BAHADUR TIKDAM BELA kantilal jain द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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BAHADUR TIKDAM BELA

बहादुर तिकडम बेला

भाग १

भारत मे एक दिन एक खुबसूरत 'तिकडम बेला' नामक नौजवान अपने अमेरीका की सारी सुख सुविधा छोड कछ के रन में कुछ सोचता हुवा बैठा था। सोचते सोचते वह एकदम खुष हो जाता है, मैंने तो सारी दुनिया की सैर कर ली है, अब मुझे सिर्फ भारत की सैर करना बाकि है, इस बहाने भारत की सैर भी हो जायगी और हमारे गाँव की जन्मभूमि भी हमें देखने मिलेगी, सोचते सोचते उसकी नज़र एक रुम की और जती है।

उस रुम के अंदर रखी हुई सम्पति सोना मोहरों को देखकर वह हँसता है। हा हा हा मेरे पास इतनी दोलत है, के मै इसे दोनों हाथो से बाटू तो भी कभी खत्म नहीं होगी।

इसे दान भी देदु तो यह सम्पति इन सोना मोहरों के रूप मे खत्म नहीं होगी। इसे दान में देदु तो यह सम्पति इन सोना मोहरो के रूप में बढती जाएगी हा हा हा वह हँसता है।

दान दान अं अं में इसे दान मै क्यों दू ,क्यों दू नहीं नहीं मै इसे और अधिक उद्योगोमे क्यों ना लगाऊ बढती ही जायगी हा हा हा हा अरे अरे अरे इतनी सारी सम्पति मै क्या करूँगा इस सम्पति को इतनी सारी सोना मोहरों को कंहा रखूँगा मेरे इतने कारखाने इतने उद्योग है की मुझे इसका हिसाब तक रखना नही आता सभी मेरे मुनीम और दीवान ही देखते है। कौन है मेरा अपना जो इस सम्पति का उपयोग ले सके क्या करू मै इस सम्पति का। हा हा हा फिर कुछ देर सोचकर हाँ हाँ क्यों न मै भारत की सैर करू जरुर जरुर मै भारत की सैर करूँगा लो अभी मै भारत की सैर करने निकल पड़ता हूँ । ऐसा सोचकर अपनी एक थैली में सोना मोहरे लेकर निकल पड़ता है।

"तिकडम बेला" एक जहाज में जाता है,उसको सभी जानते है इसलिए उसको कोई टिकट की पूछ ताछ नहीं करता उल्टा उसे सभी सेलूट करते है। वह एक कोने में बैठ जाता है।

अमेरिका से जहाज भारत के किनारे पर आ जाता है। वह किनारा कछ मांडवी बन्दर होता है। अब तिकडम बेला अपना झोला लटकाकर चलने लगता है।

तभी एक टिकट चेकर तिकड़म बेला से टिकट की मांग करते है। तिकड़म बेला चकित होकर अपनी जेबे टटोलने लगता है।

अरे अरे अरे कंहा गया टिकट लगता है कंही खो गया है। अरे हाँ याद आया टिकट तो मैंने निकला ही नहीं। दूसरा चेकर तुम बिना टिकट सफर करता है, मालूम नही पहले टिकट लेना चहिये। जहाज मे बिना टिकट सफर करना कितनी सजा है। चलो हमारे साथ चलो।

तिकड़म बेला : भाई साहब सुनो जरा मै कोई गुनहगार नहीं।

टिकट चेकर- तुम कहता है तुम गुनहगार नहीं मालूम है तुमने कितना बड़ा गुनाह किया है?

चलो हमारे साथ दोनों हाथ पकड़कर ले जाते है। तिकड़म बेला: अरे अरेमेरी बात सुनो मै तुमको तुम्हारा पैसा देता हूँ मैंने सारी दुनिया की सफर की है छोड़ो छोड़ो मुझे, मै तुम्हारे साथ चलता हूँ। सभी मिलकर ठाणे मे आते है।

टिकट चेकर : हाँ भई तुम्हारा नाम क्या है ?

तिकडम बेला : मेरा नाम तिकडम बेला है।

टिकट चेकर: क्यों खाली पिली मजाक करता है।

दूसरा चेकर: ए सच सच नाम बताऔ , तुम्हारा विजा बताऔ एसा चोरी छुपे बिना टिकट बहोत बड़ा गुनाह है, तुम बहार देश का है, हो सकता है कि तुम जासूस हो।

तिकडम बेला: मै सच कहता हूँ मेरा नाम तिकड़म बेला है, और मै अमेरिका का रहने वाला हूँ। भारतीय हूँ , उद्योगपति हूँ, भारत मेरी जन्म भूमि है और मै उसको देखने आया हूँ।

टिकट चेकर: अच्छा ये बात है, तुमको दुनिया के कानून मालूम नहीं अगर किसी दुसरे देश फिरना या घूमना है तो वीजा और पासपोर्ट की आवश्यकता होती है।

