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अपने को संभालना


अपने को संभालना

गुरदीप खुराना


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अपने को संभालना

चंदर अपने काम में बुरी तरह मसरूफ था। वह एक स्लाइड उठाता, उसे रोशनी के आगे आकर देखता फिर अपनी कॉपी में कुछ नोट करता जाता। वह कल होने वाली प्रस्तुति के लिए साथ—साथ बोलने के लिए वाक्य तैयार कर रहा था। यों तो उसका पेपर और पारदर्शियों की नकल, एक पुस्तिका की शक्ल में तैयार हो चुकी थी लेकिन हर स्लाइड की प्रस्तुति के साथ जो कुछ बोलना जरूरी होता है, उसका शब्द—चयन वह पहले से कर रहा था। वैसे भी यह मौका बरसों के बाद आ रहा है। पिछले कई महीनों से वह इस तैयारी में जुटा हुआ था। मीरा आई। बोली, ष्खाना ठंडा हो रहा है।

इससे पहले भी वह दो बार यही कह गई है लेकिन उसने जैसे सुना ही नहीं।

और कितनी देर लगेगी। ग्यारह बज रहे हैं।ष् वह खीज कर बोली।

बस पंद्रह मिनट और। दो स्लाइड रह गई हैं।

तभी फोन की घंटी बजी। उसने मीरा से कहा, ष्जरा जाकर देखो शायद अॉफिस से ही होगा।ष् उसके अॉफिस में ही सुबह वह सेमीनार होना था जिसकी जोर—शोर से तैयारी चल रही थी।

फोन लंबा था। जब तक मीरा सुनकर लौटी वह आखिरी स्लाइड देखते—देखते बोला— ष्क्या बात है? इतनी लंबी गप्प किससे चल रही थी। मिसेज सोनी का फोन था क्या?

नहीं।

तो फिर?

जयपुर से था।

किसका, ब्रिज भैया का?

हूँ।

खैरियत?

पूरा कर लो फिर बताती हूँ।

ऐनीथिंग सीरियस?

कहा न, पूरा कर लो फिर आराम से बात करेंगे।

ओके। कहकर वह अंतिम स्लाइड का सार लिखने लगा। लिख चुका तो अपनी नोट बुक बंद करके एक संतोष की साँस लेते हुए बोला— आह! फाइनली ईट्‌स ओवर।

मीरा के चेहरे पर चिंता झलक रही थी।

चंदर बोला— ष्क्या बात हुई डियर? मुझे कुछ गड़बड़ लगती है।

हाँ है कुछ।ष् वह नाखून कुरेदती हुई बोली, ष्चलो, पहले खाना खा लेते हैं।

ऐसे कैसे यार, पहले बताओ तो बात क्या है।

बात सचमुच बहुत सीरियस है चंदर।

क्या?

कंचन का एक्सीडेंट हुआ है।

ओह गॉड! तो?

वह हास्पीटलाइज्ड है।

माई गॉड! वह सिर पकड़ कर बैठ गया।

इसका मतलब, वह बोला, हमें कल सेमीनार के बाद फौरन निकलना पड़ेगा।

उससे पहले नहीं निकल सकते?

क्या बात करती हो? इतना इम्पाटेर्ंट सेमीनार है और मेरा यह प्रेजेंटेशन साल भर से ऊपर हो गया है इसकी तैयारी में।

सो तो ठीक है, लेकिन...

लेकिन क्या?

भैया ने कहा है कुछ भी हो सकता है, ऐनी मोमेंट...

उफ्फ! उसने सिर पर हाथ मारा। बोला, ष्जब मैंने पूछा था ऐनीथिंग सीरियस तब क्यों नहीं बताया।ष्

मैं चाहती थी तुम काम पूरा कर लो।

और अब कहती हो उस काम को छोड़कर चल पडूँ?

बिगड़ते क्यों हो? तुम्हारी मजी है चलो, नहीं है न चलो।

क्या कहा भैया ने? कितना सीरियस है?

