Rang Birange Dohe Yogesh Samdarshi द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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Rang Birange Dohe

शीर्षक:

रंग बिरंगे दोहे

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लेखक:

योगेश समदर्शी:

1.)

दोष गैर के देखना, गुण अपने की बात।

बुरा रोग है मित्र ये, कैसे मिले निजात।।

2.)

फल तो सबको चाहिए, बिना किये कुछ काज।

शेरों जैसे हो रहे, गीदड़ ने अंदाज।।

3.)

सच अपमानित हो रहा, मिले झूठ को मान।

मिले पराजय ज्ञान को, जीते अब अभिमान।।

4.)

पैसा सबको चाहिए, वो भी छप्पर फाड़।

करे फलों की कामना, भले वृक्ष हो ताड़।।

5.)

मतलब के सब दोस्त हैं, मतलब का व्यवहार।

रिश्ते अब ऐसे हुए, जैसे हो व्यापार ।।

6.)

महंगाई में हो गया, सस्ता अब ईमान।

इक कोडी में बिक रहा, अब सच्चा इंसान।।

7.)

दूजों को उपदेश दें, खुद में कितने खोंट।

बेच बेच भगवान को, जोड़ रहे वो नोट।।

8.)

हाल न बदला देश का, चली न इक तरकीब।

महंगाई की मार से, भूखा मरे गरीब ।।

9.)

कुर्सी पा कर देखिये, नेता करते मौज ।

अब गरीब दम तोड़ता, देखो तो हर रोज ।।

10.)

दाल दूर अब हो गयी, रोटी नहीं नसीब।

नेता जी बतलाइये, कैसे जिये गरीब।।

11.)

ग़ुरबत से बढ़ कर नहीं, पीड़ा कोई और।

धरती पर इज्जत नहीं, नहीं कहीं पे ठौर।।

12.)

धरती अम्बर से कहे, कब देगा बरसात ।

झुलस गए पौधे सभी, तड़पूँ मैं दिन रात।।

13.)

खेतों पर भारी पड़ी, बिन मौसम बरसात।

कृषक रो के कर रहा, अम्बर से दो बात ।।

14.)

अगर समय पर हो सके, तो अमृत बरसात ।

बिना समय बरसे अगर, तो देवे आघात ।।

15.)

मजदूरी करता रहा, मैं तो बस दिन रात।

सबके घर होती रही, खुशियों की बरसात ।।

16.)

बादल ऐसे छा गए, मन करता उत्पात।

गर्मी से राहत मिली, जब आई बरसात।।

17.)

धन तो सबको चाहिए, मैं मांगू कुछ और।

जिसके हिस्से में निशा, मिले उसे अब भौर ।।

18.)

लक्ष्मी जी अब थामिये, निर्बल का भी हाथ।

निर्धन का भी दीजिये, बुरे वक्त में साथ ।।

19.)

धन धन तेरे भाग हों, धन हो तेरे पास ।

ऐसी मेरी कामना दिन हों तेरे ख़ास ।।

20.)

धन मेहनत का चाहिए, नहीं मुफ्त का माल।

झूठों संग न गल सकी, हम सच्चों की दाल ।।

21.)

आँखों में थी शर्म तब, जेहन में संकोच।

कैसा चश्मा चढ़ गया, बदली सबकी सोच।।

22.)

चाभी सा करतब करें, बस दो मीठे बोल ।

बंद कोठरी प्रेम की, मधुर शब्द से खोल।।

23.)

दिल से अपनाया नहीं, बन कर बैठी सास।

फिर भी बहुओं से करें, वो सेवा की आस।।

24..)

रिश्ते निभते प्रेम से, मत कर कड़वी बात ।

कुत्ते तक रहते नहीं, मार पीट से साथ।।

25.)

दोष बिराने देखना, मत आदत में ढाल।

गुण ही दीखें गैर के, बस ऐसी लत पाल।।

26.

जिसको पाला प्यार से, बड़ा बनाया खूब।

उसका रब अब हो गया, बस उसका महबूब।।

27.

परदेशी बच्चे हुए, गए गाँव को छोड़।

बूढ़े जीवन को मिला, फिर एकाकी मोड़ ।।

28.

कम पैसे कम आय है, पर बच्चे सब साथ।

मुश्किल राहें कर रहे, पार पकड़ के हाथ।।

29.

अपने को मिलती रहे, सारी सुविधा रोज ।

बस अब सबकी हो गई, इतनी छोटी खोज।।

30.

जीवन एकाकी हुआ, शहरी हो कर यार।

दो रोटी की चाह में, छूट गया परिवार।।

31.)

जिम्मेदारी को कभी, मत समझो तुम भार।

हर्ष करो निज काम पर, हो कर जिम्मेदार।।

32.)