तिकडम बेला:मुझे सब मालूम है, मगर मै गडबड मे निकला हूँ।

टिकट चेकर: बड़े अमीरजादे लगते हो, बहोत गडबड है क्या, ठहरो अभी पुलिस को बुलाते है। दूसरा चेकर: जाओ रामा तुम पुलिस को बुलाओ। रामा पुलिस को बुलाने चले जाता है। तभी तिकडम बेला अपने झोले में से कूछ मोहरे टेबल पर रख देता है। दोनों स्टेशन मास्टर मोहोरों को देखकर अचरज में पड जाते है मानों सोना मोहरें पहली बार देख रहे है। इसी मौके का फायदा उठाकर तिकडम बेला पसार हो जाता है। तिकडम बेला गायब।

टिकट चेकर परेशान हो जाते है। फिर जल्दी से सोना मोहरों को समेटकर छुपा देते है।

रामू पुलिस को लेकर आता है तभी तिकड़म बेला को बहार जाता हुवा देख कर मन मन में सोचने लगता है की मास्टरओने छोड़ दिया है और कहने लगता है की झंझट से बचे।

भाग पहला समाप्त।


भाग 2 रा

तिकडम बेला की भजिये वाले से मुलाकात

तिकडम बेला बाजार घूमता हुवा एक भजिये वाले के होटल पर आता है, वंहा कुछ आदमी भजिये खा रहे है, वंहा पर इक भजिये वाला गरम गरम भजिया तल रहा है,आहा बहोत दिन हुए गर्म गर्म भजिये खाने को मिलेंगे बचपन में मेरी माँ मुझे गर्म गर्म भजिये खिलाया करती थी। वारे भारत तेरे भजिये से मेरी माँ की याद तरो ताज़ा हो गई। धं न के अंबार ने मुझे सभी भुला दिया। होटल में भजे खाने वाले लोग तरे तरे की बातें करने लगते है।

तिकडम बेला एक होटल के अन्दर जता है। वंहा पर कुछ आदमी एक दुसरे से कुछ बातें कर रहें है।एक:कह ता है, लागे छे आ कोई मानस आपना देश माँ नवो लागे छे। दूसरा: आना पेराव उपरथी आतो कोई धनवान मानस लागे छे। तीसरा: ना ना आ तो कोई जासूस लागे छे आपना कच्छ माँ नवा मानसों नु तांतो लाग्यो छे। (गुजराती भाषा)

तभी तिकडम बेला आकर एक बेंच पे बैठ जाता है। तिकडम बेला: अरे भाई सौ ग्राम भजिये देना बहोत दिन हुए खाए हुए जरा जरा गरम गरम देना। भजिये वाला: हाँ हाँ भाई लो गरम गरम भजिये।

तिकडम बेला भजिये खाता है। वाह वाह बड़ा मजा आया बिलकुल वही स्वाद जैसा मेरी माँ बनाया करती थी। तिकडम बेला को बड़ी जोर की भूक लगी थी सो भजिये वाला भजिये बनता गया ओर तिकडम बेला भजिये खाता गया। पेट भर भजिये खाने के बाद उसने भजिये वाले कहा हाँ बोलो भाई तुम्हारा कितना रूपया हुवा? तभी एक आदमी कहता है यह कोई राक्षस है या आदमी पंधरा छटाक भजिया खा गया।

भाजियेवाला: साहब साठरु बिल हुवा आपका। तिकडम बेला अपने झोले से सोने के मोहरे निकाल कर गिनने लगता है, यह लो तुम्हारे साठ रूपये। भजिये वाला सोने के मोहरे हाथ मे लेकर अचरज में पड जाता है। कभी वह सोने के मोहरो को देखता है तो कभी तिकडम बेला को देखता है।

बाजु में बैठे लोग भी अचरज से देखते है। भजिये वाला होश में आकर कहता है की साहब यह सोने की मोहरे है यह कोई रूपी का कलदार नहीं है जो की आप मेरा इम्तिहान ले रहे है। नहीं नहीं साहब ये आप वापस ले लीजिये, कंही ये सोने की मोहरे मेरे लिए बला न बन जाये। यह लिजिए और मुझे मेरे साठ रु दिजिये। तिकडम बेला: रख भी लो मैंने इसे अपनी मर्झी से दिए है और जो तुमने मुझे भजिये खिलाकर मेरे तन मन को शांत किया है, शांति से भी बढ कर कोई चीज होती है भला??

एक आदमी: माधवजी भाई लई ले नं, ए तने खुशिथी आपे छे।

माधवजी भाई: नहीं नहीं मुझे मेरी मेहनत की कमाई चाहिए मुझे ये सोना मोहरे नहीं चाहिए।

दूसरा आदमी: साव घेलो छे आवति लक्ष्मी ने कोई छोड़े।

माधवजी भाई: ये आपके मोहरे लेलो साहब मुझे मेरे साठ रु. दे दो। माधवजी भाई तिकडम बेला को मोहरे वापस करता है। तिकडम बेला: भाई मेरे पास तो इसके आलावा औ र कोही रु. नहीं है और में भारत में नया आया हूँ, मेरे पास यहाँ का चलन भी नहीं है।

माधवजी भाई: अच्छी बात है, मै तुम्हे अपने पहचान के एक दुकान पर ले चलता हूँ तुम वहां अपनी मोहरे बेचकर रु. ले लो तुम्हारा भी काम हो जायेगा और मेरा भी काम हो जायेगा।