बोले, चांसेस फार्टी—सिक्स्टी है।

कंचन चंदर के छोटे भाई की पत्नी है। खूब स्मार्ट तेज, जीन्स पर खादी का कुर्ता पहनकर स्कूटर पर घूमने वाली फ्री लांस जर्नलिस्ट। नाम मात्र की गृहस्थी। एक बच्ची है उसकी जो होस्टल में हैं। कंचन अपने स्कूटर पर जा रही थी कि एक गाड़ी से टकरा गई और यह एक्सीडेंट इतना भयंकर हुआ कि बचने की उम्मीद केवल चालीस प्रतिशत बताई गई।

कैसे होगा? चंदर ने एक लंबी साँस ली।

चलो पहले कुछ खा लेते हैं।ष् कंचन ने उसका हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा, फिर सोचेंगे क्या करना है।

यह भी ठीक कहती हो। ऐसे सिर पकड़ कर बैठने से तो कोई हल नहीं निकलने वाला।

अभी कुछ क्षण पहले तक चंदर कल सुबह से शुरू होने वाले सेमीनार को लेकर उत्साह से भरा हुआ था। बहुत सारे डेलिगेट्‌स के पत्र उसके पास पहुँच चुके थे जो इस सेमीनार में पेपर पढ़ने आ रहे थे। बहुत सारे विषयों पर उसके मन में प्रश्न थे जिन्हें पूछने का मौका उसे कल मिलने वाला था। कितना उन सबके संग मिलकर बैठने का उसका मन था। सेमीनार के बाद शाम को कॉकटेल डिनर होना है। बहुत सारे पुराने साथी—साथिन मिलते। दिल खोलकर बातें होतीं। लेकिन अब, अब क्या हो सकता है। वह ज्यादा से ज्यादा अपने पेपर की प्रस्तुति तक रुक सकेगा। उसके बाद तो निकलना ही पड़ेगा। जितनी जल्दी निकल सकें उतना अच्छा। अगर ग्यारह बजे तक निपट सके तो बस पकड़ कर शाम तक जयपुर पहुँच सकते हैं।

खाने की मेज पर बैठा वह खाने के साथ—साथ आने वाले कल का कार्यक्रम बनाने में लगा था। सुबह उठकर वह बॉस को फोन करेगा कि ऐसी—ऐसी बात हो गई है, हो सके तो उसका प्रेजेंटेशन पहले करवा दें ताकि वह जल्दी से जल्दी निकल सके।

बच्चों का क्या करें।ष् उसने मीरा को पूछा।

मेहरा साहब के यहाँ छोड़ जाएँगे।

मेहरा लोग उनके पड़ोसी थे। जब कभी बाहर जाना हो, ये लोग अपने—अपने बच्चों को एक दूसरे के पास छोड़ जाया करते थे।

छुट्टी कितनी एप्लाई करूँ?

क्या बताऊँ फिलहाल तो संडे तक की सोचो।

और अगर कुछ हो गया तो? चंदर सोच—सोचकर परेशान था क्यों कि ठीक तेरह दिन बाद उसे विदेश जाना था और उसका एअर टिकट बुक हो चुका था। उधर मीरा जाने की तैयारी के लिए हिसाब लगा रही थी कितने दिन के लिए कपड़े रखे और कैसे—कैसे कपड़े रखे। अगर सब ठीक—ठाक रहता है तो कुछ ढंग के कपड़े रखने होंगे और अगर कुछ ऐसी वैसी बात हो जाती है तो मातम वाले जोड़े ही रखना ठीक होगा। तेरहवीं के दिन के लिए एक सफेद जोड़ा भी रख लेना चाहिए। लेकिन ऐसा करने से कहीं यह तो नहीं लगेगा कि पहले से ही तैयारी करके आए हैं। यों भी उसके पास ढंग की कोई सफेद साड़ी नहीं। छोड़ो, काली छींटदार तो एक है, वही चलेगी, उसने सोचा। ऊपर से सफेद शाल ले लेगी। अपनी चाची की तेरहवीं पर उसने उसकी बहू को सफेद सिल्क की साड़ी पर सफेद शाल ओढ़े देखा था। बहुत प्रभावी लग रही थी। हालाँकि उसकी शाल बहुत कीमती थी लेकिन मीरा के पास जो शाल है वह भी कोई ऐसी वैसी नहीं।

मीरा के लिए जयपुर में एक विशेष आकर्षण है उसके बड़े भैया का घर। ब्रिज भैया। डाक्टर ब्रिज मोहन, जिन्होंने उसे फोन किया था। चंदर भी अपने बड़े साले साहब से मिलने का इच्छुक रहता था। खूब पटती है दोनों में। डॉ.ब्रिजमोहन एक ऐयाशी पसंद आदमी हैं। जमकर ऐयाशी करते और करवाते हैं। लेकिन यह समय ऐसी बातें सोचने का नहीं। यह तो चिंता की घड़ी है। वह अपने छोटे भाई के पास उसका दुरूख बाँटने जा रहा है। खाना खाने के बाद मीरा ने सुझाव दिया कि पहले पैकिंग कर ली जाए।

