फ़िनलैंडी नाइलन के मोज़े Dr Musafir Baitha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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फ़िनलैंडी नाइलन के मोज़े

रूसी कहानी

फिनलैंड-निर्मित नायलन के मोज़े

(कथाकार : सर्जेई दव्लातव)

[अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद : डॉ. मुसाफ़िर बैठा]

अठारह वर्ष पूर्व की बात है, तब मैं लेनिनग्राद विश्वविद्यालय में पढ़ता था. विश्वविद्यालय शहर के पुराने हिस्से में अवस्थित था. जल एवं प्रस्तर की सम्मिलित उपस्थिति वहाँ की मोहक आबोहवा को और खास बनाती थी. ऐसे वातावरण में जबकि आलसी होना भी किसी के लिए कठिन था, मैं आलस्य कर लेता था.

चूंकि शुद्ध विज्ञान जैसी चीज़ का अस्तित्व है, अतः अशुद्ध अथवा अनिश्चित विज्ञान का अस्तित्व भी होना चाहिए. मुझे लगता है कि अशुद्ध विज्ञानों में से सबसे पहला भाषाविज्ञान है. अतः मैं भाषाविज्ञान विभाग का छात्र बन गया था.

दाखिले के कोई एक सप्ताह के बाद वहाँ आयातित जूते पहनने वाली एक पतली सुडौल लड़की को मुझ पर प्यार आ गया. उसका नाम अस्या था. आस्या ने मुझे अपने मित्रों से परिचित करवाया. उसके ये सभी इंजीनियर, पत्रकार, छायाकार दोस्त उम्र में हम दोनों से बड़े थे. उसका एक दोस्त भण्डार प्रबंधक था. ये सभी अच्छी पोशाक पहना करते थे. इन्हें रेस्तरां में खाना - पीना एवं भ्रमण पर जाना पसंद था. कुछ के पास अपनी कारें थीं.

वे रहस्य, ओज एवं आकर्षक व्यक्तित्व के थे. मैं उनके समूह में शामिल होना चाहता था. बाद में, उनमें से अनेक दूसरे देशों में जा बसे. अब केवल कुछ बुजुर्ग यहूदी लोग ही बचे रह गए थे जिनसे नियमित मिलना-जुलना हो पाता था.

जिस तरह का जीवन हमलोग जी रहे थे वह काफी खर्चीला था. अक्सर मेरे हिस्से का खर्च भी आस्या के दोस्तों को वहन करना पड़ता था. यह बात मुझे शर्मिंदा करती थी. मुझे अब भी याद है कि कैसे आस्या कार की अगली सीट पर बैठी थी और इधर डा. लोगोविंस्की आहिस्ते से मेरी तरफ चार रूबल बढ़ा रहे थे.

आप दुनिया के समस्त लोगों को दो वर्गों में बाँट कर रख सकते हैं : सवाल करने वाले लोग, और जवाब दिया करते लोग. एक वे जो प्रश्न खड़ा करते हैं, तथा दूसरे जो उत्तर देने के क्रम में झुंझला बैठते हैं.

*****************************************************

आस्या के दोस्तों ने उससे कोई सवाल नहीं किया. हाँ, मैंने उसके सामने जरूर कुछ प्रश्न इस तरह रखे थे, “तुम कहाँ थी? भूमिगत मार्ग में तुमने किससे मुलाकात की थी? फ्रेंच परफ्यूम तुम्हें कहाँ मिला था?”

अधिकांश लोग उन समस्याओं को उलझनपूर्ण मानते हैं जिनके हल पाने में उन्हें कठिनाई होती है. और, वे लगातार वैसे प्रश्न करते रहते हैं जिनका कोई ईमानदार जवाब हो ही नहीं सकता.

लंबी कहानी को छोटा करते हुए कहूँ तो मैं उतावला और मूर्ख बन रहा था.

मैंने क़र्ज़ लिए. क़र्ज़ ज्यामितीय गति से बढ़ रहा था. नवंबर आते-आते यह अठारह रूबल तक पहुँच चुका था. उन दिनों यह राशि भी काफी बड़ी थी. मैंने ब्याज कमाने के लिए क़र्ज़ देने वाली दुकानों के बारे सुन रखा था. इसके फंदे में फंसे लोग निर्धनता एवं अवसाद में जीते थे.

जबतक आस्या मेरे पास थी मेरे पास इस ऋण की चिंता फटकती नहीं थी. लेकिन जैसे ही हमने एक दूजे को अलविदा कहा, ऋण की चिंता मुझ पर काले बादलों की तरह मंडराने लगी. मैं अब ऐसे जाग उठा मानो कोई विनाश का क्षण साक्षात् मेरे सामने आने वाला हो. ऐसे में, मुझे तो ड्रेस पहनकर तैयार होने को खुद को समझाने में भी घंटों का वक़्त लगने लगा था. अब मैं गंभीर होकर यहाँ तक विचार करने लगा था कि एक आभूषण की दूकान खोल लूँ. मैं यहाँ तक विश्वास करने लग गया था कि किसी के प्यार में पड़े एक गरीब के समस्त सोच-विचार एक तरह से अपराध हैं!

