यात्रा पहली बार हूई लेकिन इससे पूर्व साहित्यिक यात्रा दो बार हो चुकी थी। ये यात्रा मेरे लिए बहुत विशेष रही और मेरे जीवन के यादगार पल में सम्मिलित हो गई। यात्रा का उद्देश्य एक भव्य पुस्तक लोकार्पण समारोह था जो ग्वालियर के लक्ष्मीबाई कम्युनिटी हाॅल में 03 जनवरी 2016 को आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम में चार पुस्तकों का लोकापर्ण समारोह था जिसमें दो सांझा संग्रह ’’शब्दकलश’’ एवं ’’दीपशिखा’’ में मेरी रचनाऐं भी सम्मिलित थी।

इस ग्वालियर यात्रा पर जाने का अवसर तो मुझे प्राप्त हो गया था लेकिन मैं इस बात से अनभिज्ञ था कि मैं यह यात्रा कर पाउंगा या नहीं। हमारे सम्पादक मण्डल की सदस्या आदरणीया श्रीमती प्रिया वच्छानी जी ने कार्यक्रम से 1 माह पूर्व ही ’’मिशन ग्वालियर’’ के नाम से एक व्हाटस्अप ग्रुप बनाया। इस ग्रुप में उन्होने आठ सदस्यों को जोड़ा जिसमें मैं भी सम्मिलित था। इस ग्रुप के सदस्यों में श्री भरत जी मल्होत्रा, श्री पुरूषोत्तम जाजु जी, श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’), श्री दिनेश जी दवे, श्रीमती मधुर जी परिहार, श्रीमती एकता शारदा जी, श्रीमती प्रिया वच्छानी जी एवं मैं स्वयं सम्मिलित हो गया था। अब ग्रुप में सभी के संदेश का आदान प्रदान होने लगा था।

मैं सभी से पूर्व में परिचित था केवल श्री पुरूषोत्तम जी जाजु जी से परिचित नहीं था। श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) ने ग्रुप में संदेश प्रेषित कर दिया ’’नितिन जी ग्वालियर यात्रा का टिकिट करा लिया आपने? आप ग्वालियर कैसे पहूँच रहे है और कब’’ मैं निरूत्तर था। मैंने यात्रा पर जाने का निश्चित ही नहीं किया था। जब मित्रों के संदेश प्राप्त होते रहे तब मैंने ग्वालियर जाने का निश्चय कर लिया और अभिभावक से यात्रा के उद्देश्य पर चर्चा कर ली। शीतकालीन अवकाश होने से मुझे अभिभावक की स्वीकृती भी प्राप्त हो गई।

उदयपुर से ग्वालियर के लिए सिधी बस नहीं थी लेकिन ग्वालियर के लिए रेल व्यवस्था थी। रेल के समय विभाग चक्र एवं ग्वालियर के कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम के एक दिन पूर्व रवानगी करना एवं कार्यक्रम की समाप्ती के अगले दिन लौटना सम्भव हो रहा था। इस बार मैंने पूर्व की यात्राओं से सिखकर कार्यक्रम से एक दिन पूर्व जाना एवं कार्यक्रम की समाप्ती के अगले दिन लौटने का फैसला किया। मैंने रेल द्वारा यात्रा करने का निश्चय कर लिया। मैंने उदयपुर खुजराहो ऐक्सप्रेस 19666 में जाने व खुजराहो उदयपुर ऐक्सप्रेस 19665 में लौटने हेतु शयनयान में आरक्षण करा लिया। अब मैं ग्वालियर यात्रा के लिए निश्चिंत हो गया।