तिकडम बेला: अच्छी बात है जैसा तुम्हे अच्छा लगे। माधवजी भाई : ठहरो मै दुकान बंद करके तुम्हारे साथ चलता हूँ। दुसरे लोग दुकान बंद करने से माधवजी भाई से खफा होकर जाने लगते है। तिकड़म बेला इधर उधर देखकर माधवजी भाई के डिब्बे मे 11 मोहरे डाल देता है।

भजिये वाला और तिकडम बेला दोनों एक ज्वेलर्स की दुकान पर जाते है।

ज्वेलर: आओ आओ माधवजी भाई तमे गना दिवसे देखाना।

माधवजी भाई: सुं करिये भाई भजिया तलवाथी फुरसत मले त्यारे आऊ नं भाई

ज्वेलर: आ तमारे साथे युवान कोण छे।

माधवजी भाई: आ युवान तो भारत माँ नवो छे मने तो भलो मानस लागे छे, ऐयेनी पासे तो सोनानी मोहरो छे मने आ साढ़ रु. ना भजिया माँ देवा लाग्यो पण में एमने अं ईया टेडी लाव्यो।

ज्वेलर: भाई कोई बला की पुडी तो नहीं है न। दोनों को अंदर ले जाता है। तिकड़म बेला कुछ सोना मोहरे ज्वेलर के सामने रख देता है। ज्वेलर सोना मोहरे देख दंग रहता है। वाह वाह पियोर है ये मोहरे। तिकड़म बेला को वह उपरसे निचे तक देखने लगता है।

ज्वेलर:भाई आप कहांसे आये है कंहा के रहने वाले है।

तिकडम बेला: मै अमेरिकासे आया हूँ और भारत मेरी जन्मा भूमि है,मै भारत की सैर करने आया हूँ। अमेरिका में मेरे बड़े बड़े ऊद्योग चलते है। ज्वेलर को भरोसा नहीं आता है फिर कुछ सोचकर अच्छी बात है, तुम्हारे पर भरोसा करता हूँ कहकर मोहरोकों लेकर रुपयों की गड्डी उसको देता है। माधवजी भाई और तिकड़म बेला दोनों खुश होकर बहार आते है।

तिकडम बेला: ये लो तुम्हारे 60 रूपये ।

और कुछ रूपये माधवजी भाई को भेंट देता है पर माधवजी भाई मना करने लगता है। फिर भी तिकडम बेला जबर दस्ती से उसको रूपये देता हैं। और कहता है की तुमने वक्त बरबाद करके मेरा काम किया है।माधवजी भाई: क्या आदमी है एकदम दीवाना रूपया मनो इसके लिए कुछ भी नहीं है,ये एकदिन सारा ₹ और मोहरे गमाकर पस्तायेगा। वह दुकान खोलकर भजिये तलने लगता है तभी एक डब्बे में उसे सोना मोहरे दिखाती है। अचरज पड जाता है, लगता है तिकडम बेला ये मोहरे यंही भूल गया है। वापस आने पर उसे दे दूंगा ऐसा कहकर मोहंरे संभालकर रख देता है। भगवान उसका भला करे ऐसा मन में कहता है।

भाग २ रा समाप्त

  • भाग 3 रा
  • तिकडम बेला खिलौने बेचता हूवा
  • एक दिन बाजार में घूमते घूमते तिकडम बेला एक दुकान के सामने आकर खड़ा हो जाता है, दुकान के बाहर तरह तरह के लटके हूवे खिलौने देखकर कुछ सोचंने लगता है। उसे कुछ याद आता है, वह रंग बेरंगी खिलोने खरीद के एक गाड़ेपर बेचने लगता है , इसी तरह खिलोने बेचता हूवा वह एक गाँव में आता है। तरह तरह के रंगीबेरंगी खिलोने देखकर गली के लड़के उसके पीछे पीछे चलने लगते है। कई लड्कोमे से कुछ लड़के लड़कियोने खिलोने ख़रीदे। खरीदने वाले लड़के लड़कियांआपसमे कुछ बातें करने लगे।
  • तिकडम बेला गलियोमेआवाजे लगाकर कहता है,आओ आओबच्चोतुम्हारे लिए रंग बेरंगीखिलोने लाया हूँ बहोत सस्ते सस्ते दामों पर बेचने आया हूँ, ये अमेरिका का हाथि,जेब्राभारत की सुंदरी,ये फ़्रांसकी रेलगाड़ी, ये शेर आपका दिल बहलाने आया हूँ। लडके लड़कियां सस्ते सस्तेखिलोनेखरीदने लगते है, सस्ते खिलोनलेकर कुछ लड़के लड़कियांआपसमे कुछ बातें करने लगते है। अरे रमेश क्या सस्ते खिलोनेहै,यह शेर बाजार की दुकानों में 50 रूपये से कम नहीं मिलता और यहाँ अपने को 20 रूपये में मिल रहा है। दूसरा: ये झेब्राबाजार में 100 रु से कम नहीं यहाँ मगर 50रु.में है।तीसरा: यह आदमी कहांसे आया है यह इतने सस्ते खिलोने कैसे बेच रहा है। मुझे तो लगता है दाल कुछ काला नजर आता है।