इस वक़्त तक मेरे शैक्षिक प्रदर्शन में भी लगातार साफ़ गिरावट आने लगी थी. आस्या भी कोई बहुत मेधा साबित करने वाली छात्रा नहीं रही थी. यहाँ तक कि हमारे डीन भी अब हमारे नैतिक आचरण पर चर्चा करने लगे थे. मैंने पाया कि अगर कोई व्यक्ति किसी के प्रेम में पड़ा है एवं साथ ही क़र्ज़ के बोझ से दबा भी है तो लोग - बाग उसके नैतिक आचरण पर चर्चा करने लगते हैं.

संक्षेप में कहूँ तो मेरे साथ सब कुछ भयानक घट रहा था.

एक बार छः रूबल की जुगाड़ में मैं शहर में भटक रहा था. मुझे बंधक पड़ा अपना जाड़े का कोट वापस लेना था. मैं फ्रेड कोलेस्निकोव की तरफ दौड़ पड़ा था. फ्रेड इलिसेयेव स्टोर की कांसे की रेलिंग के सहारे झुककर सिगरेट पी रहा था. मैं जानता था कि वह ब्लैक - मार्केटिंग का धंधा करता है. आस्या ने कभी उससे मेरा परिचय करवाया था. अस्वस्थ-सा दीखता वह तेईस वर्ष का एक छरहरा नवयुवक था.

*********************************************

बातचीत करते समय वह अपने सर के बालों को बल देकर संवारता. तब भी मैंने अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया था. मैं उसके पास गया और बोला, “क्या तुम मुझे कल तक के लिए छः रूबल उधार दोगे?” मैं लोगों से उधार मांगते हुए कुछ महत्वाकांक्षी दिखने की कोशिश करता था ताकि लोग मुझे उधार देने में आसानी से मना कर सके.

“जरूर”, अपने छोटे वर्गाकार वॉलेट को निकलते हुए फ्रेड ने जवाब दिया. मैं पछता रहा था कि कुछ और क्यों नहीं उधार मांग लिया? वैसे, फ्रेड ने भी प्रस्तावित किया, ‘कुछ और ले लो.” लेकिन एक मूर्ख की भांति मैंने मना कर दिया. फ्रेड मुझे उत्सुकता भरी नजरों से देख रहा था. “आइये, हम लोग साथ लंच लेते हैं.”, उसने कहा. “यह मेरी ओर से है.” उसका व्यवहार सहज व स्वाभाविक था. मुझे हमेशा वैसे लोगों से ईर्ष्या होती है जो इस स्वभाव के होते हैं.

तीन ब्लॉकों को पार करते हुए हम चायका रेस्तरां पहुंचे. वहाँ कोई ग्राहक न था. एक किनारे के टेबल के पास कुछ वेटर सिगरेट पी रहे थे. खिड़कियाँ पूरी खुली हुई थीं और हवा के झोंकों से उसके परदे हिल रहे थे.

हमलोगों ने दूर कोने में जा बैठने का फैसला किया. चांदी रंग का पॉलिस्टर जैकेट पहने एक नवयुवक ने फ्रेड को टोका. उन दोनों के बीच कुछ रहस्मय बातें हुईं.

“स्वागत!”

“शुक्रिया!”, फ्रेड ने प्रत्युत्तर किया.

“सब कुछ ठीक तो है?”

“नहीं”

यह सुनकर नवयुवक की भौहें निराशा में फ़ैल गयीं.

“एकदम से नहीं!”

“हाँ, बिलकुल ही नहीं”

“लेकिन मैंने तो तुमसे कहा था.”

“माफ़ी चाहता हूँ.”

“तो मैं तुम्हारी इस बात पर भरोसा करूं?”

*******************************************************

“निस्संदेह”

“तो इस सप्ताह में किसी दिन आगे की बात रही!”

“कोशिश करूँगा.”

“तो पक्का न?”

“नहीं, पक्का तो नहीं, पर प्रयास जरूर करूँगा.”

“क्या यह एक .....गहना होगा?”

“जाहिर है, जरूर...”

‘ठीक है, मुझे कॉल कर देना.”

“अवश्य”

“मेरा फोन नम्बर तुम्हें याद है न?”

“नहीं, दुर्भाग्य से नहीं.”

“तो लिख लो, कृपया”

“हाँ, हाँ, लिख लेता हूँ.”

“हालांकि ये सब बातें फोन पर नहीं होनी चाहिए.”

“ठीक है”

“हो सके तो तुम केवल माल के साथ आना.”

“अच्छा जी!”

“क्या तुम्हें मेरा पता - ठिकाना याद है?”

“संभवतः नहीं...”

और, इसी तरह की तमाम बातें होती रहीं.