ऐसा है कि तुम बड़े सूटकेस में अपने कपड़े रख लो। जो जगह बचे उसमें मेरा एक पैंट और कुछ शर्टस और अंडर गामेर्ंटस वगैरह फिट कर लेना। तब तक मैं सुबह के प्रेजेंटेशन की तैयारी पूरी करके आता हूँ।ष् सब कुछ बड़े कायदे से होता गया। सुबह फोन पर बॉस से बात हो गई। बॉस उसका पेपर जल्दी पढ़वाने के लिए मान गए। छुट्टी के लिए भी मान गए। सेमीनार में उसके पेपर की प्रस्तुति भी खूब जोरदार हुई। बहुत प्रशंसा मिली। वहाँ से निकलकर वह मीरा को साथ लेकर साढ़े ग्यारह की डीलक्स से जयपुर के लिए रवाना हो गया।

बड़ी आरामदेह यात्रा रही। बस एकदम नई थी शायद। सीटें साफ—सुथरी, गद्देदार। कोई शोर या खटर—खटर नहीं, झटके नहीं। बस एकदम तैर रही हो जैसे। रास्ते में श्मिड—वेश् में बैठकर डोसे खाए। वाह! क्या डोसे थे। इतने बढिया तो पहले कभी नहीं लगे। एक के बाद एक सब बातें अच्छी होती जा रही थी। ऐसा लग रहा था कि अब आगे भी अच्छी ही खबर मिलेगी।

बस ठीक समय पर जयपुर पहुँच गई। ब्रिज भैया ने जो पता नोट करवाया था उस पर अस्पताल पहुँचने में कोई असुविधा नहीं हुई। रात होने से पहले ही वे पहुँच गए। अस्पताल के बाहर लाल टोयोटा खड़ी थी। इसका मतलब ब्रिज भैया वहाँ पहले से मौजूद थे। लेकिन वे नजर नहीं आए। इमजेर्ंसी वार्ड के बाहर खड़े मिले कंचन के पति करन। बड़े भाई को सामने देखकर करन के चेहरे पर एक फीकी—सी मुस्कराहट तैर गई। उसने बताया कि हालत पहले से बेहतर है। डाक्टरों की उम्मीद बढ़ गई हैं। अब फार्टी—सिक्स्टी की जगह सिक्स्टी—फार्टी कह रहे हैं। यह बहुत बड़ी सांत्वना थी। जितना अँधेरे वाली तरफ झुके थे उतना रोशनी की तरफ उठ रहे थे। करन ने बड़े भाई से कहा, ष्इतनी तकलीफ करने की क्या जरूरत थी। सारे काम बीच में ही छोड़कर आना पड़ा होगा। यहाँ तो पता नहीं अभी कितना समय और इसी तरह लगना है।

उसने बारी—बारी से चंदर और मीरा को भीतर ले जाकर इमजेर्ंसी में पड़ी कंचन की झलक दिखलाई।

ष्उफ्फ! देखी नहीं जाती कंचन की यह हालत।ष् चंदर ने आकर मीरा के कान में कहा। कंचन के शरीर में कितनी ही नलियाँ, कितने ही तारों का जाल फैला हुआ था, कितने आले फिट किए हुए थे। उसका चेहरा तो जैसे पूरी तरह प्लास्टर की खोल में बंद था।

मीरा ने करन से पूछा, ष्ब्रिज भैया आए हुए हैं क्या? उनके जैसी एक गाड़ी बाहर...

