गुलाबी दुपट्टा RK Agrawal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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गुलाबी दुपट्टा

गुलाबी दुपट्टा

"ओ भाईसाब, शाम को सगाई इसी घर में होने वाली है क्या" दरवाजे पर खड़े नावेद से एक अधेड़ सी औरत पूछ रही थी.

वह भी बस अभी ही पंहुचा है..घर के भीतर भी नही गया. खड़ा हुआ कुछ सोच ही रहा था की उसके कानों पर फिर उसी अधेड़ औरत के शब्द पड़े.

"अरे बाबा, जल्दी बताओ, ये फूलों का टोकरा यहीं देना है क्या?" नावेद ने देखा उसके हाथों में लाल, सफ़ेद गुलाब के फूलों से भरी टोकरी थी. वह फूल बेचने वाली लग रही थी..वो समझ गया शायद शाम को सगाई के मौके पर सजावट के लिए फूल मंगवाए गए होंगे.

"जी? जी हाँ..यही फूल देने हैं..लाइए" नावेद उसके हाथों से टोकरी लेने लगा.

"अरे, अरे ये क्या बात हुई जी..फूल बेचे हैं.. टोकरी नही..जाइये..भीतर से अपनी टोकरी लाइए..फूल पलटने को" वो औरत बोली.

"जी मैं तो अभी ही आया हूँ. घर पर किसी से मिला भी नही हूँ " नावेद थोड़ा सकपकाते हुए बोला.

"अरे भाईसाब, हम रोज रोज की मेहनत मजूरी वाले लोग हैं. हर घर पर इतना वक़्त बर्बाद नही कर सकते. वो देखिये, वो क्या कपडा पड़ा है..लाइए फूल उसमे बांध देती हूँ" नावेद ने पीछे पलटकर देखा तो एक गुलाबी नाजुक दुपट्टा दिखाई दिया. उसने जल्दी से दुपट्टा उठकर फूल वाली को दे दिया. वह फूल उसमे बांधकर चली गयी.

"घर पर तो कोई दिखाई नही दे रहा है..शायद सभी लोग ऊपर होंगे " सोचते हुए वह चढ़ने लगा दूसरी मंजिल पर पंहुचा तो उसे नुसरत चाची दिखाई दे गयी.. उसकी चाची जान की आपा. इन्ही की बेटी की सगाई में शामिल होने वह आया था. यहाँ किसी को जानता भी नही था.

"अरे नावेद बेटा, तुम कब आये? " नुसरत चाची उसे देखकर खुश हो गयी थी.

"सफर कैसा रहा" वो उसकी तरफ बढ़ते हुए बोली.

"सलाम चाची जान, बस अभी आया हूँ, सफर भी ठीक था" नावेद ने तहज़ीब के साथ जवाब दिया. नुसरत चाची उसे गेस्ट रूम की तरफ ले गयी. फ्रेश होकर, कुछ नाश्ता कर वो आराम ही कर रहा था की निचली मंजिल से किसी मोहतरमा के चिल्लाने की आवाज आई.

"अम्मी जान, हमारा दुपट्टा कहाँ है..कुल 2 घंटे से हम बदहवास से घर के कमरे-कमरे, कोने-कोने में अपना दुपट्टा ढूंढ रहे हैं. आखिर हम कब तक अपने कशीदाकारी वाले गुलाबी लिबास में ये सदा सा पीला दुपट्टा डालकर घूमे..किस नामुराद को हमारे दुपट्टा की जरुरत आ पड़ी जो..." समीरा एक ही सांस में कहे जा रही थी...

"अब बस भी करिये होने वाली बेगम साहिबा...हम सभी ढूंढ रहे हैं आपका दुपट्टा" समीरा की अम्मी जान ने जैसे तैसे समीरा को शांत कराया.