काजल आँखों में लगे, सुंदर कर दे नैन।

लगे अगर ये भाल पर, कर देती बेचैन।।

33।)

जो निज उन्नति के लिए, मांग रहे हैं वोट।

कुर्सी पा कर छापते, यही दिखेंगे नोट।।

34.)

ग़ुरबत की बातें करें, पहने सूत महीन।

दिन उनके चिंता भरे, रातें हैं रंगीन ।।

35.)

जबसे वो नेता हुए, घर में सारी मौज।

जब तक सेवा काम था, तब पिटते थे रोज।।

36.)

दुई मुहें कुछ सांप भी, करें एक से भोग।

नेता बहु मुख से चरें, ये कैसा संयोग ।।

37.)

मेरे ऊपर आपका, रहा जब तलक हाथ।

लगा हमेशा यूँ पिता, ईश्वर मेरे साथ ।।

38.)

आँगन में जब तक रहे, मरवा, तुलसी, नीम।

घर में घुस पाया नहीं, कोई वैध हकीम।।

39.)

आपस वाले बैर का, बस इतना सा काम।

सुख जीवन का छीन कर, जीना करे हराम।।

40.)

जीने को कब चाहिए, ऊंचे बड़े मकान।

झोपड़ में भी चैन से, जीते थे इंसान।।

41.)

कैसा कैसा कर रहे, लोग यहाँ व्यापार।

बना बना के बेचते, देखो वो हथियार ।।

42.)

घर से बेटी भेज कर, हुई न चिंता दूर।

कितने हम कमजोर हैं, कितने हम मजबूर।।

43.)

हाल न बदला देश का, चली न इक तरकीब।

महंगाई की मार से, भूखा मरे गरीब ।।

44.)

कुर्सी पा कर देखिये, नेता करते मौज ।

अब गरीब दम तोड़ता, देखो तो हर रोज।।

45.)

दाल दूर अब हो गयी, रोटी नहीं नसीब।

नेता जी बतलाइये, कैसे जिये गरीब।।

46.)

ग़ुरबत से बढ़ कर नहीं पीड़ा कोई और।

धरती पर इज्जत नहीं ना गरीब को ठौर।।

47.)

आंसू से ना पूछना, तू मन के हालात।

आंसू ने तो हर दफा, दिया भाव का साथ।।

48.)

मन पर कितना भार है, आंसू दे दर्शाय।

जरा बात से दिल दुखे, झट आंसू आ जाय।।

49.)

मन सागर का रूप है, भाव नदी तू मान।

आंसू तो बरसात हैं, भीगे वो इंसान।।

50.)

शब्दों के तो घाव है, पत्थर से भी तेज।

उसके तो ज्यादा लगें, जिसकी मन में सेज।।

51.)

मन दुखे तो आह नहीं, निकले उससे हाय।

इक दुर्बल के हाय से, पर्वत तक गिर जाय।।

52.)

नेक राह पर सूल है , बद पर मिलते फूल।

इसी लिए तो लोग सब , बातें करें फिजूल ।।

53.)

गाली के हकदार को, सौंप दिए गुलदान ।

ये हक़ की तौहीन है, है गुल का अपमान।।

54.)

मान उसी को दीजिये, जो उसका हकदार।

मत बांटों खैरात में, तमगे बरखुरदार।।

55.)

भूल किये पछताय तो, भूल वो कर दो माफ़।

भूल भूल दुहराय जो, करो उसे फिर साफ़।।

56.)

मजहब में मत बाँटिये, देश बनाओ एक।

नफरत मत फैलाइये, बातें करिये नेक।।

57.)

देश प्रेम दिल में रहे, सपनें भरें उड़ान।

तब पाएंगे हम सभी, विकसित हिन्दुस्तान।।

58.)

शाकाहारी सब बने, प्रेम ऊपजे आप।

भूख मिटाने के लिए, हत्या करना पाप।।

59.)

सब से करना प्रेम तू, मत करना तू बैर।

सब रब की संतान हैं, क्या अपने क्या गैर।।

60.)

बिना कमाए जो मिले, सब धन है बेकार ।

नेक कमाई से सदा, भरना निज भण्डार।।

61.)

फैशन में पागल हुए, फटी जींस को धार।

ऐसे ढांपे तन बदन, दिखता आरम्पार।

62.)

गुर का जीवन में सदा, रखना ऊंचा मान।

गुरु बिन मिलता है नही, कभी किसी को ज्ञान ।।

63.)

सदा विनम्रता पालिए, झुक के पाओ ज्ञान ।

पल में सारे ज्ञान को, नष्ट करे अभिमान।।

64.)

बैर किसी से क्यूँ करूँ, सब ही मेरे मित्र।

भला सभी का चाहता, मेरा यही चरित्र।।

65.)

बिरले ही पहचानते, पावन प्रेम पवित्र

जन्मों के फल से मिले, सुन्दर सच्चे मित्र

- योगेश समदर्शी

संपर्क : 9717044408

ईमेल- kaviyogeshsamdarshi@gmail.com

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