हाँ, वे यहीं चाय लेने गए हैं, आते ही होंगे।

थोड़ी देर में लंबे—चौड़े ब्रिज भैया एक हाथ में थर्मस और दूसरे हाथ की उँगलियों में चार प्याले फँसाए प्रकट हुए।

हलो, हलो! आ गए तुम लोग। दैट्‌स ग्रेट। मैंने तुम लोगों को एंटर होते देख लिया था इसलिए चार कप लाया हूँ।

थर्मस और कप एक तरफ रखते हुए वे बारी—बारी से बहन—बहनोई दोनों के गले मिले। खुद बहुत बड़े डाक्टर होने के नाते बड़े आत्मविश्वास से दिलासा देते हुए बोले, फिक्र मत करो। उसकी हालत सुधर रही है।

फिर उन्होंने चाय प्यालों में उड़ेली। तीनों को एक—एक कप पकड़ाया और चौथा अपने हाथ में पकड़े एक लंबी चुस्की लेते हुए बोले, ष्बुरी नहीं है।

नहीं, अच्छी है, गरम है।श्श् चंदर ने समर्थन में कहा। फिर ब्रिज भैया ने पूछना शुरू किया। कब चले थे, सफर कैसा रहा, जगह ढूँढ़ने में खास परेशानी तो नहीं हुई, वगैरह वगैरह।

करन ने पूछा, श्श्आप लोगों ने दिन में खाना खाया कि नहीं, थके होंगे, थोड़ा फ्रेश हो लें।

चंदर ने करन से पूछा कि एक्सीडेंट कैसे हुआ। उसके पीछे कोई साजिश तो नहीं थी क्यों कि कंचन बहुत बोल्ड पत्रकार है।

ऐसा नहीं लगता भैया कंचन ड्राइविंग में बहुत रैश है, छोटे—मोटे एक्सीडेंट तो अक्सर ही मारती रहती है।

अभी बिटिया को खबर है कि नहीं?ष् मीरा ने पूछा।

ऐसा है भाभी अभी तो बैठा हूँ विद फिंगर्स क्रास्ड। अगर ऊपर वाले की नजर सीधी रही तो शायद बिट्टू को बताने की जरूरत ही न पड़े।

भगवान ने चाहा तो शायद नहीं ही पड़ेगी, हम सबकी दुआएँ कुछ तो काम करेंगी।

बस शायद यह दुआओं की ही बदौलत है कि इतना इम्प्रूवमेंट हो रहा है। कहते हुए करन ने एक लंबी साँस ली।

तभी डाक्टरों की एक टोली राउंड पर आई और ब्रिज भैया उनके साथ भीतर चले गए। करन भी उनके पीछे—पीछे भीतर गया।

वे लोग बाहर आए तो चंदर ने करन से पूछा, ष्क्या कहते हैं डॉक्टर?

कुछ खास नहीं। एक ही बात दोहराते हैं कीप होप।

ठीक ही तो कहते हैं भाई।ष् ब्रिज भैया उसका कंधा थपथपाते हुए बोले, उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है दोस्त।

करन भैया।ष् मीरा बोली, ष्अब मैं आ गई हूँ न, अब रात मैं ही यहाँ रहूँगी। तुम घर जाकर थोड़ा आराम कर लो। फिर पूछा, ष्घर में कोई है?

हाँ वो कंचन के भैया भाभी आए हुए हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ से गए हैं। थोड़ा रुक कर बोला, ऐसा है भाभी, मेरा कंचन के पास रहना हर हालत में जरूरी है, बेटर है आप लोग, क्यों कि सफर से थक कर आए हो आप ब्रिज भैया के साथ चले जाओ वहाँ आप लोगों की बेहतर देखभाल हो सकेगी।

मीरा रुकने के लिए इसरार करती रही लेकिन करन नहीं माना। इस बीच ब्रिज भैया उनका सूटकेस अपने टोयोटा की डिकी में फिट कर आए थे। आधे घंटे तक टोयोटा की सुखद आरामदेह यात्रा के बाद वे लोग ब्रिज भैया के घर पहुँचे। ब्रिज भैया की पत्नी यानी मीरा की भाभी भी डाक्टर हैं। डाक्टर सुधा। खूब तगड़ी रोबीली और बेहद खुश—दिल महिला। पहले उसने अपनी ननद रानी को बाहों में भींचा, फिर उसी अंदाज में चंदर की ओर बढ़ते हुए बोली, हाय स्वीट हार्ट। बड़े दुबले नजर आ रहे हो।

चंदर अक्सर सुधा के इस संबोधन से झेंप जाता है हालाँकि इस ममतामय आलिंगन से भीतर वह खिल भी उठता है।

मीरा ने पूछा, और भाभी, आपकी प्रेक्टिस कैसी चल रही है?