    एकलडकी:ऐसे कोई इतने सस्ते दाम पर खिलोनेसड़क पर बेचता है क्या? चौथा: अगर चोरी का माल हुवा तो? पांचवा: अबतक तो पुलिस पकड़ लेती। छटा:जाने दो हमें क्या कोई उसे पकडेया रहे हमें तो भईखिलोनेसेमतलब सस्ते मिल रहे है बस। हां हां चलो अपने घर। खिलोने बेचता हुवातिकडम बेला एक दरख्त के निचे अपना झोला लिए हुए थक कर आराम करने लगता है। तभी उसे बड़े झाड के पास एक लड़का रोता हुवाबैठा दिखाई देता है। उस लड़के को रोते हुवा देखकर तिकड़म बेला कहता है बेटे तुम क्यों रो रहे हो क्या बात है। तुम्हारे पास खिलोने के लिए पैसे नहीं है क्या? लड़का और जोर से रोने लगता है। तिकडम बेला: लो बेटे तुम्हे इन खिलोने में से जो चाहे वह खिलौना लेलोबिलकुल मुफ्त मै तुमसे इस खिलोने का एक पैसा भी नहीं लूंगा फिर भी लड़का रोने लगता है।

    तिकडम बेला: क्या बात है बेटे मुझे सच बताओ मैतुम्हारी मदत करूंगा,युंरोने से तो काम नहीं बनेगा। लड़का रोते रोते कहता है, मेरी बहन एक महीने से बहोत बीमार है बाबा। हम बहोत गरीब है मेरे सिवा मेरे बहन का कोई नहीं है। मै काम करने जाता हूँ मुझसे काम करा लेते है लोग और काम के पैसे मांगने पर कोई नहीं देता। एखादादे भी देता है तो वह खाने को भी नहीं बस होतें है। मेरे पास तो इलाज के लिए पैसे नही है,अब तक घर का सामान बेचकर इलाज करवाया मगर मेरे बहन अछी नहीं हुई अब मै क्या करूलडकाऔर भी जोर जोर से रोने लगता है।

    तिकडमबेला: बेटा कोई तो तुम्हारा होगा सगा संबधी पास पडोस वाले। माँ बाप बचपन में ही चल बसे, सगे संबधी हमारा सारा रूपया हड़प कर भाग गए अब इस दुनिया में कोई नहीं सिर्फ रहने को एक घर बचा है। पडोस वाले बेचारे हमारे जैसे ही गरीब है।वो आते है दिलासा देकर चले जाते है। कोई कहता है आज ठीक हो जायगी कोई कहता है की वो जल्द ही ठीक हो जायगी। मगर वो अब तक ठीक नहीं हुई।

    तिकडम बेला: तो यह बात है चलो मेरे साथ तुम्हारे घर तुम्हारी बहन को देखते है। मेरे पास एक येसीजड़ी बूटी है जो तुम्हारी बहन खातेही अच्छी हो जायगी। लड़का ख़ुशी से सच बाबा।

    हाँ हाँ बेटे चलो लड़का तिकडम बेला को लेकर अपने घर आता है। लड़का: दीदी दीदी देखो अपने घर कौन आया हैबहोत बड़े अच्छे आदमी है इन के पास एसी दवा है जो तुम खाते ही अच्छी हो जाएगी। दीदी कन्हारते हुवे उठती है: कौन है बेटा मेरा राजा भैया मेरे लिए तुझे क्या क्या करना पड़ता है भैय्या।

    दिनेश: एसान कहो दीदी ये तो मेरा कर्तव्य है, के मुझे मेरी छोटीसी उम्र में मुझे तुम्हारी सेवा करने का मौका मिला है।