"अच्छा तो ये नुसरत चाची की बेटी है." नावेद ने मन ही मन सोचा. ''इन्ही की सगाई होने वाली है आज..और ये तेवर..पर ये इतनी नाराज क्यों हो रही है " वह सोच ही रहा था...तभी उसे याद आया..फूलवाली जिस दुपट्टे पर फूल बाँध गयी थी..वही भी गुलाबी था और इन मोहतरमा का लिबास भी गुलाबी है.

"मर गए नावेद साब...अब तो आपकी खैर नहीं " वह सोच में डूब गया.."अगर इन्हें पता चल गया कि इनके दुपट्टे में आपने फूल बंधवा दिए हैं तब तो ये आपकी जान ही ले लेंगी" वह सोचने लगा कि किस तरह इस मुसीबत से खुद को बचाये.

"खड़ा खड़ा देख क्या रहा है नावेद..जल्दी से फूलों वाली गठरी खोलकर दुपट्टा फेक दे नीचे और भाग ले गेस्ट रूम की तरफ..किसी को पता भी नही चलेगा" ऊपरी मंजिल की रेलिंग के पास खड़ा नावेद सोच रहा था.

वह यहाँ वहां देखने लगा. यही तो रखकर गया था फूलों वाली गठरी..कहाँ गयी? "हाँ वो रही" आखरी सीढ़ी के कोने में उसे गठरी दिखाई दी. वह दौड़ कर गया और गठरी को उठाकर, उसे रेलिंग के ऊपर रखकर उसे जल्दी जल्दी खोलने लगा.

ये क्या...गठरी की गाँठ खोलते हुए अचानक उसके हाथ ठिठक गए. कितना खूबसूरत दुपट्टा है ये. जैसे शबनमी मासूमियत वाली कशीदाकारी से, छोटे छोटे फूलों को काढ कर किसी खूबसूरत परी के लिए तैयार किया गया गया हो. हाँ, समीरा जी एक खूबसूरत परी ही तो हैं.

ये सब क्या सोचने लगा वह. उसने घबराकर सर को झटका दिया. गठरी तब तक खुल चुकी थी. सारे गुलाब के फूल बिखरकर नीचे खड़ी समीरा पर जा गिरे.

"ये क्या हुआ" नावेद घबरा गया..उसने दुपट्टा अपने पीछे छुपा लिया.

समीरा ने ऊपर देखा. "ये कौन है" वह मन ही मन सोच रही थी.

"ओ फूल बरसाने वाले जनाब" वह सीढ़िया चढ़ती हुई ऊपर की तरफ जाने लगी. "आप कौन हैं..आपको पहले तो कभी नही देखा. आपकी तारीफ"अब तक समीरा उसके सामने आकर खड़ी हो गयी थी.

"जी मैंने कुछ नही किया" वह डर गया. उसने घबरा कर दुपट्टा समीरा की तरफ फेक दिया. दुपट्टा सीधे जाकर समीरा के चेहरे पर गिरा.

अब गुलाबों की भीनी भीनी खुशबु के बीच, दुपट्टे की झीनी झीनी बुनावट से समीरा ने नावेद को देखा तो देखती ही रह गयी. उसका सारा गुस्सा काफूर हो गया. उसने धीरे धीरे अपने चेहरे से दुपट्टा हटाया...तो नावेद उसके चेहरे से नजरें नही हटा पा रहा था...

"यही तो है वो खूबसूरत परी...जिसके लिए ये दुपट्टा बनाया गया है" उसने मन में सोचा.

उधर समीरा शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी..

"यही तो है हमारा दुपट्टा, इसे ही ढूंढ रहे थे हम. आपका शुक्रिया" इतना ही कह पाई और भाग कर चली गयी.

नावेद उसे जाते हुए बस देखता रह गया.

* * * *

शाम होने को थी. सगाई के लिए लड़के वाले और मेहमान आ गए थे. उन सभी को ऊपर वाली मंजिल में बने गेस्ट रूम्स में ठहराया गया था. रिहान, जिस से समीरा की सगाई होने वाली थी,,बड़े ही संजीदा व्यक्तित्व वाला, खूबसूरत नौजवान था.