अरे पूछो नहीं, ब्रिज भैया बोले, आजकल तो इसने मुझे भी पछाड़ रखा है।

फिर घर गृहस्थी और बाल—बच्चों के हालचाल पूछने जैसी औपचारिकताओं का लंबा सिलसिला चलता रहा। सुधा ने कहा, ष्अच्छा अब आप लोग फ्रेश हो लो, मैं चाय लेकर आती हूँ।

अरे यह कोई चाय का टाइम है? ब्रिज ने टोका।

क्यों नहीं! सफर की थकान तो चाय से ही मिटती है।

वो सफर की थकान वाली चाय तो हो चुकी, क्यों चंदर।

क्या, कहना क्या चाहते हो? सुधा ने पूछा।

यही कि तुम्हारे प्यारे नंदोई जी आए हैं, क्या कहते हैं — यहाँ, हाँ, कुँवर जी। तो कुँवर जी बरसों बाद आए हैं इनकी थकावट क्या चाय से ही दूर की जाएगी?

ब्रिज ने अंदर से एक शीवाज रीगल की बोतल निकाली और आवाज लगाई, ष्शेरू उस्ताद जरा लेकर आना।

यह क्या कर रहे हो भैया?ष् मीरा ने टोका।

क्यों व्हॉट्‌स रांग?

अरे कैसे मौके पर आए हैं और कैसी बात कर रहे हैं आप?

अरे शुभ—शुभ बोलो मेरी बहन। जब तक खैरियत है ऊपर वाले का नाम लेकर मस्त रहो, हमारा पेशा तो हमें सिखाता है कि पल—पल जियो, अगर हम ऐसा न सोचें डियर तो हम डाक्टर लोग जिंदा ही नहीं रह सकते।

लेकिन यह अच्छी बात नहीं है, भैया।

कम—अॉन। इस बार सुधा बोली, ष्क्यों परेशान हो डालिर्ंग, लेट दैम इन्ज्वाय।ष् फिर उसने चंदर से पूछा, ष्क्यों स्वीट हार्ट तुम क्या कहते हो?

मेरे खयाल से, झिझकते हुए चंदर बोला, ठीक नहीं रहेगा इस मौके पर।

बड़े सेंटीमेंटल हो यार तुम दोनों।ष् ब्रिज बोला, अरे जो है सो है, जो होगा सो होगा अभी से मातम क्यों मना रहे हो। अरे, ऊपर वाले से शुभ—शुभ माँगो। शेरू ट्रे में दो गिलास, सोडे, बर्फ का पेल सब सजा कर ले आया था। ब्रिज ने दो बड़े—बड़े जाम तैयार किए। एक चंदर को पकड़ाते हुए बोला, ष्लो पार्टनर।

चंदर झिझका। सुधा उसे गिलास उठाकर पकड़ाती हुई बोली, ष्कमअॉन स्वीट हार्ट, चीयर्स।

चंदर ने गिलास पकड़ लिया। सुधा ने शेरू को आवाज लगाई, ष्बेटा वो कबाब फ्रीजर में रखे हैं उन्हें तैयार करके ले आओ।

अरे क्या कर रही हैं भाभी।ष् मीरा ने टोका।

हमारे स्वीट हार्ट की पसंद है यह हम जानते हैं। फिर उसने शेरू को आवाज लगाई, ष्बेटा शेरू सिंह जरा हमारे लिए दो ज्यूस लेते आना।

कौन से? शेरू ने आकर पूछा।

क्या लोगी मीरा — मेंगो या पाईन एपल?

कुछ भी चलेगा भाभी लेकिन हो सके तो चाय बनवा दो मैं तो चाय ही पसंद करूँगी।

ठीक है बेटा फिर चाय ही बना लाओ।

शेरू चाय बनाने चला गया।

शीवाज रीगल का पहला दौर चल रहा था। चंदर ने कहा, भैया, यह चीज सचमुच लाजवाब है, कब लाए?