फिर हमदोनों उस दूर किनारे वाले हिस्से में जा बैठे. टेबल - क्लॉथ आयरन किया हुआ था, जिसके चलते उसपर पड़े मोड़ दृष्टिगोचर थे. टेबल - क्लॉथ अति साधारण था.

फ्रेड ने कहा, “देखो, वह कितना साधारण दीखता है? एक साल पहले उसने क्रॉस - चिन्हित एक सेट डेलबनास मंगवाई थी...”

मैंने उसे बीच में ही टोका - “यह क्रॉस चिन्ह वाला डेलबनास क्या है?”

“घड़ियाँ”, फ्रेड का जवाब था. “यह बात महत्त्व की नहीं है...मैंने उसके लिए कम से कम बार माल लाया होगा. लेकिन उसने माल मंगवा कर भी कभी लिया नहीं. हर बार किसी न किसी बहाने से वह मना कर देता. अंततः वह नहीं ही लेता था. मैं सोचा करता-“वह कौन सा खेल खेल रहा है?” और, अचानक मैंने महसूस किया कि मेरी घड़ियों को खरीदने का उसका इरादा तो कभी रहा ही नहीं. वह केवल एक ऐसा व्यापारी होने का अहसास करना चाहता था जो ब्रांडेड माल मंगवाया करता है.

**********************************************

“हमारा इंतज़ाम आपको कैसा लग रहा है?”, ऐसा पूछते हुए मानो वह अपनी गलतियों के माफीनामे का बहाना भी ढूंढ रहा था.

रेस्तरां की एक वेट्रेस इस बीच हमारा ऑर्डर ले गयी थी. हमदोनों ने अपनी - अपनी सिगरेट सुलगाई. मैंने फ्रेड से पूछा - “तुम्हारी गिरफ्तारी भी हो सकती है, क्या तुम ऐसा नहीं समझते?” फ्रेड ने इसपर कुछ सोचा और बड़ी ही सहजता से कहा - “ऐसा होना संभव तो है. मैं तो अपने लोगों के द्वारा ही कभी पकड़ा दिया जाऊंगा.” यह कहते हुए वह तनिक भी आक्रोशित न था.

“तब तो तुम्हें अपनी इन गतिविधियों पर रोक लगनी चाहिए.”

वह व्याकुल सा होकर कह पड़ा - “मैं एक जहाजरानी-किरानी हुआ करता था. मैं 90 रूबल प्रति माह कमाया करता था...”, और यह कहते - कहते वह अचानक खड़ा होकर चिल्लाया - “मैं मजाक कर रहा हूँ!”

“जेल की हवा खाना कोई अच्छी बात नहीं.”

“मैं कर ही क्या सकता हूँ? मुझमें कोई काबिलियत नहीं है. और महज नब्बे रूबल के लिए मैं अपने आपको बिगाड़ना भी नहीं चाहता....ठीक है, इससे मैं अपने जीवन भर में दो हजार हमबर्गर खा सकूँगा, कोई पच्चीस गहरे धूसर रंग के शूट पहन लूंगा. स्थानीय अख़बारों के कोई सात सौ अंकों के पन्ने उलट - पलट सकूँगा. और, धरती की सतह को बिना खींचतान किये मर सकूंगा. सही कह रहा हूँ न...! नहीं, मैं तो बल्कि एक मिनट भर के लिए जीना चाहूँगा, पर सही में जीना चाहूँगा.

अबतक हमारे खाने - पीने के सामान एवं शराब मेज पर रखे जा चुके थे.

मेरे नए दोस्त ने अपने दर्शन बघारना चालू रखा - “ह्मारे जन्म लेने से पहले एक अतल खाई के सिवा कुछ भी नहीं होता. और, हमारी मृत्यु के बाद भी मात्र एक अंतहीन गहराई शेष रह जाती है. हमारा जीवन तटस्थ अतल - अनंत समंदर में अवस्थित बालू के एक कण जैसा है. अतएव, हम अपने जीवन के लम्हों को उदासीनता एवं निराशा से बचाए रखें. यह प्रयत्न करें कि धरती की छाती पर हम अपना भी उपस्थिति-चिन्ह खींच जाएँ. एक सामान्य तुला भी भारी वजन उठा ले! वह कोई चमत्कार करने नहीं जा रहा, लेकिन वह किसी अपराध को अंजाम भी नहीं देने वाला...!”

मैंने लगभग चिल्लाकर फ्रेड से कहना चाहा - “तो तुम क्यों नहीं कोई चमत्कार करते?” लेकिन मैंने अपने आप पर नियंत्रण किया. वह शराब के पैसे भुगतान कर रहा था.

लगभग एक घंटा साथ रेस्तरां में बिता चुकने के बाद मैंने कहा - “अब यहाँ से हमारे चलने का वक्त हुआ. नहीं तो ब्याज पर उधार देने की वह दुकान (पॉनशॉप) बंद हो जाएगी.