31 दिसम्बर 2015 को वर्ष 2015 को विदाई दी एवं 01 जनवरी 2016 को नव वर्ष का आगाज ग्वालियर की यात्रा के साथ हुआ। जब नव वर्ष का प्रारम्भ ही ग्वालियर यात्रा से हो रहा था तो मन में बड़ा हर्ष और उत्सुकता बनी रही। 01 जनवरी 2016 को सांय 10-20 बजे रेल का प्रस्थान का समय था। आश्चर्य की बात यह रही कि मेरे विद्यालय परिवार के सदस्य जो हमारे परिवार के नजदीक सदस्य भी है वह भी उसी रेल में अपने परिवार के साथ आगरा जा रहे थे। हम घर से स्टेशन के लिए साथ में ही निकले एवं एक घंटे पूर्व ही रेल्वे स्टेशन पर पहूँच गये। मैंने उदयपुर सिटी रेल्वे स्टेशन की तस्वीर ली। रेल प्लेटफार्म नम्बर 1 पर खड़ी थी। हमारी रेल तो एक ही थी लेकिन कोच अलग&अलग थे। उन्होनें अपने परिवार के साथ अपने कोच की तरफ कदम बढ़ा लिये और मैंने अपने कोच की तरफ कदम बढ़ाऐं। मेरा कोच एस 3 था जिस पर आरक्षण की सूची चस्पा हो गई थी मुझे मेरा नाम भी मिल गया था। अब मैं निश्चिंत था। एक और आश्चर्य की बात यह रही कि मैं जिस कार्यक्रम के लिए जा रहा था उसी कार्यक्रम में जाने वाले एक सदस्य श्री रफीक मोहम्मद मंसुरी जो डूंगरपुर शहर से है और उदयपुर में होटल लीला पैलेस में कार्यरत है वह भी मेरी ही रेल द्वारा जा रहे थे लेकिन इन महाशय का कोच एस 6 था इन्होनें रेल प्लेटफार्म पर मिलकर मेरा अभिवादन किया एवं यात्रा मंगलमय हो कहते हुए अपने कोच की तरफ बढ़ गये।

जिन्दगी में रेल द्वारा यात्रा दूसरी बार होने से इस बार भय बिल्कुल नहीं था। क्योंकि मैंने पूर्व में रेल यात्रा कर रेल के भय से मुक्ति पा ही ली थी और इस विषय पर एक कहानी ’’भय का अन्त’’ भी लिखी थी। अब मैं रेल में तो अकेला था लेकिन कई यादें, उत्सुकता, हर्ष मन में था। भारतीय समयानुसार 10-20 बजे उदयपुर खुजराहो ऐक्सप्रेस गाड़ी नम्बर 19666 उदयपुर सिटी रेल्वे स्टेशन से प्रारम्भ हुई। मैंने घर पर सूचना दे दी कि अब रेल प्रस्थान कर गई हैं। मैंने रेल की लाईव स्टेटस लिंक को शेयर कर दिया। फेसबुक पर भी स्टेटस अपडेट करते ही मंगलयात्रा के संदेश प्राप्त होने लगे। रेल में मेरा स्लीपर ऊपर था। अब यहाँ आराम फरमाया जा सकता था। नये वर्ष में एक नई यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ इस सोच में डुबा और मुझे नींद आ ही गई। बीच-बीच में नींद खुलती रही और ये सफर चलता ही रहा। मुझे इस बात का भी पता था कि हमारे ग्रुप की एक सम्मानित सदस्या श्रीमती मधुर जी परिहार भी मेरी रेल में जयपुर स्टेशन से बैठेगी और हमारे साथ ग्वालियर पहूँचेगी। प्रातः जब नींद खुली तब जयपुर रेल्वे स्टेशन निकल चुका था और हमारे ग्रुप की सम्मानित सदस्या श्रीमती मधुर जी परिहार रेल के कोच बी2 में थी। अब रेल के अलग-अलग तीन डिब्बों में ग्वालियर जाने वाले साहित्यिकार मौजुद थे। ऐसा लग रहा था कि यह खुजराहो एक्सप्रेस ना होकर ग्वालियर साहित्यक एक्सप्रेस है। मैंने प्रातः एक स्टेशन पर उतर कर चाय पी एवं सुर्योदय की तस्वीर ली।