अभी पिछले महीने एक सेमीनार अटेंड करके लौट रहा था, दो रख लाया। चाय की ट्रे के साथ गर्मागर्म कबाब पहुँच गए थे। कबाब चंदर की पसंद थी इसलिए पहले ही मँगवाकर फ्रीजर में रख लिए गए थे।

तभी फोन की घंटी बजी। सुधा उठकर भीतर गई। फिर वह देर तक नहीं लौटी। अक्सर मरीजों के फोन आते रहते हैं इसलिए ब्रिज पूछता ही नहीं कि किसका फोन है।

क्या सोच रहे हो चंदर। उसे खामोश देखकर ब्रिज ने पूछा।

भैया मुझे बार—बार कंचन का ध्यान आता है तो दिल बैठने लगता है।

देखो डियर। ब्रिज ने उसके घुटने पर हाथ थपथपाते हुए नसीहत दी। ष्ड्रिंक करते हुए चिंताओं को बाहर छोड़ देना चाहिए। ड्रिंक एंड वरीज डोंट गो वैल विद इच अदर।

चंदर कुछ नहीं बोला। शीवाज रीगल का लुत्फ लेने की कोशिश करता रहा।

कबाब कैसे लगे? ब्रिज ने पूछा।

वहीं के हैं न? चंदर ने पूछा। उसकी एक खास पसंद की दूकान थी जहाँ से हमेशा कबाब मँगवाए जाते थे।

तुम्हारी याददाश्त का जवाब नहीं। कहते हुए ब्रिज ने अपना गिलास खाली कर दिया।

दूसरा दौर शुरू हुआ तो फिर टेलीफोन की घंटी बजी। इस बार सुधा जब फोन पर बात कर रही थी तो उसकी आवाज की घबराहट उन लोगों तक आ पहुँची।

क्या बात— खैरियत? ब्रिज ने पूछा।

खैरियत ही तो नहीं। कहते—कहते वह सामने आ गई, बोली, ष्करन का फोन था।

समथिंग सीरियस?

एवरीथिंग इज ओवर।

सुनकर चंदर सन्न रह गया।

चलो चला जाए। मीरा बोली।

नहीं। सुधा ने कहा, करन कह रहा था कि वह घर जाकर नींद की गोली खाकर सोने वाला है इसलिए कोई आए नहीं।

बॉडी का क्या बताया, कब मिलेगी। ब्रिज ने बड़े सहज ढंग से पूछा।

कल दस बजे, उन्होंने कहा है दस बजे हम लोग हास्पिटल पहुँच जाएँ। चंदर सोच रहा था अब कंचन की बात नहीं हो रही है अब बॉडी की बात हो रही है। उसका गला सूख रहा था। हाथ में कबाब का टुकड़ा था। उसे अपनी इस स्थिति पर अजीब शमिर्ंदगी महसूस हो रही थी। उसके भाई के साथ इतना बड़ा हादसा हुआ है और वह इस मौके पर आकर अपने ससुराल में बैठा यह क्या कर रहा है।

लेकिन वह करे भी क्या। अव्वल तो इस समय ये लोग उसे जाने नहीं देंगे और अगर जाए भी तो इस हालत में कैसे उसके सामने जाए। वैसे भी करन तो तब तक नींद की गोली खाकर सो भी चुका होगा। बेचारा करन! चंदर ने एक ठंडी साँस ली।

कहाँ खो गए कुँवर जी?

कुछ नहीं भैया, सोच रहा था अब क्या करना होगा।

अरे हमारे रहते तुम्हें कुछ फिक्र करने की जरूरत नहीं। सब कुछ हो जाएगा। वैसे करन का साला काफी रिसोर्सफुल है। सँभाल लेगा।

लेकिन चंदर वैसे ही गुमसुम हुआ रहा।

उसके सामने दूसरा ड्रिंक ज्यों का त्यों रखा था। सोडे के छोटे—छोटे बुलबुले आहिस्ते—आहिस्ते निकल रहे थे।

गिलास की ओर इशारा करते ब्रिज ने कहा, ष्कुँवर जी इस बेचारे ने क्या कसूर किया है। पता नहीं दुनिया के किस—किस कोने से घूमता आपकी खिदमत में हाजिर हुआ है।

मन नहीं हो रहा।

देखो डियर! इस नायाब चीज के लिए ऐसे नाक नहीं चढ़ाते। यह तो वह चीज है जो खुशी है तो खुशी चमका दे और गमी हो तो गमी को भुला दे।

पता नहीं क्यों, मन नहीं मानता।

क्या जनानियों वाली बात करते हो यार। तुम्हारे न पीने से कंचन वापस लौट आएगी या करन का कोई भला हो जाएगा?