*********************************************

और तब फ्रेड कोलेस्निकोव ने मुझे एक ऑफर दिया - “क्या तुम साझेदारी में काम करना चाहोगे? मैं सावधानी पूर्वक काम करता हूँ. मैं नकद पैसे अथवा सोना नहीं लेता. जब तुम अपनी आर्थिक स्थिति सुधार लोगे तो तुम इस धंधे को छोड़ सकते हो. कैसा लगा तुम्हें यह प्रस्ताव? चलो, अब हम पीते हैं, आगे की बात कल करेंगे.”

अगले दिन मुझे लगा कि मेरा दोस्त मुझे दगा देगा, पर फ्रेड कुछ देर से आ गया था. एस्टोरिया होटल के सामने स्थित झील के पास हमदोनों का मिलना हुआ. इसके बाद हम झाड़ी के बीच छुप गए. फ्रेड ने कहा - “एक मिनट के भीतर माल के साथ दो फिनलैंडी महिलाएं यहाँ आएंगी. एक केंकड़े को पकड़ लेना तथा उनके साथ इस पते की ओर चले जाना.”

उसने एक पेपर के टुकड़े को मुझे थमाया और चल पड़ा. “राइमर तुमसे मिलेगा. उसे तुम आसानी से पहचान लोगे. वह शक्ल से ही बदमाश दीखता है, और उसने नारंगी रंग का स्वेटर पहन रखा होगा. मैं भी वहाँ दस मिनट बाद पहुँच जाऊंगा. सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा.”

“लेकिन मुझे तो फिनलैंडी भाषा बोलने आती नहीं.”

“कोई फर्क नहीं पड़ता. जरूरी बात यह है कि वहाँ तुम्हें मुस्कुराना है. मैं स्वयं वहाँ जाता लकिन वे मुझे जानते हैं...” और, अचानक फ्रेड ने मेरा हाथ पकड़ लिया - “देखो! वहाँ रहीं वे! जाओ उनके पास.”

और, वह झाड़ी में गायब हो गया.

मैं भी उन दोनों महिलाओं से मिलने पहुंचा. हालाँकि मैं बहुत घबड़ाया हुआ था. वे चौड़ी सांवली सूरत वाली थीं और किसान लग रही थीं. वे हल्की बरसाती एवं सुन्दर जूते पहने हुई थीं तथा चमकदार ओढ़नी ओढ़े हुई थीं. दोनों के हाथों में खरीदारी करने के झोले थे जो फुटबाल की तरह फूले हुए थे.

अधीरता एवं हड़बड़ी में संकेत करते हुए मैं उन स्त्रियों को टैक्सी स्टैंड की तरफ ले गया. यात्रियों की कोई पंक्ति नहीं थी. मैं बार - बार ‘मिस्टर फ्रेड, मिस्टर फ्रेड’ कहकर चिल्लाए जा रहा था. टोकने के क्रम में मैंने उन स्त्रियों में से एक की ब्लाउज की आस्तीन को हिम्मत करके छुआ भी.

“वह आदमी कहाँ हैं?’, उस स्त्री ने क्रुद्ध होकर कहा, “वह शैतान कहाँ है? वह क्या उठाना चाहता है?”

“तुम रूसी जुबान बोलते हो?”

“मेरी माँ रूसी थी.”

***************************************************

मैंने कहा- “मिस्टर फ्रेड कुछ देर से यहाँ पहुंचेंगे. उन्होंने ही मुझे आपको उनके घर लेकर आने को कहा है.”

एक कार वहाँ आई, मैंने पता थमाया. उसके बाद मैंने कार की खिडकी की तरफ देखना शुरू किया. उसे इस बात का अनुमान नहीं था कि पैदल - पथ पर चलने वालों में से कितने वहाँ पुलिस के आदमी थे?

वे औरतें आपस में फिनलैंडी भाषा में बातें कर रही थीं. उनके हाव - भाव से साफ़ पता चल रहा था कि किसी बात को लेकर वे नाखुश थीं. वे जब हंसी तब जाकर मुझे कुछ बेहतर महसूस हुआ.

एक भडकीला स्वेटर पहना हुआ आदमी सड़क किनारे खड़ा होकर हमारी प्रतीक्षा कर रहा था. आँख मारते हुए उसने मुझसे पूछा - “ये दोनों कैसी कुत्तियाँ हैं?”

“आईने में खुद का चेहरा निहारो”, इलोना ने गुस्से में कहा. दोनों स्त्रियों में वह कम उम्र की थी.

“वे तो रूसी बोलती हैं”, मैंने कहा.

“अद्भुत”, राइमर ने बिना किसी आवेग के कहा, ”शानदार, यह हमें आपस में करीब लाता है. वैसे, यह बताइए, लेनिनग्राद आपको कैसा लगता है?”

“ठीक - ठाक”, मारिया ने कहा.

“क्या आप उस कुटिया में कभी गए हैं?

“अबतक तो नहीं, क्या है वहाँ?”