मेरे पारिवारिक सदस्य जो समय-समय पर मुझसे संवाद स्थापित किये हुए थे वह आगरा स्टेशन पर उतर गये उन्होनें मुझे फोन कर आश्वस्त किया कि कोई समस्या आऐ तो अवगत करा देना। मेरे एक साथी श्री रफीक मोहम्मद मंसुरी जी भी अपने मित्र के साथ आगरा ही उतर गये उन्होंन सोचा कि आगरा घूम कर सांय तक ग्वालियर लौटेगें। आगरा में इस रेल का इंजन बदल गया एवं रेल के विपरित दिशा में गतिमान होने का आभास हुआ। श्रीमती मधुर जी परिहार ने मुझसे सम्पर्क साथा और ग्वालियर स्टेशन आने पर अवगत कराने को कहा। कुछ ही देर में उनकी प्रिय सखी श्रीमती प्रिया वच्छानी जी ने मुझसे सम्पर्क किया और कहा कि ग्वालियर स्टेशन से उनकी सखी श्रीमती मधुर जी को साथ लाना है और मैनें उन्हें निश्चिंत किया। गाड़ी रेल्वे समय से 10 मिनिट देरी से चल रही थी। दिनांक 02 जनवरी 2016 को दोपहर 1 बजकर 45 मिनिट पर ग्वालियर जंक्शन पर खुजराहो एक्सप्रेस रूकी और मैं अपने सामान के साथ उतर गया। मैं स्टेशन उतर कर कोच बी2 की और बढ़ा जहाँ हमारे ग्रुप की सम्मानित सदस्या मौजुद थी। मैंने उनका अभिवादन किया।

ग्वालियर में हमारे ग्रुप का पडाव जिस जगह था उस जगह का नाम भी पडाव ही था। हमने आॅटो लिया और पडाव के लिए निकल पड़े। हम पडाव पर ट्यूरिस्ट होटल पहूँचे। हमारे ग्रुप ने ट्यूरिस्ट होटल में चार कमरे पूर्व में आरक्षित करा रखे थे जहाँ हमारे ग्रुप के 4 सदस्य पूर्व में पहूँच चूके थे। अब हमारे ग्रुप के 6 सदस्य इस ट्यूरिस्ट होटल में थे। बाकी के दो सदस्य मेरे मित्र श्री निरंजन जी तिवारी (निरंजन ’’नीर’’) एवं श्री दिनेश दवे जी अगले दिन प्रातः आने वाले थे। मैं होटल के एक कमरे में श्री भरत मल्होत्रा जी एवं श्री पुरूषोत्तम जाजु जी के साथ ठहरा। श्री भरत मल्होत्रा जी से पीछली बार दिल्ली में मुलाकात हुई थी एवं श्री पुरूषोत्तम जाजु जी से पहली ही मुलाकात रही। मित्रों ने मेरे लिए चाय भी मंगवाई। कुछ देर होटल में विश्राम किया। फिर हम तीनों ने परिचर्चा कर अपना-अपना परिचय दिया। श्री भरत मल्होत्रा जी एवं श्री पुरूषोत्तम जाजु जी दोनों ही मुम्बई शहर में व्यवसायरत है। भरत जी का पैतृक निवास स्थान पंजाब और पुरूषोत्तम जी का पैतृक निवास नागौर में है। हमने कुछ देर अक्षय कुमार की फिल्म गब्बर देखी जो भारत देश के भ्रष्टाचार पर आधारित फिल्म थी। हम तीनों मित्रों ने भ्रष्टाचार विषय पर चिन्ता जाहिर की और इसके सम्बन्ध में अपने-अपने मत भी प्रस्तुत किये और कुछ देर परिचर्चा चलती रही।

सायं के 4 बज चुके थे हमने दोपहर का भोजन नहीं किया था जिससे कुछ भुख का अहसास होने लगा। हम तीनों मित्र ने आॅटो लिया और आॅटो वाले को नई सड़क पर शेरे पंजाब रेस्टोरेंट चलने के लिए बोला। आॅटो वाले ने बिना मीटर स्टार्ट किये 60रू किराया बताया। आॅटो वाला हमे जिस जगह जाना था वहाँ से कुछ ज्यादा दूरी पर ले गया जिससे उसे फिर लौटना पड़ा। हमने उसे मजाकिया तौर पर कहा कि तुमने सही दूरी के हिसाब से रूपये नहीं मांगें इसलिए हमने 60 रूपये के हिसाब से दूरी तय करा दी। हमने शेरे पंजाब रेस्टोरेंट में खाना आर्डर किया और भरपेट खाना खाया। मैंने जिन्दगी में पहली बार मित्रों के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाया था। बिल श्री भरत मल्होत्रा जी ने चुका दिया। खाना बहुत स्वादिष्ट था और हमनें तय किया कि रात्रि भोज भी यंही आकर करेगें। फिर हमने पुनः आॅटो लेकर होटल ट्यूरिस्ट की ओर प्रस्थान किया।

