आत्मा का दंश
किसी अनजान सड़क पर मैं बस चलती जा रही थी ना अँधेरे का ख़ौफ़ ना आदमी रूपी शैतानों की परवाह | अनवरत साँस ज्यो थमने का नाम नहीं ले रही थी उसी तरह मैं भी अपने पावों को विराम देने की सोच भी नहीं रही थी |
अचानक एक दम तोड़ती कराह ने जैसे मेरे पैर थाम लिए हो , मैं पीछे घुमी और देखती हूँ के एक अनजान साया जो लगभग मरणासन्न स्थिति में था वो मुझे उस घूप्प अँधेरे में अपनी और इशारे से बुला रहा है | मैं थोडा सहमते हुए उसके पास जाती हूँ तो देखती हूँ के एक बुड्ढा बुजुर्ग आदमी लहूलुहान हालत में बड़ी उम्मीद भरी नजरो से मुझे अपने और करीब आने का इशारा कर रहा था |
मैं फिर थोड़ा डरते हुए उसके और करीब हो जाती हूँ ... इतना विश्वास पाकर वह घायल बुजुर्ग मुझे कुछ अटकते -अटकते कहता है के बेटी मेरा घर यहां पास ही में है एक गाडी ने मुझे टक्कर मार दी है क्या तुम मेरे घर में से किसी को बुलवा लाओगी ????
मैं सकुचाते हुए पूछती हूँ ......घर का पता ..? और फ़ौरन उसके घर की तरफ दौड़ पड़ती हूँ| वहाँ जाते ही देखती हूँ के एक आलिशान कोठी जिसमे बाहर की तरफ एक बड़ा सा बगीचा लगा हुआ है और चार आलिशान गाड़ियां खड़ी है मगर अभी इस वक्त मौके को समझते हुए मैं दरवाजा खटखटाने को भागती हूँ | जैसे ही मैं दरवाजा खटखटाती हूँ एक नोकर आकर दरवाजा ख़ौलता है तो मैं झटपट उस बुजुर्ग का पूरा वाक्या उसे सुना देती हूँ | वो नोकर पूरी बात सुनते ही अंदर की तरफ भागता है और मालिक -मालिक चिल्लाता है ...
तभी सीढ़ियों से 35-40 साल का आदमी नीचे उतरता है और नौकर से पूछता है कि क्या हुआ ? क्यों गला फाड़ रहा है ? नौकर वो ही बात दोहरा देता है जो मैंने उसे बताई .... वो आदमी बड़ी शान्ति से सब सुन कर रह गया और पीछे आती अपनी पत्नी को सब बाते फुसफुसाहट के साथ बता दी | दोनों में आपस में ना जाने क्या मंत्रणा हुई के नोकर को फटाफट सो जाने के निर्देश दे दिए गए और उस आदमी के कदम मेरी और चल पड़े ... मैं कुछ समझती और उससे कुछ पूछती उससे पहले ही उस आदमी ने मुझे वहाँ से दफा हो जाने के निर्देश दे दिए और कहा के उस बुड्ढे से हमारा कोई वास्ता नहीं | और मुफ़्त की एक सलाह भी मुझे दे डाली के "तुम भी इस लफ़ड़े से दूर रहो नहीं तो फँस जाओगी |"
मैं सब हतप्रभ होकर सुन रही थी और अंदाजा लगा चुकी थी के ये आदमी उसी बुजुर्ग का बेटा है मगर ना जांनने का दिखावा कर रहा है | मगर क्यों ?
इसी उधेड़बुन में मैं वापस उसी बुजुर्ग की तरफ दौड़ पड़ती हूँ और वहाँ जाकर देखती हूँ के उस बुजुर्ग की हालत तो और भी गंभीर हो गई थी | सुनसान सड़क पर कोई वाहन भी नहीं दिख रहा था समझ नहीं आ रहा था के क्या करूँ ? तभी उस घायल बुजुर्ग ने उम्मीद भरी नजरों से मेरी तरफ देखा ... मगर मैं कुछ नहीं बता पाई |अचानक एक हल्की सी आती हुई गाडी की रौशनी से मेरी तन्द्रा भंग हुई और मैं भागकर सड़क के बीच खड़ी हो गई और गाडी को रोकने का इशारा करने लगी | वो ड्राईवर भला आदमी था जिसने मुझे देख कर ब्रेक मारा और बाहर आके पूछा के ...क्या हुआ ? आप इतनी रात को अकेली यहाँ क्या कर रही है? मैं बस घबराहट में सूखे गले से इतना ही बोल पाई के एक बुजुर्ग का एक्सीडेंड हो गया है आ ..आप प्लीज़ मदद कीजिये | बेचारा भला आदमी था जो मदद को तैयार हो गया और हम फ़टाफ़ट अस्पताल की तरफ भाग पड़े | जैसे तैसे डॉक्टर्स ने मिलकर उसकी जान बचाई | मैं उस बुजुर्ग के होश में आने का इन्तजार करने लगी | जब थोड़ी देर बाद जब उसको होश आया तो मैं उनके सामने खड़ी थी | बुजुर्ग ने करुणा भरी दृष्टि से मुझे देखा और अपने पास बुलाया ...और मुझसे कहने लगा के बेटी मैं जानता हूँ के मेरे परिवार में मेरे बेटे बहु ने क्या कहा होगा तुम्हे | मगर मुझे कोई शिकवा नहीं है उनसे जो उनके मन को अच्छा लगा वो ही किया होगा | शायद मैं उन पर बोझ बन गया था इसीलिए उन्हें ऐसा करना पड़ा होगा | आज के बाद किसी वृधाश्रम में अपनी बीती उम्र गुजार लूँगा | भगवान् करे वो खुश रहे हमेशा | बेटी भगवान् ने तुम्हे ही भेज दिया मेरी बेटी बना के वरना पता नहीं क्या हुआ होता ? बेटी तुम हमेशा खुश रहो और फूलो फलो ...अपने परिवार के साथ हमेशा सुखी जीवन जीयो | बुजुर्ग से आशीर्वाद पाकर जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए बाहर निकली और जेहन पे लगातार हो रहे हथोड़े के वार से खुद को संभाल नहीं पा रही थी |
क्योंकी जिस कारण से घर छोड़कर विनय से लड़ झगड़कर घर से निकली थी उसका जवाब तो मुझे आगे ही तैयार मिला | विनय के पापा मम्मी ही तो मेरी अशांति का मुख्य कारण थे | आज रह रहकर अपनी गलतियों पर पछतावा हो रहा था | तभी मन में उठ रही कसक से खुद को समझाया और वापस अपने घर की तरफ कदम बढ़ा लिए तेजी से ... बार -बार बस ये ही सोच कर मन परेशान हुआ जा रहा था के विनय कितना दुखी हो रहा होगा मुझे ढूंढने में ...भागती हुई सड़के लग रही थी आज या भागती हुई मेरी आज खुली आँखे...जो भी था सब अच्छा लग रहा था |
निर्मला"मुस्कान"