“वहाँ पेंटिंग, स्मृति - चिन्ह आदि हैं. पहले इसमें जार रहता था”, राइमर ने कहा.

“आइये, हमलोग वहाँ थोड़ा हो आते हैं”, इलोना ने कहा.

“आपने अबतक उस कुटिया को नहीं देखा है!” - राइमर आश्चर्यचकित था. वह चलते - चलते थोड़ा धीमा हो गया था, उसे लगा कि ऐसे जाहिल व्यक्ति के साथ होने से भी मेरी तौहीन हो जा रही है.

ह्मलोग कुटिया की दूसरी मंजिल तक गए. राइमर ने धक्का देकर कमरे का दरवाजा खोल दिया, क्योंकि कमरे में ताला नहीं लगा था. कमरे में गंदे बर्तन बिखरे हुए थे. दीवारें फोटो से पटी हुई थीं. एक बिस्तर पर रंगीन मढ़ी हुई जिल्दों में विदेशी दस्तावेज पड़ी हुई थीं. वहाँ कोई बिस्तर नहीं था.

राइमर ने बत्ती जलाई एवं जल्द-जल्द कमरे को साफ़ किया . फिर पूछ बैठा - “आप क्या लाए हैं?”

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“तुम हमें यह क्यों नहीं बताते कि कहाँ गया तुम्हारा वह पार्टनर जो पैसे के साथ है?”

इसी बीच किसी के पदचाप की आहट सुनाई पड़ी और फ्रेड कोलेस्निकोव प्रकट हुआ. उसके हाथ में अखबार था जो उसे डाक से मिला था. वह शांत और सहज दिख रहा था.

“टर्व”, कहते हुए उसने फिनलैंडियों का “हेलो” कहकर अभिवादन किया. और फिर, राइमर से मुखातिब हुआ. “ऐ लड़का! वे कुछ कुछ बुझे से दिख रहे हैं. क्या तुम उन्हें परेशान कर रहे थे?”

“मुझे कह रहे हैं?”, राइमर ने आक्रोश व्यक्त किया और कहा, “हमलोग तो कला के बारे में बातें कर रहे थे. वैसे भी, वे तो रूसी बोलती हैं.”

“बहुत बढ़िया!”, कहते हुए आगे फ्रेड ने ‘गुड इवनिंग मैडम लेनार्ट!’ कहकर लेनार्ट का अभिवादन किया. ‘इलोना, आप कैसी हैं’, कहते हुए इलोना का भी हाल - चाल लिया.

“ह्म ठीक हैं, धन्यवाद!”

“आपलोगों ने यह बात क्यों छुपाई कि आप रूसी भाषा बोलना जानती हैं?”

“किसी ने यह जानना चाहा ही कहाँ?”

“ठीक है, आइये, पहले हम थोड़ा पीते हैं”, राइमर ने कहा.

उसने आलमारी से क्यूबाई रम की बोतल निकाली. फिनलैंडियों ने उसका आनंद लिया. राइमर ने शराब का एक और दौर चलाया. इस बीच फिनलैंडी मेहमान जब बाथरूम को गए तो उनके बारे में राइमर ने टिप्पणी की, “ये लैपलैंडर स्त्रियां एक जैसी लगती हैं.”

“खासकर, इसलिए भी कि ये दोनों आपस में बहनें हैं.”, आगे फ्रेड ने बात स्पष्ट की.

“बस, ऐसा मैंने सोचा...वैसे, मिसेज लेनार्ट के चेहरे ने मुझे बहुत आश्वस्त नहीं किया. इसके अलावे पुलिस इन्सपेक्टर का रंग – ढंग भी मुझे नहीं जंचा.”

“फ्रेड राइमर पर चिल्ला उठा - “पुलिस इंस्पेक्टर के चाल – ढाल के अलावा और किसके थोबड़े ने तुममें विश्वास जगाया?”

इस बीच जल्द ही वे फिनलैंडी बाथरूम से होकर आ गई थीं. फ्रेड ने उनकी ओर एक साफ़ - सुथरा तौलिया बढ़ाया. उन स्त्रियों ने अपने चश्में आँखों से ऊपर उठाते हुए मुस्कुराहटें बिखेरीं. ऐसा आज उन्होंने दूसरी दफे किया था. उन्होंने अपने खरीदारी के थैले अपनी अपनी गोद में रखे थे.

जर्मनों के ऊपर विजय पाने के अवसर पर आओ हम खुशी मनाएं. “चीयर्स!”

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हमलोगों ने और उन फिनलैंडियों ने अबतक शराब पीना खत्म कर लिया था. फर्श पर एक फोनोग्राफ (शब्द - उच्चारण यंत्र) लगा हुआ था जिसे फ्रेड ने अपने पैर की सहायता से ऑन कर दिया था. वह काला रेकॉर्ड मशीन (डिस्क) थोड़ा दब गया था.

“आपलोगों के प्रिय लेखक कौन हैं?” - राइमर ने फिनलैंडियों को तनिक उकसाने की कोशिश की.