    प्रिया:मेरा भाई इतनी सी उम्र में तू कितनी बड़ी बड़ी बाते करने लगा है।

    दिनेश: दीदी ये दुनिया वाले सभी सिखा देते है।

    तिकडमबेला: वाह बड़े होशियार हो बेटे।

    प्रियातिकडम बेला को देखती है, देखते ही रह जाती है इतना आमिर और तरह तरह के अलंकार ओं से युक्त सुन्दर रूपवान नवजवान उसके पलंग के पास बैठा है। उसके चेहरे पर एक ऐसा तेज जैसा कोई किसी जागीर का बहोतबडाराजकुमार हो। वह खुद भी कम रूपवान नहीं थी पर बीमारी की वजह से वह निस्तेज दिख रही थी। तिकडम बेला: बहन जरा तुम्हारा हाथ बताना। प्रिया: तिकडम बेला के बहन कहनेसे जैसा मानो उसे कोई बड़ा सहारा मिल गया हो, मानो उसकी बिमारी भी कम हो गई हो ऐसा महसूस कर अपना हाथ तिकडम बेला को बताती है। तिकडम बेला उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी नब्ज देखता है। और उसे कहता है घबराने की कोई बात नहीं है बहन तुम्हेएक महीने से थोडा अलग क़िस्म का बुखार है जो की तुम्हारे खान पान सही नहीं होने से बहोत कमजोरी आने से उतर नहीं रहा है। इसी वजह से तुम बीमार पडी हो। दुसरी कोई बात नहीं है।मैतुम्हे एक दवा देता हूँ उसे तुम खाने के बाद एकदम अच्छी हो जावोगी। तिकडम बेला अपनी झोली में से दवा की एक बोतल निकलता है और उसको देता है और कहता है तुम इसे अभी से लेना चालू करो और कुछ फल भी देता है। तुम श्याम तक ठीक हो जवोगी। दिनेश अपने बहन को दवा पिलाता है और उसे फल ठीक करके उसे खाने को देता है। प्रिया ख़ुशी से दवा और फल खाती है। दवा खाने के थोड़ी देर बाद उसे अच्छा महसूस होने लगता है। मानो उसे नया जीवन मिल गया हो। उसके चेहरे पर ख़ुशी और आनंद दिखने लगता है। तिकड़म बेला कुछ रूपये दिनेश को देता हैऔर कहता है बाजार जाओ कुछ राशन पानी ले और कुछ सामान ले आओ।

    प्रिया: ना नाना आपने पहलेही हमारी बहोतमदत की है। तिकडम बेला: - ऐसा नहीं कहते बहन भाई को बहन की मदत हर हाल में करनी होती है। तिकडमबेला घर में इधर उधर नज़र घुमाता है। बिमारी के कारण घर में कुछ भी सामान नहीं बचा था । अपने झोले में से कुछ और रुपये निकालकर कहता हे लो भैया दिनेश घर में सारा सामान लाओ ,घर को ऐसा सजा दो की मनोघर का कोना कोना अच्छा लगे ।

    दिनेश- रुपये नहीं लेता , कहता हे बाबूजी आपने दवा दी उसिसे मेरी बहन ठीक हो जाएगी हम दोनों मेहनत करके फिर से घर बसा लेंगे।

    प्रिया –हाँ हाँ भैय्याऐसा ही ठीक हे, आप आए मुझे दवा दी ,मुझे फल खिलाए ये क्या कोई कम हे , इस मेहंगाई के जमाने में भला कोण किसको काम आता हे ,आपने हम पर इतना एहसान किया हे, क्या वे कम बड़ा हे ।

    तिकड़म बेला- इसमें एहसान की कोई बात नही हे , ये रुपये रख लो तुम्हारे काम आएँगे क्योंकि तुम्हेबोहोत बड़े काम करने हे ,लड़के को पढाना हे और बहुत कुछ करना ह ।

    प्रिया- भेय्याइससमेथोडेसे रुपयेलेलो खाने के लिए कुछ लालो बस मेहमान को खा कर जाना होगा ।

    तिकड़म बेला- हाँ हाँ भइय्या हमें तो बड़े जोर की भूकलगी हे । दवा खाने से और कुछ फल खानेसेप्रिया के अंग में कुछ चेतना आने लगति हे। और श्याम तक वोबहोतअच्छी हो जाती हे। काम करने की तरतरीआ जाती हे । श्याम में खाना खा कर तिकड़म बेला जाने को तयार होता हे ।

    तिकड़म बेला:- बहन ये पैसे रखलो तुम्हारे काम आएँगे । प्रिया :- नहीं नहीं रपये तो हम मेहनत कर के कमा लेंगे ,देना ही हे तो इस दावाइका नुस्खा मुझे दे दो ताकि मेरे जैसी कई और जरुरतमंदों को दे सकू ।

    तिकड़म बेला:- क्यों नहीं ,ये नुस्खा मेरी माँ ने मुझे बताया था और मेरे माँ को मेरे दादाजी ने बताया हे ,और में हमेशा सफ़र में इस दवाई की बोतलेरहती हे। क्या पता किस्सी के काम आ जाये ।

    तिकड़म बेला प्रिया को दवाई का नुस्खा बताता हे , प्रिया बोहोतखुश हो जाती हे ।

    तिकड़म बेला नजरे चूका के कुछ रुपये और कुछ सोना मोहरे पलंग के गादी के निचे रख देता हे और प्रिया तथा दिनेशको आशीर्वाद देकर चला जाता हे ।दोंनो ख़ुशी के अश्रु से तिकड़म बेला को देखते रहते है , तिकड़म बेला ओझल हुए तक।

    भाग तिसरा समाप्त


    भाग 4 था

    एक गाँव में से तिकड़म बेला एक अच्छा सा घोडा खरीदता है और आगे के सफ़र के लिए निकल पड़ता है।