हमारे ग्रुप की एक सदस्या श्रीमती प्रिया वच्छानी जो सुबह आ गई थी लेकिन उनसे अब तक मुलाकात नहीं हो पाई थी क्योंकि वह अपने अभिभावक के साथ आई थी और वह अपने माता-पिता के साथ ग्वालियर में रिश्तेदार से मिलने गयी हुई थी। हमने उन्हें फोन कर आगे के कार्यक्रम के बारे मे जानकारी ली। उन्होनें बताया कि वह कुछ ही देर में लौट रही है। हमने होटल में रूकी हमारे ग्रुप की दो सम्मानित सदस्या श्रीमती एकता सारदा जो सुरत से थी और श्रीमती मधुर परिहार जी जो जोधपुर से थी उनसे मुलाकात की और चाय पी।

कुछ ही देर में श्रीमती प्रिया वच्छानी जी अपने अभिभावक के साथ लौट आई थी। हम सभी ने चाय बिस्किट लिये और श्रीमती प्रिया वच्छानी जी से चर्चा की। उन्होनें ग्वालियर में चल रहे श्रीमंत माधवराव सिंधिया व्यापार मेले में चलने का सुझाव दिया। हमें व्यापार मेले में जाने का सुझाव पसंद आया फिर हम सभी सदस्य मेले के लिए चल पड़े। मेला स्थल थोड़ा दूरी पर था। हम आॅटो द्वारा मेला स्थल पहूँचें। ग्वालियर शहर रात में रंगीन रोशनी से बहुत सुन्दर लग रहा था। सड़को के दोनो तरफ रंग बिरंगी रोशनी की गई थी। मेला प्रांगण बहुत विस्तरित था। गवालियर व्यापार मेला प्राधिकरण द्वारा मेले का आयोजन किया गया था। हमने मेले में रेडिमेड कपड़े, साडि़याँ, ऊनी वस्त्र, खिलौने, साज-सज्जा आदि के कई स्टाॅल देखे। हम सभी को ऊनी टोपी बहुत पसंद आई और सभी सदस्यों ने ऊनी टोपी एवं जुराबे खरीदे।

मेले में ग्वालियर नगर निगम द्वारा मध्यप्रदेश के कई विभागों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। जिसमें राज्य सरकार द्वारा चलाये गये कई अभियान एवं प्रोजेक्ट का अच्छा प्रदर्शन किया गया था। हमने वहाँ शैक्षिक एवं साहित्यिक प्रदर्शनी भी देखी जो हम सभी को बहुत पसंद आयी। एक सर्व शिक्षा विभाग अभियान का माॅडल देखा वहाँ हमने कई तस्वीरे खिंचवाई। मेले में कई तरह के अमेरिकन झुले लगे थे। हमारे ग्रुप के चार सदस्यों ने सबसे बड़े झुले में बैठने का आनन्द लिया। हमने मेले में पानी पताशे, पापकोर्न, खाजा पापड़ का बहुत आनन्द लिया। श्री पुरूषोत्तम जाजु जी को खिलौनें की स्टाॅल पर एक ताज बहुत पसंद आया वो ताज उन्हाने अपनी बिटिया के लिए लिया। जब श्री पुरूषोत्तम जाजु जी के पास हमने वो ताज देखा तो हमने वो ताज श्रीमती प्रिया वच्छानी जी को पहना कर उनकी ताजपोशी करी और उनसे कहा की आप हमारे ग्रुप के लीडर है ये ताज आपके लिए है। वाकई ग्रुप के सदस्यो ने मेले का आनन्द लिया था।

आगे के भाग के लिए भाग-2 पढ़िऐ।

पाठको का हार्दिक आभार।

नितिन मेनारिया

उदयपुर