इसपर उन महिलाओं ने आपस में कुछ बातचीत की और उसके बाद इलोना ने कहा, “संभवतः कर्जालेनेन”.

राइमर ने गहरी मुस्कान बिखेर मानो यह जताया कि वह भी इस नाम पर सहमत था. लेकिन साथ ही उसने अपने अभिमान का भी इजहार किया था.

“अच्छा, अच्छा!”, उसने कहा. ‘और, तुम्हारे पास किस तरह का माल है?”

“मोज़े”, मरिया ने बताया.

“और भी कुछ?”

“और क्या चाहिए तुम्हें?”

“तुम्हारे पास कितनी रकम है?” फ्रेड ने जानना चाहा.

“432 रूबल.” इलोना, जो अपेक्षाकृत कम उम्रवाली युवती थी, ने चिल्लाकर कहा.

“मीन गौट!” राइमर ने तेज आवाज में कहा, “पूंजीवाद के नंगे, नुकीले एवं जहरीले दांत!”

“मैं यह जानने को उत्सुक हूँ कि तुमने कितने लाये हैं, कितने जोड़े?, फ्रेड का प्रश्न था.

“720 जोड़े.”

“क्या ये रबरयुक्त (क्रेप) नाइलन के हैं?”, राइमर ने पूछा.

“सिंथेटिक हैं”, इलोना ने बताया, “60 कोपेक्स प्रति जोड़े के हिसाब से कुल मिलाकर 432 रूबल के.”

अब यहाँ मुझे कुछ विषयान्तर होना पड़ेगा. उस समय ये क्रेप मोज़े चलन में थे पर सोवियत फैक्ट्रियों में इसका उत्पादन नहीं होता था. इसलिए इसे काला बाजारी से ही ख़रीदा जा सकता था. एक जोड़े फिनलैंड निर्मित मोज़े का मूल्य छह रूबल होता है, जबकि ह्म फिनलैंडी इसे उससे दसगुनी कम कीमत पर बेच रहे हैं. इस तरह आप 900 % मुनाफा पा रहे हैं....

फ्रेड ने अपना बटुआ (वॉलेट) निकाला एवं पैसे गिने.

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“ये लो”, उसने कहा, “बीस रूबल अधिक ही देता हूँ. झोले समेत माल यहाँ रख दो.”

“स्वेज समस्या पर एक शंतिपूर्ण समझौता निकल आने के इस मौके पर एक शराब का दौर भी कर लेना चाहिए! लोथारिन्गिया पर विजय प्राप्त करने के मौके पर!”, राइमर ने कहा.

“इलोना ने बाएं हाथ से लिए पैसे अपने दाहिने हाथ में रखे. उसने अपनी शराब की ग्लास उठाई जो लबालब भरी हुई थी.

राइमर फुसफुसाया, “आओ, वैश्विक बंधुत्व का बहाना लेकर हमलोग इन फिनलैंडी युवतियों के साथ कुछ मजे करें.”

फ्रेड ने मुझसे कहा, “मुझे अब क्या करना चाहिए?”

मैं चिंतित और भयभीत हो गया. अब मैं जल्द से जल्द वहाँ से निकल जाना चाहता था.

“तुम्हारा पसंदीदा कलाकार कौन सा है?”, राइमर ने इलोना से पूछते हुए अपना एक हाथ उसकी पीठ पर रख दिया.

“मैनटियर’, इलोना ने कुछ दूर हटते हुआ जवाब दिया.

राइमर ने अपनी भौंहें उसकी सहमती में हिलायीं पर उसकी भंगिमा से यह भी जाहिर हो रहा था जैसे कि उसके सौंदर्यानुभूति को जैसे कुछ ठेस लगी हो.

फ्रेड अब मुझसे मुखातिब था, “इन महिलाओं को विदा भी करना है. ड्राइवर को हमने सात रूबल दे दिए हैं. मैं राइमर को भेजता पर वह कुछ पैसों की हेराफेरी कर देगा.

“मेरे बारे में ऐसा कह रहे हो?” राइमर गुस्से में आ गया था, “मेरी आईने की तरफ साफ़ ईमानदारी पर तुम्हें शक है?”

जब मैं वापस लौटा तो मैंने देखा कि वहाँ हर कहीं रंगीन रैपर (सेल्लोफेन) थोक भाव से बिखरे पड़े थे. राइमर कुछ कुछ मतवाला दिख रहा था.

“पायसट्रेस, क्रोना, डॉलर’, वह बड़बड़ाया, “फ्रैंक...”

फिर, अचानक वह शांत हो गया एवं उसने एक नोटबुक एवं फेल्ट-टिप कलम निकाली. उसने कुछ हिसाब किये और बोला, “पूरे पूरे 720 जोड़े हैं. ये फिनलैंडी तो ईमानदार हैं. इसी वजह से तो नहीं वह एक अविकसित देश है!”