    जंगल जंगल पहाड़ दर पहाड़ से घूमता हुवा तिकड़म बेला जाने लगता है, तभी घोडा दौड़ते दौड़ते कीचड़ में फिसल कर दोनों गिर जाते है घोडा हिंच्हू हिंच्हू करकर चिल्लाने लगता है तिकडम बेला जो की एक बाजु में गिरा हुवा है वंहा उसके सामने एक वृक्ष (दरख्त) पर दो चार बंदर बैढ़ कर आम खाराहे थे कोई इधर तो कोई उधर छलांग लगा रहे थे उस बंदरों में से एक की नजर तिकडम बेला की तरफ जाती है तथा वह बंदर कूद कूद कर तिकडम बेला को चिढाने लगता है और कुछ आम तोड़कर वह तिकडम बेला पर फेंकता है जो की तिकडम बेला को लगते है। इस हरकत से तिकडम बेला को गुस्सा आता है। ठहर जा बंदर अभी तुझे मजा चखता हूँ, मेरी मदत करने के बजाये तू मेरा मजाक उडाता है ठीक है। तिकडम बेला उठकर अपने कपडे साफ़ करने लगता है तभी बंदर एक आम तोड़कर तिकडम बेला को फेककर मारता है तिकडम बेला को बहोत गुस्सा आता है पर क्या करे उसका घोडा तथा वह किचड में गिरकर दोनों ख़राब हो गए थे। तभी घोडा उठकर बैठता है, तिकडम बेला अपने घोड़े को लेकर पास ही के तालाब में लेकर जाता है, खुद और घोड़े को नहलाने के बाद अपने कपडे और झोली के भीगे सामान को सुखाने लगता है। और तैयार होने के बाद जाने लगता है तभी वहि बंदर तिकड़म बेला को खी खी खी कर फिर से चिढाने लगता है, तिकडम बेला को उसकी हरकत पर गुस्सा आता है तभी वह अपने घोड़े की पीठपर की रस्सी को गांठ बंदकर बंदर के गल्ले में फेंकता है वह रस्सी बंदर के गल्ले में फंस जाती है और बंदर पकड़ा जाता है।

    तिकडम बेला रस्सी खींचने लगता है कहता है ठहर जा बंदर के बच्चे अब तुझे मजा चखाता हूँ,तभी बंदर जोर जोर से चिल्लाने और उछलने लगता है इस हरकत से रस्सी की गांठ और मजबूत होने लगती है, सभी बंदर झाड के ऊपर जोर जोर से उछलने लगते है अपने साथी की यह हालत देखकर चिल्लाने लगते है। इधर बंदर जोर जोर से इधर से उधर नाचने लगता है और रस्सी निकालने की बहोत कोशिश करता है पर गांठ पक्की बैठ जाती है, बंदर चिल्लाने लगता है।

    घोडा भी नाचने लगता है,तिकडम बेला: तुम्हे येसिही सजा मिलनी चाहिए, मस्करी करते हो, आम फेंककर मारते हो, मारों मारों और मारो। तिकडम बेला अपना झोला बगल में लेकर रस्सी को घोड़े के पीठपर बांधकर और बैठकर घोडा दौड़ाने लगता है बंदर भी घोड़े के पिछे भागने लगता है और जोर जोर से चिल्लाने लगता है, बंदर दुसरे साथी भी एक झाड पर से दुसरे झाड पर भागते हुवे बंदर के पीछे भागने लगते है।

    घोड़े की पिछे भागते भागते बंदर का चिल्लाना बंद हो जाता है तभी तिकडम बेला को लगता है क्या बात है कंही बन्दर रस्सी तोड़कर भाग तो नहीं गया इसलिए वह पीछे मुड़कर देखता है तो उसे बंदर बेहोश सी हालत में बंधा हुवा है और जोर जोर से उसे मार लग रहा है तभी तिकडम बेला घोड़े को एक झाड के निचे रोक लेता है तथा बंदर की हालत देखकर वह सर पर हात लगाकर बैठ जाता है, अरे मैंने ये क्या किया बिचारे बंदर की मैंने जान लेली हे भगवान अब मै क्या करू यह पाप में कंहा फेड़ून्गा मुझे सुझाई नहीं देता तभी बंदर फिरसे तडपने लगता है। तिकडम बेला खुश होकर कहता है, हे भगवान तुमने मेरी सुनली तिकडम बेला झट से उठकर बंदर के गल्ले की रस्सी खोलता है, बंदर को कुछ राहत महसूस होती है।

    तिकडम बेला: हे वानर राज मुझे माफ़ कर दो तुम्हारी जरासी गलती के लिए मैंने तुम्हे इतनी बड़ी सजा दी, गलती भी क्या तुमने मुझे खाने के लिए आम फेकें थे मैं ही पापी समझ न सका और गुस्से में आकर मैंने तुम्हे इतनी बड़ी सजा दी की तुम्हारी जान पे बन आयी तभी बंदर का साथी जोर से भागता हुवा नजदीक के एक नदी में से एक झाड के सुके छाल में पानी भर कर लाता है। तिकडम बेला झटसे पानी लेकर बंदर को पिलाता है और उसके मुंह पर पानी छिडकता है तथा भगवान से माफ़ी मांगकर हाथ जोड़कर कहता है हे प्रभु मेरे गुनाह माफ़ कर कर इस बंदर की जान बक्श दो मै अब किसी जानवर को नहीं सताऊंगा।