नावेद अपने कमरे की तरफ जा रहा था तभी उसे उसके बाजु वाले कमरे से एक दबी दबी सी मर्दाना आवाज़ सुनाई दी. "अरे आप समझती क्यों नही. आपसे निकाह का फैसला लिया तो समीरा मेहर में 50 लाख की रकम लाने वाली है वो हाथ से निकल जाएगी.”

नावेद ने चौंक कर रोशनदान से अंदर की तरफ झाँका. वह सकपका गया. होने वाले दूल्हे राजा मतलब रिहान किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था.

"या अल्लाह, इतना बड़ा धोखा...ये तो समीरा के साथ फरेब हो रहा है. नही..हम ऐसा नही होने दे सकते" नावेद का हाल ‘काटो तो खून नही’ जैसा हो गया. शाम को समीरा की सगाई है..उसका होने वाला हमसफ़र उसे धोखा दे रहा है..वह करे तो क्या करे. जाकर समीरा को सब बता दे? मगर कैसे?? जिस लड़की की सगाई में शामिल होने आया है उसी की सगाई तुड़वा दे? मन में हजारो सवाल झंझावात पैदा कर रहे थे. नहीं, ये नही हो सकता..मुझे रिहान की सच्चाई समीरा के सामने लानी ही होगी.

ये सोचकर रिहान ने फटाफट एक चिठ्ठी लिखकर सारी सच्चाई बयाँ कर दी और समीरा के कमरे के दरवाजे से निचे सरका दी.समीरा तैयार हो रही थी...उसके कमरे में कोई नही था. समीरा का ध्यान जब चिठ्ठी की तरफ गया तो उसने नजरअंदाज कर दिया पर जब चिठ्ठी के ऊपर बड़े बड़े हर्फों में अर्जेंट लिखा देखा तो उठा ली. चिठ्ठी पढ़कर समीरा सन्न रह गयी..उसे यकीन ही नही हो रहा था कि रिहान ऐसा कर सकता है.

"नहीं ये नही हो सकता, ये झूठ है, वहम है.किसी ने हमे बहकाने के लिए घिनौना मज़ाक किया है" समीरा का दिल मानने को तैयार ही नही था कि कोई निकाह जैसे पाक रिश्ते की बुनियाद झूठ और फरेब पर बना सकता है.

वह तुरंत अपने कमरे से निकलकर रिहान से तसल्ली करने चली गयी कि ये सब झूठ है. पर दरवाज़े के पास जाकर ही ठिठक गयी..अंदर से हौले हौले बातें करने की आवाज़ आ रही थी.

"आप हमे बहुत प्यारी हैं आरज़ू,,समीरा से निकाह तो सिर्फ हम मेहर की रक़म पाने के लिए कर रहे हैं"समीरा ने हौले से दरवाज़ा उड़का कर देखा...अंदर रिहान, अपनी खाला जान की बेटी..आरज़ू को बाहों में भरे हुए थे. इसके आगे वह एक पल भी वहां खड़ी नही रह पाई. भागकर अपने कमरे में वापस आ गयी और दिल खोलकर रोई. काश ये सब कुछ झूठ होता. हमसे कोई अभी आकर कह देता कि हम कोई बुरा सपना देख रहे हैं.

नावेद को अंदाज़ा लग चुका था की समीरा सच्चाई जान गयी है. वह अपनी पहली नज़र की मोहब्बत को इस तरह आंसू बहाते नही देख पा रहा था. उसने सोच लिया कि वह जाकर समीरा से अपने प्यार का इज़हार कर देगा. “वह पहले नाराज़ होगी, भला बुरा कहेगी पर मैं प्यार से, आराम से समझाऊंगा तो मान जाएगी.” वह समीरा के कमरे तक पहुंच गया था..गुलाबी दुपट्टे से गुलाबों की भीनी भीनी खुशबू नावेद के दिलोदिमाग को प्यार से सराबोर किये जा रही थी.