“उसमें तीन से गुणा करो”, इसी बीच फ्रेड ने राइमर से कहा.

“तीन से क्यों गुणा करना है?”

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"अगर थोक-बिक्री की जाए तो प्रति जोड़ा मोजा तीन रूबल पड़ेगा। 1500 रूबल से अधिक का शुद्ध मुनाफा।"
राइमर ने भी झट एक संक्षिप्त-ठोस हिसाब लगाया। "1728 रूबल।" इसमें पागलपन एवं व्यवहारिकता का सामंजस्य था।

"हमदोनों के लिए 500 - 500 से ज्यादा ही", फ्रेड ने जोड़ा।

"576 रूबल", राइमर ने ठीक - ठीक रकम ही बता दिया था।

बाद में फ्रेड और मैं शाशलिक रेस्तरां में पहुंचे। मेज पर रखा तैलीय तौलिया कुछ चिपचिपा था। हवा भारी कुहरापन लिए हुए थी। मछलीघर (एक्वेरियम) में तैरती मछलियों की तरह इस धुंधलके के बीच से लोग आ - जा रहे थे।

फ्रेड चिंतित और उदास दिख रहा था। मैंने कहा, "पांच मिनट में इतने ज्यादा पैसे!"
मुझे कुछ कहना था।

फ्रेड ने कहा, "तुम्हें चालीस मिनट और इन्तजार करना पड़ेगा ताकि मार्जरीन (कृत्रिम मक्खन) से तैयार चिकने समोसे तुम चख सको। फिर, मैंने पूछा, "तुम्हें मेरी जरूरत क्यों है?" "मुझे राइमर पर विश्वास नहीं है। इसलिए नहीं कि वह ग्राहकों के साथ धोखेबाजी कर सकता है। हालांकि इससे एकदम से इनकार भी नहीं किया जा सकता। और, इसलिए भी नहीं कि राइमर ग्राहक को पैसे न देकर पुराने किसी करार का हवाला देकर उसके साथ दगाबाज़ी कर सकता है। और, इसलिए भी नहीं कि वह ग्राहकों के साथ ठीक से बर्ताव नहीं करता। बल्कि इसलिए कि राइमर बेवकूफ है। बेवकूफों को कौन सी चीज़ बर्बाद कर सकता है? कला एवं सुन्दरी के प्रति उसकी तृष्णा। और, राइमर के पास यह तृष्णा है।

उसकी ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद उसके पास एक छोटा जापानी रेडियो है। दुर्लभ मुद्रा (हार्ड करेंसी) भंडार में जाकर राइमर ने भण्डार के खजांची के हाथों में 40 डॉलर थमाए। उसकी इस तरह की सूरत!

साधारण से साधारण किराना स्टोर के खजांची को जब वह एक अदद रूबल भी थमाता है तो खजांची समझता है कि ये पैसे चोरी के होंगे। और, यहाँ तो वह 40 डॉलर दे रहा है! दुर्लभ मुद्रा अधिनियम का तो यह साफ़ उल्लंघन है। आज नहीं तो कल उसे जेल की हवा तो खानी ही पड़ेगी।"

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"मेरा क्या होगा!"

"तुम्हारे साथ वैसा कुछ नहीं होनेवाला। हाँ, तुम्हें अलग तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।"
मैंने उससे नहीं पूछा कि मुझे किस तरह की कठिनाइयाँ उठानी पड़ेंगी।

विदा लेते हुए फ्रेड ने कहा, "वृहस्पतिवार को तुम्हें अपना हिस्सा मिल जाएगा।"

चिंता एवं खुशी दोनों तरह के भावों का अजीब घालमेल समेटे मैं अपने घर चला आया.

मदमत्त करने वाले धन के पीछे जरूर कोई न कोई बुरी शक्ति का हाथ रहता होगा!

मैंने अपने इस जोखिम भरे अभियान के बारे में आस्या को कुछ भी नहीं बताया. मैं उसे एकदम से चौंकाना चाहता था. एक धनाढ्य एवं खर्चीले व्यक्ति के रूप में यकायक मैं उसके सामने प्रकट होना चाहता था.

इस बीच, उसके साथ बहुत कुछ अच्छा नहीं घट रहा था. मैं उससे लगातार सवाल पर सवाल पूछ रहा था. यहाँ तक कि उसके मित्रों से भी मैं किंचित रूखा व्यवहार करता रहा. उनके लिए मेरे सवाल कुछ इस तरह के होते थे, “क्या आप नहीं समझते कि एरिक शुलमान एक घमंडी आदमी है?”

वस्तुतः एरिक शुलमान पर मैं बीच का रास्ता अख्तियार कर आस्या की नज़रों में ऊपर चढ़ना चाहता था. जबकि, पाना मैं ठीक इसके विपरीत चाहता था!

मैं अपनी कहानी से भी आगे जाकर आपको बताना चाहूँगा कि हमलोग पराजयों से टूट चुके थे.