    पानी पिने से और मुंहपर छिडकने से बंदर के जान में जान वापस आने लगती है। सभी बंदर खुश होकर नाचने लगे घोडा भी खुश होकर हिनहिनाने लगा तिकडम बेला भी भगवान् के एहसान मानने लगा। थोड़ी देर के बाद बंदर धीरे धीरे उठने लगा और फिर उठकर बैठ गया। उसको उठकर बैठा देखकर तिकडम बेला के आँखों में ख़ुशी के आंसू आने लगे।

    बंदर के पूरी तरह अच्छा होने के बाद तिकडम बेला हाथ जोड़कर बंदर के आगे खड़ा हो गया मानो उसके माफ़ करने की विनंती कर रहा हो बंदर भी खुश होकर खी खी खी करता हुवा अपने साथी बंदर के गले मिलता है। सभी बंदर खुश होकर एक से दुसरे से तीसरे झाड के टहनियों पर उछल कूद करने लगते है। तिकडम बेला भी खुश हो कर बंदर को ओझल हुए तक देखता रहता है तथा ख़ुशी से वह और उसका घोडा दोनों मिलकर भारत की अगली सफ़र तय करने के लिए निकल पड़ते है।

    भाग चौथा समाप्त


    भाग ५ वां

    एक महकाय पुरुष नदी में नहा रहा था और नहाते नहाते मानो कुछ खोज रहा था जैसे कुछ उसके हाथ में खाने के लिए कुछ आ गया हो, जैसे हीवह कुछ हात में आते ही सीधा अपने मुह के पास खाने को ले जाता ,तभी गुस्से से फ़ेंक देता ,खोजते खोजते बड़ी मुश्किल से उसके हाथ में से मछली फिसलकर गिर पड़ी और वह गुस्से से हाथ पाँव पछाड़ता हे ।

    तभी वहा जरा देर के बाद उसे खाने को कुछ न मिलने की वजह से वह गुस्से से पाँव पछाड़ता हुआ पानी के बहार निकलता है,क्यूँ की उस्सेबोहोतजोरो की भूक लगी हुई थी ,इस्सिलियेवो जोर जोर से भागता हुआ इधर उधर खाने के लिए कुछ धुंडने लगता हे ,धुडंते हुए वोपास ही के एक जंगल में आता हे पेड़ों के पास आता है ,ख़ाली ही पेड़ों को हिलाता हे , पेड़ों से कुछ सूखे हुए फल गिरते है, वह उन फलों को खाने जाता हे , पर खा नहि सकता । झाड के पत्ते खाने जाता है , कडवे लगते ही फ़ेंक देता हे,उसे बड़ा ही गुस्सा आता है , वह जोर जोर से चिल्लाने लगता हे , और भूक से मानो पागल हो गया इधर उधर से ऊपर पेड़ों को उखाड़ के फेंकने लगता है ,पंचिओंके घर पेड गिरने से गिर जाते हे । तरह तरह के पंछी पेडपे आराम करने बैठे हुए थे वो पंछी पेड गिरने से घबराहट से जोर जोर से तरह तरह की आवाजे निकालते है,आकाश में उड़कर इधर से उधर उड़ने लगते है। इस पेड़ से उस पेड़ अपने घोसलें और अपने बच्चे को ढूंढ़ रहे थे। सभी पंछी किल्कीलाहटकर रहे थे और उस महाकाय पुरुष के ऊपर घूम रहे थे मानो पंछी रो कर उसे श्राप दे रहे हो।

    वह महाकाय पुरुष पंछियों की किलकिलाहाट के मारे पागल सा होगया था। पंछीयोकेकिलबिलानेसे अपने दोनों हाथ कान पर रखकर ऊपर देखने लगता है, तभी सूरज की किरने उसकी आंखोपरचमकती है मानो उसे चिडा रही हो। वह आखों को अपने हाथो से ढकने के लिए जैसे ही कानपर से हाथ हटा ता है वैसे ही पंछीयोंकि जोर जोर केकिलबिलाहट से तंग आकर वह इधर से उधर भागने लगता है, पंछी भी उसके पीछे किलबिलाहटकर चलने लगते है, मानोंउसे जंगल के बाहर ही निकालकर वह साँस लेंगे। दौड़ते दौड़ते वह भूखा प्यासा जंगल के बाहर एक कुटिया के बाहर आकर पास ही के एक झाड के पास बैठ जाता है और जोर जोर से हांफने लगता है थोड़ी देर विश्राम करने के बाद उसे महसूस TTहोता है की वह मौत के मुंह में बाहर आया हो।