ले लो स्वीट हार्ट।ष् सुधा ने सलाह दी, ष्इट विल हेल्प यू। आखिर चंदर ने गिलास पकड़ ही लिया। चंदर के मन में इस समय जितनी भी चिंताएँ थी उनमें सबसे बड़ी चिंता थी उसकी पैरिस के लिए बुक हुई उड़ान की। जिसमें अब बारह दिन शेष रह गए थे। वह करन का बड़ा भाई है। घर का मुखिया। उसका तेरहवीं पर होना बहुत जरूरी है वर्ना लोग—बाग क्या कहेंगे। एक तरफ पैरिस जाने के वषोर्ं से संजोये सपने दूसरी तरफ तेरहवीं में शामिल होने की मजबूरी। कुदरत भी कैसे—कैसे इम्तहान लेती है।

ब्रिज भैया?ष् चंदर से नहीं रहा गया तो उसने पूछ ही लिया, ये सारे रीचुअल्स — आई मीन यह रस्म पगड़ी वगड़ी कब तक चलेंगे।

ब्रिज भैया ने कंधे उचकाए। बोले, नो एक्सपीरियेंस। क्यों? एनी प्राब्लम? छुट्टी के हिसाब से पूछ रहे हो क्या?

नहीं— वैसे ही।

सुधा बोली, ष्मेरे खयाल से तेरहवीं तो होती ही है। इसका मतलब है तेरह दिन।ष् चंदर का चेहरा लटक गया। उसकी हालत देखकर सुधा ने कहा, ष्कोई बात नहीं, आप चौथे के बाद चले जाना फिर तेरहवीं पर आ जाना। मीरा को छोड़ जाओ।

मैं बताती हूँ भाभी... मीरा ने बात खोली, ष्असल चिंता यह है कि इनकी फ्लाइट बुक्ड है पैरिस की। किसी कौन्फ्रेंस में जा रहे हैं। इसलिए इन्हें तेरह दिन रुकना मुश्किल हो रहा है।

ओ इतनी सी बात। ब्रिज ने उसका कंधा दबाते हुए, ष्डोंट वरी, यह सब हम पर छोड़ दो और यह बताओ कि तुम कब फ्री होना चाहते हो।

चंदर ने हिसाब लगाकर बताया, ष्इस आने वाले से अगले संडे तक। ब्रिज ने उँगलियों पर गिनकर बताया, ष्अरे यह तो दो—एक दिन का ही फर्क पड़ रहा है, डोंट वरी। हम पंडित जी को पटा लेंगे।

ऐसा कैसे हो सकता है? चंदर इस आश्वासन के बावजूद रात भर इसी चिंता में झूलता रहा कि क्या होगा। तेरहवीं तो तेरहवें दिन ही होगी। ब्रिज भैया का आश्वासन तो शीवाज रीगल की झोंक में दिया आश्वासन है। अगले दिन सुबह दस बजे वे लोग अस्पताल पहुँचे। करन और उसके कई साथी, संबंधी वहाँ पहले से मौजूद थे। कंचन के पत्रकार साथियों का खासा जमघट था। मॉर्चरी से लाश बरामद करने के लिए पुलिस की खाना पूरी चल रही थी क्यों कि यह केस एक्सीडेंट का था।

इसके बाद अंतिम यात्रा की तैयारी हुई। महानगर में मॉर्चरी से ही उसकी व्यवस्था हो जाती है। श्मशान जाने से पहले पंडित जी ने अपनी जरूरी रस्में पूरी की। इसके बाद चलने की तैयारी हुई तो चंदर और मीरा करन के साथ शव वाहन में बैठे। बाकी लोग अपनी गाडियों, स्कूटरों पर निकल पड़े। पंडित जी को ब्रिज अपनी टोयोटा में बिठाकर शमशान रवाना हुआ।

पंडित जी बड़े गंभीर और गुस्सैल किस्म के आदमी थे। उनको देखने के बाद चंदर के मन में रही सही आस भी टूट गई थी। क्या ब्रिज भैया इन पंडित जी से इस तरह की बात छेड़ सकेंगे, और अगर छेड़ी भी तो क्या ये पंडित जी मान जाएँगे? कभी नहीं।

दाह संस्कार की रस्म पूरी होने के बाद पंडित जी ने घोषणा की कि फूल चुनने की रस्म परसों होगी और पगड़ी की रस्म तेरह तारीख यानि आने वाले रविवार से अगले रविवार होगी।

एक क्षण में चंदर की चिंताओं का पहाड़ पिघल गया और तरल होकर उसकी आँखों से बह निकला। उसे आँखें पोंछते देखा तो करन ने उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, भैया दिल छोटा न करो। अपने को सँभालो।

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