जो व्यक्ति लगातार सवाल करना जानता है वह देर - सबेर सवालों के उत्तर देना भी जान जाता है.

फ्रेड ने वृहस्पतिवार को बुलाया. “एक तूफ़ान!” - एक अनुमान था, अबतक राइमर गिरफ्तार हो गया होगा.

“”बहुत बुरा हुआ है”, फ्रेड ने कहा, “किसी निकट के कपड़े की दूकान पर जाओ.”

“भला क्यों?”

“सारी दुकानें क्रेप मोजों से भर गयी हैं, सोवियत क्रेप मोजों से. मात्र 80 कोपेक्स प्रति जोड़े की दर से उपलब्ध हैं. गुणवत्ता में भी ये फिनलैंडी मोज़े से कम नहीं हैं. बुनाई भी उसी तरह की सिंथेटिक है.

“तो अब हमलोग क्या कर सकते हैं?”

“कुछ भी नहीं. हमलोग कुछ नहीं कर सकते हैं. एक समाजवादी अर्थव्यवस्था में भी इस तरह की धीमी चोट पड़ सकती है, किसने सोचा होगा?

अब मैं किसको ये फिनलैंडी मोज़े बेचूंगा? लोग तो अब एक रूबल में भी इसे नहीं खरीदेंगे! मैं अपने देश के अभागे उद्योगों से भली - भांति परिचित हूँ. पहले तो ये बीस वर्षों तक जीर्ण - शीर्ण दशा में चलते रहे और फिर यह- अचानक विस्फोटक विकास (BAM)!

और, अब तो सारी दुकानें इन क्रेप मोजों एवं तरह के अन्य सामानों से अटी पड़ी हैं.

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“एक बार जब उत्पादन एक लय पकड़ लेता है तो यह संभव हो जाता है. वे मिनटों में लाखों क्रेप मोजों की खपत भी कर दे सकते हैं.”

हमलोगों ने मोजों का, यानी माल का बंटवारा कर लिया. ह्म सभी के हिस्से 240 - 240 जोड़े आये. मटर से हरे रंग के इस तरह के भद्दे मोज़े. केवल एक ही बात संतोष करने लायक थी कि सब पर ‘फिनलैंड में निर्मित’ की मुहर लगी हुई थी.

इसके बाद, कई घटनाएं घटीं. इतालवी रेनकोट के कारोबार में हाथ डालना. छः जर्मन स्टीरियो की पुनर्बिक्री करना. कॉस्मोस होटल में अमेरिकी सिगरेट के एक केस में विवाद होना. जापानी कैमरों की एक खेप माल के मामले में पीछे पड़े पुलिस-बल से पिंड छुड़ाना तथा कई अन्य मामले.

मैंने अपने क़र्ज़ चुका दिए. अपने लिए नए चलन की कुछ पोशाकें लीं. कॉलेज में अपना विभाग बदला. एक लड़की से जान - पहचान हुई एवं अंतत उससे शादी भी की. राइमर और फ्रेड की इधर गिरफ्तारी हुई उधर मैं एक महीने के लिए बाल्टीज़ को चला गया. थोड़ा - बहुत साहित्य में हाथ आजमाना शुरू किया. बाप बना. अपने अधिकारियों के साथ कुछ झमेले में पड़ा एवं नौकरी खोई. करीब महीना भर कल्यायेवो जेल में रहा.

इस बीच एक ही चीज़ नहीं बदली, वह यह कि 20 वर्षों तक मैं मटर - रंग के मोजों में दौड़भाग करता रहा. मैंने ये मोज़े अपने सभी दोस्तों को दिए. बड़ा दिन (क्रिसमस) के अवसर पर ख़रीदे गए आभूषणों को लपेटने में इन मोजों से काम लिया. उससे धुल-धक्कड़ साफ़ की. खिड़की की चौखटों की दरारों में इसे ठूँसा. और, इस तरह से खपाए जाने के बाद भी इन घटिया मोजों की तादाद बहुत कम नहीं हुई.

और, फिर, उस खाली अपार्टमेंट में जमा फिनलैंडी क्रेप मोजों के ऊंचे ढेर को छोड़ कर चला आया. चलते वक़्त मैंने तीन जोड़े मोज़े अपनी शूटकेस में घुसेड़ लिए थे.

ये मेरे आपराधिक युवा दिनों के स्मारक थे. ये गवाह थे मेरे प्रथम प्यार एवं पुराने मित्रों के.

फ्रेड ने दो वर्ष की जेल की सजा काटी और अपने चेजेट पर एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में मारा गया. राइमर एक वर्ष तक जेल में रहा और अब वह मांस की पैकिंग करने वाले एक कारखाने में डिस्पैचर का काम करता है. आस्या दूसरे देश में जा बसी है जहाँ स्टैनफोर्ड में वह कोशविज्ञान पढाती है. उसका यह पढ़ाना अमेरिकी विद्वता पर एक चौंकाने वाली टिप्पणी भी है!

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