    उसे बड़े जोर की भूक और प्यास लगी थी पर पंछीयोंकेपीछे लगने की वजहसे वह भूक प्यास सब भूल गया था। कुटिया को देखतेही उसकी भूकफिरसेजागृतहो गयी और वह कुटिया को तहस नहस कर उसमेरखिहुयी सभी खाने की सामग्री खा जाता है,रंजन से पानी पि जाता है तथा एक जगह दही की हांड़ी रखि थी वह भी खा जाता है,जब उसकी क्षुधा शांत हो जाती है तो वो पास ही के झाड़ के पास बैठ जाता है ,उसे उस हालत में नींद लग जाती है तभी उसके आंगपे दही पीते पीते गिर गयी थी उसीकेसुगंद से उसके सारे अंग पर चीटियाँ ही चीटियाँरेंगने लगती है। उसको डसने लगाती है , वह महाकाय पुरुष होने की वजह से उसे कुछ मालूम नहीं होता , मगर जरा देर के बाद असंख्य चीटियाँ उसके पुरेशारीर पर हो जाती हैं ,उसके कान ,नाक ,आँखों में चली जाती हैं ,थोड़ी देर कइ बाद उसे चिटीओं की डंख की वजह से होश आता है ,वह आँखे खोलता है, तब उसे दर्द महसूस होने लगता है ,दर्द होते ही वोझुंझुला उठता है और अपने अंग पर चीटियाँ देख कर कहता है क्या मुसीबत है,आज सबेरे से मुझे बोहोत तकलीफ हो रही है,पहले तो भूक फिर पंछी और अब ये चीटियाँ । भगवान ये क्या मुसीबत है ,या तेरी कोई सत्व परीक्षा है।

    तभी वो खड़ा होता है चीटियों की काटने की वजह से अब उसे बहुत दर्द महसूस होता है और वो पागलों की तरहफिरसे इधर उधर भागने लगता है,जरा देर भागने की वजह से उसके आंगपर की चीटियाँ इधर उधर भागकर निचे गिरने लगती है पास ही के झाड़ के पत्ते से वह अपने आंग को घिसने लगता है, पर तभी झाड पर लगा मधुमक्खियों का एक झुण्डझाड के हिलने की वजह से उड़कर उस महकाय पुरुष को जोर जोर से डंसने लगती है ,वह और पगालसा हो कर इधर उधर भागने लगता है ,भागते भागते नदी कइ किनारे पोहोच कर बेहोश हो जाता है।

    तभी नदी मैं तिकड़म बेला नहा था ,महकाय पुरुष की यह हालत औत उसे गिरता हुआ देख कर वो उसके पास पहुंचता है ।

    उस महाकाय पुरुष की हालत देख कर उसे उसकी दया आती है ,उसके शारीर पर मधुमखियोंके की डंख के उमड़े हुवे निशान देखकर वह कुछ विचार करने लगता है।

    आहाहा इतना बड़ा महकाय पुरुष और ऐसे हालत में ।

    भागते भागते तिकड़म बेला एक बर्तन में पानी लाता है ,उसके सारे शरीर पर छिड़कता है,फिर कपडे से पौन्चने लगता है ,तथा अपने पास के तेल से उसके शरीर पर मलता है, थोड़ी देर बाद उसे जरा जरा होश आने लगता है।

    आं ऊ कर का वह महकायपुरूष उठ बैठता है तथा अपने पास एक आदमी को पाकर थोड़ी राहत महसूस करता है।

    जरा देर शांत होने के बाद वह कहता है ,कौन हो तुम, इस पापी की इस जंगल में मदतकरने वाले कौन हो तुम?

    तिकडम बेला :तुम जरासी सांस लेलो,हे भाई में तुम्हारे ही जैसा एक इन्सान हूँ पर तुम मुझसे ऊँचे हो बस इतनाही बाकी तुम में और मुझ मे कोई फरक नहीं है ।

    उसकी बाते सुनकर वोमहकाय पुरुष जरा शांत होकर कहता है, है मानव मुझ पापी को तुमने क्यूँबचाया ,मुझे मरने दिया होता ।

    तिकड़म बेला ;-मानव मानव को बचाना ही इन्सान का परम कर्त्तव्य है दुःख के समय इंसान ही इंसान के काम आता है ।

    महकायपुरूष–तिकड़म बेला को –सबेरे से अब तक की घटना सुनाते हुए कहता है, मानो पंछियोका घर तोड़ने का बदला इन चीटियों और मधुमखियों ने लिया हो और तो और मेरे भूक के लिए मैंने एक मानव की कुटिया को ही तहसनहस कर दिया । काश में मर ही जाता ,मुझेक्यूँ बचाया तुमने ?

    तिकड़म बेला –जिंदगी जीने के लिए होती है हे मानव अभी तुम्हेबोहोतजीना है । जाओ अपने घर जाकर विश्राम करो।

    महकायपुरूष:- हाहाहा…पगला सा होकर हसने लगता है,कौनसा घर किसका घर,मेरे भूक के बेजार होकर घरवलों ने मुझे घर से निकाल दिया, मुझे कोई काम नहीं देता ,मेरे शरीर से सभी डरने लगते हैं,इसी लिए में भाग कर जंगल में चला आया ,मेने बेचारे पंछियो को गुस्से के मारे उनका घर तबाह कर दिया ,मुझे जीने का कोई अधिकार नहीं है, वह पागलों की तरह हसता हुआ भागने लगता है ।

    तिकड़म बेला भी उसको भागता हुआ देखता रह जाता है। बेचारामहकायपुरूष उसने मुझे उसकी सेवा करने का मौका भी नहीं दिया।

    काश में उसकी कुछ मदत कर सकता . बस अब भगवान से यही प्राथना कर सकता हूँ की भगवान अब तुम ही उसकी मदत करो ,ऐसा कहकर वो अगली सफ़र के लिए निकल पड़ता है।

    भाग 5 वां समाप्त